चतुर-रंगीन छपाई पर एक निकट दृष्टि
चतुर-रंगीन छपाई एक ऐसी प्रक्रिया है जो तीन बुनियादी रंगों और काले रंग को मिलाकर नैसर्गिक रंगों को उत्पन्न करना है। एक छपे हुए पृष्ठ पर चतुर-रंगीन चित्र कैसे उत्पन्न किए जाते हैं? अब कौन-सी प्रौद्योगिकी का उपयोग किया जाता है? निम्नलिखित लेख, न्यू यॉर्क, ब्रूकलिन में हमारी वॉचटावर सोसायटी के मुख्यालय में जारी यह चतुर-रंगीन कार्य में संबद्ध विषयों का एक अंश का वर्णन करता है।
मासिक पत्रिकाओं, समाचार पत्रों, और पुस्तकों में चित्रों की छपाई एक दृष्टिभ्रम उत्पन्न करती है। उदाहरणार्थ ध्यान दें, कि एक कृष्ण धवल फोटो या एक रेखाचित्र को व्यापक रूप से इस्तेमाल की गयी ऑफसेट-छपाई में कैसे पुनरुत्पादित किया जाता है।
काला और सफेद छपाई में एक ही छपाई स्याही का उपयोग किया जाता है—काला रंग। लेकिन जब आप एक कृष्ण धवल चित्र देख रहे हैं तब आपकी आँखें धूसर रंगत भी देखती हैं। एक छपे हुए पृष्ठ पर धूसर के विभिन्न रंगत और साथ ही काले रंग कैसे उत्पन्न किया जाता है? बिन्दुओं का प्रयोग करते हुए।
बिन्दु? जी हाँ, स्याही के बिन्दु। अगर आप एक शक्तिशाली लेन्स का इस्तेमाल करेंगे तो आप देखेंगे कि वह सम्पूर्ण चित्र कई छोटे छोटे बिन्दुओं से तैयार किया गया है। अब एक चित्रकार का चित्र या एक फोटो का अविच्छिन्न रंगत न रहा। एक छपे हुए पृष्ठ पर दिखाई देने के लिए एक चित्र को बिन्दुओं में बदल दिया जाना चाहिए।
इन बिन्दुओं को कैसे बनाया जाता है? यह चित्रकारी या फोटो को एक बड़ी मशीन के द्वारा, जिसका नाम है स्कैनर, छोटे और स्पष्ट रूप से निर्धारित किए बिन्दुओं की एक रचना में पुनःनिर्माण किया जाता है। इस स्कैनर में एक कम्पूटर (परिकलक) है, जो इलेक्ट्रॉनिक रीति से व्याख्या करके परिवर्ती बिन्दुओं को उत्पन्न करता है। फोटो के फिल्म पर इन बिन्दुओं को उद्भासित करने के लिए लेज़र का उपयोग किया जाता है। धूसर के विविध रंगतों को, इन बिन्दुओं की साइज़ बदलने पर, जो छपाई की पट्टिकाओं से कागज़ पर अंतरित स्याही को स्वीकार करती है, पायी जा सकती है।
जब सफेद कागज़ पर छपाई की जाती है, जितना हलका रंगत होगा उतने ही छोटे बिन्दु होंगे। गहरे रंग बड़े बिन्दुओं के रूप में पुनरुत्पादित किए जाते हैं। इस तरह से, ये बिन्दु आँखों को “धोखा” देते हुए, मूल फोटो या चित्रकारी के अविच्छिन्न काले और धूसर के निरन्तर रंगतों को दिखाते हैं।
रंग पुनरुत्पादन अधिक जटिल
सम्पूर्ण पुनरुत्पादन काले और सफेद रंगों से अधिक जटिल है। यहाँ तीन बुनियादी रंग और काले रंग का इस्तेमाल किया गया है: (१) सायन (हरिताभ नीला) (२) मॉग्नेटा (रसभरी का लाल) और (३) पीला; और (४) काला। इन चारों में से एक-एक स्याही लेनेवाले बिन्दुओं को मुद्रण-यंत्र के द्वारा कागज़ में अनेक परतों के रूप में सम्मिलित किया जाता है, जिस के कारण एक छपे हुए पृष्ठ पर आपकी आँखें पुनरुत्पादित रंगों के एक सुविस्तृत प्रकार देखते हैं।
किन्तु, मूल चित्रकारी या फोटो में से, पहले यह आवश्यक है कि तीन मुख्य रंगों और काले रंग के अलग अलग बिन्दुओं की सेट बनाए, जो प्रत्येक रंग के हलके और गहरे मात्राओं को सूचित करती हैं। लेकिन ये चार रंग कैसे एक छपे हुए पृष्ठ पर देखे जानेवाले बाकी विभिन्न रंगों को बनाते हैं?
