बाइबल का दृष्टिकोण
क्या विज्ञान और बाइबल मेल खाते हैं?
हवाई-जहाज़ों और परमाणु बमों से लेकर जीनस् के द्वारा फेर-बदल की गयी कोशिकाएँ और भेड़ के क्लोन किए जाने तक, हमारी २०वीं सदी विज्ञान द्वारा नियंत्रित युग रहा है। वैज्ञानिकों ने मनुष्यों को चाँद पर पहुँचाया है, चेचक का नामो-निशान मिटाया है, कृषिविज्ञान को पूरी तरह बदल दिया है, और करोड़ों लोगों के लिए तत्काल, विश्वव्यापी संप्रेषण संभव किया है। सो, यह कोई ताज्जुब की बात नहीं कि जब वैज्ञानिक बोलते हैं, तो लोग उनकी सुनते हैं। लेकिन यदि वैज्ञानिकों का बाइबल के बारे में कुछ कहना है, तो क्या है? और क्रमशः, विज्ञान के बारे में बाइबल हमें क्या बताती है?
क्या चमत्कार अवैज्ञानिक हैं?
“वैज्ञानिक प्रवृत्तिवाले लोग ‘कारण-और-प्रभाव’ के संबंध को मानते हैं। उनका मानना है कि हर बात के लिए एक पूर्णतया स्वाभाविक व्याख्या होती है,” एक समकालीन एनसाइक्लोपीडिया कहती है। बाइबल के विद्यार्थी भी स्थापित वैज्ञानिक सिद्धांतों को स्वीकारते हैं। लेकिन, वे समझते हैं कि बाइबल अकसर ऐसी चमत्कारिक घटनाओं की चर्चा करती है जिन्हें वर्तमान ज्ञान के मुताबिक़ वैज्ञानिक तौर पर समझाया नहीं जा सकता। मसलन, यहोशू के दिन में सूर्य का एक जगह ठहर जाना और यीशु का पानी पर चलना। (यहोशू १०:१२, १३; मत्ती १४:२३-३४) लेकिन, इन चमत्कारों को यों प्रस्तुत किया गया है जैसे ये किसी अलौकिक तरीक़े से कार्य कर रही परमेश्वर की शक्ति की वज़ह से हुए हों।
यह मुद्दा निर्णायक है। यदि बाइबल दावा करती है कि लोग बिना किसी ईश्वरीय मदद के पानी पर चल सकते हैं या फिर गगन में सूर्य की प्रत्यक्ष गति को बिना किसी कारण के रोका जा सकता है, तो यह वैज्ञानिक तथ्यों का खंडन करती हुई प्रतीत हो सकती है। लेकिन, जब यह ऐसी घटनाओं का श्रेय परमेश्वर की शक्ति को देती है, तब विज्ञान का खंडन करने के बजाय, ऐसी घटनाओं के बाइबल वृत्तांत, चर्चा को ऐसे क्षेत्र की ओर ले जाते हैं जहाँ विज्ञान अभी पहुँच नहीं सकता।
क्या बाइबल विज्ञान का खंडन करती है?
दूसरी ओर, उन मिसालों के बारे में क्या जहाँ बाइबल लोगों के जीवन की साधारण घटनाओं की चर्चा करती है या सहज ही पौधों, जानवरों, या प्राकृतिक चमत्कारों के बारे में बात करती है? दिलचस्पी की बात है, ऐसे मामलों में जब दी गयी जानकारी का संदर्भ ध्यान में रखा जाता है, तो ऐसा कोई उदाहरण सिद्ध नहीं किया गया जहाँ बाइबल ज्ञात वैज्ञानिक तथ्यों का खंडन करती हो।
मिसाल के तौर पर, बाइबल अकसर काव्य भाषा प्रयोग करती है जो हज़ारों साल पहले जीवित लोगों की समझ क्षमता को प्रतिबिंबित करती है। जब अय्यूब की पुस्तक कहती है कि यहोवा आकाश को मारता-पीटता या “ढाले हुए दर्पण के तुल्य दृढ़” गढ़ता है, तो यह भली-भाँति आकाश को एक ऐसे धातु के दर्पण के तौर पर वर्णन करती है जो प्रकाशमय प्रतिबिंबन देता है। (अय्यूब ३७:१८) इस दृष्टांत को शब्दशः लेने की कोई ज़रूरत नहीं है, वैसे ही जैसे आप पृथ्वी की “नेव” या उसके “कोने का पत्थर” होने के दृष्टांत को लेंगे।—अय्यूब ३८:४-७.
