कागज़ के बिना क्या कभी ऑफिस चल सकता है?
इस लेख को छापने के लिए तैयार करते समय, इसे बार-बार प्रिंट करना पड़ा—लगभग २० बार! लेख तैयार होने के बाद इसे अंतिम बार ११ कागज़ों पर प्रिंट किया गया। आखिर में, इसे दुनिया भर में फैली हुई अनुवाद करनेवाली कुछ ८० टीमों को भेजा गया। इसके बाद, हर टीम ने अपने लिए इसकी कुछ ६ कॉपियाँ प्रिंट कीं। प्रिंटिंग प्रॆस तक पहुँचने से पहले कुल मिलाकर, इस लेख के लिए ५,००० से भी ज़्यादा पन्ने इस्तेमाल किए गए!
जब कंप्यूटर का ईजाद हुआ था तब कुछ लोगों ने कहा था कि जल्द ही ऐसा समय आएगा जब ‘कागज़ों के बिना ऑफिस चलेगा।’ मगर हमने ऊपर देखा कि बस एक लेख तैयार करने के लिए इतने सारे कागज़ों का इस्तेमाल करना पड़ा। अपनी पुस्तक द थर्ड वेव में, भविष्यवेत्ता ऑल्विन टॉफलर ने तो इतना तक कह दिया कि ‘कंप्यूटर आने के बाद इसका इस्तेमाल, कागज़ की कॉपियाँ प्रिंट करने के लिए करना ऐसा है मानो कंप्यूटर होने के बावजूद बाबा आदम के तरीके से काम करना। और ऐसा करने से इन कंप्यूटरों का मकसद ही खत्म हो जाता है।’ गौर करने की बात तो यह है कि जब इंटरनैशनल बिसनॆस मशीन्स कॉरपोरेशन (IBM) ने सन् १९८१ में पर्सनल कंप्यूटर की शुरूआत की, तब उन्होंने इसके साथ प्रिंटर नहीं दिए। कुछ लोग दावा करते हैं कि इस कंपनी के मालिकों ने शायद सोचा कि कंप्यूटर इस्तेमाल करनेवाले लोगों को अपना काम, मॉनिटर पर ही पढ़ने में खुशी होगी। खैर, इन सभी लोगों ने सोचा कि कागज़ का इस्तेमाल पूरी तरह बंद हो जाएगा और जल्द ही वह बस म्यूज़ियम में रखने की चीज़ बनकर रह जाएगी और भविष्य में ऑफिस ऐसा “स्वर्ग होगा जहाँ कागज़ का नामो-निशान ही नहीं रहेगा।”
हकीकत क्या है?
मगर, हकीकत यह है कि जिस साधन यानी कंप्यूटर की वज़ह से कागज़ के बिना चलनेवाला ऑफिस हासिल होनेवाला था, उसी साधन ने आज हमें कागज़ों के ढेर में दफना दिया है यानी कि कंप्यूटर की वज़ह से आज कागज़ का इस्तेमाल काफी बढ़ गया है। दरअसल, कुछ लोगों का कहना है कि हाल के सालों में कुल मिलाकर देखा जाए तो, कागज़ का इस्तेमाल वाकई बढ़ गया है। इंटरनैशनल डेटा कॉरपोरेशन में स्कॉट मॆक्रीडी विश्लेषक का काम करते हैं। वे कहते हैं: “अपने-अपने दफ्तरों में ऑटोमैटिक यंत्र लगवाकर हमने असल में कागज़ के इस्तेमाल की दर को सालाना २५ से ज़्यादा प्रतिशत बढ़ा दिया है और यह दर बढ़ती ही जा रही है।” पर्सनल कंप्यूटरों, प्रिंटरों, फैक्स मशीनों, ई-मेल, कॉपियरों, और इंटरनॆट से लोगों को हर रोज़ बहुत सारी जानकारी मिलती है जिन्हें वे पढ़ने के साथ-साथ प्रिंट भी कर सकते हैं। सीएपी वॆंचर्स लिमिटड कंपनी के मुताबिक, १९९८ में दुनिया भर में २१.८ करोड़ प्रिंटर, ६.९ करोड़ फैक्स की मशीनें, २.२ करोड़ मल्टीफंक्शन मशीनें (जिसमें प्रिंटर, स्कैनर और कॉपियर सब एक साथ होते हैं), १.६ करोड़ स्कैनर, और १.२ करोड़ कॉपियर थे।
