‘मानसिक स्वास्थ्य की धुँधली तसवीर’
“स्वास्थ्य कल्याण के अनेक क्षेत्रों में हुई प्रभावशाली चिकित्सीय उन्नति के बावजूद,” कनेडियन सोसाइटी फॉर इंटरनैशनल हॆल्थ की पुस्तिका सिनर्जी में प्रकाशित एक लेख कहता है, “दुनिया भर में मानसिक स्वास्थ्य की तसवीर धुँधली है।”
एक रिपोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि दुनिया में ४ में से १ व्यक्ति मानसिक, भावात्मक या व्यवहार-संबंधी विकार से पीड़ित है। एक और अध्ययन ने दिखाया कि ३ में से १ मरीज़ स्वास्थ्य-सेवक के पास इसलिए जाता है क्योंकि वह हताशा या चिंता से पीड़ित होता है। और शोधकर्ता बताते हैं कि यह संख्या बढ़ रही है।
क्यों? हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के सोशल मॆडिसिन विभाग द्वारा संचालित अध्ययन दिखाता है कि अवसाद, शिज़ोफ्रीनिया और डिमॆंशिया जैसे रोग बढ़ रहे हैं क्योंकि आजकल “ज़्यादा लोग लंबी उम्र तक जी रहे हैं।” लेकिन, लंबा जीवन जीना इसका एकमात्र कारण नहीं है। आर्थिक समस्याओं और आधुनिक जीवन के बढ़ते तनाव का भी दोष है।
इस धूमिल तसवीर को कैसे बदला जा सकता है? विशेषज्ञ कहते हैं कि स्वास्थ्य कल्याण के अनेक क्षेत्रों में से मानसिक स्वास्थ्य को प्राथमिकता दी जानी चाहिए क्योंकि “यह मानव स्थिति सुधारने के लक्ष्य में आखिरी मोरचों में से एक है जिन पर जीत हासिल करनी बाकी है।”