बचपन से धैर्यपूर्वक यहोवा की बाट जोहना
रूडॉल्फ़ ग्राइखन द्वारा बताया गया
जब मेरी उम्र केवल १२ साल थी, तब मेरे परिवार पर मुसीबत मानो बिजली की तरह गिर पड़ी। पहले, मेरे पिता को जेल में डाला गया। उसके बाद, मुझे और मेरी बहन को ज़बरदस्ती घर से ले जाकर अजनबियों के साथ रहने के लिए भेज दिया गया। बाद में, मुझे और मेरी माँ को गॆस्टापो ने गिरफ़्तार किया। मैं जेल गया, और माँ यातना शिविर पहुँचा दी गयीं।
घटनाओं का यह सिलसिला, उस दुःखदायी सताहट के समय की केवल शुरूआत था जो मैं ने यहोवा के एक साक्षी के रूप में छोटी उम्र में सही थी। कुख्यात नात्ज़ी गॆस्टापो और फिर पूर्वी जर्मनी के श्टाज़ी ने परमेश्वर के प्रति मेरी खराई को तोड़ने की कोशिश की। अब, ५० साल तक उसकी समर्पित सेवा करने के बाद, मैं भजनहार के शब्दों को दोहरा सकता हूँ: “मेरे बचपन से वे मुझ को बार बार क्लेश देते तो आए हैं, परन्तु मुझ पर प्रबल नहीं हुए।” (भजन १२९:२) मैं यहोवा का कितना शुक्रगुज़ार हूँ!
मेरा जन्म जून २, १९२५ के दिन, लाइपसिग, जर्मनी के पास एक छोटे-से नगर लुका में हुआ था। मेरे पैदा होने से पहले ही, मेरे माता-पिता, ऑल्फ्रेत और टॆरेज़ा ने बाइबल विद्यार्थियों, जिस नाम से यहोवा के साक्षी तब जाने जाते थे, के प्रकाशनों में बाइबल सत्य की खनक को पहचान लिया। हमारे घर की दीवारों पर टँगे हुए बाइबल की घटनाओं के चित्रों को हर दिन देखना मुझे याद है। एक चित्र में भेड़िए और मेम्ने, बकरी के बच्चे और चीते, बछड़े और शेर को दिखाया गया था—वे सब शांत थे, उनकी अगुवाई एक छोटा लड़का कर रहा था। (यशायाह ११:६-९) ऐसे चित्रों ने मुझ पर गहरा प्रभाव डाला।
जब कभी संभव होता, मेरे माता-पिता मुझे कलीसिया की गतिविधियों में शामिल करते। उदाहरण के लिए, फरवरी १९३३ में, हिटलर के सत्ता में आने से कुछ ही दिन बाद, “सृष्टि का फ़ोटो-ड्रामा” (अंग्रेज़ी)—उसके स्लाइड, चलचित्र और रिकॉर्ड की गयी व्याख्या सहित—हमारे छोटे-से नगर में दिखाया गया। “फ़ोटो-ड्रामा” के प्रचार अभियान के एक भाग के रूप में, जब मैं एक मालवाहक ट्रक में पीछे बैठकर सारा नगर घूम रहा था, तब मैं कितना रोमांचित था! उस वक़्त मेरी उम्र सिर्फ़ सात साल थी। इस और अन्य अवसरों पर, भाइयों ने मेरी छोटी उम्र के बावजूद मुझे कलीसिया का एक उपयोगी सदस्य होने का एहसास दिलाया। सो बहुत छोटी उम्र से ही, यहोवा ने मुझे सिखाया था और मैं उसके वचन से प्रभावित हुआ था।
यहोवा पर भरोसा रखने के लिए प्रशिक्षित
सख़्त मसीही तटस्थता के कारण, यहोवा के साक्षी नात्ज़ी राजनीति में शामिल नहीं हुए। इसके परिणामस्वरूप, १९३३ में नात्ज़ियों ने प्रचार करने, इकट्ठे होने और हमारा अपना बाइबल साहित्य पढ़ने पर भी प्रतिबंध लगानेवाले नियम पारित किए। सितंबर १९३७ में हमारी कलीसिया में सभी भाइयों को, जिनमें मेरे पिता भी थे, गॆस्टापो ने गिरफ़्तार किया। इस बात से मैं बहुत दुःखी हुआ। मेरे पिता को पाँच साल जेल की सज़ा सुनायी गयी।
