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मृत्यु के बाद जीवन—कैसे, कहाँ, कब?

मनुष्य का सृष्टिकर्ता और जीवन-दाता अपनी व्यक्‍तिगत गारंटी देता है कि यह ज़रूरी नहीं कि मानव मृत्यु जीवन को सर्वदा के लिए समाप्त कर दे। इसके अलावा, परमेश्‍वर हमें आश्‍वस्त करता है कि न केवल सीमित जीवन अवधि के लिए दोबारा जीना संभव है बल्कि दोबारा कभी-भी मृत्यु का स्वाद चखे बिना जीने की प्रत्याशा के साथ जीना संभव है! प्रेरित पौलुस ने इसे स्पष्ट रूप से, लेकिन विश्‍वस्त रूप से ऐसे कहा: “जिसे उस [परमेश्‍वर] ने ठहराया है और उसे [मसीह यीशु को] मरे हुओं में से जिलाकर, यह बात सब पर प्रमाणित कर दी है।” (तिरछे टाइप हमारे।)—प्रेरितों १७:३१.

निश्‍चय ही फिर भी यह तीन मूलभूत सवालों को अनुत्तरित छोड़ता है: एक मृत व्यक्‍ति दोबारा जीवन कैसे प्राप्त कर सकता है? यह कब होगा? यह नया जीवन कहाँ अस्तित्त्व में आता है? संसार-भर में, इन सवालों के विभिन्‍न जवाब दिए गए हैं, लेकिन इस मामले की सच्चाई को निर्धारित करने के लिए एक अत्यावश्‍यक कुंजी है, यथार्थ रूप से यह समझना कि अपनी मृत्यु के समय मनुष्यों का क्या होता है।

क्या अमरता जवाब है?

एक प्रचलित विश्‍वास यह है कि सभी मनुष्यों का एक भाग अमर है और कि केवल उनके शरीर मरते हैं। आपने निश्‍चय ही ऐसा दावा सुना होगा। यह भाग जिसके अमर होने का दावा किया जाता है इसे विभिन्‍न प्रकार से “प्राण” या “आत्मा” कहा जाता है। कहा जाता है कि यह शरीर की मृत्यु होने के बाद कहीं और जीवित रहने के लिए बच जाता है। सच पूछिए तो, ऐसा विश्‍वास बाइबल से उत्पन्‍न नहीं हुआ। यह सच है कि प्राचीन इब्रानी बाइबल पात्रों ने मृत्यु के बाद जीवन की उत्सुकता से प्रत्याशा की, लेकिन उनके किसी अमर भाग के जीवित रहने के द्वारा नहीं। उन्होंने पुनरुत्थान के चमत्कार के माध्यम से पृथ्वी पर जीवन में भावी वापसी की उत्सुकता से प्रत्याशा की।

कुलपिता इब्राहीम ऐसे व्यक्‍ति का एक उत्कृष्ट उदाहरण है जिसे मृतकों के भावी पुनरुत्थान में विश्‍वास था। इब्राहीम की अपने बेटे इसहाक को भेंट चढ़ाने की इच्छा का वर्णन करते हुए, इब्रानियों ११:१७-१९ हमें बताता है: “विश्‍वास ही से इब्राहीम ने, परखे जाने के समय में, इसहाक को बलिदान चढ़ाया, . . . क्योंकि उस ने विचार किया, कि परमेश्‍वर सामर्थी है, कि मरे हुओं में से जिलाए, सो उन्हीं में से दृष्टान्त की रीति पर वह उसे फिर मिला,” क्योंकि परमेश्‍वर की यह माँग नहीं थी कि इसहाक का बलिदान चढ़ाया जाए। इस्राएलियों के बीच इस प्रारंभिक विश्‍वास की और अधिक पुष्टि करते हुए कि वे बाद के समय में (आत्मिक लोक में फ़ौरन जीवन के जारी होने के बजाय) दोबारा जीवित होंगे, भविष्यवक्‍ता होशे ने लिखा: “मैं उसको अधोलोक [मनुष्यजाति की सामान्य क़ब्र] के वश से छुड़ा लूंगा और मृत्यु से उसको छुटकारा दूंगा।”—होशे १३:१४.

