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सजग होइए!–2012
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जब किसी बच्चे को कैंसर हो

“मेरे पैरों तले ज़मीन खिसक गयी। मेरी आँखों के आगे अँधेरा छा गया। मेरा कलेजा फटने लगा, मुझे ऐसा लग रहा था जैसे मुझे अपनी नन्ही गुड़िया की मौत की खबर मिली हो।”—ज़ाइलटॉन, जब उसे पता चला कि उसकी बेटी को कैंसर है।

किसी भी माता-पिता के लिए यह दुख बरदाश्‍त करना आसान नहीं कि उनके बच्चे को कैंसर है। एक अनचाहा डर उन्हें अंदर-ही-अंदर खाए जाता है। दुनिया-भर में कितने बच्चे इस दर्दनाक बीमारी की चपेट में हैं? कैंसर के खिलाफ लड़नेवाले एक अंतर्राष्ट्रीय संघ के मुताबिक “बड़ों के मुकाबले बच्चों में कैंसर बहुत कम पाया जाता है। लेकिन हर साल [पूरी दुनिया में] 1,60,000 बच्चों में इस बीमारी का पता चलता है। और अमीर देशों में तो दुर्घटना के बाद यह बीमारी बच्चों की मौत की दूसरी सबसे बड़ी वजह है।” मिसाल के लिए, ब्राज़ील के नैशनल इंस्टीट्यूट ऑफ कैंसर के मुताबिक उस देश में “हर साल बच्चों में कैंसर के करीब 9,000 नए मामले सामने आते हैं।”

कैंसर से पीड़ित बच्चों पर लिखी एक किताब कहती है, “इसमें कोई शक नहीं कि जब परिवार में किसी बच्चे को कैंसर होता है तो घर के सभी लोगों को गहरा सदमा पहुँचता है।” बीमारी का पता चलने पर शायद बच्चे को ऑपरेशन, कीमोथेरेपी या रेडिएशन या दोनों करवाना पड़े, और इनके साइड इफेक्ट्‌स झेलने पड़ें। अपने बच्चे को इतनी तकलीफ में देखकर माँ-बाप के दिल में डर, दुख और गुस्से जैसी कई भावनाएँ उठती हैं। कभी वे उसकी हालत के लिए खुद को दोष देते हैं, तो कभी यह मानने को तैयार नहीं होते कि उसे इतनी भयानक बीमारी है। माता-पिता इस दर्द-भरे दौर का सामना कैसे कर सकते हैं?

इस बात को नकारा नहीं जा सकता कि माता-पिताओं को सबसे बड़ी मदद, परवाह दिखानेवाले डॉक्टरों से मिलती है। न्यू यॉर्क का एक डॉक्टर जिसने कैंसर के कई मरीज़ों का इलाज किया है, कहता है: “डॉक्टर बीमारी के बारे में सही-सही जानकारी दे सकते हैं, जिससे परिवारवालों की उम्मीद बँधती है। साथ ही, वे समझा सकते हैं कि इलाज से मरीज़ को क्या-क्या साइड इफेक्ट्‌स हो सकते हैं। इस जानकारी से परिवार के लोगों के लिए शायद हालात का सामना करना थोड़ा आसान हो जाए।” इसके अलावा, उन माता-पिताओं से भी काफी मदद मिल सकती है जिनके बच्चे को एक समय पर कैंसर था। इसी बात को ध्यान में रखते हुए सजग होइए! ने ब्राज़ील में रहनेवाले तीन परिवारों का इंटरव्यू लिया।

● ज़ाइलटॉन और नेआ “हमारी बच्ची ढाई साल की थी जब हमें पता चला कि उसे एक्यूट लिम्फोब्लास्टिक ल्यूकीमिया (एक तरह का ब्लड कैंसर) है।”

इलाज कितने समय तक चला?

“उसे करीब ढाई साल तक कीमोथेरेपी करानी पड़ी।”

इलाज की वजह से आपकी बेटी को क्या-क्या साइड इफेक्ट्‌स हुए?

“वह बार-बार उलटी करती थी, उसके बाल झड़ गए और उसके दाँतों की ऊपरी परत काली पड़ गयी। इस दौरान उसे तीन बार निमोनिया भी हुआ।”

उसकी हालत देखकर आपको कैसा लगता था?

“शुरू-शुरू में हम बहुत डर गए, हमें लगा कि वह नहीं बचेगी। लेकिन जब हमने देखा कि इलाज से धीरे-धीरे उसकी सेहत में सुधार आ रहा है, तो हमें यकीन होने लगा कि वह ठीक हो जाएगी। अब वह नौ साल की होनेवाली है।”

किन बातों ने आपको इस मुश्‍किल घड़ी का सामना करने में मदद दी?

