अध्ययन लेख 39
गीत 54 “राह यही है!”
‘अच्छा मन रखनेवालों’ की जल्द-से-जल्द मदद कीजिए
“वे सभी जो हमेशा की ज़िंदगी पाने के लायक अच्छा मन रखते थे, विश्वासी बन गए।”—प्रेषि. 13:48.
क्या सीखेंगे?
हमें कब लोगों को बाइबल अध्ययन के इंतज़ाम के बारे में बताना चाहिए और उन्हें सभाओं के लिए बुलाना चाहिए?
1. खुशखबरी सुनने पर लोग क्या करते हैं? (प्रेषितों 13:47, 48; 16:14, 15)
पहली सदी में कई लोगों ने जब यीशु के बारे में खुशखबरी सुनी, तो उसे तुरंत कबूल किया और मसीही बन गए। (प्रेषितों 13:47, 48; 16:14, 15 पढ़िए।) उसी तरह आज भी कई लोग जब पहली बार खुशखबरी सुनते हैं, तो उन्हें बहुत खुशी होती है और वे इस बारे में और सीखना चाहते हैं। वहीं कुछ लोग ऐसे भी हैं जो शायद शुरू में हमारे संदेश में इतनी दिलचस्पी ना लें, लेकिन आगे चलकर इस बारे में और सीखना चाहें। तो जब हमें प्रचार में “अच्छा मन” रखनेवाले लोग मिलते हैं, तो हमें क्या करना चाहिए?
2. समझाइए कि प्रचार काम किस तरह माली के काम जैसा है।
2 हम प्रचार काम की तुलना माली के काम से कर सकते हैं। जब माली देखता है कि एक पेड़ के फल पककर तैयार हैं, तो वह उन्हें तोड़ लेता है। पर साथ ही वह उन पेड़ों में पानी डालता रहता है जिनके फल अभी पके नहीं हैं। उसी तरह जब हमें कोई ऐसा व्यक्ति मिलता है जो खुशखबरी सुनता है और सीखने के लिए तैयार है, तो हम परमेश्वर का सेवक बनने में जल्द-से-जल्द उसकी मदद करते हैं। पर साथ ही हम उन लोगों की भी मदद करते रहते हैं जिन्हें हमारे संदेश में थोड़ी-बहुत रुचि तो है, लेकिन जो फिलहाल सीखने के लिए तैयार नहीं हैं। (यूह. 4:35, 36) इसलिए लोगों से बात करने के लिए हमें सूझ-बूझ से काम लेने की ज़रूरत है। तब हम समझ पाएँगे कि हम कैसे उनकी मदद कर सकते हैं। आइए देखें कि जब हमारी मुलाकात किसी ऐसे व्यक्ति से होती है जो सीखने के लिए तैयार है, तो हम उससे क्या कह सकते हैं। हम यह भी जानेंगे कि हम तरक्की करने में कैसे उसकी मदद कर सकते हैं।
अगर कोई सीखना चाहे, तो क्या करें?