सो यहूदी सोच-विचार और विश्‍वास में वंशागत मानव अमरता का विचार कब आया? एन्साइक्लोपीडिया जूडायका स्वीकार करती है कि “संभवतः यह यूनानी प्रभाव के अन्तर्गत था कि प्राण की अमरता का धर्म-सिद्धान्त यहूदी धर्म में आया।” फिर भी, मसीह के समय तक भक्‍त यहूदी भावी पुनरुत्थान पर विश्‍वास करते और उसकी प्रत्याशा करते थे। उसके भाई लाजर की मृत्यु पर मारथा के साथ यीशु की बातचीत में हम इसे स्पष्ट रूप से देख सकते हैं: “मारथा ने यीशु से कहा, हे प्रभु, यदि तू यहां होता, तो मेरा भाई कदापि न मरता . . . यीशु ने उस से कहा, तेरा भाई जी उठेगा। मरथा ने उस से कहा, मैं जानती हूं, कि अन्तिम दिन में पुनरुत्थान के समय वह जी उठेगा।”—यूहन्‍ना ११:२१-२४.

मृतकों की दशा

यहाँ फिर, इस विषय पर अनुमान लगाने की कोई ज़रूरत नहीं है। सरल बाइबल सच्चाई यह है कि मृतक सम्पूर्ण रूप से बिना किसी भावना या ज्ञान के, “सोए हुए,” अचेतन हैं। ऐसी सच्चाई बाइबल में एक जटिल, समझ से बाहर तरीक़े से प्रस्तुत नहीं की गई है। आसानी से समझे जानेवाले इन शास्त्रवचनों पर ग़ौर कीजिए: “जीवते तो इतना जानते है कि वे मरेंगे, परन्तु मरे हुए कुछ भी नहीं जानते, . . . जो काम तुझे मिले उसे अपनी शक्‍ति भर करना, क्योंकि अधोलोक में जहां तू जानेवाला हैं, न काम न युक्‍ति न ज्ञान और न बुद्धि है।” (सभोपदेशक ९:५, १०) “तुम प्रधानों पर भरोसा न रखना, न किसी आदमी पर, क्योंकि उस में उद्धार करने की भी शक्‍ति नहीं। उसका भी प्राण निकलेगा, वह भी मिट्टी में मिल जाएगा; उसी दिन उसकी सब कल्पनाएं नाश हो जाएंगी।”—भजन १४६:३, ४.

तब यह बात समझने योग्य है कि यीशु मसीह ने क्यों मृत्यु को सोने के समान बताया। प्रेरित यूहन्‍ना, यीशु और उसके चेलों के बीच एक बातचीत को रिकार्ड करता है: “उन से [यीशु] कहने लगा, कि हमारा मित्र लाजर सो गया है, परन्तु मैं उसे जगाने जाता हूं। तब चेलों ने उस से कहा, हे प्रभु, यदि वह सो गया है, तो बच जायगा। यीशु ने तो उस की मृत्यु के विषय में कहा था: परन्तु वे समझे कि उस ने नींद से सो जाने के विषय में कहा। तब यीशु ने उन से साफ़ कह दिया, कि लाजर मर गया है।”—यूहन्‍ना ११:११-१४.

