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  • “मैं यहोवा के लिए बहुमूल्य हूँ!”

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  • “मैं यहोवा के लिए बहुमूल्य हूँ!”
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प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1995
w95 12/15 पेज 24-25

“मैं यहोवा के लिए बहुमूल्य हूँ!”

इन ‘कठिन समयों’ में, यहोवा के अनेक वफ़ादार सेवक अयोग्यता की भावनाओं से निरन्तर संघर्ष को सह रहे हैं। (२ तीमुथियुस ३:१) यह आश्‍चर्यजनक नहीं है क्योंकि शैतान की एक ‘धूर्त युक्‍ति’ हमें यह महसूस कराना है कि हम अप्रीतिकर हैं, अपने सृष्टिकर्ता के लिए भी! (इफिसियों ६:११, NW फुटनोट) उपयुक्‍त रूप से, प्रहरीदुर्ग के अप्रैल १, १९९५ के अंक में कलीसिया अध्ययन के लिए दो लेख थे जिनका शीर्षक था “परमेश्‍वर की नज़रों में आप बहुमूल्य हैं!” और “प्रेम और भले कार्यों में उत्साहित करना—कैसे?” ये लेख हमें यह याद दिलाने के उद्देश्‍य से लिखे गए थे कि यहोवा हमारे प्रयासों को बहुमूल्य समझता है। प्राप्त की गयी मूल्यांकन की कुछ टिप्पणियाँ निम्नलिखित हैं:

“यहोवा की एक साक्षी के रूप में मेरे २७ सालों के दौरान कभी किसी पत्रिका ने मुझे इतना प्रभावित नहीं किया। मैं अपने आपको रोक नहीं सकी और रो पड़ी—इन लेखों ने मुझे इतनी राहत पहुँचायी। अब मैं ऐसा महसूस करती हूँ कि यहोवा मुझसे कितना प्रेम करता है। यह ऐसा है मानो एक भारी बोझ मेरे कंधों पर से हटा दिया गया है।”—सी. एच.

“मैंने इस पत्रिका को एक दिन में चार बार पढ़ा। लेख ने जिस तरीक़े से कहा कि यदि आप विश्‍वास करते हैं कि आपका कोई मूल्य नहीं है तो आपको झूठ सिखाया गया था, इस बात का मैंने आनन्द उठाया। मैं इस लेख का इस्तेमाल रखवाली और घर-घर प्रचार कार्य में करनेवाला हूँ।”—एम. पी.

“शैतान ने उन लोगों को भी, जो यहोवा से प्रेम करते हैं, बेकार और अप्रीतिकर महसूस कराने में एक बढ़िया कार्य किया है। ‘विश्‍वासयोग्य दास’ वर्ग द्वारा यह याद दिलाया जाना कि यहोवा हम से अगाध प्रेम करता है और कि वह उन सब छोटे कार्यों का मूल्यांकन करता है जिसे हम उसके लिए करते हैं, सबसे प्रोत्साहक बात थी जो मैंने पढ़ी है। अनेक सालों से मुझमें ऐसी भावनाएँ थीं जिनके बारे में आपने इन लेखों में बात की है। मैंने कभी यहोवा के प्रेम के योग्य महसूस नहीं किया, सो मैंने उस प्रेम को प्राप्त करने के एक तरीक़े के रूप में उसकी सेवा में ज़्यादा से ज़्यादा करने की कोशिश की। लेकिन मैं दोष-भावना और शर्म द्वारा प्रेरित थी। सो चाहे मैंने सेवकाई में कितने भी घंटे क्यों न बिताए, या मैंने कितने भी लोगों की क्यों न मदद की, मैंने महसूस किया कि वह पर्याप्त नहीं था। मैंने बस अपनी कमी को देखा। अब जब मैं यहोवा की सेवा प्रेम की वजह से करती हूँ, तो मैं कल्पना करती हूँ कि वह मुसकरा रहा है और कि वह मुझ पर गर्व करता है। इससे उसके लिए मेरा प्रेम और भी उमड़ता है और मुझे और ज़्यादा करने को प्रेरित करता है। अब मैं यहोवा के प्रति अपनी सेवा से बहुत आनन्द अनुभव करती हूँ।”—आर. एम.

