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सजग होइए!–1998
g98 1/8 पेज 23-26

यहोवा ने हमारा मार्ग सुगम बनाया

मेरा जन्म स्विट्‌ज़रलॆंड में ज़ूग राज्य के एक नगर, ख़ाम के निकट १९२४ में हुआ। मेरे माता-पिता के १३ बच्चे थे—१० लड़के और ३ लड़कियाँ। मैं पहलौठा था। दो लड़के बचपन में ही मर गये। महा मंदी के दौरान हम बाक़ियों का पालन-पोषण एक फ़ार्म पर कट्टर कैथोलिक रीति से हुआ।

पापा ईमानदार और अच्छे स्वभाव के व्यक्‍ति थे, लेकिन उन्हें कभी-कभी रोष के दौरे पड़ते थे। एकाध बार, उन्होंने माँ की पिटाई भी कर दी जब उन्होंने अपनी जलन के कारण पापा पर झूठा आरोप लगाया। वह हमारे पड़ोस की स्त्रियों से पापा का बातचीत करना सहन नहीं कर पाती थीं, जबकि उनके पास पापा की निष्ठा पर संदेह करने का कोई कारण नहीं था। इस बात से मैं बड़ा परेशान हो जाता था।

माँ बहुत अंधविश्‍वासी थीं। वह छोटी-छोटी घटनाओं को भी “शोधनस्थान में पड़े अभागे प्राणों” की ओर से चिन्ह मान बैठती थीं। मुझे ऐसे आशुविश्‍वास से घृणा थी। लेकिन पादरी उनके झूठे धार्मिक सोच-विचार का समर्थन करनेवाली पुस्तकें देकर उनके अंधविश्‍वासों को हवा देते थे।

मेरे मन में प्रश्‍न थे

लड़कपन से ही, मेरे मन में परमेश्‍वर और मनुष्य की नियति के बारे में प्रश्‍न थे। मैंने तर्कसंगत निष्कर्षों पर पहुँचने की कोशिश की, लेकिन इतने सारे अंतर्विरोध थे! मैंने संतों, चमत्कारों इत्यादि के बारे में कैथोलिक प्रकाशन पढ़े। लेकिन, इनसे मेरी तर्कशक्‍ति संतुष्ट नहीं हुई। मुझे ऐसा लगा मानो मैं अंधकार में लड़खड़ा रहा हूँ।

हमारे यहाँ के पादरी ने मुझे सलाह दी कि अपने प्रश्‍नों पर विचार न करूँ। उसने कहा कि सब कुछ समझने की इच्छा रखना घमंड का चिन्ह है और परमेश्‍वर अभिमानी लोगों का विरोध करता है। मुझे इस शिक्षा से ख़ास नफ़रत थी कि जो अपने पाप स्वीकार किये बिना ही मर जाते हैं उन्हें परमेश्‍वर धधकते नरक में हमेशा की यातना देगा। चूँकि इसका अर्थ था कि पृथ्वी पर अधिकतर लोगों को हमेशा की यातना मिलेगी, मैं अकसर सोचता था, ‘यह परमेश्‍वर के प्रेम के साथ कैसे मेल खा सकता है?’

मैंने पाप-स्वीकृति की कैथोलिक प्रथा पर भी प्रश्‍न उठाया। मैं डर गया जब हमें कैथोलिक स्कूल में बताया गया कि अश्‍लील विचार गंभीर पाप हैं और उनके लिए एक पादरी के सामने पाप-स्वीकृति करने की ज़रूरत है। मैं सोचा करता: ‘क्या मैंने याद करके हर बात की पाप-स्वीकृति की? या क्या मैं कुछ भूल गया, जिसके कारण मेरी पाप-स्वीकृति अमान्य हो जाएगी और मेरे पाप क्षमा नहीं किये जाएँगे?’ इस प्रकार परमेश्‍वर की दया और क्षमा करने की उसकी तत्परता के बारे में मेरे हृदय में संदेह के बीज पड़ गये।

क़रीब तीन या चार साल तक, मैं हताश करनेवाले विचारों से जूझता रहा जिन्होंने मुझे पस्त कर दिया। मैंने परमेश्‍वर पर से पूरी तरह विश्‍वास हटाने की सोची। लेकिन फिर मैं सोचता, ‘यदि मैं कोशिश करता रहूँ, तो निश्‍चित ही मुझे सही मार्ग मिल जाएगा।’ कुछ समय बाद, मुझे परमेश्‍वर के अस्तित्त्व पर विश्‍वास हो गया, लेकिन मैं अपने धार्मिक विश्‍वासों के बारे में अनिश्‍चितता से परेशान था।

