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  • उसके पदचिह्नों पर चलने की चुनौती

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  • उसके पदचिह्नों पर चलने की चुनौती
  • प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1989
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उसके पदचिह्नों पर चलने की चुनौती

“क्योंकि मसीह ने तुम्हारे लिए दुःख उठाया और तुम्हें एक निजी आदर्श छोड़ गया, ताकि तुम उसके पदचिह्नों पर चलो।”​—१ पतरस २:२१; फिल्लिप्स.

१, २. (अ) कौनसी बात एक असली चुनौती हो सकती है, और यह मसीहियों के लिए दिलचस्पी की बात क्यों हैं? (ब) कौनसे प्रश्‍न यहाँ पूछे गए हैं?

क्या तुम कभी किसी रेतीले समुद्र-तट पर या किसी बर्फीले खेत में से गुज़रे हो और खुद को अपने पहले वहाँ पर चलनेवाले के पदचिह्नों के आकार से मंत्रमुग्ध पाया? क्या तुमने, शायद पदचिह्नों का एक सेट चुनकर, उन पर चलने की कोशिश की है, अपने पदचिह्न उनके साथ जितना संभव हो, उतना ठीक-ठीक जोड़ने का प्रयत्न किया है? अगर ऐसा किया हो, तो तुमने जाना कि यह आसान बात नहीं। दरअसल, किसी दूसरे के पदचिह्नों पर यथार्थता से चलना​—वास्तविक रूप से या फिर प्रतीकात्मक रीति से​—एक असली चुनौती है। और फिर भी, अपने आप को मसीही कहलाकर, हमने वही करने, यानी, मसीह के पदचिह्नों पर यथार्थता से चलने की हमारी इच्छा प्रकट की है।

२ क्या तुम वह प्रयत्न करने के लिए तैयार हो, जो इस चुनौती का सफलतापूर्वक सामना करने के लिए आवश्‍यक है? उस से ज़्यादा, क्या तुम ऐसा करने के लिए दृढ़निश्‍चित हो, चाहे जो हो? अगर ऐसा हो, तो वास्तविक पदचिह्नों पर चलने की कठिनाइयों को पूरी तरह समझ लेना, तुम्हें मसीह के प्रतीकात्मक पदचिह्नों पर चलने में ज़्यादा सफल बनाएगा।

अनुरूप होना सीखें

३. किसी दूसरे के पदचिह्नों पर चलना पहले अस्वाभाविक क्यों लगता है?

३ हर किसी का चलने का एक विशिष्ट ढंग होता है। उदाहरणार्थ, डग की लंबाई व्यक्‍ति व्यक्‍ति में अलग होती है, उसी तरह जैसे व्यक्‍ति व्यक्‍ति में अपने पैर रखने का कोण अलग होता है। उसकी पैर की अँगुलियाँ सीधे आगे की ओर इशारा करते होंगे, या वे किसी कोण से अन्दर या बाहर की ओर बैठते होंगे, संभवतः एक ऐसा कोण जो एक पैर से ज़्यादा दूसरे पैर में अधिक सुस्पष्ट हो। क्या आप इस चुनौती को पहचान सकते हैं? किसी दूसरे के पदचिह्नों पर यथार्थता से चलने के लिए, तुम्हें उसकी डग की लंबाई और पैर की स्थिति के साथ अपनी डग की लंबाई और पैर की स्थिति को अनुरूप करना चाहिए। पहले पहले यह अस्वाभाविक लगेगा, पर इसे करना ही चाहिए। और कोई रास्ता नहीं।

४. यीशु के पदचिह्नों पर चलना एक विशेष चुनौती क्यों है?

