मैंने परमेश्वर की सेवा करने का वादा निभाया
फ्राँटस गुडलिकीस की ज़ुबानी
हमारी सैनिक टुकड़ी में सौ से ज़्यादा सैनिक थे और अब सिर्फ चार ज़िंदा बचे थे। जब सिर पर मौत मँडराने लगी तो मैंने घुटनों के बल गिरकर परमेश्वर से प्रार्थना की और वादा किया कि ‘अगर मैं जंग में बच गया तो हमेशा-हमेशा आपकी सेवा करूँगा।’
यह वादा मैंने आज से ५४ साल पहले अप्रैल १९४५ में किया था, जब मैं एक जर्मन सैनिक था। यह बात दूसरा विश्वयुद्ध समाप्त होने से थोड़े समय पहले की थी, जब सोवियत सेनाएँ बर्लिन की ओर बढ़ती चली आ रही थीं। हम बर्लिन से लगभग ६५ किलोमीटर दूर ज़ेलो गाँव के पास ओडरा नदी के मोर्चे पर थे। वहाँ हम पर रात-दिन गोला-बारी हो रही थी, और हमारी सैनिक टुकड़ी घटती जा रही थी।
उस दिन मैंने अपनी ज़िंदगी में पहली बार फूट-फूटकर रोते हुए परमेश्वर से प्रार्थना की थी। फिर मुझे याद आया कि मेरी मम्मी जो परमेश्वर को बहुत मानती थी अकसर मुझे बाइबल का एक वचन सुनाया करती थी: “संकट के दिन मुझे पुकार; मैं तुझे छुड़ाऊंगा, और तू मेरी महिमा करने पाएगा।” (भजन ५०:१५) उस समय अपनी जान खतरे में देखकर उस खाई में मैंने यह वादा किया था। मैंने इस वादे को कैसे निभाया? और मैं जर्मन सेना में भरती कैसे हुआ?
लिथुएनिया में पला-बड़ा
सन् १९१८ में प्रथम विश्व-युद्ध के दौरान लिथुएनिया ने खुद को स्वतंत्र घोषित कर दिया और वहाँ लोकतांत्रिक सरकार बनाई गई। मेरा जन्म सन् १९२५ में बाल्टिक सागर के पास मामलों (क्लायपड) ज़िले में हुआ था। और मेरे जन्म से एक साल पहले उस ज़िले को लिथुएनिया का हिस्सा बना दिया गया था।
मेरा और मेरी पाँच बहनों का बचपन बहुत ही खुशी-खुशी बीता। हमारे पापा हमारे एक अच्छे दोस्त थे, और हमेशा सब बच्चों के साथ मिलकर काम करते थे। पापा-मम्मी इवैंजलिकल चर्च के सदस्य थे, मगर चर्च नहीं जाते थे क्योंकि मेरी मम्मी पादरियों के कपट से बहुत गुस्सा थी। फिर भी परमेश्वर और उसके वचन यानी बाइबल को वह प्यार करती थी और बाइबल पढ़ने की उसमें बहुत लगन थी।
लिथुएनिया के जिस क्षेत्र में हम रहते थे उसे सन् १९३९ में जर्मनी ने अपने कब्ज़े में ले लिया। और सन् १९४३ की शुरूआत में मुझे जर्मन सेना में भरती होने के लिए बुलाया गया। एक बार जंग में मैं घायल हो गया था मगर घाव ठीक होते ही मुझे पूर्वी मोर्चे पर भेज दिया गया। इस बार जंग का नज़ारा ही कुछ और था, रूसी सेनाओं के सामने से जर्मन सेनाएँ पीछे हट रही थीं। यही वही समय था जब मैं मौत के मुँह से बाल-बाल बचा था, जैसा मैंने शुरू में बताया था।
मैंने वादा निभाया
युद्ध के दौरान मेरे पापा-मम्मी ऑशॉट्स जर्मनी में दक्षिणपूर्व लाइपसिक में जाकर रहने लगे। युद्ध में हुई तबाही के बीच उन्हें ढूँढ़ पाना बहुत मुश्किल था। मगर आखिरकार हम सब मिल ही गए, तब हमें कितनी खुशी हुई थी! उसके कुछ समय बाद अप्रैल १९४७ को मैं अपनी मम्मी के साथ एक पब्लिक टॉक सुनने के लिए गया, जो मैक्स शूबर्ट ने दी थी, वह एक यहोवा का साक्षी था। मम्मी को यह विश्वास था कि उसे सच्चा धर्म मिल गया है, और कुछ सभाओं में जाने के बाद मैं भी यही विश्वास करने लगा।
थोड़े दिनों बाद, एक रोज़ मम्मी सीढ़ी पर से गिर गई, और गहरी चोटों की वज़ह से वह कुछ ही महीनों में चल बसी। और मौत से पहले अस्पताल में उसने बड़े प्यार से मुझे हिम्मत देते हुए कहा था: “मैं अकसर प्रार्थना करती थी कि कम-से-कम मेरा एक बच्चा परमेश्वर की राह पर चलने लगे, मुझे लगता है कि मेरी प्रार्थना सुन ली गई है, अब मैं शांति से मर सकती हूँ।” अब मैं उस दिन का बेसब्री से इंतज़ार कर रहा हूँ जब मेरी मम्मी फिर से ज़िंदा होगी, और देखेगी कि उसकी प्रार्थना सचमुच पूरी हुई है!—यूहन्ना ५:२८.
