न्याय परमेश्वर की सारी गति की विशेषता है
“वह चट्टान है, उसका काम खरा है, और उसकी सारी गति न्याय की है। वह सच्चा ईश्वर है, उस में कुटिलता नहीं, वह धर्मी और सीधा है।”—व्यवस्थाविवरण ३२:४.
१. मरने से पहले मूसा ने इस्राएल के पुत्रों को लिखे अपने गीत में यहोवा के कौनसे गुण विशिष्ट किए, और वह ऐसा कहने के योग्य क्यों था?
यहोवा, सर्वोच्च न्यायी, संविधि देनेवाले और राजा, “धर्म और न्याय से प्रीति रखते हैं।” (भजन ३३:५; यशायाह ३३:२२) मूसा, व्यवस्था नियम का मध्यस्थ और एक भविष्यद्वक्ता, “जिस से यहोवा ने आमने-सामने बातें की,” यहोवा की न्याय्य गति को नज़दीक़ी से जानता था। (व्यवस्थाविवरण ३४:१०; यूहन्ना १:१२) मूसा के मरने से कछ ही समय पहले, उसने यहोवा के न्याय के उत्कृष्ट गुण को विशिष्ट किया। इस्राएल की समस्त जाति के सामने, उसने इस गीत के शब्द कहे: “हे आकाश, कान लगा, कि मैं बोलूँ, और हे पृथ्वी, मेरे मुँह की बातें सुन। . . . मैं तो यहोवा नाम का प्रचार करूँगा। तुम अपने परमेश्वर की महिमा को मानो! वह चट्टान है, उसका काम खरा है, और उसकी सारी गति न्याय की है। वह सच्चा ईश्वर है, उस में कुटिलता नहीं, वह धर्मी और सीधा है।”—व्यवस्थाविवरण ३२:१, ३, ४.
२. न्याय हमेशा ही परमेश्वर की सारी गति की विशेषता किस तरह रहा है, और यह महत्त्वपूर्ण क्यों है?
२ न्याय यहोवा की सारी गति की विशेषता है, और इसका प्रयोग हमेशा उनकी बुद्धि, प्रेम और शक्ति के अनुसार होता है। अय्यूब ३७:२३ में, परमेश्वर के दास एलीहू ने अय्यूब को याद दिलाया: “सर्वशक्तिमान जो अति सामर्थी है, और जिसका भेद हम पा नहीं सकते, वह न्याय और पूर्ण धर्म को छोड़ अत्याचार नहीं कर सकता।” और राजा दाऊद ने लिखा: “यहोवा न्याय का प्रेमी है और वह अपने वफ़ादारों को न छोड़ेगा।” (भजन ३७:२८; न्यू.व.) कैसा सांत्वनादायक आश्वासन! परमेश्वर की सारी गति में, वह एक क्षण के लिए भी उन लोगों को नहीं छोड़ेंगे जो उसके प्रति वफ़ादार हैं। परमेश्वर का न्याय इसकी गारंटी देता है!
क्यों न्याय की कमी है
३. आज मनुष्यों के बीच किस बात की कमी है, और इस से परमेश्वर के साथ मनुष्य के रिश्ते पर कैसा प्रभाव हुआ है?
३ चूँकि यहोवा न्याय के परमेश्वर, न्याय से प्रीति रखनेवाले, और “पृथ्वी भर के सृजनहार” हैं, तो फिर आज मनुष्यों के बीच न्याय की इतनी कमी क्यों है? (यशायाह ४०:२८) मूसा व्यवस्थाविवरण ३२:५ में इसका जवाब देता है: “परन्तु इसी जाति के लोग टेढ़े और तिर्छे हैं! ये बिगड़ गए, ये उसके पुत्र नहीं, यह उनका कलंक है।” मनुष्य के अनर्थकारी क्रियाकलाप से वह अपने सृजनहार से इतना दूर हो गया है कि परमेश्वर के सोच-विचार और गति का वर्णन यूँ किया गया है, कि यह मनुष्यों के सोच-विचार और गति से अधिक ऊँचा है, जैसे “आकाश पृथ्वी से ऊँचा है।”—यशायाह ५५:८, ९.