सम्पूर्ण व्यक्‍ति मर जाता है

मानवी मृत्यु की प्रक्रिया सम्पूर्ण व्यक्‍ति को शामिल करती है, न कि केवल शरीर की मृत्यु को। स्पष्ट बाइबलीय कथनों के अनुसार, हमें यह निष्कर्ष निकालना चाहिए कि मनुष्य के पास अमर प्राण नहीं होता जो उसके शरीर की मृत्यु के बाद जीवित रह सकता है। शास्त्र स्पष्ट रीति से बताता है कि प्राण मर सकता है। “देख! सभी प्राण—वे मेरे हैं। जैसे पिता का प्राण है उसी तरह पुत्र का भी प्राण—वे मेरे हैं। जो प्राण पाप करता है—वह स्वयं मर जाएगा।” (यहेजकेल १८:४, NW) कहीं पर भी शब्द “अमर” या “अमरता” को मानवजाति में जन्मजात होने के तौर पर नहीं कहा गया है।

न्यू कैथोलिक एन्साइक्लोपीडिया बाइबल में “प्राण” अनुवाद किए गए इब्रानी और यूनानी शब्दों पर यह दिलचस्प पृष्ठभूमि प्रदान करती है: “OT [पुराने नियम] में प्राण नेफ़ेश है, NT [नये नियम] में [साइकी] . . . नेफ़ेश एक आरंभिक मूल-स्रोत से आता है जिसका संभवतः अर्थ है साँस लेना, और इस प्रकार . . . क्योंकि साँस जीवितों को निर्जीवों से विशिष्ट करती है, तो नेफ़ेश का अर्थ हुआ जीवन या स्वयं या सीधे रूप से व्यक्‍तिगत जीवन। . . . OT में शरीर और प्राण में कोई भी द्विभाजन [दो भागों मे विभाजन] नहीं है। इस्राएली बातों को प्रत्यक्ष रूप से, उनकी सम्पूर्णता में देखता, और इस प्रकार उसने मनुष्यों को व्यक्‍तियों के तौर पर समझा और संयोजन की तरह नहीं। यह शब्द नेफ़ेश, हालाँकि हमारे शब्द प्राण द्वारा अनुवादित है, इसका अर्थ कभी-भी शरीर या व्यक्‍ति से भिन्‍न एक प्राण होने के रूप में नहीं है। . . . शब्द [साइकी] NT का शब्द है जो नेफ़ेश के अनुरूप है। इसका अर्थ जीवन की रीति, स्वयं जीवन, या जीवित व्यक्‍ति हो सकता है।”

इस प्रकार आप देख सकते हैं कि मृत्यु के समय पर, जो व्यक्‍ति पहले जीवित था, या जो जीवित प्राण था, उसका अस्तित्त्व समाप्त हो जाता है। या तो गाड़े जाने और परिणामस्वरूप होनेवाले क्षय से धीरे-धीरे या शव-दाह द्वारा जल्दी, शरीर वापस “मिट्टी” में या पृथ्वी के तत्त्वों में मिल जाता है। यहोवा ने आदम को बताया: “तू मिट्टी तो है और मिट्टी ही में फिर मिल जाएगा।” (उत्पत्ति ३:१९) तब, मृत्यु के बाद जीवन कैसे संभव है? यह इसलिए है क्योंकि परमेश्‍वर के पास मृत व्यक्‍ति की अपनी याददाश्‍त है। यहोवा के पास मनुष्यों को सृष्ट करने की चमत्कारिक शक्‍ति और क्षमता है, सो यह आश्‍चर्य की बात नहीं होनी चाहिए कि वह अपनी याददाश्‍त में व्यक्‍तियों की जीवन शैली का रिकार्ड रख सकता है। जी हाँ, उस व्यक्‍ति के दोबारा जीने की सभी प्रत्याशाएँ परमेश्‍वर के हाथों में हैं।

यही अर्थ उस शब्द “आत्मा” का है, जिसके बारे में कहा गया है कि वह सच्चे परमेश्‍वर के पास ‘जिसने उसे दिया है’ लौट जाती है। इस परिणाम का वर्णन करते हुए सभोपदेशक की पुस्तक का उत्प्रेरित लेखक समझाता है: “तब मिट्टी ज्यों की त्यों मिट्टी में मिल जाएगी, और आत्मा परमेश्‍वर के पास जिस ने उसे दिया लौट जाएगी।”—सभोपदेशक १२:७.