४ मसीह के चलने का ढंग, प्रतीकात्मक रूप से, अनुपम था, इसलिए कि उसके समसामयिक व्यक्‍तियों के बीच केवल वही एक सिद्ध मनुष्य था, ऐसा व्यक्‍ति “जो पाप से अज्ञात था।” (२ कुरिन्थियों ५:२१) चूँकि मनुष्य स्वभाव से ही असिद्ध पापी हैं, यीशु के पदचिह्नों पर चलना उनके चलने का साधारण तरीका नहीं है। पौलुस ने कुरिन्थ में मसीहियों को इसके विषय यह कहकर याद दिलाया कि: “क्योंकि अब तक शारीरिक हो। इसलिए कि जब तुम मे डाह और झगड़ा है, तो क्या तुम शारीरिक नहीं, और मनुष्य की रीति पर नहीं चलते?” डाह और झगड़ों की ओर प्रवृत्तियाँ, “शरीर के काम,” असिद्ध लोगों के लिए साधारण है, लेकिन यीशु प्रेम की राह पर चला, और “प्रेम डाह नहीं करता, . . . झुँझलाता नहीं।” इस प्रकार यदि हमें बस किसी असिद्ध व्यक्‍ति के पदचिह्नों पर चलने को कहा गया, तो इतनी बड़ी चुनौती प्रस्तुत न होती, जितना कि मसीह के पदचिह्नों पर चलने से प्रस्तुत होती है।​—१ कुरिन्थियों ३:३; १३:४, ५; गलतियों ५:१९, २०; इफिसियों ५:२, ८ भी देखें.

५, ६. (अ) अनेक लोग यीशु के पदचिह्नों पर चलने में असफल क्यों हुए हैं, जिसके परिणामस्वरूप पौलुस कौनसी सलाह देने तक प्रेरित हुआ? (ब) आज लोगों को मसीह के पदचिह्नों पर चलने के लिए कैसे प्रोत्साहित किया जा रहा है, और इस से उनको क्या परिणाम हुए हैं?

५ असिद्धता के अलावा, परमेश्‍वर की इच्छा के विषय अज्ञात रहना भी किसी व्यक्‍ति को मसीह के पदचिह्नों पर चलने से रोक सकता है। इसलिए पौलुस ने इफिसुस के मसीहियों को झिड़की दी, कि “जैसे अन्यजातीय लोग अपने मन की अनर्थ रीति पर चलते हैं,” उस तरह से न चले, “क्योंकि उनकी बुद्धि अंधेरी हो गई है और उस अज्ञानता के कारण जो उन में है और उनके मन की कठोरता के कारण वे परमेश्‍वर के जीवन से अलग किए हुए हैं।”​—इफिसियों ४:१७, १८.

६ राज्य प्रचार कार्य के ज़रिए, लोगों को आज उनके चलने की सामान्य रीति, जो कि परमेश्‍वर के उद्देश्‍यों के विषय अज्ञात, बुद्धि के अंधेरे में, अलाभकर लक्ष्यों की खोज में कठोर मन से प्रवृत्त है, उससे चलना बंद करने को प्रेरित किया जा रहा है। उन्हें मसीह के सिद्ध उदाहरण के अनुरूप होने, ‘उसी में चलते रहने,’ और इस प्रकार “हर एक भावना को क़ैद करके मसीह का आज्ञाकारी बना” देने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है। (कुलुस्सियों २:६, ७; २ कुरिन्थियों १०:५) इस चुनौती का सफलतापूर्वक सामना करने के इच्छुक लोग विश्‍वास में दृढ़ किए जाते हैं। जैसे जैसे वे उस रीति से चलने के आदी होते हैं, जिस तरह मसीह चलता था, यह उनके लिए उन्‍नतिशील रीति से अधिक आसान बनता है।

७. हमें कौनसा आश्‍वासन दिया गया है, कि हालाँकि यह अक़्सर एक चुनौती होती है, यीशु के पदचिह्नों पर चलना संभव बात है?

७ परंतु, यह अक़्सर एक चुनौती है। एक सिद्ध मनुष्य और एक असिद्ध मनुष्य के बीच की असमानता बहुत बड़ी है। तो एक सिद्ध उदाहरण का अनुकरण करने की कोशिश करने के उद्देश्‍य से असिद्ध मनुष्यों को बड़े परिवर्तन करने पड़ते हैं। कुछ लोग, शायद विरासत या वातावरण की वजह से, एक मसीही जीवनक्रम के अनुरूप होना दूसरों से ज़्यादा कठिन पाते हैं। लेकिन यहोवा हमें आश्‍वासन देता है कि जो कोई अपना बल लगाने के लिए तैयार है, वह ऐसा कर सकता है। “जो मुझे सामर्थ देता है, उस में मैं सब कुछ कर सकता हूँ,” प्रेरित पौलुस ने कहा। (फिलिप्पियों ४:१३; २ कुरिन्थियों ४:७; १२:९ भी देखें) यही सभी मसीहियों के विषय सच है।

