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सजग होइए! ब्रोशर (1993) (gbr-3)
gbr-3 पेज 30-31

दुनिया पर नज़र रखना

ईशनिंदात्मक टायर?

योकोहामा, जापान में एक प्रमुख रबड़ कम्पनी ने मोटरगाड़ी के एक क़िस्म के टायर बनाने बन्द कर दिए क्योंकि उससे मुसलमानों को ठेस पहुँची। मुसलमानों ने शिकायत की कि टायर के ऊपरी तल पर बना डिज़ाइन “अल्लाह” के लिए अरबी शब्द से मिलता-जुलता है। आसाही ईवनिंग न्यूज़ (Asahi Evening News) ने कहा कि कम्पनी ने इस्लाम के अपने ज्ञान की कमी के लिए क्षमायाचना प्रकाशित की है और यह समझाया कि कम्‌प्यूटर ने अधिकतम चालन सुरक्षा के लिए वह डिज़ाइन बनाया था। अल्लाह का अपमान या ईशनिंदा का कोई उद्देश्‍य नहीं था। कम्पनी इस्लामी देशों से उन टायरों को वापस मंगवा रही है या उनके बदले में दूसरे टायर दे रही है।

एक अच्छा व्यवसाय

अर्जेन्टीना में, पशु और मानव बलि के समाचारों से लोग चिन्तित हैं। क्लारिन (Clarin) के अनुसार, अर्जेन्टीना में ५,००० सम्प्रदाय हैं, जिनमें से अनेक प्रेतात्मवाद, शैतानवाद, और अन्य प्रकारों के तन्त्र-मन्त्र में हिस्सा लेते हैं। इनमें से अनेक सम्प्रदायों में प्रतिमाओं का प्रयोग विशिष्ट है। ब्वेनस अरीज़ में ऐसी दुकानें कोई असाधारण बात नहीं है जहाँ एक ही ताख़ पर यीशु मसीह और कैथोलिक “सन्तों” की प्रतिमाएँ और साथ ही पिशाचों की मूर्तियाँ भी प्रदर्शित की जाती हैं। एक लोकप्रिय प्रतिमा को “लूसिफर, महान कप्तान और दुष्टता के देवताओं में सबसे भयानक” कहा जाता है। क्लारिन टिप्पणी करता है कि इन शैतानी प्रतिमाओं के संभरक कैथोलिक प्रतिमाओं को भी वितरित करते हैं। एक दुकानदार ने स्वीकार किया कि कैथोलिक प्रतिमाओं और शैतानी प्रतिमाओं को बेचना एक “अच्छा व्यवसाय” है।

प्राचीन मिस्र में नशीले पदार्थ

फ्रैंकफुर्टर ऑलजीमाइना ट्‌ज़ाइटुंग (Frankfurter Allgemeine Zeitung) रिपोर्ट करता है, “[जर्मनी में] म्यूनिक और उल्म के विश्‍वविद्यालयों के वैज्ञानिकों ने मिस्री ममियों (परिरक्षित शवों) में हशिश, कोकेन, और निकोटीन के निशानों का पता लगाया है।” अनुसंधायकों ने सा.यु.पू. १०७० और सा.यु. ३९५ के बीच की अनेक ममियों से लिए हड्डी, बाल, और ऊतक के नमूनों की जाँच की। ये वैज्ञानिक खोजें हमें प्राचीन मिस्र में जीवन के विषय में क्या बताती हैं? यह अख़बार कहता है, “स्पष्ट रूप से मिस्री लोग रोते बच्चों को शांत कराने के लिए भी नशीले पदार्थों का प्रयोग करते थे।” वैज्ञानिक कैसे जानते हैं? एक पपाइरस मक्खी मलमूत्र और खसखस के दानों के मिश्रण का एक प्रभावशाली शामक के रूप में वर्णन करता है।

“मक्खियों से रहित शहर”