यह महत्त्वपूर्ण है क्योंकि अनेक टीकाकारों ने ऐसे दृष्टांतों को सतही तौर पर लिया है। (२ शमूएल २२:८; भजन ७८:२३, २४ देखिए।) उन्होंने निष्कर्ष निकाला है कि बाइबल कुछ यों सिखाती है, जो एन्कर बाइबल शब्दकोश (अंग्रेज़ी) से उद्धृत है।
“इस पृथ्वी को जिस पर मानवजाति निवास करती है, एक गोल, ठोस पदार्थ, शायद एक चक्रिका के तौर पर देखा गया है, जो असीम जल के ऊपर तैर रही है। इस निचले पिंड के सामानांतर में ऊपर उसी तरह का एक और असीम पिंड है, जिससे जल बारिश के रूप में स्वर्गीय जलाशय को भेदनेवाले छेद व जलमार्गों के ज़रिए गिरता है। चाँद, सूरज, और अन्य नक्षत्र एक वक्राकार संरचना पर लगाए गए हैं जो पृथ्वी पर चाप-सी झुकती है। यह संरचना याजकीय वर्णन का परिचित ‘मेहराब’ (रेकिया) है।”
स्पष्टतया, यह वर्णन आधुनिक विज्ञान से मेल नहीं खाता। लेकिन क्या यह आकाश के संबंध में बाइबल की शिक्षा की न्यायोचित जाँच है? हरगिज़ नहीं। अंतर्राष्ट्रीय मानक बाइबल विश्वकोष (अंग्रेज़ी) कहता है कि इब्रानी विश्व के ऐसे वर्णन “वास्तव में पुराने नियम के किसी वास्तविक कथन से ज़्यादा अंधकार युग के दौरान यूरोप में प्रचलित विचारों पर आधारित हैं।” वे मध्य-युगीन विचार कहाँ से उत्पन्न हुए? जैसा कि डेविड सी. लिंडबर्ग पश्चिमी विज्ञान की शुरूआत (अंग्रेज़ी) में समझाता है, वे मुख्यतः प्राचीन यूनानी तत्वज्ञानी एरिस्टॉटल के ब्रह्मांड विज्ञान पर आधारित थे, जिसके कार्य अधिकतर मध्य-युगीन शिक्षा का आधार थे।
परमेश्वर का, बाइबल को ऐसी भाषा में अभिव्यक्त करना निरर्थक और विकर्षक रहा होता, जो २०वीं सदी के वैज्ञानिक को आकर्षक लगता। वैज्ञानिक फ़ॉर्मूलों के बजाय, उन लोगों के रोज़मर्रा जीवन से लिए गए सुस्पष्ट दृष्टांतों से बाइबल सजीव हो उठती है जिसने इन्हें पहले-पहल लेखबद्ध किया—ऐसी सजीव तसवीरें जो आज भी समयहीन शक्ति से सजीव हो उठती हैं।—अय्यूब ३८:८-३८; यशायाह ४०:१२-२३.
उच्च स्रोत से ज्ञान
लेकिन दिलचस्पी की बात है, कुछ बाइबलीय संदर्भ वाक़ई वैज्ञानिक ज्ञान प्रतिबिंबित करते हुए प्रतीत होते हैं जो उस समय जीवित लोगों को उपलब्ध नहीं था। अय्यूब ने वर्णन किया कि परमेश्वर “उत्तर दिशा को निराधार फैलाए रहता है, और बिना टेक पृथ्वी को लटकाए रखता है।” (अय्यूब २६:७) पृथ्वी का “बिना टेक” हवा में लटकने का विचार अधिकांश प्राचीन लोगों की मिथ्या-कथाओं से बहुत ही भिन्न था, ऐसे प्राचीन लोग जिन्होंने हाथी या समुद्री कछुओं पर इसे रखा था। मूसा की व्यवस्था में स्वास्थ्य संबंधी माँगें थीं जो उस समय के चिकित्सीय ज्ञान की तुलना में कहीं ज़्यादा प्रगतिशील थीं। जिन लोगों के बारे में संदेह होता है कि उन्हें कुष्ठ रोग है, उनके लिए अलग रहने के नियमन, और मृत लोगों को छूने के ख़िलाफ़ निषेध ने निःसंदेह अनेक इस्राएली जानें बचायी होंगी। (लैव्यव्यवस्था १३; गिनती १९:११-१६) इसके ठीक विपरीत, अश्शूरियों के चिकित्सीय कार्यों को “धर्म, शकुन-विद्या, और प्रेतविद्या के मिश्रण” के तौर पर वर्णित किया गया है और इसमें कुत्ते की विष्ठा और मानव मूत्र से इलाज करना शामिल है।
जैसा कि एक व्यक्ति सृष्टिकर्ता द्वारा प्रेरित पुस्तक से शायद उम्मीद करे, बाइबल में ऐसी सटीक वैज्ञानिक जानकारी है जो स्पष्टतया इसके समय से कहीं आगे बढ़ी हुई है, हालाँकि यह कभी ऐसे वैज्ञानिक स्पष्टीकरणों में तल्लीन नहीं होती जो प्राचीन समय के लोगों के लिए अर्थहीन अथवा संभ्रमित करनेवाली होती। बाइबल में ऐसी कोई बात नहीं है जो ज्ञात वैज्ञानिक तथ्यों का खंडन करती हो। दूसरी ओर, बाइबल में ऐसी बहुत-सी बातें हैं जो असिद्ध सिद्धांतों से मेल नहीं खाती, जैसे कि क्रमविकास का सिद्धांत।
[पेज 25 पर बड़े अक्षरों में लेख की खास बात]
अय्यूब की टिप्पणी कि पृथ्वी ‘बिना टेक लटकी’ हुई है ऐसे ज्ञान की ओर सूचित करती है जो उसके समकालीन लोगों के पास नहीं था
[पेज 24 पर चित्र का श्रेय]
NASA