ध्यान दें

८, ९. (अ) किसी और के पदचिह्नों पर चलते वक्‍त पूरा ध्यान और अत्यधिक एकाग्रता आवश्‍यक क्यों हैं? (ब) कौनसी बाइबलीय सलाह मानना हमें यीशु के पदचिह्नों पर से पथभ्रष्ट होने से रोकेगी?

८ हम अपने कदम कहाँ रख रहे हैं, इस के विषय कड़ी निग्रानी रखे बग़ैर, हम वास्तविक पदचिह्नों पर नहीं चल सकते। अगर हमारी नज़र भटकेगी​—हमारे इर्द-गिर्द हो रही बातों या अन्य चीज़ों पर केंद्रित होते हुए​—तो देर-सबेर हम एक ग़लत कदम ज़रूर उठाएँगे। जब तक कि हम पूरा ध्यान देकर, अत्यधिक मात्रा में एकाग्रचित न होंगे, हम उन पदचिह्नों पर से ज़रूर भटक जाएँगे, जिन पर हमें चलते रहना चाहिए। इसलिए, सतर्क रहने की आवश्‍यकता हमेशा रहती है, खास तौर से जब आकस्मिक शोर या कोई और अनपेक्षित विकर्षण प्रस्तुत काम पर से ध्यान बाँट सकते हैं।​—तुलना अय्यूब १८:१०, ११ से करें.

९ एक प्रतीकात्मक रीति से, यह उन लोगों के लिए भी सच है जो यीशु के पदचिह्नों पर चल रहे हैं। यीशु ने अपने अनुयायिओं को अपनी चौकसी रखने की चेतावनी दी, कहीं उनके मन “ज़्यादा खाने और अत्यधिक पीने, और इस जीवन की चिंताओं से सुस्त” न हो जाएँ। (लूका २१:३४) शैतान हमें यीशु के पदचिह्नों पर से अपनी नज़र हटाने के लिए इन प्रतिदिन के विकर्षणों को इस्तेमाल करता है। विरोध, बीमारी, या वित्तीय हानि जैसी अनपेक्षित परिस्थितियों का फ़ायदा उठाकर, वह हमें अचेत पकड़ने में तेज़ है। यह निश्‍चित करने के लिए कि हम ‘बहकर उन से दूर न चले आएँ,’ हमें “उन बातों पर जो हम ने सुनी है, और भी मन लगाना” चाहिए, यानी, पहले से कहीं ज़्यादा मसीह के पदचिह्नों पर अपनी नज़र पूरे ध्यान से केंद्रित करनी चाहिए।​—इब्रानियों २:१; १ यूहन्‍ना २:१५-१७ भी देखें.

विचलित न हों

१०. (अ) जब पदचिह्नों के अलग लकीरें एक दूसरे को काट देते हैं, तब कौनसा ख़तरा रहता है? (ब) एक आत्मिक दृष्टि से, ग़लत पदचिह्नों पर चलने के परिणाम गंभीर क्यों हैं?

१० किसी भीड़-भरे समुद्र-तट पर, गीले रेत में पदचिह्नों के अनेक सेट होंगे, और पदचिह्नों के कुछेक लकीरें उस लकीर को शायद काट दें, जिस पर हम चल रहे हों। पदचिह्नों के अनेक सेट शायद, कम से कम ऊपरी तौर से, समान दिखेंगे। यह निश्‍चित करना कितना अत्यावश्‍यक है कि हम सही पदचिह्नों पर चल रहे हैं! वरना ग़लत दिशा में जाने तक हमें धोखा दिया जा सकता है। एक आत्मिक भावार्थ से, इसके गंभीर परिणाम हो सकते हैं। सही दिखनेवाले, पर जो असल में सही नहीं, ऐसे पदचिह्नों पर चलने का ख़तरा, यह चेतावनी देनेवाली कहावत में दिखाया गया है कि: “ऐसा भी मार्ग है, जो मनुष्य को सीधा देख पड़ता है, परन्तु उसके अन्त में मृत्यु ही मिलती है।”​—नीतिवचन १६:२५.