घर पर हमारे हालात बहुत बिगड़ गए। लेकिन हमने जल्द ही यहोवा पर भरोसा रखना सीख लिया। एक दिन जब मैं स्कूल से घर आया, तो माँ प्रहरीदुर्ग पढ़ रही थीं। वो मेरे लिए सादा भोजन बनाना चाहती थीं, इसलिए उन्होंने एक छोटी अलमारी पर वह पत्रिका रख दी। भोजन के बाद, जब हम बर्तनों को साफ़ करके रख रहे थे, तो किसी ने ज़ोर से दरवाज़ा खटखटाया। वह एक पुलिसवाला था जो बाइबल साहित्य ढूँढ़ने के लिए हमारे घर की तलाशी लेना चाहता था। मैं बहुत डर गया।
उस दिन कुछ ज़्यादा ही गर्मी पड़ रही थी। सो उस पुलिसवाले ने जो पहला काम किया वह था अपने हॆलमॆट को उतारना और मेज़ पर रखना। उसके बाद उसने तलाशी शुरू की। जब वह मेज़ के नीचे देख रहा था, तब उसका हॆलमॆट फिसलने लगा। सो मेरी माँ ने तुरंत हॆलमॆट उठा लिया और अलमारी पर प्रहरीदुर्ग के ठीक ऊपर रख दिया! उस पुलिसवाले ने हमारे घर का चप्पा-चप्पा छान मारा, लेकिन कोई भी साहित्य उसके हाथ नहीं लगा। हाँ, उसने अपने हॆलमॆट के नीचे देखने की बात सोची ही नहीं। जब वह चलने को तैयार हुआ, तो अपने पीछे रखे हॆलमॆट तक हाथ बढ़ाते वक़्त उसने बुदबुदाकर माँ से माफ़ी माँगी। मैं ने क्या ही राहत महसूस की!
ऐसे अनुभवों ने मुझे ज़्यादा कठिन परीक्षाओं के लिए तैयार किया। उदाहरण के लिए, स्कूल में हिटलर यूथ संगठन का सदस्य बनने के लिए मुझ पर दबाव डाला गया, जिसमें बच्चों को फ़ौजी अनुशासन का प्रशिक्षण दिया जाता था और नात्ज़ी तत्त्वज्ञान की शिक्षा दी जाती थी। कुछ शिक्षकों का निजी लक्ष्य था कि सभी बच्चे इसमें शामिल हों। मेरे शिक्षक, श्री. श्नाइडर को महसूस हुआ होगा कि वे पूरी तरह से असफल रहे थे क्योंकि, मेरे स्कूल में बाक़ी सभी शिक्षकों में केवल वही थे जिनके पास एक विद्यार्थी की कमी थी। मैं वह विद्यार्थी था।
एक दिन श्री. श्नाइडर ने सारी कक्षा को बताया: “बच्चो, कल हम सब पिकनिक पर जाएँगे।” सबको यह विचार अच्छा लगा। उसके बाद उन्होंने कहा: “तुम सबको अपनी हिटलर यूथ पोशाक में आना है ताकि जब हम सड़कों से गुज़रें, तो सभी देख सकें कि तुम अच्छे हिटलर बच्चे हो।” अगली सुबह मुझे छोड़ सभी बच्चे अपनी पोशाकों में आए। उस शिक्षक ने मुझे कक्षा में आगे बुलाया और कहा: “दूसरे लड़कों को देखो और फिर ख़ुद को देखो।” उसने आगे कहा: “मैं जानता हूँ कि तुम्हारे माता-पिता ग़रीब हैं और तुम्हें एक पोशाक ख़रीदकर नहीं दिला सकते, लेकिन मैं तुम्हें कुछ दिखाना चाहता हूँ।” वो मुझे अपनी मेज़ के पास ले गए, दराज़ खोली, और कहा: “मैं तुम्हें यह नयी पोशाक देना चाहता हूँ। अच्छी है ना?”
