धीरज—मसीहियों के लिए अत्यावश्यक
“अपने विश्वास को . . . धीरज . . . प्रदान करते जाओ।”—२ पतरस १:५-७, NW.
१, २. क्यों हम सब को अंत तक धीरज धरना चाहिए?
सफ़री ओवरसियर और उसकी पत्नी एक ९०-१०० वर्षीय संगी मसीही से भेंट कर रहे थे। उसने कई दशकों तक पूर्ण-समय की सेवकाई की थी। बात करते समय, उस वृद्ध भाई ने कुछ विशेषाधिकारों को याद किया जिनका आनन्द उसने सालों से उठाया था। “पर अब मैं कुछ भी काम ज़्यादा नहीं कर सकता हूँ,” उसने विलाप किया जैसे ही उसकी आँखों से आँसू बहने लगे। सफ़री ओवरसियर ने अपनी बाइबल खोली और मत्ती २४:१३ को पढ़ा, जहाँ यीशु मसीह को यूँ कहते हुए उद्धृत किया गया है: “जो अन्त तक धीरज धरे रहेगा, उसी का उद्धार होगा।” फिर ओवरसियर ने उस प्रिय भाई की ओर देखते हुए कहा: “चाहे हम कितना ज़्यादा कर सकते हैं या कितना कम, हम सब की अंतिम कार्य-नियुक्ति यही है कि हम अन्त तक धीरज धरें।”
२ जी हाँ, मसीही होने के नाते हम सब को इस रीति-व्यवस्था के अंत या हमारे जीवन के अंत तक धीरज धरना है। उद्धार के लिए यहोवा का अनुग्रह प्राप्त करने का और कोई तरीक़ा नहीं है। हम जीवन की दौड़ में हैं, और जब तक हम समाप्ति रेखा पार न कर लें, हमें ‘धीरज से दौड़ना’ चाहिए। (इब्रानियों १२:१) प्रेरित पतरस ने इस गुण के महत्त्व पर ज़ोर दिया जब उसने संगी मसीहियों से आग्रह किया: “अपने विश्वास को . . . धीरज . . . प्रदान करते जाओ।” (२ पतरस १:५-७, NW) लेकिन वास्तव में धीरज है क्या?
धीरज—इसका अर्थ
३, ४. धीरज धरने का क्या अर्थ है?
३ धीरज धरने का क्या अर्थ है? “धीरज धरने” के लिए यूनानी क्रिया (हाइपोमेनो, hy·po·meʹno) का शाब्दिक अर्थ है “के अधीन बने रहना या स्थिर रहना।” यह बाइबल में १७ बार आती है। कोशकार डब्ल्यू. बाउअर, एफ़. डब्ल्यू. गिंगरिच और एफ़. डैंकर, के अनुसार इसका अर्थ है, “भागने के बजाय बने रहना . . . , डटे रहना, कायम रहना।” “धीरज” के लिए यूनानी संज्ञा (hy·po·mo·neʹ) ३० से अधिक बार आती है। इसके बारे में, विलियम बार्कले द्वारा लिखित अ न्यू टेस्टामेंट वर्डबुक कहती है: “यह वह मनोदशा है जो बातों को सहन कर सकती है, केवल वश्यता के साथ नहीं, पर उत्साही आशा के साथ . . . यह वह गुण है जो एक व्यक्ति को वायु दिशा में मुख घुमाकर उसे उसके पैरों पर खड़ा रखता है। यह वह सद्गुण है जो सबसे कठिन परीक्षा को भी महिमा में रूपांतरित कर सकता है क्योंकि पीड़ा के आगे यह अपने लक्ष्य को देखता है।”
४ तो फिर, धीरज हमें डटे रहने और रुकावटों अथवा कठिनाइयों के मुख में आशा न खोने के लिए समर्थ बनाता है। (रोमियों ५:३-५) यह वर्तमान पीड़ा के आगे उस लक्ष्य को देखता है—अनन्त जीवन का पुरस्कार, या देन, चाहे यह स्वर्ग में हो या पृथ्वी पर।—याकूब १:१२.
धीरज—क्यों?
५. (क) क्यों सब मसीहियों के लिए “धीरज धरना अवश्य है”? (ख) हमारी परीक्षाओं को किन दो वर्गों में विभाजित किया जा सकता है?
