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  • आशिष या शाप —आप चुन सकते हैं!
  • प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1996
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प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1996
w96 6/15 पेज 12-17

आशिष या शाप —आप चुन सकते हैं!

“मैंने तुम्हारे सामने जीवन तथा मृत्यु, और आशिष तथा शाप रखा है, अतः जीवन को चुन ले कि तू . . . जीवित रहे।”—व्यवस्थाविवरण ३०:१९, NHT.

१. मनुष्य को कौन-सी क्षमता दी गयी थी?

यहोवा परमेश्‍वर ने हमारी—अपनी बुद्धिसंपन्‍न मानव सृष्टि की—रचना की ताकि हम स्वतंत्र नैतिक प्राणी हों। हमारी सृष्टि महज़ यंत्रवत्‌ प्राणी, या रोबोट के रूप में नहीं की गयी थी, बल्कि हमें चुनाव करने का विशेषाधिकार और ज़िम्मेदारी दी गयी थी। (भजन १००:३) पहले मानव—आदम और हव्वा—अपना मार्ग चुनने के लिए स्वतंत्र थे, और वे अपने चुनाव के लिए परमेश्‍वर को जवाबदेह थे।

२. आदम ने कौन-सा चुनाव किया, और उसका परिणाम क्या हुआ?

२ सृष्टिकर्ता ने परादीस पृथ्वी पर चिरस्थायी आशिषों सहित मानव जीवन के लिए विपुल प्रबन्ध किए हैं। वह उद्देश्‍य अब तक पूरा क्यों नहीं हुआ? क्योंकि आदम ने ग़लत चुनाव किया। यहोवा ने मनुष्य को यह आज्ञा दी थी: “तू बाटिका के सब वृक्षों का फल बिना खटके खा सकता है: पर भले या बुरे के ज्ञान का जो वृक्ष है, उसका फल तू कभी न खाना: क्योंकि जिस दिन तू उसका फल खाए उसी दिन अवश्‍य मर जाएगा।” (उत्पत्ति २:१६, १७) अगर आदम ने आज्ञा पालन करने का चुनाव किया होता, तो हमारे प्रथम माता-पिता को आशिष प्राप्त होती। अवज्ञा मौत ले आयी। (उत्पत्ति ३:६, १८, १९) सो आदम की सारी सन्तान में पाप और मृत्यु फैल गयी है।—रोमियों ५:१२.

आशिषें संभव की गयीं

३. परमेश्‍वर ने कैसे आश्‍वासन दिया कि मानवजाति के लिए उसका उद्देश्‍य पूरा होगा?

३ यहोवा परमेश्‍वर ने एक ज़रिया नियुक्‍त किया जिसके द्वारा मानवजाति को आशिष देने का उसका उद्देश्‍य आख़िरकार पूरा होता। उसने स्वयं एक वंश के बारे में पूर्वकथन किया, और अदन में भविष्यवाणी की: “मैं तेरे और इस स्त्री के बीच में, और तेरे वंश और इसके वंश के बीच में बैर उत्पन्‍न करूंगा, वह तेरे सिर को कुचल डालेगा, और तू उसकी एड़ी को डसेगा।” (उत्पत्ति ३:१५) परमेश्‍वर ने बाद में प्रतिज्ञा की कि इस वंश, अर्थात्‌ इब्राहीम के वंशज के माध्यम से आज्ञाकारी मानवजाति को आशीषें प्राप्त होतीं।—उत्पत्ति २२:१५-१८.

४. यहोवा ने मानवजाति को आशिष देने के लिए कौन-सा प्रबन्ध किया है?

४ वह आशिष लानेवाला प्रतिज्ञात वंश यीशु मसीह साबित हुआ। मानवजाति को आशिष देने के यहोवा के प्रबन्ध में यीशु की भूमिका के बारे में, मसीही प्रेरित पौलुस ने लिखा: “परमेश्‍वर हम पर अपने प्रेम की भलाई इस रीति से प्रगट करता है, कि जब हम पापी ही थे तभी मसीह हमारे लिये मरा।” (रोमियों ५:८) पापपूर्ण मानवजाति के वे लोग आशिषों का आनन्द उठाएँगे जो परमेश्‍वर की आज्ञा मानते हैं और यीशु मसीह के छुड़ौती बलिदान के मूल्य का लाभ उठाते हैं। (प्रेरितों ४:१२) क्या आप आज्ञाकारिता और आशिषें चुनेंगे? अवज्ञा का परिणाम बहुत ही भिन्‍न होगा।

शापों के बारे में क्या?