चलो हम कहते हैं कि हमारे पास हरे घास की एक फोटो है जो हम हमारे मासिक-पत्र में पुनरुत्पादित करना चाहते हैं। छपाई के दौरान यह कागज़, मुद्रण के चार विभागों में से निकलती हैं, हर विभाग इन में से एक रंग को कागज़ पर अंतरित करता है। छपाई पट्टिकाओं की एक सेट से बिन्दु सायन स्याही लेते हैं और उनके आकार को कागज़ पर अंतरित करते हैं। मुद्रण-यन्त्र के साथ-साथ यह कागज़, जब उच्च रफ्तार से आगे बढ़ता है तब पट्टिकाओं की एक दूसरी सेट उसके बिन्दुओं के साथ, पीला रंग लेता है और कागज़ में उनकी छाप सायन के बिन्दुओं के पास अंतरित करती हैं। वह प्रकाश, जो सायन और पीले रंग की स्याही और सफेद कागज से परावर्तित होता है वह आँखों में हरा दिखता है। जब चारों मुद्रण विभाग अपने अपने बिन्दुओं के संयोग को स्याही के चारों रंगों में उतारते हैं तब मेघधनुष के सभी रंग निकलते हैं।
हमारा उत्पादन क्रम
प्रेस के बाहर तैयार उत्पाद निकलने से पहले बहुत कार्य करना बाक़ी है। उस फोटो या चित्रकारी का जिसे छपाना है फ़िल्म (पोज़िटिव या नेगेटिव) बनाना है। मुद्रण-यन्त्र की छपाई पट्टिकाओं को बनाने में यह फिल्म, बुनियाद होगी।
एक छपे हुए मासिक-पत्र के रंगीन पृष्ठ के लिए, कम से कम, चार फ़िल्म आवश्यक है, तीन मुख्य रंगों के लिए एक-एक और काले रंग के लिए एक। यह फ़िल्म हमारा लेज़र स्कैनर उत्पादित करता है। यह स्कैनर उस फोटो या चित्रकारी का, जिसका पुनरुत्पादन करना है विश्लेषण करता है और उस प्रतिछाया को अपने स्मरण में रखता है।
यह स्कैनर एक दस फुट (३ मीटर) लम्बा खराद के समान दिखता है। जब यह एक सिलेंडर में फिरता है तब उससे एक उच्च तीव्रता की रश्मिमाला उस रंगीन चित्र की आरपार जाँच करती है। जब यह जाँच करती है, यह प्रकाश परावर्तित होता है और प्रकाशिक यंत्रों के द्वारा इसे तीन प्रकाश-मार्गों में विभाजित किया जाता है, प्रत्येक मूल रंग के लिए एक। प्रत्येक प्रकाश-मार्ग में एक फ़िल्टर है जो एक बुनियादी रंग के सिवा बाकी सब रंगों को रोकता है। उन क्षेत्रों में जहाँ मूल में काला रंग है, वहाँ उन तीन बुनियादी रंगों के चिन्हों को मिलाने से काले रंग का उत्पादन होता है।
यह स्कैनर एक कम्पूटर की मदद से, प्रत्येक रंग की तीव्रता को इलेक्ट्रॉनिक चिन्हों (सिग्नलों) में बदल देता है और एक इलेक्ट्रॉनिक “स्क्रीनिंग” प्रक्रिया के द्वारा युक्त बिन्दुओं का उत्पादन करता है, जो फिर कम्पूटर के स्मरण में रखा जाता है।
अगर फोटो या चित्रकारी इतना दुर्नम्य हो कि वह सिलेंडर के चारों ओर मोड़ नहीं सकता, तब क्या? तब एक रंगीन फोटो या पारदर्शी चित्र (३५ मिलीमीटर या इससे अधिक) बनाया जाता है और उस सिलेंडर पर चढ़ाया जाता है। स्कैनर, इच्छानुसार प्रतिछाया को बढा या घटा सकता है।