मैं नात्ज़ी पोशाक पहनने के बजाय मरना पसंद करता। जब मेरे शिक्षक ने देखा कि मेरा उसे पहनने का कोई इरादा नहीं है, तो वह ग़ुस्सा हो गया, और सारी कक्षा मुझ पर चिल्लाने लगी। उसके बाद वो हमें पिकनिक ले गए लेकिन कोशिश की कि पोशाक पहने हुए दूसरे लड़कों के बीच में मुझे चलाकर छुपा ले। लेकिन, नगर के कई लोग मुझे देख सकते थे क्योंकि मैं अपने सहपाठियों से अलग था। सब जानते थे कि मेरे माता-पिता और मैं यहोवा के साक्षी हैं। जब मैं छोटा था तब मुझे ज़रूरी आध्यात्मिक शक्ति देने कि लिए मैं यहोवा का शुक्रगुज़ार हूँ।
सताहट बढ़ती है
सन् १९३८ की शुरूआत में एक दिन, मुझे और मेरी बहन को स्कूल से निकालकर पुलिस की गाड़ी में श्टाट्रोडा के एक सुधार स्कूल में ले जाया गया, जो क़रीब ८० किलोमीटर की दूरी पर था। क्यों? अदालतों ने निर्णय लिया था कि हमें अपने माता-पिता के प्रभाव से निकालकर, नात्ज़ी बच्चों में परिवर्तित करें। जल्द ही सुधार-घर के कार्यकर्ताओं ने देखा कि मेरी बहन और मैं आदर दिखाते थे और आज्ञाकारी थे, हालाँकि हम अपनी मसीही तटस्थता में दृढ़ थे। निदेशिका इतनी प्रभावित हुई कि वह मेरी माँ से ख़ुद मिलना चाहती थी। हमें छूट दी गयी, और माँ को हमसे भेंट करने की अनुमति दी गयी। मेरी बहन, माँ और मैं कितने ख़ुश थे और यहोवा के प्रति आभारी थे कि उन्होंने हमें अवसर दिया ताकि एक पूरा दिन एक-दूसरे को प्रोत्साहन देने के लिए हम साथ-साथ रहें। हमें सचमुच इसकी ज़रूरत थी।
हम सुधार-घर में क़रीब चार महीने रहे। उसके बाद हमें पाना में एक परिवार के साथ रहने के लिए भेजा गया। उन्हें ताकीद की गयी थी कि हमें हमारे रिश्तेदारों से दूर रखें। माँ को मिलने तक नहीं दिया जाता था। फिर भी, कुछेक बार उन्होंने हमसे मिलने का रास्ता ढूँढ़ ही निकाला। उन गिने-चुने अवसरों का फ़ायदा उठाकर, माँ ने हर संभव कोशिश की ताकि हममें यहोवा के प्रति वफ़ादार रहने का दृढ़संकल्प बिठा सकें, चाहे वह किसी भी तरह की परीक्षाओं और परिस्थितियों को अनुमति दे।—१ कुरिन्थियों १०:१३.
