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आशिष या शाप —आज हमारे लिए उदाहरण

“ये बातें उन पर उदाहरणस्वरूप हुईं, और ये हमारी चेतावनी के लिए लिखी गईं जिन पर इस युग का अन्त आ पहुंचा है।”—१ कुरिन्थियों १०:११, NHT.

१. जैसे एक व्यक्‍ति किसी औज़ार को जाँचता है, हमें कौन-सी जाँच करनी चाहिए?

रंग की परत के नीचे छिपा ज़ंग, लोहे के बने एक औज़ार को क्षति पहुँचाना शुरू कर सकता है। कुछ समय गुज़रने के बाद ही शायद ज़ंग सतह पर दिखने लगे। उसी तरह, एक व्यक्‍ति के हृदय की मनोवृत्तियों और इच्छाओं का पतन, शायद इसके गंभीर परिणाम निकलने या यहाँ तक कि दूसरों द्वारा देखे जाने से पहले ही होने लगे। जैसे हम बुद्धिमत्तापूर्वक एक औज़ार की जाँच करेंगे यह देखने के लिए कि क्या वह ज़ंग खा रहा है, वैसे ही हमारे हृदय की बारीक़ी से जाँच और सही समय पर देखभाल हमारी मसीही खराई को सुरक्षित रख सकता है। दूसरे शब्दों में कहें तो, हम परमेश्‍वर की आशिषें प्राप्त कर सकते हैं और दैवी शापों को टाल सकते हैं। कुछ व्यक्‍ति शायद सोचें कि प्राचीन इस्राएल पर घोषित की गयी आशिषें और शाप उन लोगों के लिए अर्थ नहीं रखतीं जो इस रीति-व्यवस्था की समाप्ति का सामना कर रहे हैं। (यहोशू ८:३४, ३५; मत्ती १३:४९, ५०; २४:३) लेकिन, ऐसा नहीं है। हम इस्राएल के चेतावनी उदाहरणों से, जो १ कुरिन्थियों अध्याय १० में बताए गए हैं, बहुत लाभ प्राप्त कर सकते हैं।

२. पहला कुरिन्थियों १०:५, ६ वीराने में इस्राएल के अनुभवों के बारे में क्या बताता है?

२ प्रेरित पौलुस मूसा के अधीन इस्राएलियों की तुलना मसीह के अधीन मसीहियों के साथ करता है। (१ कुरिन्थियों १०:१-४) हालाँकि इस्राएल के लोग प्रतिज्ञात देश में प्रवेश कर सकते थे, “फिर भी उनमें से अधिकांश से परमेश्‍वर प्रसन्‍न नहीं हुआ—वे जंगल में मर कर ढेर हो गए।” इसलिए पौलुस ने संगी मसीहियों से कहा: “ये बातें हमारे लिए उदाहरण ठहरीं कि हम भी बुरी बातों की लालसा न करें, जैसे कि उन्होंने की थी।” (तिरछे टाइप हमारे।) (१ कुरिन्थियों १०:५, ६, NHT) इच्छाएँ हृदय में पनपती हैं, सो हमें पौलुस द्वारा उद्धृत चेतावनी-उदाहरणों की ओर ध्यान देने की ज़रूरत है।

मूर्तिपूजा के विरुद्ध चेतावनी

३. इस्राएलियों ने सोने के बछड़े के सम्बन्ध में कैसे पाप किया?

