वॉचटावर ऑनलाइन लाइब्रेरी
वॉचटावर
ऑनलाइन लाइब्रेरी
हिंदी
  • बाइबल
  • प्रकाशन
  • सभाएँ
  • w96 11/1 पेज 22-27
  • ‘पार उतरने’ के ५० से भी ज़्यादा साल

इस भाग के लिए कोई वीडियो नहीं है।

माफ कीजिए, वीडियो डाउनलोड नहीं हो पा रहा है।

  • ‘पार उतरने’ के ५० से भी ज़्यादा साल
  • प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1996
  • उपशीर्षक
  • मिलते-जुलते लेख
  • मेरे सवालों के जवाब
  • हिरासत में
  • मृत्यु दण्ड
  • युद्धोतर गतिविधियाँ
  • अब और अकेला नहीं
  • यहोवा की भरपूर आशिष
  • यहोवा के प्रेममय हाथ के अधीन सेवा करना
    प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1996
  • जो यहोवा का हक बनता है, उसे देना
    प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1999
  • बचपन से धैर्यपूर्वक यहोवा की बाट जोहना
    प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1997
  • यहोवा ने “असीम सामर्थ” दी है
    प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—2002
और देखिए
प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1996
w96 11/1 पेज 22-27

‘पार उतरने’ के ५० से भी ज़्यादा साल

इमानवील पॆटरकीस द्वारा बताया गया

उन्‍नीस शताब्दियों पहले प्रेरित पौलुस ने एक असामान्य निमंत्रण प्राप्त किया: “पार उतरकर मकिदुनिया में आ; और हमारी सहायता कर।” पौलुस ने स्वेच्छा से “सुसमाचार सुनाने के” इस नए अवसर को स्वीकार कर लिया। (प्रेरितों १६:९, १०) हालाँकि जो निमंत्रण मैंने प्राप्त किया वह इतनी पीछे तक नहीं जाता, फिर भी यह ५० से भी ज़्यादा साल पहले था कि मैं यशायाह ६:८ की भावना: “मैं यहां हूं! मुझे भेज,” के साथ नए क्षेत्रों में “पार उतरकर” जाने के लिए तैयार हुआ था। मेरी अनेक यात्राओं की वजह से मेरा उपनाम सदाबहार पर्यटक पड़ा, लेकिन मेरी गतिविधियाँ पर्यटन से बहुत कम मेल खाती थीं। कई बार, अपने होटल के कमरे पर पहुँचने के बाद, मैं अपने घुटनों के बल बैठा और यहोवा को उसकी सुरक्षा के लिए धन्यवाद किया।

मेरा जन्म जनवरी १६, १९१६ को यॆरॉपट्रा, क्रेटे में, एक बहुत ही धार्मिक रूढ़िवादी परिवार में हुआ था। जब मैं एक शिशु था, तभी से, माँ मुझे और मेरी तीन बहनों को रविवार को गिरजे ले जाती थी। जहाँ तक मेरे पिता का सवाल है, वो घर पर रहकर बाइबल पढ़ना पसन्द करते थे। मैं अपने पिता—को पूज्य मानता था, एक ईमानदार, अच्छे, और क्षमाशील व्यक्‍ति—और उनकी मृत्यु ने, जब मैं नौ साल का था, मुझे बुरी तरह प्रभावित किया।

मुझे याद है कि जब मैं पाँच का था, मैंने स्कूल में एक पाठ पढ़ा जो कहता है: “जो कुछ भी हमारे चारों ओर है वह परमेश्‍वर के अस्तित्त्व की घोषणा करता है।” जैसे-जैसे मैं बड़ा हुआ, मैं सम्पूर्ण रीति से इस बात से क़ायल था। अत:, ११ साल की उम्र में, मैंने भजन १०४:२४ को एक निबन्ध लिखने के लिए विषय के रूप में चुना: “हे यहोवा तेरे काम अनगिनित हैं! इन सब वस्तुओं को तू ने बुद्धि से बनाया है; पृथ्वी तेरी सम्पत्ति से परिपूर्ण है।” मैं प्रकृति के आश्‍चर्यों से मोहित था, यहाँ तक कि ऐसी साधारण चीज़ों से जैसे एक बीज छोटे-छोटे पंखों से सज्जित होता है ताकि वह पवन पर सवार होकर अपने जनक पेड़ की छाया से दूर चला जाए। मेरे निबन्ध दे देने के एक सप्ताह बाद, मेरे अध्यापक ने इसे सारी कक्षा को पढ़कर सुनाया, और बाद में सारे स्कूल को पढ़कर सुनाया। उस समय, अध्यापक साम्यवादी विचारों के विरुद्ध लड़ रहे थे और परमेश्‍वर के अस्तित्त्व के बारे में मेरी सफ़ाई को सुनने में ख़ुश थे। जहाँ तक मेरा सवाल है, मैं सृष्टिकर्ता में अपने विश्‍वास को व्यक्‍त करने में ख़ुश था।