पृष्ठ-रचना स्थान
इसके बाद, कम्पयूटर में रखी गयी जानकारी को एक पृष्ठ-रचना स्थान में प्रदर्शित किया जाता है। इस स्थान में एक कुंजीपटल और एक संदेशग्राहक है जो एक बड़े दूरदर्शन पट के समान दिखता है। कुछ निश्चित क़ुजी दबाने के द्वारा प्रचालक पट पर चित्र को उत्पन्न कर सकता है। इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों के ज़रिए वह रंगतों में आवश्यक समंजन करेगा। तफ़सील को तीक्ष्ण भी किया जा सकता है और हटाया भी जा सकता है।
सह स्थान, अलग अलग चित्रों के तत्वों को मिलाकर एक चित्र उत्पन्न कर सकता है। उदाहरणार्थ, एक चित्र से सूर्यास्त, दूसरे से एक मनुष्य, और तीसरे से एक घर को मिलाकर, सूर्यास्त के समय, घर के सामने खड़े एक मनुष्य का चित्र बनाया जा सकता है।
समंजन के बाद, उन इलेक्ट्रॉनिक सिग्नलों को जो चित्र का प्रतिनिधित्व करता है, कम्प्यूटर के द्वारा अन्य मशीनों में प्रूफ़ या फ़िल्म बनाने के लिए भेजा जा सकता है।
रंगीन प्रूफ़ बनाना
रंगीन प्रूफ़ का यन्त्र, लाल हरा और नीले रश्मिमालाओं का उपयोग करके रंगीन प्रूफ़ बनाता है। प्रूफ़ का यह कागज़ उसी तरह के कागज़ से बनाया गया है जो आपको कैमरा की दूकान से आपके चित्रों को तैयार करने के लिए देने के बाद वापस मिलता है।
स्टाफ़ के कई सदस्य इन प्रूफ़ों का विश्लेषण करते हैं। कुछों को शायद ऐसे लगता है कि चित्र में आकाश काफ़ी नीला नहीं है—वह कुछ ज़्यादा हरा है। “कुछ पीला रंग निकाल दो,” ऐसे दूसरे सुझाव देते हैं। कोई अन्य चेतावनी देता है, “लेकिन फल की टोकरी के केलों को उतना ही पीला रहना है”। इसलिए रंगत में कुछ इस तरह समंजन करना होगा कि आकाश में से कुछ पीला रंग निकालना होगा लेकिन केलों से नहीं। ऐसा करने के लिए हम वापस पृष्ठ-रचना स्थान में चले जाते हैं, जहाँ प्रचालक आवश्यक परिवर्तन कराता है।
अब हमारे पास चित्र की एक वास्तविक प्रतिलिपि है जिसे हम छापेंगे। जैसे ही इस चित्र को स्वीकृत किया गया, हम कम्प्यूटर से कहते हैं कि फ़िल्म उत्पादित करने के लिए पृष्ठों को व्यवस्थित करने का समय हो गया है।
अन्तिम उत्पाद
फ़िल्म रेकार्डर में एक लेज़र है। यह लेज़र उन सिग्नलों की ओर प्रतिक्रिया दिखाता है और इन इलेक्ट्रॉनिक बिन्दुओं को फ़िल्म के नेगेटिव पर उद्भासित करता है। प्रत्येक रंग के लिए एक अलग फ़िल्म बनाया जाता है। एक फ़िल्म मूल चित्र के मॉगनेटा का प्रतिनिधित्व करनेवाले बिन्दुओं का है; दूसरे में सायन; तीसरे में पीला; और चौथे में काला। इन फिल्मों को मासिक पत्रिका में प्रकाशित होनेवाले चित्र का साइज़ होगा।
