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बीज जो सालों बाद फल लाये

फरवरी ८, १९९९ की “सजग होइए!” में छपे “सात बेटों का पालन-पोषण करने की चुनौतियाँ और आशिषें” लेख के बाद निम्नलिखित पत्र मिला।

प्रिय भाई और बहन डिकमन,

मैंने अभी-अभी आपकी कहानी पढ़ी और आपको चिट्ठी लिखने बैठ गयी। सालों पहले [१९६०-६१] मिसिसिपी में आपके परिवार से मेरी जान-पहचान थी। असल में, मैं आपके बेटों के साथ स्कूल में पढ़ती थी और मैं उनके साथ खेलने के लिए अकसर आपके घर आया करती थी। मुझे ये बातें याद तो हैं लेकिन उस छोटी-सी उम्र में भी मुझपर इस बात का सबसे गहरा असर पड़ा कि आपके बेटे अपने मसीही अंतःकरण के कारण स्कूल में झंडे को सलामी नहीं देते थे। हालाँकि मैं ग्रैंडव्यू बैप्टिस्ट चर्च की सदस्य थी, फिर भी जब आपके एक बेटे ने मुझे अपने विश्‍वास के बारे में समझाया तो मैं जान गयी कि वह सही है।

आपके एक बेटे ने मुझे फ्रॉम पैराडाइस लॉस्ट टू पैराडाइस रीगेन्डa पुस्तक दी या फिर शायद मैंने चुरायी होगी। मुझे याद नहीं कि वह मेरे पास कैसे आयी, लेकिन मैंने उसे पहले पन्‍ने से आखिरी पन्‍ने तक पढ़ा। उस समय वह मुझे बस एक अच्छी कहानी की किताब लगी। मुझे इसका एहसास नहीं था कि सच्चाई के बीज बो दिये गये हैं जो सालों तक दबे रहेंगे।

सन्‌ १९६४ में मेरा परिवार उत्तर की ओर चला गया और मैंने गिरजा जाना छोड़ दिया। धर्म में पाखंड देखकर मेरा विश्‍वास उठ गया, इसलिए कई सालों तक मैंने संगठित धर्म से कोई सरोकार नहीं रखा।

सालों बाद, जब मैंने जीवन के उद्देश्‍य के बारे में गंभीरता से सोचना शुरू किया तो मुझे एहसास हुआ कि मैं सृष्टिकर्ता के साथ संबंध बनाना तो चाहती हूँ, लेकिन मैं नहीं चाहती थी कि उस संबंध में धर्म से जुड़े पाखंड हों। सत्य के बीज जो सालों पहले बोये गये थे अब अंकुरित होने लगे थे; सिर्फ मुझे अब तक उसका एहसास नहीं हुआ था।

मैं इस बात को लेकर बड़ी परेशान थी कि मैं स्वर्ग नहीं जाना चाहती थी; मैं यहीं पृथ्वी पर जीना चाहती थी। मुझे लगता था कि यह धरती अपने आपमें एक बहुत बढ़िया रचना है, सो परमेश्‍वर इसे नष्ट क्यों करेगा? मैं यह भी नहीं मानती थी कि यीशु परमेश्‍वर है। यदि वह परमेश्‍वर होता, तो उसका बलिदान एक धोखा होता। इन विचारों, भावनाओं और विश्‍वासों का (यदि इन्हें विश्‍वास कहा जा सकता हो) उन बातों के साथ तालमेल नहीं बिठाया जा सकता था जो मैंने बैप्टिस्ट चर्च में सीखी थीं। सो मैं प्रार्थना करने लगी, मैंने सचमुच प्रार्थना की और यहोवा ने जल्द ही जवाब दिया। दो दिन के अंदर साक्षी मेरे दरवाज़े पर खड़े थे और तुरंत एक बाइबल अध्ययन शुरू हो गया। हालाँकि उस समय से जब आपके घर मेरा आना-जाना था अब तक जब मैंने अध्ययन शुरू किया, यहोवा के साक्षियों के साथ मेरा कोई संपर्क नहीं रहा, फिर भी मैं हमेशा आपके बेटों का और उनके साहस का आदर करती थी कि वे सही बात पर अटल रहे। जब मेरा अध्ययन शुरू हो गया और मैंने ज्ञान लेना शुरू कर दिया तो मुझे सब कुछ समझ आने लगा। अपने जीवन को सही रास्ते पर लाने में मुझे डेढ़ साल लग गये। आखिरकार, सन्‌ १९७५ में मेरा बपतिस्मा हो गया।

जब भी हम इस विषय पर विचार करते हैं कि कैसे अनजाने में ही हमारा आचरण गवाही दे सकता है, तो मैं आपके परिवार के बारे में सोचती हूँ। जब हम राज्य के ढेर सारे बीज बोने के महत्त्व के बारे में चर्चा करते हैं क्योंकि हम नहीं जानते कि कहाँ या कब वह जड़ पकड़ लेगा, तो मुझे खुद के अनुभव से पता होता है कि इस बात में कितनी सच्चाई है।

यहोवा के लोगों के बीच होने और सालों पहले अपने विश्‍वासों पर अडिग रहने के लिए मैं आपको शुक्रिया कहना चाहती हूँ। आपने अनजाने में ही किसी को सच्चाई पाने में मदद की है। आपके और आपके बच्चों के आचरण और पक्के विश्‍वास ने सत्य की ज्योति चमकायी। मुझे लगता था कि मैं कभी पक्की तरह नहीं जान पाऊँगी कि आप लोगों का क्या हुआ और कभी आपको शुक्रिया नहीं कह पाऊँगी। एक बार फिर आपको शुक्रिया कहना चाहती हूँ।

ढेर सारे मसीही प्रेम के साथ,

एल. ओ.

[फुटनोट]

a वॉचटावर बाइबल एण्ड ट्रैक्ट सोसाइटी द्वारा प्रकाशित (१९५८); अब नहीं छपती।

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