“इसमें कोई शक नहीं कि यहोवा परमेश्‍वर पर भरोसा रखने से हमें बहुत मदद मिली। जैसा कि बाइबल में 2 कुरिंथियों 1:3, 4 में लिखा है, ‘परमेश्‍वर ने हमारी सब दुख-तकलीफों में हमें दिलासा दिया।’ हमारे मसीही भाई-बहनों ने भी हमें बहुत सहारा दिया। वे हमारा हौसला बढ़ाने के लिए हमें खत लिखते थे, फोन करते थे, हमारे साथ और हमारे लिए प्रार्थना करते थे, यहाँ तक कि उन्होंने हमें पैसों से भी मदद दी। बीच में जब हमें अपनी बेटी को इलाज के लिए दूसरे राज्य के एक अस्पताल में ले जाना पड़ा, तो वहाँ के साक्षियों ने हमें अपने घर में ठहराया। वे सब बारी-बारी से हमें अस्पताल ले जाते थे। हम उनके कितने एहसानमंद हैं, इसे शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता।”

● लूई और फाबियाना “सन्‌ 1992 में हमें पता चला कि हमारी बेटी को एक तरह का अंडाशय का कैंसर है, जो बहुत कम लोगों में पाया जाता है और जो बहुत तेज़ी से फैलता है। हमारी बेटी उस वक्‍त 11 साल की थी।”

जब आपको यह पता चला तो आपको कैसा लगा?

“हमें अपने कानों पर यकीन नहीं हुआ। हम यह मानने को तैयार नहीं थे कि हमारी फूल-सी बच्ची को कैंसर है।”

उसका इलाज किस तरह किया गया?

“उसका ऑपरेशन हुआ और फिर उसे कीमोथेरेपी दी गयी। इस बीच उसे दो बार निमोनिया हुआ। दूसरी बार तो वह मरते-मरते बची। फिर उसके खून में प्लेटलेट की कमी हो गयी, जिसकी वजह से उसकी त्वचा और नाक से कभी-भी खून बहने लगता था। दवाइयों से कुछ हद तक इस पर काबू पाया जा सका। अपनी बच्ची को इतना कुछ सहते देख हम पूरी तरह पस्त हो गए और हमारे अंदर सोचने-समझने की ताकत ही नहीं रही।”

इलाज कितने समय तक चला?

“बायोप्सी से लेकर कीमोथेरेपी के आखिरी चरण तक करीब छ: महीने का समय लगा।”

जब आपकी बेटी को पता चला कि उसे कैंसर है और उसका इलाज होना है, तो उसे कैसा लगा?

“शुरू-शुरू में उसे पता नहीं था कि उसे क्या बीमारी है। डॉक्टर ने उससे बस इतना कहा, ‘तुम्हारे पेट में एक छोटा-सा गोला बन गया है और हमें उसे निकालना पड़ेगा।’ लेकिन धीरे-धीरे वह समझ गयी कि उसे कोई बड़ी बीमारी है। उसने मुझसे पूछा ‘पापा, क्या मुझे कैंसर है?’ मुझसे जवाब देते नहीं बना।”

अपनी बेटी की यह हालत देखकर आपको कैसा महसूस होता था?

“उस वक्‍त हमारे दिल पर क्या बीती यह हम ही जानते हैं। सोचिए, आपकी नन्ही गुड़िया कीमोथेरेपी के लिए अपनी नस ढूँढ़ने में नर्स की मदद कर रही है, यह देखकर आपको कैसा लगेगा? कभी-कभी मेरे लिए यह सब बरदाश्‍त करना बहुत मुश्‍किल हो जाता था, उस वक्‍त मैं बाथरूम में जाकर फूट-फूटकर रोता और प्रार्थना करता। एक रात तो मैं इतना बेबस हो गया कि मैं यहोवा से प्रार्थना करने लगा कि मेरी बिटिया की जगह मुझे मौत आ जाए।”

किन बातों ने आपको इस हालात का सामना करने में मदद दी?

“सबसे बड़ा सहारा हमें अपने मसीही भाइयों से मिला। कई भाई-बहनों ने तो हमें दूर-दूर से फोन किया। एक भाई को तो मैं कभी नहीं भूल पाऊँगा। उसने फोन पर मुझसे अपनी बाइबल लाने के लिए कहा, फिर उसने बड़े प्यार से भजन की किताब से कुछ आयतें पढ़कर सुनायीं। उस वक्‍त हम अपनी बच्ची के इलाज के सबसे मुश्‍किल दौर से गुज़र रहे थे और भाई ने जो आयतें पढ़ीं, मुझे और मेरी पत्नी को उसी की ज़रूरत थी।”

● रोज़ीमेरी “मेरी बेटी चार साल की थी जब हमें पता चला कि उसे एक किस्म का ब्लड कैंसर है।”

जब आपको यह पता चला तो आपको कैसा लगा?

“मुझे विश्‍वास ही नहीं हुआ। मैं रात-दिन रो-रोकर परमेश्‍वर से मदद की भीख माँगती रही। मेरी बड़ी बेटी अपनी बहन को बीमार देखकर इतनी दुखी हो गयी कि मुझे उसे अपनी नानी के घर भेजना पड़ा।”

इलाज की वजह से आपकी बेटी को क्या-क्या साइड इफेक्ट्‌स हुए?

