कृतज्ञ होने के अतिरिक्त कारण
प्राचीन इस्राएल के लोगों के पास दूसरे लोगों की अपेक्षा सृष्टिकर्ता के प्रति कृतज्ञ होने के ज्यादा कारण थे। हम ऐसा कैसे कह सकते हैं?
दूसरे मनुष्यों के समान ही इस्राएलियों के पास भी कारण थे कि परमेश्वर द्वारा रची गई तमाम सुन्दर और आश्चर्यजनक चीज़ों के लिए कृतज्ञता बतायें। परन्तु उन्हें सर्वशक्तिमान द्वारा विशेष वर्ग के रूप में चुने जाने एवं विशेष ध्यान दिये जाने के कारण उनके पास कृतज्ञ होने के अतिरिक्त कारण भी थे। (आमोस ३:१, २) उनके कृतज्ञ होने के कुछ विशिष्ट कारणों पर विचार कीजिये।
मृत्यु से दो बार बचाव
निसान १४, सा.यु.पू. १५१३ की रात्री में इस्राएल माता पिता कितने कृतज्ञ हुये होंगे! उस घटनापूर्ण रात्री में, परमेश्वर के स्वर्गदूत ने क्या मनुष्य, क्या पशु सब के पहिलौठों को मार डाला। लेकिन उसने उन इस्राएली घरों को छोड़ दिया जिन की चौखट पर फसह के पशुओं के लहू की छाप लगी थी। वातावरण की निश्चलता उस समय टूट जाती है जब “मिस्रियों के घरों से चित्कार उभरने लगती है, क्योंकि कोई घर ऐसा नहीं या जहाँ मृत्यु न हुई हो, जबकि प्रत्येक इस्राएली घर के पहिलौठे जीवित और सकुशल थे।—निर्गमन १२:१२, २१-२४, ३०.
उसके थोड़े समय बाद ही जब वे लाल सागर तक आकर फंस गये थे और पीछे से फिरोन की सेना तेजी से चली आ रही थी, तब यहोवा ने आश्चर्यजनक रूप से मदद की उस समय इस्राएलियों की कृतज्ञता कितनी बढ़ गई होगी। पहले तो उन्होंने देखा कि बादलों का एक खम्बा उनकी अगुवाई करता हुआ चल रहा है जो बाद में पीछा करती हुई सेना के सामने ठहर कर उनके लिये दीवार बन जाता है, जिसके परिणामस्वरूप पीछा करने वाले धीमे हो गये। फिर इस्राएलियों ने मूसा को सागर तट पर अपने हाथ ऊपर उठाते देखा और वे भौंचक्के होकर देखते रह गये, जब यहोवा ने प्रचण्ड वायु चलाई और सागर को दो भागों में बाँट दिया और सागर की भूमि दिखने लगी। इस्राएलियों को इस ईश्वर प्रदत्त गलियारे से निकलने के लिये शीघ्रता करनी थी।
अब उनके सामने खतरे का एक और कारण था। मिस्र की सेना पीछा करती हुई समुद्र के उस गलियारे में आ चुकी थी और वे इस बात में निश्चित थे कि वे इस्राएलियों को रोक लेंगे। “परन्तु देखो! जब सारे मिस्री लोग पानी के बीच के गलियारे में आ गये, अचानक उनके रथों के पहिये निकल गये और उनके बीच कोलाहल मच गया। और जबकि इस्राएली लोग दूसरी ओर सुरक्षित थे, यहोवा ने फिर मूसा को कहा कि वह अपने हाथ ऊपर उठाये। तब भोर होते-होते समुद्र फिर अपनी वास्तविक स्थिति में आ गया।” परिणाम? फिरौन की गर्वी सेना में से एक भी न बचा, न ही राजा स्वयं को डूबने से बचा सका। (निर्गमन १४:१९-२८; भजन संहिता १३६:१५) क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि इस्राएली लोग यहोवा द्वारा इस आश्चर्यजनक रीति से इन्हें बचाये जाने पर, कितने कृतज्ञ हुये होंगे?
