मैमोनाइडस् वह व्यक्ति जिसने यहूदी धर्म को नयी व्याख्या दी
“मूसा से मूसा तक, मूसा जैसा कोई नहीं था।” अनेक यहूदी इस अस्पष्ट कहावत को १२वीं शताब्दी के यहूदी दार्शनिक, संहिताकार, और तलमूद और शास्त्रवचनों के व्याख्याकार, मूसा बेन मैमोन—जिसे मैमोनाइडस् और रॉमबॉम के नाम से भी जाना जाता है—के लिए प्रशंसा की एक अभिव्यक्ति के तौर पर समझेंगे।a आज अनेक लोग मैमोनाइडस् से अपरिचित हैं, फिर भी, उसके दिनों में उसके लेखों का यहूदी, मुसलमान, और चर्च विचारों पर गहरा असर पड़ा। शाब्दिक तौर पर उसने यहूदी धर्म की नयी व्याख्या दी। मैमोनाइडस् कौन था, और अनेक यहूदी उसे ‘दूसरे मूसा’ के तौर पर क्यों मानते हैं?
मैमोनाइडस् कौन था?
मैमोनाइडस् कोरडोबा, स्पेन में ११३५ में पैदा हुआ। उसके पिता, मैमोन ने उसे ज़्यादातर प्रारंभिक धार्मिक प्रशिक्षण दिया। उसका पिता एक प्रतिष्ठित राबिनी परिवार से एक प्रसिद्ध विद्वान था। जब अलमोहद ने ११४८ में कोरडोबा पर विजय प्राप्त की, तब यहूदियों के सामने धर्म परिवर्तन करके मुसलमान बनने का या वहाँ से भागने का चुनाव था। इस प्रकार मैमोनाइडस् परिवार के लिए एक लंबे समय का भ्रमण शुरु हुआ। ११६० में वे फेज़, मोरॉक्को में बस गए जहाँ उसने एक चिकित्सक के तौर पर प्रशिक्षण प्राप्त किया। ११६५ में उसके परिवार को पैलस्टाइन को भागना पड़ा।
लेकिन इस्राएल में स्थिति अस्थिर थी। वहाँ के छोटे यहूदी समुदाय को मसीहीजगत के धर्म-योद्धाओं और मुसलमान दलों से भी ख़तरा था। ‘पवित्र देश’ में छः महीने से कम समय बिताने के बाद मैमोनाइडस् और उसके परिवार ने कैरो के पुराने शहर, फुस्टाट, मिस्र में शरण ली। यहीं पर मैमोनाइडस् की क्षमताएँ पूर्ण रूप से पहचानी गईं। ११७७ में वह यहूदी समुदाय का मुखिया बना, और ११८५ में वह प्रसिद्ध मुसलमान नेता सलादीन के दरबार में चिकित्सक नियुक्त हुआ। १२०४ में उसकी मृत्यु तक मैमोनाइडस् ने इन दोनों पदों को सँभाला। उसकी चिकित्सीय निपुणता इतनी सुप्रसिद्ध थी कि इंग्लैंड जितने दूर देशों से भी, राजा रिचर्ड द लायन-हार्टड ने मैमोनाइडस् को अपने व्यक्तिगत चिकित्सक के तौर पर प्राप्त करने की कोशिश की।
उसने क्या लिखा?
मैमोनाइडस् ने बहुत कुछ लिखा। मुसलमानों की ओर से यातना से बचने के लिए भागते वक़्त, भगोड़े की तरह जीते हुए, उसने अपनी पहली प्रधान रचना, मिश्नाह पर व्याख्या का अधिकतर संकलन किया।b अरबी भाषा में लिखी हुई यह पुस्तक मिश्नाह के कई विचारों और पदों को समझाती है, और कभी-कभी यह यहूदी धर्म पर मैमोनाइडस् के दर्शनशास्त्र के स्पष्टीकरण में विषयांतरित होती है। महासभा के निबन्ध का स्पष्टीकरण देने वाले भाग में, मैमोनाइडस् ने यहूदी विश्वास के १३ मूल सिद्धांत बनाए। यहूदी धर्म ने कभी एक सुव्यवस्थित धर्मसार निर्धारित नहीं किया था। अब, मैमोनाइडस् के १३ विश्वास के सिद्धांत यहूदी पंथ के अनुक्रमिक निरूपणों का आदिरूप बना।—बक्स देखिए, पृष्ठ २३.
