विश्व दर्शन
भाषाएँ लुप्त हो रही हैं
“कभी-कभी मुझे बहुत अफसोस होता है कि मैंने अपने बच्चों को अपनी भाषा क्यों नहीं सिखायी,” मुखिया मरी स्मिथ जोन्स कहती है। अपने समाज में सिर्फ वही एक है जो अलास्का की आइयाक भाषा जानती है। रुख देखकर ऐसा लगता है कि दुनिया भर में बोली जानेवाली अनुमानित ६,००० भाषाओं में से ४०-५० प्रतिशत भाषाएँ अगली सदी में मिट जाएँगी। एक समय था जब ऑस्ट्रेलिया में २५० भाषाएँ थीं, लेकिन आज वहाँ करीब २० भाषाएँ बची हैं। ऐसा क्यों हो रहा है? न्यूज़वीक पत्रिका बताती है कि “अँग्रेज़ी और दूसरी ‘बड़ी’ भाषाओं का फैलाव [अन्य भाषाओं] को गुमनामी में ढकेल रहा है।” इसी विषय में संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन द्वारा प्रकाशित पुस्तक दुनिया की लुप्तप्राय भाषाओं की एटलस (अँग्रेज़ी) का संपादक, प्रोफॆसर स्टीफन वुर्म कहता है: “अकसर यह धारणा रहती है कि आप ‘छोटी’ भाषाओं को, अल्पसंख्यकों की भाषाओं को भूल जाएँ क्योंकि उनका कोई महत्त्व नहीं।”
गाड़ी चलाते वक्त दूसरे ड्राइवरों के गुस्से से बचिए
“बहुत ही आक्रामक ढंग से गाड़ी चलानेवालों को कम खतरनाक नहीं समझना चाहिए,” कार रेसिंग के एक अनुभवी ने फ्लीट मेनटॆनॆंस एण्ड सेफ्टी रिपोर्ट पत्रिका में यह सलाह दी। अगर दिमाग ठंडा रखकर खराब स्थितियों में फँसने से बचें तो आप दूसरे ड्राइवरों के गुस्से से बच सकते हैं। सुरक्षा विशेषज्ञ निम्नलिखित उपाय देते हैं:
◼ हमेशा सही ढंग से गाड़ी चलाइए।
◼ यदि आप बिना खतरा मोल लिये एक आक्रामक ड्राइवर के रास्ते से हट सकते हैं तो हट जाइए।
◼ अपनी गाड़ी और दूसरी गाड़ी के बीच बहुत कम फासला रखने या अपनी गाड़ी की रफ्तार बढ़ाने के द्वारा दूसरे चालक को कभी मत ललकारिए।
◼ कोई धमकी-भरे इशारे करे तो उसका जवाब मत दीजिए और ऐसे इशारे मत कीजिए जिनका गलत अर्थ निकाला जा सकता है।
◼ अगर कोई ड्राइवर बहुत ही गुस्से में है तो उसकी तरफ मत देखिए।
◼ दूसरे ड्राइवरों से झगड़ा करने के लिए अपनी गाड़ी मत रोकिए।
हँसी की कमी
हाल ही में स्विट्ज़रलॆंड में हुए अंतर्राष्ट्रीय हास्य सम्मेलन में पेश किये गये प्रमाणों के अनुसार, १९५० के दशक में जब आर्थिक कठिनाई थी तो आम आदमी दिन में १८ मिनट हँसता था, लेकिन १९९० के दशक में जब धन की बहुतायत है तो वह ६ मिनट हँसता है। यह कमी क्यों? “विशेषज्ञ कहते हैं कि हरदम भौतिक चीज़ें बटोरने, पेशे में आगे बढ़ने और व्यक्तिगत सफलता पाने की कोशिश करना इस रुख के लिए ज़िम्मेदार है, जो इस पुरानी कहावत को सच साबित करता है कि पैसे से खुशी नहीं खरीदी जा सकती,” लंदन का संडे टाइम्स बताता है। सो लेखक माइकल आर्गाइल यह निष्कर्ष निकालता है: “जो पैसे को सबसे ज़्यादा महत्त्व देते हैं वे कम संतुष्ट रहते हैं और उनका मानसिक स्वास्थ्य भी उतना अच्छा नहीं रहता। ऐसा शायद इसलिए है कि पैसा सिर्फ ऊपरी किस्म की संतुष्टि देता है।”