११. पौलुस ने प्रारंभिक मसीहियों को कौनसी चेतावनी दी, और इस प्रकार उसने आज किस के लिए उदाहरण प्रस्तुत किया?

११ इस बहुत ही असली ख़तरे की वजह से पौलुस ने प्रारंभिक मसीही मण्डली में अपने भाइयों को चिताने के लिए बाध्यता महसूस की: “मुझे आश्‍चर्य होता है, कि जिस ने तुम्हें मसीह के अनुग्रह से बुलाया उस से तुम इतनी जल्दी फिर कर और ही प्रकार के सुसमाचार की ओर झुकने लगे। . . . कितने ऐसे हैं, जो तुम्हें घबरा देते, और मसीह के सुसमाचार को बिगाड़ना चाहते हैं। . . . उस सुसमाचार को छोड़, जिसे तुम ने ग्रहण किया है, यदि कोई और सुसमाचार सुनाता है, तो स्रापित हो।” (गलतियों १:६-९) पौलुस के उदाहरण के अनुसार, आज यहोवा के गवाहों का शासी वर्ग हमें धर्मत्यागियों और झूठे भाइयों के बारे में चिताता है, जो मानो नक़ली पदचिह्न बनाते हैं। सच्चे मसीही उस मार्ग से पथभ्रष्ट नहीं होते जो परमेश्‍वर के आदेश से मसीह ने उनके सामने रखा है।​—भजन ४४:१८.

१२. (अ) कैसे २ तीमुथियुस १:१३ हमें नक़ली पदचिह्नों पर चलने तक गुमराह होने से बचे रहने की मदद कर सकता है? (ब) अन्य प्रकार के सुसमाचार की विशिष्टताएँ क्या हैं?

१२ मसीह के पदचिह्नों के पहचान-चिह्नों को पूरा ध्यान देने के द्वारा, हम गुमराह होने से बच सकते हैं। यीशु, उसके उपदेश, और मसीही मण्डली किस तरह चलती है, इस विषय यथार्थ ज्ञान हमें “स्वास्थ्यकारी बातों के प्रतिमान” की पहचान कराने की मदद करता है, जो कि उन लोगों से हमारी रक्षा करता है जो “मसीह के सुसमाचार को बिगाड़ना चाहते हैं।” (२ तीमुथियुस १:१३) अन्य प्रकार के तथाकथित सुसमाचार​—दरअसल नक़ली पदचिह्न​—सच्चाई के उस प्रतिमान के अनुकूल होने में असफल होते हैं। वे उसे बिगाड़कर, विषय को अस्पष्ट बनाते हैं। मूलभूत बाइबल सत्य और सिध्दांतों को स्पष्ट करने के बजाय, वे उनका खंडन करते हैं, हमें यहोवा की सेवा में और भी ज़्यादा क्रियाशील होने के लिए प्रोत्साहित करने के बजाय, वे धीमा पड़ने के पक्ष में बोलते हैं। उनका संदेश सकारात्मक नहीं और न ही यहोवा के नाम और संगठन की महिमा करता है; यह नकारात्मक, नुक्‍ताचीनी भरा, और आलोचनात्मक है। निश्‍चय ही, यह वे पदचिह्न नहीं जिन पर हम चलना चाहेंगे।

उचित गति रखें

१३. गति किस तरह संबद्ध है जब हम किसी के पदचिह्नों पर चलते हैं?

१३ जब हम चलते हैं, हमारे डग की लंबाई अंशतः हमारे चलने की रफ़्तार से निश्‍चित होती है। सामान्यतः, जितना जल्दी हम चलेंगे, उतने ही लंबे डग होंगे; जितना धीरे चलेंगे, उतने ही छोटे डग होंगे। इसलिए, किसी के वास्तविक पदचिह्नों पर चलना तभी ज़्यादा आसान रहेगा जब हम अपनी गति उसकी गति के अनुकूल बनाएँगे। उसी तरह, हमारे अगुआ, यीशु मसीह के प्रतीकात्मक पदचिह्नों पर सफलतापूर्वक चलने के लिए, हमें उसकी गति बनाए रखनी चाहिए।

१४. (अ) हम शायद किन किन रीतियों में यीशु की गति से अनुकूल न होंगे? (ब) “विश्‍वासयोग्य और बुद्धिमान दास” से ज़्यादा तेज़ जाने की कोशिश करना मूर्खता क्यों है?

