‘यहोवा के दिन’ से बच निकलना
“यहोवा का दिन बड़ा और अति भयानक है; उसको कौन सह सकेगा?”—योएल २:११.
१. ‘यहोवा के अति-भयानक दिन’ को ख़ुशी का एक अवसर क्यों होना चाहिए?
“अति भयानक”! परमेश्वर का भविष्यवक्ता योएल ‘यहोवा के बड़े दिन’ का वर्णन इसी तरह करता है। लेकिन, हम यहोवा से प्रेम करते हैं और हमने यीशु के छुड़ौती बलिदान के आधार पर उसके प्रति समर्पण किया है, इसलिए हमें यहोवा के दिन को नज़दीक आते देख, डर के मारे पानी-पानी होने की ज़रूरत नहीं है। वह वाक़ई अद्भुत दिन होगा, लेकिन वह महान उद्धार का दिन, और इस दुष्ट रीति-व्यवस्था से छुटकारे का दिन भी होगा जिसने हज़ारों साल से मनुष्यजाति की नाक में दम कर रखा है। उस दिन की आस में, योएल परमेश्वर के लोगों से कहता है कि ‘मगन हो और आनन्द करो, क्योंकि यहोवा बड़े बड़े काम करेगा,’ और आगे यक़ीन दिलाता है: “ऐसा होगा कि जो कोई यहोवा का नाम लेगा वह उद्धार [छुटकारा] पाएगा।” (NHT) फिर, परमेश्वर के राज्य प्रबंध में, “जैसा यहोवा ने कहा है, उद्धार पाने वाले होंगे, अर्थात् बचनेवाले जिन्हें यहोवा ने बुलाया है।” (NHT)—योएल २:११, २१, २२, ३२.
२. परमेश्वर के उद्देश्यों की पूर्ति में, “प्रभु के दिन” में और ‘यहोवा के दिन’ में क्या होता है?
२ यहोवा के अति-भयानक दिन को ग़लती से प्रकाशितवाक्य १:१० का ‘प्रभु का दिन’ नहीं समझा जाना चाहिए। इस “प्रभु के दिन” में प्रकाशितवाक्य १ से २२ अध्यायों में वर्णन किए गए १६ दर्शनों की पूर्ति शामिल है। इसमें उन सभी घटनाओं की पूर्ति का समय शामिल है जिन्हें यीशु ने अपने शिष्यों के इस सवाल के जवाब में पहले से ही बताया था: “ये बातें कब होंगी? और तेरे आने [तेरी उपस्थिति] का, और जगत [रीति-व्यवस्था] के अन्त का क्या चिन्ह होगा?” यीशु की स्वर्गीय उपस्थिति के लक्षणों को धरती पर डरावने ‘युद्धों, अकालों, बैर, महामारियों, और अधर्म’ द्वारा देखा गया है। जैसे-जैसे ये दुःख-तकलीफ़ें बढ़ी हैं, यीशु ने अपने आधुनिक समय के शिष्यों को प्रचार करने के लिए भेजने के द्वारा परमेश्वर से डरनेवाले मनुष्यों को तसल्ली दी है। वे “राज्य का . . . सुसमाचार सारे जगत में प्रचार” करते हैं, ताकि “सब जातियों पर गवाही हो।” उसके बाद, प्रभु के दिन की पराकाष्ठा के तौर पर, मौजूदा रीति-व्यवस्था का “अन्त,” अर्थात् यहोवा का अति-भयानक दिन शुरू होगा। (मत्ती २४:३-१४; लूका २१:११) यह शैतान की भ्रष्ट दुनिया पर जल्दी से न्यायदंड चुकाने का यहोवा का दिन होगा। “आकाश और पृथ्वी थरथराएंगे। परन्तु यहोवा अपनी प्रजा के लिये शरणस्थान . . . ठहरेगा।”—योएल ३:१६.
यहोवा नूह के दिन में कार्य करता है
३. आज के हालात नूह के दिन के हालात से कैसे मिलते-जुलते हैं?