४. मनुष्य ने कौनसा मार्ग अपनाना पसंद किया है, और इस के परिणामस्वरूप वह किस स्थिति में है?
४ यह कभी न भूलें कि सृजनहार ने मनुष्य को इस तरह नहीं रचा कि वह उस से स्वतंत्र रूप से कार्य करे। यिर्मयाह हमारे लिए इस स्थिति को सही-सही आँकता है, और कहता है: “हे यहोवा, मैं खूब जान गया हूँ, कि मनुष्य का मार्ग उसके वश में नहीं। जो मनुष्य उसके क़दमों को मार्ग दिखलाने के लिए चलता है, यह उसके भी वश में नहीं।” (यिर्मयाह १०:२३; न्यू.व.) मनुष्य का इस तरह परमेश्वर की न्याय्य गति और शासकत्व को अस्वीकार करना, उसे बिल्कुल ही अलग और बहुत की शक्तिशाली अदृश्य ताक़तों के अधीन कर दिया है, अर्थात् शैतान इब्लीस और उसके दुष्टात्मिक सहापराधी। प्रेरित यूहन्ना बलपूर्वक कहता है: “सारा संसार उस दुष्ट के वश में पड़ा है।” इन दुष्टात्मिक सेनाओं को मनुष्यजाति के बीच न्याय का समर्थन करने में कोई दिलचस्पी नहीं है।—१ यूहन्ना ५:१९.
५. आज की दुनिया में न्याय की कमी के कुछ मिसाल दें।
५ इस रीति-व्यवस्था के आख़री दिनों में न्याय की कमी के एक मिसाल को संयुक्त राज्य अमरीका के ॲटार्नी जनरल (महान्यायवादी), विलियम फ्रेंच स्मित ने १९८४ में विशिष्ट किया। १९७७ और १९८३ के बीच १२ अमरीकी राज्यों में जेल दण्डों के विषय में किए गए एक सर्वेक्षण पर टीका करते हुए, स्मित ने कहा: “जनता ने मान लिया है कि सबसे बुरे अपराधी—खूनी, बलात्कार करनेवाले, नशीली पदार्थों के व्यापारी—काफ़ी लंबा जेल दण्ड भुगतते हैं। ब्यूरो का सर्वेक्षण . . . दिखाता है कि पक्के बदमाशों का फिर से सड़कों पर आकर नए अपराध करना कितना आसान है।” कोई आश्चर्य की बात नहीं कि वॉशिंग्टन लीगल फाऊँडेशन के पॉल कॅमीनार ने कहा: “न्याय व्यवस्था बहुत अकसर ढीली पड़ जाती है।”
६. (अ) यहूदा की क़ैद से पहले उसकी नैतिक अवस्था क्या थी? (ब) हबक्कूक ने कौनसे सवाल किए, और क्या ये आज उपयुक्त हैं?
