अपने पारिवारिक जीवन में परमेश्वर को पहला स्थान दें!
पूर्व लेख में प्रस्तुत विवाहित दम्पति—बॉब और जीन का तलाक़ नहीं हुआ। इसके बजाय, उन्होंने एक मसीही सेवक के साथ अपनी तक़लीफ़ों पर विचार-विमर्श किया। उसने शीघ्र ही समझ लिया कि उनकी कठिनाइयां मूलतः उनकी विरोधी पृष्ठभूमि के कारण थीं।
उदाहरण के लिए, चूंकि बॉब दुकानदारों और मज़दूर-वर्ग के परिवार से आया था और उसने स्वयं शारीरिक श्रम किया था, वह प्रत्येक सुबह पुष्टिकर नाश्ता चाहता था। जीन, जो सफ़ेदपोश वेतनभोगियों के परिवार से आयी थी, उसे सिर्फ़ कॉफी और टोस्ट दिया करती थी। अतः यही कारण था कि नाश्ते के बारे में यह झगड़ा सम्पूर्ण लड़ाई में बढ़ गया था!
बॉब और जीन को अपने विचारों के आदान-प्रदान में सुधार लाने की आवश्यकता थी। तथापि, उनकी दुर्गति का वास्तविक कारण और अधिक गंभीर था। सेवक ने उनसे पूछा, “क्या आप लोगों ने १ कुरिन्थियों १३:४ को ध्यान में रखकर एक दूसरे का विचार किया है?” बाइबल शास्त्रपद में बताया गया है: “प्रेम धीरजवन्त है, और कृपाल है; प्रेम डाह नहीं करता; प्रेम अपनी बड़ाई नहीं करता, और फूलता नहीं।” अगला पद कहता है कि प्रेम “अनरीति नहीं चलता, वह अपनी भलाई नहीं चाहता, झुंझलाता नहीं, बुरा नहीं मानता।” जीन और बॉब, दोनों, इन वचनों को अपने सम्बन्ध में लागू करने के लिए तैयार थे।
इस विवाहित दम्पति की समस्याओं के लिए पहले एक आध्यात्मिक समाधान की आवश्यकता थी। चूंकि बॉब और जीन परमेश्वर के साथ एक अच्छा सम्बन्ध बनाए रखना चाहते थे, सबसे पहले उन्हें बाइबल के सिद्धान्तों को प्रयोग में लाने और यह समझने की आवश्यकता थी कि “यदि घर को यहोवा न बनाए, तो उसके बनाने वालों का परिश्रम व्यर्थ होगा।” (भजन संहिता १२७:१) पद ३ से ५ एक परिवार के निर्माण के बारे में बताते हैं। और पारिवारिक खुशी को बढ़ाने में सबसे अधिक सफलता पारिवारिक जीवन में परमेश्वर को पहला स्थान देने से आता है।—इफिसियों ३:१४, १५.
परमेश्वर को पहला स्थान देने में क्या शामिल है
अपने पारिवारिक जीवन में परमेश्वर को पहला स्थान देना इस कहावत से कहीं अधिक अर्थ रखता है, “जो परिवार साथ-साथ प्रार्थना करता है, साथ-साथ रहता भी है।” फैमिली रिलेशन्ज़ पत्रिका के अनुसार, अनेक लोग विश्वास करते हैं कि “धर्म सकारात्मक और सुस्वस्थ पारिवारिक पारस्पारिक क्रिया को सुकर बनाता है और अपने सदस्यों के जीवन सन्तोष को बढ़ा देता है।” पर केवल किसी धर्म में मानना परमेश्वर को पहला स्थान देने के समान नहीं है। अनेक लोग मात्र आदत, पारिवारिक परम्परा, या सामाजिक लाभ के कारण औपचारिक रूप से धर्म से लगाव रखते हैं। उनके दैनिक जीवन में परमेश्वर का प्रभाव बहुत कम रहता है। इससे भी महत्त्वपूर्ण बात यह है कि सभी धर्म “हमारे परमेश्वर . . . के निकट शुद्ध और निर्मल भक्ति” नहीं हैं।—याकूब १:२७.
