क्या आप सचमुच परमेश्वर से प्रेम कर सकते हैं?
“मनुष्य मेरे मुख का दर्शन करके जीवित नहीं रह सकता,” परमेश्वर कहता है। (निर्गमन ३३:२०) इसके अलावा, बाइबल समय के बाद से ऐसा कोई भी प्रमाण नहीं रहा है कि किसी मनुष्य का उसके साथ सीधा संचार रहा है। क्या किसी ऐसे व्यक्ति के लिए गहरा स्नेह विकसित करना जिसे आपने न कभी प्रत्यक्ष रूप से देखा अथवा सुना हो, मुश्किल—यहाँ तक कि असंभव—नहीं लगता? क्या विश्वमंडल के सृष्टिकर्ता के साथ प्रेममय सम्बन्ध रखना सचमुच सम्भव है?
इसमें कोई संदेह नहीं होना चाहिए कि परमेश्वर के साथ एक स्नेहपूर्ण व्यक्तिगत लगाव विकसित कर पाना संभव है। व्यवस्थाविवरण ६:५ में, हम पढ़ते हैं कि इस्राएल जाति को आज्ञा दी गई थी: “तू अपने परमेश्वर यहोवा से अपने सारे मन, और सारे जीव, और सारी शक्ति के साथ प्रेम रखना।” यीशु मसीह ने बाद में अपने अनुयायियों के सामने इस नियम की फिर से पुष्टि की और आगे कहा: “बड़ी और मुख्य आज्ञा तो यही है।” (मत्ती २२:३७, ३८) क्या बाइबल हमसे परमेश्वर को प्रेम करने का आग्रह करती यदि इस तरह का सम्बन्ध अप्राप्य होता?
लेकिन क्या यहोवा हमसे प्रेम की आशा मात्र इसीलिए रखता है क्योंकि वह इसकी आज्ञा देता है? नहीं। परमेश्वर ने पहले मानव दम्पति को उससे प्रेम करने की योग्यता के साथ बनाया था। आदम और हव्वा को अपने सृष्टिकर्ता के साथ प्रेममय सम्बन्ध बनाने के लिए मजबूर नहीं किया गया था। इसके बजाय, परमेश्वर ने उनके चारों ओर आदर्श परिस्थितियाँ रखी थीं जिनमें उसके लिए गहरा स्नेह विकसित किया जाना था। चुनाव उन्हें करना था—परमेश्वर के नज़दीक आना अथवा उससे दूर जाना।
आदम और हव्वा ने विद्रोह करने का चुनाव किया। (उत्पत्ति २:१६, १७; ३:६, ७) फिर भी, उनके वंशजों के पास सृष्टिकर्ता के साथ प्रेममय सम्बन्ध विकसित करने की योग्यता होती।
सच्चे परमेश्वर के साथ चलना
उदाहरण के लिए, बाइबल में इब्राहीम को परमेश्वर का “मित्र” कहा गया है। (याकूब २:२३) लेकिन केवल इब्राहीम ऐसा व्यक्ति नहीं था जिसने परमेश्वर के साथ एक नज़दीकी सम्बन्ध का आनन्द उठाया। बाइबल कई अन्य अपरिपूर्ण मनुष्यों के बारे में कहती है जिन्होंने यहोवा के लिए असली स्नेह दिखाया और जो ‘परमेश्वर के साथ साथ चले।’—उत्पत्ति ५:२४; ६:९; अय्यूब २९:४; भजन २५:१४; नीतिवचन ३:३२.
परमेश्वर के प्राचीन सेवक परमेश्वर के लिए प्रेम और स्नेह के साथ नहीं जन्मे थे। उन्हें इसे विकसित करना पड़ा। कैसे? उसको उसके व्यक्तिगत नाम, यहोवा से जानने के द्वारा। (निर्गमन ३:१३-१५; ६:२, ३) उसके अस्तित्व और परमेश्वरत्व के प्रति सचेत होने के द्वारा। (इब्रानियों ११:६) उसके प्रेममय कामों पर बार-बार मनन करने के द्वारा। (भजन ६३:६) प्रार्थना में परमेश्वर के सामने अपने सबसे गहरे विचारों को व्यक्त करने के द्वारा। (भजन ३९:१२) उसकी भलाई के बारे में सीखने के द्वारा। (जकर्याह ९:१७) उसको अप्रसन्न करने का स्वास्थ्यकर भय विकसित करने के द्वारा।—नीतिवचन १६:६.
क्या आप परमेश्वर के मित्र बन सकते हैं और उसके साथ-साथ चल सकते हैं? यह सच है कि आप परमेश्वर को देख नहीं सकते अथवा उसकी आवाज़ सुन नहीं सकते हैं। फिर भी, यहोवा आपको ‘अपने तम्बू में रहने’ के लिए, उसका मित्र बनने के लिए आमंत्रित करता है। (भजन १५:१-५) अतः, आपके लिए परमेश्वर से प्रेम करना संभव है। लेकिन आप उसके साथ एक आत्मीय और स्नेही सम्बन्ध कैसे विकसित कर सकते हैं?