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  • एक-दूसरे के करीब आना हमारे लिए भला है

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  • एक-दूसरे के करीब आना हमारे लिए भला है
  • प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है (अध्ययन)—2025
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अध्ययन लेख 16

गीत 87 आओ, ताज़गी पाओ!

एक-दूसरे के करीब आना हमारे लिए भला है

“देखो! भाइयों का एक होकर रहना क्या ही भली और मनभावनी बात है!”—भज. 133:1.

क्या सीखेंगे?

हम भाई-बहनों के और करीब कैसे आ सकते हैं और ऐसा करने से हमें क्या आशीषें मिलेंगी?

1-2. यहोवा किस बात पर खास ध्यान देता है और वह हमसे क्या चाहता है?

यहोवा इस बात पर खास ध्यान देता है कि हम लोगों के साथ किस तरह व्यवहार करते हैं। यीशु ने सिखाया था कि हमें अपने पड़ोसियों से वैसे ही प्यार करना है जैसे हम खुद से करते हैं। (मत्ती 22:37-39) इसका मतलब, हमें उनसे भी प्यार करना है जो यहोवा की सेवा नहीं करते। जब हम सब लोगों से प्यार करते हैं, तो हम यहोवा की तरह बन रहे होते हैं जो “अच्छे और बुरे दोनों पर अपना सूरज चमकाता है और नेक और दुष्ट दोनों पर बारिश बरसाता है।”—मत्ती 5:45.

2 यहोवा सब इंसानों से प्यार करता है। लेकिन जो उसकी आज्ञा मानते हैं, उनसे वह और भी ज़्यादा प्यार करता है। (यूह. 14:21) यहोवा चाहता है कि हम उसकी तरह बनें। इसलिए वह हमसे गुज़ारिश करता है कि हम भाई-बहनों से “दिल की गहराइयों से प्यार” करें और उनसे “गहरा लगाव” रखें। (1 पत. 4:8; रोमि. 12:10) हमारे परिवारवाले और जिगरी दोस्त हमारे दिल के बहुत करीब होते हैं, हम उनसे बहुत प्यार करते हैं। ठीक ऐसा ही प्यार और लगाव हमें अपने भाई-बहनों से होना चाहिए।

3. प्यार के बारे में हमें क्या बात याद रखनी चाहिए?

3 प्यार पौधे की तरह है। एक पौधा अपने आप नहीं बढ़ता, बल्कि हमें उसका अच्छा खयाल रखना होता है तभी वह बढ़ता है। वैसे ही हमें याद रखना है कि दूसरों के लिए हमारा प्यार अपने आप नहीं बढ़ेगा, इसके लिए हमें मेहनत करनी होगी। प्रेषित पौलुस ने मसीहियों से कहा, “भाइयों की तरह एक-दूसरे से प्यार करते रहो।” (इब्रा. 13:1) तो यहोवा चाहता है कि हम दूसरों के लिए अपना प्यार बढ़ाते रहें। इस लेख में हम जानेंगे कि हमें क्यों अपने भाई-बहनों के और भी करीब आना है और हम यह कैसे कर सकते हैं।

हमें क्यों एक-दूसरे के और भी करीब आना चाहिए?

4. हम भाई-बहनों के बीच जो प्यार और एकता है, उसके लिए हम अपनी कदर कैसे बढ़ा सकते हैं? (भजन 133:1) (तसवीरें भी देखें।)

4 भजन 133:1 पढ़िए। भजन के लिखनेवाले ने कहा कि यहोवा से प्यार करनेवालों से दोस्ती करना “भली और मनभावनी बात है!” लेकिन हो सकता है कि हम इस बात को कम आँकने लगें। इसे समझने के लिए एक उदाहरण पर ध्यान दीजिए। एक व्यक्‍ति रास्ते से गुज़रते वक्‍त रोज़ एक बड़ा और खूबसूरत पेड़ देखता है। पहली बार जब उसने वह पेड़ देखा था, तो वह हैरान रह गया था। लेकिन समय के चलते शायद वह पेड़ उसे मामूली लगने लगे। उसी तरह हम भाई-बहनों के बीच जो प्यार और एकता है, वह बहुत ही अनोखी है। लेकिन हम हर हफ्ते कई बार भाई-बहनों से मिलते हैं, इसलिए हो सकता है कि उनके लिए हमारा प्यार और हमारी कदर कम हो जाए। ऐसे में हम क्या कर सकते हैं? अगर हम इस बारे में सोचें कि हरेक भाई और बहन मंडली के लिए और हमारे लिए कितना अनमोल है, तो हम उनसे और भी प्यार करने लगेंगे और उनके लिए हमारी कदर बढ़ जाएगी।

