युवा लोग पूछते हैं . . .
मम्मी इतनी बीमार क्यों हैं?
ऐल के पिता की मौत कैंसर से हुई।a उसने जैसे-तैसे यह दुःख सह लिया क्योंकि उसे पुनरुत्थान के वादे के बारे में समझाया गया था जो बाइबल करती है। लेकिन जब उसकी माँ को भी कैंसर हो गया तो उसके पाँव तले की ज़मीन खिसक गयी। अब माँ को भी खोने के विचार से ऐल का दिल दहल गया। ‘मेरी ही मम्मी क्यों बीमार हो गयीं?’ वह कुढ़-कुढ़कर अपने आपसे पूछता।
डॉक्टर लॆनर्ड फॆल्डर के अनुसार, “छः करोड़ से ज़्यादा ऐसे अमरीकी हैं जिनके . . . किसी प्रियजन को कोई बीमारी या अपंगता है।” फॆल्डर आगे कहता है: “किसी भी दिन देखें तो चार में से एक अमरीकी कामगार पर बीमार माता या पिता को सँभालने की भी ज़िम्मेदारी है।” यदि आप ऐसी स्थिति में हैं तो आप अकेले नहीं हैं। तौभी, अपने किसी प्रियजन को बीमार होता देखकर डर लगता है और दुःख होता है। आप इसका सामना कैसे कर सकते हैं?
मेरे माता/पिता क्यों बीमार हैं?
नीतिवचन १५:१३ कहता है: “मन के दुःख से आत्मा निराश होती है।” यह बहुत आम बात है कि माता/पिता बीमार हो जाएँ तो भावनाओं का सागर उमड़ पड़ता है। उदाहरण के लिए, आप शायद खुद को अपने माता/पिता की हालत का दोषी समझें। शायद आपकी अपने माता/पिता के साथ ठीक-से न पटती हो। और इस वज़ह से एकाध बार गरमागरम बहस भी हो गयी हो। और अब, जब आपके माता/पिता बीमार हैं तो आपको शायद लगे कि इसके लिए आप ही कसूरवार हैं। लेकिन घर में कलह होने के कारण गंभीर बीमारी शायद ही कभी होती है, हाँ तनाव ज़रूर हो सकता है। तनाव और छोटे-मोटे मतभेद तो प्रेममय मसीही घरानों में भी हो सकते हैं। सो आपको दोष का बोझ उठाये फिरने की ज़रूरत नहीं, मानो अपने माता/पिता की बीमारी के लिए कसूरवार आप हों।
असल में आपके मम्मी या पापा की बीमारी के कसूरवार हमारे पहले माता-पिता, आदम और हव्वा हैं। (रोमियों ५:१२) उस पहले पाप के कारण, “सारी सृष्टि अब तक मिलकर कहरती और पीड़ाओं में पड़ी तड़पती है।”—रोमियों ८:२२.
दुःखदायी भावनाएँ
फिर भी, आप शायद चिंतित और व्याकुल हों। टॆरी की माँ लूपस से पीड़ित हैं। इस बीमारी के बहुत ही दर्दनाक प्रभाव होते हैं। टॆरी बताती है: “जब भी मैं घर से बाहर होती हूँ तो मुझे यह चिंता रहती है कि न जाने मम्मी की तबियत कैसी होगी। मेरे लिए किसी भी बात पर ध्यान लगाना मुश्किल हो जाता है। लेकिन मैं अपनी भावनाएँ अपने तक ही रखती हूँ क्योंकि मैं नहीं चाहती कि मम्मी को चिंता हो।”
नीतिवचन १२:२५ कहता है: “उदास मन दब जाता है।” जो युवा इस स्थिति में होते हैं वे अकसर हताश हो जाते हैं। टॆरी कहती है कि जब उसने देखा कि उसकी माँ छोटे-मोटे काम भी नहीं कर पा रही हैं तो वह बहुत दुःखी हुई। तनाव और भी बढ़ जाता है जब युवाओं पर—खासकर लड़कियों पर—अकसर नयी ज़िम्मेदारियों का बोझ आ गिरता है। प्रोफॆसर ब्रूस कॉमपस के अनुसार, “लड़कियों पर घर की ज़िम्मेदारियों का बोझ आ जाता है, जैसे घरेलू कामकाज और छोटे भाई-बहनों की देखरेख। यह सब उनके बस के बाहर है और उनके सामान्य सामाजिक विकास में बाधा डालता है।” कुछ किशोर दर्द और उदासी भरा संगीत सुनने लगते हैं और अपनी ही दुनिया में खो जाते हैं।—नीतिवचन १८:१.