६ सामान्य युग पूर्व ६०७ में बाबेली सेनाओं से हारने से पहले, यहूदा की संपूर्ण जाति में न्याय ढीला पड़ गया था। इसलिए, परमेश्वर का भविष्यद्वक्ता हबक्कूक यह कहने के लिए ईश्वरीय रूप से प्रेरित हुआ: “व्यवस्था ढीली हो गयी और न्याय कभी नहीं प्रगट होता। दुष्ट लोग धर्मी को घेर लेते हैं, सो न्याय का खून हो रहा है।” (हबक्कूक १:४) इस अन्यायी स्थिति के कारण भविष्यद्वक्ता ने यहोवा से पूछा: “तू विश्वासघातियों को क्यों देखता रहता (है), और जब दुष्ट निर्दोष को निगल जाता है, तब तू क्यों चुप रहता है?” (हबक्कूक १:१३) आज, मानव क्रियाकलाप के सभी क्षेत्रों में अन्याय के अभ्यास की वजह से क्षतिग्रस्त लोग भी पूछ सकेंगे: न्याय के परमेश्वर इस पृथ्वी पर किए गए अन्याय को क्यों देखते रहते हैं? वह “न्याय का खून” क्यों होने देते हैं? वह किस लिए “चुप रहते हैं?” ये महत्त्वपूर्ण सवाल हैं, और सिर्फ़ परमेश्वर का अमूल्य वचन, बाइबल ही सही और संतोषजनक जवाब देती है।
क्यों परमेश्वर ने अन्याय की अनुमति दी है
७. (अ) मनुष्य ने वह परादीस क्यों गवाँ दिया जो परमेश्वर ने उसे दिया था? (ब) अदन में कौनसे वादविषय उत्पन्न हुए, और उत्तर में परमेश्वर के न्याय से क्या आवश्यक हुआ?
७ परमेश्वर के काम परिपूर्ण हैं, जैसा कि मूसा ने साक्ष्य दिया। यह उस परिपूर्ण मानव दम्पत्ति के संबंध में सही था, जिन्हें परमेश्वर ने अदन के परादीस में रखा। (उत्पत्ति १:२६, २७; २:७) वह पूरा प्रबंध मनुष्यजाति के हित और खुशी के लिए परिपूर्ण था। ईश्वरीय विवरण हमें बताता है: “परमेश्वर ने जो कुछ बनाया था, सब को देखा, तो क्या देखा, कि वह बहुत ही अच्छा है।” (उत्पत्ति १:३१) लेकिन अदनी शान्ति बहुत देर तक नहीं टिकी। एक बाग़ी आत्मिक प्राणी के प्रभाव में आकर, हव्वा और उसका पति, आदम, यहोवा का उन पर राज्य करने के ढंग से संबंधित, उस से एक मुक़ाबले में भाग लेने के लिए फुसलाए गए। उनको दिए परमेश्वर के आदेशों की न्यायशीलता पर अब संदेह प्रकट किया गया। (उत्पत्ति ३:१-६) परमेश्वर के शासकत्व के औचित्य को दी चुनौती से अत्यावश्यक नैतिक वादविषय उत्पन्न हुए। विश्वसनीय पुरुष अय्यूब के ऐतिहासिक विवरण से सूचित होता है कि अब परमेश्वर के सभी प्राणियों की ख़राई पर भी संदेह किया जा रहा था। न्याय से यह आवश्यक हुआ कि विश्वव्यापी महत्त्व के इन वादविषयों को तै करने के लिए समय दिया जाए।—अय्यूब १:६-११; २:१-५; लूका २२:३१ भी देखें।
८. (अ) मनुष्य ने अब खुद को कौनसी दुःखद अवस्था में पाया? (ब) मूसा के गीत में आशा की कौनसी किरण नज़र आती है?