३ आज की दुनिया के हालात कुछ ४,००० साल पहले “नूह के दिनों” की तरह हैं। (लूका १७:२६, २७) उत्पत्ति ६:५ में लिखा गया है: “यहोवा ने देखा, कि मनुष्यों की बुराई पृथ्वी पर बढ़ गई है, और उनके मन के विचार में जो कुछ उत्पन्न होता है सो निरन्तर बुरा ही होता है।” आज की दुनिया से कितना मिलता-जुलता! जहाँ देखो वहाँ बुराई, लालच, और प्रेम की कमी नज़र आती है। कभी-कभी हमारे दिल में ख़याल आता है कि मनुष्यजाति की बदचलनी की हद हो गयी है। मगर “अन्तिम दिनों” के सिलसिले में प्रेरित पौलुस की भविष्यवाणी की पूर्ति होना जारी है: “दुष्ट, और बहकानेवाले धोखा देते हुए, और धोखा खाते हुए, बिगड़ते चले जाएंगे।”—२ तीमुथियुस ३:१, १३.
४. प्रारंभिक समयों में झूठी उपासना का क्या प्रभाव हुआ?
४ क्या नूह के समय में धर्म मनुष्यजाति को राहत दिला सकता था? इसके उलटे, उस झूठे धर्म ने, जैसे उस समय मौजूद था, बिगड़ते हालात को और भी बिगाड़ा होगा। हमारे पहले माता-पिता उस ‘पुराने सांप’ की झूठी शिक्षाओं के वश में आ गए थे, “जो इब्लीस और शैतान कहलाता है।” आदम की दूसरी पीढ़ी से, “यहोवा का नाम लेने की शुरूआत की गयी थी,” और ज़ाहिर है कि वे ऐसा ईश-निंदा से कर रहे थे। (प्रकाशितवाक्य १२:९; उत्पत्ति ३:३-६; ४:२६, NW) बाद में, परमेश्वर की अनन्य भक्ति को छोड़ देनेवाले विद्रोही स्वर्गदूतों ने भौतिक देह धारण की, ताकि मनुष्य की ख़ूबसूरत बेटियों के साथ नाजायज़ लैंगिक संबंध रखें। इन औरतों ने नफिली नामक संकर राक्षसों को जन्म दिया, जो मनुष्यजाति का दमन करते और धौंस जमाते थे। इस पैशाचिक प्रभाव में आकर, “सब प्राणियों ने पृथ्वी पर अपनी अपनी चाल चलन बिगाड़ ली।”—उत्पत्ति ६:१-१२.
५. नूह के दिन की घटनाओं के संदर्भ में, यीशु हमें कौन-सी चेतावनी सलाह देता है?
५ मगर, एक परिवार ने यहोवा के प्रति अपनी खराई बनाए रखी। इसीलिए, परमेश्वर ने “भक्तिहीन संसार पर महा जल-प्रलय भेजकर धर्म के प्रचारक नूह समेत आठ व्यक्तियों को बचा लिया।” (२ पतरस २:५) उस जल-प्रलय ने यहोवा के अति-भयानक दिन का पूर्व संकेत दिया, जो इस रीति-व्यवस्था के अंत को चिन्हित करता है और जिसके बारे में यीशु ने भविष्यवाणी की: “उस दिन और उस घड़ी के विषय में कोई नहीं जानता; न स्वर्ग के दूत, और न पुत्र, परन्तु केवल पिता। जैसे नूह के दिन थे, वैसा ही मनुष्य के पुत्र का आना [की उपस्थिति] भी होगा [होगी]। क्योंकि जैसे जल-प्रलय से पहिले के दिनों में, जिस दिन तक कि नूह जहाज पर न चढ़ा, उस दिन तक लोग खाते-पीते थे, और उन में ब्याह शादी होती थी। और जब तक जल-प्रलय आकर उन सब को बहा न ले गया, तब तक उन को कुछ भी मालूम न पड़ा; वैसे ही मनुष्य के पुत्र का [की उपस्थिति] आना भी होगा [होगी]।” (मत्ती २४:३६-३९) आज हमारे भी हालात वैसे ही हैं, सो यीशु हमसे आग्रह करता है कि ‘सावधान और जागते रहें, और हर समय प्रार्थना करते रहें कि हम इन सब आनेवाली घटनाओं से बचने के योग्य बनें।’—लूका २१:३४-३६.