चित्रों का, विषयों के साथ अन्तिम संयोजन एक प्रकाश-मेज़ पर किया जाता है। अब हम हमारे सभी फ़िल्मों को, जिन पर चित्रों का प्रतिनिधित्व करनेवाले बिन्दू हैं, और सही छपाई क्रम में लेते हैं। इन फ़िल्मों को एक ऐसे व्यक्ति को दिया जाता है, जिसे प्रतिछाया जुटानेवाला कहा जाता है। वह फ़िल्म के प्रकार पर ध्यान देता है, और एक अलग प्लास्टिक परत पर शब्दों को या विषय को नेगेटिव रूप में डालता है। यह काम करनेवाले लोग आवर्धक लेन्स उपयोग करते हैं ताकि यह निश्चित हो कि प्रत्येक रंग का फ़िल्म दूसरे के ऊपर ठीक बैठता है। अन्यथा, जब सिधाई में नहीं है, तब चित्र को छापने के वक्त विरूपण होता है।
अब हमारे पास मासिक पत्र बनाने के लिए चित्र और शब्द सही जगहों में है। मासिक पत्र की सभी चीज़ें सही जगहों में होने के बाद हम इसका एक और प्रूफ़ बनाते हैं। एक बार, यह स्वीकृत हो जाता है, हम इन्हें न्यू यॉर्क के ब्रूकलिन और वॉलकिल के फैक्टरियों के प्लेट कक्षों में भेज सकते हैं।
द्विक सेटों को विश्व की सोसायटी के अन्य चतुर-रंग की छपाई शाखाओं में भेजे जाते हैं। हर शाखा फिर इस फिल्म से ऑफसेट पट्टें बनाते हैं।
इस पट्ट-रचना प्रक्रिया में एक उच्च तीव्रता के परा-बैंगनी प्रकाश फ़िल्म में से गुज़रता है और चित्र और शब्द ऑफसेट पट्ट पर उद्भासित किया जाता है। यह पट्ट ऐलुमिनियम मिश्रधातु से बनाया गया है और रसायन से लेपित है। छपाई सिलेंडरों में बैठने के लिए मुड़े जानेवाले ये पट्टें कितने मोटे होते हैं? यह अलग अलग मुद्रण यंत्रों के लिए विभिन्न होता है लेकिन हमारे ब्रूकलिन संयन्त्र में ये पट्टें सिर्फ ८/१००० इंच मोटे हैं! हमारे वॉचटावर संयन्त्रों में जो न्यू यॉर्क शहर के बाहर है, ये मुद्रण यन्त्र अधिक बड़े हैं और इसलिए ये पट्टें अधिक मोटे हैं।
मुद्रण-यन्त्र में ये पट्टें सही रंग क्रम में चढ़ाए जाते हैं और अब मासिक-पत्र की छपाई के लिए तैयार हो चुके हैं। जैसे मुद्रण यन्त्र के सिलेंडर घुमते हैं, प्रत्येक पट्ट को एक खास पात्र से, एक रंग प्राप्त होता है, जिस में उस रंग का स्याही है। यह स्याही धातु के पट्ट से एक सिलेंडर पर अन्तरित किया जाता है जो एक रबड़ की परत या एक कम्बन से ढँका हुआ है, जो फिर स्याही को कागज़ पर अन्तरित करता है। जब चारों रंग कागज़ पर एक के ऊपर एक लगाए जाते हैं, तब हम प्राकृतिक रंग के निकट पहुँचते हैं।
लेकिन अब भी हम अन्त तक नहीं पहुँचे हैं। एक के ऊपर एक चार स्याही लगाने से एक चिपचिपा संयोग उत्पन्न होता है जिसे जल्द ही सुखाना होगा। मुद्रण-यंत्र के अन्त में एक उच्च वेग की गरम हवा से सूखनेवाला स्थान है, जहाँ से कागज़ गुज़रता है। उच्च ताप स्याही को जल्दी सुखा देता है। फिर यह गरम किया गया कागज़, जल-शीतित रोलरों के ऊपर से निकलता है, ताकि ताप नीचे आएं और स्याही पक्का बन जाए।
रंग की सीमाएं
