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  • मृत जनों की स्थिति क्या है?
  • प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1994
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मृत जनों की स्थिति क्या है?

मृत जनों का भय एक पूर्वधारणा पर आधारित है—कि मृत जनों के पास एक प्राण या आत्मा है जो मृत्यु के बाद जीवित रहता है। यदि बाइबल स्पष्ट रूप से यह सिखाती है कि यह धारणा ग़लत है, तो यह सवाल कि मृत जन आपको हानि पहुँचा सकते हैं या नहीं निर्णायक रूप से सुलझ जाता है। तो फिर, बाइबल क्या कहती है?

मृत जनों की स्थिति के सम्बन्ध में परमेश्‍वर का वचन कहता है: “जीवते तो इतना जानते हैं कि वे मरेंगे, परन्तु मरे हुए कुछ भी नहीं जानते, और न उनको कुछ और बदला मिल सकता है, क्योंकि उनका स्मरण मिट गया है। उनका प्रेम और उनका बैर और उनकी डाह नाश हो चुकी, और अब जो कुछ सूर्य के नीचे किया जाता है उस में सदा के लिये उनका और कोई भाग न होगा।”—सभोपदेशक ९:५, ६.

इसको ध्यान में रखते हुए, क्या मृत जन आपकी सहायता या हानि कर सकते हैं? शास्त्रवचन कहते हैं, नहीं। मृत जन अचेत हैं और ख़ामोशी में हैं। वे जीवितों के साथ संचार करने या किसी भावना—प्रेम या घृणा—को व्यक्‍त करने या कोई कार्य करने में असमर्थ हैं। आपको उनसे डरने की कोई ज़रूरत नहीं है।

‘हाँ, यदि आप शारीरिक देह की मृत्यु का ज़िक्र करते हैं, तो वह शायद सच हो,’ कुछ लोग शायद कह सकते हैं। ‘लेकिन शारीरिक मृत्यु जीवन का अंत नहीं है; वह केवल आत्मा को देह से मुक्‍त करती है। वह आत्मा जीवितों की सहायता या हानि कर सकती है।’ पूरी पृथ्वी में लाखों लोग ऐसा महसूस करते हैं।

उदाहरण के लिए, मेडागास्कर में जीवन को मात्र एक संक्रमण काल समझा जाता है, सो अंतिम संस्कार और शवोत्खनन को विवाह से ज़्यादा महत्त्वपूर्ण माना जाता है। ऐसा सोचा जाता है कि व्यक्‍ति अपने पूर्वजों से आता है और मृत्यु पर उनके पास लौट जाता है। अतः, जीवित लोगों के घर लकड़ी और कच्ची ईंट से बनाए जाते हैं, ऐसी चीज़ें जो समय के साथ ख़राब हो जाती हैं, जबकि कब्रें, मृत जनों के “घर,” सामान्यतः ज़्यादा परिष्कृत और टिकाऊ होते हैं। शवोत्खनन के समय, परिवार और मित्र महसूस करते हैं कि उन्हें आशिष मिलेगी, तथा स्त्रियाँ विश्‍वास करती हैं कि यदि वे मृत रिश्‍तेदार की हड्डियों को छूएँगी, तो वे जननक्षम हो जाएँगी। लेकिन, फिर से, परमेश्‍वर का वचन क्या कहता है?

मृत्यु मानवजाति के लिए नियत नहीं

यह नोट करना दिलचस्पी की बात है कि यहोवा परमेश्‍वर ने मनुष्य को जीवित रहने के लिए बनाया, और उसने केवल अवज्ञाकारिता के परिणाम के रूप में ही मृत्यु की बात की। (उत्पत्ति २:१७) अफ़सोस की बात है, पहले पुरुष और स्त्री ने पाप किया, और परिणामस्वरूप, पाप एक प्राणनाशक विरासत के रूप में सारी मानवजाति में फैल गया। (रोमियों ५:१२) सो आप कह सकते हैं कि जब से पहले मानव दम्पति ने अवज्ञा की तब से मृत्यु जीवन की एक वास्तविकता बन गयी, जी हाँ, जीवन की एक दुःखद वास्तविकता। हमें जीवित रहने के लिए सृजा गया था, जो अंशतः समझाता है कि असंख्य लोगों को मृत्यु को अंत समझकर उसका सामना करना इतना कठिन क्यों लगता है।