परमेश्वर की अद्भुत युद्ध विधियाँ
मिस्र से छुटकारा और लाल सागर से उनकी अविस्मरणीय निकासी के लिये कृतज्ञ होने के आलावा, इस्राएलियों को प्रतिज्ञा किये हुए देश में पहुंचने के पहले अनेक थका देने वाले अनुभवों से दो-चार होना था। परन्तु जंगल में उनके ४० वर्ष के मार्ग के अनुभवों में भी उनके लिये यहोवा के प्रति कृतज्ञ होने के विशेष कारण होना चाहिये।
अन्ततः इस्राएली यरदन नदी पार करके परमेश्वर द्वारा उन्हें दिये नगर में थे। जल्द ही उन्हें यहोवा के पराक्रम की अद्भुत विधियाँ देखनी थी। कैसे? जिस तरह से उन्होंने पहले कनान के नगर यरीहो को जीता व उसे नाश किया! (यहोशू अध्याय ६) वाचा का सन्दूक लेकर, यरीहो नगर के चारों ओर घूमना, परमेश्वर निर्धारित क्या ही असाधारण युद्धनीति! वे लगातार छः दिनों तक दीवार के चारों ओर प्रतिदिन एक चक्कर लगाते थे। सातवें दिन उन्होंने दीवार के चारों ओर सात चक्कर लगाये। जब याजकों ने तुरही फूंकी, इस्राएलियों ने बड़ी ध्वनि से जय-जयकार किया और “शहरपनाह नेव से गिर पड़ी।” (पद २०) केवल राहब का घर और उससे लगा दीवार का भाग वैसा ही खड़ा रहा। इस अपराजित से दिखने वाले नगर की शहरपनाह, यहोशू और उसकी सेना द्वारा बिना एक भी तीर छोड़े गिर जाती है! निश्चित रूप से यरीहो में यह अनुभव परमेश्वर के प्रति कृतज्ञ होने का एक अतिरिक्त कारण था।
दूसरे अवसर पर, यहोवा की अद्भुत युद्ध-नीतियों का और भी प्रदर्शन हुआ था। जब गिबोन के लोगों ने इस्राएलियों के साथ शान्ती-सन्धि की, पाँच एमोरी राजाओं ने गिबोनियों के विरुद्ध युद्ध छेड़ दिया। यहोशू उनकी सहायता करने आया और यहोवा की अद्भुत सहायता से उन्हें पराजित किया। परमेश्वर ने अमोरियों को घबरा दिया, और जब वे इस्राएलियों से भाग कर बेथोरोन की उतराई पर आये, और अजेका पहुंचने तक यहोवा ने आकाश से बड़े-बड़े पत्थर उन पर बरसाये और वे मर गये।” जो ओलों से मारे गये थे उनकी गिनती इस्राएलियों की तलवार से मारे हुओं से अधिक थी।—यहोशू १०:१-११.
तब यहोशू ने यहोवा से “इस्राएलियों के देखते इस प्रकार कहा: “हे! सूर्य तू गिबोन पर, और हे चन्द्रमा तू अय्यालोन की तराई के ऊपर ठहरा रह।” और लेख बताता है कि “सूर्य उस समय तक थमा रहा, और चन्द्रमा उस समय तक ठहरा रहा जब तक उस जाति के लोगों ने शत्रुओं से पलटा न लिया।”—यहोशू १०:१२, १३.
कितनी विस्मयकारी घटनायें! और यहोवा के लोगों का कृतज्ञ होने का कितना उचित कारण!
अल्पकालिक कृतज्ञता
यहोवा के हस्तक्षेप की प्रत्येक घटना के साथ इस्राएली लोग कृतज्ञता से भर जाते। निश्चित रूप से प्रत्येक इस्राएली अपने मन में सोचता होगा कि वह कभी इन बातों को नहीं भूलेगा जो उसने देखी हैं। तथापि ऐसी कृतज्ञता अविश्वसनीय रूप से अल्पकालिक थी। बारम्बार इस्राएलियों ने कृतज्ञता की मनोवृत्ति दर्शाई। इसलिये उन्हें “परमेश्वर ने बराबर राष्ट्रों के अधीन कर दिया ताकी जो उनसे घृणा करते हैं वे उन पर शासन करें।”—भजन संहिता १०६:४१.
फिर भी यहोवा ने अपनी क्षमा करने की उदारता उस समय बताई जब इस्राएली लोग क्लिष्ट स्थिति में आते तथा अपनी कृतज्ञता के लिये पश्चाताप करते थे और उसे मदद के लिये पुकारते थे। जब-जब उनका चिल्लाना उसके कान में पड़ा, तब-तब उसने उनके संकट पर दृष्टि की, और उनके हित में अपनी वाचा को स्मरण करके अपनी अपार करुणा के अनुसार तरस खाया।” (भजन संहिता १०६:४४, ४५) बारम्बार उनके क्षमा करनेवाले परमेश्वर ने उन्हें विद्रोहियों के हाथ से छुड़ाया और उन्हें अपने अनुग्रह में लाया।
यहोवा के धैर्य और इस्राएलियों के विचारों को ठीक करने हेतू उसके द्वारा बार-बार भविष्यद्वक्ताओं को भेजने के बावजूद वे लोग नहीं सुधारे। अन्त में, यहोवा का धैर्य टूट गया और उसने यहूदा के राष्ट्रों को सा.यु.पू. ६०७ में बाबुल द्वारा जीत जाने दिया। जो राजा नबुकद्नेस्सर की सेना द्वारा मरने से बच गये उन्हें वह बन्दी बनाकर बाबुल ले गया।
परमेश्वर के प्रति कृतज्ञता और बेवफाई करने वालों का कैसा विध्वंसकारी अन्त! और यह कृतज्ञता के अनेक कारणों के होते हुये भी हुआ।
आज कितने मनुष्य हैं जो यहोवा परमेश्वर ने उनके लिये सामान्य अच्छाई के अलावा जो उनके लिये किया है उसके लिये कृतज्ञता नहीं बताने की वही कर रहे हैं? यह हम लेख “धन्यवादी बने रहो” में विचार करने के लिये छोड देते हैं।