अगस्त ८, १९४७ में भाई शूबर्ट की टॉक सुनने के चार महीने बाद ही मैंने यहोवा को अपना जीवन समर्पित किया, और इसे लाइपसिक में हुए एक सम्मेलन में बपतिस्मा लेकर ज़ाहिर किया। ऐसा करके आखिरकार मैंने परमेश्वर की सेवा करने का वादा निभाया। जल्द ही मैं पायनियर बन गया, जैसा कि यहोवा के साक्षियों में पूर्ण-समय के प्रचारकों को पुकारा जाता है। उस वक्त उस क्षेत्र में करीब ४०० पायनियर थे, और बाद में वह क्षेत्र जर्मन गणराज्य या पूर्वी जर्मनी बन गया।
विश्वास की परीक्षाएँ
ऑशॉट्स में एक पड़ोसी चाहता था कि मैं मार्क्सवादी बन जाऊँ, उसने मुझे लालच दिया कि अगर मैं जर्मनी की सोशलिस्ट यूनिट पार्टी (SED) में शामिल हो जाऊँ तो मेरी यूनीवर्सिटी शिक्षा का खर्चा राज्य उठाएगा। मैंने उसके इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया ठीक जैसे यीशु ने भी शैतान के प्रस्ताव को ठुकरा दिया था।—मत्ती ४:८-१०.
अप्रैल १९४९ में एक दिन मेरे काम की जगह दो पुलिसवाले आए और उन्होंने मुझे अपने साथ चलने के लिए कहा। वे मुझे सोवियत खुफिया विभाग के आफिस ले गए, वहाँ मुझ पर यह इलज़ाम लगाया गया कि मैं पश्चिम के पूँजीवादियों के लिए काम करता हूँ। उन्होंने कहा कि तुम घर-घर का प्रचार जारी रख सकते हो मगर खुद को बेकसूर साबित करने के लिए तुम्हें रिपोर्ट देते रहनी होगी कि कौन सोवियत यूनियन के या SED के खिलाफ बातें करते हैं या कौन यहोवा के साक्षियों की सभाओं में जाते हैं। जब मैंने उनकी बात मानने से इन्कार कर दिया तो उन्होंने मुझे कैदखाने में डाल दिया। बाद में मुझे एक ऐसी जगह ले जाया गया जो मिलिटरी कोर्ट-सा लगता था। मुझे क्या सज़ा सुनाई गई: साईबीरिया में १५ साल की कैद में कड़ी मज़दूरी!