बहुतों को यह डर भी होता है कि कहीं उनके माता/पिता मर न जाएँ। टॆरी एकलौती बच्ची है और उसकी माँ अकेले ही उसे पाल-पोस रही है। हर बार जब टॆरी की माँ को अस्पताल जाना पड़ता तो टॆरी इस डर से रोती कि क्या पता माँ वापस आएगी या नहीं। टॆरी कहती है: “सिर्फ हम दोनों थे। मैं अपनी सबसे अच्छी सहेली को खोना नहीं चाहती थी।” मार्था नाम की एक लड़की ने भी यही बात कही: “मैं अठारह साल की हूँ लेकिन अभी-भी मुझे अपने माता-पिता को खोने का डर रहता है। उनके बिना अकेलापन मुझे काटने को दौड़ेगा।” माता/पिता बीमार हों तो बहुत-से युवाओं को ठीक-से नींद नहीं आती, बुरे-बुरे सपने आते हैं और भोजन-संबंधी विकार हो जाते हैं।
क्या कर सकते हैं आप
चाहे आज स्थिति बहुत कठिन लग रही हो, तो भी आप उससे निपट सकते हैं! सबसे पहले अपने माता-पिता से अपने डर और चिंताओं के बारे में बात कीजिए। आपके माता/पिता की हालत कितनी खराब है? उनके ठीक होने की कितनी संभावना है? यदि आपके माता/पिता की हालत नहीं सुधरी तो आपकी देखरेख के लिए क्या प्रबंध किये गये हैं? हालाँकि माता-पिता के लिए ऐसे विषयों पर बात करना मुश्किल होता है, फिर भी यदि आप शांति से और आदर के साथ उनकी मदद माँगें तो शायद वे आपकी मदद करने और आपको सहारा देने की पूरी कोशिश करें।
अपनी सकारात्मक भावनाएँ भी बताइए। ऐल याद करता है कि जब उसे पता चला कि उसकी माँ को कैंसर है तो वह ऐसा करने से चूक गया। वह कहता है: “मैंने उन्हें नहीं बताया कि मैं उनसे कितना प्यार करता हूँ। मैं जानता था कि वह मेरे मुँह से यह सुनना चाहती हैं, लेकिन एक किशोर होने के नाते मुझे उनको इस तरह की भावनाएँ बताने में अजीब-सा लगा। कुछ ही समय बाद उनकी मौत हो गयी और अब मैं अपने आपको दोष देता हूँ क्योंकि जब मेरे पास मौका था तब मैंने उसका फायदा नहीं उठाया। मुझे इसलिए अफसोस होता है क्योंकि वह मेरी ज़िंदगी में सबसे ज़्यादा मायने रखती थीं।” अपने माता-पिता को यह बताने में संकोच मत कीजिए कि आप उनसे कितना प्रेम करते हैं।
हो सके तो अपने माता/पिता की बीमारी के बारे में जानकारी बटोरिए। (नीतिवचन १८:१५) शायद आप लोगों का डॉक्टर इस संबंध में आपकी मदद कर सके। अच्छी जानकारी रखने से आपको ज़्यादा हमदर्दी दिखाने, धीरज धरने और दुःख बाँटने में मदद मिलेगी। और आगे चलकर आपके माता/पिता में कोई शारीरिक बदलाव आये जैसे दाग, बाल झड़ना या थकान, तो आप उसके लिए तैयार हो सकेंगे।
क्या आपके माता/पिता अस्पताल में हैं? तो उनसे मुलाकात करते समय खुशी और प्रोत्साहन देनेवाला माहौल बनाइए। जितना हो सके बातचीत को सकारात्मक रखिए। अपने स्कूल के काम और मसीही गतिविधियों के बारे में बात कीजिए। (नीतिवचन २५:२५ से तुलना कीजिए।) यदि आप ऐसे देश में रहते हैं जहाँ रिश्तेदारों को मरीज़ के लिए खाना ले जाना और उनके दूसरे काम करने पड़ते हैं तो बिना कुड़कुड़ाए अपने हिस्से का काम कीजिए। साफ-सुथरे और अच्छी तरह तैयार होकर मिलने जाएँगे तो न सिर्फ आपके माता/पिता को अच्छा लगेगा बल्कि अस्पताल के कर्मचारियों और डॉक्टरों पर भी अच्छा प्रभाव पड़ेगा। इस कारण वे शायद आपके माता/पिता का ज़्यादा ध्यान रखने लगें।b
