हमारे पाठकों से
मेरा ध्यान क्यों नहीं लगता? जब मैंने “युवा लोग पूछते हैं . . . मेरा ध्यान क्यों नहीं लगता?” (अगस्त ८, १९९८) लेख पढ़ा तो मैं खुशी के मारे रो पड़ी। मैं १८ साल की हूँ और पूर्ण-समय सेवकाई करती हूँ। मैं परेशान थी क्योंकि मेरा ध्यान नहीं लगता था और क्षेत्र सेवकाई में लोगों की मदद करने के लिए यह ज़रूरी है। मैं उस हद तक पहुँच गयी थी कि मैं हताश होने लगी थी क्योंकि मैं बातों को याद रखकर उनका विश्लेषण नहीं कर पाती थी। जैसा बाइबल कहती है, यह सच है कि यहोवा सही समय पर भोजन देता है।
ए. आर. सी. आर., अमरीका
यात्रियों के लिए सुझाव लेख “डेंगू—मच्छर के काटने से हुआ बुखार” (अगस्त ८, १९९८) में “यात्रियों के लिए सुझाव” में एक सुझाव छूट गया कि रात को मच्छरदानी का इस्तेमाल करना चाहिए, हो सके तो ऐसी मच्छरदानी जिसमें कीटाणुनाशक लगाया गया हो।
आई. एच., इंग्लॆंड
हम पाठक की टिप्पणी की कदर करते हैं। मलेरिया की रोकथाम के लिए यह सुझाव खासकर फायदेमंद है। (अगस्त ८, १९९७ की “सजग होइए!” में पृष्ठ ३१ देखिए।) लेकिन, यू.एस. सॆंटर्स फॉर डिज़ीज़ कंट्रोल के अनुसार, जिस मच्छर से डेंगू बुखार होता है वह “दिन के समय मनुष्यों को काटना पसंद करता है।” ज़्यादातर वह “सुबह दिन निकलने के बाद कई घंटे और शाम को अंधेरा होने से पहले कई घंटे” काटता है। इसलिए, रात को मच्छरदानी लगाकर सोना इस बीमारी से बचने में शायद बहुत असरदार न हो।—संपादक।
विज्ञापन मेरी बेटी यहोवा की साक्षी नहीं है। लेकिन वह विज्ञापन के क्षेत्र में काम करती है सो मैंने उसे सितंबर ८, १९९८ का अंक भेज दिया जिसमें “विज्ञापन—आप कैसे प्रभावित होते हैं?” लेख-श्रृंखला थी। उसने इसकी बहुत बड़ाई की और कहा कि आपके लेखकों ने राज़ी करने के हुनर को एकदम सही पहचाना।
आर. एस., अमरीका
शैतान को दोषी ठहराना? मैं १७ साल का हूँ और हाल ही में पहली बार मैंने सजग होइए! पढ़ी। अब मुझे इसे पढ़ने का शौक चढ़ गया है! इसमें मूल्यवान जानकारी थी, जैसे “बाइबल का दृष्टिकोण: क्या हमें अपने पापों के लिए शैतान को दोषी ठहराना चाहिए?” (अक्तूबर ८, १९९८) इसे पढ़ने से पहले मैं सोचता था कि पाप करने पर मैं उसे दोषी ठहरा सकता हूँ। बहरहाल, आपकी पत्रिका अव्वल दर्जे की है और मैं सबको सलाह देता हूँ कि इसे पढ़ें। कृपया मुझे अपनी पत्रिका भेजिए!
एम. एम., अमरीका
युवाओं की आत्महत्या “आज के युवाओं के लिए क्या कोई आशा है?” (अक्तूबर ८, १९९८) लेख-श्रृंखला के लिए मैं आपको बहुत शुक्रिया कहना चाहती हूँ। मेरी आँखों में आँसू आ गये। मैंने कई बार आत्महत्या करने की कोशिश की है। लेकिन मैं खुश हूँ कि मैं कामयाब नहीं हुई।
ए. ज़ॆड., चॆक गणराज्य
एक संवेदनशील विषय पर ये बहुत हमदर्दी-भरे लेख थे। इस साल के शुरू में जब मैं हताशा से पीड़ित थी तो मैंने अपना जीवन तमाम करने की कोशिश की थी। इस सामयिक विषय के लिए धन्यवाद। इसने मेरा जीवन बचा दिया।
आर. पी., इंग्लॆंड
दुःख की बात है कि मेरी क्लास के दो बच्चों ने आत्महत्या करने की कोशिश की है। एक लड़के ने जब अपने भविष्य के बारे में सोचा तो उसे कोई आशा नहीं दिखी—सिर्फ परेशानियाँ ही परेशानियाँ पार करनी थीं, सो उसने आत्महत्या करनी चाही। इसलिए यह लेख व्यावहारिक था क्योंकि इसने बहुत साफ और स्पष्ट रीति से समझाया कि कैसे हमारा भविष्य उज्ज्वल हो सकता है।
आर. डी., स्पेन
आपके लेख ने मेरा दिल छू लिया। ऐसा लगा मानो यहोवा एक प्रेममय पिता की तरह मुझसे बात कर रहा हो। बचपन में मेरे पिता ने मेरे साथ दुर्व्यवहार किया। मैंने अपने आपको निकम्मा समझा है और अपनी जान लेने के बारे में अकसर सोचा है। लेकिन आपके लेख की सलाह मानकर अब मैं “सत्य जीवन” के लिए लालसा बढ़ा रही हूँ।—१ तीमुथियुस ६:१९.
एस. आर., ब्राज़ील
शुक्रिया, खासकर युवाओं की कहानी उन्हीं की ज़बानी बताने के लिए। कई युवाओं ने कुछ ही शब्दों में समस्याओं के हल बता दिये।
डब्ल्यू. एच., जर्मनी