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    प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—2004
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प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1997
w97 5/1 पेज 24-29

परमेश्‍वर मेरा शरणस्थान और बल है

शारलॉट मुलर द्वारा बताया गया

“हिटलर के अधीन तुमने जो नौ वर्ष काटे वह तारीफ़ के क़ाबिल है,” साम्यवादी न्यायाधीश ने कहा। “तुम वाक़ई युद्ध के ख़िलाफ़ थे, लेकिन अब तुम हमारी शांति के ख़िलाफ़ हो!”

वह नात्ज़ियों द्वारा मेरी पिछली गिरफ़्तारियों और जर्मन लोकतंत्रीय गणराज्य में समाजवाद की ओर इशारा कर रहा था। पहले तो मैं गुमसुम हो गई लेकिन फिर मैंने जवाब दिया: “एक मसीही उस तरीक़े से सच्ची शांति के लिए संघर्ष नहीं करता जिस तरीक़े से बाक़ी लोग करते हैं। मैं सिर्फ़ परमेश्‍वर और अपने पड़ोसी से प्रेम करने की बाइबलीय आज्ञा का पालन करने की कोशिश करती हूँ। परमेश्‍वर का वचन मुझे कथनी और करनी में शांति बनाए रखने में मदद देता है।”

उस दिन, सितम्बर ४, १९५१ को, साम्यवादियों ने मुझे आठ वर्ष जेल काटने की सज़ा दी—नात्ज़ी शासन ने जो किया था उससे एक वर्ष कम।

जब हम यहोवा के साक्षियों को राष्ट्रीय समाजवादियों और साम्यवादियों द्वारा सताया जा रहा था, तब मैंने भजन ४६:१ में सांत्वना पाई: “परमेश्‍वर हमारा शरणस्थान और बल है, संकट में अति सहज से मिलनेवाला सहायक।” केवल यहोवा ने मुझे धीरज धरने का बल दिया, और जितना मैंने उसके वचनों को अपनाया, मैं उतनी ही मज़बूत हुई।

भविष्य के लिए दृढ़ किया जाना

मैं १९१२ में थुरिनजीआ, जर्मनी के गोटा-ज़ीबलेबन में पैदा हुई थी। हालाँकि मेरे माता-पिता प्रोटॆस्टॆंट थे, मेरे पिता बाइबल सच्चाई और एक धार्मिक सरकार की खोज कर रहे थे। जब मेरे माता-पिता ने “सृष्टि का फ़ोटो-ड्रामा” (अंग्रेज़ी) देखा, तो वे रोमांचित हो उठे।a पिता को वह मिल गया था जिसकी उन्हें तलाश थी—परमेश्‍वर का राज्य।

मार्च २, १९२३ में पिताजी और माँ ने, हम छः बच्चों के साथ गिरजे से इस्तीफ़ा दे दिया। हम कॆमनिट्‌स, सेक्सोनी में रह रहे थे और वहाँ हमने बाइबल विद्यार्थियों के साथ संगति की। (मेरे भाई-बहनों में से तीन यहोवा के साक्षी बने।)

बाइबल विद्यार्थियों की सभाओं में शास्त्रीय पाठ और बहुमूल्य सच्चाइयों ने मुझे प्रभावित किया, और मेरे छोटे-से दिल को ख़ुशी से भर दिया। यह ख़ासकर वह उपदेश होता था जिसे हम, ५० से अधिक मसीही युवाओं को रविवार के दिन दिया जाता था, और जिसे मेरी बहन काट और मैंने थोड़े समय तक प्राप्त किया। हमारे समूह में युवा कॉनराट फ्रांग्क शामिल था जो सैर का आयोजन करता था और हमारे साथ गीत गाने का अभ्यास भी। बाद में, १९५५ से १९६९ तक, भाई फ्रांग्क ने जर्मनी की वॉच टावर शाखा में ओवरसियर के रूप में कार्य किया।