क्योंकि मैं शांत खड़ा रहा था इसलिए अफसरों को मुझ पर ताज्जुब हुआ। तब उन्होंने मुझसे कहा कि तुम्हारी सज़ा तो लिख दी गई है मगर इतना ही काफी है कि तुम हर हफ्ते आकर हमें रिपोर्ट करो और जिस दिन तुमने हमें सहयोग नहीं दिया, उसी दिन तुम्हें गिरफ्तार कर लिया जाएगा। इस बारे में मैं तजुर्बेकार भाइयों से सलाह लेना चाहता था इसलिए मैं मगदेबर्ग गया जहाँ उस वक्त वॉच टावर सोसाइटी का ब्रांच आफिस था। वहाँ जाना इतना आसान नहीं था क्योंकि मुझ पर कड़ी नज़र रखी जा रही थी। मगदेबर्ग के लीगल डिपार्टमेंट में एर्नस्ट वाउ काम करता था उसने मुझसे कहा: “लड़ोगे तो जीत जाओगे। समझौता किया तो हार जाओगे। हमने तो यही बात यातना शिविर में सीखी थी।”a इस सलाह से मुझे मदद मिली जिससे मैं परमेश्वर की सेवा करने का वादा निभा पाया।
पाबंदी और दुबारा गिरफ्तारी
जुलाई १९५० में मुझे सेवा करने के लिए सफरी ओवरसियर नियुक्त किया गया। लेकिन, अगस्त ३० को पुलिस ने मगदेबर्ग में हमारी जगह पर छापा मारा, और प्रचार कार्य पर पाबंदी लगा दी। इसलिए मुझे दूसरा काम दे दिया गया। अब मुझे पॉल हिर्शबर्ग के साथ करीब ५० कलीसियाओं में जाना था और हरेक कलीसिया में दो-तीन दिन बिताते हुए भाइयों को मदद करनी थी ताकि पाबंदी के बावजूद वे सेवकाई जारी रख सकें। बाद के महीनों में मैं करीब छः बार पुलिस के हाथों से बच निकला!
एक कलीसिया में एक ऐसा आदमी चुपके से शामिल हो गया था जिसने बाद में स्टासी द स्टेट सिक्योरटी सर्विस से मिलकर हमारे साथ धोखा किया। इस वज़ह से मुझे और पॉल को जुलाई १९५१ में एक गली में पाँच बंदूकधारियों ने गिरफ्तार कर लिया। वह घटना याद करने पर हम देख सकते हैं कि यहोवा के संगठन पर जितना हमें विश्वास करना चाहिए था उतना हमने नहीं किया था। हमें बुज़ुर्ग भाइयों ने पहले से बताया था कि हम कभी भी इकट्ठे साथ-साथ न चलें। मगर खुद पर हद से ज़्यादा विश्वास के कारण हम अपनी आज़ादी गवाँ बैठे! और-तो-और हमने इस बारे में कभी बात भी नहीं की थी कि अगर कभी पकड़े जाएँ तब हम क्या कहेंगे।
मैं कैदखाने में अकेला पड़ा था, और मदद के लिए फूट-फूटकर रोते हुए प्रार्थना कर रहा था कि यहोवा मुझे ताकत दीजिए जिससे कि मैं अपने भाइयों के बारे में कुछ न बताऊँ और न ही अपने विश्वास का समझौता करूँ। उसके बाद मुझे नींद आ गई, जब मुझे अपने दोस्त पॉल की आवाज़ सुनाई दी तो अचानक ही मैं उठ बैठा। मेरे कमरे के ऊपरवाले कमरे में स्टासी उससे सवाल कर रहे थे। उस रात गर्मी और नमी थी, और बालकनी का दरवाजा खुला था इसलिए मुझे धीमी-धीमी आवाज़ में सब कुछ सुनाई दे रहा था। बाद में जब मुझ से सवाल किए गए तो मैंने भी उन्हीं जवाबों को दोहरा दिया और यह देखकर अधिकारी लोग ताज्जुब करने लगे। “संकट के दिन मुझे पुकार; मैं तुझे छुड़ाऊंगा,” मुझे अपनी मम्मी का यह बाइबल वचन बार-बार याद आ रहा था, और इससे मुझे बहुत हिम्मत मिली।—भजन ५०:१५.