मेरे सवालों के जवाब

तीसादि के आरम्भ में यहोवा के साक्षियों से मेरी पहली मुलाक़ात मेरी याद में अब भी ताज़ा है। इमानवील लीऑनूडॉकीस क्रेटे के सभी नगरों और गाँवों में प्रचार कर रहा था। मैंने उससे अनेक पुस्तिकाएँ स्वीकार कीं, लेकिन जिस पर मेरी आँखे जम गयीं वह मृत जन कहाँ हैं? (अंग्रेज़ी) नामक पुस्तिका थी। मुझे मृत्यु का इतना विकृत भय था कि मैं उस कमरे में भी प्रवेश नहीं करता था जिसमें मेरे पिता की मृत्यु हुई थी। जैसे-जैसे मैंने उस पुस्तिका को बार-बार पढ़ा और मृतकों की दशा में बाइबल जो सिखाती है उसे जाना, तो मुझे महसूस हुआ कि मेरा अंधविश्‍वासी भय ग़ायब हो गया।

गर्मियों के दौरान साल में एक बार, साक्षी हमारे नगर में आते और मेरे पढ़ने के लिए ज़्यादा साहित्य लाते। थोड़ा-थोड़ा करके शास्त्र की मेरी समझ बढ़ी, लेकिन मैं रूढ़िवादी चर्च में उपस्थित होता रहा। लेकिन, पुस्तक छुटकारा (अंग्रेज़ी) एक मोड़ साबित हुई। इसने स्पष्ट रूप से यहोवा के संगठन और शैतान के संगठन के बीच भिन्‍नता दिखाई। तब, मैंने और ज़्यादा नियमित रूप से बाइबल का और वॉच टावर सोसाइटी के किसी भी साहित्य का जो मेरे हाथों लग सकता था उसका अध्ययन करना शुरू कर दिया। क्योंकि यूनान में यहोवा के साक्षियों पर प्रतिबन्ध था, मैं गुप्त रूप से रात को अध्ययन करता। फिर भी, जो मैं सीख रहा था उसके बारे में मैं इतना जोशीला था कि मैं दूसरों से इसके बारे में बातचीत करने से ख़ुद को रोक नहीं सकता था। इसमें ज़्यादा देर नहीं लगी जब पुलिस ने मुझमें दिलचस्पी लेनी शुरू कर दी, साहित्य की तलाश में नियमित रूप से दिन-रात के किसी भी घंटे चले आते।

वर्ष १९३६ में, १२० किलोमीटर दूर इरैकलीअन में, मैं पहली बार एक सभा में उपस्थित हुआ। साक्षियों से भेंट करके मैं कितना ख़ुश था। उनमे से अधिकांश जन साधारण पुरुष थे, अधिकतर किसान थे, लेकिन उन्होंने इस बात की पुष्टि करने में मेरी सहायता की कि यही सच्चाई है। यहोवा को मेरा समर्पण उसी वक़्त किया गया।

मेरा बपतिस्मा एक ऐसी घटना है जिसे मैं कभी नहीं भूल सकता। १९३८ की एक रात को, मुझे और मेरे दो बाइबल विद्यार्थियों को भाई लीअनोडॉकीस द्वारा घुप अंधेरे में समुद्र-तट पर ले जाया गया। एक प्रार्थना करने के बाद, उसने हमें पानी में निमज्जित किया।

