मसीही मिशनरी कार्य का एक प्रेरित नमूना
“तुम मेरी सी चाल चलो जैसा मैं मसीह की सी चाल चलता हूं।”—१ कुरिन्थियों ११:१.
१. यीशु ने अपने अनुयायियों के अनुकरण करने के लिए कौन से कुछ तरीक़ों से एक विशिष्ट उदाहरण प्रस्तुत किया? (फिलिप्पियों २:५-९)
यीशु ने अपने चेलों के लिए क्या ही विशिष्ट उदाहरण रखा! उसने ख़ुशी-ख़ुशी अपनी स्वर्गीय महिमा को छोड़ा ताकि पृथ्वी पर आकर पापी मनुष्यों के बीच में बस सके। वह मानवजाति के उद्धार के लिये तथा, इससे भी ज़रूरी, अपने स्वर्गीय पिता के नाम के पवित्रीकरण के लिये बृहत् दु:खों को सहने को तैयार था। (यूहन्ना ३:१६; १७:४) जब वह अपने ज़िन्दगी के मुकदमे पर था, तो यीशु ने बेखटके घोषित किया: “मैं ने इसलिए जन्म लिया, और इसलिये जगत में आया हूं कि सत्य पर गवाही दूं।”—यूहन्ना १८:३७.
२. जिस कार्य को उसने आरंभ किया था, उसे जारी रखने के लिए पूनर्जीवित यीशु अपने चेलों को क्यों आज्ञा दे सकता था?
२ अपनी मृत्यु से पहले, यीशु ने अपने चेलों को बहुत बढ़िया प्रशिक्षण दिया ताकि वे राज्य सच्चाई की गवाही देने के काम को जारी रख सकें। (मत्ती १०:५-२३; लूका १०:१-१६) इस भांति, अपने पुनरुत्थान के बाद, यीशु यह आज्ञा दे सकता था: “जाकर सब जातियों के लोगों को चेला बनाओ और उन्हें पिता और पुत्र और पवित्रात्मा के नाम से बपतिस्मा दो। और उन्हें सब बातें जो मैं ने तुम्हें आज्ञा दी है, मानना सिखाओ।”—मत्ती २८:१९, २०.
३. चेले बनाने का कार्य कैसे विस्तृत हुआ, परन्तु यह मुख्य तौर से किन क्षेत्रों में संकेंद्रित था?
३ अगले साढ़े तीन वर्षों तक, यीशु के चेलों ने इस आज्ञा का पालन किया परन्तु चेले बनाने के अपने कार्य को उन्होंने यहूदियों, यहूदी नवदीक्षितों, तथा ख़तना किये सामरियों तक सीमित रखा। तब, सा.यु. ३६ में, परमेश्वर ने निदेशित किया कि एक बेख़तना किये व्यक्ति, कुरनेलियुस, और उसके घराने को सुसमाचार सुनाया जाए। अगले दशक के दौरान, दूसरे ग़ैरयहूदियों को कलीसिया में लाया गया। तो भी, प्रतीत होता है कि ज़्यादातर कार्य पूर्वी भूमध्य सागर के क्षेत्रों तक सीमित था।—प्रेरितों १०:२४, ४४-४८; ११:१९-२१.
४. सा.यु. ४७-४८ के लगभग क्या महत्त्वपूर्ण विकास हुआ?
४ मसीहियों को अभिप्रेरित करने, या योग्य बनाने के लिए कुछ आवश्यक था जिससे कि वे और दूर के क्षेत्रों में यहूदियों और ग़ैरयहूदियों को चेले बनाएँ। इसलिए, सा.यु. ४७-४८ के लगभग, अरामी अन्ताकिया की कलीसिया के प्राचीनों को यह ईश्वरीय संदेश मिला: “मेरे निमित्त बरनबास और शाऊल को उस काम के लिये अलग करो जिस के लिये मैं ने उन्हें बुलाया है।” (प्रेरितों १३:२) ध्यान दीजिये कि पौलुस तब अपने मौलिक नाम, शाऊल, से जाना जाता था। इस पर भी ध्यान दीजिये कि परमेश्वर ने बरनबास का नाम पौलुस के नाम से पहले लिया, शायद इसलिए कि उस समय बरनबास उन दोनों में ज्येष्ठ समझा जाता था।
५. पौलुस तथा बरनबास की मिशनरी यात्रा का विवरण आज क्यों मसीहियों के लिए अति मानता रखता है?
