यह निर्णय करने की घड़ी क्यों है?
सामान्य युग पूर्व १६वीं सदी में, परमेश्वर ने इस्राएलियों को ‘सब लोगों में से अपना निज धन, पवित्र जाति’ के रूप में चुना। (निर्गमन १९:५, ६) मूर्तिपूजा और पड़ोसी जातियों के भ्रष्ट अभ्यासों द्वारा ख़ुद को दूषित होने देते हुए, उन्होंने जल्द ही अपनी पवित्रता, अपनी धार्मिक शुद्धता खो दी। इस तरह उन्होंने ख़ुद को “एक हठीली जाति” के रूप में प्रकट किया। (व्यवस्थाविवरण ९:६, १३; १०:१६; १ कुरिन्थियों १०:७-११) यहोशू की मौत के बाद के तीन सौ से ज़्यादा वर्षों के दौरान, यहोवा ने न्यायी, अर्थात् वफ़ादार मार्गदर्शक ठहराए, जिन्हें इस्राएलियों को सच्ची उपासना की ओर लौटा ले जाना चाहिए था। बहरहाल, लोग “अपने बुरे कामों और हठीली चाल को नहीं छोड़ते थे।”—न्यायियों २:१७-१९.
इसके बाद, परमेश्वर ने वफ़ादार राजा और भविष्यवक्ता ठहराए ताकि वे सच्ची उपासना की ओर लौट आने के लिए लोगों को प्रेरित करें। भविष्यवक्ता अजर्याह ने राजा आसा और उसके संगी देशवासियों को यहोवा की खोज करने के लिए प्रोत्साहित किया: “यदि तुम उसकी खोज में लगे रहो, तब तो वह तुम से मिला करेगा, परन्तु यदि तुम उसको त्याग दोगे तो वह भी तुम को त्याग देगा।” आसा ने यहूदा के राज्य में धार्मिक सुधार करवाया। (२ इतिहास १५:१-१६) बाद में, परमेश्वर को अपने भविष्यवक्ता योएल द्वारा उस आमंत्रण को दोहराना पड़ा। (योएल २:१२, १३) उसके और भी बाद में, सपन्याह ने यहूदा के निवासियों से ‘यहोवा को ढूँढ़ने’ का अनुरोध किया। युवा राजा योशिय्याह ने मूर्तिपूजा और भ्रष्टाचार हटाने के सुधार अभियान में यही किया।—सपन्याह २:३; २ इतिहास ३४:३-७.
पश्चाताप की ऐसी घटनाओं के बावजूद, लोगों की धार्मिक हालत अधिकाधिक संकटजनक बन रही थी। (यिर्मयाह २:१३; ४४:४, ५) यिर्मयाह ने मूर्तिपूजक अभ्यासों से दूषित धार्मिक व्यवस्था को असुधार्य वर्णित करते हुए उसकी निन्दा की: “क्या हबशी अपना चमड़ा, वा चीता अपने धब्बे बदल सकता है? यदि वे ऐसा कर सकें, तो तू भी, जो बुराई करना सीख गई है, भलाई कर सकेगी।” (यिर्मयाह १३:२३) इस वज़ह से परमेश्वर ने यहूदा के राज्य को एक कड़ी सज़ा दी। सामान्य युग पूर्व ६०७ में यरूशलेम और उसका मन्दिर नाश किया गया, और उत्तरजीवियों को बाबुल में दासों के रूप में ले जाया गया, जहाँ वे ७० साल रहे।
जब वह समयावधि ख़त्म हुई, तब यहोवा ने दया दिखाई। उसने इस्राएलियों को मुक्त करने के लिए राजा कुस्रू को प्रेरित किया, और इस्राएलियों का शेष वर्ग मन्दिर के पुनर्निर्माण के लिए यरूशलेम में लौटा। इस सब से एक सबक़ सीखने के बजाय, वे फिर एक बार सच्ची उपासना से हट गए, जिससे यहोवा को अपना निमंत्रण दोहराना पड़ा: “तुम मेरी ओर फिरो, तब मैं भी तुम्हारी ओर फिरूंगा।”—मलाकी ३:७.
