पाठकों के प्रश्न
क्या हम कह सकते हैं कि आज परमेश्वर के सेवकों पर, जिन्हें पार्थिव आशा है, उतनी ही परमेश्वर की आत्मा है जितनी कि आत्मा-अभिषिक्त मसीहियों पर है?
यह सवाल नया नहीं है। इसी विषय को अप्रैल १५, १९५२ की प्रहरीदुर्ग (अंग्रेज़ी) में “पाठकों के प्रश्न” में सम्बोधित किया गया था। तब से अनेक लोग साक्षी बने हैं, सो हम इस सवाल पर ग़ौर कर सकते हैं और ऐसा करते वक़्त पहले विषय में जो कहा गया था उस पर पुनर्विचार कर सकते हैं।
मूलतः, जवाब है, हाँ, अन्य भेड़ वर्ग के विश्वासी भाई-बहन परमेश्वर की पवित्र आत्मा पाने में अभिषिक्त जनों के साथ बराबर के भागीदार हो सकते हैं।—यूहन्ना १०:१६.
निस्संदेह, इसका यह अर्थ नहीं है कि आत्मा सभी व्यक्तियों पर एक जैसा कार्य करती है। मसीही-पूर्व समयों के विश्वासी सेवकों को याद कीजिए, जिन्होंने निश्चय ही परमेश्वर की आत्मा पायी थी। आत्मा से प्राप्त शक्ति से, उनमें से कुछ ने खूंखार जानवरों को मार गिराया, बीमारों को चंगा किया, यहाँ तक कि मृत जनों को जिलाया। और उन्हें बाइबल की उत्प्रेरित पुस्तकों को लिखने के लिए आत्मा की ज़रूरत थी। (न्यायियों १३:२४, २५; १४:५, ६; १ राजा १७:१७-२४; २ राजा ४:१७-३७; ५:१-१४) प्रहरीदुर्ग ने कहा: “हालाँकि वे अभिषिक्त वर्ग के नहीं थे, वे पवित्र आत्मा से भर गए।”
एक और दृष्टिकोण से, पहली शताब्दी के उन पुरुषों और स्त्रियों पर ग़ौर कीजिए जो पवित्र आत्मा से अभिषिक्त होकर स्वर्गीय आशा के साथ परमेश्वर के आत्मिक पुत्र बन गए थे। सभी अभिषिक्त किए गए थे, लेकिन इसका यह अर्थ नहीं है कि उसके बाद आत्मा उन सभों पर एक जैसा कार्य करने लगी। यह बात १ कुरिन्थियों अध्याय १२ से स्पष्ट है। वहाँ प्रेरित पौलुस ने आत्मा के वरदान के बारे में चर्चा की। हम आयत ८, ९, और ११ में पढ़ते हैं: “एक को आत्मा के द्वारा बुद्धि की बातें दी जाती हैं; और दूसरे को उसी आत्मा के अनुसार ज्ञान की बातें। और किसी को उसी आत्मा से विश्वास; और किसी को उसी एक आत्मा से चंगा करने का बरदान दिया जाता है। . . . परन्तु ये सब प्रभावशाली कार्य्य वही एक आत्मा करवाता है, और जिसे जो चाहता है वह बांट देता है।”
उल्लेखनीय रूप से, उस समय सभी अभिषिक्त जनों के पास आत्मा के चमत्कारिक वरदान नहीं थे। पहले कुरिन्थियों अध्याय १४ में, पौलुस ने कलीसिया की एक ऐसी सभा के बारे में ज़िक्र किया जिसमें एक व्यक्ति के पास भाषाओं का वरदान था, लेकिन उपस्थित किसी भी व्यक्ति के पास अनुवाद करने का वरदान नहीं था। तिस पर भी, पहले के किसी अवसर पर, उन में से हरेक ने आत्मा द्वारा अभिषिक्त होने का अनुभव किया था। क्या यह कहना तर्कसंगत होगा कि जिस भाई के पास भाषाओं का वरदान था, उसके पास उपस्थित अन्य लोगों से ज़्यादा आत्मा थी? जी नहीं। दूसरे अभिषिक्त जन प्रतिकूल स्थिति में नहीं थे, मानो वे बाइबल को उसकी तरह समझने में असमर्थ या परीक्षाओं का उसकी तरह सामना करने में असमर्थ थे। उस भाई पर जो भिन्न-भिन्न भाषाओं में बात कर सका, आत्मा ने एक विशेष तरीक़े से कार्य किया। फिर भी, उसे और उन्हें यहोवा के नज़दीक रहने, और ‘आत्मा से परिपूर्ण होते जाने’ की ज़रूरत थी, जैसे पौलुस ने लिखा।—इफिसियों ५:१८.
आज शेषजन के सम्बन्ध में, उन्होंने निश्चय ही परमेश्वर की आत्मा पायी है। एक बार इसने उन पर एक विशेष तरीक़े से कार्य किया—उस समय जब उन्हें अभिषिक्त किया गया और आत्मिक पुत्रों के तौर पर ग्रहण किया गया था। उसके बाद वे ‘आत्मा से परिपूर्ण होते जाते’ हैं, और उसकी मदद पाते हैं जब वे बाइबल को और स्पष्ट रूप से समझने, प्रचार कार्य में अगुआई लेने, या परीक्षाओं का—व्यक्तिगत या संगठानात्मक—सामना करने का प्रयास करते हैं।
“अन्य भेड़” (NW) के सदस्य, हालाँकि उन्हें अभिषिक्त होने का अनुभव नहीं हुआ था, दूसरे तरीक़े से पवित्र आत्मा पाते हैं। अप्रैल १५, १९५२ की प्रहरीदुर्ग (अंग्रेज़ी) ने कहा:
“आज ‘अन्य भेड़’ शेषजन के जैसे वही प्रचार कार्य करते हैं, उसी कष्टप्रद परिस्थितियों में, और वही वफ़ादारी और खराई दिखाते हैं। वे उसी आध्यात्मिक मेज़ से पोषित होते हैं, वही भोजन खाते हैं, वही सच्चाई को आत्मसात् करते हैं। पार्थिव वर्ग के होने के कारण, जिनकी पार्थिव आशा है और पार्थिव बातों में गहरी दिलचस्पी है, वे शायद अपनी दिलचस्पी को नए संसार की पार्थिव परिस्थितियों से सम्बन्धित शास्त्रवचनों में ज़्यादा लगाएँ; जबकि अभिषिक्त शेषजन, जिनकी स्वर्गीय आशा और आत्मा की बातों में प्रबल व्यक्तिगत दिलचस्पी है, परमेश्वर के वचन में शायद उन बातों को ज़्यादा अध्यवसायी रूप से अध्ययन करें। . . . फिर भी सच्चाई यही है कि वही सच्चाइयाँ और वही समझ दोनों वर्गों को उपलब्ध है, और यह सिर्फ़ अध्ययन में व्यक्ति अपने आपको कितना लौलीन करता है जो उन स्वर्गीय और पार्थिव बातों की समझ को निर्धारित करता है जिन्हें वे प्राप्त करते हैं। प्रभु की आत्मा दोनों वर्गों को बराबर हिस्से में उपलब्ध है, इसे आत्मसात् करने के समान अवसरों के साथ दोनों को ज्ञान और समझ बराबर पेश किया जाता है।”