५ पौलुस तथा बरनबास की मिशनरी यात्रा का विस्तृत अभिलेख यहोवा के गवाहों को बहुत प्रोत्साहन देता है, खासकर मिशनरियों और पायनियरों को जो कि एक विदेशी समाज में परमेश्वर की सेवा करने के लिए अपने गृहनगर से दूर गये हैं। इसके अलावा, प्रेरितों अध्याय १३ तथा १४ का पुनर्विचार अवश्य ही और भी लोगों को अभिप्रेरित करेगा कि पौलुस तथा बरनबास का अनुकरण करें और चेले बनाने के सबसे महत्त्वपूर्ण कार्य में अपने भाग को बढ़ाएँ।
कुप्रुस का टापू
६. कुप्रुस में मिशनरियों ने कैसा उदाहरण प्रस्तुत किया?
६ बिना विलंब किए उन मिशनरियों ने सिलूकिया के अरामी बंदरगाह से कुप्रुस के टापू को जलयात्रा की। सलमीस में उतरने के बाद, उनका ध्यान इधर-उधर नहीं हुआ बल्कि वे “परमेश्वर का वचन यहूदियों की आराधनालयों में” सुनाने लगे। मसीह के नमूने पर चलते हुए, वे उस शहर में आराम से बैठकर द्वीपवासियों का उनके पास आने की प्रतीक्षा करने के लिए संतुष्ट नहीं थे। बल्कि, वे काम करते हुए “उस सारे टापू में होते हुए” गए। निस्संदेह इस में काफ़ी चलना और आवास का कई बार बदलना शामिल था, चूँकि कुप्रुस एक बड़ा टापू है, और उनकी यात्रा उन्हें इस के सबसे लंबे-चौड़े भाग के एक ओर से दूसरी ओर तक ले गई।—प्रेरितों १३:५, ६.
७. (क) पाफुस में कौनसी विशिष्ट घटना घटी? (ख) यह विवरण हमें कैसी अभिवृत्ति रखने का प्रोत्साहन देता है?
७ उनके ठहराव के अन्त में, उन दोनों पुरुषों को पाफुस के शहर में एक अद्भुत अनुभव का प्रतिफल मिला। उस टापू के हाकिम, सिरगियुस पौलुस, ने उनका संदेश सुना और “विश्वास किया।” (प्रेरितों १३:७, १२) बाद में पौलुस ने लिखा: “हे भाइयो, अपने बुलाए जाने को तो सोचो, कि न शरीर के अनुसार बहुत ज्ञानवान, और न बहुत सामर्थी, और न बहुत कुलीन बुलाए गए।” (१ कुरिन्थियों १:२६) तो भी, प्रतिक्रिया दिखानेवाले सामर्थिओं में से एक, सिरगियुस पौलुस था। इस अनुभव से सब को प्रोत्साहन मिलना चाहिए, खासकर मिशनरियों को, कि सरकारी अधिकारियों को गवाही देने के बारे में हम सकारात्मक अभिवृत्ति रखें, जैसे १ तीमुथियुस २:१-४ भी हमें ऐसे करने को प्रोत्साहित करता है। अधिकार वाले व्यक्तियों ने कभी-कभी परमेश्वर के सेवकों को बहुत सहायता दी है।—नहेम्याह २:४-८.
८. (क) इस समय से, बरनबास तथा पौलुस के बीच क्या परिवर्तित रिश्ता प्रतीत होता है? (ख) बरनबास किस तरीके से एक अच्छा उदाहरण था?