५. “शाप” इस शब्द का अर्थ क्या है?

५ आशिष के विपरीत है शाप। “शाप” इस शब्द का अर्थ है किसी के बारे में बुरा बोलना या उसे बददुआ देना। इब्रानी शब्द कॆलालाह मूल क्रिया कलाल से लिया गया है, जिसका शाब्दिक अर्थ “हल्का होना” है। लेकिन, जब इसे लाक्षणिक अर्थ में प्रयोग किया जाता है तब इसका मतलब है ‘को बददुआ देना’ या ‘तुच्छ जानना।’—लैव्यव्यवस्था २०:९, NW; २ शमूएल १९:४३.

६. एलीशा से सम्बन्धित प्राचीन बेतेल के निकट कौन-सी घटना घटी?

६ एक शाप को लेकर शीघ्र कार्यवाही के एक उल्लेखनीय उदाहरण पर ग़ौर कीजिए। यह तब हुआ जब परमेश्‍वर का भविष्यवक्‍ता एलीशा यरीहो से बेतेल की ओर चलकर जा रहा था। वृत्तान्त बताता है: “वह . . . मार्ग की चढ़ाई में चल रहा था कि नगर से छोटे लड़के निकलकर उसका ठट्ठा करके कहने लगे, हे चन्दुए चढ़ जा, हे चन्दुए चढ़ जा। तब उस ने पीछे की ओर फिर कर उन पर दृष्टि की और यहोवा के नाम से उनको शाप दिया, तब जंगल में से दो रीछिनियों ने निकलकर उन में से बयालीस लड़के फाड़ डाले।” (२ राजा २:२३, २४) एलीशा ने ठट्ठा करनेवाले बच्चों को बददुआ देने के द्वारा जब वह शाप दिया तो उसने असल में क्या कहा यह व्यक्‍त नहीं किया गया है। फिर भी, उस मौखिक घोषणा के परिणाम निकले क्योंकि वह परमेश्‍वर के एक ऐसे भविष्यवक्‍ता द्वारा यहोवा के नाम से की गयी थी, जो ईश्‍वरीय इच्छा के सामंजस्य में कार्य कर रहा था।

७. उन बच्चों का क्या हुआ जिन्होंने एलीशा का ठट्ठा किया, और क्यों?

७ ऐसा लगता है कि ठट्ठा करने का मुख्य कारण यह था कि एलीशा एलिय्याह का सुपरिचित पदसूचक वस्त्र पहने हुए था, और ये बच्चे नहीं चाहते थे कि उस भविष्यवक्‍ता का कोई भी उत्तराधिकारी वहाँ हो। (२ राजा २:१३) एलिय्याह का उत्तराधिकारी होने की चुनौती का जवाब देने के लिए और इन युवाओं और उनके माता-पिता को यहोवा के भविष्यवक्‍ता के लिए उचित आदर सिखाने के लिए, एलीशा ने एलिय्याह के परमेश्‍वर के नाम से इस ठट्ठा करनेवाली भीड़ को बददुआ दी। यहोवा ने अपने भविष्यवक्‍ता के रूप में एलीशा के लिए अपनी स्वीकृति ज़ाहिर की, जब उसने जंगल से दो रीछनियों के बाहर निकलने और उन मज़ाक उड़ानेवालों में से ४२ लड़कों को फाड़ डालने के लिए प्रेरित किया। यहोवा उस समय पृथ्वी पर जिस संचार के माध्यम का प्रयोग कर रहा था उसके लिए उन्होंने स्पष्ट रूप से आदर की कमी दिखायी, इसलिए उसने दृढ़तापूर्वक कार्य किया।

८. इस्राएल के लोग क्या करने के लिए सहमत हुए, और किन प्रत्याशाओं के साथ?