हिरासत में

ज़्यादा बड़ी बात न कहूँ तो, जब पहली बार मैं प्रचार करने को गया, तो वह घटनापूर्ण था। मैं स्कूल के एक पुराने मित्र से मिला जो एक पादरी बन गया था, और हम दोनों ने साथ में बहुत बढ़िया चर्चा की। लेकिन बाद में उसने समझाया कि बिशप के आदेश के अनुसार, उसे मुझे हिरासत में करवाना होता। जब हम मेयर के दत्नतर में पड़ोस के गाँव से पुलिस के आने का इन्तज़ार कर रहे थे, बाहर एक भीड़ जमा हो गई। सो मैंने एक यूनानी नया नियम ले लिया जो दत्नतर में पड़ा था और मत्ती अध्याय २४ पर आधारित उन्हें एक भाषण देने लगा। पहले-पहल तो लोग सुनना नहीं चाहते थे, लेकिन पादरी ने दख़ल दी। “इसे बोलने दो,” उसने कहा। “यह हमारी बाइबल है।” मैं डेढ़ घंटे तक बोलने में समर्थ हुआ। इस प्रकार, सेवकाई में मेरा पहला दिन मेरे पहले जन भाषण देने का भी अवसर था। क्योंकि जब मैंने समाप्त किया तब तक पुलिस नहीं आयी थी, तो मेयर और पादरी ने फ़ैसला किया कि वे लोगों के समूह द्वारा मुझे नगर से बाहर भगाएँ। सड़क के पहले मोड़ पर, उन पत्थरों से बचने के लिए जो उन्होंने फेंके मैं जितना तेज़ भाग सकता था मैंने भागना शुरू किया।

अगले दिन दो पुलिसवालों ने, जिनके साथ पादरी था, मुझे मेरे कार्य-स्थल पर हिरासत में ले लिया। पुलिस स्टेशन में, मैं उन्हें बाइबल से गवाही देने में समर्थ हुआ, लेकिन क्योंकि मेरे बाइबल साहित्य पर बिशप की मुहर, जो क़ानून की माँग थी, नहीं थी, मुझ पर धर्मांतरण और अनाधिकृत साहित्य वितरित करने का आरोप लगाया गया। मुझे जाँच होने तक छोड़ दिया गया था।

मेरी जाँच एक महीने बाद हुई। अपनी सफ़ाई में मैंने कहा कि मैं मात्र प्रचार करने की मसीह की आज्ञा का पालन कर रहा था। (मत्ती २८:१९, २०) न्यायाधीश ने कटु रूप से जवाब दिया: “मेरे बच्चे, जिसने यह आज्ञा दी थी उसे सूली पर चढ़ा दिया गया था। बदक़िस्मती से, मेरे पास तुम्हें वैसी ही सज़ा देने का अधिकार नहीं है।” लेकिन, एक युवा वक़ील जिसे मैं नहीं जानता था मेरी प्रतिरक्षा में खड़ा हुआ, और कहा कि चारों ओर इतने अधिक साम्यवाद और नास्तिकवाद के होते हुए, अदालत को इस बात पर गर्व होना चाहिए कि ऐसे युवक भी हैं जो परमेश्‍वर के वचन के समर्थन के लिए तैयार हैं। वह आगे आया और गर्म-जोशी के साथ मेरी लिखित सफ़ाई के बारे में मुझे बधाई दी, जो मेरी फाईल में थी। इस बात से प्रभावित होकर कि मैं नवयुवक था, उसने मेरा मुक़द्दमा मुत्नत लड़ने का प्रस्ताव रखा। कम-से-कम तीन महीने के बजाय, मुझे मात्र दस दिन की सज़ा और ३००-दिरहम जुर्माना सुनाया गया। ऐसे विरोध ने यहोवा की सेवा करने और सच्चाई का समर्थन करने के मेरे संकल्प को केवल दृढ़ ही किया।

एक अन्य अवसर पर जब मुझे हिरासत में लिया गया, तो न्यायाधीश ने जिस सहजता से मैं बाइबल को उद्धृत कर रहा था, उस पर ध्यान दिया। उसने यह कहते हुए बिशप को अपने दत्नतर से जाने के लिए कहा, “तुमने अपना काम कर दिया। अब मैं इसे देख लूँगा।” उसके बाद उसने अपनी बाइबल निकाली, और हमने सारी दोपहर परमेश्‍वर के राज्य के बारे में बातचीत की। ऐसी घटनाओं ने कठिनाइयों के बावजूद भी मुझे आगे बढ़ते रहने के लिए प्रोत्साहित किया।