८ यहोवा की आत्मा के प्रभाव के आधीन, सिरगियुस पौलुस के धर्म परिवर्तन में पौलुस का बड़ा भाग था। (प्रेरितों १३:८-१२) साथ ही, यह प्रतीत होता है कि इसी समय से पौलुस ने अगुआई की। (प्रेरितों १३:७ की तुलना प्रेरितों १३:१५, १६, ४३ से कीजिए.) यह उस ईश्वरीय आदेश के सामन्जस्य में था जो पौलुस को उसके धर्म परिवर्तन के समय मिला था। (प्रेरितों ९:१५) हो सकता है कि ऐसी वृद्धि ने बरनबास की विनम्रता को परखा हो। तो भी, इस परिवर्तन को निजी अपमान समझने के बजाय, संभव है कि बरनबास अपने नाम के अर्थ, “सांत्वना का पुत्र” पर पूरा उतरा, और पौलुस को पूरी मिशनरी यात्रा के दौरान निष्ठा से सहायता देता रहा और बाद में उस समय भी जब कुछ यहूदी मसीहियों ने ग़ैरयहूदियों के प्रति उनकी सेवकाई को चुनौती दी। (प्रेरितों १५:१, २) हम सब के लिए, और मिशनरी तथा बेथेल घरों के रहनेवालों के लिए, यह क्या ही अच्छा उदाहरण है! हमें हमेशा ईश्वरशासित समंजनों को स्वीकार करने के लिए, और जो हमारे बीच में अगुआई करने के लिए नियुक्त किए गए हैं उन्हें अपनी पूरी सहायता देने के लिए तत्पर होना चाहिए।—इब्रानियों १३:१७.
एशिया माइनर का पठार
९. पौलुस तथा बरनबास का पिसिदिया के अन्ताकिया तक यात्रा करने के लिए स्वैच्छिकता से हम क्या सीखते हैं?
९ कुप्रुस से, पौलुस तथा बरनबास उत्तर की ओर जलयात्रा करते हुए एशिया के महाद्वीप गए। किसी अप्रकट कारण के लिए, वे मिशनरी उस तटीय क्षेत्र में नहीं रहे परंतु लगभग १८० किलोमीटर की एक लंबी और ख़तरनाक यात्रा करते हुए पिसिदिया के अन्ताकिया गए, जो एशिया माइनर के केंद्रीय पठार पर स्थित था। इसके लिए एक पर्वत दर्रे के ऊपर से जाकर एक समतल भूमि पर नीचे आना पड़ता था जो कि समुद्र तल से कुछ १,१०० मीटर ऊपर था। बाइबल विद्वान जे. ऐस. हाउसन कहता है: “पठार को . . . दक्षिण तट की समतल भूमि से अलग करनेवाले उन पर्वतों की आबादी की विधिहीन तथा लूट-मार की आदतें, प्राचीन इतिहास के हर भाग में बदनाम थीं।” इसके अतिरिक्त, मिशनरियों को प्राकृतिक वातावरण से भी ख़तरा था। “एशिया माइनर में कोई भी ज़िला,” हाउसन आगे कहता है, “इतने असाधारण रूप से अपने ‘जल के बाढ़’ से पहचाना नहीं जाता है जितना कि पिसिदिया का पर्वती रास्ता, जहाँ पर नदियाँ विशाल चट्टानों के निचले भागों से फूट निकलती हैं, या तंगघाटी के बीच से नीचे की ओर तेज़ी से गिरती हैं।” यह विस्तृत वर्णन हमें उन यात्राओं को चित्रित करने में सहायता करता है जिन्हें मिशनरी सुसमाचार को फैलाने के कारण करने को तैयार थे। (२ कुरिन्थियों ११:२६) वैसे ही आज, बहुत सारे यहोवा के सेवक, लोगों तक पहुँचने तथा उनको सुसमाचार सुनाने के लिए हर प्रकार की रुकावटों का सामना करते हैं।
१०, ११. (क) पौलुस ने अपने श्रोतागण के साथ कैसे सामान्य आधार रखा? (ख) कई यहूदी लोग मसीह के दु:खों के बारे में सुनकर क्यों चकित हुए? (ग) पौलुस ने किस प्रकार का उद्धार अपने सुननेवालों के सामने रखा?