मैमोनाइडस् ने हर बात को, चाहे शारीरिक हो या आध्यात्मिक, तर्कसंगत क्रम देने की कोशिश की। उसने अंधविश्वास को अस्वीकार किया, और जिसे वह तर्कसंगत सबूत और तर्क समझता था उसके आधार पर हर बात के लिए स्पष्टीकरण की माँग की। इस स्वाभाविक झुकाव ने उसे अपनी सबसे महान रचना लिखने को प्रेरित किया—मिश्नेह तोराह।c
मैमोनाइडस् के दिनों में यहूदी मानते थे कि “तोराह” या “व्यवस्था” में केवल मूसा द्वारा लिखी हुई बातें ही नहीं लेकिन शताब्दियों से व्यवस्था की सभी राबिनी व्याख्याएँ भी शामिल हैं। ये विचार तलमूद और उसके बारे में हज़ारों राबिनी निर्णयों और लेखों में रिकार्ड किए गए थे। मैमोनाइडस् ने यह देखा कि इतनी सारी जानकारी के इतने बड़े परिमाण और अव्यवस्था की वजह से एक आम यहूदी अपने दैनिक जीवन को प्रभावित करनेवाले निर्णय करने में असमर्थ था। अनेक लोग ऐसी परिस्थिति में नहीं थे कि राबिनी साहित्य का जीवन-भर अध्ययन कर सकें, जिसमें से अधिकतर भाग कठिन आरामी भाषा में लिखी गई थी। मैमोनाइडस् ने इसका हल निकाला कि इस जानकारी को संपादित करना, व्यावहारिक निर्णयों को विशिष्ट करना, और उन्हें १४ पुस्तकों की एक क्रमबद्ध व्यवस्था में संगठित करना, जो विषय के अनुसार विभाजित की गई थीं। उसने इसे अत्यंत स्पष्ट, प्रवाही इब्रानी में लिखा।
मिश्नेह तोराह एक ऐसा व्यावहारिक मार्गदर्शक था कि कुछ यहूदी अगुओं को डर था कि वह तलमूद की जगह ले लेगा। फिर भी, जिन्होंने विरोध किया उन्होंने भी उस रचना की अत्यधिक विद्वत्ता को स्वीकार किया। यह अत्यंत संगठित संहिता एक क्रांतिकारी उपलब्धि थी, जिसने यहूदी धार्मिक व्यवस्था को नया जीवन प्रदान किया जिसके प्रति आम आदमी अब न तो अनुकूल प्रतिक्रिया दिखा सकता था और न ही पूर्णतया समझ सकता था।
फिर मैमोनाइडस् एक और प्रधान रचना लिखने लगा—उलझन में पड़े हुओं के लिए मार्गदर्शक। यूनानी श्रेष्ठ पुस्तकों का अरबी में अनुवाद होने पर, अधिकाधिक यहूदी अरिस्टोटल और दूसरे दार्शनिकों से परिचित हो रहे थे। कुछ लोग उलझन में थे क्योंकि उन्हें बाइबल के पदों के शाब्दिक अर्थ का दर्शनशास्त्र से मेल कराना मुश्किल लग रहा था। उलझन में पड़े हुओं के लिए मार्गदर्शक में मैमोनाइडस् ने, जो अरिस्टोटल को बहुत मान देता था, बाइबल और यहूदी धर्म के सार को ऐसे तरीक़े से समझाने की कोशिश की है जो दार्शनिक विचार और तर्क से सहमत हो।—१ कुरिन्थियों २:१-५, ११-१६ से तुलना कीजिए।
इन बड़ी रचनाओं और अन्य धार्मिक लेखों के अलावा, मैमोनाइडस् ने चिकित्सा और खगोलशास्त्र के क्षेत्रों में भी अधिकार से लिखा। बहुत ज़्यादा लिखनेवाले के तौर पर उसके लेखों के एक और पहलू को नज़रअंदाज़ नहीं करना है। एनसाइक्लोपीडिया जुडायका टिप्पणी करता है: “मैमोनाइडस् के पत्र पत्र-लेखन में एक युगारंभ को चिन्हित करते हैं। वह पहला यहूदी पत्र-लेखक है जिसके पत्र काफ़ी हद तक सुरक्षित रखे गए हैं। . . . उसके पत्र-व्यवहारियों के मन और हृदय को उसके पत्र छू लेते थे, और उसने लोगों के मुताबिक अपनी शैली को बदला।”
उसने क्या सिखाया?