८ कई साल पहले, इस्राएलियों ने परमेश्‍वर के प्रबन्धों के लिए ऐसी ही आदर की कमी दिखायी। इसका विकास यों हुआ: सा.यु.पू. १५१३ में, यहोवा ने इस्राएल के लोगों को मानो “उकाब पक्षी के पंखों पर,” मिस्र के दासत्व से छुड़ाने के द्वारा उन पर अनुग्रह दिखाया। उसके कुछ ही समय बाद, उन्होंने परमेश्‍वर की आज्ञा मानने की प्रतिज्ञा की। ध्यान दीजिए कि कैसे आज्ञाकारिता अटूट रूप से परमेश्‍वर की स्वीकृति को प्राप्त करने के साथ जुड़ी हुई थी। यहोवा ने मूसा के ज़रिए कहा: “यदि तुम निश्‍चय मेरी मानोगे, और मेरी वाचा को पालन करोगे, तो सब लोगों में से तुम ही मेरा निज धन ठहरोगे; समस्त पृथ्वी तो मेरी है।” उसके बाद, लोगों ने हाँ में जवाब दिया, और कहा: “जो कुछ यहोवा ने कहा है वह सब हम नित करेंगे।” (निर्गमन १९:४, ५, ८; २४:३) इस्राएलियों ने दावा किया कि उन्हें यहोवा से प्रेम है, कि वे उसको समर्पित थे, और उसके कहे अनुसार करने की उन्होंने शपथ ली। ऐसा करना बड़ी आशिषों की ओर ले जाता।

९, १०. जब मूसा सीनै पर्वत पर था, तो इस्राएलियों ने क्या किया, और उसके क्या परिणाम हुए?

९ लेकिन, इससे पहले कि उस समझौते के बुनियादी सिद्धान्तों को ‘परमेश्‍वर की उंगली’ से पत्थर पर लिखा जाता, ईश्‍वरीय शाप ज़रूरी हो गए। (निर्गमन ३१:१८) वे क्यों ऐसे दुःखद परिणामों के योग्य थे? क्या इस्राएलियों ने यहोवा द्वारा कही गयी सब बातों को करने की इच्छा व्यक्‍त नहीं की थी? जी हाँ, कथनी में वे आशिषें चाहते थे, लेकिन अपनी करनी से उन्होंने ऐसा मार्ग चुना जो शाप के योग्य था।

१० जब मूसा ४० दिन की अवधि के दौरान सीनै पर्वत पर दस आज्ञाएँ प्राप्त कर रहा था, तो इस्राएलियों ने यहोवा के प्रति निष्ठा की अपनी पिछली प्रतिज्ञा तोड़ दी। “जब,” वृत्तान्त कहता है, “लोगों ने देखा कि मूसा को पर्वत से उतरने में विलम्ब हो रहा है, तब वे हारून के पास इकट्ठे होकर कहने लगे, अब हमारे लिये देवता बना, जो हमारे आगे आगे चले; क्योंकि उस पुरुष मूसा को जो हमें मिस्र देश से निकाल ले आया है, हम नहीं जानते कि उसे क्या हुआ?” (निर्गमन ३२:१) यहोवा अपने लोगों की अगुवाई करने और निर्देशन देने के लिए उस समय जो मानवीय माध्यम प्रयोग कर रहा था, यह उसके प्रति अनादरपूर्ण मनोवृत्ति व्यक्‍त करने का एक और उदाहरण था। इस्राएली मिस्र की मूर्तिपूजा की नक़ल करने के प्रलोभन में पड़ गए और उन्हें इसके भयंकर परिणाम मिले जब उनमें से कुछ ३,००० व्यक्‍ति एक दिन में तलवार से मौत के घाट उतारे गए।—निर्गमन ३२:२-६, २५-२९.

आशिषों और शापों की घोषणा

११. आशिषों और शापों के सम्बन्ध में यहोशू ने कौन-से निर्देशों का पालन किया?

११ इस्राएल के वीराने में ४०-वर्षीय भ्रमण की समाप्ति के क़रीब, मूसा ने उन आशिषों की सूची दी जो परमेश्‍वर के प्रति आज्ञाकारिता का मार्ग चुनने के द्वारा प्राप्त होतीं। उसने उन शापों को भी गिनाया जिनका इस्राएली अनुभव करते अगर वे यहोवा की अवज्ञा करने का चुनाव करते। (व्यवस्थाविवरण २७:११-२८:१०) इस्राएल के प्रतिज्ञात देश में प्रवेश करने के थोड़े ही समय बाद, यहोशू ने इन आशिषों और शापों के सम्बन्ध में मूसा के निर्देशों का पालन किया। इस्राएल के छः गोत्र एबाल पर्वत की तलहटी में खड़े हुए, और बाक़ी छः गोत्रों ने गिरिज्जीम पर्वत के सामने अपना स्थान लिया। लेवी बीच की घाटी में खड़े हुए। स्पष्टतः, एबाल पर्वत के सामने खड़े गोत्रों ने शापों, या अभिशापों के लिए “आमीन!” कहा, जिन्हें उस दिशा में पढ़ा गया था। दूसरों ने उन आशिषों का जवाब दिया जिन्हें लेवियों ने गिरिज्जीम पर्वत की तलहटी में उनकी दिशा में पढ़ा।—यहोशू ८:३०-३५.