सन् १९९० में छपी अपनी पुस्तक पॉवरशिफ्ट में, टॉफलर ने अंदाज़ा लगाया कि एक साल में अमरीका के लोगों ने १३ खरब पन्ने प्रिंट किए। इतनी मात्रा से तो ग्रैंड कैनयन घाटी पर १०७ बार वॉलपेपर चढ़ाया जा सकता है! और, रिपोर्टों के अनुसार प्रिंट किए जानेवाले कागज़ों की संख्या बढ़ती ही जा रही है। एक पत्रिका के मुताबिक, १९९५ के आते-आते, अमरीका के लोग रोज़ाना लगभग ४० खरब पन्ने प्रिंट कर रहे थे। इतनी मात्रा से तो २७० किलोमीटर लंबा फाइल-ड्राअर भरा जा सकता है। जैसे-जैसे साल २००० नज़दीक आता जा रहा है, ऐसा कुछ नहीं दिखता जिससे पता चले कि कागज़ों का इस्तेमाल कम हो रहा है; इसके बजाय अब भी ज़्यादातर जानकारी का आदान-प्रदान कागज़ों के ज़रिए ही किया जाता है।
क्या कागज़ के बिना काम चल सकता है?
पहले यह अनुमान लगाया गया था कि जल्द ही कागज़ की जगह इलेक्ट्रॉनिक मशीनें ले लेंगी, लेकिन उसका क्या हुआ? दी इंटरनैशनल पेपर कंपनी इसके जवाब में कहती है: “लोग नहीं चाहते कि जानकारी बस उनकी उँगलियों पर हो, बल्कि वे चाहते हैं कि जानकारी उनके हाथों में हो। वे उसे छूना चाहते हैं, फोल्ड करके रखना या फिर किताबों में निशान के लिए पन्नों के किनारों को मोड़कर रखना चाहते हैं; वे इसे फैक्स करना, कॉपी करना और ज़रूरत पड़ने पर उसे फिर से पढ़ना चाहते हैं; वे मार्जिन पर कुछ लिखना चाहते हैं, या पन्नों पर लिखी खास बातों को गर्व से सबको दिखाने के लिए फ्रिज के दरवाज़े पर चिपका कर रखना चाहते हैं। और सबसे बढ़कर, वे इसे चुटकी बजाते ही, बिना किसी गलतियों के और बढ़िया रंगों में प्रिंट करना चाहते हैं।”
यह तो मानना होगा कि कागज़ के कई फायदे भी होते हैं। हम इसे जहाँ चाहे ले जा सकते हैं, यह सस्ता और टिकाऊ है, इसे आसानी से सँभालकर रखा जा सकता है, और इस्तेमाल किए हुए कागज़ से ही फिर से नया कागज़ बनाया जा सकता है। साथ ही, आप यह भी देख सकते हैं कि आप किस पन्ने पर हैं, और कितने पन्ने बाकी हैं। डैन काक्स कहते हैं, “लोगों को कागज़ से मुहब्बत है। वे उसे अपने हाथों से महसूस करना चाहते हैं।” डैन काक्स ऐसी कंपनी के प्रतिनिधि हैं जो ऑफिस में काम आनेवाली चीज़ें बेचते हैं। और एरिज़ोना डिपार्टमेंट ऑफ लाइब्ररीस, आर्काइव्स एण्ड पब्लिक रिकाड्र्स के विश्लेषक, जेरी मालॆरी कहते हैं, “हमने यह बात देखी है कि लोग कंप्यूटर के द्वारा ऐसा ऑफिस चाहते हैं जहाँ कागज़ों का इस्तेमाल बिलकुल नहीं होगा, और उन्होंने इसके लिए कोशिश भी की है। लेकिन असल में हमने जितने भी कंप्यूटर देखे हैं, उन सभी में एक बात आम है: वे सभी कम-से-कम एक प्रिंटर से जुड़े हुए हैं।”