केवल परमेश्‍वर ही किसी व्यक्‍ति को जीवित कर सकता है। जब परमेश्‍वर ने पुरुष को अदन में सृष्ट किया और आदम के फेफड़ों को हवा से भरने के अलावा, उसके नथनों में “जीवन का श्‍वास” फूँका, यहोवा परमेश्‍वर ने उस जीवन-शक्‍ति से उसके शरीर की सभी कोशिकाओं में जीवन संचारित किया। (उत्पत्ति २:७) क्योंकि यह जीवन-शक्‍ति गर्भधारण और जन्म की प्रक्रिया के माध्यम से माता-पिता से बच्चों को प्रदान की जा सकती है, एक मानव जीवन का श्रेय उचित रूप से परमेश्‍वर को दिया जा सकता है, हालाँकि, निश्‍चय ही इसे माता-पिता से पाया जाता है।

पुनरुत्थान—आनन्द का एक समय

पुनरुत्थान को पुनर्जन्म के साथ उलझाया नहीं जाना चाहिए, जिसका पवित्र शास्त्र में कोई समर्थन नहीं है। पुनर्जन्म ऐसा विश्‍वास है कि एक व्यक्‍ति के मर जाने के बाद, वह एक के बाद एक या ज़्यादा अस्तित्त्वों में दोबारा जन्म लेता है। कहा जाता है कि यह व्यक्‍ति के पिछले जीवन के अस्तित्त्व की तुलना में या तो एक उच्चतर श्रेणी या एक न्यूनतम श्रेणी का होता है, और इस बात पर निर्भर करता है कि उस पिछले जीवन-काल के दौरान तथाकथित तौर पर कैसा रिकार्ड बनाया गया था। इस विश्‍वास के अनुसार, एक व्यक्‍ति एक मनुष्य या एक पशु किसी के भी रूप में “दोबारा जन्म” ले सकता है। यह उस बात के बिलकुल विरोध में है जो बाइबल सिखाती है।

शब्द “पुनरुत्थान” यूनानी शब्द अनास्टासिस से अनुवादित है, जिसका शाब्दिक अर्थ है “दोबारा खड़ा होना।” (यूनानी के इब्रानी अनुवादकों ने अनास्टासिस का अनुवाद इब्रानी शब्द टेचीयाथ हाम्मेथिम के साथ किया है जिसका अर्थ है “मृतकों का पुनर्जीवन।”) पुनरुत्थान में व्यक्‍ति के जीवन स्वरूप का पुनःसंचार शामिल है, जिसे परमेश्‍वर ने अपनी याददाश्‍त में क़ायम रखा है। एक व्यक्‍ति के लिए परमेश्‍वर की इच्छा के अनुसार, उस व्यक्‍ति को या तो एक मानव शरीर में या एक आत्मिक शरीर में पुनःस्थापित किया जाता है; फिर भी वह अपनी व्यक्‍तिगत पहचान क़ायम रखता है, और उसका वही व्यक्‍तित्व और याददाश्‍त होती है जो उसके मरने के समय पर थी।

जी हाँ, बाइबल दो प्रकार के पुनरुत्थानों की बात करती है। एक आत्मिक शरीर में स्वर्ग के लिए पुनरुत्थान है; यह अपेक्षाकृत कम लोगों के लिए है। यीशु मसीह ने ऐसा पुनरुत्थान पाया था। (१ पतरस ३:१८) और उसने यह सूचित किया कि उसके पदचिन्ह अनुयायियों में से चुने हुओं द्वारा इसका अनुभव किया जाता, और वफ़ादार प्रेरितों से आरम्भ होता, जिनसे उसने यह प्रतिज्ञा की थी: “मैं तुम्हारे लिये जगह तैयार करने जाता हूं। . . . फिर आकर तुम्हें अपने यहां ले जाऊंगा, कि जहां मैं रहूं वहां तुम भी रहो।” (यूहन्‍ना १४:२, ३) बाइबल इसे “पहिले पुनरुत्थान” के रूप में बताती है, समय और श्रेणी में पहला। अतः शास्त्र स्वर्गीय जीवन के लिए पुनरुत्थित किए जानेवाले लोगों के बारे में परमेश्‍वर के याजक और मसीह यीशु के साथ शासन करते राजाओं के तौर पर वर्णन करता है। (प्रकाशितवाक्य २०:६) यह ‘पहला पुनरुत्थान’ एक सीमित संख्या के लिए है, और शास्त्र स्वयं इस बात को प्रकट करता है कि वफ़ादार पुरुषों और स्त्रियों में से केवल १,४४,००० को लिया जाएगा। अपने विश्‍वास के बारे में दूसरों को गवाही देने में सक्रिय रहकर वे यहोवा परमेश्‍वर और मसीह यीशु के प्रति अपनी खराई अपनी मृत्यु तक दिखा चुके होंगे।—प्रकाशितवाक्य १४:१, ३, ४.