3. जब कोई परमेश्वर या बाइबल के बारे में और जानना चाहता है, तो हमें क्या करना चाहिए? (1 कुरिंथियों 9:26)
3 जब प्रचार में हमें ऐसे लोग मिलते हैं, जो परमेश्वर या बाइबल के बारे में और जानना चाहते हैं, तो हमें जल्द-से-जल्द जीवन के रास्ते पर चलने में उनकी मदद करनी चाहिए। हम यह कैसे कर सकते हैं? पहली मुलाकात में ही उन्हें बाइबल अध्ययन के इंतज़ाम के बारे में बताइए और उन्हें सभाओं में बुलाइए।—1 कुरिंथियों 9:26 पढ़िए।
4. एक लड़की का अनुभव बताइए जो तुरंत बाइबल अध्ययन करने के लिए तैयार हो गयी।
4 बाइबल अध्ययन के इंतज़ाम के बारे में बताइए। कभी-कभार हमें प्रचार में ऐसे लोग मिलते हैं जो तुरंत बाइबल अध्ययन करने के लिए तैयार हो जाते हैं। कनाडा में हुए एक अनुभव पर ध्यान दीजिए। गुरुवार का दिन था। एक लड़की हमारे कार्ट के पास आयी और उसने खुशी से जीएँ हमेशा के लिए! ब्रोशर लिया। कार्ट पर खड़ी हमारी बहन ने उससे कहा कि हम इस ब्रोशर की मदद से लोगों के साथ मुफ्त में बाइबल अध्ययन भी करते हैं। उस लड़की को यह बात अच्छी लगी और उसने बहन को अपना फोन नंबर दिया और उसका भी नंबर ले लिया। कुछ घंटों बाद बहन के पास उस लड़की का मैसेज आया और उसने पूछा कि हम कब अध्ययन कर सकते हैं। बहन ने कहा कि हम शनिवार को मिल सकते हैं। तब उस लड़की ने कहा, “क्या हम कल नहीं मिल सकते? मैं कल फ्री हूँ।” अगले ही दिन यानी शुक्रवार को बहन उससे मिली और उसने उसके साथ अध्ययन शुरू किया। फिर रविवार को वह लड़की सभा में भी आयी और देखते-ही-देखते यहोवा के साथ उसका रिश्ता मज़बूत हो गया।
5. अगर कोई तुरंत अध्ययन करने के लिए तैयार ना हो, तो हम क्या कर सकते हैं? (तसवीरें भी देखें।)
5 हम यह उम्मीद नहीं करते कि जो भी हमारा संदेश सुनते हैं, वे उस लड़की की तरह तुरंत अध्ययन करने के लिए तैयार हो जाएँगे। कुछ लोगों को थोड़ा वक्त लगता है। ऐसे में हम क्या कर सकते हैं? किसी ऐसे विषय पर बात कीजिए जिनमें उन्हें दिलचस्पी हो। उनके लिए प्यार और परवाह जताइए और उम्मीद रखिए कि वे एक-न-एक दिन अध्ययन ज़रूर करेंगे। अगर हम ऐसा करते रहें, तो कुछ ही वक्त में शायद हम अध्ययन शुरू कर पाएँगे। पर हम उन्हें अध्ययन के इंतज़ाम के बारे में कैसे बता सकते हैं? हमने यह सवाल कुछ ऐसे भाई-बहनों से किया जो अध्ययन शुरू करने में माहिर हैं। आइए देखें कि उन्होंने क्या कहा।
आप इन लोगों से क्या कहेंगे ताकि वे अध्ययन करना चाहें? (पैराग्राफ 5)a
6. लोगों से दोबारा मिलने के लिए हम उनसे क्या कह सकते हैं?