इस्राएल को क्यों अस्वीकार किया गया
यीशु के समय में इस्राएलियों की धार्मिक हालत क्या थी? ढोंगी धार्मिक अगुए “अन्धे मार्ग दिखानेवाले” थे जो “मनुष्यों की विधियों को धर्मोपदेश करके” सिखाते थे। ‘वे अपनी रीतों के कारण परमेश्वर की आज्ञा टाल रहे थे।’ लोग “होठों से” तो परमेश्वर का आदर करते, लेकिन उनके मन उससे दूर थे। (मत्ती १५:३, ४, ८, ९, १४) क्या एक जाति के तौर पर उन्हें पश्चाताप करने का एक और मौक़ा मिलता? नहीं। उसने आगे कहा: “परमेश्वर का राज्य तुम से ले लिया जाएगा; और ऐसी जाति को जो उसका फल लाए, दिया जाएगा।” यीशु ने कहा: “तुम्हारा घर,” अर्थात् यरूशलेम का मन्दिर, “तुम्हारे लिये उजाड़ छोड़ा जाता है।” (मत्ती २१:४३; २३:३८) उनकी ग़लती बहुत बड़ी थी। अत्याचारी रोमी कैसर को अपना राजा चुनते हुए, उन्होंने यीशु को मसीहा के तौर पर अस्वीकार किया और उसे मरवा डाला।—मत्ती २७:२५; यूहन्ना १९:१५.
इस्राएली यह नहीं समझना चाहते थे कि जिस कालावधि में यीशु ने अपनी सेवकाई की, वह न्याय का समय था। यरूशलेम के अविश्वासी निवासियों को यीशु ने कहा: “तूने अपने परखे जाने का समय न समझा।”—लूका १९:४४, NW.
पिन्तेकुस्त सा.यु. ३३ में, परमेश्वर ने एक नयी जाति या लोग गठित किए। ये उसके पुत्र, यीशु मसीह के आत्मा-अभिषिक्त शिष्य थे, जो हर कुल और जाति में से चुने जाते। (प्रेरितों १०:३४, ३५; १५:१४) क्या कोई आशा थी कि यहूदी धार्मिक व्यवस्था आख़िरकार सुधरती? रोमी सेना ने सा.यु. ७० में यरूशलेम को पूरी तरह तहस-नहस करने के द्वारा जवाब प्रदान किया। परमेश्वर ने उस धार्मिक व्यवस्था को पूरी तरह अस्वीकार किया था।—लूका २१:५, ६.
मसीहीजगत का बड़ा धर्मत्याग
आत्मा-अभिषिक्त मसीही “एक पवित्र जाति, और ख़ास सम्पत्ति के लोग” भी बने। (१ पतरस २:९ NW; गलतियों ६:१६) लेकिन प्राचीन मसीही कलीसिया ने भी अपनी धार्मिक शुद्धता को ज़्यादा समय तक नहीं बनाए रखा।
शास्त्रवचनों में एक बड़े धर्मत्याग, या सच्चे विश्वास से बहकने के बारे में पूर्वबताया गया था। यीशु के दृष्टान्त के प्रतीकात्मक जंगली बीज, अर्थात् नक़ली मसीही, प्रतीकात्मक गेहूँ, या परमेश्वर की आत्मा से अभिषिक्त सच्चे मसीहियों को बढ़ने से रोकने की कोशिश करते। दृष्टान्त प्रकट करता है कि परमेश्वर के प्रधान शत्रु, इब्लीस द्वारा बढ़ावा दिए गए झूठे मसीहियत के फैलाव की शुरूआत होने ही वाली थी, “जब लोग सो रहे थे।” यह मसीह के वफ़ादार प्रेरितों की मौत के बाद, अर्थात् परिणामी आध्यात्मिक निद्रालुता के कालावधि के दौरान हुआ। (मत्ती १३:२४-३०, ३६-४३; २ थिस्सलुनीकियों २:६-८) जैसे प्रेरितों ने पूर्वबताया, अनेक नक़ली मसीही झुण्ड में घुस आए। (प्रेरितों २०:२९, ३०; १ तीमुथियुस ४:१-३; २ तीमुथियुस २:१६-१८; २ पतरस २:१-३) प्रेरितों में यूहन्ना सबसे आख़िर में मरा था। सामान्य युग ९८ के क़रीब उसने लिखा कि “अन्तिम समय,” अर्थात् प्रेरितिक अवधि के आख़री भाग की शुरूआत हो चुकी थी।—१ यूहन्ना २:१८, १९.