“अब तक जितने भी लेख मैंने पढ़े हैं, उनमें से हमारे हृदय को छूनेवाले ये निश्‍चय ही सर्वोत्तम, सबसे प्रोत्साहक, जी हाँ, उत्कृष्ट लेख हैं! मैं ५५ सालों से प्रहरीदुर्ग पढ़ता रहा हूँ, और अनेक उत्कृष्ट अंक छपे हैं। लेकिन हमारे पास अब तक हमारे संदेह, आशंका, और इस डर को कि हम ‘बेकार’ और ‘अप्रीतिकर’ हैं और यहोवा के प्रेम के ‘योग्य होने’ के लिए कभी पर्याप्त नहीं कर सकते हैं, कम करने के लिए जितने भी अंक प्रकाशित किए गए हैं, उन अंकों में से यह सबसे बढ़कर है। इस प्रहरीदुर्ग में उस प्रकार की आध्यात्मिक मदद है जिसकी हमारे भाइयों को बहुत ज़्यादा ज़रूरत है। रखवाली भेंट करते वक़्त इन लेखों को बार-बार इस्तेमाल करने का मेरा इरादा है।”—एफ़. के.

“हम में से उन लोगों के लिए जो कम आत्म-सम्मान की भावना से, या यहाँ तक कि आत्म-घृणा की भावनाओं से संघर्ष करते हैं, सच्चाई में बने रहने के लिए अपनी शक्‍ति को बटोरना कितना कठिन हो सकता है। इस लेख ने इतनी करुणा और समझ व्यक्‍त की कि यह सीधे हृदय को मानो शामक, चंगा करनेवाले मरहम को लगाने की तरह था। प्रहरीदुर्ग में ऐसे शब्दों को पढ़ना और यह जानना कितना सांत्वनादायक है कि निःसंदेह यहोवा वाक़ई समझता है! हमें यह याद दिलाने के लिए शुक्रिया कि यहोवा दोष-भावना, शर्म, या डर के ज़रिए अपने लोगों को प्रेरित करने की कोशिश नहीं करता। हालाँकि प्रचार कार्य में मेरा योगदान हमारे परिवार की आर्थिक और स्वास्थ्य समस्याओं की वजह से काफ़ी सीमित हो गया है, मैं अब भी जितना करने में समर्थ हूँ उसमें संतुष्टि पाती हूँ। जब मैं कोशिश करती हूँ कि प्रेम मेरी प्रेरक शक्‍ति हो, तो मैं पाती हूँ कि मैं सेवा में ज़्यादा ख़ुश हूँ।”—डी. एम.

“मैंने अभी-अभी ‘परमेश्‍वर की नज़रों में आप बहुमूल्य हैं!’ पढ़कर ख़त्म किया है। हर अनुच्छेद से मेरी आँखों में आँसू आ गए। मैं ऐसे परिवार से आया हूँ जिसने कम प्रेम दिखाया। मुझे नीचा दिखाया गया, चिढ़ाया गया, और मेरी खिल्ली उड़ायी गयी। सो, बचपन से ही मैंने बेकार महसूस किया। अब भी मुझ में अतीत की ऐसी गहरी भावनाएँ हैं जो मुझे पीड़ित करती हैं जब मैं विपत्ति का अनुभव करता हूँ। जब कलीसिया प्राचीन के तौर पर मेरी सेवा बन्द हो गयी, तब मैंने हमेशा की तरह—परमेश्‍वर, अपने परिवार, और कलीसिया में अपने भाइयों के प्रति—असफल महसूस किया। ये भावनाएँ रातोंरात नहीं जातीं, लेकिन इस समयोचित लेख ने कुछ हद तक संतुलन पुनःप्राप्त करने में मेरी मदद की है। इसने मेरे दृष्टिकोण को उज्जवल कर दिया है।”—डी. एल.