८ परमेश्वर के न्याय्य मार्गों को ठुकराने से मनुष्यजाति की जो दुःखद अवस्था उत्पन्न हुई, उसका संक्षिप्त विवरण पौलुस ने रोमियों ८:२२ में दिया है। वहाँ प्रेरित ने लिखा: “सारी सृष्टि अब तक मिलकर कहरती और पीड़ाओं में पड़ी तड़पती है।” अधिकांश ‘कराहना’ और ‘तड़पना’ मनुष्यों के बीच न्याय की कमी की वजह से हुआ है, इसलिए कि “एक मनुष्य दूसरे मनुष्य पर अधिकार करके उसके ऊपर हानि लाता है।” (सभोपदेशक ८:९, न्यू.व.) परन्तु सर्वशक्तिमान परमेश्वर का शुक्र है, कि वह न्याय की ऐसी विडम्बना को अनिश्चित काल तक चलते रहने नहीं देंगे! इस संबंध में, ग़ौर करें कि व्यवस्थाविवरण ३२:४०, ४१ में मूसा ने अपने गीत में आगे क्या कहा: “‘क्योंकि मैं अनन्त काल के लिए जीवित हूँ,’ सो यदि मैं [यहोवा] बिजली की तलवार पर सान धरकर झलकाऊँ, और न्याय अपने हाथ में ले लूँ, तो अपने द्रोहियों से बदला लूँगा, और अपने बैरियों को बदला दूँगा।”
९. व्याख्या दें कि जब मनुष्य ने बग़ावत की, तब यहोवा ने “न्याय हाथ में” कैसे ले लिया।
९ वहाँ अदन में यहोवा ने “न्याय अपने हाथ में ले” लिया। कोई देर किए बिना, न्यायोचित रूप से परमेश्वर ने मनुष्यों को उनकी आज्ञाओं का उल्लंघन जानबूझकर करने की वजह से मृत्युदण्ड सुनाया। उन्होंने आदम से कहा: “तू मिट्टी तो है और मिट्टी ही में फिर मिल जाएगा।” (उत्पत्ति ३:१९) सदियों बाद, प्रेरित पौलुस ने आदम के पापी आचरण की वजह से संपूर्ण मानव परिवार को पहुँचे घोर परिणामों का संक्षिप्त विवरण दिया। उसने लिखा: “इसलिए जैसा एक मनुष्य के द्वारा पाप जगत में आया, और पाप के द्वारा मृत्यु आयी, और इस रीति से मृत्यु सब मनुष्यों में फैल गयी, इसलिए कि सब ने पाप किया।”—रोमियों ५:१२.
१०. आदम की बग़ावत के समय से कौनसे दो वंश विकसित हुए हैं, और यहोवा ने कैसी प्रतिक्रिया दिखायी है?
१० मनुष्य की बग़ावत की शुरुआत के पश्चात्, परमेश्वर ने यह भी कहा: “मैं तेरे और स्त्री के बीच में, और तेरे वंश और इसके वंश के बीच में बैर उत्पन्न करूँगा, वह तेरे सिर को कुचल डालेगा, और तू उसकी एड़ी को डसेगा।” (उत्पत्ति ३:१५, १७-१९, न्यू.व.) ६,००० साल से इन दो वंशों का विकास जारी रहा है, और उन दोनों के बीच “बैर” हमेशा ही रहा है। परन्तु, पृथ्वी के सभी बदलते दृश्यों के बावजूद, यहोवा के न्याय्य मार्ग नहीं बदले। अपने भविष्यद्वक्ता मलाकी के ज़रिए, वह कहते हैं: “मैं यहोवा हूँ; मैं नहीं बदला।” (मलाकी ३:६, न्यू.व.) इस से यह निश्चित हुआ है कि न्याय, अपूर्ण और उद्धत मनुष्यजाति से निपटने के लिए परमेश्वर के तरीकों की विशेषता हमेशा रहा है। यहोवा अपने उच्च, धार्मिक सिद्धान्तों को अपने अत्युत्तम गुण, बुद्धि, प्रेम और ताक़त से अनुकूल बनाते समय, एक बार भी उन सिद्धान्तों के पथ से नहीं हटे हैं।
परमेश्वर मनुष्य की छुड़ाई को आते हैं
११, १२. भजन ४९ किस तरह मनुष्य की हालत का विवरण बखूबी से करता है?
११ एक बड़े ऑक्टोपस की स्पर्शिकाओं की तरह, शैतान के दुष्ट प्रभाव ने फैलकर समस्त मानव परिवार को घेर लिया है। ओह, मानवों को न केवल उन पर सुनाए गए मृत्युदण्ड से, पर अपूर्ण मानव शासकत्व की अन्यायी व्यवस्थाओं से भी छुड़ाए जाने की कितनी ज़्यादा ज़रूरत है!