सदोम और अमोरा पर यहोवा की न्यायिक सज़ा
६, ७. (क) लूत के समय की घटनाएँ किस का पूर्वसंकेत देती हैं? (ख) यह हमें कौन-सी स्पष्ट चेतावनी देती है?
६ जल-प्रलय के कुछ सैकड़ों साल बाद, जब नूह के वंशज इस धरती पर बढ़ चुके थे, वफ़ादार इब्राहीम और उसके भतीजे लूत ने यहोवा के एक और अति-भयानक दिन को अपनी आँखों से देखा था। लूत और उसका परिवार सदोम के नगर में रहता था। यह नगर अपने पड़ोसी नगर अमोरा के साथ-साथ घृणित लैंगिक अनैतिकता में लीन हो गया था। भौतिकवाद भी मुख्य आकर्षण था, जिसका आख़िर में लूत की पत्नी पर भी प्रभाव पड़ा। यहोवा ने इब्राहीम से कहा था: “सदोम और अमोरा की चिल्लाहट बढ़ गई है, और उनका पाप बहुत भारी हो गया है।” (उत्पत्ति १८:२०) इब्राहीम ने यहोवा से मिन्नत की कि उन शहरों को उसमें के धर्मी लोगों की ख़ातिर बख़्श दे, लेकिन यहोवा ने कहा कि उसने वहाँ दस धर्मी लोगों को भी नहीं पाया। परमेश्वर के स्वर्गदूतों ने लूत और उसकी दो बेटियों को सोअर के नज़दीकी नगर में भाग जाने में मदद की।
७ इसके बाद क्या हुआ? हमारे “अन्तिम दिनों” की तुलना लूत के दिनों से करते हुए लूका १७:२८-३० रिपोर्ट करता है: “जैसा लूत के दिनों में हुआ था, कि लोग खाते-पीते लेन-देन करते, पेड़ लगाते और घर बनाते थे। परन्तु जिस दिन लूत सदोम से निकला, उस दिन आग और गन्धक आकाश से बरसी और सब को नाश कर दिया। मनुष्य के पुत्र के प्रगट होने के दिन भी ऐसा ही होगा।” यहोवा के उस अद्भुत दिन में सदोम और अमोरा का अंजाम हमें यीशु की उपस्थिति के इस समय में एक स्पष्ट चेतावनी देता है। मनुष्यजाति की आधुनिक पीढ़ी भी “घोर अनैतिकता में लीन होकर पराए शरीर के पीछे लग” गयी है। (यहूदा ७, NHT) इसके अलावा, यीशु द्वारा हमारे दिनों के बारे में पहले से बतायी गयी अनेक ‘मरियों’ के लिए, अनैतिक सॆक्स के प्रति हमारे समय के रवैये भी ज़िम्मेदार रहे हैं।—लूका २१:११.
इस्राएल “बवण्डर” लवता है
८. इस्राएल ने यहोवा के साथ किस हद तक अपनी वाचा पूरी की थी?