निःसन्देह, मृतकों का पुनरुत्थान उन लोगों के लिए असीमित आनन्द का एक समय है जो स्वर्ग में जीवन पाने के लिए पुनरुत्थित किए जाते हैं। लेकिन यह आनन्द वहीं समाप्त नहीं होता, क्योंकि ठीक यहीं पृथ्वी पर भी जीवन के पुनरुत्थान की प्रतिज्ञा की गई है। जो पुनरुत्थित किए जाएँगे वे उस अनगिनित संख्या के साथ शामिल हो जाएँगे जो वर्तमान दुष्ट व्यवस्था के अन्त से बचते हैं। जो लोग स्वर्गीय पुनरुत्थान के लिए योग्य होते हैं उनकी छोटी संख्या को देखने के बाद, प्रेरित यूहन्‍ना को “हर एक जाति, और कुल, और लोग और भाषा में से एक ऐसी बड़ी भीड़” का एक दर्शन दिया गया, “जिसे कोई गिन नहीं सकता था।” वह क्या ही आनन्दमय समय होगा जब करोड़ों, संभवतः अरबों लोग यहाँ पृथ्वी पर दोबारा जीवन प्राप्त करते हैं!—प्रकाशितवाक्य ७:९, १६, १७.

यह कब होगा?

कोई भी आनन्द और ख़ुशी थोड़े ही समय की होती यदि मृतक एक ऐसी पृथ्वी पर वापस आएँ जो कि कलह, रक्‍तपात, प्रदूषण, और हिंसा से भरी हुई हो—जैसी कि आज की परिस्थिति है। जी नहीं, पुनरुत्थान को एक “नई पृथ्वी” के स्थापित होने तक इन्तज़ार करना ज़रूरी है। कल्पना कीजिए, ऐसे लोगों और संस्थानों से साफ़ किया गया एक ग्रह जो लगता है कि अब तक पृथ्वी को बिगाड़ने और इसकी पूर्वकालीन सुन्दरता को नाश करने पर तुले हुए हैं, इसके निवासियों पर वे जो अनकहे दुःख लाए हैं उनका तो कहना ही नहीं।—२ पतरस ३:१३; प्रकाशितवाक्य ११:१८.

सुस्पष्ट रूप से, मानवजाति का एक आम पुनरुत्थान का समय अभी-भी आगे है। फिर भी सुसमाचार यह है कि यह बहुत ज़्यादा दूर नहीं है। सच है, इसे इस वर्तमान दुष्ट रीति-व्यवस्था की समाप्ति का इन्तज़ार करना ज़रूरी है। लेकिन, प्रचुर प्रमाण साबित करते हैं कि “भारी क्लेश” के अचानक शुरू होने का समय निकट है, “जो सर्वशक्‍तिमान परमेश्‍वर के उस बड़े दिन की लड़ाई” में—जिसे साधारण रूप से अरमगिदोन कहा जाता है—चरमसीमा तक पहुँचेगा। (मत्ती २४:३-१४, २१; प्रकाशितवाक्य १६:१४, १६) यह इस शानदार ग्रह, पृथ्वी से सारी दुष्टता का सफ़ाया कर देगा। तत्पश्‍चात्‌ मसीह यीशु का हज़ार वर्ष का शासन होगा, जब पृथ्वी को क्रमिक रूप से परादीसीय अवस्था में लाया जाएगा।