१४ मसीह की गति के अनुकूल न होने का अर्थ दो में से एक हो सकता है। या तो हम तेज़ जाने, उस “विश्‍वासयोग्य और बुध्दिमान दास” के आगे दौड़ने की कोशिश करते हैं, जिसे यीशु यहोवा का उद्देश्‍य पूरा करने के लिए इस्तेमाल कर रहा है, या फिर, हम उस “दास” के निदेशों का पालन करने में पिछड़ जाते हैं। (मत्ती २४:४५-४७) पहली बात के एक उदाहरण के तौर से, बीते समय में कुछेक मसीही, वे धर्म सिद्धांतवादी या संगठनात्मक परिवर्तन या शोधन, जो उन्हें लगा आवश्‍यक और विलंबित थे, उनके विषय अधीर हुए हैं। चूँकि उन्हें लगा कि मामलें पर्याप्त मात्रा में जल्दी बदल नहीं रहे थे, वे असंतुष्ट होकर यहोवा के लोगों से अलग हुए। यह कितना मूर्खतापूर्ण और अदूरदर्शी था! अक़्सर वही बात जिस से वे परेशान हुए थे, बाद में बदल दी गयी​—यहोवा के नियत समय पर।​—नीतिवचन १९:२; सभोपदेशक ७:८, ९.

१५. किस तरह राजा दाऊद और यीशु एक उचित गति बनाए रखने के अच्छे उदाहरण थे?

१५ बुद्धि का मार्ग यही है कि यहोवा को कार्य करने के लिए रुकें, बजाय उसके कि मामलों को किस गति से घटना चाहिए, इस विषय हुक्म चलाएँ। प्राचीन राजा दाऊद ने एक उचित उदाहरण प्रस्तुत किया। उसने यहोवा का उसे राजत्व देने के उचित समय से पहले उस पर हक जमाने की कोशिश में राजा शाऊल के विरुद्ध षड्यंत्र करना अस्वीकार किया। (१ शमूएल २४:१-१५) उसी तरह, “दाऊद के सन्तान,” यीशु ने समझ लिया कि उसे अपने स्वर्गीय राजत्व में पूर्ण रूप से आरंभ करने के लिए रुकना पड़ता। उस पर लागू होनेवाली भविष्यसूचक कथन उसे मालूम थी: “तू मेरे दहिने हाथ बैठ, जब तक मैं तेरे शत्रुओं को तेरे चरणों की चौकी न कर दूँ।” तो जब यहूदियों का एक समूह उसे ‘राजा बनाने के लिए पकड़ना’ चाहता था, यीशु शाघ्र वहाँ से हट गया। (मत्ती २१:९; भजन ११०:१; यूहन्‍ना ६:१५) कुछ ३० वर्ष बाद, इब्रानियों १०:१२, १३ के अनुसार, यीशु तब भी अपने राजत्व के लिए प्रतीक्षा कर रहा था। वास्तव में, १९१४ में परमेश्‍वर के राज्य के संस्थापन पर, उस राज्य के अधिकारपूर्ण राजा के तौर से अधिष्ठित होने से पहले, वह लगभग १९ शतकों तक रुका था।

१६. (अ) दृष्टांत दें कि जिस गति से हमें चलना चाहिए, उस से हम किस तरह शायद कहीं अधिक धीमा चल सकते हैं। (ब) यहोवा की सहनशक्‍ति का उद्देश्‍य क्या है, और हमें उस सहनशक्‍ति का अनुचित लाभ उठाने से कैसे बचे रहना चाहिए?