३ पौलुस की पहली चेतावनी है: “न तुम मूरत पूजनेवाले बनो; जैसे कि उन में से कितने बन गए थे, जैसा लिखा है, कि लोग खाने-पीने बैठे, और खेलने-कूदने उठे।” (तिरछे टाइप हमारे।) (१ कुरिन्थियों १०:७) यह इस्राएलियों द्वारा मिस्र के तौर-तरीक़ों की ओर लौटने का और एक सोने के बछड़े की मूर्ति बनाने का चेतावनी-उदाहरण है। (निर्गमन, अध्याय ३२) शिष्य स्तिफनुस ने मूल समस्या की ओर संकेत किया: “हमारे बापदादों ने [परमेश्‍वर के प्रतिनिधि, मूसा] की मानना न चाहा; बरन उसे हटाकर अपने मन मिसर की ओर फेरे। और हारून से कहा; हमारे लिये ऐसे देवता बना, जो हमारे आगे आगे चलें, क्योंकि यह मूसा जो हमें मिसर देश से निकाल लाया, हम नहीं जानते उसे क्या हुआ? उन दिनों में उन्हों ने एक बछड़ा बनाकर, उस की मूरत के आगे बलि चढ़ाया; और अपने हाथों के कामों में मगन होने लगे।” (प्रेरितों ७:३९-४१) ध्यान दीजिए कि उन पथभ्रष्ट इस्राएलियों ने “अपने मन” में ग़लत इच्छाओं को रखा जो मूर्तिपूजा की ओर ले गयीं। “उन्हों ने एक बछड़ा बनाकर, उस की मूरत के आगे बलि चढ़ाया।” इसके अलावा, वे “अपने हाथों के कामों में मगन होने लगे।” वहाँ संगीत, गाना-बजाना, नृत्य, और खाना-पीना था। स्पष्टतः, मूर्तिपूजा सम्मोहक और मनोरंजक थी।

४, ५. हमें किस प्रकार के मूर्तिपूजा के कार्यों से दूर रहने की ज़रूरत है?

४ प्रतिरूपी मिस्र—शैतान का संसार—असल में मनोरंजन को पूजता है। (१ यूहन्‍ना ५:१९; प्रकाशितवाक्य ११:८) यह अभिनेताओं, गायकों, और खेलकूद के सितारों को, साथ ही उनके नृत्य, उनके संगीत, मज़े और सुखद समय बिताने की उनकी धारणाओं को पूजता है। अनेक व्यक्‍ति यहोवा की उपासना करने का दावा करते हुए भी मनोरंजन में मशग़ूल होने के लिए प्रलोभित हुए हैं। जब एक मसीही को ग़लत कार्य के लिए ताड़ना देना ज़रूरी हो जाता है, तब उसकी कमज़ोर आध्यात्मिक अवस्था के कारण को अकसर मादक पेय के सेवन, नृत्य और किसी तरह मौज-मस्ती करने के साथ जोड़ा जा सकता है जो शायद मूर्तिपूजा के समान ही हो। (निर्गमन ३२:५, ६, १७, १८) थोड़ा-बहुत मनोरंजन हितकर और आनन्ददायक होता है। फिर भी, आज अधिकांश सांसारिक संगीत, नृत्य, फ़िल्में और विडियो भ्रष्ट शारीरिक अभिलाषाओं को पूरा करते हैं।

५ सच्चे मसीही मूर्तियों की उपासना का शिकार नहीं होते। (२ कुरिन्थियों ६:१६; १ यूहन्‍ना ५:२१) ऐसा हो कि हम में से प्रत्येक जन इसी प्रकार सावधान हो कि मूर्ति-समान मनोरंजन की लत न लगा ले और एक सांसारिक तरीक़े से मौज-मस्ती करने में डूबे रहने के हानिकारक प्रभावों को भुगतने का ख़तरा न मोल ले। अगर हम ख़ुद को सांसारिक प्रभावों के अधीन करते हैं, तो हानिकारक अभिलाषाएँ और मनोवृत्तियाँ लगभग अनजाने ही मन और हृदय में वास कर सकती हैं। जब इन्हें सुधारा नहीं जाता, तो ये आख़िरकार शैतान की व्यवस्था के ‘जंगल में ढेर’ होने की ओर ले जा सकती हैं।

६. मनोरंजन के सम्बन्ध में हमें शायद कौन-सा सकारात्मक क़दम उठाने की ज़रूरत हो?