तसवीरें: एक बहन एक सुंदर पेड़ को निहार रही है। 2. बाद में वही बहन क्षेत्रीय अधिवेशन में एक दूसरी बहन को गले लगा रही है। दूसरे भाई-बहन एक-दूसरे से बात कर रहे हैं और सब बहुत खुश हैं।

हमारे बीच जो एकता है, उसे कभी हलके में मत लीजिए (पैराग्राफ 4)


5. हमारे बीच प्यार देखकर लोगों पर क्या असर हो सकता है?

5 कुछ लोग जब पहली बार हमारी सभा में आए, तो उन्होंने देखा कि हमारे बीच कितना प्यार है। और यह बात उनके दिल को छू गयी, उन्हें लगा कि उन्हें सच्चाई मिल गयी है। यीशु ने कहा था, “अगर तुम्हारे बीच प्यार होगा, तो इसी से सब जानेंगे कि तुम मेरे चेले हो।” (यूह. 13:35) ज़रा चित्रा के अनुभव पर ध्यान दीजिए। वह यहोवा के साक्षियों के साथ बाइबल अध्ययन कर रही थी। एक बार उसे हमारे क्षेत्रीय अधिवेशन में जाने का मौका मिला। अधिवेशन के पहले दिन के बाद उसने अपने बाइबल टीचर से कहा, “पता है, मेरे मम्मी-पापा ने मुझे कभी गले नहीं लगाया। लेकिन आज मुझे 52 बार लोगों ने गले लगाया! ऐसा लगा जैसे यहोवा अपने लोगों के ज़रिए मुझे अपने प्यार का एहसास दिला रहा है। मैं भी यहोवा के लोगों के साथ मिलकर उसकी सेवा करना चाहती हूँ।” चित्रा बाइबल अध्ययन करती रही और उसने अपने अंदर कई बदलाव किए। फिर 2024 में उसने बपतिस्मा ले लिया। इस अनुभव से पता चलता है कि जब नए लोग हमारे भले काम और हमारे बीच का प्यार देखते हैं, तो वे अकसर यहोवा की सेवा करने लगते हैं।—मत्ती 5:16.

6. जब हम भाई-बहनों के करीब होते हैं, तो हमारी हिफाज़त कैसे होती है?

6 जब हम भाई-बहनों के करीब आते हैं, तो इससे हमारी हिफाज़त होती है। पौलुस ने मसीहियों से कहा था, “तुम हर दिन एक-दूसरे का हौसला बढ़ाते रहो ताकि तुममें से कोई भी पाप की भरमाने की ताकत की वजह से कठोर न हो जाए।” (इब्रा. 3:13) अगर हम बहुत ज़्यादा निराश हो जाएँ, तो हमारे कदम सही राह से भटकने लग सकते हैं। ऐसे में यहोवा किसी भाई या बहन के ज़रिए हमारी मदद कर सकता है ताकि हम वापस सही रास्ते पर आ जाएँ। (भज. 73:2, 17, 23) अपने भाई-बहनों के करीब आना सच में कितनी बढ़िया आशीष है!

7. एक-दूसरे से प्यार करने की वजह से हमारे बीच एकता कैसे बनी रहती है? (कुलुस्सियों 3:13, 14)

7 हम यहोवा के लोग एक-दूसरे से सच्चा प्यार करते हैं और इसे ज़ाहिर करने की पूरी कोशिश भी करते हैं। इस वजह से हमें कई आशीषें मिलती हैं। (1 यूह. 4:11) जैसे प्यार की वजह से हम ‘एक-दूसरे की सह लेते हैं’ और इससे हमारे बीच एकता बनी रहती है। (कुलुस्सियों 3:13, 14 पढ़िए; इफि. 4:2-6) इतना ही नहीं, हम अपनी सभाओं में ऐसे बढ़िया माहौल का मज़ा ले पाते हैं जो दुनिया के किसी भी संगठन में नहीं पाया जाता।

दूसरों का आदर कीजिए

8. हमारे बीच एकता हो, इसके लिए यहोवा ने क्या किया है?