“उसे हर दिन कीमोथेरेपी के लिए जाना पड़ता था। इस वजह से उसके शरीर में खून की कमी हो गयी, तब डॉक्टरों ने खून बढ़ाने के लिए उसे आयरन की दवाइयाँ और एरिथ्रोपोइटिन दिया। हमारी यह चिंता हमेशा बनी रहती थी कि कहीं उसके शरीर में खून की कमी न हो गयी हो। इसके अलावा मेरी बेटी को दौरे भी पड़ते थे।”

इलाज कितने समय तक चला?

“उसे लगातार दो साल और चार महीने तक कीमोथेरेपी करानी पड़ी। इस दौरान उसके सारे बाल झड़ गए और उसका वज़न भी काफी बढ़ गया। लेकिन एक बात ने उसे अपनी बीमारी का सामना करने में बहुत मदद दी, वह थी उसकी हँसते-हँसाते रहने की आदत। करीब छ: साल बाद डॉक्टरों ने बताया कि मेरी बेटी पूरी तरह ठीक हो गयी है।”

किन बातों ने आपको इस मुश्‍किल दौर का सामना करने में मदद दी?

“मैं और मेरी बेटी अकसर प्रार्थना करते थे। हम बाइबल में दिए परमेश्‍वर के उन वफादार सेवकों के उदाहरण पर गौर करते थे जो तरह-तरह की परेशानियों से गुज़रे। हमने मत्ती 6:34 में दी यीशु की सलाह को भी दिल से माना कि हमें कल की चिंता करके आज की परेशानी नहीं बढ़ानी चाहिए। संगी मसीहियों ने हमें बहुत सहारा दिया। हमारे जो भाई ‘अस्पताल संपर्क समिति’ के सदस्य हैं, उनसे और डॉक्टरों और नर्सों से भी हमें काफी मदद मिली जो आए दिन इस तरह के हालात का सामना करते हैं।”

क्या आप किसी बच्चे को जानते हैं जिसे कैंसर है? या क्या आपके परिवार में ही किसी बच्चे को यह बीमारी है? अगर हाँ, तो हम उम्मीद करते हैं कि इन इंटरव्यू से आप समझ गए होंगे कि आपका दुख महसूस करना गलत नहीं है। बाइबल भी कहती है “रोने का समय” होता है। (सभोपदेशक 3:4) सबसे बढ़कर इस बात का भरोसा रखिए कि सच्चा परमेश्‍वर यहोवा, जिसे ‘प्रार्थना का सुननेवाला’ कहा गया है, वह उन सभी लोगों को दिलासा देता है जो सच्चे दिल से उसे पुकारते हैं।—भजन 65:2. (g11-E 05)

[पेज 23 पर बक्स]

दिलासा देनेवाले बाइबल के वचन

‘अगले दिन की चिंता न करना, क्योंकि अगले दिन की अपनी ही चिंताएँ होंगी। आज के लिए आज की मुसीबत काफी है।’—मत्ती 6:34.

“हमारे प्रभु यीशु मसीह का परमेश्‍वर और पिता धन्य हो। वह कोमल दया का पिता है और हर तरह का दिलासा देनेवाला परमेश्‍वर है। वह हमारी सब दुःख-तकलीफों में हमें दिलासा देता है।”—2 कुरिंथियों 1:3, 4.

“किसी भी बात को लेकर चिंता मत करो, मगर हर बात में प्रार्थना और मिन्‍नतों और धन्यवाद के साथ अपनी बिनतियाँ परमेश्‍वर को बताते रहो। और परमेश्‍वर की वह शांति जो हमारी समझने की शक्‍ति से कहीं ऊपर है, मसीह यीशु के ज़रिए तुम्हारे दिल के साथ-साथ तुम्हारे दिमाग की सोचने-समझने की ताकत की हिफाज़त करेगी।”—फिलिप्पियों 4:6, 7.

“तुम अपनी सारी चिंताओं का बोझ [परमेश्‍वर] पर डाल दो, क्योंकि उसे तुम्हारी परवाह है।”—1 पतरस 5:7.

[पेज 24 पर बक्स/तसवीर]

एक प्यार-भरा इंतज़ाम

यहोवा के साक्षियों के लिए ‘अस्पताल संपर्क समितियाँ’ इसलिए बनायी गयी हैं ताकि डॉक्टर और मरीज़ एक-दूसरे को सहयोग दे सकें। यहोवा के साक्षी बाइबल की यह आज्ञा मानते हैं: ‘लहू से दूर रहो।’ (प्रेषितों 15:20) इलाज के दौरान उनकी इस इच्छा की कदर की जाए और उन्हें अच्छे-से-अच्छा इलाज मिले, इसके लिए ‘अस्पताल संपर्क समितियाँ’ काबिल डॉक्टर ढूँढ़ने में उनकी मदद करती हैं।

[पेज 23 पर तसवीर]

नेआ, स्टेफनी और ज़ाइलटॉन

[पेज 23 पर तसवीर]

लूई, आलीन और फाबियाना

[पेज 23 पर तसवीर]

आलीन और रोज़ीमेरी

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