५ मसीही होने के नाते, हम सब के लिए “धीरज धरना अवश्य है।” (इब्रानियों १०:३६) क्यों? मूलतः क्योंकि हम ‘नाना प्रकार की परीक्षाओं में पड़ते’ हैं। यहाँ याकूब १:२ में दिया गया यूनानी मूलपाठ एक आकस्मिक या अवांछित भेंट को सूचित करता है, जैसे कि जब एक व्यक्ति का एक डाकू के साथ सामना होता है। (लूका १०:३० से तुलना कीजिए.) हम ऐसी परीक्षाओं का सामना करते हैं जिन्हें दो वर्ग में विभाजित किया जा सकता है: वे जो वंशागत पाप के कारण मनुष्य के लिए सामान्य हैं, और वे जो हमारी ईश्वरीय भक्ति के कारण विकसित होती हैं। (१ कुरिन्थियों १०:१३; २ तीमुथियुस ३:१२) इन में से कुछ परीक्षाएँ क्या हैं?
६. एक गवाह ने कैसे धीरज धरा जब उसे एक कष्टप्रद बीमारी का सामना करना पड़ा?
६ गम्भीर बीमारी। तीमुथियुस की तरह, कुछ मसीहियों को “बार बार बीमार होने” के कारण दुःख सहना पड़ता है। (१ तीमुथियुस ५:२३) ख़ासकर जब एक जीर्ण, सम्भवतः अति कष्टप्रद बीमारी का सामना करते हैं, तब हमें आवश्यकता है कि परमेश्वर की सहायता के साथ धीरज धरें, डटे रहें और अपनी मसीही आशा को नहीं भूलें। पचास-पचपन की उम्र के एक गवाह का उदाहरण लीजिए जिसने एक तेज़ी-से-बढ़-रहे दुर्दम ट्यूमर के विरुद्ध लम्बा, कठिन संघर्ष किया। दो आपरेशनों के दौरान वह रक्ताधान न लेने के अपने संकल्प पर कायम रहा। (प्रेरितों १५:२८, २९) लेकिन वह ट्यूमर उसके उदर में पुनः प्रकट हुआ और उसकी रीढ़ के निकट बड़ा होता गया। जैसे-जैसे यह बढ़ता गया, उसे ऐसी अकल्पनीय पीड़ा का अनुभव हुआ जिसे अधिक से अधिक उपचार भी कम न कर सका। तो भी, वह वर्तमान पीड़ा के आगे एक नए संसार में जीवन के पुरस्कार की ओर देखता रहा। वह अपनी उत्साही आशा को डाक्टरों, नर्सों, और मुलाकातियों के साथ बाँटता रहा। उसने ठीक अंत तक—अपने जीवन के अंत तक धीरज धरा। आपकी स्वास्थ्य समस्या शायद प्राण-घातक न हो या शायद उस प्रिय भाई द्वारा अनुभव की गई समस्या जितनी कष्टप्रद न हो, पर यह फिर भी धीरज की एक बड़ी परीक्षा पेश कर सकती है।
७. हमारे कुछ आध्यात्मिक भाई-बहनों के लिए धीरज में किस प्रकार की पीड़ा सम्मिलित है?
७ भावात्मक पीड़ा। समय-समय पर, यहोवा के कुछ लोग “मन के दुःख” का सामना करते हैं जो एक ‘निराश आत्मा’ में परिणित होता है। (नीतिवचन १५:१३) इस “कठिन समय” में तीव्र हताशा असामान्य बात नहीं है। (२ तीमुथियुस ३:१) दिसम्बर ५, १९९२, की साइंस न्यूस ने रिपोर्ट किया: “तीव्र, अकसर अक्षम करनेवाली हताशा के दर, सन् १९१५ के समय से जन्मी प्रत्येक अनुक्रमिक पीढ़ी में बढ़ते चले गए हैं।” ऐसी हताशा के कारण विविध हैं, शारीरिक तत्त्वों से लेकर दर्दनाक अप्रिय अनुभवों तक। कुछ मसीहियों के लिए, धीरज धरने में एक दैनिक संघर्ष सम्मिलित है, कि वे भावात्मक पीड़ा के बावजूद डटे रहें। तो भी, वे हार नहीं मानते। वे आँसुओं के बावजूद यहोवा के प्रति वफ़ादार रहते हैं।—भजन १२६:५, ६ से तुलना कीजिए.
