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  • रब्बी कहलाने के योग्य कौन है?
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प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1996
w96 7/1 पेज 28-31

रब्बी कहलाने के योग्य कौन है?

एक असंदेही पर्यटक को समय पर हवाई-अड्डे तक पहुँचने की संभावना कम थी। सैकड़ों पुलिसवालों ने यरूशलेम की सड़कों पर भरे ३,००,००० से भी ज़्यादा शोक मनानेवालों की रक्षा करने के साथ-साथ यातायात को निर्देशित करने का प्रयत्न किया। द जॆरूसलॆम पोस्ट (अंग्रेज़ी) ने इसे “ऐसे आकार की अंत्येष्टि जलूस” कहा “जो सामान्यतः केवल राष्ट्रपतियों, राजाओं या सर्वसत्तात्मक तानाशाहों के लिए आरक्षित है।” किसकी वजह से ऐसी भक्‍ति उमड़ पड़ी, जिसने घंटों के लिए इस्राएल की राजधानी को अशक्‍त कर दिया? एक सम्मानित रब्बी। रब्बी का पद यहूदियों में ऐसा सम्मान और भक्‍ति की माँग क्यों करता है? पहली बार पद “रब्बी” कब इस्तेमाल किया गया? यह किसे उचित रूप से लागू होता है?

क्या मूसा एक रब्बी था?

यहूदी धर्म में सबसे सम्मानित नाम है मूसा, इस्राएल की व्यवस्था वाचा का मध्यस्थ। धार्मिक यहूदी उसे “मूसा ‘हमारा रब्बी’” कहते हैं। लेकिन, बाइबल में कहीं भी मूसा का ज़िक्र उपाधि “रब्बी” के रूप में नहीं किया गया है। दरअसल, पद “रब्बी” इब्रानी शास्त्र में बिलकुल भी नहीं दिखता है। तो फिर, यहूदी लोग मूसा को इस तरह से कैसे पुकारने लगे?

इब्रानी शास्त्र के मुताबिक़, हारून के वंशज, लेवी गोत्र के याजकों को व्यवस्था सिखाने और समझाने की ज़िम्मेदारी तथा अधिकार दिया गया था। (लैव्यव्यवस्था १०:८-११; व्यवस्थाविवरण २४:८; मलाकी २:७) लेकिन, सा.यु.पू. दूसरी शताब्दि में, यहूदी धर्म में एक अप्रत्यक्ष क्रांति शुरू हुई, जिसने उस समय से यहूदी सोच-विचार को स्थायी रूप से प्रभावित किया।

इस आध्यात्मिक रूपांतरण के सम्बन्ध में, डैनियल जरॆमी सिलवर यहूदी धर्म का इतिहास (अंग्रेज़ी) में लिखता है: “[उस] समय अयाजकीय शास्त्रियों और विद्वानों का एक वर्ग तोराह [मूसा की व्यवस्था] व्याख्या के याजकीय एकाधिकार की वैधता को चुनौती देने लगा। सभी जन सहमत हुए कि मन्दिर कार्यकर्ताओं के तौर पर याजक आवश्‍यक थे, लेकिन तोराह के विषयों पर उनकी ही अन्तिम बोली क्यों होनी चाहिए?” याजकीय वर्ग के अधिकार के प्रति ऐसी चुनौती को उकसानेवाले लोग कौन थे? यहूदी धर्म के मध्य एक नया समूह जो फरीसी कहलाता है। सिलवर आगे कहता है: “फरीसियों ने अपने विद्यालयों में प्रवेश को जन्म [याजकीय वंशज] पर नहीं, बल्कि योग्यता पर आधारित किया, और वे धार्मिक नेतृत्व में यहूदियों का एक नया वर्ग लाए।”

सामान्य युग पहली शताब्दी तक, इन फरीसी विद्यालयों से स्नातक होनेवाले जन यहूदी व्यवस्था के शिक्षक, या गुरू के नाम से पहचाने जाने लगे। सम्मान के प्रतीक के तौर पर, अन्य यहूदियों ने उनका ज़िक्र “मेरे शिक्षक,” या “मेरे गुरू,” इब्रानी में रब्बी, के रूप में करना शुरू किया।

