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  • मैं इतना बीमार क्यों हूँ?

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  • मैं इतना बीमार क्यों हूँ?
  • सजग होइए!–1997
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  • भय से निपटना
  • बीमारी का सामना करने की चुनौती
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सजग होइए!–1997
g97 5/8 पेज 22-24

युवा लोग पूछते हैं . . .

मैं इतना बीमार क्यों हूँ?

जब जेसन १३ साल का था तभी उसने ठाना कि एक दिन वह ब्रुकलिन, न्यू यॉर्क में यहोवा के साक्षियों के विश्‍व मुख्यालय, बॆथॆल में एक पूर्ण-समय सेवक के रूप में सेवा करेगा। उसने अपने लिए लकड़ी का एक बक्स बनाया और उसे अपना बॆथॆल बक्स कहा। उसने उसमें कुछ चीज़ें जमा करनी शुरू कीं जो उसने सोचा कि बॆथॆल सेवा में काम आएँगी।

लेकिन, उसके १८वें जन्मदिन के तीन ही महीने हुए थे जब पता चला कि जेसन को क्रोन्ज़ रोग है—निर्मम, पीड़ादायी आँतों का विकार। “इसने मुझे चूर कर दिया,” वह याद करता है। “मुझे कुछ और नहीं सूझा, बस मैंने पापा के दफ़्तर फ़ोन किया और रो दिया। मैं जानता था कि, और कुछ नहीं तो बॆथॆल जाने के मेरे सपने में एक रोड़ा आ गया था।”

बीमारी एक मूल कारण है कि क्यों “सारी सृष्टि अब तक मिलकर कहरती और पीड़ाओं में पड़ी तड़पती है।” (रोमियों ८:२२) बीमारों में अकथित करोड़ों युवा भी सम्मिलित हैं। अनेक युवा अंततः ठीक हो जाते हैं। लेकिन दूसरों को ऐसी बीमारियों से जूझना पड़ता है जो जीर्ण या, कुछ किस्सों में, जानलेवा होती हैं। जिन रोगों से युवा पीड़ित होते हैं उनमें दमा, मधुमेह, सिकल-सॆल रोग, संक्रामक बीमारियाँ, मिरगी, मानसिक रोग, और कैंसर सम्मिलित हैं। कुछ युवाओं को इकट्ठे कई बीमारियों के साथ जीना पड़ता है।

‘यह मेरे साथ क्यों हो रहा है?’

शारीरिक व्यथा के साथ-साथ, बीमारी प्रायः मानसिक और भावात्मक तनाव भी उत्पन्‍न करती है। उदाहरण के लिए, यदि बीमारी के कारण आप महीनों स्कूल नहीं जा पाते, तो आप न सिर्फ़ स्कूल के काम में पीछे रह जाएँगे बल्कि सामाजिक रूप से भी कटा-कटा महसूस करेंगे। जब १२-वर्षीय सनी को स्कूल से नाग़ा करना पड़ता है क्योंकि उसे समय-समय पर अस्पताल में भर्ती होना पड़ता है, तब वह चिंता करता है, ‘मेरे सहपाठी क्या कर रहे होंगे? आज मेरा क्या काम छूट रहा है?’

उसी तरह, जब आप इतने बीमार होते हैं कि मसीही सभाओं में नहीं जा पाते या बाइबल तक नहीं पढ़ पाते, तब आध्यात्मिक वृद्धि धीमी पड़ती लग सकती है। ऐसी स्थिति में आपको और भी भावात्मक और आध्यात्मिक सहारे की ज़रूरत है। शुरू में, आपको शायद रोग-निदान पर विश्‍वास ही न हो। बाद में, आप शायद बहुत गुस्सा हों, संभवतः अपने आपसे, यह सोचते हुए कि आप किसी प्रकार से बीमारी को टाल सकते थे। आपको शायद यह चीख लगाने का मन करे, ‘परमेश्‍वर ने यह मेरे साथ क्यों होने दिया?’ (मत्ती २७:४६ से तुलना कीजिए।) असल में, थोड़ी-बहुत हताशा का अनुभव होना तो स्वाभाविक है।

इसके साथ-साथ, एक युवा यह कल्पना भी कर सकता है कि यदि वह कोई ख़ास कोशिश करता है, जैसे बहुत अच्छा व्यवहार करना, तो परमेश्‍वर उसकी बीमारी दूर करेगा। लेकिन, ऐसे सोच-विचार से निराशा हो सकती है, क्योंकि परमेश्‍वर इस समय चमत्कारी चंगाई की प्रतिज्ञा नहीं करता।—१ कुरिन्थियों १२:३०; १३:८, १३.