उस पर यह सच है कि पुरानी आदतें छूटते नहीं छूटतीं। जो लोग आज व्यापार के क्षेत्र में हैं, उन्होंने पढ़ना-लिखना तो कागज़ों पर ही सीखा है। आज माउस से एक बटन दबाने से कोई डॉक्यूमेंट या ई-मेल छप सकता है। छापने के बाद व्यक्ति अपनी सुविधा के मुताबिक उसे जब चाहे और जहाँ चाहे पढ़ सकता है। कागज़ पर छपी हुई जानकारी को कहीं भी—बिस्तरे से लेकर बाथरूम, या फिर समुद्र तट तक—ले जाया जा सकता है! ये ऐसी जगहें हैं जहाँ पर कंप्यूटर नहीं ले जाए जा सकते, ना ही वहाँ आसानी से इस्तेमाल किए जा सकते हैं।
एक और कारण कि क्यों कागज़ के बिना काम नहीं चल सकता: कंप्यूटरों की वज़ह से आज लोग खुद, बड़ी आसानी से डॉक्यूमेंट को अपना मनपसंद फॉर्मैट दे सकते हैं। कुछ समय पहले ऐसा करना मुमकिन नहीं था क्योंकि उस समय यह काम सिर्फ छपाईखाने के पेशेवर लोग ही कर सकते थे। आज कम-से-कम मेहनत में रंगीन कॉपियाँ, ड्राफ्ट और रिपोर्टें, या फिर चित्रों के साथ-साथ जानकारी, चार्ट, ग्राफ, बिसनॆस कार्ड और पोस्टकार्ड वगैरह बनाए जा सकते हैं। कंप्यूटर की इन खासियतों को देखकर व्यक्ति इन्हें आज़माना चाहेगा। सो कंप्यूटर से एक डॉक्यूमेंट प्रिंट करने के बाद, व्यक्ति का मन करेगा कि वह इसके फॉन्ट्स और रूप या आकार को बदलकर फिर से प्रिंट करे। वह शायद ऐसा एक बार नहीं बल्कि बार-बार करेगा, और इसका मतलब यही हुआ कि इसे प्रिंट करने के लिए उतने ही कागज़ भी लगेंगे!
इंटरनॆट की वज़ह से भी लोगों को बेशुमार जानकारी मिलने लगी है।a और इसीलिए ज़्यादा कागज़ भी इस्तेमाल किए जाएँगे क्योंकि इंटरनॆट को इस्तेमाल करनेवाले लोग अपनी पसंद की जानकारी को कागज़ों पर प्रिंट करते हैं।
इस सच्चाई को भी नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता है कि आजकल कंप्यूटर सॉफ्टवेयरों और कंप्यूटरों का अंबार लग गया है और इन्हें कैसे चलाएँ, यह जानने के लिए और भी ज़्यादा पुस्तकें ज़रूरी हो गयी हैं। हर तरफ कंप्यूटर इस्तेमाल होता है जिसकी वज़ह से ऐसी मदद-पुस्तिकाएँ और कंप्यूटर-पत्रिकाओं की बाढ़-सी आ गयी है।
और यह भी मानना होगा कि कंप्यूटर के स्क्रीन से—खासकर पुराने मॉनिटरों से—पढ़ने में हानि भी हो सकती है। इससे आँखों पर बल पड़ता है और कई लोगों को इसकी शिकायत भी है। यह अनुमान लगाया गया है कि एकदम साफ-साफ और अच्छी तरह दिखायी देने के लिए पुराने वीडियो डिसप्ले यूनिट यानी कंप्यूटर स्क्रीन के रेसल्यूशन को दस-गुना बढ़ाना होगा।
इसके अलावा, जो कुछ स्क्रीन पर दिखायी देता है, अगर वही कागज़ पर छपा हुआ मिले, तो लोग उसे ज़्यादा ज़रूरी समझते हैं। और वे उसकी ओर ज़्यादा ध्यान भी देते हैं। कागज़ पर छपी हुई बात व्यक्ति के काम और मेहनत का सबूत देती है। जब सुपरवाइज़र या ग्राहक को छपा हुआ कोई डॉक्यूमेंट दिया जाता है, तो वे इसे इलेक्ट्रॉनिक-साधन से भेजे गए संदेश से ज़्यादा अहमियत देते हैं। और इसके लिए ज़रूरी काम भी करते हैं।