अपने १३ विश्वास के सिद्धांतों में मैमोनाइडस् ने विश्वास की एक स्पष्ट रूपरेखा प्रदान की जिनमें से कुछ शास्त्रवचनों पर आधारित थे। लेकिन, सातवें और नौवें सिद्धांत, शास्त्रवचनों पर आधारित इस विश्वास के मूल तत्त्व का विरोध करते हैं कि यीशु मसीहा है।d त्रियेक जैसी मसीहीजगत की धर्मत्यागी शिक्षाओं और धर्मयुद्धों के रक्तपात द्वारा प्रमाणित स्पष्ट कपट को ध्यान में रखते हुए, यह आश्चर्य की बात नहीं है कि मैमोनाइडस् ने यीशु के मसीहा होने के सवाल के बारे में आगे शोध नहीं किया।—मत्ती ७:२१-२३; २ पतरस २:१, २.
मैमोनाइडस् लिखता है: “क्या [मसीहियत] से बड़ी ठोकर कोई हो सकती है? सभी भविष्यवक्ताओं ने मसीहा को इस्राएल का छुड़ानेवाला और उसका उद्धारक कहा . . . [इसके विपरीत, मसीहियत] यहूदियों के तलवार से मारे जाने, उनके शेषजनों को छितराने और नीचा किए जाने, तोराह को परिवर्तित किए जाने, और अधिकांश संसार से पाप करवाने और प्रभु के बजाय दूसरे ईश्वरों की सेवा करवाने का कारण बनी।”—मिश्नेह तोराह, “राजाओं और उनके युद्धों के नियम,” अध्याय ११.
फिर भी, मैमोनाइडस् के प्रति दिखाए गए आदर के बावजूद, अनेक यहूदी कुछ मामलों में उसकी उपेक्षा करना पसंद करते हैं जिनके बारे में उसने अधिकतम स्पष्टवादिता से बात की। रहस्यवादी यहूदी धर्म (कबाला) के बढ़ते प्रभाव से, यहूदियों के बीच ज्योतिष-विद्या लोकप्रिय हो रही थी। मैमोनाइडस् ने लिखा: “जो कोई ज्योतिष-विद्या में सम्मिलित है और अपने कार्य या यात्रा की योजना उन लोगों द्वारा निर्धारित समय के आधार पर बनाता है जो आकाश का निरीक्षण करते हैं, वह कोड़े खाने के योग्य है . . . ये सब बातें झूठ और धोखा हैं . . . जो कोई इन बातों पर विश्वास करता है . . . बेवकूफ़ है जिसमें बुद्धि की कमी है।”—मिश्नेह तोराह, “मूर्तिपूजा के नियम,” अध्याय ११; लैव्यव्यवस्था १९:२६ से तुलना कीजिए; व्यवस्थाविवरण १८:९-१३.
मैमोनाइडस् ने एक और रिवाज़ की भी सख़्त निन्दा की: “[रब्बियों] ने अपने लिए लोगों और समुदायों से आर्थिक माँगें निर्धारित कीं और सरासर बेवकूफ़ी से लोगों को यह सोचने के लिए प्रेरित किया कि यह ज़रूरी और उचित है। . . . यह सब ग़लत है। तोराह या [तलमूदी] मुनियों के कथनों में इस विश्वास का समर्थन करने के लिए एक भी शब्द नहीं है।” (मिश्नाह पर व्याख्या, एवोट ४:५) इन रब्बियों से भिन्न मैमोनाइडस् ने अपनी धार्मिक सेवाओं के लिए कभी भी वेतन स्वीकार नहीं करते हुए, अपनी देखरेख के लिए एक चिकित्सक के तौर पर कठिन परिश्रम किया।—२ कुरिन्थियों २:१७ से तुलना कीजिए; १ थिस्सलुनीकियों २:९.