१२. लेवियों द्वारा घोषित किए गए शापों में से कुछ शाप कौन-से थे?

१२ कल्पना कीजिए कि आप लेवियों को यह कहते हुए सुनते हैं: “शापित हो वह मनुष्य जो कोई मूर्त्ति कारीगर से खुदवाकर वा ढलवाकर निराले स्थान में स्थापन करे, क्योंकि इस से यहोवा को घृणा लगती है। . . . शापित हो वह जो अपने पिता वा माता को तुच्छ जाने। . . . शापित हो वह जो किसी दूसरे के सिवाने को हटाए। . . . शापित हो वह जो अन्धे को मार्ग से भटका दे। . . . शापित हो वह जो परदेशी, अनाथ, वा विधवा का न्याय बिगाड़े। . . . शापित हो वह जो अपनी सौतेली माता से कुकर्म करे, क्योंकि वह अपने पिता का ओढ़ना उघारता है। . . . शापित हो वह जो किसी प्रकार के पशु से कुकर्म करे। . . . शापित हो वह जो अपनी बहिन, चाहे सगी हो चाहे सौतेली, उस से कुकर्म करे। . . . शापित हो वह जो अपनी सास के संग कुकर्म करे। . . . शापित हो वह जो किसी को छिपकर मारे। . . . शापित हो वह जो निर्दोष जन के मार डालने के लिये धन ले। . . . शापित हो वह जो इस व्यवस्था के वचनों को मानकर पूरा न करे।” हर शाप के बाद, एबाल पर्वत के सामने खड़े गोत्र कहते हैं, “आमीन!”—व्यवस्थाविवरण २७:१५-२६.

१३. अपने शब्दों में, आप लेवियों द्वारा घोषित की गयीं अमुक आशिषों को कैसे व्यक्‍त करेंगे?

१३ अब कल्पना कीजिए कि आप गिरिज्जीम पर्वत के सामने खड़े लोगों को हर आशिष के प्रति मौखिक जवाब देते हुए सुनते हैं जब लेवी ऊँची आवाज़ में कहते हैं: “धन्य हो तू नगर में, धन्य हो तू खेत में। धन्य हो तेरी सन्तान, और तेरी भूमि की उपज, और गाय और भेड़-बकरी आदि पशुओं के बच्चे। धन्य हो तेरी टोकरी और तेरी कठौती। धन्य हो तू भीतर आते समय, और धन्य हो तू बाहर जाते समय।”—व्यवस्थाविवरण २८:३-६.

१४. इस्राएली किस आधार पर आशिषें प्राप्त करते?

१४ इन आशिषों को प्राप्त करने का आधार क्या था? वृत्तान्त कहता है: “यदि तू अपने परमेश्‍वर यहोवा की सब आज्ञाएं, जो मैं आज तुझे सुनाता हूं, चौकसी से पूरी करने को चित्त लगाकर उसकी सुने, तो वह तुझे पृथ्वी की सब जातियों में श्रेष्ठ करेगा। फिर अपने परमेश्‍वर यहोवा की सुनने के कारण ये सब आशीर्वाद तुझ पर पूरे होंगे।” (व्यवस्थाविवरण २८:१, २) जी हाँ, दैवी आशिषों का आनन्द उठाने की कुंजी थी परमेश्‍वर के प्रति आज्ञाकारिता। लेकिन आज हमारे बारे में क्या? क्या हम व्यक्‍तिगत रूप से ‘चित्त लगाकर यहोवा की सुनना’ जारी रखने के द्वारा आशिषों और जीवन को चुनते हैं?—व्यवस्थाविवरण ३०:१९, २०.

क़रीब से देखना

१५. व्यवस्थाविवरण २८:३ में अभिलिखित आशिष में कौन-सा मुद्दा स्पष्ट किया गया था, और हम इससे कैसे लाभ प्राप्त कर सकते हैं?