६ सोने के बछड़े की घटना के समय मूसा की तरह, वास्तव में “विश्‍वासयोग्य और बुद्धिमान दास” कह रहा है: “यहोवा की ओर कौन है? मेरे पास आ जाए!” यह दिखाने के लिए कि सच्ची उपासना का हम दृढ़तापूर्वक समर्थन करते हैं, सकारात्मक क़दम उठाना प्राण-रक्षक हो सकता है। मूसा के लेवियों के गोत्र ने दूषित करनेवाले प्रभावों को निकाल बाहर करने के लिए तुरन्त कार्य किया। (मत्ती २४:४५-४७; निर्गमन ३२:२६-२८, NW) तो फिर, मनोरंजन, संगीत, विडियो इत्यादि के अपने चुनाव को ध्यानपूर्वक जाँचिए। अगर वह किसी रीति से भ्रष्ट है, तो यहोवा के पक्ष में अपनी स्थिति लीजिए। प्रार्थनापूर्वक परमेश्‍वर पर निर्भर रहने के द्वारा, मनोरंजन और संगीत के अपने चुनाव में परिवर्तन कीजिए और आध्यात्मिक रूप से हानिकारक सामग्री को नष्ट कर दीजिए, वैसे ही जैसे मूसा ने सोने के बछड़े को नष्ट कर दिया।—निर्गमन ३२:२०; व्यवस्थाविवरण ९:२१.

७. हम लाक्षणिक हृदय को कैसे सुरक्षित रख सकते हैं?

७ हम अपने हृदय को ज़ंग खाने से कैसे रोक सकते हैं? परमेश्‍वर के वचन का अध्यवसायी ढंग से अध्ययन करने के द्वारा और उसकी सच्चाइयों को अपने मन और हृदय की गहराई में उतरने देने के द्वारा। (रोमियों १२:१, २) निःसंदेह, हमें नियमित रूप से मसीही सभाओं में उपस्थित होना चाहिए। (इब्रानियों १०:२४, २५) निष्क्रिय रीति से सभाओं में उपस्थित होने की समानता एक ज़ंग लगे स्थान पर रोगन करने के साथ की जा सकती है। यह शायद कुछ समय के लिए हम में चमक ला दे, लेकिन यह मूलभूत समस्या को हल नहीं करता। इसके बजाय, पूर्व तैयारी, मनन, और सभाओं में सक्रिय सहभागिता के द्वारा, हम आक्रामक रूप से उन क्षयकारी तत्वों को निकाल सकते हैं जो शायद हमारे लाक्षणिक हृदय के गुप्त स्थानों में ठहरे हुए हों। यह हमें परमेश्‍वर के वचन का पालन करने के लिए मदद देगा और विश्‍वास की परीक्षाओं को सहने के लिए और “सिद्ध” बनने के लिए हमें बल देगा।—याकूब १:३, ४; नीतिवचन १५:२८.

व्यभिचार के विरुद्ध चेतावनी

८-१०. (क) पहला कुरिन्थियों १०:८ में कौन-से चेतावनी उदाहरण का हवाला दिया गया है? (ख) मत्ती ५:२७, २८ में पाए गए यीशु के शब्दों को लाभप्रद रीति से कैसे लागू किया जा सकता है?

८ पौलुस के अगले उदाहरण में, हमें सलाह दी गयी है: “और न हम व्यभिचार करें; जैसा उन में से कितनों ने किया: और एक दिन में तेईस हजार मर गये।”a (१ कुरिन्थियों १०:८) प्रेरित उस समय का हवाला दे रहा था जब इस्राएलियों ने झूठे देवताओं को दण्डवत्‌ किया और “मोआबी लड़कियों के संग कुकर्म” किया। (गिनती २५:१-९) लैंगिक अनैतिकता घातक होती है! अनैतिक विचारों और इच्छाओं को बे-लगाम बढ़ने देना, हृदय को “ज़ंग लगने” देना जैसा है। यीशु ने कहा: “तुम सुन चुके हो कि कहा गया था, कि व्यभिचार न करना। परन्तु मैं तुम से यह कहता हूं, कि जो कोई किसी स्त्री पर कुदृष्टि डाले वह अपने मन में उस से व्यभिचार कर चुका।”—मत्ती ५:२७, २८.