और परीक्षाएँ आयीं भी। दिसंबर १५, १९४२ के दिन जब मैं केवल १७ साल का था, गॆस्टापो ने मुझे हिरासत में ले लिया और गेरा नगर में एक कारावास में डाल दिया। क़रीब एक सप्ताह बाद, मेरी माँ को भी गिरफ़्तार किया गया और वो उसी जेल में आयीं जिसमें मैं था। मैं अब भी अवयस्क था, इसलिए अदालत मुझ पर मुक़दमा नहीं चला सकती थी। सो मेरी माँ को और मुझे छः महीने हिरासत में रखा गया, जबकि अदालत मेरे १८वें जन्मदिन का इंतज़ार कर रही थी। जिस दिन मैं १८ का हुआ उसी दिन मुझ पर और माँ पर मुक़दमा चलाया गया।
मैं कुछ समझ पाता, उससे पहले ही मुक़दमा ख़त्म हो चुका था। मैं नहीं जानता था कि मैं अपनी माँ को दुबारा नहीं देखूँगा। मेरे ज़हन में उनकी आख़िरी याद वह है जब मैं ने अदालत में उनको अपने पास ही गहरे रंग की लकड़ी की एक बेंच पर बैठे देखा था। हम दोनों को दोषी करार दिया गया। मुझे चार साल की जेल हुई और माँ को डेढ़ साल की।
उन दिनों में हज़ारों यहोवा के साक्षियों को जेलों और शिविरों में क़ैद रखा गया था। लेकिन, मुझे श्टॉलबर्ग के जेल भेजा गया, जहाँ मैं अकेला साक्षी था। मैं ने कालकोठरी में एक साल से ज़्यादा समय बिताया, लेकिन यहोवा मेरे साथ था। जो प्रेम मैं ने उसके लिए बचपन में विकसित किया था वह मेरे आध्यात्मिक बचाव की कुंजी था।
मई ९, १९४५ के दिन, जब मैं जेल में ढाई साल गुज़ार चुका था, हमें एक ख़ुशख़बरी मिली—युद्ध समाप्त हो चुका था! उस दिन मुझे रिहा किया गया। ११० किलोमीटर पैदल यात्रा के बाद, थकान और भूख से लगभग बीमार मैं घर पहुँचा। मुझे फिर से ठीक होने में महीनों लग गए।
जैसे ही मैं घर पहुँचा, मुझ पर एक के बाद एक दुःखभरी ख़बरों का प्रहार हुआ। सबसे पहले, माँ के बारे में। वे डेढ़ साल तक जेल में रहीं, उसके बाद नात्ज़ियों ने उनसे यहोवा में उनके विश्वास को त्यागनेवाले एक दस्तावेज़ पर दस्तख़त करने के लिए कहा। माँ ने मना कर दिया। सो गॆस्टापो उन्हें रावॆन्सब्रुक में, स्त्रियों के यातना शिविर ले गया। वहाँ युद्ध के ख़त्म होने से ठीक पहले तंद्रिक ज्वर से उनकी मृत्यु हुई। वो बहुत ही साहसी मसीही थीं—कर्मठ योद्धा जिसने कभी भी हार नहीं मानी। यहोवा उन्हें कृपापूर्वक याद करे।
मेरे बड़े भाई वर्नर के बारे में भी ख़बर थी, जिसने कभी यहोवा को समर्पण किया ही नहीं। वह जर्मन सेना में भर्ती हुआ था और रूस में मारा गया। मेरे पिता? वो घर तो आए, लेकिन दुःख की बात है कि वो उन चंद साक्षियों में से थे जिन्होंने अपने विश्वास को त्यागनेवाले उस कुख्यात दस्तावेज़ पर दस्तख़त किए थे। जब मैं ने उन्हें देखा, तो वो उदास और मानसिक रीति से परेशान नज़र आ रहे थे।—२ पतरस २:२०.
जोशपूर्ण आध्यात्मिक कार्य की छोटी अवधि
मार्च १०, १९४६ के दिन, लाइपसिग में युद्ध के बाद अपने पहले सम्मेलन में मैं उपस्थित हुआ। मैं बहुत ही रोमांचित हो उठा जब घोषणा की गयी कि उसी दिन बपतिस्मा होनेवाला था! हालाँकि बहुत साल पहले मैं ने यहोवा को अपना जीवन समर्पित किया था, बपतिस्मा पाने का यह मेरा पहला अवसर था। मैं उस दिन को कभी नहीं भूलूँगा।
मार्च १, १९४७ के दिन, एक महीने पायनियर कार्य करने के बाद, मुझे मागडेबुर्ग के बेथेल में आमंत्रित किया गया। संस्था की इमारतों को गोलाबारी से काफ़ी नुक़सान हुआ था। मरम्मत के काम में हाथ बँटाने का क्या ही विशेषाधिकार था! उन गर्मियों के बाद मुझे विटनबर्ग नगर में ख़ास पायनियर नियुक्त किया गया। कुछ महीनों में मैं ने परमेश्वर के राज्य के सुसमाचार का दूसरों को प्रचार करने में २०० से ज़्यादा घंटे बिताए थे। फिर से आज़ाद होकर मैं कितना ख़ुश था—युद्ध नहीं, सताहट नहीं, जेल नहीं!