बीसादि क्लेश से भरे वर्ष थे, कभी-कभी परमेश्‍वर के लोगों के बीच में भी। कुछ लोगों ने प्रहरीदुर्ग को ‘समय पर भोजन’ के रूप में मानना बंद कर दिया, और वे घर-घर की प्रचार गतिविधि के ख़िलाफ़ थे। (मत्ती २४:४५) यह धर्मत्याग की ओर ले गया। लेकिन यही वह “भोजन” था जिसने हमें वह बल प्रदान किया जिसकी हमें उस वक़्त बुरी तरह ज़रूरत थी। उदाहरण के लिए, प्रहरीदुर्ग (अंग्रेज़ी) के ऐसे लेख थे जैसे “धन्य हैं जो निर्भय हैं” (१९१९) और “कौन यहोवा का आदर करेगा?” (१९२६) मैं साहसी गतिविधि से यहोवा का आदर करना चाहती थी, सो मैंने भाई रदरफ़र्ड की अनेक पुस्तक और पुस्तिकाएँ वितरित कीं।

मार्च १९३३ में, एक यहोवा की साक्षी के तौर पर मेरा बपतिस्मा हुआ। उसी वर्ष, सुसमाचारक के हमारे कार्य पर जर्मनी में प्रतिबंध लगा दिया गया। बपतिस्मे के वक़्त, प्रकाशितवाक्य २:१० को भविष्य के लिए सलाह के रूप में दिया गया था: “जो दुख तुझ को झेलने होंगे, उन से मत डर: क्योंकि देखो, शैतान तुम में से कितनों को जेलखाने में डालने पर है ताकि तुम परखे जाओ; और तुम्हें दस दिन तक क्लेश उठाना होगा: प्राण देने तक विश्‍वासी रह; तो मैं तुझे जीवन का मुकुट दूंगा।” मैं इस बात के बारे में निश्‍चित थी कि मुझे कठिन सताहटों का सामना करना पड़ेगा, मैंने इस आयत पर गहराई से मनन किया। यह बात सच साबित हुई।

क्योंकि हम राजनैतिक रूप से तटस्थ रहे, हमारे अनेक पड़ोसी हम पर शक करने लगे। एक राजनैतिक चुनाव के बाद, वर्दीधारी नात्ज़ी सैनिकों के एक समूह ने हमारे घर के सामने शोर मचाया, “यहाँ गद्दार रहते हैं!” लेख “उनसे मत डरो,” जो प्रहरीदुर्ग दिसम्बर १९३३ के जर्मन संस्करण में आया था, मेरे लिए ख़ास प्रोत्साहन रहा था। कठिन-से-कठिन हालातों के बावजूद भी मैं यहोवा की वफ़ादार साक्षी रहना चाहती थी।

शत्रु का जवाब—जेल

वर्ष १९३५ की शरद तक कॆमनिट्‌स में गुप्त रूप से प्रहरीदुर्ग निकालना संभव था। उसके बाद प्रतियाँ बनाने की जो मशीन इस्तेमाल की जा रही थी उसे ओर माउन्टेन्स के बाईरफॆल्ट ले जाया गया, जहाँ उसे साहित्य की प्रतियाँ निकालने के लिए अगस्त १९३६ तक इस्तेमाल किया गया। काट और मैंने उन भाइयों को प्रतियाँ बाँटीं जिनके पते पिताजी ने हमें दिए थे। कुछ समय तक सब ठीक चला। लेकिन तब गेस्टापो ने मुझ पर नज़र रखनी शुरू कर दी, और अगस्त १९३६ में उन्होंने मुझे मेरे घर में पकड़ लिया जहाँ मुझे सुनवाई होने तक हिरासत में रखा गया।