बाइबल वृत्तांत के अनुसार, परमेश्‍वर की चेतावनी कि अवज्ञाकारिता मृत्यु लाएगी, का खण्डन करने के द्वारा शैतान ने पहले मानव दम्पति को मृत्यु के बारे में धोखा देने की कोशिश की। (उत्पत्ति ३:४) लेकिन, समय के बीतने के साथ, यह एकदम स्पष्ट हो गया कि मनुष्य उसी तरह मरता है जैसे परमेश्‍वर ने कहा था। अतः, शताब्दियों के दौरान शैतान ने एक और झूठ के साथ प्रतिक्रिया दिखाई—कि मनुष्य का कुछ आत्मिक भाग देह की मृत्यु से बच जाता है। ऐसा कपट शैतान अर्थात्‌ इब्‌लीस पर ठीक बैठता है, जिसका वर्णन यीशु ने ‘झूठ के पिता’ के रूप में किया। (यूहन्‍ना ८:४४) इसके विपरीत, परमेश्‍वर मृत्यु का जवाब एक प्रोत्साहक प्रतिज्ञा के द्वारा देता है।

कैसी प्रतिज्ञा?

यह अनेक लोगों के लिए पुनरुत्थान की प्रतिज्ञा है। वह यूनानी शब्द जिसका अनुवाद “पुनरुत्थान” किया गया है, एनास्‌टेसिस है। शाब्दिक रूप से उसका अर्थ है “फिर से खड़ा होना,” और वह मृत्यु से उठने को सूचित करता है। जी हाँ, मनुष्य मृत्यु में सो जाता है, लेकिन परमेश्‍वर अपनी शक्‍ति के द्वारा एक व्यक्‍ति को फिर से उठा सकता है। मनुष्य जीवन खो देता है, लेकिन परमेश्‍वर उसे फिर से जीवन दे सकता है। परमेश्‍वर के पुत्र, यीशु मसीह ने कहा कि “वह समय आता है, कि जितने कब्रों में हैं, उसका शब्द सुनकर निकलेंगे।” (यूहन्‍ना ५:२८, २९) प्रेरित पौलुस ने “परमेश्‍वर से” अपनी “आशा” व्यक्‍त की “कि धर्मी और अधर्मी दोनों का जी उठना होगा।” (प्रेरितों २४:१५) मसीही-पूर्व समयों में परमेश्‍वर के एक वफ़ादार सेवक, अय्यूब ने भी पुनरुत्थान में अपनी आशा घोषित की: “यदि मनुष्य मर जाए तो क्या वह फिर जीवित होगा? जब तक मेरा छुटकारा न होता तब तक मैं अपनी कठिन सेवा के सारे दिन आशा लगाए रहता। तू [परमेश्‍वर] मुझे बुलाता, और मैं बोलता।”—अय्यूब १४:१४, १५.

क्या पुनरुत्थान की यह स्पष्ट प्रतिज्ञा उस विचार को झूठा साबित नहीं करती कि मृत जन एक आत्मिक रूप में जीवित हैं? यदि मृत जन जीवित होते और स्वर्ग या किसी आत्मिक संसार में अस्तित्त्व का आनन्द उठा रहे होते, तो पुनरुत्थान का क्या उद्देश्‍य होता? क्या वे अपने प्रतिफल या भाग्य को पहले ही प्राप्त नहीं कर चुके होते? परमेश्‍वर के वचन का अध्ययन प्रकट करता है कि मृत जन वास्तव में मरे हुए, अचेत, सो रहे हैं। और हमारे प्रेममय पिता, यहोवा द्वारा प्रतिज्ञा किए गए एक नए संसार—एक परादीस—में पुनरुत्थान द्वारा महान जगाने के कार्य तक वैसे ही रहेंगे। लेकिन यदि मृत्यु का अर्थ देह और आत्मा का अलगाव नहीं है और यदि आत्मा मृत्यु के बाद भी जीवित नहीं रहती तो आत्मिक संसार से प्रतीयमान संचार के मामलों के बारे में क्या?