८ कुछ समय बीतने पर, यहोवा ने इस्राएल को ‘सब लोगों में से अपने निज धन और याजकों के राज्य और पवित्र जाति’ के रूप में चुना। मगर यह ‘निश्चय ही उसकी मानने, और उसकी वाचा के पालन करने’ पर निर्भर था। (निर्गमन १९:५, ६) क्या वे इस महान विशेषाधिकार के अनुसार जीए? बिलकुल नहीं! यह सच है कि उस जाति के वफ़ादार लोगों ने निष्ठापूर्वक उसकी सेवा की—जैसे कि मूसा, शमूएल, दाऊद, यहोशापात, हिजकिय्याह, योशिय्याह, साथ ही भक्त भविष्यवक्ताएँ और भविष्यवक्तिनियाँ। फिर भी एक जाति के तौर पर वे अविश्वासी थे। कुछ समय बाद वह राज्य दो भागों में बँट गया—इस्राएल और यहूदा। सामान्य तौर पर ये दोनों ही जातियाँ पड़ोसी देशों की विधर्मी उपासना और परमेश्वर का निरादर करनेवाले दूसरे रीति-रिवाज़ों में लिप्त हो गयीं।—यहेजकेल २३:४९.
९. यहोवा ने विद्रोही दस-गोत्रीय राज्य का कैसे न्याय किया?
९ यहोवा ने मामलों का न्याय कैसे किया? आमोस द्वारा कहे गए सिद्धांत के तालमेल में, हमेशा की तरह, उसने चेतावनी दी: “प्रभु यहोवा अपने दास भविष्यद्वक्ताओं पर अपना मर्म बिना प्रगट किए कुछ भी न करेगा।” ख़ुद आमोस ने इस्राएल के उत्तरी राज्य के लिए मुसीबत का ऐलान किया: “यहोवा के दिन से तुम्हारा क्या लाभ होगा? वह तो उजियाले का नहीं, अन्धियारे का दिन होगा।” (आमोस ३:७; ५:१८) इसके अलावा, आमोस के संगी भविष्यवक्ता होशे ने कहा: “वे वायु बोते हैं, और वे बवण्डर लवेंगे।” (होशे ८:७) सा.यु.पू. ७४० में, यहोवा ने इस्राएल के उत्तरी राज्य को हमेशा-हमेशा के लिए नाश करने के वास्ते अश्शूरी सेना का इस्तेमाल किया।
यहोवा द्वारा धर्मत्यागी यहूदा से लेखा लेना
१०, ११. (क) यहोवा ने यहूदा को क्यों क्षमा करना नहीं चाहा? (ख) किन घृणित कामों ने उस जाति को भ्रष्ट कर रखा था?
१० यहोवा ने अपने भविष्यवक्ताओं को यहूदा के दक्षिणी राज्य में भी भेजा। फिर भी, यहूदा के राजाओं ने, जैसे मनश्शे और उसके उत्तराधिकारी, आमोन ने उसकी नज़रों में बुरा काम करना जारी रखा, और ‘निर्दोषों का बहुत खून बहाया, और मूरतों की उपासना की और उन्हें दण्डवत किया।’ हालाँकि आमोन के बेटे योशिय्याह ने वही किया जो यहोवा की नज़रों में सही था, उसके बाद के राजा, साथ ही वहाँ के लोग भी फिर एक बार दुष्टता में बुरी तरह पड़ गए। इतनी बुरी तरह कि उन्हें “यहोवा ने क्षमा करना न चाहा।”—२ राजा २१:१६-२१; २४:३, ४.
११ यहोवा ने अपने भविष्यवक्ता यिर्मयाह द्वारा कहा: “देश में ऐसा काम होता है जिस से चकित और रोमांचित होना चाहिये। भविष्यद्वक्ता झूठमूठ भविष्यद्वाणी करते हैं; और याजक उनके सहारे से प्रभुता करते हैं; मेरी प्रजा को यह भाता भी है, परन्तु अन्त के समय तुम क्या करोगे?” यहूदा की जाति हद से ज़्यादा रक्तदोषी हो चुकी थी, और उसके लोग चोरी, हत्या, और व्यभिचार करने, झूठी शपथ लेने, दूसरे देवताओं के पीछे जाने, और दूसरे घृणित काम करने के द्वारा भ्रष्ट हो गए थे। परमेश्वर का मंदिर “डाकुओं की गुफ़ा” बन गया था।—यिर्मयाह २:३४; ५:३०, ३१; ७:८-१२.