8 दुनिया-भर में हम भाई-बहनों के बीच जो एकता है, वह किसी चमत्कार से कम नहीं है। यहोवा की वजह से ही हम अपरिपूर्ण लोग एक होकर रह पाते हैं। (1 कुरिं. 12:24, 25) बाइबल में लिखा है, ‘खुद परमेश्‍वर ने हमें एक-दूसरे से प्यार करना सिखाया है।’ (1 थिस्स. 4:9) वह कैसे? वह अपने वचन बाइबल के ज़रिए हमें बताता है कि एक-दूसरे के और करीब आने के लिए हमें क्या करना होगा। अगर हम ‘परमेश्‍वर से सीखना’ चाहते हैं, तो हमें ध्यान से बाइबल का अध्ययन करना होगा और सीखी बातों को मानना होगा। (इब्रा. 4:12; याकू. 1:25) और आज यहोवा का हर सेवक यही करने की कोशिश करता है!

9. रोमियों 12:9-13 से हम दूसरों का आदर करने के बारे में क्या सीखते हैं?

9 परमेश्‍वर के वचन से हम एक-दूसरे के और करीब आना कैसे सीखते हैं? इस बारे में रोमियों 12:9-13 में बढ़िया सलाह दी गयी है। (पढ़िए।) ध्यान दीजिए कि पौलुस ने कहा, “खुद आगे बढ़कर दूसरों का आदर करो।” उसके कहने का क्या मतलब था? यही कि हमें खुद आगे बढ़कर दिखाना है कि हमें दूसरों से “गहरा लगाव” है, जैसे हमें उन्हें माफ करना है, उनकी मेहमान-नवाज़ी करनी है और दरियादिल बनना है। (इफि. 4:32) हमें यह नहीं सोचना है कि जब दूसरे हमारे करीब आएँगे, तब हम उनके करीब जाएँगे। इसके बजाय हमें “खुद आगे बढ़कर” उनके करीब जाना है। तब हम यीशु की यह बात सच होते देखेंगे: “लेने से ज़्यादा खुशी देने में है।”—प्रेषि. 20:35.

10. “दूसरों का आदर” करने के मामले में हम मेहनती कैसे बन सकते हैं? (तसवीर भी देखें।)

10 जब पौलुस ने कहा कि आगे बढ़कर दूसरों का आदर करो, तो देखिए कि इसके तुरंत बाद उसने क्या कहा। उसने कहा, “मेहनती बनो, आलसी मत हो।” एक मेहनती व्यक्‍ति पूरे जोश और लगन से काम करता है। उसे जो भी काम सौंपा जाता है, वह दिल लगाकर उसे करता है। नीतिवचन 3:27, 28 में हमें बढ़ावा दिया गया है, “जिनका भला करना चाहिए, अगर उनका भला करना तेरे बस में हो तो पीछे मत हटना।” तो अगर हम देखते हैं कि किसी को मदद की ज़रूरत है, तो हमसे जो बन पड़ता है हमें करना चाहिए। हमें टाल-मटोल नहीं करना चाहिए, ना ही यह सोचना चाहिए कि कोई और उसकी मदद कर देगा।—1 यूह. 3:17, 18.

एक जवान भाई एक बुज़ुर्ग भाई के घर की छत साफ कर रहा है। वह सीढ़ी पर खड़ा है और छत से पत्ते निकाल रहा है।

हमें आगे बढ़कर ज़रूरतमंद भाई-बहनों की मदद करनी चाहिए (पैराग्राफ 10)


11. एक-दूसरे के और भी करीब आने के लिए हम और क्या कर सकते हैं?