१५ आइए हम चंद ऐसी आशिषों पर विचार करें जिनका आनन्द एक इस्राएली यहोवा की आज्ञा मानने पर उठा सकता था। उदाहरण के लिए, व्यवस्थाविवरण २८:३ कहता है: “धन्य हो तू नगर में, धन्य हो तू खेत में।” परमेश्‍वर से आशिष प्राप्त करना किसी स्थान या कार्य-नियुक्‍ति पर निर्भर नहीं करता। कुछ व्यक्‍ति शायद अपनी परिस्थितियों के जाल में फँसा हुआ महसूस करें, शायद इसलिए कि वे आर्थिक रूप से तबाह क्षेत्र में या एक युद्ध-ग्रस्त देश में रहते हैं। अन्य व्यक्‍ति शायद एक भिन्‍न स्थान में यहोवा की सेवा करने के लिए लालायित हों। कुछ मसीही पुरुष शायद निरुत्साहित हों क्योंकि उन्हें सहायक सेवकों या प्राचीनों के तौर पर कलीसिया में नियुक्‍त नहीं किया गया है। कभी-कभार, मसीही स्त्रियाँ हतोत्साहित महसूस करती हैं क्योंकि वे पायनियरों या मिशनरियों के तौर पर पूर्ण-समय सेवकाई में भाग लेने की स्थिति में नहीं हैं। फिर भी, प्रत्येक जन जो ‘यहोवा की चित्त लगाकर सुनता है और वह जो कुछ चाहता है उसे ध्यानपूर्वक करता है,’ वह अब और सनातनकाल तक आशीषित होगा।

१६. आज यहोवा का संगठन व्यवस्थाविवरण २८:४ के सिद्धान्त का अनुभव कैसे कर रहा है?

१६ व्यवस्थाविवरण २८:४ कहता है: “धन्य हो तेरी सन्तान, और तेरी भूमि की उपज, और गाय और भेड़-बकरी आदि पशुओं के बच्चे।” एकवचन इब्रानी सर्वनाम, जिसे “तेरी” अनुवादित किया गया है, का यह प्रयोग सूचित करता है कि यह एक आज्ञाकारी इस्राएली का व्यक्‍तिगत अनुभव होता। आज यहोवा के आज्ञाकारी सेवकों के बारे में क्या? यहोवा के साक्षियों के संगठन में हो रही संसार-व्याप्त वृद्धि और विस्तार, राज्य के सुसमाचार के ५०,००,००० से अधिक उद्‌घोषकों के उत्साही प्रयासों पर परमेश्‍वर की आशिष का परिणाम है। (मरकुस १३:१०) और इससे भी ज़्यादा वृद्धि की संभावना स्पष्ट है क्योंकि १,३०,००,००० से अधिक लोग १९९५ के प्रभु के संध्या भोज अनुपालन के लिए उपस्थित थे। क्या आप राज्य आशिषों का आनन्द उठा रहे हैं?

इस्राएल के चुनाव से फर्क़ पड़ा

१७. आशिषों या शापों का ‘बरसना’ किस बात पर निर्भर करता था?

१७ वास्तव में, एक आज्ञाकारी इस्राएली पर आशिषों की बौछार होती। यह प्रतिज्ञा की गयी थी: “ये सब आशिषें तुझ पर आ बरसेंगी।” (व्यवस्थाविवरण २८:२, NHT) उसी तरह, शापों के बारे में कहा गया था: “ये सब शाप तुझ पर आ पड़ेंगे।” (व्यवस्थाविवरण २८:१५, NHT) अगर आप प्राचीन काल के एक इस्राएली होते, आप पर आशिषें ‘बरसतीं’ या शाप? यह इस बात पर निर्भर करता कि आप परमेश्‍वर की आज्ञा मानते या उसकी अवज्ञा करते।

१८. इस्राएली शापों को कैसे टाल सकते थे?

१८ व्यवस्थाविवरण २८:१५-६८ में, अवज्ञा के दुःखदायक परिणामों को शापों के रूप में प्रस्तुत किया गया है। कुछ तो व्यवस्थाविवरण २८:३-१४ में आज्ञाकारिता के लिए गिनायी गयी आशिषों के ठीक विपरीत हैं। अकसर, इस्राएल के लोगों ने शापों के कठोर परिणाम भुगते क्योंकि उन्होंने झूठी उपासना में भाग लेने का चुनाव किया। (एज्रा ९:७; यिर्मयाह ६:६-८; ४४:२-६) कितना दुःखद! सही चुनाव करने के द्वारा, अच्छे और बुरे की स्पष्ट रूप से परिभाषा देनेवाले यहोवा के हितकर नियमों और सिद्धान्तों के प्रति आज्ञाकारिता का चुनाव करने के द्वारा ऐसे परिणामों को टाला जा सकता था। आज अनेक व्यक्‍ति दुःख और विपत्ति का अनुभव करते हैं क्योंकि झूठे धर्म का पालन करने, लैंगिक अनैतिकता में शामिल होने, अवैध नशीले पदार्थों का प्रयोग करने, मादक पेय का अतिसेवन करने और ऐसे अनेक कार्य करने के द्वारा उन्होंने बाइबल सिद्धान्तों के विपरीत कार्य करने का चुनाव किया है। जैसे प्राचीन इस्राएल और यहूदा में था, ऐसे ग़लत चुनाव करना ईश्‍वरीय अस्वीकृति और अनावश्‍यक खेदित हृदय में परिणित होता है।—यशायाह ६५:१२-१४.

