“शान्ति की महामारी”?
“शान्ति की महामारी।” “ओह, कैसी शान्तिमय दुनिया।” “शान्ति हर कहीं बरस रही है।” ये शीर्षक पिछले एक या दो वर्षों में पाठकों को चौंका देनेवाले अख़बार शीर्षकों में से थे। दुनिया भर, अख़बारों में निराशा और सत्यनाश से आशावाद तक का परिवर्तन आश्चर्यजनक था। क्या हो रहा था?
उल्लेखनीय रूप से, कुछ समय पहले बस कुछ ही महिनों में अनेक प्रधान संघर्ष, सभी या तो ख़त्म हुए या उनकी तीव्रता कम हुई। आफ्रिका में, अँगोला में शान्ति ‘शुरु हुई।’ मध्य एशिया में, सोवियत संघ ने अफ़गानिस्तान में से अपनी सेना हटा दी। मध्य अमेरिका में, निकॅरागुआ की सरकार और कॉन्ट्रा बाग़ियों के बीच की लड़ाई कम हो गयी। दक्षिण-पूर्व एशिया में, वियतनामी लोग कॅम्बोडिया से हटने के लिए राज़ी हो गए। “शान्ति की महामारी” मध्य पूर्व में भी फैल गयी, जब ईरान और इराक़ के बीच हुआ हिंसालु युद्ध आख़िर में धीरे-धीरे रुक गया।
शायद इन सब से ज़्यादा उल्लेखनीय दोनों महा-शक्तियों के बीच का नया वातावरण था। ४० वर्षों के शीत युद्ध के बाद, मैत्रीपूर्ण इशारों, परस्पर हित की अभिव्यक्तियों, और सोवियत संघ तथा अमेरिका के बीच शान्ति की ओर ले जानेवाली निश्चित चेष्टा पर विश्वास करना मुश्किल था। इसके अतिरिक्त, दी इकॉनोमिस्ट के अनुसार, यूरोप ने अब अपने सम्पूर्ण लिपिबद्ध इतिहास में युद्ध के बिना सबसे लम्बी सतत अवधि चिह्नित की है। सचमुच, शान्ति की चर्चा हो रही है।
इसका मतलब क्या है? क्या राजनीतिज्ञ “हमारे समय के लिए शान्ति” लाने ही वाले हैं? बावन साल पहले, ब्रिटिश प्रधान-मंत्री नेविल चेंबर्लेन ने ये शब्द कहे थे। वे क्रूर रूप से व्यंगात्मक साबित हुए जब, कुछ ही समय बाद, दूसरा विश्व युद्ध शुरु हुआ। क्या वे शब्द अब आख़िरकार सच होनेवाले हैं?