१२ जब से उस पर मृत्युदण्ड सुनाया गया, उस समय से मनुष्य ने अपने आप को जिस बुरे हालत में पाया है, उसका विवरण उत्तरवर्ती कोरह-वंशियों के भजन में बखूबी से किया गया है: “हे देश देश के सब लोगो, यह सुनो! हे संसार के सब निवासियो, कान लगाओ! क्या ऊँच, क्या नीच, क्या धनी, क्या दरिद्र, कान लगाओ! उन में से कोई अपने भाई को किसी भाँति छुड़ा नहीं सकता है, और न परमेश्वर को उसकी सन्ती प्रायश्चित में कुछ दे सकता है, (क्योंकि उनके प्राण की छुड़ौती भारी है, वह अन्त तक कभी न चुका सकेंगे)। कोई ऐसा नहीं जो सदैव जीवित रहे, और क़ब्र को न देखे। (भजन ४९:१, २, ७-९) ये सब परमेश्वर के अभिव्यक्त न्याय की वजह से हुआ है!
१३, १४. (अ) मनुष्य को केवल कौन छुड़ा सकता था, तथा परमेश्वर द्वारा चुना गया व्यक्ति इतना उचित क्यों था? (ब) यीशु में परमेश्वर की सब प्रतिज्ञाएँ “हाँ” कैसे बनी हैं?
१३ तो फिर, मदद कहाँ से आ सकती थी? मनुष्य को मृत्यु के अधिकार से कौन छुड़ा सकता था? भजन जवाब देता है: “परमेश्वर मेरे प्राण को अधोलोक (शीओल, न्यू.व.) के वश से छुड़ा लेगा।” (भजन ४९:१५) परमेश्वर का विशाल प्रेम ही, जो उनके न्याय के साथ साथ कार्य कर रहा था, मनुष्य को “अधोलोक के वश” से छुड़ा सकता था। यीशु और सावधान फरीसी नीकुदेमुस के बीच रात को हुई बातचीत के दौरान हमारे सवालों के जवाब अधिक विस्तार से दिए गए। यीशु ने उसे बताया: “परमेश्वर ने जगत से ऐसा प्रेम रखा कि उस ने अपना एकलौता पुत्र दे दिया, ताकि जो कोई उस पर विश्वास करे, वह नाश न हो, परन्तु अनन्त जीवन पाए।” (यूहन्ना ३:१६) परमेश्वर के पुत्र के इस पृथ्वी पर आने से पहले, वह अपने पिता के साथ स्वर्ग में रह रहा था। अपने मानव-पूर्व अस्तित्व में, उसका उल्लेख इस तरह किया गया है कि वह ‘मनुष्यों को बहुत चाहता था।’ (नीतिवचन ८:३१; न्यू.व.) तो फिर, यहोवा की तरफ़ से यह कितना उचित है कि उन्होंने इस विशेष आत्मिक प्राणी—अपने एकलौते पुत्र—को मानवजाति को छुड़ाने हेतु चुना!
१४ यीशु के बारे में, पौलुस ने कहा: “परमेश्वर की जितनी प्रतिज्ञाएँ हैं, वे सब उसी में हाँ के साथ हैं।” (२ कुरिन्थियों १:२०) यशायाह द्वारा लिपिबद्ध की गयी ऐसी ही एक प्रतिज्ञा का उल्लेख मत्ती १२:१८, २१ (न्यू.व.) में किया गया है, जहाँ हम यीशु के संबंध में पढ़ते हैं: “देखो, यह मेरा सेवक है, जिसे मैं ने चुना है; मेरा प्रिय, जिस से मेरा मन प्रसन्न है: मैं अपना आत्मा उस पर डालूँगा; और वह न्याय को अन्यजातियों के सामने स्पष्ट करेगा। और अन्यजातियाँ उसके नाम पर आशा रखेंगी।”—यशायाह ४२:१-४ देखें।
१५, १६. यीशु को आदम के संतानों का “अनन्तकाल का पिता” बनना किस तरह संभव था?