मृत्यु दण्ड

वर्ष १९४० में, मुझे सैन्य सेवा के लिए बुलाया गया और मैंने यह समझाते हुए एक पत्र लिखा कि क्यों मैं इसमें प्रेवश करने के लिए राज़ी नहीं हो सकता था। दो दिन बाद मुझे हिरासत में ले लिया गया और पुलिस द्वारा बुरी तरह पीटा गया। तब मुझे अलबेनिया की सरहद पर भेज दिया गया, जहाँ मेरा कोर्ट-मार्शल किया गया क्योंकि मैंने लड़ने से इनकार कर दिया था। सैन्य अधिकारियों ने मुझे बताया कि वे यह जानने में दिलचस्पी नहीं रखते थे कि क्या मैं सही था या ग़लत, बल्कि वे इस बात में ज़्यादा दिलचस्पी रखते थे कि मेरे उदाहरण से सैनिकों पर क्या असर पड़ सकता था। मुझे मृत्यु दण्ड दिया गया, लेकिन एक क़ानूनी त्रुटि के कारण, जिससे मुझे बड़ी राहत हुई, इस दण्ड को दस साल के कठोर परिश्रम में बदल दिया गया। मैंने अपने जीवन के अगले कुछ महीने यूनान के एक सैन्य जेल में कठिन परिस्थितियों में बिताए, जिससे की आज तक मैं उसके शारीरिक प्रभावों को भुगत रहा हूँ।

लेकिन, जेल ने मुझे प्रचार करने से नहीं रोका। निश्‍चित ही नहीं रोका! बातचीत शुरू करना आसान था, क्योंकि अनेक लोग जिज्ञासु थे कि एक नागरिक सैन्य जेल में क्यों था। एक निष्कपट युवा व्यक्‍ति के साथ एक ऐसी बातचीत जेल के आँगन में बाइबल अध्ययन की ओर ले गई। अड़तीस साल बाद मैं इस पुरुष से दोबारा एक सम्मेलन में मिला। उसने सच्चाई को स्वीकार किया था और वह लॆफ़कॉस के द्वीप में एक कलीसिया ओवरसियर के तौर पर सेवा कर रहा था।

जब हिटलर की सेनाओं ने १९४१ में यूगोस्लाविया में आक्रमण किया, हमें और दूर दक्षिण में प्रॆवज़ॉ के एक जेल में स्थानांतरित कर दिया गया। यात्रा के दौरान, हमारे संरक्षक-दस्ते पर जर्मन बमवर्षकों द्वारा हमला किया गया, और हम क़ैदियों को कुछ भी भोजन नहीं दिया गया। जब वह थोड़ी सी डबलरोटी जो मेरे पास थी ख़त्म हो गई, तब मैंने परमेश्‍वर से प्रार्थना की: “मृत्यु दण्ड से मुझे बचाने के बाद यदि मुझे भूख से मरने देने की तेरी इच्छा है, तो तेरी इच्छा पूरी हो।”

उसके अगले दिन हाज़िरी लेने के दौरान एक अधिकारी ने मुझे अलग बुलाया और, यह जानने के बाद कि मैं कहाँ का था, मेरे माता-पिता कौन थे, और मैं जेल में क्यों था, उसने मुझे अपने पीछे आने के लिए कहा। वह मुझे नगर में अधिकारियों के भोजन-कक्ष में ले गया, और मुझे डबलरोटी, पनीर, भुने हुए मेम्ने से सजी एक मेज़ दिखायी और मुझे खाने के लिए कहा। लेकिन मैंने समझाया कि मेरा अन्तःकरण मुझे खाने नहीं देगा, क्योंकि अन्य ६० क़ैदियों ने कुछ भी नहीं खाया था। अधिकारी ने जवाब दिया: “मैं सबको नहीं खिला सकता! तुम्हारे पिता मेरे पिता के प्रति काफ़ी उदार थे। मेरी तुम्हारे प्रति नैतिक बाध्यता है लेकिन दूसरों के प्रति नहीं।” “अगर ऐसी बात है तो मैं अभी वैसे ही वापस जाता हूँ,” मैंने जवाब दिया। उसने कुछ देर सोचा और फिर मुझे एक बड़ा थैला दिया कि जितना भोजन मैं भर सकता था उतना भर लूँ।