बचपन में मिली धर्मशिक्षा के फलस्वरूप, मैं मानता था कि यीशु मसीह के मन में रोमन कैथोलिक चर्च था जब उसने प्रेरित पतरस से कहा: “मैं इस पत्थर पर अपनी कलीसिया बनाऊंगा।” (मत्ती १६:१८) मैं यह मानने लगा कि अंततः चर्च के अच्छे पहलुओं की जीत होगी, और इस लक्ष्य को पाने के लिए मैं चर्च को सहयोग देना चाहता था।

विवाह और परिवार

परिवार का सबसे बड़ा बेटा होने के नाते, मैं अपने पिता के साथ फ़ार्म पर काम करता था जब तक कि मेरा छोटा भाई मेरी जगह लेने के योग्य न हो गया। फिर मैं कैथोलिक कृषि स्कूल गया जहाँ मैंने मास्टर की डिग्री हासिल की। उसके बाद, मैंने विवाह साथी ढूँढ़ना शुरू किया।

अपनी एक बहन के ज़रिये, मेरी जान-पहचान मारीया से हो गयी। मुझे पता चला कि उसने एक ऐसा पति पाने के लिए प्रार्थना की थी जिसके साथ वह अनंत जीवन पाने का यत्न कर सके। हमने अपने विवाह घोषणा-पत्र पर लिखा: “प्रेम में संयुक्‍त हम सुख की खोज में हैं, हम अपनी दृष्टि परमेश्‍वर पर लगाए हैं। हमारा मार्ग है जीवन, और हमारा लक्ष्य अनंत सुख।” हमारा विवाह जून २६, १९५८ में ज़ुरिक के निकट, कॉन्वॆंट फ़ार में हुआ।

मारीया की और मेरी पृष्ठभूमि मिलती-जुलती थी। वह एक बहुत ही धार्मिक परिवार से थी और सात बच्चों में सबसे बड़ी थी। वे सभी फ़ार्म के काम, स्कूल के काम, और चर्च जाने में व्यस्त रहते थे, सो खेलकूद के लिए समय नहीं होता था। हमारे विवाह के शुरूआत के साल आसान नहीं थे। धार्मिक बातों पर मेरे अनेक प्रश्‍नों के कारण, मारीया को संदेह होने लगा कि उसने सही व्यक्‍ति से विवाह किया है या नहीं। उसने चर्च शिक्षाओं या युद्धों, क्रूसेड धर्मयुद्धों और धर्माधिकरणों का समर्थन करनेवाली चर्च प्रथाओं पर प्रश्‍न उठाने से इनकार कर दिया। लेकिन, हम दोनों ने अपना भरोसा परमेश्‍वर पर रखा और हम विश्‍वस्त थे कि जब तक हम उसकी इच्छा पर चलने की पूरी कोशिश कर रहे हैं, तब तक वह हमें किसी हालत नहीं छोड़ेगा।

वर्ष १९५९ में हमने पूर्वी स्विट्‌ज़रलॆंड में हॉमबुर्ग के निकट एक फ़ार्म पट्टे पर लिया। यह ३१ साल तक हमारा घर रहा। मार्च ६, १९६० में हमारा पहला बेटा, योज़ॆफ़ पैदा हुआ। उसके बाद, उसके छः भाई और एक बहन, राएल आयी। मारीया अपने दृढ़ सिद्धांतों के प्रति सच्ची, एक न्यायपूर्ण और निष्पक्ष माँ साबित हुई है। वह हमारे परिवार के लिए एक बड़ी आशीष है।

बाइबल सत्य ढूँढ़ना

धीरे-धीरे, हमारी धार्मिक अज्ञानता बहुत ही असहनीय होने लगी। दशक १९६० के आख़िरी सालों में, हम कैथोलिक पीपल्स हाई स्कूल में लॆक्चर सुनने के लिए जाने लगे, लेकिन हम पहले से भी ज़्यादा उलझे हुए घर लौटते। वक्‍ता अपने ही विचार बताते थे, कोई शास्त्रीय प्रमाण नहीं देते थे। वर्ष १९७० के शुरू में, मैंने यीशु के शब्दों पर विचार किया: “यदि पिता से कुछ मांगोगे, तो वह मेरे नाम से तुम्हें देगा। . . . मांगो तो पाओगे।”—यूहन्‍ना १६:२३, २४.