अपने पारिवारिक जीवन में परमेश्वर को प्रथम स्थान देने के लिए, हमें और हमारे प्रिय जनों को यहोवा की उपासना उनकी इच्छा के अनुसार करनी चाहिए जो कि “सारी पृथ्वी के ऊपर परम प्रधान है।” (भजन संहिता ८३:१८) परमेश्वर के पुत्र, यीशु मसीह ने बताया: “परन्तु वह समय आता है, बरन अब भी है जिस में सच्चे भक्त पिता का भजन आत्मा और सच्चाई से करेंगे, क्योंकि पिता अपने लिए ऐसे ही भजन करने वालों को ढूंढता है। परमेश्वर आत्मा है, और अवश्य है कि उसके भजन करनेवाले आत्मा और सच्चाई से भजन करें।” (यूहन्ना ४:२३, २४) “आत्मा” से यहोवा परमेश्वर की उपासना करने के लिए, उसके प्रति हमारी पवित्र सेवा प्रेम और विश्वास से पूर्ण हृदय द्वारा प्रेरित होनी चाहिए। (मरकुस १२:२८-३१; गलतियों २:१६) “सच्चाई से” यहोवा की उपासना करने के लिए ज़रूरी है कि हम धार्मिक असत्यता का तिरस्कार करें और जैसा बाइबल में बताया गया है उसकी इच्छा का पूरी रीति से पालन करें। जब तक हमारा धर्म उसके स्तरों के अनुरूप नहीं, तब तक हम यहोवा परमेश्वर को पहला स्थान नहीं दे सकते हैं।a इन में से कुछ क्या हैं? और कैसे उन्हें प्रयोग में लाने से आपके परिवार को लाभ हो सकता है?
पति होकर परमेश्वर को पहला स्थान देना
१ कुरिन्थियों ११:३ में बाइबल कहती है: “हर एक पुरुष का सिर मसीह है; और स्त्री का सिर पुरुष है; और मसीह का सिर परमेश्वर है।” यदि आप एक पति हैं, तो परमेश्वर ने आपको अपने परिवार में मुख्य निर्णायक बनने की ज़िम्मेदारी दी है। पर यह किसी पति को अत्याचारी या तानाशाही बनने का लाइसेन्स नहीं देता है।
बाइबल पतियों को ऐसे निर्णय लेते समय जिनसे पत्नियाँ प्रभावित होंगी, उनकी भावनाओं पर विचार करने के लिए उत्साहित करती है। (उत्पत्ति २१:९-१४ से तुलना करें।) निश्चय ही, धर्मशास्त्र हम सब को ‘केवल अपनी ही हित की नहीं, बरन दूसरों की हित की भी चिन्ता करने के लिए’ उत्साहित करता है। (फिलिप्पियों २:२-४) जहां कोई बाइबल सिद्धान्त शामिल नहीं है, वहां बहुधा मसीही पति अपनी पत्नी की अभिरुचि को स्वीकार करेगा। उसके हित के बारे में सोचते हुए, वह यह भी निश्चित करेगा कि वह उत्तरदायित्वों से बहुत अधिक दबी न हो। उदाहरण के लिए, वह घर के काम-काज में उसकी सहायता कर सकता है, विशेषकर जब वह लौकिक नौकरी करती हो।
प्रेरित पौलुस ने लिखा: “पति अपनी पत्नी से अपनी देह के समान प्रेम रखे, जो अपनी पत्नी से प्रेम रखता है, वह अपने आप से प्रेम रखता है। क्योंकि किसी ने कभी अपने शरीर से बैर नहीं रखा बरन उसका पालन-पोषण करता है, जैसा मसीह भी कलीसिया के साथ करता है।” (इफिसियों ५:२८, २९) यीशु मसीह कलीसिया के सदस्यों के साथ प्रेमपूर्ण तरीक़े से व्यवहार करता है।
प्रेरित पतरस की सलाह भी ध्यान देने योग्य है: “हे पतियो, तुम भी बुद्धिमानी से [अपनी पत्नियों] के साथ जीवन निर्वाह करो और स्त्री को निर्बल पात्र जानकर उसका आदर करो, यह समझकर कि हम दोनों जीवन के बरदान के वारिस हैं, जिस से तुम्हारी प्रार्थनाएं रुक न जाएं।” (१ पतरस ३:७) क्या यह पूरी तरह से समझना एक गंभीर कर देनेवाली बात नहीं कि प्रेमरहित रीति से अपनी पत्नी से व्यवहार करना पति की प्रार्थनाओं में रुकावट ला सकता है? हां, एक पुरुष को अपनी पत्नी से प्रेमपूर्वक व्यवहार करना ही चाहिए, तभी परमेश्वर उसकी प्रार्थनाओं को सुनेंगे और उत्तर देंगे।