१६ परंतु, एक उचित गति बनाए रखने में असमर्थ होना, धीमा पड़ने, पिछड़ जाने का अर्थ भी रख सकता है। इस प्रकार, जब परमेश्‍वर का शब्द संकेत करता है कि हमारी ज़िंदगी में परिवर्तन करने पड़ेंगे, तो क्या हम बिना विलंब किए कार्य करते हैं? या क्या हम बहस करते हैं कि चूँकि परमेश्‍वर सहनशील है, हम ऐसे परिवर्तन करना फिर कभी के लिए स्थगित कर सकते हैं, आशा करके कि यह तब ज़्यादा आसान रहेगा? यह सही है कि यहोवा सहनशील है। पर यह इस उद्देश्‍य से नहीं कि हम आवश्‍यक परिवर्तन करने के विषय लापरवाह हो सकें। बल्कि, “तुम्हारे विषय में धीरज धरता है, और नहीं चाहता कि कोई नाश हो, पर यह कि सब पश्‍चाताप की अवस्था तक पहुँचे।” (२ पतरस ३:९, १५; न्यू.व.) तो फिर, कितना बहतर होगा अगर हम भजनकार का अनुकरण करें, जिसने कहा: “मैं ने तेरी आज्ञाओं के मानने में विलम्ब नहीं, फुर्ती की है।”​—भजन ११९:६०.

१७. उचित गति रखना राज्य प्रचार कार्य से क्या संबंध रखता है, जिस से हम खुद से कौनसा प्रश्‍न पूछ सकते हैं?

१७ पिछड़ जाना राज्य प्रचार कार्य को भी समाविष्ट कर सकता है। मत्ती २५ के अनुसार, यीशु इस समय “भेड़ों” को “बक़रियों” से अलग करके मानव जाति को आँक रहा है। यह अधिकांशतः “राज्य का यह सुसमाचार” प्रचार करने के द्वारा पूरा किया जा रहा है। (मत्ती २४:१४; २५:३१-३३; प्रकाशितवाक्य १४:६, ७) इस अलगाव कार्य को पूरा करने का नियत समय आवश्‍यक रूप से सीमित है। (मत्ती २४:३४) जैसे उपलब्ध समय समाप्त होता जाता है, हम यीशु से कार्य की गति बढ़ाने की उम्मीद रख सकते हैं। ऐसा करने से, वह परमेश्‍वर के एक साधन के हैसियत कार्य कर रहा है, जो कि एकत्र करने के कार्य के विषय बोलते हुए, वचन देता है कि: “मैं यहोवा हूँ, ठीक समय पर यह सब कुछ शीघ्रता से पूरा करूँगा।” (यशायाह ६०:२२) परमेश्‍वर के सहकर्मियों के हैसियत से, जो उस के पुत्र के पदचिह्नों पर यथार्थता से चलते हैं, क्या हम उस हद तक राज्य प्रचार कार्य में अपनी गति बढ़ा रहे हैं, जितना कि हमारी शारीरिक स्थिति और शास्त्रीय ज़िम्मेदारियाँ अनुमति देती हैं? क्षेत्र सेवकाई के रिपोर्ट संकेत करते हैं कि यहोवा के करोड़ों गवाह ऐसा ही कर रहे हैं!

अति-विश्‍वास से दूर रहें, हतोत्साह का मुक़ाबिला करें

१८. कोई व्यक्‍ति किस तरह अति-विश्‍वस्त हो सकता है, और बाइबल इस ख़तरे की चेतावनी कैसे देती है?

१८ जितने ज़्यादा देर तक हम किसी और के पदचिह्नों पर चलने में अध्यवसाय करें, हम उतने ही ज़्यादा उसके चलने के ढंग के आदी बन जाएँगे। यद्यपि, अगर हम आत्म-तृप्त बन जाएँगे, तो देर-सबेर हम एक ग़लत कदम उठाएँगे। इसलिए, यीशु के प्रतीकात्मक पदचिह्नों पर चलते समय, हमें अति-विश्‍वस्त होने और अपनी ही ताक़त और क्षमताओं पर उपेक्षापूर्वक निर्भर होने, यह महसूस करते हुए कि हम उसके चलने के सिद्ध ढंग के उस्ताद बन गए हैं, के ख़तरे को पहचान लेना चाहिए। लूका २२:५४-६२ में लेखबद्ध पतरस का अनुभव एक समयोचित चेतावनी के तौर से उपयोगी होता है। यह १ कुरिन्थियों १०:१२ की सच्चाई पर भी ज़ोर देता है, जो कहता है: “जो समझता है, कि मैं स्थिर हूँ, वह चौकस रहे, कि कहीं गिर न पड़े।”

१९. (अ) समय समय पर हर मसीही को क्या होता है? (याकूब ३:२) (ब) रोमियों ७:१९, २४ पर पौलुस के शब्दों का हमें कैसे विचार करना चाहिए?