फरवरी १९३७ को, २५ भाई और २ बहनें—मुझे मिलाकर—सेक्सोनी में एक ख़ास अदालत के सामने पेश हुए। यह दावा किया गया था कि यहोवा के साक्षियों का संगठन क्रांतिकारी था। जिन भाइयों ने प्रहरीदुर्ग की प्रतियाँ छापी थीं उन्हें पाँच वर्ष की जेल हुई। मुझे दो वर्ष की जेल हुई।

अपनी सज़ा पूरी करने के बाद आज़ाद किए जाने के बजाय, मुझे गेस्टापो द्वारा ले जाया गया। मुझ से एक घोषणापत्र पर हस्ताक्षर करने की अपेक्षा की गई थी जिसमें लिखा था कि मैं अब से एक यहोवा की साक्षी के तौर पर सक्रिय नहीं रहूँगी। मैंने दृढ़तापूर्वक इनकार कर दिया, जिस पर अधिकारी आगबबूला हो उठा, वह खड़ा हुआ और मुझे हिरासत में रखने के लिए एक वॉरंट निकाल दिया। वॉरंट को तस्वीर में दिखाया गया है। मुझे अपने माता-पिता से मिलने नहीं दिया गया और मुझे तुरंत एलबॆ नदी पर लिचटनबुर्ग में महिलाओं के एक छोटे-से यातना शिविर में ले जाया गया। उसके कुछ समय बाद मैं काट से मिली। वह दिसम्बर १९३६ से मोरिंगन के यातना शिविर में रही थी, लेकिन जब उस यातना शिविर को बंद किया गया, तब वह बाक़ी अनेक बहनों के साथ लिचटनबुर्ग में आ गई। मेरे पिता भी हिरासत में थे, और १९४५ तक मैंने उन्हें दोबारा नहीं देखा।

लिचटनबुर्ग में

मुझे सीधे अन्य महिला साक्षियों से मिलने नहीं दिया गया, क्योंकि उन्हें किसी-न-किसी बात के लिए दंड दिया जा रहा था। एक हॉल में मैंने क़ैदियों के दो समूहों पर ध्यान दिया—वे महिलाएँ जो आम तौर पर मेज़ों पर बैठती थीं और साक्षियों को जिन्हें सारे दिन स्टूल पर बैठना होता था और जिन्हें खाने के लिए कुछ भी नहीं दिया जाता था।b

मैं किसी भी काम को जल्दी स्वीकार कर लेती, इस आशा के साथ कि किसी तरह काट से मुलाक़ात हो जाए। और ठीक ऐसा ही हुआ। वह बाक़ी दो क़ैदियों के साथ अपने काम पर जा रही थी कि हम आमने-सामने आ गए। ख़ुशी के मारे, मैंने उसे ज़ोर से गले लगा लिया। लेकिन महिला संतरी ने सीधे हमारी शिकायत कर दी। हमसे पूछताछ की गई, और उस समय से हमें जानबूझकर अलग रखा गया। जो कि बहुत कठिन था।

लिचटनबुर्ग की अन्य दो घटनाएँ मेरी याद में नक़्श हो गई हैं। एक अवसर पर सभी क़ैदियों को रेडियो पर हिटलर के एक राजनैतिक भाषण को सुनने के लिए आँगन में इकट्ठे होना था। हम यहोवा के साक्षियों ने इनकार कर दिया, क्योंकि उसमें देशभक्‍ति की रस्में शामिल थीं। सो संतरियों ने आग बुझानेवाले पानी के पाइपों को हम पर खोल दिया, एक नलके से जुड़े पाइप से पानी की तेज़ धार से हमें मारा गया और हम असहाय महिलाओं को चौथी मंज़िल से नीचे आँगन तक खदेड़ा गया। पानी से तर-बतर हमें वहाँ खड़े रहना पड़ा।