आखिरी कारण है, कई लोग डरते हैं कि वे अपना डेटा खो बैठेंगे। और ऐसा भय उचित भी है, क्योंकि आज मौजूद हर तरह के बढ़िया-से-बढ़िया बैकअप सिस्टम होने के बावजूद, घंटों काम करके और कड़ी मेहनत से तैयार किया गया विषय, अचानक से वोल्टेज के बढ़ने, डिस्क के खराब हो जाने, या गलत बटन दबा देने से उड़ सकता है। इसीलिए ज़्यादातर लोग कागज़ को ही ज़्यादा सुरक्षित मानते हैं। दिलचस्पी की बात है कि कुछ विशेषज्ञ दावा करते हैं कि २०० से ३०० साल तक टिकनेवाले एसिड-फ्री कागज़ों की तुलना में इलेक्ट्रॉनिक रिकार्ड बहुत ही कम समय तक टिकते हैं। सच है कि कंप्यूटर में स्टोर की गयी जानकारी धीरे-धीरे खराब होती जाती है। लेकिन टेक्नॉलॉजी बड़ी तेज़ी से बढ़ रही है। और जब पुराने हो रहे हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल कम होता जाता है, तब कंप्यूटर के पुराने रिकार्डों को पढ़ पाना कठिन होता जाता है।
कागज़ के बिना चलनेवाले ऑफिस का सपना साकार होगा या नहीं, यह तो समय ही बताएगा। लेकिन तब तक, मार्क ट्वेन के शब्दों में कहें तो, यह साफ है कि कागज़ का इस्तेमाल कम होने की जो बातें रिपोर्ट की जाती हैं, वे दरअसल बढ़ा-चढ़ाकर कही जाती हैं।
क्या हम सभी पेड़ों को काट डालेंगे?
एक पेड़ से हम कागज़ के कितने शीट बना सकते हैं? इसमें कई बातें शामिल हैं जैसे कि किस किस्म का पेड़ है, उसका आकार क्या है, और इससे कैसा कागज़ बनाया जाएगा और कागज़ का भार कितना होगा।। इन सब को ध्यान में रखकर यह अनुमान लगाया गया है कि बाज़ार में बिकनेवाले आम आकार के एक लुगदी-काष्ठ यानी पल्पवुड पेड़ से, लिखने या प्रिंट करने में इस्तेमाल होनेवाले कागज़ के लगभग १२,००० शीट बन सकते हैं। इसके बावजूद भी, आज कागज़ का इस्तेमाल इतना ज़्यादा हो रहा है, जिससे इस बात का डर पैदा होता है कि शायद जल्द ही जंगल खाली और बंजर हो जाएँ। क्या सच में हम ऐसे एक संकट की ओर बढ़ रहे हैं?
इस बारे में कागज़ निर्माताओं का कहना है कि डरने की कोई बात नहीं है। वे कहते हैं कि ज़्यादातर कागज़, लकड़ी उद्योग की बची हुई लकड़ी के बेकार टुकड़ों से बनाए जाते हैं। कुछ देशों का ५० प्रतिशत कागज़, लकड़ी उद्योग के इन्हीं टुकड़ों से बनाया जाता है। इस तरह कागज़ बनाने के द्वारा इन टुकड़ों का अच्छा इस्तेमाल होता है, नहीं तो इन्हें ज़मीन-भराई के काम में इस्तेमाल किया जाता। साथ ही, जब लकड़ी के ये टुकड़े गलने लगते हैं, तो इनमें से एक प्रकार की ग्रीनहाउस गैस, मीथेन निकलती है। यह गैस वातावरण के लिए हानिकारक है और इससे गर्मी बढ़ती है। सो, कागज़ निर्माता कहते हैं कि लकड़ी के इन टुकड़ों से कागज़ बनाने के द्वारा हम इनका बेहतर इस्तेमाल करते हैं। मगर, पर्यावरण को बचाने की कोशिश करनेवाले लोग और उपभोक्ता-संघ इन कागज़-उद्योगों पर प्रदूषण बढ़ाने और जंगलों की सही देखरेख न करने का इलज़ाम लगाते हैं। वे तर्क करते हैं कि कागज़ उत्पादन में जो ईंधन इस्तेमाल होते हैं, उनसे भी ग्रीनहाउस गैसें उत्पन्न होती हैं! वे यह भी बताते हैं कि ज़मीन-भराई के काम में इस्तेमाल किए गए रद्दी कागज़ जब सड़ने-गलने लगते हैं, तो और भी ग्रीनहाउस गैसें उत्पन्न होती हैं।