९ नूह के दिन के जलप्रलय से पहले अवज्ञाकारी स्वर्गदूतों के भ्रष्ट सोच-विचार के परिणाम, ‘स्त्री पर कुदृष्टि डालने’ के नतीजे को सिद्ध करते हैं। (उत्पत्ति ६:१, २) यह भी याद रखिए कि राजा दाऊद के जीवन की एक सबसे दुःखद घटना की शुरूआत, उसके एक स्त्री की ओर अनुचित रूप से निरन्तर देखते रहने के द्वारा हुई। (२ शमूएल ११:१-४) इसके विपरीत, धर्मी विवाहित पुरुष अय्यूब ने ‘अपनी आंखों से वाचा बान्धी थी कि किसी कुंवारी पर आंखें न लगाए,’ और इस प्रकार अनैतिकता से दूर रहे और एक खराई रखनेवाला साबित हो। (अय्यूब ३१:१-३, ६-११) आँखों की तुलना हृदय की खिड़कियों के साथ की जा सकती है। और एक भ्रष्ट हृदय से अनेक बुरी बातें निकलती हैं।—मरकुस ७:२०-२३.

१० अगर हम यीशु के शब्दों को लागू करते हैं, तो हम अश्‍लील साहित्य को देखने अथवा एक संगी मसीही, या संगी कर्मचारी या किसी भी अन्य व्यक्‍ति के बारे में अनैतिक विचारों को मन में रखने के द्वारा ग़लत विचारों को खुली छूट नहीं देंगे। धातु से ज़ंग को केवल हटा देने से वह निकल नहीं जाता। इसलिए, अनैतिक विचारों और प्रवृत्तियों को यों ही बरख़ास्त मत कीजिए मानो उनका कोई महत्त्व ही न हो। अनैतिक झुकावों से ख़ुद को मुक्‍त करने के लिए सख़्त क़दम उठाइए। (मत्ती ५:२९, ३० से तुलना कीजिए।) पौलुस संगी विश्‍वासियों से आग्रह करता है: “अपने उन अंगों को मार डालो, जो पृथ्वी पर हैं, अर्थात्‌ व्यभिचार, अशुद्धता, दुष्कामना, बुरी लालसा और लोभ को जो मूर्त्ति पूजा के बराबर है। इन ही के कारण परमेश्‍वर का प्रकोप आज्ञा न माननेवालों पर पड़ता है।” जी हाँ, लैंगिक अनैतिकता जैसी बातों के कारण, “परमेश्‍वर का प्रकोप,” उसके शाप की अभिव्यक्‍ति के तौर पर ‘आ पड़ेगा।’ सो इन बातों के सम्बन्ध में हमें अपने शरीर के अंगों को ‘मार डालने’ की ज़रूरत है।—कुलुस्सियों ३:५, ६.

विद्रोहपूर्ण शिकायतों के विरुद्ध चेतावनी

११, १२. (क) पहला कुरिन्थियों १०:९ में कौन-सी चेतावनी दी गयी है, और किस घटना का हवाला दिया गया था? (ख) पौलुस की चेतावनी का हम पर क्या प्रभाव होना चाहिए?

११ पौलुस इसके बाद चेतावनी देता है: “और न हम प्रभु को परखें; जैसा उन में से कितनों ने किया, और सांपों के द्वारा नाश किए गए।” (१ कुरिन्थियों १०:९) एदोम की सरहद के क़रीब वीराने में घूमते वक़्त, इस्राएली “परमेश्‍वर के विरुद्ध बात करने लगे, और मूसा से कहा, तुम लोग हम को मिस्र से जंगल में मरने के लिये क्यों ले आए हो? यहां न तो रोटी है, और न पानी, और हमारे प्राण इस निकम्मी रोटी से,” चमत्कारिक रूप से दिए गए मन्‍ना से, “दुखित हैं।” (गिनती २१:४, ५) ज़रा सोचिए! वे इस्राएली उसके प्रबन्धों को निकम्मा पुकारने के द्वारा, “परमेश्‍वर के विरुद्ध बात करने लगे”!