८. हमारे सामने कौन-सी आर्थिक परीक्षा आ सकती है?
८ हमारे सामने आनेवाली विविध परीक्षाओं में गम्भीर आर्थिक कठिनाई सम्मिलित हो सकती है। जब न्यू जर्सी, यू.एस.ए., में एक भाई ने अचानक अपने आपको बिना नौकरी के पाया, तो वह उचित रीति से अपने परिवार को खिलाने और अपने घर को न खोने के बारे में चिन्तित था। लेकिन, वह राज्य आशा को नहीं भूला। जिस दौरान वह दूसरी नौकरी ढूँढ़ रहा था, उसने अवसर का फ़ायदा उठाकर एक सहयोगी पायनियर के तौर पर सेवा की। आख़िरकार, उसे एक नौकरी मिल गई।—मत्ती ६:२५-३४.
९. (क) एक प्रिय जन को मृत्यु में खो देने पर धीरज की आवश्यकता कैसे पड़ सकती है? (ख) कौन-से शास्त्रवचन दिखाते हैं कि शोक के आँसू बहाना ग़लत नहीं है?
९ यदि आपने एक प्रिय जन को मृत्यु में खो देने का अनुभव किया है, तो आपको ऐसे धीरज की आवश्यकता है जो, आपके आस-पास के लोगों के अपने जीवनचर्या में लौट जाने के काफ़ी देर बाद भी कायम रहे। आपको शायद हर साल उस समय के लगभग खासकर कठिन लगे जिस समय आपके प्रिय जन की मृत्यु हुई थी। ऐसी कमी में धीरज धरने का यह अर्थ नहीं कि दुःख के आँसू बहाना ग़लत है। अपने एक प्रिय जन की मृत्यु पर शोक करना स्वाभाविक है, और यह किसी भी रीति से पुनरुत्थान की आशा में विश्वास की कमी का संकेत नहीं देता है। (उत्पत्ति २३:२; साथ ही इब्रानियों ११:१९ से तुलना कीजिए.) लाजर के मरने के बाद यीशु के “आंसू बहने लगे,” जबकि उसने विश्वास के साथ मरथा से कहा था: “तेरा भाई जी उठेगा।” और लाजर निश्चय ही जी उठा!—यूहन्ना ११:२३, ३२-३५, ४१-४४.
१०. यहोवा के लोगों को धीरज की एक अनन्य आवश्यकता क्यों है?
१० जो परीक्षाएँ सब मनुष्यों के लिए सामान्य हैं उन में धीरज धरने के अतिरिक्त, यहोवा के लोगों को धीरज की एक अनन्य आवश्यकता है। “मेरे नाम के कारण सब जातियों के लोग तुम से बैर रखेंगे,” यीशु ने चेतावनी दी। (मत्ती २४:९) उसने यह भी कहा: “यदि उन्हों ने मुझे सताया, तो तुम्हें भी सताएंगे।” (यूहन्ना १५:२०) यह सब बैर और सताहट क्यों? क्योंकि परमेश्वर के सेवकों के तौर पर हम इस पृथ्वी पर चाहे कहीं भी रहें, शैतान यहोवा के प्रति हमारी ख़राई को तोड़ने की कोशिश कर रहा है। (१ पतरस ५:८; साथ ही प्रकाशितवाक्य १२:१७ से तुलना कीजिए.) इस उद्देश्य को पूरा करने के लिए, शैतान ने अकसर ज़बरदस्त सताहटों को भड़काया है, जिससे हमारे धीरज की सख़्त परीक्षा हुई है।
११, १२. (क) यहोवा के गवाहों और उनके बच्चों ने १९३० के दशक में और १९४० के दशक के आरम्भ में, धीरज की कौन-सी परीक्षा का सामना किया? (ख) यहोवा के गवाह राष्ट्रीय प्रतीक को सलामी क्यों नहीं देते?