यह क्रिया मूल फोटो या चित्रकारी से रंगों को कितना तक पूनरुत्पादित करता है? जो मानवीय आँख देखती है, उसे कोई भी यन्त्र ठीक उसी तरह पुनरुत्पादित नहीं कर सकता। मानवीय आँख पचास लाख से लेकर एक करोड़ तक के रंगत देख सकती है! लेकिन एक ऑफसेट मुद्रण यंत्र सिर्फ पाँच सौ से एक हज़ार रंगतों को छाप सकता है। इस तरह हम मूल चित्र का सब से उज्ज्वल सफेद या सबसे गहरा रंग का द्विगुणीकरण नहीं कर सकते।
उपयोग किए गए कागज़ के प्रकार एक और मुख्य बात है। रंग की जो उज्ज्वलता प्राप्त की जाती है, वह कागज़ की रचना और प्रकार से सीमित है और उस किस्म के कागज़ पर जिस सार्थकता से स्याही बैठता है, इस पर भी निर्भर है। अवेक्! और वॉचटॉवर के विषय में कागज़ का प्रकार मूल्य के विचारों से सीमित है, क्योंकि हम चाहते हैं कि ये मासिक पत्र के मूल्य जितना हो सके उतना कम हो ताकि वे दुनिया-भर के लाखों लोगों को, और उन्हें भी जिनके पास सीमित धन है, सहज ही प्राप्त हो सके।
पाठकों के लिए भी मूल्य कम किए गए हैं, क्योंकि हमारा कार्य लाभनिरपेक्ष है। एक और कारण जो कीमत कम करने में सहायक है, वह यह सत्य है कि दुनिया भर के वॉचटावर शाखाओं में, मासिक पत्रिकाओं का उत्पादन करनेवाले हज़ारों कार्यकर्ता पूर्ण समय के स्वयंसेवक हैं, जिन्हें सिर्फ कमरा और भोजन और खर्चे के लिए एक छोटी मासिक अदायगी मिलती है।
मेहनत के योग्य
एक सामान्य व्यक्ति सम्पूर्ण रंग में एक पत्रिका देखने पर शायद पहले विषय की लिखाई से छापने तक और उसे उसके घर तक लाने में जो बृहत् मात्रा में कार्य और प्रौद्योगिकी सम्मिलित है, उसका मूल्यांकन नहीं करेगा। असल में, मुद्रणालय के लिए मासिक पत्र तैयार करते समय, वस्तुत: जो मेहनत अँग्रेजी के द वॉचटावर या अवेक्! मासिक पत्रिकाओं को उत्पन्न करने के लिए ज़रूरी है, जिसकी लाखों प्रतियाँ निकलती हैं, वही मेहनत एक ऐसी भाषा के लिए ज़रूरी है जिसकी सिर्फ कुछ हज़ार प्रतियाँ निकलती है।
लेकिन यह मेहनत के योग्य है। प्राकृतिक रंग छपे हुए विषय को ज़्यादा दिलचस्प और आकर्षक बनाता है और इस तरह पठन को प्रोत्साहित करता है। प्रत्यक्षत: हम रंग की ओर अनुकूल दृष्टि से प्रतिक्रिया नहीं दिखाते हैं क्योंकि हमारे सृष्टिकर्ता ने हमें रंगीन देखने के लिए बनाया था। इसलिए, अवेक्! के लिए यह नियमित चतुर-रंग कार्य के लिए बढ़ाए गए कदम वांछनीय हैं। और जैसे हम यह सीखते रहेंगे कि कैसे हमारे छपाई तरीकों को सुधार सकते हैं, वैसे हम हमारी मासिक पत्रिकाओं के प्रकार में उन्नति लायेंगे, ताकि वे और भी ज़्यादा लाभदायक और आनन्ददायक बनें।
[पेज 21 पर तसवीरें]
प्रचालक स्कैनर तैयार कर रहा है
आतंरिक चित्र: चित्र का फुलाया हुआ भाग
[पेज 22 पर तसवीर]
पृष्ठ-रचना स्थान पर प्रचालक
[पेज 23 पर तसवीर]
रंगीन प्रूफों का मूल पारदर्शी चित्र से तुलना करते हुए