१२. यहोवा ने स्वधर्मत्यागी यरूशलेम को कैसे सज़ा दी?
१२ यहोवा ने घोषणा की: “मैं उत्तर की दिशा [कसदी] से विपत्ति और सत्यानाश ले आया चाहता हूं।” (यिर्मयाह ४:६) सो, स्वधर्मत्यागी यरूशलेम और मंदिर को चकनाचूर करने के लिए वह बाबुलीय विश्व-शक्ति, उस समय ‘सारी पृथ्वी का हथौड़ा’ लाया। (यिर्मयाह ५०:२३) सा.यु.पू. ६०७ में, एक कड़ी घेराबंदी के बाद, वह शहर नबूकदनेस्सर की शक्तीशाली सेना के क़ब्ज़े में आ गया। “तब बाबुल के राजा ने सिदकिय्याह के पुत्रों को उसकी आंखों के साम्हने रिबला में घात किया; और सब कुलीन यहूदियों को भी घात किया। उस ने सिदकिय्याह की आंखों को फुड़वा डाला और उसको बाबुल ले जाने के लिये बेड़ियों से जकड़वा रखा। कसदियों ने राजभवन और प्रजा के घरों को आग लगाकर फूंक दिया, और यरूशलेम की शहरपनाह को ढा दिया। तब जल्लादों का प्रधान नबूजरदान प्रजा के बचे हुओं को जो नगर में रह गए थे, और जो लोग उसके पास भाग आए थे उनको अर्थात् प्रजा में से जितने रह गए उन सब को बंधुआ करके बाबुल को ले गया।”—यिर्मयाह ३९:६-९.
१३. सामान्य युग पूर्व ६०७ में यहोवा के दिन से कौन बचाए गए, और क्यों?
१३ वाक़ई एक अति-भयानक दिन! फिर भी, उस अग्निमय न्यायदंड से बचनेवालों में कुछ लोग ऐसे थे जो यहोवा के आज्ञाकारी थे। इनमें ग़ैर-इस्राएली रेकाबी शामिल थे, जिन्होंने यहूदा वासियों की विषमता में एक नम्र और आज्ञाकारी भावना दिखायी। वफ़ादार खोजा एबेदमेलेक बचाया गया, जिसने यिर्मयाह को कीचड़भरे गड्ढे में मरने से बचाया था। साथ ही यिर्मयाह का निष्ठावान शास्त्री, बारूक भी बचाया गया। (यिर्मयाह ३५:१८, १९; ३८:७-१३; ३९:१५-१८; ४५:१-५) ऐसे लोगों को यहोवा ने घोषणा की: “जो कल्पनाएं मैं तुम्हारे विषय करता हूं उन्हें मैं जानता हूं, वे हानि की नहीं, वरन कुशल ही की हैं, और अन्त में तुम्हारी आशा पूरी करूंगा।” इस प्रतिज्ञा की आंशिक पूर्ति सा.यु.पू. ५३९ में हुई, जब परमेश्वर से डरनेवाले यहूदियों को बाबुल के विजेता, राजा कुस्रू द्वारा रिहा किया गया, और जब वे यरूशलेम के शहर और मंदिर को फिर से बनाने के लिए लौटे। आज जो लोग बाबुली धर्म से बाहर आते हैं और जो यहोवा की शुद्ध उपासना में पुनःस्थापित हुए हैं, वे भी यहोवा के पुनःस्थापित परादीस में आजीवन शांति के अद्भुत भविष्य की आस लगा सकते हैं।—यिर्मयाह २९:११; भजन ३७:३४; प्रकाशितवाक्य १८:२, ४.
पहली सदी का “भारी क्लेश”
१४. यहोवा ने इस्राएल को हमेशा के लिए क्यों त्याग दिया?