११ उदाहरण के लिए, १९३० के दशक में और १९४० के दशक के आरम्भ में, अमरीका और कनाडा में यहोवा के गवाह और उनके बच्चे सताहट के निशाने बन गए क्योंकि उन्होंने अंतःकरण के कारणों से राष्ट्रीय प्रतीक को सलामी नहीं दी। गवाह जिस राष्ट्र में रहते हैं, वे वहाँ के प्रतीक का आदर करते हैं, लेकिन वे निर्गमन २०:४, ५ में दी गई परमेश्वर की व्यवस्था के सिद्धांत के अनुसार चलते हैं: “तू अपने लिये कोई मूर्ति खोदकर न बनाना, न किसी कि प्रतिमा बनाना, जो आकाश में, वा पृथ्वी पर, वा पृथ्वी के जल में है। तू उनको दण्डवत् न करना, और न उनकी उपासना करना; क्योंकि मैं तेरा परमेश्वर यहोवा जलन रखने वाला ईश्वर हूं।” अपनी उपासना केवल यहोवा परमेश्वर को देने के लिए इच्छुक होने के कारण जब कुछ गवाह विद्यार्थियों को स्कूल से निकाल दिया गया, तब गवाहों ने उनके शिक्षण के लिए राज्य स्कूलों को स्थापित किया। जब अमरीका के सर्वोच्च न्यायालय ने उनकी धार्मिक स्थिति को स्वीकार किया, जैसे कि आज के प्रबुद्ध राष्ट्र करते हैं, ये विद्यार्थी सार्वजनिक स्कूलों में वापस चले गए। फिर भी, इन युवाओं का साहसी धीरज एक उत्तम उदाहरण के तौर पर काम करता है, ख़ासकर उन मसीही युवजनों के लिए जो अब बाइबल स्तरों के अनुसार जीने की कोशिश करने के कारण उपहास का सामना कर सकते हैं।—१ यूहन्ना ५:२१.
१२ हम जिन विभिन्न परीक्षाओं का सामना करते हैं—वे जो मनुष्यों के लिए सामान्य हैं और जिनका सामना हम अपने मसीही विश्वास के कारण करते हैं—संकेत देती हैं कि हमें क्यों धीरज की आवश्यकता है। लेकिन हम कैसे धीरज धर सकते हैं?
अंत तक धीरज धरिए—कैसे?
१३. यहोवा कैसे धीरज प्रदान करता है?
१३ जो लोग यहोवा की उपासना नहीं करते हैं उनकी तुलना में परमेश्वर के लोगों की निश्चित ही एक लाभदायक स्थिति है। सहायता के लिए, हम ‘धीरज के दाता,’ परमेश्वर से निवेदन कर सकते हैं। (रोमियों १५:५) लेकिन, यहोवा धीरज कैसे प्रदान करता है? एक तरीक़ा जिसके द्वारा वह ऐसा करता है, वह है उसके वचन, बाइबल में लेखबद्ध धीरज के उदाहरण। (रोमियों १५:४) जैसे-जैसे हम इन पर विचार करते हैं, न केवल हम धीरज धरने के लिए प्रोत्साहित होते हैं बल्कि कैसे धीरज धरना है इसके बारे में भी हम काफ़ी कुछ सीखते हैं। दो उत्कृष्ट उदाहरणों पर ध्यान दीजिए —अय्यूब का साहसी धीरज और यीशु मसीह का परिशुद्ध धीरज।—इब्रानियों १२:१-३; याकूब ५:११.
१४, १५. (क) अय्यूब ने कौन-सी परीक्षाओं में धीरज धरा? (ख) अय्यूब ने जिन परीक्षाओं का सामना किया, वह उन में कैसे धीरज धर सका?