आत्मिक लोक से संचार

ऐसे संचार के असंख्य मामले रिपोर्ट किए गए हैं जिन्हें आत्मिक लोक से प्राप्त माना जाता है। वास्तव में उनका स्रोत क्या है? बाइबल हमें चेतावनी देती है कि “शैतान आप भी ज्योतिर्मय स्वर्गदूत का रूप धारण करता है। सो यदि उसके सेवक भी धर्म के सेवकों का सा रूप धरें, तो कुछ बड़ी बात नहीं।” (२ कुरिन्थियों ११:१४, १५) जी हाँ, ज़्यादा आसानी से लोगों को धोखा देने या गुमराह करने के लिए, पिशाचों (विद्रोही स्वर्गदूतों) ने कभी-कभी सहायक होने का स्वाँग रचते हुए जीवितों के साथ संचार किया है।

प्रेरित पौलुस धोखे के इस अभियान के बारे में अतिरिक्‍त चेतावनी देता है: ‘कुछ लोग भरमानेवाली आत्माओं, और दुष्टात्माओं की शिक्षाओं पर मन लगाकर विश्‍वास से बहक जाएंगे।’ (१ तीमुथियुस ४:१) सो कोई भी प्रतिक्रिया जिसका श्रेय हम मृत लोगों को देते हैं अति संभवतः पिशाचों की ओर से हो सकती है जो “धर्म के सेवकों” का रूप धारण करते हैं और एक धार्मिक झूठ को बढ़ावा देते हैं, और इस प्रकार लोगों को ऐसे अंधविश्‍वासों का दास बनाते हैं जो उन्हें परमेश्‍वर के वचन की सच्चाई से दूर ले जाते हैं।

इसकी पुष्टि करते हुए कि मृत जन न कुछ कह सकते, न कुछ कर सकते, और न कुछ महसूस कर सकते हैं, भजन १४६:३, ४ कहता है: “तुम प्रधानों पर भरोसा न रखना, न किसी आदमी पर, क्योंकि उस में उद्धार करने की भी शक्‍ति नहीं। उसका भी प्राण निकलेगा, वह भी मिट्टी में मिल जाएगा; उसी दिन उसकी सब कल्पनाएं नाश हो जाएंगी।” यह कौन-सा प्राण है जो ‘निकलता’ है? यह व्यक्‍ति की जीवन-शक्‍ति है जो साँस लेने के द्वारा क़ायम रहती है। इसलिए, जब मृत व्यक्‍ति ने साँस लेना बन्द कर दिया था, तब उसकी ज्ञानेंद्रियों ने कार्य करना बन्द कर दिया। वह संपूर्ण अचेतना की अवस्था में प्रवेश करता है। सो उसके लिए जीवितों पर नियंत्रण करना असंभव है।

इसीलिए बाइबल एक मनुष्य की मृत्यु की तुलना एक जानवर की मृत्यु से करती है, यह कहते हुए कि दोनों मृत्यु पर अचेत हो जाते हैं और मिट्टी में फिर मिल जाते हैं जिसमें से वे बनाए गए थे। सभोपदेशक ३:१९, २० कहता है: “जैसी मनुष्यों की वैसी ही पशुओं की भी दशा होती है; दोनों की वही दशा होती है, जैसे एक मरता वैसे ही दूसरा भी मरता है। सभों की स्वांस एक सी है, और मनुष्य पशु से कुछ बढ़कर नहीं; सब कुछ व्यर्थ ही है। सब एक स्थान में जाते हैं; सब मिट्टी से बने हैं, और सब मिट्टी में फिर मिल जाते हैं।”

पिशाच लोगों को यह सोचाने में धोखा देने का प्रयास करते हैं कि वे मृत लोगों से संचार कर सकते हैं और उनसे प्रभावित हो सकते हैं। यह जानते हुए यहोवा परमेश्‍वर ने अपने लोग, प्राचीन इस्राएलियों को चेतावनी दी: “तुझ में कोई ऐसा न हो जो . . . भावी कहनेवाला, वा शुभ अशुभ मुहूर्त्तों का माननेवाला, वा टोन्हा, वा तान्त्रिक, वा बाजीगर, वा ओझों से पूछनेवाला, वा भूत साधनेवाला, वा भूतों का जगानेवाला हो। क्योंकि जितने ऐसे ऐसे काम करते हैं वे सब यहोवा के सम्मुख घृणित हैं।”—व्यवस्थाविवरण १८:१०-१२.