दुःख की बात है, वह आज़ादी ज़्यादा दिन तक नहीं चली। युद्ध के बाद जर्मनी का विभाजन हुआ, और जिस क्षेत्र में मैं रहता था वह साम्यवादियों के कब्ज़े में आ गया। सितंबर १९५० में, पूर्वी जर्मनी की श्टाज़ी नामक गुप्त पुलिस, भाइयों को एक-के-बाद-एक गिरफ़्तार करने लगी। मुझ पर बेतुके इलज़ाम लगाए गए थे। मुझ पर अमरीकी सरकार का जासूस होने का दोष लगाया गया। उन्होंने मुझे ब्रानडनबर्ग में, देश के सबसे बुरे श्टाज़ी जेल भेजा।
मेरे आध्यात्मिक भाइयों का सहारा
वहाँ श्टाज़ी मुझे दिन-भर सोने नहीं देते थे। उसके बाद वे मुझसे सारी रात पूछताछ करते। कुछ दिन तक इस यातना से गुज़रने के बाद, हालत और ख़राब हो गयी। एक सुबह, मुझे अपनी कोठरी में ले जाने के बजाय, वे मुझे अपने एक कुख्यात यूबोट सॆलन (पनडुब्बी कोठरी नाम से ज्ञात क्योंकि उनका स्थान तहखाने में बहुत नीचे था) में ले गए। उन्होंने एक पुराना, ज़ंग लगा हुआ लोहे का दरवाज़ा खोला और मुझे अंदर जाने के लिए कहा। मुझे एक ऊँची दहलीज़ लाँघकर जानी थी। जब मेरा पैर ज़मीन पर पड़ा, तो मुझे पता चला कि ज़मीन पानी में डूबी हुई थी। बहुत ही तीखी आवाज़ के साथ दरवाज़ा ज़ोर से बंद हो गया। कोई रोशनी नहीं थी ना ही कोई खिड़की। घुप अंधकार था।
ज़मीन पर कई इंच पानी था, इसलिए मैं बैठ नहीं सकता था, लेट या सो नहीं सकता था। मैं इंतज़ार करता रहा, मानो समय रुक गया हो, उसके बाद मुझे तेज़ रोशनी में ज़्यादा पूछताछ के लिए वापस ले जाया गया। मैं नहीं जानता था कि क्या बदतर था—सारा दिन लगभग अंधकार में पानी में खड़े रहना या रात-भर मेरी ओर लगायी गयी कष्टदायक तेज रोशनी सहना।
कई अवसरों पर उन्होंने मुझ पर गोली चलाने की धमकी दी। पूछताछ की कुछ रातों के बाद, एक सुबह मुझसे रूस का एक उच्च-पदाधिकारी सैन्य अफ़सर मिलने आया। मुझे उसे यह बताने का अवसर मिला कि जर्मनी का श्टाज़ी मुझसे नात्ज़ी गॆस्टापो से भी बदतर सलूक कर रहा है। मैं ने उससे कहा कि यहोवा के साक्षी नात्ज़ी सरकार के अधीन तटस्थ थे और साम्यवादी सरकार के अधीन भी तटस्थ हैं और हम संसार में कहीं भी राजनीति में शामिल नहीं होते। इसके विपरीत, मैं ने कहा, अनेक व्यक्ति जो अब श्टाज़ी अफ़सर हैं वे हिटलर यूथ संगठन के सदस्य रहे हैं, जहाँ शायद उन्होंने निर्दोष लोगों को क्रूरता से सताना सीखा है। जब मैं बात कर रहा था, मेरा शरीर ठंड, भूख और थकान के मारे ठिठुर रहा था।
आश्चर्य की बात है, रूसी अफ़सर मुझ पर ग़ुस्सा नहीं हुआ। इसके बजाय, उसने मुझे एक रज़ाई ओढ़ाई और मुझसे कृपापूर्वक व्यवहार किया। उसकी भेंट के कुछ समय बाद, मुझे ज़्यादा आरामदेह कोठरी में लाया गया। कुछ दिन बाद, मुझे जर्मनी की अदालत को सौंप दिया गया। जबकि मेरा मुक़दमा अब भी लंबित था, मुझे पाँच अन्य साक्षियों के साथ एक ही कोठरी में रहने का उत्तम विशेषाधिकार मिला। इतना क्रूर व्यवहार सहने के बाद, अपने आध्यात्मिक भाइयों से संगति करना मैं ने कितना ताज़गीदायक पाया!—भजन १३३:१.