१४ किस प्रकार की परिस्थितियों ने अय्यूब के धीरज की परीक्षा ली? उसे आर्थिक कठिनाई का दुःख भोगना पड़ा जब उसने अपनी अधिकतर सम्पत्ति खो दी। (अय्यूब १:१४-१७; साथ ही अय्यूब १:३ से तुलना कीजिए.) अय्यूब ने कमी की पीड़ा का अनुभव किया जब उसके दस के दस बच्चे एक तूफ़ान में मारे गए। (अय्यूब १:१८-२१) उसने एक गम्भीर, अति कष्टप्रद बीमारी का अनुभव किया। (अय्यूब २:७, ८; ७:४, ५) उसकी अपनी पत्नी ने परमेश्वर से मुख फेरने के लिए उस पर दबाव डाला। (अय्यूब २:९) घनिष्ठ साथियों ने ऐसी बातें कहीं जो पीड़ाकर, कठोर, और झूठी थीं। (अय्यूब १६:१-३ और अय्यूब ४२:७ से तुलना कीजिए.) फिर भी, इन सब के बावजूद अय्यूब ख़राई रखते हुए, डटा रहा। (अय्यूब २७:५) जिन बातों में उसने धीरज धरा, वे उन्हीं परीक्षाओं के समान हैं जिनका सामना आज यहोवा के लोग करते हैं।
१५ अय्यूब उन सभी परीक्षाओं के अधीन धीरज धरने में कैसे समर्थ था? ख़ासकर एक चीज़ जिसने अय्यूब को कायम रखा वह थी आशा। “वृक्ष की तो आशा रहती है,” उसने कहा। “चाहे वह काट डाला भी जाए, तौभी फिर पनपेगा।” (अय्यूब १४:७) अय्यूब के पास क्या आशा थी? जैसे कि कुछ आयतों के बाद लिखा गया है, उसने कहा: “यदि मनुष्य मर जाए तो क्या वह फिर जीवित होगा? . . . तू मुझे बुलाता, और मैं बोलता; तुझे अपने हाथ के बनाए हुए काम की अभिलाषा होती [अथवा, उसके लिए तरसता]।” (अय्यूब १४:१४, १५) जी हाँ, अय्यूब ने अपनी वर्तमान पीड़ा के आगे देखा। वह जानता था कि उसकी परीक्षाएँ हमेशा तक नहीं रहेंगी। अधिक से अधिक उसे मृत्यु तक धीरज धरना पड़ेगा। उसकी आशापूर्ण प्रत्याशा थी कि यहोवा, जो प्रेममय रीति से मृत जनों को पुनरुत्थित करने की इच्छा रखता है, उसे दुबारा जीवित करेगा।—प्रेरितों २४:१५.
१६. (क) हम अय्यूब के उदाहरण से धीरज के बारे में क्या सीखते हैं? (ख) राज्य आशा हमारे लिए कितनी वास्तविक होनी चाहिए, और क्यों?
१६ हम अय्यूब के धीरज से क्या सीखते हैं? अंत तक धीरज धरने के लिए, हमें अपनी आशा को कभी नहीं भूलना चाहिए। साथ ही, याद रखिए कि राज्य आशा की निश्चितता का यह अर्थ है कि हमारे सामने आनेवाला कोई भी दुःख तुलनात्मक रीति से “पल भर” का है। (२ कुरिन्थियों ४:१६-१८) हमारी अनमोल आशा निकट भविष्य में उस समय की यहोवा की प्रतिज्ञा पर दृढ़ रीति से आधारित है जब “वह [हमारी] आंखों से सब आंसू पोंछ डालेगा; और इस के बाद मृत्यु न रहेगी, और न शोक, न विलाप, न पीड़ा रहेगी।” (प्रकाशितवाक्य २१:३, ४) उस आशा से, जिससे “लज्जा नहीं होती,” हमारी विचार-पद्धति सुरक्षित रहनी चाहिए। (रोमियों ५:४, ५; १ थिस्सलुनीकियों ५:८) यह हमारे लिए वास्तविक होनी चाहिए—इतनी वास्तविक कि विश्वास की आँखों के द्वारा, हम अपने आप को उस नए संसार में—फिर कभी भी बीमारियों और हताशा से संघर्ष न करते हुए बल्कि हर दिन अच्छे स्वास्थ्य और एक सुस्पष्ट मन के साथ जागते हुए; फिर कभी भी गम्भीर आर्थिक दबावों की चिन्ता न करते हुए बल्कि सुरक्षा में जीते हुए; प्रिय जनों की मृत्यु का शोक न करते हुए बल्कि उन्हें पुनरुत्थित देखने के रोमांच का अनुभव करते हुए देख सकते हैं। (इब्रानियों ११:१) ऐसी आशा के बिना हम अपनी वर्तमान परीक्षाओं से इतने अभिभूत हो सकते हैं कि हम हार मान जाएँ। अपनी आशा के होते हुए, हमें लड़ते रहने के लिए, ठीक अंत तक धीरज धरने के लिए क्या ही ज़बरदस्त प्रोत्साहन मिलता है!