हमारी पूछताछ के बाद और मुकद्दमे से पहले, मुझे और पॉल को पाँच महीने के लिए पहले हेल में स्टासी कैदखाने में फिर मगदेबर्ग में रखा गया। जब मैं मगदेबर्ग में था तब अकसर मुझे अपनी ब्रांच की झलक देखने को मिलती थी जो बंद पड़ी थी। मैं सोचता कि काश मैं उसमें काम कर रहा होता इसके बजाए कि मैं यहाँ कैद में पड़ा हूँ! फरवरी १९५२ में हमें सज़ा सुना दी गई: “१० साल की कैद और २० साल के लिए नागरिक अधिकारों से वंचित।”
कैद में विश्वास बनाए रखना
कैद में थोड़े समय तक उन यहोवा के साक्षियों के कपड़ो पर जिन्हें कम-से-कम दस साल की सज़ा सुनाई गई थी, कुछ खास किस्म का पहचान-चिन्ह लगाया जाता था। हमारी पैंट की एक साइड और जैकेट की एक बाँह पर लाल रंग की टेप सिल दी जाती थी। इसके अलावा पहरेदारों की चेतावनी के लिए कि हम बहुत खतरनाक अपराधी हैं, हमारे कमरे के बाहर लाल रंग का एक छोटा-सा गोल कार्ड-बोर्ड का टुकड़ा लगा दिया जाता था।
दरअसल अधिकारी हमें अपराधियों से भी ज़्यादा खतरनाक समझते थे। हमें बाइबल रखने की मनाही थी, एक पहरेदार ने इसकी वज़ह बताई: “एक यहोवा के साक्षी के हाथ में बाइबल का होना बिलकुल वैसा है, जैसे अपराधी के हाथ में बंदूक।” बाइबल के वचनों को पढ़ने के लिए हम एक सोवियत लेखक लिओ टोलस्टॉय की किताबें पढ़ते थे क्योंकि वह अकसर अपनी किताबों में बाइबल के वचन इस्तेमाल करता था। और हम उन वचनों को रट लेते थे।
सन् १९५१ में गिरफ्तार होने से पहले मेरी मँगनी एलज़ॉ रेम से हो गई थी। जब-जब सम्भव होता वह जेल में मुझसे मिलने आती और महीने में एक बार मेरे लिए खाने का पार्सल भेजती। वह इन पार्सलों में आध्यात्मिक खाना भी छिपाकर भेजती थी। एक बार उसने एक वॉच टावर लेख कुछ सॉसेजीज़ में छिपाकर भेजा। पहरेदार जबकि सॉसेजीज़ के टुकड़े-टुकड़े करके देखते थे कि कहीं उसमें कुछ छिपाया तो नहीं गया है, मगर इस बार पार्सल उस वक्त आया जब दिन की ड्यूटी खत्म होने पर थी, और इस वज़ह से पार्सल को चैक नहीं किया गया।
उस समय कार्ल हाइंज़ क्लेब और मैं कैदखाने के छोटे-से कमरे में रहते थे और हमारे साथ तीन ऐसे लोग रहते थे जो साक्षी नहीं थे। ऐसी हालत में दूसरों से नज़र बचाकर हम वॉच टावर कैसे पढ़ सकते थे? हम एक्टिंग करते थे कि हम कोई किताब पढ़ रहे हैं पर असल में किताब के अंदर वॉच टावर का लेख छुपाकर पढ़ते थे। पढ़ने के बाद इस बहुमूल्य भोजन को हम दूसरे साक्षियों को दे देते थे।
कैद में भी हम मौके का फायदा उठाकर दूसरों को परमेश्वर के राज्य के बारे में बताते थे। और इसलिए जब एक साथी कैदी विश्वासी बन गया तो मुझे बहुत खुशी हुई।—मत्ती २४:१४.
दुबारा पूर्ण-समय सेवकाई शुरू की
छः साल सलाखों के पीछे रहने के बाद अप्रैल १, १९५७ में मुझे रिहा कर दिया गया। और रिहा होने के बाद, दो हफ्ते के अंदर ही मैंने एलजॉ से शादी कर ली। जब स्टासी को मेरे छूटने की खबर मिली, तो वे मुझे फिर से कैद में डालने के बहाने ढूँढ़ने लगे। इससे बचने के लिए मैं और एलजॉ बॉडर क्रॉस करके पश्चिम बर्लिन में रहने चले गए।
जब हम पश्चिम बर्लिन पहुँचे तो सोसाइटी ने हमसे पूछा कि भविष्य में हम क्या करने की सोच रहे हैं। हमने उन्हें बताया कि हममें से एक तो पायनियरिंग करेगा और दूसरा कोई नौकरी।
उन्होंने पूछा “अगर आप दोनों को पायनियर बना दिया जाए तो आपको कैसा लगेगा?”