6 हमें अलग-अलग देशों के प्रचारकों और पायनियरों से पता चला कि वे बाइबल अध्ययन के बारे में बताते वक्त इन शब्दों का इस्तेमाल नहीं करते, जैसे “स्टडी,” “अध्ययन,” या “बाइबल कोर्स।” इसके बजाय, वे कहते हैं कि “हम कुछ चर्चा करेंगे,” “थोड़ी बातचीत करेंगे,” या “एक पवित्र किताब से कुछ अच्छी बातें जानेंगे।” ऐसा करने से उन्हें अच्छे नतीजे मिले हैं। लोगों से दोबारा मिलने के लिए आप बाइबल के बारे में कुछ ऐसा कह सकते हैं: “इस किताब में कुछ ज़रूरी सवालों के जवाब दिए हैं” या “इसमें ऐसी बढ़िया सलाह दी गयी है जो हर दिन हमारे काम आती है। क्या आप इस बारे में और जानना चाहेंगे?” जब हम लोगों से पूछते हैं कि हम हर हफ्ते कब आ सकते हैं या अध्ययन के लिए कौन-सा वक्त सही रहेगा, तो यह सुनकर कुछ लोग घबरा सकते हैं। उन्हें लग सकता है कि हम उनका काफी वक्त ले लेंगे। इसलिए आप कुछ ऐसा कह सकते हैं, “इस चर्चा में ज़्यादा वक्त नहीं लगेगा। 10-15 मिनट में भी आप कुछ अच्छी बातें सीख सकते हैं।”
7. कुछ लोगों को कब एहसास हुआ कि वे जो सीख रहे हैं, वही सच्चाई है? (1 कुरिंथियों 14:23-25)
7 उन्हें सभा के लिए बुलाइए। ऐसा मालूम होता है कि प्रेषित पौलुस के दिनों में जब कुछ लोग पहली बार सभा में आए, तो उन्हें एहसास हुआ कि वे जो सीख रहे हैं, वही सच्चाई है। (1 कुरिंथियों 14:23-25 पढ़िए।) आज भी कई बार ऐसा होता है। जब नए लोग सभाओं में आने लगते हैं, तो वे जल्दी तरक्की करते हैं। तो आपको लोगों को कब सभाओं में बुलाना चाहिए? खुशी से जीएँ हमेशा के लिए! किताब के पाठ 10 में लोगों को सभाओं में आने का बढ़ावा दिया गया है। लेकिन लोगों को सभा में बुलाने के लिए इस पाठ का इंतज़ार मत कीजिए। आप किसी से पहली बार मिलने पर भी उसे हफ्ते के आखिर में होनेवाली सभा में बुला सकते हैं। आप चाहें तो उसे जन भाषण का विषय बता सकते हैं या कोई ऐसी बात बता सकते हैं जिस पर उस हफ्ते प्रहरीदुर्ग अध्ययन में चर्चा की जाएगी।
8. किसी को सभा में बुलाते वक्त हम उसे क्या बता सकते हैं? (यशायाह 54:13)
8 जब आप किसी को सभा के लिए बुलाते हैं, तो आप उसे बता सकते हैं कि हमारी सभाएँ दूसरी धार्मिक सभाओं से बहुत अलग हैं। जब एक बाइबल विद्यार्थी पहली बार प्रहरीदुर्ग अध्ययन में आयी, तो उसने अपने बाइबल टीचर से पूछा, “क्या सभा चलानेवाले यह भाई सबका नाम जानते हैं?” बहन ने उसे बताया कि हम सबका नाम जानने की कोशिश करते हैं, क्योंकि हम सब एक ही परिवार जैसे हैं। यह सुनकर विद्यार्थी ने कहा कि हमारे चर्च में तो ज़्यादातर लोग एक-दूसरे का नाम तक नहीं जानते। इसके अलावा, आप लोगों को यह भी बता सकते हैं कि हमारी सभाएँ एक और मायने में अलग हैं। (यशायाह 54:13 पढ़िए।) हम सभाओं में यहोवा की उपासना करने के लिए, उससे सीखने और एक-दूसरे का हौसला बढ़ाने के लिए आते हैं। (इब्रा. 2:12; 10:24, 25) इसलिए हमारी सभाएँ बहुत कायदे से चलायी जाती हैं और वहाँ जो बातें बतायी जाती हैं, वे बड़े काम की होती हैं। (1 कुरिं. 14:40) हम वहाँ किसी भी तरह के रीति-रिवाज़ नहीं मनाते। हम राज-घर में सीखने जाते हैं, इसलिए वहाँ अच्छी रौशनी का इंतज़ाम होता है। हम किसी राजनैतिक पार्टी का साथ नहीं देते, हम इस मामले में निष्पक्ष रहते हैं। इसके अलावा हम सामाजिक मुद्दों पर बहस नहीं करते, ना ही लड़ते-झगड़ते हैं। आप विद्यार्थी को सभा में बुलाने से पहले उसे राज-घरों में क्या होता है? नाम का वीडियो दिखा सकते हैं। इससे वह जान पाएगा कि हमारी सभाएँ कैसे चलायी जाती हैं।