१४ अब चलिए सा.यु. पहली सदी में आएँ। इस समय तक पुनःस्थापित यहूदी धर्मत्याग में फिर एक बार पड़ चुके थे। यहोवा ने अपने एकलौते पुत्र को धरती पर अपना अभिषिक्त जन, या मसीहा होने के लिए भेजा। सा.यु. २९ से ३३ के सालों के दौरान, यीशु ने इस्राएल के पूरे देश में प्रचार किया, और कहा: “मन फिराओ क्योंकि स्वर्ग का राज्य निकट आया है।” (मत्ती ४:१७) इसके अलावा, राज्य के सुसमाचार को बताने में हिस्सा लेने के लिए उसने अपने साथ शिष्यों को इकट्ठा किया और प्रशिक्षित किया। तब यहूदियों के शासकों ने कैसी प्रतिक्रिया दिखायी? उन्होंने यीशु की इज़्ज़त पर कीचड़ उछाला और आख़िर में उसे एक यातना स्तंभ पर दर्दनाक मौत देकर घिनौना अपराध किया। यहोवा ने अपने लोगों के रूप में यहूदियों को त्याग दिया। और इस बार उस जाति का त्यागा जाना हमेशा के लिए था।
१५. पश्चातापी यहूदियों को क्या करने का विशेषाधिकार मिला?
१५ सामान्य युग ३३ के पिन्तेकुस्त के दिन, पुनरुत्थित यीशु ने पवित्र आत्मा उँडेली और इसने उसके शिष्यों को विभिन्न भाषाओं में उन यहूदियों और यहूदी मत-धारकों से बोलने के लिए समर्थ किया जो फ़ौरन इकट्ठा हो गए थे। भीड़ को संबोधित करते हुए प्रेरित पतरस ने कहा: “इसी यीशु को परमेश्वर ने जिलाया, जिस के हम सब गवाह हैं। . . . सो अब इस्राएल का सारा घराना निश्चय जान ले कि परमेश्वर ने उसी यीशु को जिसे तुम ने क्रूस पर चढ़ाया, प्रभु भी ठहराया और मसीह भी।” नेक़दिल यहूदियों ने कैसी प्रतिक्रिया दिखायी? उनके “हृदय छिद गए,” उन्होंने अपने पापों से पश्चाताप किया और बपतिस्मा लिया। (प्रेरितों २:३२-४१) राज्य प्रचार कार्य बढ़ने लगा, और ३० साल के अंदर ही यह “आकाश के नीचे की सारी सृष्टि में” फैल गया था।—कुलुस्सियों १:२३.
१६. यहोवा ने घटनाओं को अपनी मर्ज़ी से किस तरह नियंत्रित किया जो जन्मजात इस्राएल पर उसके न्यायदंड देने की ओर ले गया?
१६ जन्मजात इस्राएल, अर्थात् उसके त्यागे हुए लोगों का न्याय चुकाने की यहोवा की घड़ी आ पहुँची थी। उस समय की ज्ञात पूरी दुनिया के देशों से कई हज़ार लोग मसीही कलीसिया में धारा की नाईं आए थे और “परमेश्वर के [आत्मिक] इस्राएल” के तौर पर अभिषिक्त किए गए थे। (गलतियों ६:१६) मगर, उस समय का यहूदीवाद नफ़रत और सांप्रदायिक दंगों में डूब चुका था। पौलुस ने ‘प्रधान अधिकारियों के आधीन रहने’ के बारे में जो लिखा था उसके विपरीत, उन्होंने अपने ऊपर राज्य कर रहे रोमी शासन के ख़िलाफ़ खुलकर बग़ावत की। (रोमियों १३:१) ज़ाहिर है कि यहोवा ने उसके बाद हुई घटनाओं को अपनी मर्ज़ी के अनुसार नियंत्रित किया। सा.यु. वर्ष ६६ में रोमी सेनाओं ने जनरल गैलस के ध्वज तले यरूशलेम पर क़ब्ज़ा करने के लिए कूच किया। आक्रमण करनेवाले रोमी शहर के अंदर तक घुस आए, यहाँ तक कि उन्होंने मंदिर की दीवार को उखाड़ना भी शुरू कर दिया। जैसे कि जोसीफस का इतिहास बताता है, उस शहर के लिए और वहाँ के लोगों के लिए वह सचमुच क्लेश था।a लेकिन अचानक ही आक्रमण करनेवाले सैनिक मैदान छोड़कर भाग गए। इसने यीशु के शिष्यों को ‘पहाड़ों पर भाग जाने’ का मौक़ा दिया, जैसे कि मत्ती २४:१५, १६ में लिखी हुई अपनी भविष्यवाणी में उसने सलाह दी थी।
१७, १८. (क) यहोवा ने किस क्लेश के माध्यम से यहूदीवाद पर अपना न्यायदंड चुकाया? (ख) किन लोगों ने ‘छुटकारा पाया’ और यह किस बात की आहट थी?