इंटरनैशनल हेरल्ड ट्रिब्यून (International Herald Tribune) रिपोर्ट करता है कि बेजिंग, चीन के निवासियों ने मक्खियों पर युद्ध की घोषणा कर दी है। एक वरिष्ठ स्वास्थ्य अधिकारी ने कहा, “हमारा लक्ष्य है एक मक्खियों से रहित शहर बनाना। लेकिन हम सिर्फ़ मक्खियों को ही नहीं मारेंगे। हम साफ़ शहर बनाना चाहते हैं।” “जनता को प्रेरित” करने के प्रयास में नागरिकों ने अभियान की घोषणा करने के लिए झंडे लगाए और बीस लाख पुस्तिकाएँ वितरित कीं। इस घोषणा के बाद, ख़ास “हमला सप्ताह” के दौरान शहर ने लगभग १५ टन कीटमार और २,००,००० मक्खीमार वितरित किए। अगले महीने एक और हमला सप्ताह में, बुज्प्तार्ग लोगों और छोटे बच्चों के १,००० दलों ने ८,००० किलोग्राम ज़हर के साथ मक्खियों के विरुद्ध युद्ध किया। जून में बेजिंग के कुछ क्षेत्र ३३ मक्खी प्रति कमरा से उमड़ रहे थे। लक्ष्य यह है कि औसत को दो मक्खी प्रति १०० कमरा तक नीचे लाया जाए।

हिंसात्मक फिल्मों का प्रभाव

ब्राज़ीली पत्रिका वेज़्हा (Veja) द्वारा एक भेंटवार्ता में, फ़िल्म निर्देशक स्टीवन स्पीलबर्ग से पूछा गया कि मनोरंजन में हिंसा दर्शकों पर क्या प्रभाव डाल सकती है। स्पीलबर्ग ने कहा: “सजीव या टी.वी. समाचारों में हिंसा देखने से कहीं ज़्यादा फ़िल्मों में या टी.वी कार्यक्रमों में इसे देखना दर्शकों को उसकी नक़ल करने के लिए उत्तेजित करता है। फ़िल्मों में हिंसा को सही प्रकाश, शानदार दृश्‍य, और धीमी गति में फ़िल्माया जाता है, जिससे कि यह रोमानी भी लगता है। परन्तु, समाचारों में जनता को ज़्यादा बेहतर बोध होता है कि हिंसा कितनी भयंकर हो सकती है, और यह उन उद्देश्‍यों के लिए प्रयोग की जाती है जो फ़िल्मों में नहीं होते।” स्पीलबर्ग ने आगे कहा कि अभी तक उसने अपने छोटे बेटे को अपनी कुछ सुप्रसिद्ध फ़िल्में (जॉज़, इंडियाना जोनस्‌ श्रृंखला) नहीं देखने दी हैं क्योंकि उनमें बहुत ज़्यादा खून और हिंसा दिखाई गई है।

“बहुतायत का विरोधाभास”

जेनीवा, स्विट्‌ज़रलैंड में, हाल ही में हुई बैठक में दो यू.एन. एजेन्सियों ने घोषणा की कि “विश्‍वव्यापी कुपोषण के विरुद्ध चलाए गए सबसे बड़े आंदोलनों में से एक” आंदोलन में वे अपने प्रयासों को एक करेंगे। पैरिस दैनिक ले मोन्ड (Le Monde) रिपोर्ट करता है कि खाद्य एवं कृषि संगठन और विश्‍व-स्वास्थ्य संगठन ने कहा कि जिसे वे “बहुतायत का विरोधाभास” कहते हैं उस पर विजय पाने के लिए वे कार्यवाही करेंगे। जबकि पृथ्वी सम्पूर्ण मानव परिवार की पौषणिक आवश्‍यकताएँ संतुष्ट करने के लिए पर्याप्त अन्‍न उत्पन्‍न करती है, खाद्य सामग्री का वितरण उस तरीक़े से नहीं होता जो इन आवश्‍यकताओं के अनुकूल हो। अफ्रीका में, प्रतिदिन ४ करोड़ लोगों का जीवन आकाल के कारण ख़तरे में है। कुपोषण १९ करोड़ २० लाख बच्चों को प्रभावित करता है, और उनमें से ४०,००० बच्चे प्रतिदिन मरते हैं।