कोई और बात इस नयी उपाधि को इससे और अधिक वैधता नहीं दे सकती कि इसे यहूदी इतिहास के सर्वश्रेष्ठ शिक्षक माने जानेवाले व्यक्‍ति, मूसा पर लागू किया जाए। इसका प्रभाव फरीसियों की बढ़ रही प्रभावशाली नेतृत्व की धारणा को बढ़ावा देने के साथ-साथ याजकत्व के महत्त्व को और भी कम कर देता। इस प्रकार, मूसा की मृत्यु के १,५०० से अधिक वर्ष बाद, उसे पूर्वप्रभावी रूप से “रब्बी” नामोद्दिष्ट किया गया।

गुरू का अनुकरण करना

जबकि अभिव्यक्‍ति “रब्बी” (“मेरा गुरू”) कभी-कभार जनसमूह द्वारा दूसरे शिक्षकों का, जिन्हें वे सम्मान देते थे, ज़िक्र करने के लिए इस्तेमाल की जाती थी, इस पद को सामान्यतः फरीसियों, अर्थात्‌ “ज्ञानियों” के बीच प्रमुख शिक्षकों पर लागू किया जाता था। सा.यु. ७० में मन्दिर के नाश के साथ, जिससे असल में याजकत्व का अधिकार ख़त्म हो गया, फरीसी रब्बी यहूदी धर्म के निर्विरोध अगुवे बन गए। उनके अतुलनीय पद ने एक ऐसे प्रकार के पंथ के विकास को प्रोत्साहित किया जो रब्बी ज्ञानियों पर केन्द्रित था।

सामान्य युग पहली शताब्दी की इस सांक्रांतिक-अवधि की चर्चा करते हुए, प्रोफ़ॆसर डोव ज़्लोटनीक टिप्पणी करता है: “‘ज्ञानियों का ध्यानपूर्वक अनुपालन करना’ तोराह के अध्ययन से ज़्यादा महत्त्वपूर्ण बन गया।” यहूदी विद्वान जेकब नोइसनर आगे समझाता है: “‘ज्ञानियों का शिष्य’ ऐसा विद्यार्थी है जिसने अपने आपको एक रब्बी के साथ जोड़ लिया है। वह ऐसा करता है क्योंकि वह ‘तोराह’ सीखना चाहता है। . . . तोराह व्यवस्था द्वारा नहीं सीखा जाता है, बल्कि जीवित ज्ञानियों के हाव-भाव और कार्यों में सम्मिलित व्यवस्था को देखने के द्वारा सीखा जाता है। वे अपने करनी से व्यवस्था सिखाते हैं, केवल वे जो कहते हैं उससे नहीं।”

तलमुद विद्वान एडीन स्टाइनसॉल्टस्‌ इसकी पुष्टि करता है, और लिखता है: “ज्ञानियों ने ख़ुद कहा है, ‘ज्ञानियों के सामान्य वार्तालाप, मज़ाक, या अनौपचारिक कथनों का अध्ययन किया जाना चाहिए।’” किस हद तक इसे लागू किया जा सकता है? स्टाइनसॉल्टस्‌ लिखता है: “इसका एक आत्यंतिक उदाहरण उस शिष्य का है जिसके बारे में बताया गया है कि उसने अपने महान शिक्षक के बिस्तर के नीचे अपने आपको छुपा लिया ताकि वह यह पता लगा सके कि वह अपनी पत्नी के साथ कैसा व्यवहार करता है। जब उसकी जिज्ञासा के बारे में पूछा गया, तो उस युवा शिष्य ने जवाब दिया: ‘यह तोराह है और अध्ययन किए जाने के योग्य है,’ ऐसा तरीक़ा जो दोनों रब्बियों और विद्यार्थियों द्वारा उचित मानकर स्वीकारा जाता है।”