एक अन्य अवसर पर मुझे, गरट्रूट उमॆ और गर्टल बूर्लन को साथ लेकर आदेशक के मुख्यालय को बत्तियों से सजाने का आदेश दिया गया, क्योंकि हिटलर का जन्मदिन पास आ रहा था। छोटी-छोटी बातों में समझौता करने के द्वारा हमारी खराई तुड़वाने की कोशिश करने के लिए शैतान की युक्‍तियों को पहचानते हुए हमने इनकार किया। सज़ा के तौर पर, हम तीनों युवा बहनों को अगले तीन सप्ताह अकेले, एक छोटी-सी काल-कोठरी में बिताने थे। लेकिन यहोवा हमारे नज़दीक रहा, और ऐसी खौफ़नाक़ जगह में भी, एक शरणस्थान साबित हुआ।

रावन्सब्रूक में

मई १९३९ में क़ैदियों को लिचटनबुर्ग से रावन्सब्रूक यातना शिविर में ले जाया गया। वहाँ अनेक मसीही बहनों के साथ मुझे लॉन्ड्री में कार्य दिया गया। युद्ध शुरू होने के थोड़े ही समय बाद, हमसे स्वस्तिका झण्डे को ले जाने की अपेक्षा की गई, जिससे हमने इनकार कर दिया। जिसके परिणामस्वरूप, मीलचन अर्नस्ट और मुझे, दो लोगों को, बैरकों में डाल दिया गया। वह सज़ा देने का सबसे कठोर रूप था जिसका अर्थ था कि हमें हर दिन कड़ी मेहनत करनी थी, रविवार को भी, चाहे मौसम कैसा भी क्यों न हो। सामान्य रूप से, यह सज़ा ज़्यादा-से-ज़्यादा तीन महीने तक होती थी, लेकिन हम वहाँ एक वर्ष तक रहे। यहोवा की मदद के बिना मैं जीवित नहीं रहती।

वर्ष १९४२ में, हम क़ैदियों के लिए परिस्थितियाँ थोड़ी अच्छी हो गईं, और मुझे कैम्प के नज़दीक ही एक SS परिवार की आया का काम दिया गया। उस परिवार ने कुछ हद तक मुझे आज़ादी दी। उदाहरण के लिए, जब मैं बच्चों को घुमाने ले जा रही थी, मेरी मुलाक़ात योज़ेफ़ रेवाल्ड और गॉटफ्रीट मेलहॉर्न से हुई, जो कि बैंजनी तिकोनवाले दो क़ैदी थे, जिनके साथ मैं कुछ प्रोत्साहक बातचीत कर सकी।c

कठिन युद्धोत्तर वर्ष

जब १९४५ में संयुक्‍त सेनाएँ पास आ गयीं, तो जिस परिवार के लिए मैं काम करती थी वह भाग निकला, और मुझे उनके साथ जाना पड़ा। बाक़ी SS परिवारों के साथ, पश्‍चिम दिशा की ओर चलते हुए उन्होंने एक बड़ा कारवाँ बनाया।

युद्ध के अन्तिम दिन गड़बड़ी और ख़तरे से भरे हुए थे। आख़िरकार, हमें कुछ अमरीकी सैनिक मिले जिन्होंने अगले शहर में मुझे एक आज़ाद व्यक्‍ति के रूप में पंजीकरण करने की अनुमति दी। मैं वहाँ किससे मिली? योज़ेफ़ रेवाल्ड और गॉटफ्रीट मेलहार्न से। उन्हें पता चला था कि जाकसनहाउज़ॆन यातना शिविर से सभी साक्षी एक जानलेवा मृत्यु यात्रा के बाद श्‍फ़ेरीन पहुँच चुके थे। सो हम तीनों उस शहर के लिए निकल पड़े, जो कि लगभग ७५ किलोमीटर दूर था। श्‍फ़ेरीन में उन सभी वफ़ादार भाइयों से मिलना क्या ही आनंद की बात थी, जो यातना शिविर के उत्तरजीवी थे, जिनमें कॉनराट फ्रांग्क शामिल था।