यहूदी धर्म और दूसरे विश्वासों पर कैसा असर हुआ?
हीब्रू यूनिवर्सिटी, यरूशलेम के प्रोफ़ेसर यशैअहू लैबोविट्स् ने कहा: “कुलपिताओं और भविष्यवक्ताओं के युग से लेकर आज के युग तक, यहूदी धर्म के इतिहास में मैमोनाइडस् सबसे प्रभावकारी व्यक्ति है।” एनसाइक्लोपीडिया जुडायका टिप्पणी करता है: “यहूदी धर्म के भावी विकास पर मैमोनाइडस् का प्रभाव अगणनीय है। . . . सी. चिरनोविट्स् इतना तक कहता है कि यदि मैमोनाइडस् न होता तो यहूदी धर्म अलग-अलग पंथों और विश्वासों में बँट जाता . . . यह उसकी महान सफलता थी कि उसने अलग-अलग विचाधाराओं को एक किया।”
यहूदी विचारों को पुनःव्यवस्थित करने के द्वारा ताकि वे क्रम और तर्क के उसके अपने विचारों पर ठीक बैठें, मैमोनाइडस् ने यहूदी धर्म की नयी व्याख्या दी। दोनों, विद्वानों और आम व्यक्तियों ने इस नयी परिभाषा को व्यावहारिक और आकर्षक पाया। यहाँ तक कि उसके विरोधियों ने भी अंततः मैमोनाइडस् के तरीक़ों को काफ़ी हद तक स्वीकार किया। यद्यपि उसके लेखों का उद्देश्य यहूदियों को अंतहीन व्याख्याओं पर निर्भर रहने की ज़रूरत से मुक्त करने का था, जल्द ही उसकी रचनाओं के बारे में लम्बी व्याख्याएँ लिखी गयीं।
एनसाइक्लोपीडिया जुडायका टिप्पणी करता है: “मैमोनाइडस् . . . मध्य युगों का सबसे महत्त्वपूर्ण यहूदी दार्शनिक था, और उसकी उलझन में पड़े हुओं के लिए मार्गदर्शक एक यहूदी द्वारा रचित सबसे महत्त्वपूर्ण दार्शनिक रचना है।” अरबी में लिखे होने के बावजूद, उलझन में पड़े हुओं के लिए मार्गदर्शक का, मैमोनाइडस् के जीवनकाल में ही इब्रानी में अनुवाद किया गया और उसके कुछ समय बाद ही लैटिन में, जिससे वह पूरे यूरोप में अध्ययन के लिए उपलब्ध हो गया। परिणामस्वरूप, मैमोनाइडस् का अरिस्टोटल के दर्शनशास्त्र के साथ यहूदी विचार का अनोखा संयोजन मसीहीजगत के मुख्य विचारधारा में जल्द ही प्रवेश कर गया। अल्बर्टस् मॉग्नस और थोमस अक्वीनास जैसे उस समय के मसीहीजगत के विद्वान भी अकसर मैमोनाइडस् के विचारों का ज़िक्र करते हैं। मुसलमान विद्वान भी प्रभावित हुए थे। मैमोनाइडस् के दर्शनशास्त्रीय विचारों ने बारूक़ स्पीनोज़ा जैसे बाद के यहूदी दार्शनिकों को कट्टर यहूदी धर्म को पूर्णतः छोड़ने के लिए प्रभावित किया।
मैमोनाइडस् एक पुनर्जागरण युग का व्यक्ति समझा जा सकता है जो पुनर्जागरण युग से पहले जीया। उसका आग्रह कि विश्वास तर्क के साथ संगत हो, अब भी एक वैध सिद्धांत है। इस सिद्धांत ने उसे प्रेरित किया कि वह धार्मिक अंधविश्वास के विरुद्ध प्रबल रूप से बोले। फिर भी, मसीहीजगत के बुरे उदाहरण और अरिस्टोटल के दर्शनशास्त्रीय प्रभाव ने अकसर उसे बाइबल सच्चाई के पूर्ण सामंजस्य में नतीज़ों तक पहुँचने से रोका। हालाँकि सभी मैमोनाइडस् की क़ब्र पर अंकित इस टिप्पणी से सहमत नहीं होंगे—“मूसा से मूसा तक, मूसा जैसा कोई नहीं था”—यह बात तो माननी पड़ेगी कि उसने यहूदी धर्म की नीति और ढाँचे को नयी व्याख्या दी।
