विश्व-दर्शन
टोक्यो के सफ़र करते कौवे
टोक्यो, जापान में कौवों ने उपनगरों और शहर के बीच हर दिन सफ़र करने की आदत डाल ली है, द डेली योमीउरी रिपोर्ट करता है। पक्षी विशेषज्ञ कहते हैं कि यह कुछ साल पहले शुरू हुआ जब टोक्यो के उद्यानों और मंदिर परिसरों में कौवों की आबादी इतनी बढ़ गयी कि कौवों को मजबूरन अपने घोंसले कहीं और बनाने पड़े। तभी उन्हें उपनगरीय जीवन के आराम का पता चला। लेकिन, उन्होंने एक चीज़ की कमी महसूस की, वह था शहर का मनभावन भोजन—जो उन्हें कचरे और फेंकी हुई जूठन से मिलता था। उन्होंने “नौकरीपेशा लोगों की तरह सफ़र करने की आदत” डालकर इस समस्या का हल निकाला। “वे भोजन की तलाश में सुबह शहरी इलाक़ों में उड़कर जाते हैं,” द डेली योमीउरी कहता है, “फिर शाम को उपनगरों में लौट आते हैं।”
प्राकृतिक संपदा ख़तरे में है
भारत का उत्तरपूर्वी क्षेत्र, जो वनस्पति और पशु जीवन में समृद्ध है, अब ऐसे पौधों की ६५० प्रजातियों और पशुओं की ७० प्रजातियों की सूची देता है जो लुप्तप्राय हो गयी हैं। बंग्लादेश की सीमा पर, मेघालय राज्य के नाज़ुक पारितंत्र को १८ ‘उत्तेजनशील स्थानों’ में से एक करार दिया गया है जहाँ जीव-विविधता को ख़तरा है। जैसे दी एशियन एज में रिपोर्ट किया गया, अन्य बातों के अतिरिक्त, मनुष्यों ने लूटमार और शिकार करके पारितंत्र पर हमला किया है। भारत के सात उत्तरपूर्वी राज्यों की जीव-विविधता को पारिस्थितिक रूप से देश के अन्य भागों की तुलना में ज़्यादा नाज़ुक और संवेदनशील माना जाता है।
बच्चे को दूध पिलाने की दुविधा
“दो दशकों से, डॉक्टरों और जन स्वास्थ्य एजन्सियों ने ग़रीब देशों में नयी माताओं को एक ही सलाह दी है: अपने बच्चे के स्वास्थ्य को सुरक्षित रखने के लिए उन्हें स्तनपान कराएँ,” द न्यू यॉर्क टाइम्स कहता है। “लेकिन अब, एड्स महामारी उस सलाह को रद्द कर रही है। अध्ययन दिखा रहे हैं कि एड्स विषाणु से संक्रमित माताएँ इसे स्तन-दूध के ज़रिये ऊँची दर पर फैला सकती हैं। . . . हाल ही में संयुक्त राष्ट्र ने अनुमान लगाया कि एच.आई.वी. से ग्रस्त कुल एक-तिहाई शिशुओं को यह विषाणु अपनी माँ के दूध से मिला।” इसका विकल्प है डब्बे का दूध, लेकिन उसकी भी अपनी समस्याएँ हैं। अनेक राष्ट्रों में माताओं के पास डब्बे का दूध ख़रीदने या बोतलों को जीवाणु-रहित करने के लिए पैसे नहीं हैं और उनको साफ़ पानी सुलभ नहीं है। फलस्वरूप, बच्चों को दस्त लग जाते हैं और शरीर में पानी की कमी हो जाती है, साथ ही उन्हें श्वास और आन्त्र रोग हो जाते हैं। ग़रीब परिवार दूध के पाउडर में अधिक पानी मिला देते हैं, जिससे बच्चा कुपोषित हो जाता है। स्वास्थ्य अधिकारी अब दोनों बातों में संतुलन करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। संसार भर में, हर दिन १,००० से अधिक शिशु और बच्चे एच.आई.वी. से संक्रमित होते हैं।
अनोखी मित्रता