शायद आपने सोचा था कि आपको कभी नहीं मरना पड़ेगा—कि आप उस समय जीवित होंगे जब परमेश्‍वर ‘बड़ा क्लेश’ लाएगा। (प्रकाशितवाक्य ७:१४, १५; यूहन्‍ना ११:२६) यदि ऐसा है, तो यह जानना कि आपको एक जानलेवा बीमारी है, दुगना सदमा पहुँचा सकता है। आप शायद सोचें कि आपने यहोवा को अप्रसन्‍न करने के लिए कुछ किया है, या आप यह सोच सकते हैं कि परमेश्‍वर ने आपको खराई की किसी ख़ास परीक्षा के लिए चुना है। लेकिन, ये उचित निष्कर्ष नहीं हैं। “न तो बुरी बातों से परमेश्‍वर की परीक्षा हो सकती है, और न वह किसी की परीक्षा आप करता है,” परमेश्‍वर का वचन, बाइबल कहती है। (याकूब १:१३) बीमारी और मृत्यु वर्तमान मानव अवस्था का दुःखद भाग हैं, और हम सभी “समय और संयोग” के वश में हैं।—सभोपदेशक ९:११.

भय से निपटना

एक गंभीर बीमारी लगने से आपमें शायद पहली बार गहरा भय भी उत्पन्‍न हो। पुस्तक अपने जीवन के लिए संघर्ष करना कैसा लगता है (अंग्रेज़ी) गंभीर बीमारियों से ग्रस्त १४ युवाओं की टिप्पणियाँ रिकॉर्ड करती है। उदाहरण के लिए, दस-वर्षीय ऐन्टॉन को भय था कि वह दमा के एक बुरे दौरे के बीच मर जाएगा। और १६-वर्षीय इलिज़ाबॆथ, जो हड्डियों के कैंसर से लड़ रही थी, डरती थी कि कहीं वह सो जाए और जागे ही न।

लेकिन, कुछ युवाओं को अलग ही क़िस्म के भय होते हैं—यह भय कि उनसे कभी कोई विवाह नहीं करना चाहेगा या यह भय कि आगे चलकर जीवन में उन्हें स्वस्थ बच्चे नहीं होंगे। दूसरे युवा डरते हैं कि उनकी बीमारी परिवार के सदस्यों को लग जाएगी, चाहे उनकी बीमारी संक्रामक हो या न हो।

चाहे बीमारी क़ाबू में आ गयी है या दब रही है, तो भी थोड़ी-सी गड़बड़ होने पर फिर से भय उठ सकते हैं। यदि आपके अन्दर ऐसे भय उठे हैं, तो आप जानते हैं कि ये बहुत वास्तविक होते हैं। ख़ुशी की बात है कि नकारात्मक भावनाओं का शुरूआती उफान समय के साथ-साथ अकसर दब जाता है। तब आप अपनी परिस्थिति को ज़्यादा व्यावहारिक रूप से आँक सकते हैं।

बीमारी का सामना करने की चुनौती

“जवानी में आप सोचते हैं कि आपका एक बाल भी बाँका नहीं हो सकता,” पहले उल्लिखित जेसन कहता है। “फिर, एकाएक, बुरी तरह बीमार पड़ना आपको झकझोर देता है। आपको लगता है आप रातोंरात बूढ़े हो गए हैं, क्योंकि आपको अपनी रफ़्तार कम करनी पड़ती है।” जी हाँ, नयी बाधाओं का सामना करना चुनौती से भरा है।

जेसन ने पाया कि एक और बड़ी चुनौती तब आती है जब दूसरे आपकी स्थिति को समझने से चूक जाते हैं। जेसन को वह बीमारी है जिसे “अदृश्‍य बीमारी” कहा जा सकता है। उसका बाहरी रूप उसकी अंदरूनी समस्याओं को नहीं दर्शाता। “मेरा शरीर भोजन को ठीक-से नहीं पचा पाता,” जेसन समझाता है, “इसलिए मुझे कई बार खाना पड़ता है और मैं बहुतों से ज़्यादा मात्रा में खाता हूँ। फिर भी, मैं दुबला हूँ। साथ ही, कभी-कभी मैं इतना थक जाता हूँ कि दिन में भी अपनी आँखें खुली नहीं रख पाता। लेकिन लोग ऐसी बातें कहते हैं जो दिखाती हैं कि उनके विचार से मैं पेटू या आलसी हूँ। वे इस तरह की बातें कहते हैं: ‘आप जानते हैं कि आप और अच्छा कर सकते हैं। आप तो कोशिश भी नहीं कर रहे!’”