परमेश्वर को पहला स्थान देने से अपने बच्चों के साथ एक पिता के सम्बन्ध पर भी प्रभाव पड़ता है। उसे उनकी आध्यात्मिक भलाई के बारे में अति चिन्तित रहना चाहिए। तथापि, यु. एस. के एक प्रधान सर्वेक्षण में, पुरुषों के केवल आधे हिस्से ने बताया कि “धर्मशास्त्र के अध्ययन या चर्चा समूहों में हिस्सा लेना” ‘उनके परिवार की आध्यात्मिक उन्नति के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण’ था। बाक़ी लोगों ने ऐसी बातों का ज़िक्र किया जैसे “प्रसारित धार्मिक प्रोग्रामों को देखना या सुनना” या ‘जीवन के अर्थ पर विचार करना।’
तथापि, बाइबल पिताओं से कहती है: “अपने बच्चों को रिस न दिलाओ परन्तु प्रभु की शिक्षा, और चितावनी देते हुए, उनका पालन-पोषण करो।” (इफिसियों ६:४) यहोवा के गवाहों में पिताओं से आशा की जाती है कि वे पारिवारिक उपासना में नेतृत्व लें। पारिवारिक बाइबल अध्ययन नियमित रूप से संचालित करने, मसीही सभाओं में उपस्थित होने, और धर्मशास्त्र की दूसरी आवश्यकताओं को पूरा करने के द्वारा ऐसे पुरुष पारिवारिक जीवन में परमेश्वर को पहला स्थान देते हैं।
पत्नी होकर परमेश्वर को पहला स्थान देना
यदि आप एक पत्नी हैं, तो परिवार के प्रधान के रूप में अपने पति की भूमिका का समर्थन करने के द्वारा आप परमेश्वर को पहला स्थान दे सकती हैं। बाइबल कहती है: “हे पत्नियो, जैसा प्रभु में उचित है, वैसा ही अपने अपने पति के आधीन रहो।” (कुलुस्सियों ३:१८) यह उस समय शायद बहुत कठिन होगा जब पुरुष आलापप्रिय नहीं होता या पारिवारिक उपासना में नेतृत्व लेने के सम्बन्ध में निरुत्साह होता है। चाहे कुछ हो, उसकी त्रुटियों पर निरन्तर ध्यानकेंद्रित करने या, उस से भी बदतर, उसका विरोध करने से पारिवारिक तनाव मात्र बढ़ ही जाएगा।
नीतिवचन १४:१ कहता है: “हर बुद्धिमान स्त्री अपने घर को बनाती है, पर मूढ़ स्त्री उसको अपने ही हाथों से ढा देती है।” अपने पति के अधीन रहना एक तरीक़ा है जिससे एक सचमुच ही बुद्धिमान विवाहित स्त्री परमेश्वर को पहला स्थान दे सकती है और ‘अपना घर बना सकती है।’ (१ कुरिन्थियों ११:३) चूंकि ‘उसके वचन कृपा की शिक्षा के अनुसार हैं,’ वह अपने पति की अनावश्यक आलोचना करने से दूर रहती है। (नीतिवचन ३१:२६) वह उसके निर्णयों को सफल बनाने के लिए कठिन परिश्रम करती है।
किसी विवाहित स्त्री के लिए परमेश्वर को पहला स्थान देने का एक और तरीक़ा है कि वह एक परिश्रमी पत्नी बने। निश्चय ही, यदि वह लौकिक नौकरी करती है तब जैसा वह चाहती है वैसा अपने घर को सँवारने के लिए उसके पास न तो आवश्यक समय होगा, न शक्ति। फिर भी वह “क़ाबिल पत्नी” बनने की कोशिश कर सकती है जिसके बारे में बाइबल कहती है: “वह अपने घराने के चालचलन को ध्यान से देखती है, और अपनी रोटी बिना परिश्रम नहीं खाती।”—नीतिवचन ३१:१०, २७.