१० चूँकि पिसिदिया के अन्ताकिया में एक यहूदी आराधनालय था, तो मिशनरी पहले वहाँ गए ताकि जो परमेश्वर के वचन से सबसे अधिक परिचित थे, उन्हें सुसमाचार स्वीकार करने का अवसर दें। बोलने के लिए निमंत्रण पाने पर, पौलुस ने उठकर एक अत्यंत कुशलतापूर्ण सार्वजनिक भाषण दिया। पूरे भाषण में, उसने यहूदी और नवदीक्षित श्रोतागण के साथ एक सामान्य आधार रखा। (प्रेरितों १३:१३-१६, २६) अपनी प्रस्तावना के बाद, पौलुस ने यहूदियों के प्रसिद्ध इतिहास का पुनरीक्षण किया। उसने उन्हें याद दिलाया कि यहोवा ने उनके पुर्वजों को चुना था और फिर उन्हें मिस्र से मुक्त किया था, और साथ ही कैसे उसने प्रतिज्ञात देश के निवासियों पर विजय प्राप्त करने में उन लोगों की सहायता की थी। तब पौलुस ने दाऊद के साथ यहोवा के व्यवहार को विशिष्ट किया। ऐसी जानकारी पहली सदी के यहूदियों के लिए महत्त्वपूर्ण थी क्योंकि वे यह प्रतीक्षा कर रहे थे कि परमेश्वर, दाऊद के एक वंशधर को उद्धारकर्ता और अनन्त राजा के रूप में खड़ा करेगा। अब इस समय, पौलुस ने बेखटके घोषणा की: “इसी [दाऊद] के वंश में से परमेश्वर ने अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार इस्राएल के पास एक उद्धारकर्ता, अर्थात् यीशु को भेजा।”—प्रेरितों १३:१७-२३.
११ परन्तु, बहुत सारे यहूदियों को जिस प्रकार के उद्धारकर्ता की प्रतीक्षा थी, वह था एक सैनिक वीर जो उन्हें रोमी शासन से मुक्त करके यहूदी जाति को अन्य सब जातियों से ऊँचा उठाएगा। अत:, वे पौलुस को यह कहते हुए सुनकर निस्संदेह चकित हुए कि उनके अपने धार्मिक अगुओं ने ही मसीह को प्राणदंड के लिए पकड़वाया था। “परन्तु परमेश्वर ने उसे मरे हुओं में से जिलाया,” पौलुस ने बेखटके घोषित किया। अपने भाषण की समाप्ति पर, उस ने अपने श्रोतागण को दिखाया कि वे एक अद्भुत प्रकार के उद्धार को प्राप्त कर सकते हैं। “तुम जान लो,” उसने कहा, “कि इसी के द्वारा पापों की क्षमा का समाचार तुम्हें दिया जाता है। और जिन बातों से तुम मूसा की व्यवस्था के द्वारा निर्दोष नहीं ठहर सकते थे, उन्हीं सब से हर एक विश्वास करनेवाला उसके द्वारा निर्दोष ठहरता है।” पौलुस ने अपने श्रोताओं से यह आग्रह करते हुए अपने भाषण को समाप्त किया कि वे उन बहुतेरों में वर्गीकृत न हों जिनके बारे में परमेश्वर ने पूर्वकथन किया था कि वे उद्धार के इस अद्भुत प्रबंध की उपेक्षा करेंगे।—प्रेरितों १३:३०-४१.
१२. पौलुस के भाषण का क्या परिणाम हुआ, और इससे हमें कैसे प्रोत्साहन मिलना चाहिए?
१२ कितना बढ़िया शास्त्र-आधारित भाषण! श्रोतागण ने कैसी प्रतिक्रिया दिखाई? “यहूदियों और यहूदी मत में आए हुए भक्तों में से बहुतेरे पौलुस और बरनबास के पीछे हो लिए।” (प्रेरितों १३:४३) आज हमारे लिए कितना प्रोत्साहक है! आइये, हम भी इसी भाँति सच्चाई को प्रभावपूर्ण रूप से पेश करने के लिए अपनी पूरी कोशिश करें, चाहे यह हमारी आम सेवकाई में हो या हमारी कलीसिया सभाओं में टीका-टिप्पणियों तथा भाषणों में हो।—१ तीमुथियुस ४:१३-१६.
१३. मिशनरियों को क्यों पिसिदिया के अन्ताकिया को छोड़ना पड़ा, और नये चेलों के संबंध में कौन-कौन से प्रश्न उठते हैं?