१९. उन परिस्थितियों का वर्णन कीजिए जिनका आनन्द तब उठाया गया जब यहूदा और इस्राएल ने यहोवा की आज्ञा मानने का चुनाव किया।

१९ जब इस्राएल ने यहोवा की आज्ञा मानी केवल तब आशिषों की भरमार थी और शान्ति ही शान्ति थी। उदाहरण के लिए, राजा सुलैमान के दिनों के सम्बन्ध में, हम पढ़ते हैं: “यहूदा और इस्राएल के लोग बहुत थे, वे समुद्र के तीर पर की बालू के किनकों के समान बहुत थे, और खाते-पीते और आनन्द करते रहे। . . . और दान से बेर्शेबा तक के सब यहूदी और इस्राएली अपनी अपनी दाखलता और अंजीर के वृक्ष तले सुलैमान के जीवन भर निडर रहते थे।” (१ राजा ४:२०-२५) राजा दाऊद के समय में भी, जो परमेश्‍वर के शत्रुओं के अत्यधिक विरोध से चिन्हित था, उस जाति ने यहोवा के समर्थन और आशिष को महसूस किया जब उन्होंने सत्य के परमेश्‍वर की आज्ञा मानने का चुनाव किया।—२ शमूएल ७:२८, २९; ८:१-१५.

२०. मनुष्यों के सम्बन्ध में परमेश्‍वर किस बात के बारे में विश्‍वस्त है?

२० क्या आप परमेश्‍वर की आज्ञा मानेंगे, या क्या आप उसकी अवज्ञा करेंगे? इस्राएली चुन सकते थे। हालाँकि हम सभी ने आदम से एक पापपूर्ण प्रवृत्ति को विरासत में पाया है, हमने स्वतंत्र चुनाव का तोहफ़ा भी प्राप्त किया है। शैतान, इस दुष्ट संसार और हमारी अपरिपूर्णताओं के बावजूद, हम सही चुनाव कर सकते हैं। इसके अलावा, हमारा सृष्टिकर्ता विश्‍वस्त है कि हर परीक्षा और प्रलोभन के होते हुए भी, ऐसे लोग होंगे जो सही चुनाव करते हैं, केवल कथनी में ही नहीं बल्कि करनी में भी। (१ पतरस ५:८-१०) क्या आप उनमें होंगे?

२१. अगले लेख में किस बात पर जाँच की जाएगी?

२१ अगले लेख में, हम अतीत के उदाहरणों के प्रकाश में अपनी मनोवृत्तियों और कार्यों को तौलने में समर्थ होंगे। ऐसा हो कि हम में से प्रत्येक जन मूसा के माध्यम से परमेश्‍वर के शब्दों के प्रति कृतज्ञतापूर्वक प्रतिक्रिया दिखाए: “मैंने तुम्हारे सामने जीवन तथा मृत्यु, और आशिष तथा शाप रखा है, अतः जीवन को चुन ले कि तू . . . जीवित रहे।”—व्यवस्थाविवरण ३०:१९, NHT.

आप कैसे जवाब देंगे?

◻ यहोवा ने पापपूर्ण मनुष्यों के लिए आशिषें कैसे संभव की हैं?

◻ शाप क्या हैं?

◻ इस्राएली शापों के बजाय आशिषें कैसे प्राप्त कर सकते थे?

◻ परमेश्‍वर की आज्ञा मानने के कारण इस्राएल ने कौन-सी आशिषों का आनन्द लिया?

[पेज 15 पर तसवीरें]

इस्राएली गिरिज्जीम पर्वत और एबाल पर्वत के सामने इकट्ठे हुए

[चित्र का श्रेय]

Pictorial Archive (Near Eastern History) Est.

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