अदालत में मुझे गुप्तचर होने का दोषी करार दिया गया और बंदीगृह में चार साल की सज़ा सुनायी गयी। इसे एक हलकी सज़ा समझा जाता था। कुछ भाइयों को दस साल से ज़्यादा की सज़ा सुनायी गयी थी। मुझे सर्वाधिक सुरक्षा के बंदीगृह में भेजा गया। मुझे लगता है कि उस जेल में इतनी कड़ी सुरक्षा थी कि परिंदा भी पर नहीं मार सकता था। लेकिन, यहोवा की मदद से कुछ साहसी भाई पूरी बाइबल चोरी-छिपे अंदर लाने में समर्थ हुए थे। उसके पन्ने अलग किए गए और एक-एक किताब को अलग-अलग करके जो भाई क़ैदी थे उन्हें बारी-बारी दिए गए।
हम यह कैसे कर पाए? यह बहुत ही मुश्किल था। सिर्फ़ एक ही समय पर हम एक दूसरे से संपर्क कर पाते थे जब हमें हर दो सप्ताह बाद नहाने के लिए ले जाया जाता था। एक अवसर पर, जब मैं नहा रहा था, तो एक भाई ने मेरे कान में फुसफुसाकर कहा कि उसने अपने तौलिए में बाइबल के कुछ पन्ने छिपाए थे। मेरे स्नान के बाद मुझे अपने तौलिए के बजाय उसका तौलिया लेना था।
एक पहरेदार ने उस भाई को मेरे कान में फुसफुसाते देखा और उसे एक लाठी से बहुत बुरी तरह पीटा। मैं ने जल्दी से तौलिया उठाया और दूसरे क़ैदियों में जा मिला। शुक्र है मैं बाइबल के पन्नों के साथ पकड़ा नहीं गया। नहीं तो हमारा आध्यात्मिक पोषण कार्यक्रम ख़तरे में पड़ जाता। हमें अनेक ऐसे अनुभव हुए। हमारा बाइबल पठन हमेशा लुक-छिपकर होता था और इसमें बहुत ज़्यादा ख़तरा रहता था। प्रेरित पतरस के शब्द, “सचेत हो, और जागते रहो,” सचमुच बहुत ही उपयुक्त थे।—१ पतरस ५:८.
किसी कारणवश, अधिकारियों ने निर्णय लिया कि हमें निरंतर एक बंदीगृह से दूसरे में स्थानांतरित किया जाए। चार सालों में, मुझे दस भिन्न-भिन्न बंदीगृहों में स्थानांतरित किया गया। फिर भी, मैं भाइयों को पाने में हमेशा समर्थ रहा। इन भाइयों के लिए मेरा प्रेम अगाध हो गया, और हर बार जब मुझे स्थानांतरित किया जाता था तो दिल में बड़ा दुःख लिए मैं उन्हें छोड़ जाता।
आख़िरकार मुझे लाइपसिग भेजा गया, और वहाँ मुझे जेल से रिहा किया गया। मुझे रिहा करनेवाले क़ैदखाने के पहरेदार ने मुझे अलविदा नहीं की लेकिन, इसके बजाय कहा, “हम जल्दी ही तुम्हें फिर मिलेंगे।” उसका दुष्ट दिमाग़ चाहता था कि मैं फिर सलाख़ों के पीछे जाऊँ। मैं अकसर भजन १२४:२, ३ के बारे में सोचता हूँ, जो कहता है: “यदि यहोवा उस समय हमारी ओर न होता जब मनुष्यों ने हम पर चढ़ाई की, तो वे हम को उसी समय जीवित निगल जाते, जब उनका क्रोध हम पर भड़का था।”
यहोवा अपने निष्ठावान सेवकों को छुड़ाता है