१२ अपनी शिकायतों से, इस्राएली यहोवा के धीरज को परख रहे थे। सज़ा को रोका नहीं गया, क्योंकि यहोवा ने उनके बीच ज़हरीले साँप भेजे, और कई साँप के डसने से मर गए। लोगों के पछताने और मूसा के उनके लिए प्रार्थना करने के बाद, उस महामारी का अन्त किया गया। (गिनती २१:६-९) निश्‍चय ही इस घटना को हमारे लिए एक चेतावनी का काम करना चाहिए कि एक विद्रोहपूर्ण, शिकायत करने की आत्मा न दिखाएँ, विशेषकर परमेश्‍वर और उसके ईशतंत्रीय प्रबन्धों के विरुद्ध।

कुड़कुड़ाने के विरुद्ध चेतावनी

१३. पहला कुरिन्थियों १०:१० हमें किस बात के विरुद्ध चेतावनी देता है, और कौन-सा विद्रोह पौलुस के मन में था?

१३ वीराने में इस्राएलियों से सम्बन्धित अपने आख़िरी उदाहरण का उद्धरण देते हुए, पौलुस लिखता है: “और न तुम कुड़कुड़ाओ, जिस रीति से उन में से कितने कुड़कुड़ाए, और नाश करनेवाले के द्वारा नाश किए गए।” (१ कुरिन्थियों १०:१०) विद्रोह फूट पड़ा जब कोरह, दातान, अबीराम और उनके साथियों ने ग़ैर-ईशतंत्रीय रीति से कार्य किया और मूसा और हारून के अधिकार को चुनौती दी। (गिनती १६:१-३) विद्रोहियों के नाश होने के बाद इस्राएली कुड़कुड़ाने लगे। ऐसा इसलिए था क्योंकि वे यह तर्क करने लगे कि उन विद्रोहियों का यह अन्त न्यायोचित नहीं था। गिनती १६:४१ (NHT) कहता है: “दूसरे [ही] दिन इस्राएलियों की सारी मण्डली मूसा और हारून के विरुद्ध यह कहकर कुड़कुड़ाने लगी, ‘तुमने ही यहोवा के लोगों को मरवा डाला है।’” उस अवसर पर न्याय किए जाने के तरीक़े में उनके नुक़्स निकालने के परिणामस्वरूप, १४,७०० इस्राएली दैवी स्रोत से आयी मरी से मर गए।—गिनती १६:४९.

१४, १५. (क) उन ‘भक्‍तिहीन मनुष्यों’ का, जो चुपके से कलीसिया में आ गए थे, एक पाप क्या था? (ख) कोरह से सम्बन्धित घटना से क्या सीखा जा सकता है?

१४ सामान्य युग प्रथम शताब्दी में, ‘भक्‍तिहीन मनुष्य’ जो चुपके से मसीही कलीसिया में आ गए थे, झूठे शिक्षक साथ ही कुड़कुड़ानेवाले साबित हुए। ये मनुष्य “प्रभुता को तुच्छ जानते” थे, “और ऊंचे पदवालों को बुरा भला कहते” थे, अर्थात्‌ उन अभिषिक्‍त पुरुषों को जिन्हें कलीसिया की आध्यात्मिक देख-रेख सौंपी गयी थी। इन भक्‍तिहीन धर्मत्यागियों के सम्बन्ध में, शिष्य याकूब ने यह भी कहा: “ये तो असंतुष्ट, कुड़कुड़ानेवाले, और अपने अभिलाषाओं के अनुसार चलनेवाले हैं।” (यहूदा ३, ४, ८, १६) आज, कुछ व्यक्‍ति कुड़कुड़ानेवाले बन जाते हैं क्योंकि वे आध्यात्मिक रूप से एक क्षयकारी मनोवृत्ति को अपने हृदय में विकसित होने देते हैं। अकसर वे उन व्यक्‍तियों की अपरिपूर्णताओं पर ध्यान केन्द्रित करते हैं जो कलीसिया में देखरेख के पदों पर हैं और उनके विरुद्ध कुड़कुड़ाने लगते हैं। उनका कुड़कुड़ाना और शिकायत करना शायद ‘विश्‍वासयोग्य दास’ के प्रकाशनों की आलोचना करने की हद तक भी जाए।