सबसे बड़ी बात तो यह है कि एक पत्नी को अपने जीवन में परमेश्वर की उपासना को पहला स्थान देने की आवश्यकता है। अनेक लोग जो यहोवा के गवाहों के किंग्डम् हॉल में पहली बार जाते हैं बच्चों के साफ़-सुथरे दिखाव-बनाव पर टीका करते हैं। इस सम्बन्ध में पत्नी का कार्य अमूल्य है। पर वह प्रार्थना, अध्ययन और परमेश्वर की सेवा करने के द्वारा अपनी आध्यात्मिकता को बनाए रखने के लिए भी काम करती है।
युवजन होकर परमेश्वर को पहला स्थान देना
ॲडोलेस्सेंट काउन्सेलर में एक लेख बताता है: “बच्चे ऐसी मनोवृत्ति और दार्शनिकता विकसित करने के लिए प्रवृत्त रहे हैं जिनसे उन्हें अपने माता-पिता पर नियंत्रण रखने की स्वीकृति मिली है। . . . एक ऐसे समाज के प्रभाव में डाले जाने की वजह से, जिस में तात्कालिक तुष्टिकरण और भौतिक धन का गुणगान किया जाकर उन पर ज़ोर दिया जाता है, किशोर ‘मुझे यह अभी चाहिए’ मनोवृत्ति विकसित करते हैं। यदि आप एक युवा हैं, तो क्या आपकी मनोवृत्ति भी यही है?
कुलुस्सियों ३:२० कहता है: “हे बालको, सब बातों में अपने अपने माता-पिता की आज्ञा का पालन करो, क्योंकि प्रभु इस से प्रसन्न होता है।” एक युवा व्यक्ति जो ऐसी आज्ञाकारिता को परमेश्वरीय आवश्यकता समझता है, अपने माता-पिता को सहयोग देगा। उदाहरण के लिए, वह स्कूल के उन मित्रों के साथ जिन्हें वे पसन्द नहीं करते, चोरी-छिपे मित्रता करने के द्वारा उनका विरोध नहीं करेगा; न ही वह धूर्तता से अपने पिता वा माता को अपने तरीक़े से चलाने की कोशिश करेगा। (नीतिवचन ३:३२) उलटा, कोई भी युवा व्यक्ति जो जीवन में परमेश्वर को पहला स्थान देता है माता-पिता के प्रेमपूर्वक मार्गदर्शन के अनुसार काम करेगा।
परमेश्वर को पहला स्थान दें!
परिवार में हमारा स्थान जो भी हो, हमें जीवन में परमेश्वर को पहला स्थान देने और उसके साथ एक निकट सम्बन्ध बढ़ाने की आवश्यकता है। क्या आप और आपका परिवार ऐसा कर रहा है?
इन “अन्तिम दिनों” में, हम सभी “कठिन समय” का सामना करते हैं। (२ तीमुथियुस ३:१-५) तथापि, आध्यात्मिक रूप से फलना-फूलना और इस रीति-व्यवस्था के अन्त से जीवित बचना सम्भव है। (मत्ती २४:३-१४) परिशुद्ध बाइबल ज्ञान के अनुसार काम करने के द्वारा, आप और अपना परिवार एक परादीस पृथ्वी पर अनन्त जीवन की आशा रख सकते हैं। (लूका २३:४३; यूहन्ना १७:३; प्रकाशितवाक्य २१:३, ४) हां, ऐसा हो सकता है यदि आप अपने पारिवारिक जीवन में परमेश्वर को पहला स्थान देंगे।
[फुटनोट]
a वॉचटावर बाइबल एण्ड ट्रैक्ट सोसाइटी ऑफ इंडिया द्वारा प्रकाशित आप पृथ्वी पर परादीस में सर्वदा जीवित रह सकते हैं किताब के अध्याय २२ देखें।
[पेज 5 पर तसवीरें]
क़ाबिल पत्नी की अत्याधिक क़दर की जाती है
[पेज 7 पर तसवीरें]
बाइबल में पतियों को पारिवारिक उपासना में नेतृत्व लेने का प्रोत्साहन दिया गया है