१७. (क) यीशु ने कौन-सी परीक्षाओं में धीरज धरा? (ख) यीशु ने जो तीव्र कष्ट सहा, उसे संभवतः किस तथ्य से देखा जा सकता है? (फुटनोट देखिए.)
१७ बाइबल हम से आग्रह करती है कि हम यीशु की ओर “ताकते रहें” और ‘उस पर ध्यान करें।’ उसने कौन-सी परीक्षाओं में धीरज धरा? कुछ तो दूसरों के पाप और अपरिपूर्णता के कारण थीं। यीशु ने न केवल ‘पापियों के वाद-विवाद’ में बल्कि उन समस्याओं में भी धीरज धरा जो उसके शिष्यों के बीच उठीं, जिनमें सम्मिलित थे उनके निरंतर विवाद कि कौन सर्वश्रेष्ठ था। इससे भी अधिक, उसने विश्वास की एक अद्वितीय परीक्षा का सामना किया। उसने “क्रूस [यातना स्तंभ, NW] का दुख सहा।” (इब्रानियों १२:१-३; लूका ९:४६; २२:२४) उस मानसिक और शारीरिक कष्ट की कल्पना करना भी कठिन है जो सूलारोपण की पीड़ा और एक ईश-निंदक के तौर पर मारे जाने की बदनामी में सम्मिलित था।a
१८. प्रेरित पौलुस के अनुसार, किन दो बातों ने यीशु को कायम रखा?
१८ किस बात ने यीशु को अंत तक धीरज धरने के लिए समर्थ किया? प्रेरित पौलुस दो बातों का ज़िक्र करता है जिन्होंने यीशु को कायम रखा: “प्रार्थनाएं और बिनती” और साथ ही ‘वह आनन्द जो उसके आगे धरा था।’ यीशु, परमेश्वर का परिपूर्ण पुत्र सहायता माँगने के लिए लज्जित नहीं था। उसने “ऊंचे शब्द से पुकार पुकारकर, और आंसू बहा बहाकर” प्रार्थना की। (इब्रानियों ५:७; १२:२) ख़ासकर जब उसकी परम परीक्षा निकट आ रही थी, उसने शक्ति के लिए बार-बार और गम्भीर रीति से प्रार्थना करना आवश्यक समझा। (लूका २२:३९-४४) यीशु की प्रार्थनाओं के उत्तर में, यहोवा ने परीक्षा को दूर नहीं किया, लेकिन उसने यीशु को उस परीक्षा में धीरज धरने की शक्ति दी। यीशु ने इसलिए भी सहन किया क्योंकि उसने उस यातना स्तंभ के आगे अपने पुरस्कार को देखा—यहोवा के नाम के पवित्रीकरण को योग देने और मानव परिवार को मृत्यु से छुड़ाने में उसे जो आनन्द मिलता।—मत्ती ६:९; २०:२८.
१९, २०. धीरज में क्या सम्मिलित है, इस पर एक यथार्थवादी दृष्टिकोण रखने में यीशु का उदाहरण हमें कैसे सहायता करता है?
१९ यीशु के उदाहरण से हम कई बातें सीखते हैं जो हमें एक यथार्थवादी दृष्टिकोण रखने में सहायता करेंगी कि धीरज में क्या सम्मिलित है। धीरज का मार्ग एक आसान मार्ग नहीं है। यदि हमें किसी ख़ास परीक्षा को सहन करना कठिन लग रहा है, तो इस ज्ञान से सांत्वना मिलती है कि यीशु के लिए भी ऐसा ही था। अंत तक धीरज धरने के लिए, हमें शक्ति के लिए बार-बार प्रार्थना करनी चाहिए। परीक्षा के अधीन हम शायद कभी-कभी प्रार्थना करने के अयोग्य महसूस करें। लेकिन यहोवा हमें अपने दिल खोलकर उससे प्रार्थना करने के लिए आमंत्रित करता है क्योंकि ‘उसको हमारा ध्यान है।’ (१ पतरस ५:७) और जो यहोवा ने अपने वचन में प्रतिज्ञा की है, उसके कारण उसने अपने आपको बाध्य बनाया है कि उन लोगों को “असीम सामर्थ” दे जो विश्वास के साथ उसे पुकारते हैं।—२ कुरिन्थियों ४:७-९.