जेल लौटने पर, मैंने थैला नीचे रखा और कहा: “सज्जनों, यह आपके लिए है।” संयोग से, उससे पहली शाम को, मुझे दूसरे क़ैदियों की दुर्दशा के लिए ज़िम्मेदार होने का दोषी बताया गया था क्योंकि मैंने उनके साथ कुँवारी मरियम से उनकी प्रार्थना में हिस्सा नहीं लिया था। लेकिन, एक साम्यवादी मेरी प्रतिरक्षा के लिए आगे बढ़ा था। अब भोजन को देखने के बाद, उसने दूसरों से कहा: “कहाँ है तुम्हारी ‘कुँवारी मरियम’? तुमने कहा था कि इस आदमी की वजह से हम मर जाएँगे, फिर भी यही वह व्यक्‍ति है जो हमारे लिए भोजन लाया है।” तब उसने मेरी तरफ़ देखकर कहा: “इमानवील! आओ और धन्यवाद की प्रार्थना करो।”

उसके कुछ समय बाद, जर्मन सेनाओं के आगे बढ़ने की वजह से जेल रक्षक भाग गए, जिसने दासता के द्वारों को खोल दिया। इससे पहले कि मैं मई १९४१ के अन्त में ऐथेन्स जाता, मैंने दूसरे साक्षियों को तलाशने के लिए पतरास का रास्ता लिया । वहाँ मैं कुछ कपड़े और जूते पाने में और एक से ज़्यादा साल बाद पहला स्नान लेने में समर्थ हुआ। क़ब्ज़े के समाप्त होने तक, जर्मन लगातार मुझे रोकते जब मैं प्रचार कर रहा होता था, लेकिन उन्होंने कभी-भी मुझे हिरासत में नहीं लिया। उनमें से एक ने कहा: “जर्मनी में हम यहोवा के साक्षियों को गोली मार देते हैं। लेकिन यहाँ हम चाहते हैं कि हमारे सभी शत्रु साक्षी होते!”

युद्धोतर गतिविधियाँ

मानो यूनान में जी-भर के लड़ाईयाँ नहीं हुईं थीं, जो १९४६ से १९४९ तक गृह युद्ध द्वारा और ज़्यादा टुकड़े-टुकड़े कर दिया गया, जिसके कारण हज़ारों लोगों की मृत्यु हुई। ऐसे समय में भाइयों को मज़बूत बने रहने के लिए अत्यधिक प्रोत्साहन की ज़रूरत थी जब कि मात्र सभाओं में उपस्थित होना हिरासत में लिए जाना हो सकता था। अनेक भाइयों को उनकी तटस्थ स्थिति के लिए मृत्यु दण्ड दिया गया। लेकिन इसके बावजूद अनेक लोगों ने राज्य सन्देश के प्रति अनुक्रिया दिखायी, और हर सप्ताह हमारे यहाँ एक या दो बपतिस्मे होते थे। १९४७ में, मैंने ऐथेन्स में संस्था के दत्नतरों में दिन और रात में एक सफ़री ओवरसियर की हैसियत से कलीसियाओं को भेंट करना शुरू कर दिया।

१९४८ में, अमरीका में, मुझे गिलियड नामक वॉचटावर बाइबल स्कूल में उपस्थित होने के लिए आमंत्रित किए जाने का आनन्द मिला। लेकिन एक समस्या थी। मेरे पिछले आरोपों के कारण, मैं पासपोर्ट पाने में असमर्थ था। लेकिन, मेरे एक बाइबल विद्यार्थी के एक जनरल से दोस्ताना सम्बन्ध थे। इस विद्यार्थी की बदौलत, मात्र कुछ ही सप्ताहों में मुझे मेरा पासपोर्ट मिल गया। लेकिन मुझे तब चिन्ता हुई, जब मेरे वहाँ जाने से कुछ ही समय पहले, मुझे प्रहरीदुर्ग वितरित करने के लिए हिरासत में ले लिया गया। एक पुलिसवाला मुझे ऐथेन्स की राज्य सुरक्षा पुलिस के प्रमुख के पास ले गया। ताज्जुब की बात है कि वह मेरा एक पड़ोसी निकला! पुलिसवाले ने समझाया कि मुझे क्यों हिरासत में लिया गया था और उसे पत्रिकाओं का गट्ठर दे दिया। मेरे पड़ोसी ने अपनी मेज़ के अन्दर से प्रहरीदुर्ग पत्रिकाओं का ढेर निकाला और मुझसे कहा: “मेरे पास नवीनतम अंक नहीं है। क्या मैं एक प्रति ले सकता हूँ?” ऐसे मामलों में यहोवा के हाथ को देखकर मुझे कितनी राहत मिली!