१७ ख़ैर, उस क्लेश की पराकाष्ठा में यहोवा का पूरा न्यायदंड चुकाना अब भी बाक़ी था। सा.यु. ७० में, रोमी सेना अब जनरल टाइटस के ध्वज तले आक्रमण करने के लिए लौटी। इस बार लड़ाई निर्णायक थी! यहूदियों की, जो आपस में भी लड़-भिड़ रहे थे, रोमियों से कोई बराबरी नहीं थी। उस शहर और मंदिर को पूरी तरह ज़मीनदोज़ कर दिया गया। दस लाख से भी ज़्यादा पस्त यहूदी दुःख-तकलीफ़ सहकर मर गए, और कुछ ६,००,००० लाशों को शहर के फाटकों से बाहर फेंका गया। शहर पर क़ब्ज़ा कर लेने के बाद, ९७,००० यहूदियों को बंदी बनाकर ले जाया गया, जिनमें से अनेक लोग बाद में अखाड़े के तमाशों में मारे गए। सचमुच, उस क्लेश के वर्षों के दौरान बचनेवाले केवल वे आज्ञाकारी मसीही थे जो यरदन से दूर पहाड़ों पर भाग गए थे।—मत्ती २४:२१, २२; लूका २१:२०-२२.
१८ इस तरह, “रीति-व्यवस्था की समाप्ति” (NW) के बारे में यीशु की महान भविष्यवाणी की पहली पूर्ति हुई। यह सा.यु. ६६-७० में विद्रोही यहूदी जाति का न्याय चुकाने के यहोवा के दिन में पराकाष्ठा पर पहुँची। (मत्ती २४:३-२२) फिर भी, यह तो अंतिम क्लेश, अर्थात् “यहोवा के उस बड़े और भयानक दिन के आने” की बस आहट थी, जो सारे संसार को अपनी चपेट में लेने ही वाला है। (योएल २:३१) आप कैसे ‘छुटकारा पाएँगे?’ अगला लेख बताएगा।
[फुटनोट]
a जोसीफस बताता है कि आक्रमणकारी रोमियों ने शहर को घेर लिया, दीवार के एक हिस्से को उखाड़ा, और यहोवा के मंदिर के फाटक में आग लगाने ही वाले थे। इससे अंदर फँसे हुए यहूदियों में भयानक डर छा गया, क्योंकि उन्हें अपनी नज़रों के सामने अपनी मौत दिख रही थी।—वॉर्स ऑफ़ द ज्यूज़, बुक II, अध्याय १९.
पुनर्विचार के लिए सवाल
◻ ‘प्रभु के दिन’ का ‘यहोवा के दिन’ से क्या संबंध है?
◻ नूह के दिन पर पुनर्विचार करते हुए, हमें किस चेतावनी को मानना चाहिए?
◻ सदोम और अमोरा ने एक शक्तिशाली सबक़ कैसे दिया?
◻ पहली सदी के “भारी क्लेश” से कौन बचाए गए थे?
[पेज 15 पर तसवीर]
यहोवा ने नूह और लूत के परिवारों को, साथ ही सा.यु.पू. ६०७ और सा.यु. ७० में भी लोगों को बचाया