१५ एक शास्त्रीय विषय के बारे में निष्कपट प्रश्‍न पूछना उचित है। लेकिन तब क्या अगर हम एक नकारात्मक मनोवृत्ति विकसित कर लें जो घनिष्ठ दोस्तों के दायरे में आलोचनात्मक चर्चाओं के द्वारा प्रदर्शित हो? हम अपने आप से यह पूछकर अच्छा करेंगे, ‘संभवतः इसका अन्त क्या होगा? कुड़कुड़ाना छोड़कर नम्रतापूर्वक बुद्धि के लिए प्रार्थना करना क्या कहीं ज़्यादा बेहतर नहीं होगा?’ (याकूब १:५-८; यहूदा १७-२१) कोरह और उसके समर्थक, जिन्होंने मूसा और हारून के अधिकार के विरुद्ध विद्रोह किया, शायद अपने दृष्टिकोण के औचित्य के बारे में इतने विश्‍वस्त रहे होंगे कि उन्होंने अपने हेतुओं की जाँच नहीं की। फिर भी, वे पूरी तरह ग़लत थे। और यही उन इस्राएलियों के बारे में भी सच था जो कोरह और अन्य विद्रोहियों के विनाश के बारे में कुड़कुड़ाए। यह कितनी बुद्धिमानी की बात होगी कि हम ऐसे उदाहरणों को अपने हेतुओं की जाँच करने, कुड़कुड़ाहट या शिकायत को दूर करने के लिए उकसाने दें, और यहोवा को हमें शुद्ध करने दें!—भजन १७:१-३.

सबक़ लीजिए, और आशिषों का आनन्द उठाइए

१६. पहला कुरिन्थियों १०:११, १२ की सलाह का सार क्या है?

१६ ईश्‍वरीय उत्प्रेरणा के अधीन, पौलुस चेतावनी संदेशों की इस सूची को इस सलाह के साथ समाप्त करता है: “ये बातें उन पर उदाहरणस्वरूप हुईं, और ये हमारी चेतावनी के लिए लिखी गईं जिन पर इस युग का अन्त आ पहुंचा है। अतः जो यह समझता है कि मैं स्थिर हूं, वह सावधान रहे कि कहीं गिर न पड़े।” (१ कुरिन्थियों १०:११, १२, NHT) ऐसा हो कि हम मसीही कलीसिया में अपनी नेकनामी को कभी महत्त्वहीन न समझें।

१७. अगर हम अपने हृदय में एक अनुचित हेतु को भाँप लेते हैं, तो हमें क्या करना चाहिए?

१७ जैसे लोहा ज़ंग खाने को प्रवृत्त होता है, उसी तरह हम आदम के पापपूर्ण वंशजों ने बुराई की ओर झुकाव विरासत में पाया है। (उत्पत्ति ८:२१; रोमियों ५:१२) इसलिए, अगर हम अपने हृदय में एक अनुचित हेतु को भाँप लेते हैं तो हमें निरुत्साहित नहीं होना चाहिए। इसके बजाय, आइए हम निर्णायक क़दम उठाएँ। जब लोहे को नम हवा या किसी क्षयकारी वातावरण में छोड़ दिया जाए, तो उसमें ज़्यादा तेज़ी से ज़ंग लगता है। शैतान के संसार की “हवा” में स्वयं को छोड़ने से दूर रहने की हमें ज़रूरत है, जिसमें उसका गंदा मनोरंजन, व्यापक अनैतिकता और मन का नकारात्मक झुकाव है।—इफिसियों २:१, २, NW.

