बाइबल किसने लिखा?
“बाइबल खंडनों से भरी है,” संशयशील लोग दावा करते हैं। “इसके अतिरिक्त, इसमें मानवी तत्त्वज्ञान है। इसलिए, कोई बाइबल को जीवन में एक विश्वासयोग्य मार्गदर्शक के तौर से कैसे स्वीकार कर सकता है?”
क्या आप संशयशील व्यक्तियों के दृष्टिकोण से सहमत हैं कि बाइबल दोषपूर्ण मानवी विचारणा व्यक्त करनेवाली किताब के अलावा और कुछ नहीं? कुछेक पादरी सहमत हैं। मृत स्विस प्रोटेस्टेन्ट धर्ममिमांसक कार्ल बार्थ ने अपनी कर्कलीख़ डॉगमाटिक (चर्च धर्मराद्धांतशास्त्र) में लिखा: “वैसे देखा जाए तो भविष्यद्वक्ताओं और प्रेरितों को बोलने और लिखने में ग़लती कर सकने की क्षमता थी।” यह सच है कि एक से ज़्यादा बाइबल लेखक द्वारा लिखी गयी घटना के वृत्तांत में शब्द-चयन में भिन्नता पायी जा सकती है। और ऐसे कथन पाए जा सकते हैं जो, बाहरी तौर पर, बाइबल में अन्य जगह पाए गए कथनों से पूर्ण रूप से अलग प्रतीत होते हैं। पर क्या ये सचमुच खंडन हैं? क्या बाइबल केवल मनुष्यों का उत्पादन है? वास्तव में, बाइबल किसने लिखा?
जवाब सरल है: “भक्त जन परमेश्वर की ओर से बोलते थे।” पर वे कैसे जानते थे कि क्या बोलना है और क्या लिखना है? अभी उद्धृत किए गए आदमी, प्रेरित शिमोन पतरस, आगे जाकर समझाता है कि वे “पवित्र आत्मा के द्वारा उभारे जाकर” बोलते थे।—२ पतरस १:२१.
यह एक वास्तविकता है कि बाइबल बार-बार ज़ोर देती है कि वह “परमेश्वर का वचन” है। केवल भजन११९ के १७६ आयतों में ही, इस मुद्दे की ओर १७६ बार इशारा किया गया है! जो बात इसे अर्थपूर्ण बनाती है, यह है कि लेखक साधारणतः इस में दिलचस्पी रखते हैं कि सब जान लें कि उन्होंने अमुक चीज़ लिखी है। लेकिन जिन आदमियों ने बाइबल लिखा, उन्होंने इस बात में दिलचस्पी नहीं रखी। सारा सम्मान परमेश्वर को देना था। यह उसकी किताब थी, उनकी नहीं।—१ थिस्सलुनीकियों २:१३; २ शमूएल २३:२.
‘पवित्र आत्मा के द्वारा उभारे गए”—कैसे?
ये आदमी “पवित्र आत्मा के द्वारा” कैसे ‘उभारे गए?’ पहले-शतकीय मसीही तीमुथियुस को लिखी चिट्ठी जवाब देती है: “सारा पवित्रशास्त्र परमेश्वर की प्रेरणा से रचा गया है।” “परमेश्वर की प्रेरणा से,” ये शब्द बाइबल के यूनानी मूलपाठ के मौलिक शब्द थी·ओʹनू·स्टोस का अनुवाद हैं, जिसका मतलब अक्षरशः है “परमेश्वर-उच्छ्वसित।” परमेश्वर ने अपनी अदृश्य सक्रिय शक्ति—अपनी पवित्र आत्मा—अपने विचारों को लेखकों के मन में “उच्छ्वसित” करने के लिए इस्तेमाल की। इस प्रकार, यहोवा परमेश्वर बाइबल का स्रोत और उत्पादक है। उसके विचारों ने लेखन को उसी तरह निर्दिष्ट किया, जैसे कोई व्यापारी अपने लिए पत्र लिखवाने के लिए एक सचिव को इस्तेमाल करता है।—२ तीमुथियुस ३:१६, न्यू.व.