परमेश्‍वर के वचन से यह आश्‍वासन पाकर मैंने बार-बार प्रार्थना की: “पिता, यदि कैथोलिक चर्च ही सच्चा धर्म है, तो कृपया मुझे अचूक रूप से दिखा। लेकिन यदि यह झूठा है, तो मुझे यह भी एकदम स्पष्ट रूप से दिखा और मैं सब को बताऊँगा।” पहाड़ी उपदेश में यीशु के निर्देश के सामंजस्य में कि ‘माँगते रहो,’ मैंने बार-बार बिनती की।—मत्ती ७:७, ८, NW.

मारीया के साथ मेरी बातचीत—ख़ासकर “संतों” की उपासना, शुक्रवार को मांस का सेवन इत्यादि के संबंध में दशक १९६० में कैथोलिक शिक्षाओं में हुए परिवर्तनों के बारे में बातचीत—के कारण अंततः उसे संदेह होने लगे। एक बार, १९७० की वसंत में चर्च-सभा में उपस्थित होते समय, उसने प्रार्थना की: “हे परमेश्‍वर, हमें अनंत जीवन का मार्ग दिखाइए। अब हमें नहीं मालूम कि सही मार्ग कौन-सा है। मैं कोई भी बात मानूँगी, लेकिन हमारे पूरे परिवार के लिए सही मार्ग अवश्‍य दिखाइए।” जब तक कि हमने यह न जान लिया कि हमारी प्रार्थनाएँ सुन ली गयी हैं, न मुझे उसकी प्रार्थना के बारे में पता था, न ही उसे मेरी प्रार्थना के बारे में पता था।

बाइबल सत्य पाना

वर्ष १९७० के शुरू में एक रविवार सुबह चर्च से लौटने के बाद, हमारे दरवाज़े पर दस्तक हुई। अपने दस-वर्षीय बेटे के साथ आये एक आदमी ने अपने आपको यहोवा का साक्षी कहा। मैं एक बाइबल चर्चा के लिए राज़ी हो गया। मैंने सोचा कि मैं आसानी से उसे ग़लत साबित कर दूँगा क्योंकि यहोवा के साक्षियों के बारे में मुझे जो कुछ बताया गया था, उसके कारण मैं नहीं मानता था कि वे काफ़ी जानकार लोग हैं।

हमारी चर्चा दो घंटे तक चली लेकिन संतोषजनक परिणाम नहीं निकला, और अगले रविवार भी वैसा ही हुआ। मैं तीसरी चर्चा की आस में था, लेकिन वह साक्षी नहीं आया। मारीया ने कहा कि उसने समझ लिया होगा कि जाने का कोई फ़ायदा नहीं। जब वह दो सप्ताह बाद लौटा तब मैं ख़ुश था। तुरंत, मैंने कहा: “३५ साल से मैं नरक के बारे में सोच रहा हूँ। मैं यह स्वीकार ही नहीं कर सकता कि परमेश्‍वर, जो प्रेम है, इतने क्रूर ढंग से अपनी सृष्टि को यातना देगा।”

“आप ठीक कह रहे हैं,” उस साक्षी ने उत्तर दिया। “बाइबल नहीं सिखाती कि नरक यातना का स्थान है।” उसने मुझे दिखाया कि शीओल और हेडीज़ के लिए इब्रानी और यूनानी शब्द, जिन्हें कैथोलिक बाइबल में प्रायः “नरक” अनुवादित किया जाता है, बस सामान्य क़ब्र को सूचित करते हैं। (उत्पत्ति ३७:३५; अय्यूब १४:१३; प्रेरितों २:३१) साथ ही, उसने वे शास्त्रवचन पढ़े जो साबित करते हैं कि मानव प्राण मरणशील है और पाप का दंड मृत्यु है, यातना नहीं। (यहेजकेल १८:४; रोमियों ६:२३) इस पर, मुझे साफ़ दिखने लगा कि मुझे जीवन भर धार्मिक झूठ के अंधकार में रखा गया था। अब मैं सोचने लगा कि क्या चर्च के दूसरे विश्‍वास भी ग़लत हैं।