१३ पिसिदिया के अन्ताकिया में नए दिलचस्पी रखनेवाले लोग इस सुसमाचार को अपने तक ही सीमित न रख सके। परिणामस्वरूप, “अगले सब्त के दिन नगर के प्राय: सब लोग परमेश्वर का वचन सुनने को इकट्ठे हो गए।” और जल्द ही वह संदेश शहर के बाहर तक फैल गया। सचमुच, “प्रभु का वचन उस सारे देश में फैलने लगा।” (प्रेरितों १३:४४, ४९) इस तथ्य का स्वागत करने के बजाय, ईर्ष्यालु यहूदी उन मिशनरियों को शहर से बाहर फिकवाने में सफ़ल हो गए। (प्रेरितों १३:४५, ५०) इस का नये चेलों पर क्या असर हुआ? क्या उन्होंने निराश होकर हार मान ली?
१४. मिशनरियों द्वारा आरम्भ किये हुए कार्य को विरोधी क्यों नहीं मिटा सके, और इससे हम क्या सीखते हैं?
१४ नहीं, क्योंकि यह परमेश्वर का कार्य था। साथ ही, मिशनरियों ने पुनर्जीवित प्रभु यीशु मसीह में विश्वास की एक दृढ़ बुनियाद डाली थी। तो, यह स्पष्ट है कि, उन नये चेलों ने मसीह को, और न कि मिशनरियों को, अपना अगुआ समझा। इसलिए, हम पढ़ते है कि वे “आनन्द से और पवित्र आत्मा से परिपूर्ण होते रहे।” (प्रेरितों १३:५२) आज मिशनरियों तथा चेले बनानेवाले दूसरे लोगों को यह कितना प्रोत्साहन देता है! अगर हम अपने भाग को विनम्रता और जोश से पूरा करें, तो यहोवा परमेश्वर तथा यीशु मसीह हमारी सेवकाई पर आशीर्वाद देंगे।—१ कुरिन्थियों ३:९.
इकुनियुम, लुस्त्रा, तथा दिरबे
१५. इकुनियुम में मिशनरियों ने किस क्रियाविधि का अनुसरण किया, और क्या परिणाम हुआ?
१५ पौलुस तथा बरनबास अब लगभग १४० किलोमीटर दक्षिण-पूर्व दिशा में अगले शहर, इकुनियुम को गए। अन्ताकिया की तरह यहाँ भी सताहट का भय उन्हें वैसी ही समान क्रियाविधि का अनुसरण करने से न रोक सका। परिणामस्वरूप, बाइबल कहती है: “यहूदियों और यूनानियों दोनों में से बहुतों ने विश्वास किया।” (प्रेरितों १४:१) फिर से, जिन यहूदियों ने सुसमाचार को स्वीकार नहीं किया, उन्होंने विरोध भड़काया। परन्तु मिशनरियों ने धीरज धरा और नये चेलों की सहायता करते हुए, इकुनियुम में काफ़ी समय बिताया। तब, जब उन्हें पता चला कि उनके यहूदी विरोधी उनको पथराव करने वाले हैं, तो पौलुस तथा बरनबास समझदारी से अगले क्षेत्र, “लुस्त्रा और दिरबे नगरों में, और आसपास के देशों” में भाग गए।”—प्रेरितों १४:२-६.
१६, १७. (क) लुस्त्रा में पौलुस के साथ क्या हुआ? (ख) पौलुस के साथ परमेश्वर के व्यवहार का लुस्त्रा के एक युवक पर क्या प्रभाव पड़ा?
१६ वे साहसपूर्वक इस नये, अछूते क्षेत्र में “सुसमाचार सुनाने लगे।” (प्रेरितों १४:७) जब पिसिदिया के अन्ताकिया तथा इकुनियुम के यहूदियों ने इसके बारे में सुना, तो वे इतनी दूर लुस्त्रा आये और भीड़ को प्रेरित किया कि वे पौलुस को पथराव करें। बच निकलने का समय न होने की वजह से, पौलुस पर पत्थरों की इतनी बौछार हुई, कि उसके विरोधियों को विश्वास हो गया कि वह मर गया था। वे उसे शहर के बाहर घसीटकर ले गए।—प्रेरितों १४:१९.