तोराह—रब्बी के ज़रिए तोराह सीखने—के बजाय रब्बी पर ज़्यादा महत्त्व की वजह से सा.यु. पहली शताब्दी से यहूदी धर्म रब्बी-निर्देशित धर्म बन गया। एक व्यक्‍ति परमेश्‍वर के निकट उत्प्रेरित लिखित वचन के द्वारा नहीं, बल्कि एक व्यक्‍तिगत आदर्श, एक गुरू, रब्बी के द्वारा आता है। अतः, महत्त्व स्वाभाविक रूप से उत्प्रेरित शास्त्र से हटकर इन रब्बियों द्वारा सिखायी गयी मौखिक व्यवस्था और रिवाज़ों को दिया गया। तब से, तलमुद जैसे यहूदी साहित्य परमेश्‍वर की उद्‌घोषणाओं से ज़्यादा रब्बियों की चर्चाओं, किस्सों, और व्यवहार पर अधिक केन्द्रित होता है।

युगों के दौरान रब्बी

हालाँकि वे अत्यधिक अधिकार और प्रभाव का इस्तेमाल करते थे, प्रारम्भिक रब्बियों ने अपनी धार्मिक गतिविधि द्वारा रोज़ी-रोटी नहीं कमायी। एनसाइक्लोपीडिया जुडायका (अंग्रेज़ी) कहती है: “तलमुद का रब्बी . . . इस उपाधि के वर्तमान-समय के धारक से पूरी तरह से भिन्‍न था। तलमुद का रब्बी बाइबल और मौखिक व्यवस्था का एक दुभाषिया और व्याख्याता था, और लगभग हमेशा उसके पास ऐसा रोज़गार था जिससे वह अपनी रोज़ी-रोटी कमाता था। यह केवल मध्य युग में था कि रब्बी . . . यहूदी कलीसिया या सम्प्रदाय के शिक्षक, प्रचारक, और आध्यात्मिक मुखिया बन गए।”

जब रब्बियों ने अपने पद को एक वैतनिक पेशा बनाना शुरू किया, तब कुछ लोगों ने उसके विरुद्ध आवाज़ उठाई। मैमोनाइडस्‌, १२वीं-शताब्दी के एक जाने-माने रब्बी ने, जो हाकिम के तौर पर अपनी रोज़ी-रोटी कमाता था, ऐसे रब्बियों की घोर निन्दा की। “[उन्होंने] अपने लिए व्यक्‍तियों और सम्प्रदायों से आर्थिक माँगें तय कीं और लोगों से सुचाया, जो कि निरा मूर्ख विचार है, कि ज्ञानियों और विद्वानों तथा तोराह का अध्ययन करनेवाले लोगों की [आर्थिक रूप से] मदद करना बाध्यकर और उचित है, इस प्रकार उनका तोराह उनका धन्धा है। लेकिन ये सब ग़लत है। तोराह या ज्ञानियों के कथनों में एक भी शब्द नहीं है, जो इसका समर्थन करे।” (मिशना पर टिप्पणी, अंग्रेज़ी, एवॉट ४:५) लेकिन मैमोनाइडस्‌ का दोषारोपण रब्बियों की भावी पीढ़ियों द्वारा अनदेखा किया गया।

जैसे-जैसे यहूदी धर्म ने आधुनिक युग में प्रवेश किया, यह सुधार, दक़ियानूसी, और रूढ़ीवादी विश्‍वास के गुटों में बँट गया। अनेक यहूदियों के लिए धार्मिक विश्‍वास और रिवाज़ अन्य चिन्ताओं की तुलना में दूसरे दरजे का हो गया। क्रमशः, रब्बी का पद कमज़ोर हो गया। रब्बी, मुख्यतः कलीसिया का एक नियुक्‍त मुखिया बन गया, और अपने समूह के सदस्यों के लिए वैतनिक, पेशेवर शिक्षक और सलाहकार के तौर पर कार्य करने लगा। लेकिन, अति-रूढ़ीवादी हॆसाइडिक समूहों में, गुरू और आदर्श के तौर पर रब्बी की धारणा और भी विकसित हुई।