मैं और अधिक धोखे में नहीं रहना चाहता था, सो मैंने एक कैथोलिक बाइबल कोश और पोपों का पाँच-खंडीय इतिहास ख़रीदा। इन प्रकाशनों को मुद्रण-अनुमति थी, अर्थात्‌ रोमन कैथोलिक धर्माध्यक्षीय अधिकार ने उन्हें मुद्रण की अनुमति दी थी। पोपों का इतिहास पढ़ने से मुझे पता चला कि उनमें से कुछ जन संसार के सबसे बुरे अपराधियों में से थे! और बाइबल कोश जाँचने के द्वारा, मैंने जाना कि त्रियेक, नरकाग्नि, शोधनस्थान, और चर्च की अनेक अन्य शिक्षाएँ बाइबल पर आधारित नहीं हैं।

अब मैं साक्षियों के साथ एक बाइबल अध्ययन के लिए तैयार था। शुरू-शुरू में, मारीया सिर्फ़ शिष्टता दिखाने के लिए बैठ जाती थी, लेकिन जल्द ही उसने उन बातों को अपना लिया जो उसने सीखी थीं। चार महीने के बाद मैंने कैथोलिक चर्च छोड़ दिया और पादरी को बता दिया कि हमारे बच्चे अब धार्मिक कक्षाओं में नहीं जाएँगे। अगले रविवार पादरी ने अपने चर्च-सदस्यों को यहोवा के साक्षियों के बारे में चिताया। मैंने बाइबल का इस्तेमाल करते हुए अपने विश्‍वासों की सफ़ाई देने का प्रस्ताव रखा, लेकिन पादरी ऐसी चर्चा के लिए राज़ी नहीं हुआ।

उसके बाद हमने तेज़ प्रगति की। अंततः, मैंने और मेरी पत्नी ने दिसंबर १३, १९७० में पानी के बपतिस्मे द्वारा यहोवा के प्रति अपना समर्पण चिन्हित किया। एक साल बाद, मुझे मसीही तटस्थता के मुद्दे को लेकर दो महीने जेल में बिताने पड़े। (यशायाह २:४) उतने कम समय के लिए भी अपनी पत्नी को आठ बच्चों के साथ छोड़ना आसान नहीं था। बच्चों की उम्र सिर्फ़ ४ महीने से लेकर १२ साल तक ही थी। इसके अलावा, हमारे पास देखभाल करने के लिए एक फ़ार्म और मवेशी थे। लेकिन यहोवा की मदद से, वे मेरे बिना गुज़ारा करने में समर्थ हुए।

राज्य हितों को आगे रखना

हमारे परिवार में कोई भी, जब तक कि वह बीमार न हो, कभी भी कलीसिया की किसी सभा से नहीं चूकता था। और हम अपने काम का प्रबंध इस तरह करते थे कि हम कभी किसी बड़े अधिवेशन से नहीं चूकते थे। जल्द ही हमारी अटारी में बच्चों के खेल ज़्यादातर उन बातों की नक़ल करने के बारे में होते थे जो वे हमारी मसीही सभाओं में देखते थे। उदाहरण के लिए, वे एक दूसरे को विद्यार्थी भाषण नियुक्‍त करते थे और प्रस्तुतियों का अभ्यास करते थे। ख़ुशी की बात है कि उन सभी ने हमारे आध्यात्मिक उपदेश के प्रति अनुकूल प्रतिक्रिया दिखायी। मुझे वह याद बहुत प्रिय है जब एक सर्किट सम्मेलन में मेरा और मेरी पत्नी का इंटरव्यू लिया गया था और हमारे आठ बच्चे—बड़े से लेकर छोटे तक—एक कतार में बैठकर बड़े ध्यान से सुन रहे थे।