१७ क्या आप कल्पना कर सकते है कि इससे वे नये चेले कितने व्यथित हुए होंगे? परन्तु तज्जुब की बात है, जब वे पौलुस के चारों ओर खड़े हुए, तो वह उठ खड़ा हुआ! बाइबल नहीं बतलाती कि इन नये चेलों में तीमुथियुस नामक एक युवक शामिल था या नहीं। निश्चय ही परमेश्वर का पौलुस के साथ व्यवहार उसे किसी समय पता चला और उसके जवान मन पर एक गहरा प्रभाव पड़ा। पौलुस ने तीमुथियुस को अपनी दूसरी पत्री में लिखा: “तू ने उपदेश, चाल चलन, . . . में मेरा साथ दिया। और ऐसे दुखों में भी जो अन्ताकिया और इकुनियुम और लुस्त्रा में मुझ पर पड़े थे और और दुखों में भी, जो मैं ने उठाए हैं; परन्तु प्रभु ने मुझे उन सब से छुड़ा लिया।” (२ तीमुथियुस ३:१०, ११) पौलुस के पथराव के एक या दो वर्ष बाद, वह लुस्त्रा वापस गया और उसने पाया कि जवान तीमुथियुस एक अनुकरणीय मसीही था, जो “लुस्त्रा और इकुनियुम के भाइयों में सुनाम था।” (प्रेरितों १६:१, २) सो पौलुस ने उसे यात्रा साथी के तौर पर चुना। इससे तीमुथियुस को आध्यात्मिक उच्चता में बढ़ने की सहायता मिली, और समय आने पर वह इस योग्य हो गया कि पौलुस ने उसे अलग-अलग कलीसियाओं के साथ भेंट करने के लिए भेजा। (फिलिप्पियों २:१९, २०; १ तीमुथियुस १:३) उसी तरह, आज भी, परमेश्वर के उत्साही सेवकों का युवकों के ऊपर एक बहुत बढ़िया प्रभाव है। उन में से कई बड़े होकर, तीमुथियुस की तरह परमेश्वर के बहुत उपयोगी सेवक बनते हैं।
१८. (क) दिरबी में मिशनरियों के साथ क्या हुआ? (ख) अब उनके लिए कौनसा सुअवसर खुला था, परन्तु उन्होंने कौनसा मार्ग चुना?
१८ लुस्त्रा में अपनी मृत्यु से बच निकलने की दूसरी सुबह, पौलुस बरनबास के साथ दिरबे को निकल पड़ा। इस बार, कोई विरोधी पीछे-पीछे नहीं आए, और बाइबल कहती है कि उन्होंने “बहुत से चेले” बनाये। (प्रेरितों १४:२०, २१) दिरबे में कलीसिया स्थापित करने के बाद, पौलुस तथा बरनबास को एक निर्णय करना था। दिरबे से तारसी को एक काफ़ी इस्तेमाल की हुई रोमी सड़क जाती थी। वहाँ से अरामी अन्ताकिया को वापस जाने का सफ़र छोटा था। शायद लौटने का वही सबसे सुविधाजनक रास्ता था, और वे मिशनरी ऐसा महसूस कर सकते थे कि उन्हें अब आराम करना चाहिए। लेकिन, अपने स्वामी का अनुकरण करते हुए, पौलुस तथा बरनबास ने एक और अधिक ज़रूरत को महसूस किया।—मरकुस ६:३१-३४.
परमेश्वर के कार्य को पूरा करना
१९, २०. (क) लुस्त्रा, इकुनियुम, तथा अन्ताकिया को लौटने के लिए यहोवा ने मिशनरियों को कैसे आशीर्वाद दिया? (ख) यह आज यहोवा के लोगों को क्या शिक्षा देता है?