क्या आपके माता/पिता बीमार हालत में घर पर ही हैं? तो उनकी देखभाल में पूरी मदद दीजिए। घरेलू कामों में थोड़ा-बहुत हाथ बँटाने के लिए खुशी से आगे बढ़िए। ‘बिना उलाहना दिए उदारता से’ त्याग करने के द्वारा यहोवा की नकल करने की कोशिश कीजिए। (याकूब १:५) सहनशील, आशावादी और सकारात्मक भावना दिखाने की पूरी कोशिश कीजिए।
हाँ, आपको स्कूल का काम भी करना है। उसके लिए समय अलग रखने की कोशिश कीजिए क्योंकि आपकी शिक्षा भी ज़रूरी है। हो सके तो आराम और मनोरंजन के लिए भी कुछ समय बचाइए। (सभोपदेशक ४:६) इससे आपको ताज़गी मिलेगी और आप ज़्यादा अच्छी तरह अपने माता/पिता की मदद कर पाएँगे। और हाँ, अपने आपको अकेला मत पड़ने दीजिए। कलीसिया के भाई-बहन जो सहारा देते हैं उसका फायदा उठाइए। (गलतियों ६:२) टॆरी कहती है: “कलीसिया मेरा परिवार बन गया। प्राचीन मुझसे बात करने और मेरी हिम्मत बढ़ाने के लिए हमेशा तैयार रहते थे। यह बात मैं कभी नहीं भूलूँगी।”
अपना आध्यात्मिक संतुलन बनाए रखिए
सबसे महत्त्वपूर्ण बात है अपना आध्यात्मिक संतुलन बनाये रखना। अपने आपको आध्यात्मिक कामों में व्यस्त रखिए, जैसे बाइबल का अध्ययन करना, सभाओं में उपस्थित होना और प्रचार करना। (१ कुरिन्थियों १५:५८) गर्मियों के महीनों में, टॆरी सहयोगी पायनियर के तौर पर सुसमाचार प्रचार के काम में ज़्यादा हिस्सा लेती। वह कहती है: “मम्मी हमेशा मुझे प्रोत्साहन देतीं कि राज्यगृह की सभाओं के लिए तैयारी करूँ और उनमें उपस्थित होऊँ। उससे हम दोनों को फायदा होता। क्योंकि मम्मी चाहते हुए भी हर सभा में उपस्थित नहीं हो पाती थीं, सो मैं सभा में ज़्यादा ध्यान लगाती थी ताकि बाद में उन्हें बता सकूँ। जब वह खुद नहीं जा पाती थीं तब वह आध्यात्मिक भोजन के लिए मुझ पर निर्भर रहती थीं।”
द न्यू यॉर्क टाइम्स के एक लेख ने बड़ी अच्छी तरह इन बातों का सार दिया जब उसने एक समाज-सेविका के बारे में बताया जो “हर बार यह देखकर हैरान रह जाती है कि माता-पिता की बीमारी के बावजूद बच्चे कितने प्रौढ़ हो सकते और यहाँ तक कि कितनी उन्नति कर सकते हैं।” वह कहती है: “उनकी कुछ ऐसी प्रतिभाएँ सामने आती हैं जो उनको पता भी नहीं थीं कि उनके पास हैं . . . यदि वे इस दुःख को पार कर सकते हैं तो वे कई समस्याओं को भी पार कर सकते हैं।”
आप भी इस मुश्किल दौर को पार कर सकते हैं। उदाहरण के लिए, टॆरी की माँ अब काफी ठीक हैं और वह खुद को सँभाल लेती हैं। शायद कुछ समय बाद आपके माता/पिता भी ठीक हो जाएँगे। लेकिन इस बीच, यह मत भूलिए कि आपके पास अपने स्वर्गीय मित्र, यहोवा का सहारा है। वह ‘प्रार्थना का सुननेवाला’ है और मदद के लिए आपकी पुकार सुनेगा। (भजन ६५:२) वह आपको—और परमेश्वर का भय रखनेवाले आपके माता/पिता को—“असीम सामर्थ” देगा ताकि आप मुश्किलों का सामना कर सकें।—२ कुरिन्थियों ४:७; भजन ४१:३.
[फुटनोट]
a कुछ नाम बदल दिये गये हैं।
b सजग होइए! के मई ८, १९९१ अँग्रेज़ी अंक में लेख “मरीज़ से मुलाकात—कैसे करें मदद” कई व्यावहारिक सुझाव देता है।
[पेज 23 पर बड़े अक्षरों में लेख की खास बात]
“जब भी मैं घर से बाहर होती हूँ तो मुझे यह चिंता रहती है कि न जाने मम्मी की तबियत कैसी होगी”
[पेज 24 पर तसवीर]
अपने माता/पिता की बीमारी के बारे में जानकारी लेने से आप ज़्यादा अच्छी तरह उनकी मदद कर सकेंगे