२० कभी-कभी हमें आँसुओं के साथ सहन करना पड़ेगा। यीशु के लिए यातना स्तंभ की पीड़ा ख़ुद में आनन्द मनाने का एक कारण नहीं थी। इसके बजाय, आनन्द उस पुरस्कार में था जो उस के आगे धरा हुआ था। हमारे मामले में यह आशा करना यथार्थवादी नहीं कि हम परीक्षा का सामना करते समय हमेशा हँसमुख और आनन्दित महसूस करेंगे। (इब्रानियों १२:११ से तुलना कीजिए.) फिर भी, आगे पुरस्कार की ओर देखते हुए, हम शायद अत्यधिक कष्टदायी परिस्थितियों का सामना करते हुए भी ‘इन को पूरे आनन्द की बात समझ’ सकेंगे। (याकूब १:२-४; प्रेरितों ५:४१) महत्त्वपूर्ण बात तो यह है कि हम दृढ़ रहें—चाहे यह आँसुओं के साथ ही क्यों न हो। आखिर, यीशु ने यह तो नहीं कहा, ‘जो सबसे कम आँसू बहाएगा, उसी का उद्धार होगा’ बल्कि, “जो अंत तक धीरज धरे रहेगा, उसी का उद्धार होगा।”—मत्ती २४:१३.
२१. (क) दूसरा पतरस १:५, ६ में हमें धीरज को क्या चीज़ प्रदान करने के लिए आग्रह किया जाता है? (ख) अगले लेख में कौन-से प्रश्नों पर चर्चा की जाएगी?
२१ इस प्रकार उद्धार के लिए धीरज अत्यावश्यक है। लेकिन २ पतरस १:५, ६ में, हमें अपने धीरज को ईश्वरीय भक्ति प्रदान करने के लिए आग्रह किया जाता है। ईश्वरीय भक्ति क्या है? यह धीरज से कैसे सम्बन्धित है, और आप इसे कैसे प्राप्त कर सकते हैं? इन प्रश्नों पर अगले लेख में चर्चा की जाएगी।
[फुटनोट]
a यीशु ने जो तीव्र कष्ट सहा, उसे संभवतः इस तथ्य से देखा जा सकता है कि उसका परिपूर्ण शरीर सूली पर कुछ ही घंटों के पश्चात् मर गया, जबकि उसके साथ सूली पर चढ़ाए गए पापियों की जल्दी मृत्यु करवाने के लिए उनकी टाँगों को तोड़ना पड़ा। (यूहन्ना १९:३१-३३) उन्होंने उस मानसिक और शारीरिक कष्ट का अनुभव नहीं किया था जो सूलारोपण से पहले पूरी-रात की निद्रारहित कठिन परीक्षा के दौरान यीशु पर लाया गया, संभवतः इस हद तक कि वह अपना यातना स्तंभ भी न उठा सका।—मरकुस १५:१५, २१.
आप किस प्रकार उत्तर देंगे?
▫ धीरज धरने का क्या अर्थ है?
▫ यहोवा के लोगों को क्यों धीरज की एक अनन्य आवश्यकता है?
▫ किस बात ने अय्यूब को धीरज धरने के लिए समर्थ किया?
▫ यीशु का उदाहरण धीरज के बारे में एक यथार्थवादी दृष्टिकोण रखने में हमारी कैसे सहायता करता है?
[पेज 22 पर तसवीरें]
अपनी उपासना केवल यहोवा को देने के कारण स्कूल से निकाले गए मसीही बच्चों को शिक्षा देने के लिए राज्य स्कूल स्थापित किए गए
[पेज 24 पर तसवीरें]
अपने पिता का सम्मान करने के लिए दृढ़, यीशु ने धीरज धरने की शक्ति के लिए प्रार्थना की