जेसन के छोटे भाई-बहन हैं जो हमेशा नहीं समझ पाते कि क्यों वह पहले के जैसे काम नहीं कर सकता, जैसे कि उन्हें गेंद खेलने के लिए बाहर ले जाना। “लेकिन मैं जानता हूँ कि यदि मुझे चोट लग जाए,” जेसन कहता है, “तो उसे ठीक होने में हफ़्ते लग सकते हैं। वे अकसर मेरे दर्द को अपने दर्द से मिलाते हैं और कहते हैं, ‘वह बस दुलार पाने के लिए कहरा रहा है।’ पैर में मोच आना या ऐसा ही कुछ, उनके लिए शायद सबसे बुरा दर्द है, इसलिए वे मेरे दर्द की कल्पना भी नहीं कर सकते।”

यदि आपकी बीमारी आपके परिवार पर भार डालती हुई दिखती है, तो आप शायद दोष-भावना से जूझते हों। आपके माता-पिता भी दोषी महसूस कर सकते हैं। “मेरे माता-पिता दोनों यह मानते हैं कि शायद उन्होंने ही मुझे यह बीमारी दी है,” जेसन कहता है। “बच्चे बीमारी की सत्यता समझ लेने के बाद आम तौर पर स्थिति से समझौता कर लेते हैं। लेकिन माता-पिता को ज़्यादा कठिनाई होती है। वे बार-बार मुझसे क्षमा माँगते हैं। मुझे हमेशा भरसक कोशिश करनी पड़ती है कि उन्हें दोषी न महसूस करने दूँ।”

बार-बार अस्पताल जाना—खेल नहीं

बार-बार डॉक्टर के पास जाना चिंता का कारण हो सकता है। इससे आप तुच्छ और असहाय महसूस कर सकते हैं। अस्पताल के जाँच कक्ष में बैठे अपनी बारी का इंतज़ार करना ही डरावना हो सकता है। “आप . . . इतना अकेला-सा महसूस करते हैं और अच्छा होता कि कोई आपके साथ होता,” १४-वर्षीय जोसॆफ़ कहता है, जो दिल का मरीज़ है। दुःख की बात है, कुछ युवाओं को इस क़िस्म का सहारा नहीं मिलता, अपने माता-पिता से भी नहीं।

इसी प्रकार चिकित्सीय जाँच भी चिंता जगा सकती है। साफ़-साफ़ कहें, कोई-कोई जाँच एकदम अटपटी हो सकती है। फिर उसके बाद, आपको जाँच-परिणाम के इंतज़ार में शायद कई दिन या हफ़्ते चिंता में बिताने पड़ें। लेकिन यह याद रखिए: चिकित्सीय जाँच करवाना स्कूल में परीक्षा देने के जैसा नहीं है; कोई स्वास्थ्य समस्या होने का यह अर्थ नहीं कि आप किसी तरह से फ़ेल हो गए हैं।

असल में, एक जाँच बहुत सहायक जानकारी प्रदान कर सकती है। यह दिखा सकती है कि आपको एक स्वास्थ्य समस्या है जिसका इलाज आसानी से किया जा सकता है। अथवा, यदि ऐसा नहीं है तो एक जाँच यह दिखाने में मदद दे सकती है कि आप उस विकार के साथ जीने के लिए क्या कर सकते हैं। यह शायद यह भी दिखाए कि आपको वह बीमारी है ही नहीं जिसका अंदेशा था। सो कोशिश कीजिए कि अपने स्वास्थ्य के बारे में झट से निष्कर्ष न निकालें।

बहुत चिंता करना आपको और पस्त कर देगा। बाइबल कहती है: “चिन्ता से मनुष्य का हृदय निराश होता है।” (नीतिवचन १२:२५, NHT) इसके बजाय, परमेश्‍वर हमें न्यौता देता है कि उसे अपनी चिंताएँ बताएँ। हमें इस पर भरोसा करने की ज़रूरत है कि वह हमारी परवाह करता है और कि वह हमें समस्या से यथाउत्तम रूप से निपटने के लिए मार्गदर्शन और बुद्धि देगा।—भजन ४१:३; नीतिवचन ३:५, ६; फिलिप्पियों ४:६, ७; याकूब १:५.

हम ख़ुश हो सकते हैं कि हमारे सृष्टिकर्ता, यहोवा परमेश्‍वर ने धार्मिकता का नया संसार लाने के लिए प्रबंध किया है। वह मरे हुओं का पुनरुत्थान भी करेगा, और उन्हें उस नए संसार का आनंद लेने का अवसर देगा। बाइबल हमें आश्‍वस्त करती है कि उस समय “कोई निवासी न कहेगा कि मैं रोगी हूं।”—यशायाह ३३:२४.

तब तक, आपको शायद गंभीर बीमारी से जूझना पड़े। लेकिन, ऐसी कई व्यावहारिक बातें हैं जो आप अपनी स्थिति से सफलतापूर्वक निपटने के लिए कर सकते हैं। हम उनकी चर्चा एक भावी लेख में करेंगे।

[पेज 23 पर तसवीर]

आप शायद पूछें, ‘परमेश्‍वर ने यह मेरे साथ क्यों होने दिया?’

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