सोने जितना मूल्यवान सीसा

इटालियन अख़बार इल मेसाजेरो (Il Messaggero) कहता है कि दो हज़ार साल पहले सारदीनी तट से डूबे रोमी जहाज़ के मलबे में मिली सीसे की सिल्लियों का एक नौभार “सोने जितना मूल्यवान” है। प्राचीन रोम में, जहाँ शायद इस भार को जाना था, यह धातु “पाइप, राँगा नाली, ढलाई भार बनाने” के लिए बहुत उपयोगी होती। लेकिन वैज्ञानिक इस खोज को और ज़्यादा मूल्यवान समझते हैं। क्योंकि सिल्लियाँ समुद्रतल पर “रेत की भारी तह” से ढकी अंतरिक्ष किरणों के प्रभाव से सुरक्षित थीं, समय ने विघटनाभिकता के सभी निशानों को रद्द कर दिया है। ऐसा शुद्ध सीसा, जो कहीं और मिलना असम्भव है, अनुसंधान भौतिक-विज्ञानियों के लिए रक्षी ढालों को बनाने के लिए अमूल्य है जिनका उनकी प्रयोगशालाओं के किए जानेवाले सूक्ष्म मापों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।

वृद्धों के लिए कम आदर

एशिया में बूढ़े लोगों की जनसंख्या उल्लेखनीय रूप से बढ़ रही है। कुछ लोगों का अनुमान है कि अगले ३० सालों के अन्दर जापान में ६५ और उससे ज़्यादा उम्र के लोगों की संख्या वर्तमान १ करोड़ ५५ लाख से बढ़कर ३ करोड़ २० लाख हो जाएगी। एशियावीक (Asiaweek) के अनुसार, हर ४ में से १ जापानी व्यक्‍ति साल २०२० तक बुज्प्तार्ग हो जाएगा। एशियावीक ने आगे कहा, “९% से ज़्यादा सिंगापुरी लोग अपने ६०वें जन्मदिन तक पहुँच गए हैं। और इस शताब्दी के अन्त तक लगभग १५ लाख मलेशियाई लोग वृद्ध नागरिकों में गिने जाएँगे।” यह वृद्धि एक ऐसे समय पर आई है जब बुज्प्तार्गों की देखरेख और आदर की पुरानी परंपराएँ कम हो गई हैं। सिंगापुर में वृद्ध नागरिकों के एक अधिवक्‍ता, हेनरी लिम ने कहा: “बूढ़े लोगों के प्रति आदर कम होता जा रहा है।” उसने आगे कहा कि जवान लोगों के पास अक़सर “अपने माता-पिताओं के बजाय कुत्ते के लिए ज़्यादा समय होता है।”

बाल-श्रम

ज़ॉर्नाल डॉ टॉर्डा (Jornal da Tarde) रिपोर्ट करती है, “भूगोल और सांख्यिकी के ब्राज़ीली संस्थान के प्रतिष्ठान ने यह निष्कर्ष निकाला कि १९८० का दशक ब्राज़ीली बच्चों और किशोरों के लिए अच्छा नहीं था।” अध्ययन ने दिखाया कि ५.९७ करोड़ बच्चों में से ३.२ करोड़ ऐसे परिवारों से थे जिनकी प्रतिव्यक्‍ति वार्षिक आय यू.एस. $४० के क़रीब न्यूनतम मज़दूरी की आधी से भी कम थी। स्कूल जाने के बजाय, १० और १४ साल की उम्र के बीच के १७.२ प्रतिशत ब्राज़ीली बच्चे—क़रीब एक करोड़—अपने व्यथित परिवारों की मदद करने के लिए नौकरी करते हैं। परिणाम? समाजविज्ञानी रोज़ा रिबेरो ने कहा: “इसका परिणाम ग़रीबी का फैलना और स्थायीकरण है। अपर्याप्त स्कूल शिक्षा के कारण, बच्चों के पास सामाजिक स्थिति बदलने का कोई मौका नहीं है।”

मरीज़ों का डर

द न्यू यॉर्क टाइम्स्‌ (The New York Times) के अनुसार, हो सकता है कि अपने रोगियों से बीमारी लगने का डर स्वास्थ्य सेवकों के व्यवहार को गंभीर रूप से प्रभावित कर रहा हो। बहुत से डॉक्टरों को डर है कि अपने मरीज़ों का इलाज करते समय कहीं ग़लती से वे अपनी चमड़ी में चिकित्सीय यंत्र न चुभा लें या उनकी चमड़ी न कट जाए जिससे उन्हें एडस्‌ या यकृत-शोथ हो जाए। स्पष्टतः, यह डर बेबुनियाद नहीं है। न्यू यॉर्क सिटी अस्पताल में संचालित की गई एक जाँच ने दिखाया कि जो डॉक्टर नियमित रूप से तपेदिक के मरीज़ों का इलाज करते हैं उनमें से लगभग ६० प्रतिशत डॉक्टरों को स्वयं वही बीमारी लग गई है। और, हर साल लगभग १२,००० स्वास्थ्य सेवकों को अपने मरीज़ों से यकृत-शोथ लग जाता है। जबसे एडस्‌ महामारी शुरू हुई, अमरीका में लगभग ४७ स्वास्थ्य सेवकों को अपने मरीज़ों से यह बीमारी लगी है।