१५ यीशु की पार्थिव सेवकाई के दौरान, उन्होंने स्पष्ट किया कि सभी जातियों में से मनुष्य उनके नाम में आख़िरकार आशा रख सकते हैं और इस प्रकार परमेश्वर के न्याय के फ़ायदों का आनन्द उठा सकते हैं। यीशु ने कहा: “मनुष्य का पुत्र . . . इसलिए नहीं आया कि उसकी सेवा टहल की जाए, परन्तु इसलिए आया कि आप सेवा टहल करे; और बहुतों की छुड़ौती के लिए अपने प्राण दे।” (मत्ती २०:२८) इस्राएल की जाति को दिए परमेश्वर के परिपूर्ण नियम में बताया गया: “प्राण की सन्ती प्राण।” (व्यवस्थाविवरण १९:२१) इसलिए, यीशु के अपने परिपूर्ण जीवन की बलि चढ़ाने और परमेश्वर की ताक़त से उसे पुनरुत्थित किए जाने के बाद, वह एक ऐसी स्थिति में थे कि वह, आदम के जीवन-अधिकार के बदले में, यहोवा के सामने अपने परिपूर्ण मानव जीवन की क़ीमत देने की स्थिति में थे। इस तरह, यीशु “अन्तिम [या दूसरा] आदम” बन गए और अब वह आदम के सारे विश्वास करनेवाले सन्तानों के “अनन्तकाल के पिता” के रूप में कार्य करने के लिए समर्थ किए गए हैं।—१ कुरिन्थियों १५:४५; यशायाह ९:६.
१६ परमेश्वर के उद्धार करने के तरीक़े को, जो अपने पुत्र, यीशु मसीह के छुड़ाई बलिदान के प्रेममय प्रबंध के ज़रिए है, इस तरह ‘अन्यजातियों को स्पष्ट किया गया है।’ और सचमुच ईश्वरीय न्याय इसकी विशेषता है। हमें कितना आभारी होना चाहिए कि परमेश्वर ने वह मार्ग दिया है कि ‘हम अपने प्राण को शीओल के वश से छुड़ा सकते हैं’!
छुड़ाई का समर्थन करना
१७, १८. १८७० के दशक में सी. टी. रस्सेल कौनसी साझेदारी में शामिल हुआ, लेकिन १८७८ में बार्बर ने उसे कैसे चौंका दिया?
१७ पहली-सदी के मसीहियों की तरह, आधुनिक समय में यहोवा के गवाहों ने यीशु मसीह के छुड़ाई बलिदान की शिक्षा का समर्थन हमेशा किया है। यह याद करना दिलचस्पी की बात है कि वॉच टावर सोसाइटी के पहले सभापति, चार्ल्स टेज़ रस्सेल, किसी वक्त एक धार्मिक पत्रिका के एक सह-सम्पादक और आर्थिक समर्थक थे, जिसका नाम द हेरल्ड ऑफ द मॉरनिंग था। वह पत्रिका प्रारंभ में रॉचेस्टर, न्यू यॉर्क, यू.एस.ए., के एक ॲडवेंटिस्ट, एन. एच. बार्बर द्वारा प्रकाशित की जाती थी। रस्सेल की उम्र बीस से उनतीस वर्ष के बीच थी परन्तु बार्बर ज़्यादा बुज़ुर्ग था।
१८ लगता है कि साझेदारी १८७८ तक अच्छी चलती रही, लेकिन उस वर्ष, बार्बर ने आश्चर्यजनक रूप से एक लेख प्रकाशित किया, जिस में छुड़ाई को नकारा गया था। वास्तव में क्या हुआ, इसका वर्णन करते हुए, रस्सेल ने कहा: “श्री. बार्बर . . . ने द हेरल्ड के लिए एक लेख लिखा, जिस में उसने हरजाने के धर्मसिद्धान्त को नकारा—यह नकारते हुए कि मसीह की मौत आदम और उसके वंश के लिए छुड़ाई की क़ीमत थी। उसने कहा कि मनुष्य के पापों की सज़ा हमारे प्रभु की मौत से चुकाना उतना ही अप्रयोजनीय है, जितना कि किसी मक्खी के बदन में पिन घुसेड़ना और उसे दुःख तथा मरण देकर किसी पार्थिव माता-पिता का सोचना अप्रयोजनीय है, कि यही अपने बच्चे के अपराध का एक न्यायोचित निपटारा है।”
१९. (अ) बार्बर की राय के बारे में रस्सेल की क्या प्रतिक्रिया थी? (ब) द वॉचटावर के संबंध में क्या रस्सेल की मनोकामना पूरी हुई है?