दुनिया में अनपढ़ लोगों की संख्या बढ़ रही है
“दुनिया के ५.९ अरब में से १६% लोगों को पढ़ना-लिखना नहीं आता,” द न्यू यॉर्क टाइम्स रिपोर्ट करता है। संयुक्त राष्ट्र बाल निधि (UNICEF) के अनुसार, निरक्षरता दर बढ़ सकती है। क्यों? क्योंकि आज दुनिया के सबसे गरीब देशों में ४ में से ३ बच्चे स्कूल नहीं जाते। अंतर्जातीय झगड़े दुनिया भर में आर्थिक समस्याएँ उत्पन्न करने के अलावा लाखों बच्चों को शिक्षा से भी वंचित रखते हैं। युद्धों में न सिर्फ स्कूल तहस-नहस होते हैं बल्कि बहुत-से बच्चों के हाथ से कलम छीनकर हथियार पकड़ा दिये जाते हैं। निरक्षरता से सामाजिक समस्याएँ भी होती हैं। UNICEF की रिपोर्ट दुनिया के बच्चों की दशा १९९९ (अँग्रेज़ी) कहती है कि निरक्षरता और जन्म-दर में सीधा संबंध है। उदाहरण के लिए, एक दक्षिण अमरीकी देश में, “अनपढ़ स्त्रियों के पास औसतन ६.५ बच्चे हैं, और जिन माताओं ने सॆकॆंडरी स्कूल तक शिक्षा प्राप्त की है उनके पास औसतन २.५ बच्चे हैं,” टाइम्स ने कहा।
सन् २००० का पागलपन
सन् २००० में हिंसा की संभावना को देखते हुए इस्राएली “सरकार ने मंदिर की पहाड़ी पर सुरक्षा बढ़ाने के लिए १.२ करोड़ डॉलर दिये हैं” नैन्डो टाइम्स रिपोर्ट करता है। पुलिस को चिंता है कि मंदिर की पहाड़ी पर फिर से यहूदी मंदिर बनाने के लिए कहीं यहूदी या “ईसाई” कट्टरपंथी वहाँ खड़ी मस्जिदों को तोड़ने की कोशिश न करें। कुछ “ईसाई” पंथ मानते हैं कि ऐसा करने से दुनिया का अंत और मसीह का दूसरा आगमन जल्दी होगा। मंदिर की पहाड़ी को मुसलमान अल-हारम अल-शरीफ के नाम से जानते हैं। रिपोर्ट के अनुसार इसे “मध्य-पूर्व के झगड़े में सबसे नाज़ुक मामला समझा जाता है।” यह ‘जरूसलेम के पुराने किलेबंद नगर में स्थित है, जिसे इस्राएल ने १९६७ के मध्यपूर्व युद्ध में जॉर्डन से छीन लिया था।’ यह देखा गया है कि मसीह की वापसी की आस में अभी से कई “ईसाइयों” ने जैतून-पहाड़ पर कुछ जगह किराये पर ले ली है।
यैंग्सी नदी को बस में करना
चीन की यैंग्सी नदी पर बन रहा ‘द थ्री गॉर्जॆस’ बाँध जब पूरा हो जाएगा तो वह दुनिया का सबसे बड़ा हाइड्रो-इलॆक्ट्रिक पावर स्टेशन होगा। यह बाँध १८५ मीटर ऊँचा और २.३ किलोमीटर लंबा होगा और १८.२ मिलियन किलोवाट विद्युत उत्पन्न करेगा। लेकिन, यह बाँध मुख्य रूप से हाइड्रो-इलॆक्ट्रिक पावर उत्पन्न करने के लिए नहीं, बल्कि उस बाढ़ के प्रभाव को कम करने के लिए बनाया जा रहा है जो यैंग्सी नदी में आ जाती है। इसका निर्माण १९९४ में शुरू किया गया और उम्मीद है कि २००९ तक यह पूरा हो जाएगा। कुल मिलाकर, इस विशाल परियोजना में १४७ मिलियन घन मीटर ज़मीन और चट्टान खोदनी पड़ेगी, २५ मिलियन घन मीटर कंक्रीट डालना पड़ेगा और करीब दो मिलियन टन स्टील का इस्तेमाल होगा। “लेकिन, सबसे मुश्किल काम है उन ११ लाख लोगों को दूसरी जगह बसाना जो इस परियोजना से प्रभावित इलाकों में रह रहे हैं,” चाइना टुडे कहती है।