१९ घर को जाने का छोटा रास्ता लेने के बजाय, वे मिशनरी साहस करते हुए वापस गये और दुबारा उन्हीं शहरों में भेंट की जहाँ उनकी ज़िन्दगी ख़तरे में थी। क्या नयी भेड़ों के प्रति इस अस्वार्थी चिंता के लिए यहोवा ने उनको आशीर्वाद दिया? हाँ, ज़रूर दिया, क्योंकि विवरण बताता है कि वे सफ़लता से “चेलों के मन को स्थिर करते रहे और यह उपदेश देते थे, कि विश्वास में बने रहो।” उचित ही, उन्होंने उन नये चेलों को बताया: “हमें बड़े क्लेश उठाकर परमेश्वर के राज्य में प्रवेश करना होगा।” (प्रेरितों १४:२१, २२) पौलुस तथा बरनबास ने परमेश्वर के आनेवाले राज्य में संगी वारिस होने के उनके बुलावे के बारे में भी उन्हें याद दिलाया। आज, हमें नये चेलों को ऐसा ही प्रोत्साहन देना चाहिए। परमेश्वर के जिस राज्य के बारे पौलुस तथा बरनबास ने प्रचार किया, उसी राज्य के अधीन पृथ्वी पर अनन्त जीवन की प्रत्याशा को हम उन लोगों के आगे रख सकते है। इस प्रकार, हम उन्हें संकट सहने के लिए मज़बूत बना सकते हैं।
२० हर एक शहर को छोड़ने से पहले, पौलुस तथा बरनबास ने स्थानीय कलीसिया को बेहतर संघटित होने के लिए सहायता की। स्पष्टत:, उन्होंने योग्य पुरुषों को प्रशिक्षण देकर उन्हें पहल करने के लिए नियुक्त किया। (प्रेरितों १४:२३) निस्संदेह इससे और अधिक विस्तार के लिए सहयोग मिला। वैसे ही आज, मिशनरी तथा दूसरे जन, अनुभवहीन व्यक्तियों को ज़िम्मेदारियाँ संभालने के योग्य बनाने के बाद, कभी-कभी वहाँ से जाकर अन्य स्थानों में अपने भले कामों को जारी रखते हैं जहाँ पर ज़रूरत ज़्यादा है।
२१, २२. (क) पौलुस तथा बरनबास का अपनी मिशनरी यात्रा पूरी कर लेने के बाद क्या हुआ? (ख) इससे कौन-कौन से प्रश्न उठते हैं?
२१ जब मिशनरी आख़िरकार अरामी अन्ताकिया लौटे, तो वे अति संतुष्ट हो सकते थे। सच ही, बाइबल विवरण बताता है कि उन्होंने वह कार्य “पूरा किया” जो परमेश्वर ने उन्हें सौंपा था। (प्रेरितों १४:२६) स्वाभाविक है कि, उनके अनुभवों के वर्णनों ने “सब भाइयों को बहुत आनन्दित किया।” (प्रेरितों १५:३) परन्तु भविष्य के बारे में क्या? क्या वे हाथ पर हाथ धरकर बैठ जाएँगे, जैसे कि कहावत है? निश्चय ही नहीं। खतना के विवाद-विषय पर निर्णय पाने के लिए यरूशलेम में शासी निकाय से मिलने के बाद, वे दोनों फिर से मिशनरी यात्राओं पर निकल पड़े। इस बार वे अलग-अलग दिशाओं में गये। बरनबास ने यूहन्ना मरकुस को साथ लिया और कुप्रुस चला गया, जबकि पौलुस को एक नया साथी, सीलास, मिला और वे सूरिया तथा किलिकिया से होते हुए गए। (प्रेरितों १५:३९-४१) इसी यात्रा पर उसने तीमुथियुस को चुना और उसे साथ ले गया।
२२ बाइबल बरनबास की दूसरी यात्रा के परिणामों के बारे में नहीं बताती है। रही पौलुस की बात, वह यूरोप में नये क्षेत्र में गया और कम से कम पाँच शहरों में कलीसियाओं को स्थापित किया—फिलिप्पी, बिरीया, थिस्सलुनीके, कुरिन्थुस, तथा इफ़सुस। पौलुस की विशिष्ट सफ़लता की कुंजी क्या थी? क्या वही सिद्धांत आज के मसीही चेले बनानेवालों के काम आते हैं?
क्या आपको याद है?
▫ अनुकरण करने के लिए यीशु विशिष्ट उदाहरण क्यों है?
▫ किस तरह बरनबास एक उदाहरण था?
▫ पिसिदिया के अन्ताकिया में दिए पौलुस के भाषण से हम क्या सीखते हैं?
▫ पौलुस तथा बरनबास ने अपने नियत कार्य को कैसे पूरा किया?
[पेज 8 पर तसवीरें]
प्रेरित पौलुस का सताहट को सहने से जवान आदमी तीमुथियुस पर एक स्थायी प्रभाव पड़ा