और, “परमेश्वर-उच्छ्वसित,” इस धारणा का समानांतर बाइबलीय अभिव्यक्ति ‘पवित्र आत्मा के द्वारा उभारा जाना,’ इस में पाया जा सकता है। यह कैसे? ‘उभारा जाना,’ यूनानी भाषा में नौकाओं का ज़िक्र करने में इस्तेमाल किया जाता है, जो किसी निश्चित जल-मार्ग पर हवा से ढकेले जाते हैं। (तुलना प्रेरितों के काम २७:१५, १७ से करें) इस प्रकार, जैसे कोई हवा चलती है और एक पाल-नौका को ढकेलती है, वैसे ही बाइबल लेखक परमेश्वर के प्रभाव के अधीन, जैसे उसने उन पर ‘उच्छ्वसन किया,’ उसकी पवित्र आत्मा के द्वारा उभारे जाकर, सोचते थे, बोलते थे, और लिखा करते थे।
परमेश्वर द्वारा लिखने के लिए इस्तेमाल किए गए आदमी
हमें बाइबल लेखकों के विषय बस थोड़े ही आत्मकथनात्मक बातें मालूम है। खुद को बड़ा महत्त्वपूर्ण समझना तो दूर, उन्होंने हमेशा खुद को पृष्ठभूमि में रखने से परमेश्वर को सम्मान देने का प्रयत्न किया। परंतु, हम यह ज़रूर जानते हैं कि उन में सरकारी अधिकारी, न्यायाधीश, भविष्यद्वक्ता, राजा, चरवाहे, किसान, और मछुए सम्मिलित थे—कुल मिलाकर कुछ ४० आदमी। इस प्रकार, बाइबल हालाँकि परमेश्वर से एक संदेश है, उस में मानवी प्रभाव की हार्दिकता, विविधता, और खिंचाव है।
अनेक बाइबल लेखक एक दूसरे को जानते तक न थे। वे अलग-अलग शतकों में ज़िंदा थे और सामाजिक व शैक्षिक पृष्ठाधार के साथ-साथ, स्वभाव तथा अनुभव में भी बिल्कुल ही अलग थे। फिर भी, चाहे वे बूढ़े थे या जवान, उनकी लिखाई पूर्ण एकता दिखाती है। कुछ १,६०० वर्षों की अवधि के दौरान, जब तक किताब ख़त्म न हुई, वे लिखते रहे। एक ध्यानयुक्त जाँच के बाद, आप पाएँगे कि बाइबल के कथन एक उल्लेखनीय ताल-मेल प्रतिबिंबित करते हैं। बाइबल इस प्रकार एक ही रचयिता के मन को दुहराती है, हालाँकि अनेक लेखक इस्तेमाल किए गए थे।
क्या यह हमें इस असाधारण किताब, बाइबल, को “साधारण से ज़्यादा मन लगाना न चाहिए?” क्या हमें पतरस के समान निष्कर्ष पर पहुँच सकना नहीं चाहिए, जिस ने लिखा: “ये सारी बातें हमारे लिए भविष्यद्वक्ताओं का संदेश प्रमाणित करते हैं, जिस की ओर ध्यान देना तुम्हारे लिए अच्छा होगा, इसलिए कि यह एक अँधेरे जगह में जलते दीए के समान है”?—इब्रानियों २:१; २ पतरस १:१९, द न्यू इंग्लिश बाइबल.
पर अब, इस दावे का क्या, कि बाइबल खुद को खंडती है? क्या वह ऐसा करती है? आप कैसे जवाब देंगे?
[पेज 4 पर बक्स]
“कितनी शानदार किताब! मेरे लिए उसकी अंतर्वस्तु से ज़्यादा अनोखा, उसकी अभिव्यक्ति का ढंग है, जहाँ शब्द लगभग एक प्राकृतिक उत्पादन, एक पेड़ जैसा, एक फूल जैसा, समुंदर जैसा, तारों जैसा, स्वयं मानव जैसा, बन जाता है। यह अंकुरित होता है, यह बहता है, यह चमकता है, यह हँसता है, न जाने कैसे, न जाने क्यों, हर बात इतनी पूरी तरह प्राकृतिक पायी जाती है। यह सचमुच परमेश्वर का वचन है, दूसरे किताबों के वैषम्य में, जो केवल मानवी बुद्धि के पक्ष में गवाही देती हैं।”—बाइबल के बारे में १९वें शतक के जर्मन कवि और पत्रकार, हाइनरिख़ हाइन, की टिप्पणी।
[पेज 4 पर तसवीरें]
जैसे हवा पाल-नौकाओं को ढकेलती है, वैसे बाइबल लेखक ‘परमेश्वर की पवित्र आत्मा के द्वारा उभारे गए’