दमा की बीमारी बढ़ रही है
विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्टें दिखाती हैं कि पिछले दशक में दुनिया भर में दमा के फैलाव और उसके कारण अस्पताल में भरती होनेवालों की संख्या में ४० प्रतिशत बढ़ोतरी हुई है। यह बढ़ोतरी क्यों? अमॆरिकन कॉलॆज ऑफ चॆस्ट फिज़िशियन्स के सदस्यों ने बताया कि बहुत ज़्यादा लोग पालतू जानवर रखने लगे हैं, साथ ही आजकल ज़्यादा लोग छोटे-छोटे घरों में रह रहे हैं जिनमें हवा ठीक-से नहीं आती। “जानवरों के रोयें (चमड़ी, बाल या पर), धूल के कीटाणुओं, फफूँदी, सिगरॆट के धूँए, पराग, वातावरण में प्रदूषणकारी तत्त्वों और तेज़ गंध से दमा का दौरा पड़ सकता है,” टोरॉन्टो स्टार कहता है। लेकिन बिल्ली के रोयें से सबसे ज़्यादा एलर्जी होती है। अखबार ने कहा कि दमा खास चिंता का विषय है क्योंकि इसके कारण होनेवाली अधिकतर मौतों को टाला जा सकता है। आज कनाडा में करीब १५ लाख लोग दमा के मरीज़ हैं और यह बीमारी हर साल करीब ५०० लोगों की जान लेती है।
खराब मौसम ने अपूर्व नुकसान किया
सन् १९९८ के पहले ११ महीनों के अंदर दुनिया भर में मौसम-संबंधी विपदाओं के कारण ८९ अरब डॉलर का नुकसान हुआ जो कि एक रिकॉर्ड है। यह नुकसान “१९८० के पूरे दशक में हुए ५५ अरब डॉलर के नुकसान से कहीं ज़्यादा” था, एसोसिएटॆड प्रॆस की एक रिपोर्ट बताती है। रिपोर्ट में कहा गया है: “मुद्रास्फीति का अंतर जोड़ें तो भी दशक १९८० में हुआ नुकसान ८२.७ अरब डॉलर पड़ता है, जो कि [१९९८ के] पहले ११ महीनों के नुकसान से कम है।” माली नुकसान के अलावा, तूफान, बाढ़, आग और सूखे जैसी प्राकृतिक विपदाओं ने तकरीबन ३२,००० लोगों की जानें लीं। वर्ल्ड वॉच संस्थान का सॆथ डन कहता है कि “प्राकृतिक विपदाओं के पीछे मनुष्य का हाथ बढ़ रहा है।” वह कैसे? डन के अनुसार, वन-कटाई ने इस समस्या को बढ़ाया है क्योंकि पेड़ काटने से भूमि उजाड़ हो गयी है और नम भूमि को नुकसान हुआ है, जो पानी सोखने का प्राकृतिक उपाय है।
परिवार तनाव में हैं
कनाडावासियों का एक हालिया सर्वेक्षण इस निष्कर्ष पर पहुँचा है कि आधी सदी पहले, युद्ध-उपरांत परिवारों पर जितना आर्थिक और भावात्मक तनाव था उससे ज़्यादा तनाव आज के परिवार महसूस कर रहे हैं। नैशनल पोस्ट अखबार कहता है कि तलाक और परिवारों का टूटना तनाव के सबसे बड़े कारण हैं। पारिवारिक तनाव के दूसरे प्रमुख कारण हैं “माता-पिता का बहुत ज़्यादा और बहुत देर-देर तक मेहनत करना, नौकरी छूटने का डर, बहुत ज़्यादा कर-भुगतान और बच्चों को पालने-पोसने में माता-पिता जो मेहनत करते हैं उसके लिए कदरदानी की कमी।” सर्वेक्षण में हिस्सा लेनेवालों ने कहा कि अधिकतर एक-जनक परिवारों में ये तनाव और भी ज़्यादा हैं।