१८. मानवजाति की ग़लत प्रवृत्तियों के सम्बन्ध में यहोवा ने क्या किया है?

१८ यहोवा ने मानवजाति को उन्हें विरासत में मिली ग़लत प्रवृत्तियों का विरोध करने के लिए एक माध्यम प्रदान किया है। उसने अपना एकलौता पुत्र दिया ताकि जो उसमें विश्‍वास रखते हैं उन्हें अनन्तकाल का जीवन मिल सके। (यूहन्‍ना ३:१६) अगर हम बारीक़ी से यीशु के पदचिन्हों पर चलें और एक मसीह-समान व्यक्‍तित्व प्रदर्शित करें, तो हम दूसरों के लिए आशिष होंगे। (१ पतरस २:२१) हमें भी शाप नहीं, बल्कि दैवी आशिषें प्राप्त होंगी।

१९. शास्त्रीय उदाहरणों पर विचार करने से हम कैसे लाभ प्राप्त कर सकते हैं?

१९ हालाँकि प्राचीन इस्राएल की तरह हम भी ग़लती करने की ओर प्रवृत्त होते हैं, हमारे पास मार्गदर्शन के लिए परमेश्‍वर का पूर्ण लिखित वचन है। इसके पन्‍नों से हम मानवजाति के साथ यहोवा के व्यवहार, साथ ही उसके उन गुणों के बारे में सीखते हैं जिनकी मिसाल यीशु में मिलती है, जो ‘परमेश्‍वर की महिमा का प्रकाश, और उसके तत्व की छाप है।’ (इब्रानियों १:१-३; यूहन्‍ना १४:९, १०) प्रार्थना और शास्त्रों के अध्यवसायी अध्ययन के द्वारा, हम “मसीह का मन” प्राप्त कर सकते हैं। (१ कुरिन्थियों २:१६) जब हम प्रलोभनों और हमारे विश्‍वास की अन्य परीक्षाओं का सामना करते हैं, हम प्राचीन शास्त्रीय उदाहरणों पर और विशेषकर यीशु मसीह के अत्युत्तम उदाहरण पर विचार करने के द्वारा लाभ प्राप्त कर सकते हैं। अगर हम ऐसा करते हैं, तो हमें दैवी शापों की पूर्ति से गुज़रना नहीं पड़ेगा। इसके बजाय, हम आज यहोवा के अनुग्रह और सर्वदा के लिए उसकी आशिषों का आनन्द उठाएँगे।

[फुटनोट]

a जुलाई १५, १९९२ की प्रहरीदुर्ग (अंग्रेज़ी), पृष्ठ ४ देखिए।

आप कैसे जवाब देंगे?

◻ मूर्तिपूजक न बनने की पौलुस की सलाह को हम कैसे लागू कर सकते हैं?

◻ व्यभिचार के विरुद्ध प्रेरित की चेतावनी को मानने के लिए हम क्या कर सकते हैं?

◻ हमें कुड़कुड़ाने और शिकायत करने से क्यों दूर रहना चाहिए?

◻ हम कैसे दैवी आशिषें न कि शाप प्राप्त कर सकते हैं?

[पेज 18 पर तसवीरें]

अगर हम दैवी आशिषें चाहते हैं, तो हमें मूर्तिपूजा से दूर रहना है

[पेज 20 पर तसवीरें]

जैसे ज़ंग को हटाने की ज़रूरत होती है, आइए हम अपने हृदय से अनुचित इच्छाओं को हटाने के लिए सकारात्मक क़दम उठाएँ

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