हॆसाइडिक हबॉड-लुबाविच आंदोलन के बारे में अपनी पुस्तक में एडवर्ड हॉफ़मैन की टिप्पणियों पर ध्यान दीजिए: “प्रारम्भिक हॆसाइडिम ने भी ज़ोर दिया कि हरेक पीढ़ी में एक ऐसा यहूदी अगुवा, एक ज़ड्डिक [एक धार्मिक व्यक्‍ति] होता है, जो अपने समय का ‘मूसा’ होता है, जिसकी विद्वत्ता, और भक्‍ति दूसरों से बेजोड़ है। उसकी विस्मयकारी भक्‍ति के ज़रिए, हॆसाइडिम के प्रत्येक समूह ने महसूस किया कि उनका रॆब्बी [यीड्डिश में “रब्बी”] सर्वशक्‍तिमान के आदेशों को भी प्रभावित कर सकता है। उसके प्रकटीकरण सम्बन्धी भाषणों के ज़रिए उसे न केवल एक आदर्श के तौर पर पूज्य माना जाता था, बल्कि उसकी जीवन-रीति ही (‘वह अपने जूतों के फ़ीतों को कैसे बाँधता है,’ जैसे व्यक्‍त किया गया था) मानवता को उन्‍नत करती हुई और ईश्‍वर तक मार्ग की ओर दुर्बोध संकेत करती हुई देखी गयी।”

“तुम रब्बी न कहलाना”

यीशु, पहली-शताब्दी का यहूदी जिसने मसीहियत की शुरूआत की थी, एक ऐसे समय में जीया जब रब्बी की फरीसी धारणा यहूदी धर्म पर हावी होना शुरू हो रही थी। वह एक फरीसी नहीं था, ना ही उसे उनके विद्यालयों में शिक्षित किया गया था, फिर भी उसे भी रब्बी कहा गया।—मरकुस ९:५; यूहन्‍ना १:३८; ३:२.

यहूदी धर्म में रब्बियों की प्रवृत्ति की घोर निन्दा करते हुए, यीशु ने कहा: “शास्त्री और फरीसी मूसा की गद्दी पर बैठे हैं। जेवनारों में मुख्य मुख्य जगहें, और सभा में मुख्य मुख्य आसन। और बाजारों में नमस्कार और मनुष्य में रब्बी कहलाना उन्हें भाता है। परन्तु, तुम रब्बी न कहलाना; क्योंकि तुम्हारा एक ही गुरु है: और तुम सब भाई हो।”—मत्ती २३:२, ६-८.

यीशु ने पादरी-अयाजक वर्ग की भिन्‍नता के विरुद्ध आगाह किया जो यहूदी धर्म के अन्दर विकसित हो रही थी। उसने मनुष्यों को ऐसी अनुचित प्रमुखता देने की निन्दा की। “तुम्हारा एक ही गुरु है,” उसने साहसपूर्वक घोषणा की। यह एक कौन था?

मूसा, “जिस से यहोवा ने आम्हने-साम्हने बातें कीं” और जिसे ख़ुद ज्ञानियों ने “हमारा रब्बी” कहा, अपरिपूर्ण मनुष्य था। उसने भी ग़लतियाँ कीं। (व्यवस्थाविवरण ३२:४८-५१; ३४:१०; सभोपदेशक ७:२०) मूसा को चरम उदाहरण के तौर पर विशिष्ट करने के बजाय, यहोवा ने उससे कहा: “मैं उनके लिये उनके भाइयों के बीच में से तेरे समान एक नबी को उत्पन्‍न करूंगा; और अपना वचन उसके मुंह में डालूंगा; और जिस जिस बात की मैं उसे आज्ञा दूंगा वही वह उनको कह सुनाएगा। और जो मनुष्य मेरे वह वचन जो वह मेरे नाम से कहेगा ग्रहण न करेगा, तो मैं उसका हिसाब उस से लूंगा।”—व्यवस्थाविवरण १८:१८, १९.