बाइबल प्रकट करती है कि इस सहस्राब्दिक शासन के दौरान, मानव मृतकों का पुनरुत्थान होगा। तब वह प्रतिज्ञा पूरी होगी जो यीशु ने पृथ्वी पर रहने के दौरान की थी: “इस से अचम्भा मत करो, क्योंकि वह समय आता है, कि जितने कब्रों में हैं, उसका शब्द सुनकर निकलेंगे। . . . पुनरुत्थान के लिये।”—यूहन्‍ना ५:२८, २९.

पुनरुत्थान की आशा का प्रभाव

भविष्य के लिए यह पुनरुत्थान की क्या ही शानदार प्रत्याशा है—एक ऐसा समय जब मृतक वापस जीवन प्राप्त करेंगे! जैसे-जैसे हम ढलती उम्र की कठिनाइयों, बीमारियों, अनपेक्षित संकट और दुःख, और केवल जीवन के रोज़ के दबाव और समस्याओं का सामना करते हैं यह हमें कितना प्रोत्साहित करती है! यह मृत्यु के डंक को नष्ट करती है—पूर्ण रूप से दुःखों को समाप्त नहीं करती बल्कि हमें उनसे अलग करती है जिन्हें भविष्य की कोई आशा नहीं है। प्रेरित पौलुस ने इन शब्दों से पुनरुत्थान की प्रत्याशा के इस सांत्वनादायक प्रभाव को स्वीकार किया: “हे भाइयो, हम नहीं चाहते, कि तुम उनके विषय में जो सोते हैं, अज्ञान रहो; ऐसा न हो, कि तुम औरों की नाई शोक करो जिन्हें आशा नहीं। क्योंकि यदि हम प्रतीति करते हैं, कि यीशु मरा, और जी भी उठा, तो वैसे ही परमेश्‍वर उन्हें भी जो यीशु में सो गए हैं, उसी के साथ ले आएगा।”—१ थिस्सलुनीकियों ४:१३, १४.

हमने शायद पहले ही एक अन्य प्रकार की टिप्पणी की सच्चाई का अनुभव किया हो जो पूर्वी मनुष्य अय्यूब द्वारा की गयी थी: “मनुष्य किसी सड़ी हुई वस्तु की नाईं व्यर्थ हो जाता है, एक वस्त्र के समान जिसे कीड़े खा गए हों। स्त्री से जन्मा पुरुष थोड़े दिनों और कष्ट से भरा होता है। वह फूल की नाईं खिलता है और मुरझा जाता है; ढलती छाया के समान, वह ठहरता नहीं।” (अय्यूब १३:२८-१४:२, न्यू इन्टरनैश्‍नल वर्शन, अंग्रेज़ी) हम भी जीवन की अनिश्‍चितता और इस कठोर वास्तविकता से अवगत हैं कि “समय और अप्रत्याशित घटना” हममें से किसी पर भी आ सकती है। (सभोपदेशक ९:११, NW) निश्‍चित ही, हममें से कोई भी मरने की प्रक्रिया के विचार का आनन्द नहीं उठाता। फिर भी, पुनरुत्थान की निश्‍चित आशा हमसे मृत्यु के अभिभूत करनेवाले भय को दूर ले जाती है।

तो, हिम्मत रखिए! मृत्यु में एक संभावित नींद से आगे पुनरुत्थान के चमत्कार द्वारा वापस जीवन में आने की ओर देखिए। अन्तहीन जीवन की भावी प्रत्याशा की विश्‍वास के साथ आशा कीजिए, और इस आनन्द को यह जानकर बढ़ाइए कि ऐसी आशिष का समय निकट भविष्य में है।

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