अब फिर मैं एक आज़ाद व्यक्ति था। मेरी जुड़वा बहन, रूथ और बहन हर्टा श्लॆनज़ोग, फाटक पर मेरे लिए रुकी थीं। जेल में इन सभी सालों के दौरान, हर महीने हर्टा मुझे भोजन का एक छोटा पैकेट भेजा करती थी। मैं सचमुच मानता हूँ कि इन छोटे पैकेटों के बिना, मैं जेल में मर जाता। यहोवा उसे कृपापूर्वक याद करे।
मेरी रिहाई के बाद से, यहोवा ने मुझे सेवा के अनेक विशेषाधिकारों की आशीष दी है। ग्रोनाउ, जर्मनी में मैं ने फिर से ख़ास पायनियर के तौर पर, और जर्मनी के पहाड़ी-क्षेत्र में सर्किट ओवरसियर के तौर पर सेवा की। बाद में, मुझे मिशनरियों के गिलियड नामक वॉचटावर बाइबल स्कूल की ३१वीं कक्षा में नाम लिखवाने का आमंत्रण मिला। सन् १९५८ में यहोवा के साक्षियों के अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन के दौरान हमारा स्नातक उपाधि-ग्रहण कार्यक्रम यैन्की स्टेडियम में हुआ। मुझे भाई-बहनों की बड़ी भीड़ को संबोधित करने का और अपने कुछ अनुभव बताने का विशेषाधिकार मिला।
स्नातक उपाधि-ग्रहण कार्यक्रम के बाद एक मिशनरी के रूप में सेवा करने के लिए मैं चिली गया। वहाँ, मैं ने चिली के दक्षिणतम भाग में फिर से सर्किट ओवरसियर के रूप में सेवा की—मुझे असल में पृथ्वी के छोर तक भेजा गया। सन् १९६२ में, मैं ने पैटसी बॉइटनागॆल से विवाह किया, जो सैन एन्टोन्यो, टैक्सस, अमरीका की एक खूबसूरत मिशनरी थी। मैं ने उसके साथ यहोवा की सेवा में बिताए अनेक उत्कृष्ठ सालों का आनंद लिया।
मेरी उम्र के ७० से ज़्यादा सालों में, मैंने अनेक ख़ुशी-भरी घड़ियों और अनेक विपत्तियों का अनुभव किया है। भजनहार ने कहा: “धर्मी पर बहुत सी विपत्तियां पड़ती तो हैं, परन्तु यहोवा उसको उन सब से मुक्त करता है।” (भजन ३४:१९) सन् १९६३ में, जब हम चिली में ही थे, तब पैटसी और मैंने अपनी बच्ची के दुःखद निधन का सामना किया। बाद में, पैटसी बहुत बीमार हो गयी, और हम टैक्सस आ गए। जब वह केवल ४३ साल की थी, उसकी मृत्यु हो गयी, वह भी दुःखद परिस्थितियों में। मैं अकसर प्रार्थना करता हूँ कि यहोवा कृपापूर्वक मेरी प्रिय पत्नी को याद करे।
अब, मैं बीमार और बूढ़ा हो चुका हूँ, फिर भी ब्रेडी, टैक्सस में मैं एक नियमित पायनियर और एक प्राचीन के रूप में सेवा करने के विशेषाधिकार का आनंद उठाता हूँ। सच है, जीवन हमेशा आसान नहीं रहा है, और शायद और भी परीक्षाएँ हों जिनका मुझे अभी और सामना करना है। लेकिन, उस भजनहार की तरह मैं कह सकता हूँ: “हे परमेश्वर, तू तो मुझ को बचपन ही से सिखाता आया है, और अब तक मैं तेरे आश्चर्य कर्मों का प्रचार करता आया हूं।”—भजन ७१:१७.
[पेज 23 पर तसवीर]
(१) आज एक प्राचीन और पायनियर के रूप में सेवा करते हुए, (२) हमारी शादी से कुछ समय पहले, पैटसी के साथ, (३) श्री. श्नाइडर की कक्षा में, (४) मेरी माँ, टॆरॆसा, जिनकी मृत्यु रावॆन्सब्रुक में हुई