हमने जवाब दिया, “अगर ऐसा हो सकता है तो हम एकदम तैयार हैं।”
हमें गुज़ारे के लिए हर महीने थोड़ा पैसा दिया जाता था, इस तरह १९५८ में हमने स्पेशल पायनियरिंग शुरू कर दी। और तब हमें कितनी खुशी मिली जब हमने देखा कि जिनके साथ हमने अध्ययन किया था, उन्होंने अपनी ज़िंदगी में परिवर्तन किया और यहोवा के सेवक बन गए! दस साल स्पेशल पायनियरिंग करने से हमने सीखा कि पति-पत्नी के रूप में कैसे एकता से काम करना चाहिए। एलजॉ हमेशा मेरे साथ रहती, चाहे मैं गाड़ी ही क्यों न ठीक कर रहा होता। हम साथ मिलकर पढ़ते, और मिलकर प्रार्थना करते।
सन् १९६९ में हमें सफरी काम के लिए नियुक्त किया गया, हर हफ्ते हम अलग-अलग कलीसियाओं के सदस्यों की मदद करते। सफरी काम में योज़ेफ बॉर्ट बहुत अनुभवी था उसने मुझे यह सलाह दी: “अगर तुम इस नियुक्त काम में सफल होना चाहते हो तो बस यह ध्यान रखो कि भाइयों से एक भाई की तरह पेश आओ।” मैंने उसकी सलाह को मानने की पूरी कोशिश की। नतीजा यह हुआ कि संगी साक्षियों के साथ मेरा संबंध और अच्छा बन गया साथ-ही जब कभी मुझे किसी को ताड़ना देनी होती तो ऐसा करना मेरे लिए बहुत आसान हो जाता था।
सन् १९७२ में एलजॉ को कैंसर हो गया इसलिए उसका ऑपरेशन करवाना पड़ा। बाद में उसे गठिए का रोग हो गया। हालाँकि उसे बहुत दर्द होता था मगर फिर भी वह हर कलीसिया में सेवा करने के लिए मेरे साथ चलती, और जितना हो सकता उतना वह बहनों के साथ जाकर सेवकाई करती थी।
ज़रूरत के मुताबिक ढलना
सन् १९८४ में मेरे सास-ससुर को लगातार देखभाल की ज़रूरत थी, इसलिए हमने सफरी काम बंद कर दिया और उनके मरने तक, चार साल उनकी देखभाल करते रहे। (१ तीमुथियुस ५:८) फिर १९८९ में एलजॉ बहुत बीमार हो गई। शुक्र है कि वह थोड़ी ठीक हो गई मगर घर का सारा काम मुझे ही करना पड़ता है। आज भी मैं यह सीख रहा हूँ कि अगर कोई दुःखी या परेशान है तो उसके साथ कैसे व्यवहार करना चाहिए। इन सब दुःख-तकलीफों के बावजूद आध्यात्मिक बातों के प्रति हमारा प्रेम कभी कम नहीं हुआ।
शुक्र है कि हम आज भी पायनियरिंग कर रहे हैं। हमने यह सीख लिया है कि न तो कोई पद महत्त्व रखता है न ही यह कि हम कितना कर रहे हैं बल्कि महत्त्वपूर्ण यह है कि हम हमेशा वफादारी से काम करते रहें। हम अपने परमेश्वर, यहोवा की सेवा करते रहना चाहते हैं, कुछ सालों के लिए नहीं, मगर हमेशा-हमेशा के लिए। अपने अनुभव से हमें भविष्य के लिए बुहत ही अच्छी शिक्षा मिली है। यहोवा ने हमें इतनी ताकत दी कि हम खराब से खराब हालतों में भी उसकी महिमा कर सके।—फिलिप्पियों ४:१३.
[फुटनोट]
a अगस्त १, १९९१ की प्रहरीदुर्ग (अंग्रेज़ी) में पेज २५ से २९ पर एर्नस्ट वाउ की जीवन कथा दी गई है।
[पेज 23 पर तसवीर]
मैं यहाँ मगदेबर्ग में कैद था
[चित्र का श्रेय]
Gedenkstätte Moritzplatz Magdeburg für die Opfer politischer Gewalt; Foto: Fredi Fröschki, Magdeburg
[पेज 23 पर तसवीर]
जब सन् १९५७ में हमारी शादी हुई
[पेज 23 पर तसवीर]
आज एलज़ॉ के साथ