१९ रस्सेल अपने बड़े साझेदार से प्रभावित हो सकता था, लेकिन वह नहीं हुआ। कई महीनों तक, उस पत्रिका के पृष्ठों पर वह वाद-विवाद चलता रहा, बार्बर छुड़ाई को नकारते हुए, और रस्सेल उसका समर्थन करते हुए। आख़िरकार, रस्सेल ने बार्बर के साथ के सभी संबंध तोड़े और वह ज़ायनस् वॉच टावर ॲन्ड हेरल्ड ऑफ क्राइस्टस् प्रेज़न्स, नामक पत्रिका प्रकाशित करने लगा। रस्सेल ने इस नयी पत्रिका के बारे में ये भावनाएँ व्यक्त की: “पहले से ही, यह छुड़ाई का एक ख़ास समर्थक रही है; और, परमेश्वर की कृपा से, हम आशा करते हैं कि यह आख़िर तक ऐसी ही रहेगी।” क्या सम्पादक रस्सेल की आशा पूरी हुई है? यह बिल्कुल ही पूरी हुई है! यदि स्पष्टीकरण दिया जाए तो, इसी अंक के पृष्ठ २ पर कहा गया है कि यह पत्रिका “सत्तारूढ़ राजा, यीशु मसीह, पर विश्वास जमाती है, जिसके बहाए गए लहू से मनुष्यों को अनन्त जीवन पाने का मार्ग खुल जाता है।”
२०. कौनसे सवाल अब तक बिना जवाब के रह गए हैं?
२० हमारे विचार-विमर्श में अब तक, हम ने परमेश्वर के न्याय की प्रक्रिया पर ग़ौर किया है, कि कैसे उस से मानव परिवार पर सुनायी गयी पाप और मृत्यु की दण्डाज्ञा से मनुष्यजाति को छुड़ाने का एक ज़रिया आवश्यक होता है। प्रेम ने उस ज़रिए का प्रबंध किया। परन्तु, ऐसे सवाल बिना जवाब के रह गए हैं: यीशु मसीह के छुड़ाई बलिदान के लाभ किस तरह उपलब्ध कराए जाते हैं? उन से आप कैसे लाभ उठा सकते हैं, और कितनी जल्दी? अगले अंक में आपको ऐसे जवाब मिलेंगे जिन से आपका विश्वास बढ़ेगा कि न्याय परमेश्वर की सारी गति की विशेषता है।
आप कैसे जवाब देंगे?
◻ परमेश्वर न्याय पर क्या महत्त्व रखते हैं?
◻ मनुष्यजाति के बीच इतना अन्याय क्यों है?
◻ परमेश्वर ने मनुष्य को मृत्यु से उद्धार पाने का प्रबंध कैसे किया?
◻ द वॉचटावर ने किस हद तक छुड़ाई का समर्थन किया है?
[पेज 25 पर तसवीरें]
मोआब के अराबा में मूसा अपने गीत के शब्द सुनाता है
[पेज 28 पर तसवीरें]
परमेश्वर ने जगत से ऐसा प्रेम रखा कि उस ने अपना एकलौता पुत्र दे दिया