[फुटनोट]
a “रॉमबॉम” एक इब्रानी परिवर्णी शब्द है, एक नाम जो “रब्बी मूसा बेन मैमोन” शब्दों के पहले अक्षरों से बना है।
b मिश्नाह, जो राबिनी व्याख्याओं का एक संग्रहण है जिसे यहूदी मौखिक नियम मानते हैं, उस नियम पर आधारित है। यह सा.यु. दूसरी शताब्दी के आख़िरी भाग में और तीसरी शताब्दी की शुरूआत में लिखा गया, और इसी से तलमूद की शुरूआत हुई। ज़्यादा जानकारी के लिए वॉचटावर बाइबल एण्ड ट्रैक्ट सोसाइटी द्वारा प्रकाशित ब्रोशर क्या कभी युद्ध के बिना एक संसार होगा? (अंग्रेज़ी) का पृष्ठ १० देखिए।
c यह नाम, मिश्नेह तोराह एक इब्रानी पद है जो व्यवस्थाविवरण १७:१८ से निकाला गया है, अर्थात् व्यवस्था की एक प्रति या दोहराव।
d यीशु के वाचा किए गए मसीहा होने का प्रमाण के बारे में ज़्यादा जानकारी के लिए वॉचटावर बाइबल एण्ड ट्रैक्ट सोसाइटी द्वारा प्रकाशित ब्रोशर क्या कभी युद्ध के बिना एक संसार होगा? (अंग्रेज़ी) के पृष्ठ २४-३० देखिए।
[पेज 23 पर बक्स]
मैमोनाइडस् के १३ विश्वास के सिद्धांतe
१. परमेश्वर सब चीज़ों का सृष्टिकर्ता और शासक है। उसी ने सब चीज़ें बनायी हैं, वही बनाता है, और वही बनाएगा।
२. परमेश्वर एक है। किसी भी रीति से उसके जैसा कोई इकाई नहीं है।
३. परमेश्वर का शरीर नहीं है। शारीरिक धारणाएँ उस पर लागू नहीं होतीं।
४. परमेश्वर पहला और आख़िरी है।
५. केवल परमेश्वर से ही प्रार्थना करना उचित है। एक व्यक्ति किसी और व्यक्ति या वस्तु से प्रार्थना न करे।
६. भविष्यवक्ताओं के सब शब्द सच हैं।
७. मूसा की भविष्यवाणी बिलकुल सच है। उससे पहले और उसके बाद के सभी भविष्यवक्ताओं में वह मुख्य था।
८. अब हमारे पास जो पूरा तोराह है यह वो है जो मूसा को दिया गया था।
९. तोराह बदला नहीं जाएगा और परमेश्वर द्वारा दूसरा कभी नहीं दिया जाएगा।
१०. परमेश्वर मनुष्य के सभी कार्यों और विचारों को जानता है।
११. परमेश्वर अपनी आज्ञा माननेवालों को प्रतिफल देता है, और उसके विरुद्ध पाप करनेवालों को दंड देता है।
१२. मसीहा आएगा।
१३. मरे हुए वापस जीवित किए जाएँगे।
[फुटनोट]
e मैमोनाइडस् ने ये सिद्धांत अपनी मिश्नाह पर व्याख्या (महासभा १०:१) में स्पष्ट किए। यहूदी धर्म ने बाद में इन्हें एक औपचारिक धर्मसार के तौर पर अपनाया। ऊपरी लेख यहूदी प्रार्थना पुस्तक में, जैसे वे मौजूद हैं, से संक्षेपण किया गया है।
[पेज 21 पर चित्रों का श्रेय]
Jewish Division / The New York Public Library / Astor, Lenox, and Tilden Foundations