रोमी सम्राट कौंस्टैंटाइन द्वारा समर्थित किए गए धार्मिक और राजनैतिक शक्ति के मेल के कारण मसीहीजगत की आध्यात्मिक, धर्म-सैद्धान्तिक, और नैतिक हालत उल्लेखनीय रूप से बदतर हो गयी। अनेक इतिहासकार इस बात से सहमत हैं कि “चौथी सदी के दौरान चर्च की जीत,” मसीही दृष्टिकोण से, “एक अनर्थ” था। ‘मसीहीजगत ने अपना उच्च नैतिक स्तर खो दिया’ और अन्यजातियों से कई प्रथाओं और तत्वज्ञानों को स्वीकार किया, जैसे कि “मरियम की उपासना” और “सन्तों” की आराधना, साथ-ही-साथ त्रियेक की धारणा।
अपनी झूठी जीत के बाद, मसीहीजगत की हालत बिगड़ गयी। धर्माधिकरण, धर्मयुद्ध तथा कैथोलिक और प्रोटेस्टेंट के बीच “पवित्र” युद्धों के अलावा, पोप और परिषद द्वारा दिए गए आदेशों और सैद्धान्तिक परिभाषाओं ने एक असुधार्य धार्मिक व्यवस्था को जन्म दिया।
अपनी किताब अ वर्ल्ड लिट ओन्ली बाइ फायर (अंग्रेज़ी) में विलियम मैंचेस्टर लिखता है: “पंद्रहवीं और सोलहवीं सदी में पोप रोमी सम्राटों की तरह जीते थे। वे संसार के सबसे अमीर लोग थे, और उन्होंने तथा उनके कार्डिनलों ने पवित्र पदों को बेचने के द्वारा ख़ुद को और भी धनी बनाया।” उस बड़े धर्मत्याग के दौरान, प्रतीकात्मक गेहूँ के गुण प्रदर्शित करते हुए, छोटे समूहों या एकल व्यक्तियों ने सच्ची मसीहियत को पुनः खोजने की कोशिश की। उन्होंने अकसर एक बड़ी क़ीमत चुकायी। वही किताब कहती है: “कभी-कभी ऐसा लगता कि मसीहियत के सच्चे सन्त, समान रूप से प्रोटेस्टेंट और कैथोलिक दोनों, आग की लपटों में शहीद के रूप में जलाए जाकर बदनाम हुए।” अन्य लोग, जैसे तथाकथित सुधारक मार्टिन लूथर और जॉन कैल्विन, ऐसी टिकाऊ धार्मिक व्यवस्थाओं को बनाने में सफल हुए जो कैथोलिक चर्च से अलग थीं, लेकिन फिर भी उनमें उसके मूलभूत धर्म-सिद्धान्त शामिल थे। वे राजनैतिक मामलों में भी पूरी तरह से अर्न्तग्रस्त थे।
प्रोटेस्टेंट क्षेत्र में, एक तथाकथित धार्मिक पुनःजागृति लाने के लिए कोशिशें की गईं। उदाहरण के लिए, १८वीं और १९वीं सदी के दौरान, ये कोशिशें ज़ोरदार विदेशी मिशनरी कार्य में परीणित हुईं। बहरहाल, धार्मिक चरवाहे जो स्वीकार करते हैं उन के अनुसार, आज प्रोटेस्टेंट झुण्ड की आध्यात्मिक हालत निश्चित ही प्रोत्साहक नहीं है। प्रोटेस्टेंट धर्म-विज्ञानी ऑस्कर कूलमैन ने हाल ही में स्वीकार किया कि “ख़ुद गिरजों के अन्दर ही विश्वास की एक संकट-स्थिति है।”
कैथोलिक चर्च के अन्दर सुधारों और प्रतिसुधारों को भी बढ़ावा दिया गया है। पादरी-वर्ग के व्यापक भ्रष्टाचार और विपुल धन के बावजूद, ११वीं से १३वीं सदी तक, ग़रीबी की शपथ का सख़्ती से पालन करनेवाले मठवासीय धर्म-समुदाय बनाए गए। लेकिन उन पर कड़ी नज़र रखी गयी, और विद्वानों के अनुसार वे चर्च के अधिकारी-वर्ग द्वारा दबाए गए। फिर ट्रेन्ट की परिषद द्वारा बढ़ावा दिया गया १६वीं-सदी का प्रति-सुधार आया, जो ज़्यादातर प्रोटेस्टेंट सुधार का विरोध करने के लिए था।