दिसम्बर १९४५ तक देश के हालात यहाँ तक सुधर गए कि मैं ट्रेन से यात्रा कर सकती थी। सो मैं घर की ओर रवाना हो गई! लेकिन, यात्रा में रेल के डिब्बे की छत पर लेटकर बिताया गया समय और चलती गाड़ी के पायदान पर खड़ा रहना शामिल था। कॆमनिट्‌स में, मैं रेलवे स्टेशन से उस जगह पर गयी जहाँ हम एक परिवार के रूप में रहते थे। लेकिन उस सड़क पर, जहाँ खड़े होकर नात्ज़ी सैनिकों ने यह पुकारा था, “गद्दार यहाँ रहते हैं!” एक भी घर बाक़ी नहीं बचा था। सारा का सारा आवासी क्षेत्र बमों द्वारा पूरी तरह नष्ट किया जा चुका था। लेकिन, मुझे तसल्ली हुई, मैंने माँ, पिताजी, काट, और अपने भाई और बहनों को अभी-भी जीवित पाया।

युद्धोत्तर जर्मनी में आर्थिक परिस्थिति भयानक थी। फिर भी, पूरे जर्मनी में परमेश्‍वर के लोगों की कलीसियाएँ फलने-फूलने लगीं। वॉच टावर सोसाइटी ने हमें प्रचार कार्य के लिए सुसज्जित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। मागडेबर्ग में बेथेल में कार्य, जिसे नात्ज़ियों ने बंद कर दिया था, फिर से शुरू किया गया। १९४६ के वसंत में, मुझे वहाँ कार्य करने के लिए निमंत्रण दिया गया और मुझे रसोई में कार्य करने की नियुक्‍ति दी गई।

एक बार फिर प्रतिबंध और गिरफ़्तारी में

मागडेबर्ग जर्मनी के उस भाग में है जिस पर साम्यवादियों का नियंत्रण हो गया। अगस्त ३१, १९५० को उन्होंने हमारे काम पर प्रतिबंध लगाया, और मागडेबर्ग बेथेल को बंद कर दिया। इस प्रकार मेरी बेथेल सेवा का अंत हो गया, जो कि मूल्यवान प्रशिक्षण का एक समय रहा था। मैं कॆमनिट्‌स वापस लौट गई, साम्यवादियों के अधीन भी सत्य को मज़बूती से थामे रहने और दुःखी मानवजाति की एकमात्र आशा के रूप में परमेश्‍वर के राज्य की घोषणा करने के लिए दृढ़ निश्‍चयी।

अप्रैल १९५१ में, मैंने प्रहरीदुर्ग की प्रतियाँ लाने के लिए एक भाई के साथ बर्लिन की यात्रा की। जब हम वापस लौटे, हम कॆमनिट्‌स के रेलवे स्टेशन को सादा कपड़े पहनी पुलिस द्वारा घिरा देखकर चकित रह गए। वे निश्‍चित ही हमारी प्रतीक्षा कर रहे थे, और हमें उसी वक़्त गिरफ़्तार कर लिया गया।

सुनवाई से पहले हिरासत में आने पर, मेरे पास वे दस्तावेज़ थे जो यह साबित करते कि मुझे नात्ज़ियों द्वारा अनेक वर्षों तक क़ैद रखा गया था। जिसके परिणामस्वरूप, संतरियों ने मेरे साथ आदर से व्यवहार किया। एक मुख्य महिला संतरी ने कहा: “आप यहोवा के साक्षी अपराधी नहीं हो; आपकी जगह यह जेल नहीं है।”