9-10. आप नए लोगों को कैसे बताएँगे कि सभाओं में हिस्सा लेने के लिए या सदस्य बनने के लिए किसी के साथ ज़बरदस्ती नहीं की जाती? (तसवीर भी देखें।)
9 कुछ लोग सभाओं में आने से इसलिए हिचकिचाते हैं, क्योंकि वे मन-ही-मन सोचते हैं, ‘ये लोग मुझे अपने चर्च का सदस्य बनने के लिए कहेंगे।’ इसलिए नए लोगों को बताइए कि कोई भी हमारी सभाओं में आ सकता है और इनमें हिस्सा लेने के लिए या सदस्य बनने के लिए किसी के साथ ज़बरदस्ती नहीं की जाती। सभाओं के लिए माता-पिता अपने बच्चों को भी साथ ला सकते हैं। हमारी सभाओं में बच्चों को अलग से कुछ नहीं सिखाया जाता। वे माता-पिता के साथ ही बैठकर सुनते हैं। इससे बच्चे अपने माता-पिता की निगरानी में ही रहते हैं और उन्हें पता होता है कि उनके बच्चे क्या सीख रहे हैं। (व्यव. 31:12) हमारी सभाओं में चंदा नहीं लिया जाता, ना ही इसके लिए कोई थैली फिरायी जाती है या लिफाफे दिए जाते हैं। हम दान देने के मामले में यीशु की यह आज्ञा मानते हैं, “तुम्हें मुफ्त मिला है, मुफ्त में दो।” (मत्ती 10:8) आप नए लोगों को यह भी बता सकते हैं कि सभाओं में आने के लिए उन्हें महँगे-महँगे कपड़े पहनने की ज़रूरत नहीं है। परमेश्वर यह नहीं देखता कि एक इंसान बाहर से कैसा दिखता है, बल्कि वह उसका दिल देखता है।—1 शमू. 16:7.
10 जब कोई नया व्यक्ति सभा के लिए आता है, तो आप क्या कर सकते हैं? उसका प्यार से स्वागत कीजिए। उसे प्राचीनों और दूसरे प्रचारकों से मिलवाइए। अगर उसे अपनापन महसूस होगा, तो वह दोबारा सभाओं में आएगा। अगर उसके पास बाइबल नहीं है, तो सभा के दौरान उसे अपनी बाइबल से आयतें दिखाइए या फिर भाषण के दौरान आयतें खोलने में उसकी मदद कीजिए। और जिस प्रकाशन पर चर्चा की जा रही है आप उसे वह भी दिखा सकते हैं।
एक व्यक्ति जितनी जल्दी सभाओं में आना शुरू करता है, उतनी जल्दी वह यहोवा के करीब आने लगता है (पैराग्राफ 9-10)
जब बाइबल अध्ययन शुरू हो जाए, तो क्या करें?
11. आप कैसे दिखा सकते हैं कि आप सामनेवाले के वक्त को कीमती समझते हैं?
11 जब हम किसी के घर पर अध्ययन करते हैं, तो हम किन बातों को ध्यान में रख सकते हैं? उसके वक्त को कीमती समझिए। जैसे, अध्ययन के लिए समय पर पहुँचिए, फिर चाहे आपके इलाके में लोगों को समय पर पहुँचने की आदत ना भी हो। इसके अलावा, जब आप पहली बार अध्ययन के लिए जाते हैं, तो उसे छोटा रखिए। कुछ अनुभवी प्रचारकों का कहना है कि चाहे विद्यार्थी और भी पढ़ना चाहता हो, आप अध्ययन को लंबा मत खींचिए। इसके अलावा, अध्ययन करते वक्त बहुत ज़्यादा मत बोलिए, बल्कि सामनेवाले को अपनी बात कहने दीजिए।—नीति. 10:19.
12. जब हम किसी के साथ बाइबल अध्ययन शुरू करते हैं, तभी से हमारा क्या लक्ष्य होना चाहिए?