बाइबल भविष्यवाणियाँ साबित करती हैं कि इन शब्दों की पूर्ति यीशु, अर्थात्‌ मसीहा में होती है।a यीशु न केवल मूसा के “समान” था; वह मूसा से बढ़कर था। (इब्रानियों ३:१-३) शास्त्र प्रकट करता है कि यीशु परीपूर्ण मनुष्य के तौर पर जन्मा था, और मूसा से भिन्‍न उसने परमेश्‍वर की “निष्पाप” सेवा की।—इब्रानियों ४:१५.

आदर्श का अनुकरण कीजिए

रब्बी की हरेक करनी और कथनी के एक गम्भीर अध्ययन से यहूदी परमेश्‍वर के निकट नहीं आए हैं। जबकि एक अपरिपूर्ण मनुष्य शायद वफ़ादारी की एक मिसाल हो, यदि हम उसके हरेक कार्य का अध्ययन और नक़ल करें, तो हम उसकी ग़लतियों और अपरिपूर्णताओं, साथ ही साथ उसके अच्छे गुणों की नक़ल करेंगे। हम सृष्टिकर्ता के बजाय सृष्ट किए गए व्यक्‍ति को अनुचित महिमा दे रहे होंगे।—रोमियों १:२५.

लेकिन यहोवा ने मानवजाति के लिए एक आदर्श ज़रूर प्रदान किया है। शास्त्र के मुताबिक़, यीशु का मानव-पूर्व अस्तित्त्व था। दरअसल, उसे “अदृश्‍य परमेश्‍वर का प्रतिरूप और सारी सृष्टि में पहिलौठा” कहा जाता है। (कुलुस्सियों १:१५) परमेश्‍वर के “कुशल कारीगर” के तौर पर अनकही सहस्राब्दियों तक स्वर्ग में सेवा करने के कारण, यीशु यहोवा को जानने में हमारी मदद करने के लिए सर्वोत्तम स्थिति में है।—नीतिवचन ८:२२-३०, NHT; यूहन्‍ना १४:९, १०.

इसीलिए, पतरस लिख सका: “मसीह . . . तुम्हारे लिये दुख उठाकर, तुम्हें एक आदर्श दे गया है, कि तुम भी उसके चिन्ह पर चलो।” (१ पतरस २:२१) प्रेरित पौलुस ने मसीहियों को ‘विश्‍वास के कर्ता और सिद्ध करनेवाले यीशु की ओर ताकते रहने’ के लिए प्रोत्साहित किया। उसने यह भी समझाया कि ‘उस में बुद्धि और ज्ञान से सारे भण्डार छिपे हुए हैं।’ (इब्रानियों १२:२; कुलुस्सियों २:३) कोई और व्यक्‍ति—न मूसा ना ही कोई रब्बी ज्ञानी—ऐसे ध्यान के योग्य नहीं है। यदि किसी की ध्यानपूर्वक नक़ल की जानी है, तो वह यीशु की है। परमेश्‍वर के सेवकों को रब्बी जैसी उपाधि की कोई ज़रूरत नहीं है, ख़ासकर इसके आधुनिक-दिन अर्थ को मद्देनज़र रखते हुए, लेकिन यदि कोई रब्बी कहलाने के योग्य था, तो वह था यीशु।

[फुटनोट]

a इसके सबूत पर अतिरिक्‍त जानकारी के लिए कि यीशु ही प्रतिज्ञात मसीहा है, वॉचटावर बाइबल एण्ड ट्रैक्ट सोसाइटी द्वारा प्रकाशित ब्रोशर क्या कभी युद्ध के बिना एक संसार होगा? (अंग्रेज़ी) के पृष्ठ २४-३० देखिए।

[पेज 28 पर चित्र का श्रेय]

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