“लेख ‘परमेश्‍वर की नज़रों में आप बहुमूल्य हैं!’ के लिए शुक्रिया। मैं तीव्र आत्म-घृणा और अयोग्यता की गहरी भावनाओं का सामना करती हूँ, जिसकी जड़ें बचपन के दुर्व्यवहार में हैं। इस विकृत सोच-विचार को स्वयं शैतान की एक धूर्त युक्‍ति के रूप में देखना निश्‍चय ही उपयुक्‍त है। यह एक व्यक्‍ति की जीने की इच्छा को भी चूर-चूर कर सकता है। मुझे वाक़ई इस झूठ का विरोध करने के लिए हर रोज़ कार्य करना चाहिए कि मैं अप्रीतिकर हूँ। इस लेख का मेरे लिए जो अर्थ है, उसको आप शायद समझ भी न पाएँ।”—सी. एफ़.

“आज भाई विशेषकर इस विचार पर अनुक्रिया दिखाते हैं कि यहोवा ज़बरदस्ती या दबाव के बजाय प्रेम द्वारा प्रेरित कार्यों का मूल्यांकन करता है। यहोवा के स्नेही और प्रेममय व्यक्‍तित्व, व्यक्‍तियों के तौर पर लोगों में उसकी दिलचस्पी, और जिस प्रेममय तरीक़े से वह अपने आपको व्यक्‍त करता है, पर विचार करना स्फूर्तिदायक और प्रेरक है। इसको ध्यान में रखते हुए, जैसे ही लेख ‘परमेश्‍वर की नज़रों में आप बहुमूल्य हैं!’ को हमने प्राप्त किया, अनेकों ने मूल्यांकन व्यक्‍त किया। ऐसा लगता है कि अनेक लोगों के लिए यहोवा के साथ एक ज़्यादा व्यक्‍तिगत सम्बन्ध विकसित करने के लिए यह मार्ग खोल रहा है। हाल की प्रहरीदुर्ग पत्रिकाओं की शैली और उसमें अभिव्यक्‍त संवेदनशीलता के लिए मेरी पत्नी और मैं मूल्यांकन व्यक्‍त करना चाहते हैं। जैसे-जैसे हम कलीसियाओं को भेंट करते हैं, हम इनमें से अनेक मुद्दों को लागू करने के लिए कार्य कर रहे हैं।”—एक सफ़री ओवरसियर द्वारा।

“मैं क़रीब-क़रीब ३० सालों से एक नियमित पाठक रही हूँ, लेकिन मैंने कभी इतना प्रेरक, इतना प्रोत्साहक लेख नहीं पढ़ा। प्रभावकारी, कुशलता से लागू किए गए शास्त्रवचनों ने मेरी ख़ुद की भावनाओं में छिपे झूठ को जड़ से उखाड़ने में मेरी मदद की, जिससे मैं यहोवा के और क़रीब आ सकी। कई सालों तक मैंने यहोवा की सेवा दोष-भावना के कारण की। मुझे छुड़ौती और परमेश्‍वर के प्रेम के बारे में केवल दिमाग़ी समझ थी। ऐसी अंतर्दृष्टि से भरे और विचारपूर्ण लेखों के लिए शुक्रिया। मुझे इनकी तरह अनेक और लेख पढ़ने की आशा है।”—एम. एस.

“सच्चाई में रहने के मेरे पूरे २९ सालों में, मुझे याद नहीं आता कि किस लेख ने मुझमें ऐसी कृतज्ञता और गहरी भावना की प्रतिक्रिया उत्पन्‍न की हो। हालाँकि मेरी परवरिश बड़े प्यार से और एक परवाह करनेवाले परिवार में हुई, यहोवा की सेवा करने के योग्य महसूस करना तो दूर, मैंने जीवित रहने के कभी योग्य महसूस नहीं किया। इस लेख के बाद, मैं अपने घुटनों के बल बैठी, और ज़ोर-ज़ोर से सिसकियाँ लेती हुई मैंने यहोवा का शुक्रिया अदा किया। मैं इस लेख को हमेशा संजोए रखूँगी। मैं अपने आपको भिन्‍न तरीक़े से देखूँगी क्योंकि अब मेरे पास यह समझ है कि मैं यहोवा के लिए बहुमूल्य हूँ।”—डी. बी.

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