वर्ष १९५० में गिलियड की १६वीं कक्षा, एक समृद्धीपूर्ण अनुभव था। इसके अन्त में, मेरी नियुक्‍ति साइप्रस में कर दी गई, जहाँ मैंने शीघ्र ही जान लिया कि पादरीवर्ग का विरोध उतना ही प्रचण्ड था जितना कि यूनान में था। हमें अकसर रूढ़िवादी पादरियों द्वारा पागलपन तक भड़कायी हुई धार्मिक सनकियों की भीड़ का सामना करना पड़ा। १९५३ में साइप्रस के लिए मेरे वीज़े का नवीनीकरण नहीं हुआ, और मुझे इस्तानबुल, तुर्की में पुनःनियुक्‍त कर दिया गया। यहाँ एक बार फिर, मेरा रुकना थोड़े दिन का था। तुर्की और यूनान के बीच राजनैतिक तनाव का अर्थ था कि प्रचार कार्य में अच्छे परिणामों के बावजूद, मुझे दूसरी नियुक्‍ति—मिस्र—के लिए जाना था।

जब मैं जेल में था, भजन ५५:६, ७ मेरे मन में आता। दाऊद ने वहाँ मरुभूमि में भाग जाने की कामना को व्यक्‍त किया। मैंने कभी सोचा भी न था कि मैं वाक़ई ऐसी जगह में एक दिन होऊँगा। १९५४ में, रेल और नील नदी की नाँव द्वारा की गयी कई दिनों की थकाऊ यात्रा के बाद, मैं आख़िरकार अपनी मंज़िल—सूडान में, कारटूम पहुँचा। मैं केवल नहाकर सो जाना चाहता था। लेकिन मैं भूल गया कि वह दोपहर थी। छत की टंकी में भरे हुए पानी ने मुझे झुलसा दिया, जिसकी वजह से मुझे कुछ महीनों तक पिथ टोपी पहननी पड़ी जब तक कि मेरे सिर की खाल ठीक नहीं हुई।

अकसर वहाँ मैंने ख़ुद को अकेला पाया, सबसे नज़दीकी कलीसिया से सोलह सौ किलोमीटर दूर सहारा के बीच में अकेले, लेकिन यहोवा मुझे संभाले रहा और लगे रहने की शक्‍ति दी। कभी-कभी प्रोत्साहान एकदम अप्रत्याशित स्रोतों से आया। एक दिन, मैं कारटूम के संग्रहालय के अध्यक्ष से मिला। वह खुले विचारोंवाला व्यक्‍ति था, और हमने एक बढ़िया चर्चा की। यह जानने पर कि मैं यूनानी मूल का हूँ, उसने मुझसे पूछा कि क्या मैं एक छठवीं-शताब्दी के गिरजे में पाई गईं शिल्पकृतियों पर लिखे कुछ अभिलेखों का अनुवाद करने के लिए संग्रहालय जाने के द्वारा उस पर एहसान करता। एक बन्द तहखाने में पाँच घंटों के बाद, चतुर्वर्णी में, यहोवा का नाम धारण करनेवाली एक तश्‍तरी मुझे मिली। मेरी ख़ुशी की कल्पना कीजिए! यूरोप में परमेश्‍वरीय नाम को गिरजों में पाना कोई असामान्य बात नहीं है, लेकिन सहारा के बीच में इसे पाना बहुत ही असाधारण बात थी!