12 जब आप किसी के साथ बाइबल अध्ययन शुरू करते हैं, तो आपका लक्ष्य होना चाहिए कि आपका विद्यार्थी यहोवा और यीशु को जान सके और अपने दिल में उनके लिए प्यार बढ़ा सके। आप यह कैसे कर सकते हैं? यह दिखाने की कोशिश मत कीजिए कि आपको बाइबल का कितना ज्ञान है, बल्कि उसका ध्यान हमेशा परमेश्वर के वचन बाइबल की तरफ खींचिए। (प्रेषि. 10:25, 26) इस मामले में हम पौलुस से बहुत कुछ सीख सकते हैं। उसने हमेशा लोगों का ध्यान यीशु मसीह की तरफ खींचा। वह क्यों? क्योंकि यहोवा ने यीशु को इसलिए भेजा था ताकि उसके ज़रिए लोग यहोवा को जान सकें और उससे प्यार कर सकें। (1 कुरिं. 2:1, 2) इसके अलावा, पौलुस ने भाई-बहनों को बताया कि यह कितना ज़रूरी है कि वे नए चेलों को अपने अंदर बढ़िया गुण बढ़ाने में मदद दें। जैसे विश्वास, बुद्धि, पैनी समझ और यहोवा का डर। उसने इन गुणों की तुलना सोने, चाँदी और कीमती पत्थरों से की। (भज. 19:9, 10; नीति. 3:13-15; 1 कुरिं. 3:11-15; 1 पत. 1:7) आप भी लोगों को सिखाते वक्त पौलुस का तरीका अपना सकते हैं। इससे विद्यार्थी का विश्वास बढ़ेगा और यहोवा के साथ उसका रिश्ता मज़बूत होगा।—2 कुरिं. 1:24.
13. सिखाते वक्त हम अपने विद्यार्थी के साथ कैसे सब्र रख सकते हैं और उसकी भावनाएँ अच्छी तरह समझ सकते हैं? (2 कुरिंथियों 10:4, 5) (तसवीर भी देखें।)
13 यीशु लोगों को सिखाते वक्त उनके साथ सब्र रखता था और उनकी भावनाएँ अच्छी तरह समझता था। हम भी उसकी तरह बन सकते हैं। विद्यार्थी को सिखाते वक्त हम ऐसा कोई सवाल नहीं करेंगे जिससे वह शर्मिंदा महसूस करे। अगर कोई बात उसे समझ नहीं आ रही है, तो उस बात को छोड़ दीजिए और अपना अध्ययन जारी रखिए। आप बाद में उस बारे में उसके साथ चर्चा कर सकते हैं। अगर किसी शिक्षा को मानना उसे मुश्किल लग रहा है, तो उसे वक्त दीजिए, ताकि वह उस बारे में सोच सके। किसी भी तरह उसके साथ ज़बरदस्ती मत कीजिए। (यूह. 16:12; कुलु. 2:6, 7) बाइबल में बताया गया है कि झूठी शिक्षाएँ “गहराई तक समायी हुई बातों” की तरह हैं। (2 कुरिंथियों 10:4, 5 पढ़िए।) यूनानी भाषा में इस आयत में इन शिक्षाओं की तुलना एक मज़बूत किले से की गयी है। हमें याद रखना है कि हमारा विद्यार्थी सालों से उन शिक्षाओं को मानता आ रहा है और ये उसके लिए एक मज़बूत किले जैसी हैं। अगर यह किला गिर जाए, तो वह कहाँ जाएगा? इसलिए अच्छा होगा कि हम यहोवा पर उसका भरोसा बढ़ाएँ ताकि वह यहोवा को अपना किला या पनाह बनाए। और जब वह ऐसा कर लेगा, तो पुराने किले को गिराना उसके लिए आसान हो जाएगा।—भज. 91:9.
विद्यार्थी के दिल में सच्चाई को जड़ पकड़ने में समय लगता है, इसलिए उसे वक्त दीजिए (पैराग्राफ 13)
जब नए लोग सभाओं में आएँ, तो क्या करें?
14. सभा में जो नए लोग आते हैं, हमें उनके साथ कैसे पेश आना चाहिए?
14 हमारी सभाओं में अलग-अलग तरह के लोग आते हैं। कुछ दूसरी जगहों से या संस्कृति से होते हैं और कुछ अमीर होते हैं, तो कुछ गरीब। जो भी हो, यहोवा चाहता है कि हम सब लोगों के साथ प्यार से पेश आएँ और उनके साथ कोई भेदभाव ना करें। (याकू. 2:1-4, 9) तो फिर जब कोई नया व्यक्ति सभा में आता है, तो हम कैसे दिखा सकते हैं कि हमें उसकी परवाह है?
15-16. हम नए लोगों का स्वागत करने के लिए क्या कर सकते हैं?