उन्नीसवीं सदी के पहले भाग में, गिरजे सम्बन्धी पुनःस्थापना के समय के दौरान, कैथोलिक चर्च ने एक सत्तावादी और रूढ़ीवादी रवैया अपनाया। लेकिन, यह नहीं कहा जा सकता कि सच्ची मसीहियत को पुनःस्थापित करने के लिए कोई वास्तविक सुधार किए गए। इसके बजाय, ये कोशिशें संसार के धार्मिक, राजनैतिक और सामाजिक परिवर्तन के बावजूद, पादरी-वर्ग के अधिकार को मज़बूत करने के लिए थीं।
हाल ही में, १९६० के दशक में, ऐसा प्रतीत हुआ कि कैथोलिक चर्च अखिल चर्ची परिषद वैटिकन II में बड़े परिवर्तन की एक प्रक्रिया शुरू करना चाहता था। बहरहाल, गिरजे के प्रगतिशील सदस्यों के जोश पर प्रतिबंध लगाने के लिए वर्तमान पोप द्वारा परिषद के तथाकथित नवीनीकरण पर अचानक रोक लगा दी गयी। इस चरण को, जिसे कुछ लोग वोयेत्वॉ की वापसी कहते हैं, एक कैथोलिक समूह द्वारा “कौंस्टैंटाइनवाद का एक नया रूप” परिभाषित किया गया। जैसे जेज़ुइट पत्रिका, लॉ चीवील्टॉ कॉटोलीकॉ में ख़ासकर ज़िक्र किया गया है, अन्य धर्मों की तरह, कैथोलिक चर्च “एक आमूल और विश्व-व्यापक संकट” का सामना कर रहा है, “आमूल इसलिए कि इसमें विश्वास और मसीही जीवन की जड़ें शामिल हैं; विश्व-व्यापक इसलिए कि इसमें मसीहियत के सभी पहलू शामिल हैं।”
मसीहीजगत के धर्म सुधार की प्रक्रिया से सचमुच नहीं गुज़रे हैं, ना ही वे ऐसा कर पाएँगे, क्योंकि सच्ची मसीहियत को “कटनी” के समय ही पुन:स्थापित किया जाना था, जब प्रतीकात्मक गेहूँ को एक शुद्ध कलीसिया में इकट्ठा किया जाता। (मत्ती १३:३०, ३९) चाहे वे मसीही होने का दावा करें या ना करें, लेकिन धर्म के नाम पर किए गए अपराधों और दुष्कर्मों की लम्बी सूची एक व्यक्ति को यह पूछने के लिए प्रेरित करती है, क्या मसीहीजगत से सच्चे सुधार की अपेक्षा करना यथार्थवादी है?
सुधार नामुमकिन?
प्रकाशितवाक्य, या प्रकटीकरण की किताब रहस्यमय नाम “बड़ा बाबुल” धारण करनेवाली एक प्रतीकात्मक बड़ी वेश्या के बारे में बताती है। (प्रकाशितवाक्य १७:१, ५) बाइबल पाठकों ने सदियों से इस प्रतीक के रहस्य को समझाने की कोशिश की है। पादरी-वर्ग के धन और भ्रष्टाचार से अनेक लोगों को घृणा हो गयी। कुछ लोगों ने सोचा कि बड़ा बाबुल गिरजे के अधिकारी-वर्ग को चित्रित करता है। उनमें बोहेमिया का एक कैथोलिक पादरी, यॉन हस था जिसे १४१५ में जिन्दा जलाया गया, और इटली का एक मानववादी, आओनियो पालेऑरियो था जिसे १५७० में फाँसी दी गयी और जलाया गया। दोनों ने कैथोलिक चर्च को इस आशा में सुधारने की भरसक असफल कोशिश की कि वह “अपनी प्रारंभिक गरिमा” को लौट आएगा।
इसकी विषमता में, प्रकाशितवाक्य के अध्याय १७ और १८ सूचित करते हैं कि बड़ा बाबुल सभी झूठे धर्मों के विश्व साम्राज्य को चित्रित करता है।a यह संयुक्त “बड़ी वेश्या” असुधार्य है क्योंकि “उसके पाप स्वर्ग तक पहुंच गए हैं।” दरअसल, इस २०वीं सदी में सिर्फ़ मसीहीजगत के धर्म ही नहीं, बल्कि सभी धर्म उन युद्धों के लिए जो अत्यधिक खून बहाते जा रहे हैं, और घोर नैतिक पतन के लिए जो मानवजाति को पीड़ित कर रही है, ज़िम्मेदार हैं। फलस्वरूप, परमेश्वर ने “बाबुल” के विनाश का आदेश दिया है।—प्रकाशितवाक्य १८:५, ८.