इन सब बातों के बावजूद, वर्ल्ड बिसनॆस काउंसॆल फॉर ससटेनेबल डिवेलपमेंट ने इस पर अध्ययन किया और इस नतीजे पर पहुँचे कि हम पृथ्वी के संसाधनों को खत्म या बरबाद किए बिना, जितना ज़रूरी है उतना कागज़ उत्पन्न कर सकते हैं। ऐसा हो सकता है क्योंकि पेड़ फिर से उगाए जा सकते हैं और इस्तेमाल किए हुए कागज़ से ही फिर से नया कागज़ बनाया जा सकता है। मगर फिर भी, अध्ययन में इस बात पर ज़ोर दिया गया था कि “कागज़-उत्पादन के हर चरण में—यानी पेड़ों की कटाई, गूदा और कागज़ उत्पादन, कागज़ के उपयोग, इस्तेमाल किए हुए कागज़ से ही फिर से नया कागज़ बनाने, ऊर्जा के उत्पादन और इसे फेंकने में—और भी सुधार लाया जाना चाहिए।” वातावरण को हानि पहुँचाए बगैर, सस्ता और अच्छा गूदा बनाने के प्रयास में कागज़-उद्योग गेहूँ का फूस, जल्दी बढ़नेवाले पेड़, मक्का और सन जैसे दूसरे पेड़-पौधों की भी तलाश में है। सुधार के इन तरीकों को कितना अमल में लाया जाएगा और ये कितने कारगर साबित होंगे, यह तो समय ही बताएगा।
[फुटनोट]
a सजग होइए! के अगस्त ८, १९९७ के श्रृंखला लेख “इंटरनॆट—क्या यह आपके लिए है?” देखिए।
[पेज 27 पर बक्स]
ऑफिस में कागज़ की बचत कैसे करें
✔ जितना हो सके उतना कम प्रिंट कीजिए। अपने डॉक्यूमेंट को स्क्रीन पर ही देखकर ज़रूरी बदलाव कीजिए। कागज़ की बचत करने के लिए मटीरियल को बार-बार प्रिंट करके उसमें बदलाव मत कीजिए।
✔ बड़े-बड़े डॉक्यूमेंट के लिए पढ़ने लायक छोटे आकार के अक्षर प्रयोग करें।
✔ अगर आपका प्रिंटर शुरू किए जाने पर या प्रिंट करते वक्त एक टेस्ट या बैनर पेज इस्तेमाल करता है, तो इस फीचर को ऑफ रखिए।
✔ रद्दी कागज़ों को री-साईक्लिंग के लिए भेज दीजिए।
✔ री-साईक्लिंग के लिए भेजने से पहले, जिन पन्नों पर सिर्फ एक तरफ प्रिंट किया गया हो, उन्हें बाद में ड्राफ्ट प्रिंट करने या रफ पेपर की तरह इस्तेमाल करने के लिए अलग रख लीजिए।
✔ जब भी मुमकिन हो, तब पन्ने के दोनों तरफ प्रिंट कीजिए।
✔ जब किसी डॉक्यूमेंट को ऑफिस के सभी लोगों को दिखाना है, तो सबके लिए एक-एक कॉपी निकालने के बजाय, एक ही कॉपी को बारी-बारी से सबको दीजिए।
✔ कागज़ के बजाय सीधे अपने कंप्यूटर से फैक्स भेजिए। जब आपको कागज़ों पर फैक्स भेजना पड़ता है, तब कवरिंग शीट इस्तेमाल मत कीजिए और इस तरह कागज़ की बचत कीजिए।
✔ बेकार में ई-मेल के संदेशों को प्रिंट मत कीजिए।
[पेज 24 पर तसवीर]
कुछ लोग कहते हैं कि जिस कंप्यूटर से एक ऐसा ऑफिस आनेवाला था जहाँ कागज़ का नामो-निशान नहीं होता, उसी कंप्यूटर ने आज हमें कागज़ों के ढेर में दफना दिया है
[पेज 26 पर तसवीर]
कागज़ को आसानी से हर जगह इस्तेमाल किया जा सकता है, कंप्यूटर को नहीं