सुपारी और कैंसर

“प्रश्‍न यह है . . . चबाएँ या न चबाएँ।” सुपारी चबाने से सम्बन्धित यह प्रश्‍न, पापुआ न्यू गिनी में एक अख़बार, पोस्ट-कुरियर (Post-Courier) में उठाया गया था। डॉ. बैरी मिलरॉय, एक विशेषज्ञ सर्जन जिसे सुपारी चबानेवालों का इलाज करने का अनुभव है, ने यह टिप्पणी की कि “प्रतीत होता है कि पापुआ न्यू गिनी में दो प्रमुख समस्याएँ स्थानिक मलेरिया और मुँह का कैंसर हैं, दूसरी सीधे सुपारी चबाने से सम्बन्धित है।” सुपारी चबाने के आदी अनेक जनों में बच्चे भी शामिल हैं। डॉ. मिलरॉय ने कहा, ‘यदि कोई सुपारी चबाता है तो प्रश्‍न यह नहीं कि उसे कैंसर होगा कि नहीं, बल्कि यह कि कब होगा।’ उसने आगे कहा कि जब तक ये लोग इसे न छोड़ें, “चिकित्सीय रूप से उनकी ज़्यादा सहायता नहीं की जा सकती है।”

चालाक जालसाज़

द वॉल स्ट्रीट जर्नल (The Wall Street Journal) टिप्पणी करती है, “जाली नोट का एक असंदेही दुकानदार के पास से या फिर एक बैंक गणक के पास से भी निकल जाना एक बात है। लेकिन इसका फेडरल रिज़र्व के परिष्कृत मुद्रा जाँचने के उपकरणों को धोखा दे जाना दूसरी ही बात है।” फिर भी, कोई व्यक्‍ति अमरीका की मुद्रा में $१०० के बैंकनोट बना रहा है जो यही कर रहे हैं। “विशेष रूप से उत्तम” कहलायी जानेवाली जाली मुद्रा दुनिया भर में अचानक ही दिखने में आ रही है। कठिन मुद्रण शैली जिसमें उभरे छाप का प्रयोग होता है, कपड़ा-आधारित कागज़ जिसके लाल और नीले रेशे संकेतक होते हैं, और विशिष्ट चुम्बकीय स्याही इन सब की बड़े कौशलपूर्वक नक़ल की गई है। जाली नोट इतने अच्छे हैं कि जिन नोटों को बैंक पार होने देते हैं, उनके लिए बैंकों को सामान्य कार्यविधि के अनुसार चार्ज करने के बजाय, अमरीकी सरकार नुक़्सान स्वीकार कर रही है। कुछ अधिकारियों को डर है कि जाली बैंकनोट किसी आतंकवादी गुट या शत्रु विदेशी सरकार का काम है।

दमा से मृत्यु में बढ़ोतरी

दैनिक सुइट्‌डौइश ट्‌ज़ाइटुंग (Suddeutsche Zeitung) ने कहा, “[जर्मनी में] जितने व्यक्‍ति दमा का दौरा पड़ने के कारण मरते हैं उनकी संख्या प्रभावशाली रूप से बढ़ गयी है।” जर्मन श्‍वसन ट्रैक्ट संघ संगठन के अनुसार, १९९१ में उस देश में ५,००० से ज़्यादा व्यक्‍ति श्‍वसन बीमारियों से मर गए। उन्‍नीस सौ सत्तर के मध्य दशक में, यह आंकड़े लगभग २,००० प्रतिवर्ष थे। जर्मनी के कुछ २ करोड़ निवासी एलर्जी से पीड़ित हैं, और ३ में से १ श्‍वसन एलर्जियों से पीड़ित हैं।

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