च्यूँटियों और अफ्रीकी अकेशिया पेड़ों के बीच के संबंध पर वैज्ञानिकों ने लंबे अरसे से अचरज किया है। ये पेड़ च्यूँटियों को भोजन और घर प्रदान करते हैं। बदले में, च्यूँटियाँ उन कीड़े-मकोड़ों पर हमला करती हैं जो पेड़ों को नुक़सान पहुँचाते हैं और उन जानवरों को काटती हैं जो पत्तियाँ खाते हैं। ऐसा लगता है कि ये पेड़ अपने अस्तित्त्व के लिए इस सुरक्षा पर निर्भर हैं। लेकिन पेड़ों को अपने फूलों को परागित करने के लिए उड़नेवाले कीट-पतंगों की भी ज़रूरत है। इसे ध्यान में रखते हुए, परागित करनेवाले कीट-पतंगों को अपना काम करने का मौक़ा कैसे मिलता है? विज्ञान पत्रिका प्रकृति (अंग्रेज़ी) के अनुसार, जब पेड़ “फूल उर्वरता के चरम” पर होते हैं, तब वे एक ऐसा रसायन छोड़ते हैं जो प्रतीत होता है कि च्यूँटियों को दूर रखता है। यह कीट-पतंगों को मौक़ा देता है कि “महत्त्वपूर्ण क्षण में” फूलों पर आएँ। फिर, जब फूल परागित हो जाते हैं, तब च्यूँटियाँ अपने रक्षा काम के लिए लौट आती हैं।
दुनिया में सफ़ाई-व्यवस्था स्तर गिर रहा है
“दुनिया की आधी आबादी से ज़्यादा, क़रीब तीन अरब लोगों के पास थोड़े-भी साफ़ शौच की व्यवस्था नहीं है,” द न्यू यॉर्क टाइम्स रिपोर्ट करता है। UNICEF (संयुक्त राष्ट्र बाल निधि) द्वारा संचालित राष्ट्रों की प्रगति (अंग्रेज़ी) वार्षिक सर्वेक्षण का भाग, ये निष्कर्ष यह भी प्रकट करते हैं कि “सफ़ाई-व्यवस्था स्तर दुनिया भर में गिर रहे हैं, उठ नहीं रहे।” उदाहरण के लिए, कुछ देशों ने ग़रीबों को साफ़ पानी प्रदान करने में प्रगति की है, लेकिन वे मल विसर्जन की पर्याप्त व्यवस्था नहीं कर पाये हैं। मूल साफ़-सफ़ाई की यह कमी नये रोगों के फैलाव और पुरानी बीमारियों के फिर से उभरने में बहुत योग देती है, रिपोर्ट कहती है। यह अनुमान लगाया जाता है कि २० लाख से अधिक बच्चे हर साल गंदगी से संबंधित बीमारियों के कारण मरते हैं। अध्ययन का लेखक, अख़्तर हमीद खान कहता है: “जब आपकी सफ़ाई-व्यवस्था मध्ययुगीन स्तर की होती है, तब आपके यहाँ बीमारियाँ भी मध्ययुगीन स्तर की ही होती हैं।”
गूटनबर्ग बाइबल प्राप्त हुई
बाइबल का एक भाग जिसे १५वीं शताब्दी में योहानस गूटनबर्ग ने छापा था, रॆंटस्बुर्ग, जर्मनी में एक गिरजे के संग्रह में प्राप्त हुआ है। वर्ष १९९६ के आरंभ में उसके मिलने के बाद, इससे पहले कि यह कहा जाता कि वह असली गूटनबर्ग बाइबल है, बाइबल के उस १५० पृष्ठ के भाग को ध्यान से जाँचा गया, वीसबाडॆनर कूरीर रिपोर्ट करता है। संसार भर में, ४८ गूटनबर्ग बाइबलों के होने की जानकारी है, जिनमें से २० पूरी हैं। “योहानस गूटनबर्ग द्वारा छापी गयी प्रसिद्ध दो-खंडीय बाइबलों को पुस्तक मुद्रण में पहला बड़ा कार्य समझा जाता है,” समाचार-पत्र कहता है। इस नवीनतम खोज “में अभी-भी उसकी मूल पुस्तक ज़ंजीर सही-सलामत है, जिससे बाइबल को उपदेश-मंच पर बाँधा जाता था ताकि कोई उसे चुरा न ले।”