11 दूसरों का आदर करने का एक और तरीका है कि जब कोई हमारा दिल दुखाए, तो हम उसे जल्दी से माफ कर दें। इफिसियों 4:26 में लिखा है, “सूरज ढलने तक तुम्हारा गुस्सा न रहे।” हमें यह बात क्यों माननी है? जैसा आयत 27 में बताया है, अगर हम गुस्सा रहें, तो हम “शैतान को मौका” दे रहे होंगे। बाइबल में यहोवा ने हमसे बार-बार यह गुज़ारिश की है कि हम एक-दूसरे को माफ करें। कुलुस्सियों 3:13 में लिखा है, “एक-दूसरे को दिल खोलकर माफ करते रहो।” दूसरों की गलतियों को अनदेखा करना और उन्हें माफ करना, उनके और करीब आने का एक बहुत ही बढ़िया तरीका है। जब हम ऐसा करते हैं, तो हम ‘अपने बीच शांति बनाए रखते हैं जो हमें एकता के बंधन में बाँधे रखती है।’ (इफि. 4:3) सच में, एक-दूसरे को माफ करने से हमारे बीच शांति और एकता बनी रहती है!

12. दूसरों को माफ करने में यहोवा कैसे हमारी मदद करता है?

12 यह सच है कि जब कोई हमारा दिल दुखाता है, तो उसे माफ करना बहुत मुश्‍किल होता है। लेकिन यहोवा की पवित्र शक्‍ति की मदद से हम ऐसा कर सकते हैं। ‘एक-दूसरे से गहरा लगाव रखने’ और ‘मेहनती बनने’ की सलाह देने के बाद पौलुस ने कहा, “पवित्र शक्‍ति के तेज से भरे रहो।” जो व्यक्‍ति ‘पवित्र शक्‍ति के तेज से भरा’ होता है, उसमें सही काम करने का जोश होता है। तो पवित्र शक्‍ति हममें जोश भर कर सकती है कि हम एक-दूसरे से गहरा लगाव रखें और एक-दूसरे को माफ करें। इसलिए हम यहोवा से बिनती करते हैं कि वह हमें अपनी पवित्र शक्‍ति दे।—लूका 11:13.

“तुम्हारे बीच फूट न हो”

13. हमारी बीच किस वजह से फूट पड़ सकती है?

13 मसीही मंडली में ‘सब किस्म के लोग’ होते हैं, वे अलग-अलग माहौल में पले-बढ़े होते हैं। (1 तीमु. 2:3, 4) इसलिए इलाज, मनोरंजन और पहनावे के मामले में भाई-बहनों की पसंद-नापसंद एक-दूसरे से अलग हो सकती है। अगर हम सावधान ना रहें, तो इस वजह से मंडली में फूट पड़ सकती है। (रोमि. 14:4; 1 कुरिं. 1:10) हमें “परमेश्‍वर ने एक-दूसरे से प्यार करना सिखाया है,” इसलिए हमें ध्यान रखना चाहिए कि हम खुद को दूसरों से बेहतर ना समझें और अपनी पसंद उन पर ना थोपें।—फिलि. 2:3.

14. हमारी क्या कोशिश रहनी चाहिए और क्यों?

14 मंडली में फूट ना पड़े इसके लिए हम और क्या कर सकते हैं? हम दूसरों को ताज़गी पहुँचाने की और उन्हें मज़बूत करने की पूरी कोशिश कर सकते हैं। (1 थिस्स. 5:11) हाल के समय में ऐसे कई लोग मंडली में लौट आए हैं जिन्होंने एक वक्‍त पर सभाओं और प्रचार में जाना छोड़ दिया था या जिन्हें मंडली से निकाल दिया गया था। हम ऐसे भाई-बहनों का प्यार से स्वागत करते हैं! (2 कुरिं. 2:8) ध्यान दीजिए कि जब एक निष्क्रिय बहन 10 साल बाद सभा में आयी, तो उसे कैसा लगा। उसने कहा: “मुझे देखकर सब बहुत खुश हुए। उन्होंने मुझसे हाथ मिलाया और प्यार-से मेरा स्वागत किया।” (प्रेषि. 3:19) इसका बहन पर क्या असर हुआ? वह कहती है, “ऐसा लगा जैसे यहोवा मुझे सिखा रहा है कि दोबारा खुश रहने के लिए मुझे क्या करना होगा।” जब हम दूसरों का हौसला बढ़ाते हैं, तो यीशु हमारे ज़रिए ‘कड़ी मज़दूरी करनेवालों और बोझ से दबे लोगों’ को तरो-ताज़ा करता है।—मत्ती 11:28, 29.