वर्ष १९५८ में अन्तरराष्ट्रीय सम्मेलन के बाद, मुझे भूमध्य के मध्य और निकट-पूर्व और उसके चारों ओर के २६ देशों और क्षेत्रों में भाइयों से भेंट करने के लिए एक ज़ोन ओवरसियर के तौर पर नियुक्‍त किया गया। अकसर मैं नहीं जानता था कि एक कठिन परिस्थिति से कैसे निकला जाए, लेकिन यहोवा ने हमेशा कोई न कोई रास्ता निकाला।

मैं हमेशा उस परवाह से प्रभावित होता रहा जो यहोवा का संगठन उन साक्षियों के लिए दिखाता है जो कुछ देशों में पृथक हैं। एक अवसर पर, मेरी भेंट एक भारतीय भाई से हुई जो तेल के क्षेत्र में काम कर रहा था। प्रत्यक्षतः उस देश में वह एकमात्र साक्षी था। उसके लॉकर में उसके पास १८ विभिन्‍न भाषाओं में प्रकाशन थे, जो उसने अपने सहकर्मियों को दिए थे। यहाँ पर भी, जहाँ सभी विदेशी धर्मों पर सख़्त तौर पर प्रतिबन्ध था, हमारा भाई सुसमाचार प्रचार करने की अपनी ज़िम्मेदारी को नहीं भूला। उसके सहकर्मी यह देखकर प्रभावित हुए कि उसके धर्म के एक प्रतिनिधि को उससे भेंट करने भेजा गया था।

वर्ष १९५९ में मैंने स्पेन और पुर्तगाल की भेंट की। उस समय दोनों ही सैन्य तानाशाही के अधीन थे, जिसमें यहोवा के साक्षियों का कार्य कड़े प्रतिबन्ध के अधीन था। एक महीने में मैं सौ से ज़्यादा सभाओं को संचालित करने में समर्थ था, और भाइयों को प्रोत्साहित किया कि कठिनाइयों के बावजूद हिम्मत न हारें।

अब और अकेला नहीं

क़रीब २० से ज़्यादा वर्षों तक, मैं पूर्ण-समय सेवा में यहोवा की सेवा एक अविवाहित पुरुष के तौर पर करता रहा था, लेकिन अचानक मैंने बिना किसी स्थायी निवास की मेरी निरन्तर यात्राओं से थका हुआ महसूस किया। यह लगभग उस समय था जब मैंने टूनीज़िया में एक ख़ास पायनियर, ऐनी ब्यॉनूची से भेंट की। १९६३ में हमारा विवाह हुआ। यहोवा और सच्चाई के लिए उसका प्रेम, शिक्षा देने की उसकी कला के साथ सेवकाई के लिए उसकी भक्‍ति, और भाषाओं का उसका ज्ञान, उत्तरी और पश्‍चिमी अफ्रीका और इटली में हमारे मिशनरी और सर्किट कार्य के लिए एक वास्तविक आशिष साबित हुए।

अगस्त १९६५ में मेरी पत्नी और मुझे सॆनिगॉल, डाकॉर में नियुक्‍त किया गया, जहाँ मुझे स्थानीय शाखा दत्नतर को संगठित करने का विशेषाधिकार मिला। सॆनिगॉल ऐसा देश था जो अपनी धार्मिक उदारता के लिए उल्लेखनीय था, निःसन्देह उसके राष्ट्रपति लेऑपॉल सॆनघोर के कारण, जो उन अफ्रीकी राज्य प्रमुखों में से एक था जिन्होंने मलावी के राष्ट्रपति बान्डॉ को यहोवा के साक्षियों के समर्थन में उसे भयंकर सताहट के दौरान लिखा था जो १९७० आदी में मलावी में घटित हुई थी।

यहोवा की भरपूर आशिष

वर्ष १९५१ में, जब मैं गिलियड से साइप्रस गया, तो मैंने सात सूटकेसों के साथ यात्रा की। तुर्की जाने के समय, मेरे पास पाँच रह गए थे। लेकिन इतनी यात्रा करने की वजह से, मुझे २०-किलोग्राम (४४-पौंड) सामान सीमा की आदत डालनी पड़ी, जिसमें मेरी फ़ाइलें और मेरा “बेबी” टाइपराइटर शामिल था। एक दिन मैंने भाई नौर से कहा, जो उस समय वॉच टावर सोसाइटी के अध्यक्ष थे: “आपने मुझे भौतिकवाद से बचा लिया। आपने २० किलोग्राम सामान के साथ मुझे जीने के लिए तैयार किया, और मैं संतुष्ठ हूँ।” अनेक चीज़े नहीं थीं, इसके बावजूद मैंने उनका आभाव कभी महसूस नहीं किया।