‘उस में से निकल आने’ का समय अभी है
बाइबल भविष्यवाणियों की पूर्ति प्रकट करती है कि हमारा समय इस दुष्ट “रीति-व्यवस्था” की “समाप्ति” से मेल खाता है। (मत्ती २४:३, NW) कोई भी व्यक्ति जो निष्कपटता से परमेश्वर की उपासना करना चाहता है, अपने ख़ुद के विचारों और इच्छाओं के अनुसार नहीं चल सकता। उसे ‘जब तक यहोवा मिल सकता है तब तक उसकी खोज में रहना’ चाहिए, जी हाँ, इसी समय, क्योंकि यीशु द्वारा पूर्वबताया गया “भारी क्लेश” नज़दीक है। (यशायाह ५५:६; मत्ती २४:२१) जैसे इस्राएल के लोगों के मामले में सच था, परमेश्वर एक धर्म के भ्रष्टाचार को सिर्फ़ इसलिए बरदाश्त नहीं करेगा कि वह अपनी पुरातनता के कारण शेख़ी बघारता है। डूबने के लिए नियत एक जहाज़ की मरम्मत करने की कोशिश करने के बजाय, परमेश्वर की स्वीकृति और उद्धार चाहनेवाले सभी लोगों को प्रकाशितवाक्य १८:४ के उत्प्रेरित आदेश को फ़ौरन मानना चाहिए: “हे मेरे लोगो, [बड़े बाबुल] में से निकल आओ; कि तुम उसके पापों में भागी न हो, और उस की विपत्तियों में से कोई तुम पर आ न पड़े।”
लेकिन कहाँ जाने के लिए “निकल आओ”? उद्धार और कहाँ मिल सकता है? क्या किसी ग़लत जगह पर शरण ढूँढने का ख़तरा नहीं है? उस एकमात्र धर्म को कैसे पहचाना जा सकता है जिसे परमेश्वर की स्वीकृति प्राप्त है? एकमात्र भरोसेमन्द जवाब परमेश्वर के वचन में पाए जा सकते हैं। (२ तीमुथियुस ३:१६, १७) यहोवा के गवाह आपको बाइबल की ज़्यादा क़रीबी से जाँच करने के लिए आमंत्रित करते हैं। आप यह समझ सकेंगे कि वे लोग कौन हैं जिन्हें परमेश्वर ने “अपने नाम के लिये एक लोग” के रूप में चुना है, जिन्हें वह अपने क्रोध के सन्निकट दिन के दौरान बचाएगा।—प्रेरितों १५:१४; सपन्याह २:३; प्रकाशितवाक्य १६:१४-१६.
[फुटनोट]
a प्रतीकात्मक बड़े बाबुल को शास्त्रीय तौर पर सही तरह से पहचानने के लिए, वॉचटावर बाइबल एण्ड ट्रैक्ट सोसाइटी द्वारा १९८८ में प्रकाशित किताब प्रकाशितवाक्य—इसकी महान् पराकाष्ठा निकट! (अंग्रेज़ी) के अध्याय ३३ से ३७ देखिए।
[पेज 7 पर तसवीर]
अगर आपका धार्मिक जहाज़ डूब रहा है, तो सच्ची मसीहियत के बचाव जहाज़ की ओर मुड़िए