एक बार वह मेरी कोठरी में आई, जहाँ मैं दो अन्य बहनों के साथ थी, और उसने चुपके-से एक बिस्तर के नीचे कुछ रख दिया। वह क्या था? उसकी अपनी बाइबल, जो उसने हमें दे दी। एक अन्य अवसर पर, वह मेरे माता-पिता से मिलने उनके घर गई, चूँकि वे जेल से ज़्यादा दूर नहीं थे। वह प्रहरीदुर्ग की प्रतियाँ और कुछ भोजन लायी, सब कुछ अपने कपड़ों के नीचे छुपाया और सब कुछ चोरी-से मेरी कोठरी में पहुँचा दिया।

एक बात और है जो मैं बताना चाहूँगी। रविवार सुबह कभी-कभी, हमने ईश्‍वरशासित गीत इतने ज़ोर से गाये कि अन्य क़ैदियों ने हर गीत के लिए तालियाँ बजाकर ख़ुशी ज़ाहिर की।

यहोवा से बल और सहायता

सितम्बर ४, १९५१ के दिन अदालत की कार्यवाही के दौरान, न्यायाधीश ने वह टिप्पणी की जिसका ज़िक्र इस लेख के आरंभ में किया गया है। मैंने अपनी सज़ा वाल्टहाईम, फिर हाले, और अंत में होएनॆक में काटी। कुछेक छोटी घटनाएँ दिखाएँगी कि कैसे परमेश्‍वर हम यहोवा के साक्षियों का शरणस्थान और बल रहा और कैसे उसके वचन ने हम में नयी शक्‍ति भरी।

वाल्टहाईम जेल में, नियमित रूप से सभी मसीही बहनें एक हॉल में मिलती थीं, जिससे हम मसीही सभाएँ आयोजित करने में समर्थ हो सके। पॆन्सिल और पेपर की अनुमति नहीं थी, लेकिन कुछ बहनें एक कपड़े का टुकड़ा पाने में और १९५३ का वार्षिक पाठवाला एक छोटा बैनर बनाने में समर्थ हो सकीं, जो था: “पवित्रता से शोभायमान होकर यहोवा को दण्डवत्‌ करो।”—भजन २९:२.

एक महिला संतरी ने हमें देख लिया और फ़ौरन शिकायत कर दी। जेल का मुखिया आया और दो बहनों को बैनर ऊपर उठाने के लिए कहा। “इसे किसने बनाया?” उसने पूछा। “इसका क्या मतलब है?”

एक बहन क़बूल करना चाहती थी और अपने ऊपर सारा इलज़ाम लेना चाहती थी, लेकिन हमने जल्द ही आपस में काना फूसी की, और इस बात पर सहमत हो गईं की सभी को इसकी ज़िम्मेदारी लेनी चाहिए। सो हमने जवाब दिया: “हमने इसे अपने विश्‍वास को मज़बूत करने के लिए बनाया है।” बैनर ज़ब्त कर लिया गया और हमें सज़ा के तौर पर भोजन से वंचित रखा गया। लेकिन उस सारी बहस के दौरान, उन बहनों ने उसे ऊँचा उठाए रखा ताकि हम उस प्रोत्साहक शास्त्रवचन को हृदय में बिठा सकें।

जब वाल्टहाईम का महिला जेल बन्द हो गया, तब हम बहनों को हाले ले जाया गया। यहाँ हमें सामान पाने की अनुमति थी, और एक जोड़ी चप्पल के अंदर, जिसे मेरे पिता ने भेजा था, क्या सिला हुआ था? प्रहरीदुर्ग लेख! मैं आज तक उनके शीर्षक याद कर सकती हूँ, “सच्चा प्रेम व्यावहारिक है,” और “झूठ जीवन की हानि की ओर ले जाता है।” ये और अन्य लेख वाक़ई पोषक थे, और जब हम गुप्त रूप से इन्हें एक दूसरे को देते, तो हरेक बहन अपने लिए नोट बना लेती।