मेरी यात्राओं के दौरान मेरी प्रमुख समस्या थी देशों में प्रवेश करना और बाहर आना। एक दिन, एक देश में जहाँ कार्य पर प्रतिबन्ध था, एक कस्टम अधिकारी ने मेरी फ़ाइलों की छानबीन शुरू की। इसने उस देश में रह रहे साक्षियों के लिए एक ख़तरा पैदा किया, सो मैंने अपने जैकट में से मेरी पत्नी का एक पत्र निकाला और उस कस्टम अधिकारी से कहा: “मैं देख रहा हूँ कि आपको चिट्ठियाँ पढ़ना पसन्द है। क्या आप मेरी पत्नी का यह पत्र भी पढ़ना पसन्द करेंगे, जो इन फ़ाइलों में नहीं है?” शर्मिंदा महसूस करते हुए, उसने माफ़ी माँगी और मुझे जाने दिया।

वर्ष १९८२ से मेरी पत्नी और मैं फ्रांस के दक्षिण में, नीस में मिशनरियों के तौर पर सेवा कर रहे हैं। गिरते स्वास्थ्य के कारण, मैं अब उतना ज़्यादा नहीं कर पाता जितना कि मैं किया करता था। लेकिन इसका अर्थ यह नहीं है कि हमारा आनन्द कम हो गया है। हमने देखा है कि ‘हमारा परीश्रम व्यर्थ नहीं है।’ (१ कुरिन्थियों १५:५८) मुझे उन अनेक लोगों को, जिनके साथ फिर मुझे वर्षों के दौरान अध्ययन करने का विशेषाधिकार रहा है, साथ ही साथ मेरे परिवार के ४० से ज़्यादा सदस्यों को यहोवा की सेवा वफ़ादारी से करते हुए देखने का आनन्द है।

किसी भी तरह से उन त्यागों के लिए मुझे कोई भी खेद नहीं जिन्हें ‘पार उतरने’ के मेरे जीवन ने शामिल किया। आख़िरकार, जो भी त्याग हम करते हैं उसकी तुलना हम उससे नहीं कर सकते जो यहोवा और उसके पुत्र, मसीह यीशु ने हमारे लिए किया है। जब मैं पिछले ६० वर्षों पर विचार करता हूँ जब से मैंने सच्चाई सीखी है, मैं कह सकता हूँ कि यहोवा ने मुझे भरपूर आशिष दी है। जैसे नीतिवचन १०:२२ कहता है, “धन यहोवा की आशीष ही से मिलता है।”

निःसन्देह, यहोवा की “करुणा जीवन से भी उत्तम है।” (भजन ६३:३) जैसे-जैसे वृद्धावस्था की असुविधाएँ बढ़ती जाती हैं, उत्प्रेरित भजनहार के शब्द अकसर मेरी प्रार्थनाओं में आते हैं: “हे यहोवा मैं तेरा शरणागत हूं; मेरी आशा कभी टूटने न पाए! क्योंकि हे प्रभु यहोवा, मैं तेरी ही बाट जोहता आया हूं, बचपन से मेरा आधार तू है। हे परमेश्‍वर, तू तो मुझ को बचपन ही से सिखाता आया है, और अब तक मैं तेरे आश्‍चर्य कर्मों का प्रचार करता आया हूं। इसलिये हे परमेश्‍वर जब मैं बूढ़ा हो जाऊं, और मेरे बाल पक जाएं, तब भी तू मुझे न छोड़।”—भजन ७१:१, ५, १७, १८.

[पेज 25 पर तसवीरें]

आज, मेरी पत्नी एनी के साथ

    हिंदी साहित्य (1972-2025)
    लॉग-आउट
    लॉग-इन
    • हिंदी
    • दूसरों को भेजें
    • पसंदीदा सेटिंग्स
    • Copyright © 2025 Watch Tower Bible and Tract Society of Pennsylvania
    • इस्तेमाल की शर्तें
    • गोपनीयता नीति
    • गोपनीयता सेटिंग्स
    • JW.ORG
    • लॉग-इन
    दूसरों को भेजें