15. मंडली में एकता बनाए रखने का एक और तरीका क्या है? (तसवीर भी देखें।)

15 मंडली में एकता बनाए रखने का एक और तरीका है, इस बात का ध्यान रखना कि हम क्या कहते हैं। अय्यूब 12:11 में लिखा है, “जैसे जीभ से खाना चखा जाता है, वैसे ही क्या कानों से बातों को नहीं परखा जाता?” एक अच्छा बावर्ची खाना परोसने से पहले हमेशा उसे चखकर देखता है। उसी तरह हमें भी कुछ कहने से पहले सोचना चाहिए कि हम जो कहनेवाले हैं, उसका सामनेवाले पर क्या असर होगा। (भज. 141:3) हमारी कोशिश रहनी चाहिए कि हमारी बातों से हमेशा दूसरों का हौसला बढ़े, उन्हें ताज़गी मिले और “सुननेवालों को फायदा हो।”—इफि. 4:29.

एक भाई ने मेहमानों के लिए खाना बनाया है और उसे परोसने से पहले वह उसे चख रहा है।

कुछ भी कहने से पहले सोचिए कि आप जो कहेंगे उसका दूसरों पर क्या असर होगा (पैराग्राफ 15)


16. किन्हें दूसरों का हौसला बढ़ाने का खास ध्यान रखना चाहिए?

16 पतियों और माता-पिताओं को इस बात का खास ध्यान रखना चाहिए कि उनकी बातों से दूसरों का हौसला बढ़े। (कुलु. 3:19, 21; तीतु. 2:4) प्राचीनों को भी याद रखना चाहिए कि चरवाहों के नाते उन्हें यहोवा की भेड़ों को ताज़गी पहुँचानी है और उन्हें दिलासा देना है। (यशा. 32:1, 2; गला. 6:1) एक नीतिवचन में भी लिखा है, “सही वक्‍त पर कही गयी बात क्या खूब होती है!”—नीति. 15:23.

‘सच्चे दिल से प्यार करते रहिए’

17. भाई-बहनों से सच्चे दिल से प्यार करने के लिए हम क्या कर सकते हैं?

17 प्रेषित यूहन्‍ना ने कहा कि “हमें सिर्फ बातों या ज़बान से नहीं बल्कि अपने कामों से दिखाना चाहिए कि हम सच्चे दिल से प्यार करते हैं।” (1 यूह. 3:18) अपने भाई-बहनों से सच्चे दिल से प्यार करने के लिए हम क्या कर सकते हैं? उनके साथ ज़्यादा-से-ज़्यादा समय बिताइए। तब आप उनके और करीब आ जाएँगे और उनके लिए आपका प्यार और भी गहरा हो जाएगा। इसलिए भाई-बहनों के साथ वक्‍त बिताने के मौके ढूँढ़िए। जैसे सभा से पहले और उसके बाद उनसे बात कीजिए और उनके साथ प्रचार में जाइए। वक्‍त निकालकर भाई-बहनों से मिलने भी जाइए। इस तरह आप दिखाएँगे कि आपको “परमेश्‍वर ने एक-दूसरे से प्यार करना सिखाया है।” (1 थिस्स. 4:9) और फिर आप महसूस करेंगे कि “भाइयों का एक होकर रहना क्या ही भली और मनभावनी बात है!”—भज. 133:1.

आपका जवाब क्या होगा?

  • एक-दूसरे के और करीब आने से हमें क्या आशीषें मिलती हैं?

  • हम किस तरह आगे बढ़कर दूसरों का आदर कर सकते हैं?

  • हम किस तरह अपने बीच एकता बनाए रख सकते हैं?

गीत 90 एक-दूजे की हिम्मत बँधाएँ

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