१९ असिद्धता के कारण, प्रत्येक मसीही समय समय पर एक ग़लत क़दम उठाएगा। विचलन छोटा हो सकता है, जो दूसरों को शायद ही स्पष्ट हो। या, यह निशाना चूकने की एक ऐसी प्रत्यक्ष बात हो सकती है, कि यह सब से दिखी जाएगी। दोनों स्थितियों में, पौलुस की सच्ची स्वीकृति को याद करना कितना सांत्वनादायक है: “क्योंकि जिस अच्छे काम की मैं इच्छा करता हूँ, वह मैं नहीं करता, परन्तु जिस बुराई की इच्छा नहीं करता, वही किया करता हूँ। मैं कैसा दयनीय मनुष्य हूँ!” (रोमियों ७:१९, २४; न्यू.व.) निःसंदेह, इन शब्दों का विचार अपराध करने के एक बहाने के तौर से नहीं किया जाना चाहिए। उलटा, ये शब्द असिद्धताओं से संघर्ष करनेवाले निष्ठावान मसीहियों के लिए प्रोत्साहन हैं, जो कि यीशु के सिद्ध पदचिह्नों पर चलने की चुनौती का सफलतापूर्वक सामना करने की उनकी कोशिश में बने रहने के लिए उन्हें मदद करते हैं।

२०. (अ) नीतिवचन २४:१६ हमें जीवन के लिए अपनी दौड़ में किस तरह मदद करता है? (ब) हमें क्या करने के लिए दृढ़निश्‍चित रहना चाहिए?

२० “धर्मी चाहे सात बार गिरे तौभी उठ खड़ा होता है,” नीतिवचन २४:१६ कहता है। जीवन के लिए हमारी दौड़ में, किसी को छोड़ने के लिए मजबूर महसूस होना नहीं चाहिए। यह दौड़ एक मैराथन दौड़ के जैसी है, सहनशक्‍ति की एक दौड़, एक सौ-गज़ की स्प्रिंट दौड़ नहीं। पूरी संभावना है कि तेज़ दौड़नेवाले की ओर से ज़रा सी ग़लती से उसे दौड़ हारनी पड़ेगी। पर अगर मैरथन दौड़नेवाला ठोकर भी खाए, तो उसे खुद को सँभालने और मैदान पूरा करने के लिए समय होता है। सो जब कोई निजी ग़लती तुम्हें, “मैं कैसा दयनीय मनुष्य हूँ!” यह चिल्लाने के लिए विवश करता है, याद रखें कि तुम्हें अब भी खुद को सँभालने के लिए वक्‍त है। अपने अगुआ, यीशु मसीह, के साथ फिर से क़दम मिलाकर चलने के लिए तुम्हें अब भी मौक़ा है। निराश होने का कोई कारण नहीं! छोड़ने की कोई वजह नहीं! दैवी मदद से ‘यीशु के पदचिह्नों पर ‘यथार्थता से चलने’ की चुनौती का सफलतापूर्वक सामना करने के लिए दृढ़निश्‍चित रहें।

क्यों मसीहियों को

◻ अनुरूप होने के लिए सीखना चाहिए?

◻ पूरा ध्यान देना चाहिए?

◻ सच्चाई के प्रतिमान को मन में रखना चाहिए?

◻ उचित गति बनाए रखनी चाहिए?

◻ अति-विश्‍वास से बचे रहना चाहिए?

◻ हतोत्साह का मुक़ाबिला करना चाहिए?

[पेज 26 पर तसवीरें]

अपनी नज़र को लक्ष्य पर रखकर, धर्मी निश्‍चित रूप से उठ खड़ा होगा

    हिंदी साहित्य (1972-2025)
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