“प्रभु की शिक्षा और अनुशासन” में अपने बच्चों का पालन-पोषण करना हमारी मुख्य चिंता बन गया। (इफिसियों ६:४, NHT) हमने अपना टॆलिविज़न दूर करने का फ़ैसला किया, और हम अकसर जोशीले संगी मसीहियों को अपने घर न्यौता देते थे ताकि हमारे बच्चे उनके अनुभवों और उत्साह से लाभ उठा सकें। हम ध्यान रखते थे कि विचारहीन बात और दूसरों की आलोचना न करें। यदि कोई ग़लती करता था, तो हम उस विषय पर बात करते थे और देखते थे कि किन परिस्थितियों के कारण शायद उससे वह ग़लती हुई हो। हमने स्थिति को तर्कसंगत और न्यायसंगत रूप से जाँचने में अपने बच्चों को मदद देने की कोशिश की। हमने ध्यान रखा कि हम दूसरे युवाओं से उनकी तुलना न करें। और हमने इस बात के महत्त्व को स्वीकार किया कि माता-पिता बच्चों को लाड़-प्यार से न बिगाड़ें या उनके कार्यों के परिणामों से न बचाएँ।—नीतिवचन २९:२१, NHT.

इसके बावजूद, अपने बच्चों का पालन-पोषण करना समस्याओं से खाली नहीं था। उदाहरण के लिए, एक बार स्कूल-साथियों ने उन्हें एक दुकान से बिना पैसे दिये मिठाई लेने के लिए उसकाया। जब हमें इस बात का पता चला, तब हमने अपने बच्चों को पैसे देने और क्षमा माँगने के लिए दुकान पर वापस भेजा। ऐसा करने में उन्हें शर्म तो आयी, लेकिन उन्होंने ईमानदारी का सबक़ सीखा।

प्रचार कार्य में हमारे साथ चलने के लिए अपने बच्चों को मजबूर करने के बजाय, हमने इस कार्य को प्राथमिकता देने के द्वारा उदाहरण रखा। बच्चों ने देखा कि हम सभाओं और क्षेत्र सेवकाई को उस काम से आगे रखते थे जो फ़ार्म पर किया जाना था। अपने आठ बच्चों को यहोवा के मार्ग में पालने के हमारे प्रयासों पर निश्‍चित ही आशीष मिली।

हमारा सबसे बड़ा बेटा, योज़ॆफ़ एक मसीही प्राचीन है और उसने अपनी पत्नी के साथ स्विट्‌ज़रलॆंड में यहोवा के साक्षियों के शाखा दफ़्तर में कई साल सेवा की है। टोमास एक प्राचीन है, और वह और उसकी पत्नी पायनियर हैं। पूर्ण-समय सेवकों को पायनियर कहा जाता है। डानील ने चैम्पियन साइकलिस्ट का अपना पेशा छोड़ दिया। वह एक प्राचीन है, और वह और उसकी पत्नी एक कलीसिया में पायनियर हैं। बॆनो और उसकी पत्नी केंद्रीय स्विट्‌ज़रलॆंड में सक्रिय सेवक हैं। हमारा पाँचवाँ बेटा, क्रिस्टयान उसी कलीसिया में प्राचीन के रूप में सेवा करता है जिसमें हम जाते हैं। वह विवाहित है और उसके दो बच्चे हैं। फ्राँट्‌स बर्न की एक कलीसिया में पायनियर और प्राचीन है, और उर्स जो पहले स्विट्‌ज़रलॆंड शाखा दफ़्तर में सेवा करता था, विवाहित है और पायनियर के रूप में सेवा कर रहा है। हमारी एकलौती बेटी, राएल और उसका पति भी कई सालों तक पायनियर थे।

अपने बच्चों के उदाहरण पर चलते हुए, जून १९९० में नौकरी से रिटायर होने के बाद मैं भी पायनियर बन गया। अपने और अपने परिवार के जीवन को मुड़कर देखने पर, मैं निश्‍चित ही कह सकता हूँ कि यहोवा ने हमारा मार्ग सुगम बनाया और हम पर “अपरम्पार आशीष की वर्षा” की है।—मलाकी ३:१०.

मेरी प्रिय पत्नी का मनपसंद बाइबल पाठ है: “अपना बोझ यहोवा पर डाल दे वह तुझे सम्भालेगा; वह धर्मी को कभी टलने न देगा।” (भजन ५५:२२) और मेरा पाठ: “यहोवा में मग्न रह, और वह तेरे मनोरथों को पूरा करेगा।” (भजन ३७:४, NHT) हम दोनों ने इन सुंदर अभिव्यक्‍तियों की सच्चाई का अनुभव किया है। अपने बच्चों और उनके परिवारों सहित, अपने परमेश्‍वर, यहोवा की सर्वदा स्तुति करना हमारा लक्ष्य है।—योज़ॆफ़ हॆगली द्वारा बताया गया।

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