15 कुछ लोग सभाओं में बस इसलिए आते हैं क्योंकि वे जानना चाहते हैं कि हमारी सभाओं में क्या होता है। और कुछ लोग इसलिए आते हैं क्योंकि किसी और जगह के साक्षी ने उन्हें सभा में आने के लिए कहा था। इसलिए हमें आगे बढ़कर नए लोगों का स्वागत करना चाहिए। लेकिन हमें ऐसा कुछ नहीं करना चाहिए जिससे उन्हें अजीब लगे। आप चाहें तो उन्हें अपने साथ बैठने के लिए कह सकते हैं। सभा के दौरान आप उन्हें अपनी बाइबल या पत्रिका दिखा सकते हैं या उन्हें एक बाइबल या पत्रिका दे सकते हैं। इसके अलावा, उनकी भावनाओं का भी खयाल रखिए। एक आदमी जब पहली बार राज-घर में आया, तो एक भाई ने उसका स्वागत किया। उसने भाई को बताया कि उसे बड़ा अजीब लग रहा है, क्योंकि उसने ढंग के कपड़े नहीं पहने। भाई ने उससे कहा कि परेशान मत होइए, माना कि हमने अच्छे कपड़े पहने हैं, लेकिन हम भी आप ही की तरह हैं। आगे चलकर उस आदमी ने अच्छी तरक्की की और बपतिस्मा लिया और वह उस भाई की बात कभी नहीं भूला। लेकिन जब हम सभा से पहले या बाद में नए लोगों से मिलते हैं, तो हमें एक बात याद रखनी है। हमें कभी-भी उनके निजी मामलों के बारे में उनसे सवाल नहीं करने चाहिए।—1 पत. 4:15.
16 नए लोगों का स्वागत करने और उन्हें अच्छा महसूस कराने के लिए हम एक और चीज़ कर सकते हैं। जब हम उनसे बात करते हैं, सभा में कोई जवाब देते हैं या स्टेज से कोई भाग पेश करते हैं, तो हम ध्यान रखेंगे कि हम किसी भी तरह उन्हें ठेस ना पहुँचाएँ। हम ऐसा कुछ नहीं कहेंगे जिससे उन्हें लगे कि हम उनका मज़ाक उड़ा रहे हैं या उन्हें नीचा दिखा रहे हैं। (तीतु. 2:8; 3:2) जैसे, वे जो शिक्षाएँ मानते हैं, उस बारे में हम कुछ बुरा-भला नहीं कहेंगे। (2 कुरिं. 6:3) जो भाई जन भाषण देते हैं, उन्हें इस बात का खास ध्यान रखना चाहिए। इसके अलावा, जब वे बाइबल से कोई ऐसी बात बताते हैं या कोई ऐसा शब्द इस्तेमाल करते हैं जो नए लोगों को समझ में नहीं आएगा, तो अच्छा होगा कि वे खुलकर उसका मतलब समझाएँ।
17. जब हमें “अच्छा मन” रखनेवाले लोग मिलते हैं, तो हम क्या करेंगे?
17 जैसे-जैसे हम अंत के करीब आ रहे हैं, यह ज़रूरी है कि हम और भी ज़ोर-शोर से चेला बनाने का काम करें और “हमेशा की ज़िंदगी पाने के लायक अच्छा मन” रखनेवालों को ढूँढ़ने की पूरी कोशिश करें। (प्रेषि. 13:48) जब वे हमें मिलते हैं, तो हम बेझिझक उन्हें बाइबल अध्ययन के इंतज़ाम के बारे में बताएँगे और उन्हें सभाओं के लिए बुलाएँगे। इस तरह हम उन लोगों को ‘जीवन की तरफ ले जानेवाले रास्ते’ पर चलने में मदद दे पाएँगे।—मत्ती 7:14.
गीत 64 कटनी में खुशी से हिस्सा लें
a तसवीर के बारे में: मिलिट्री से रिटायर्ड एक आदमी अपने घर के बाहर बैठा है और दो भाई उसे गवाही दे रहे हैं; दो बहनें एक माँ को गवाही दे रहे हैं जो बहुत व्यस्त है। बहनें ज़्यादा वक्त नहीं ले रही हैं।