एक छापे के दौरान, एक संतरी ने मेरे अपने नोट्‌स को फूँस के मेरे गद्दे में छिपा पाया। बाद में, उसने मुझे पूछताछ के लिए बुलाया और कहा कि वह निश्‍चित ही लेख “१९५५ के लिए यहोवा के डरवैयों की प्रत्याशा” का अर्थ जानना चाहती थी। वह एक साम्यवादी थी और १९५३ में अपने नेता स्टालिन की मृत्यु के बारे में बहुत चिंतित थी, और भविष्य अंधकारमय नज़र आ रहा था। लेकिन हमारे लिए, भविष्य हमारी जेल की परिस्थितियों में कुछ सुधार लाता, लेकिन मैं अभी उसके बारे में नहीं जानती थी। मैंने आत्म-विश्‍वास के साथ समझाया कि यहोवा के साक्षियों के लिए सबसे उत्तम प्रत्याशाएँ थीं। क्यों? मैंने लेख के मुख्य शीर्षक पाठ से उद्धत किया, भजन ११२:७: “वह बुरे समाचार से नहीं डरता; उसका हृदय यहोवा पर भरोसा रखने से स्थिर रहता है।”

यहोवा मेरा शरणस्थान और बल बना रहता है

एक गंभीर बीमारी के बाद, मुझे दो साल पहले, मार्च १९५७ को जेल से रिहा कर दिया गया। पूर्वी जर्मनी के अधिकारियों ने यहोवा की सेवा में मेरी गतिविधि के कारण फिर मुझ पर दबाव डाला। अतः, मई ६, १९५७ में, मैंने पश्‍चिमी बर्लिन जाने के अवसर का फ़ायदा उठाया और वहाँ से पश्‍चिम जर्मनी चली गई।

मेरा स्वास्थ्य संभलने में कई वर्ष लग गए। लेकिन आज तक मेरी अच्छी आध्यात्मिक भूख है और मैं प्रहरीदुर्ग के हर नए अंक की राह देखती हूँ। समय-समय पर मैं ख़ुद का आत्म-परीक्षण करती हूँ। क्या मैं अब भी आध्यात्मिक मनोवृत्ति रखती हूँ? क्या मैंने उत्तम गुण विकसित किए हैं? क्या मेरे विश्‍वास का परखा जाना यहोवा की स्तुति और आदर का कारण है? हर बात में परमेश्‍वर को प्रसन्‍न करना मेरा लक्ष्य है, ताकि वह हमेशा मेरा शरणस्थान और बल रहे।

[फुटनोट]

a “फ़ोटो-ड्रामा” स्लाइड्‌स और चलचित्रों से मिलकर बना था और १९१४ से, वॉच टावर बाइबल एण्ड ट्रैक्ट सोसाइटी के प्रतिनिधियों द्वारा दूर-दूर तक दिखाया गया था।

b पत्रिका ट्रोस्ट (सांत्वना) ने, जिसे वॉच टावर सोसाइटी द्वारा बर्न, स्विट्‌ज़रलैंड में, मई १, १९४०, पृष्ठ १०, में प्रकाशित किया गया था, रिपोर्ट किया कि एक अवसर पर लिचटनबुर्ग में यहोवा की साक्षी महिलाओं को १४ दिन तक दोपहर का खाना नहीं दिया गया क्योंकि जब नात्ज़ी गीत बजाए जाते थे तो उन्होंने कोई भी आदर दिखाने का कृत्य करने से इनकार किया। वहाँ ३०० यहोवा के साक्षी थे।

c योज़ेफ़ रेवाल्ड के बारे में एक रिपोर्ट सजग होइए! (अंग्रेज़ी) फरवरी ८, १९९३, पृष्ठ २०-३ में आयी है।

[पेज 26 पर तसवीर]

रावन्सब्रूक में SS का दफ़्तर

[चित्र का श्रेय]

ऊपर: Stiftung Brandenburgische Gedenkstätten

[पेज 26 पर तसवीर]

शिविर के बाहर काम करने का मेरा पास

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