स्पष्ट रूप से, यह विचार कि मृत जन हमें हानि पहुँचा सकते हैं परमेश्‍वर की ओर से नहीं आता। वह सत्य का परमेश्‍वर है। (भजन ३१:५; यूहन्‍ना १७:१७) और उसने सत्य के प्रेमियों के लिए जो उसकी उपासना “आत्मा और सच्चाई से” करते हैं एक अद्‌भुत भविष्य रखा है।—यूहन्‍ना ४:२३, २४.

यहोवा, सत्य और प्रेम का परमेश्‍वर

हमारे प्रेममय स्वर्गीय पिता ने, “जो झूठ बोल नहीं सकता,” वचन दिया है: लाखों-लाख लोग जो मर चुके हैं और जिन्हें कब्रों में डाल दिया गया है, धार्मिकता के एक नए संसार में अनन्त जीवन की प्रत्याशा के साथ पुनरुत्थित किए जाएँगे! (तीतुस १:१, २; यूहन्‍ना ५:२८) पुनरुत्थान की यह प्रेममय प्रतिज्ञा प्रकट करती है कि यहोवा अपनी मानवी सृष्टि के कल्याण में गहरी दिलचस्पी और मृत्यु, दुःख, और पीड़ा को हटाने की हार्दिक इच्छा रखता है। सो मृत जनों से डरने या उनके और उनके भविष्य के बारे में अत्यधिक चिन्ता करने की कोई ज़रूरत नहीं है। (यशायाह २५:८, ९; प्रकाशितवाक्य २१:३, ४) हमारा प्रेममय और खरा परमेश्‍वर, यहोवा, मृत्यु की वेदना को मिटाते हुए उनका पुनरुत्थान कर सकता है और करेगा।

परमेश्‍वर का वचन, बाइबल इस प्रकार के विवरणों से भरा हुआ है कि धार्मिकता के उस प्रतिज्ञात नए संसार में पृथ्वी पर कैसी परिस्थितियाँ होंगी। (भजन ३७:२९; २ पतरस ३:१३) वह शांति और आनन्द और सभी संगी मनुष्यों के प्रति प्रेम का समय होगा। (भजन ७२:७; यशायाह ९:७; ११:६-९; मीका ४:३, ४) सब के पास सुरक्षित, उत्तम घर, साथ ही आनन्ददायक काम होगा। (यशायाह ६५:२१-२३) सभी के भोजन के लिए अच्छी वस्तुएँ बहुतायत में होंगी। (भजन ६७:६; ७२:१६) सभी भरपूर स्वास्थ्य का आनन्द उठाएँगे। (यशायाह ३३:२४; ३५:५, ६) जबकि प्रेरित और सीमित संख्या में अतिरिक्‍त लोग स्वर्ग में यीशु के साथ राज्य करेंगे, बाइबल मृत्यु के बाद अन्य लोगों के प्राणों के लिए स्वर्ग में धन्य परिस्थितियों के बारे कोई ज़िक्र नहीं करती है। (प्रकाशितवाक्य ५:९, १०; २०:६) यह विचित्र बात होगी यदि वे करोड़ों लोग जो मर चुके हैं मृत्यु के बाद भी जीवित रहते।

लेकिन यह विचित्र नहीं है जब हम बाइबल की स्पष्ट शिक्षा को जानते हैं: मृत जन जीवित प्राणों के तौर पर अब अस्तित्व में नहीं हैं। वे आपको हानि नहीं पहुँचा सकते हैं। वे जो स्मारक क़ब्रों में हैं मात्र विश्राम कर रहे हैं, अर्थात्‌ परमेश्‍वर के नियत समय में उनके पुनरुत्थान तक अचेत। (सभोपदेशक ९:१०; यूहन्‍ना ११:११-१४, ३८-४४) तो, हमारी आशाएँ और आकांक्षाएँ, परमेश्‍वर पर निर्भर करती हैं। आइए ‘हम उस से उद्धार पाकर मगन और आनन्दित हों।’—यशायाह २५:९.

[पेज 7 पर तसवीर]

जैसे परमेश्‍वर का वचन स्पष्ट रूप से दिखाता है, मृत जन पुनरुत्थान तक पूर्ण रूप से निष्क्रिय हैं

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