उनके विश्वास के कारण उनसे बैर किया गया
“मेरे नाम के कारण सब लोग तुम से बैर करेंगे।”—मत्ती १०:२२.
१, २. अपने धर्म की शिक्षाओं पर चलने की वज़ह से कुछ यहोवा के साक्षियों के साथ क्या हादसे हुए हैं?
क्रीट द्वीप में रहनेवाले एक ईमानदार दुकानदार को बार-बार गिरफ्तार किया जाता है और बार-बार ग्रीस की अदालतों में लाया जाता है। अपनी पत्नी और पाँच बच्चों से दूर, वह जेल में कुल मिलाकर छः साल की सज़ा काटता है। जापान में एक १७ साल के विद्यार्थी को स्कूल से निकाल दिया जाता है, हालाँकि वह अपनी क्लास के ४२ विद्यार्थियों में सबसे होशियार था और उसका बर्ताव भी अच्छा था। फ्रांस में, कई लोगों को अचानक नौकरी से निकाल दिया जाता है, हालाँकि सबको पता था कि वे मेहनती और ईमानदार थे। इन लोगों के साथ हुए हादसों में कौन-सी एक खास बात है?
२ खास बात यह है कि ये सभी लोग यहोवा के साक्षी हैं। इनका “जुर्म” क्या है? यह कि वे अपने धर्म की शिक्षाओं पर चलते हैं। यीशु मसीह की शिक्षाओं का पालन करते हुए, वह दुकानदार अपने विश्वास के बारे में दूसरों को बता रहा था। (मत्ती २८:१९, २०) उसे ग्रीस के एक बहुत ही पुराने कानून की बिनाह पर दोषी ठहराया गया था। इस कानून के तहत दूसरों का धर्म-परिवर्तन करना एक अपराध है। जापान के उस विद्यार्थी को स्कूल से इसलिए निकाला गया क्योंकि बाइबल के उसूलों को माननेवाला उसका विवेक इसकी इजाज़त नहीं देता था कि वह कॆन्डो (जापानी तलवारबाज़ी) ड्रिल्स करे जो सबके लिए कंपल्सरी थीं। (यशायाह २:४) फ्रांस में जिन लोगों को नौकरी से निकाला गया था उन्हें बताया गया कि उन्हें बर्खास्त करने की वज़ह सिर्फ यह थी कि वे यहोवा के साक्षी थे।
३. ज़्यादातर यहोवा के साक्षियों के साथ बुरी तरह सताए जाने की वारदातें क्यों नहीं होतीं?
३ कुछ देशों में यहोवा के साक्षियों के साथ हाल ही में ऐसे ही हादसे हुए हैं। लेकिन, ज़्यादातर यहोवा के साक्षियों के साथ बुरी तरह सताए जाने की ऐसी वारदातें नहीं होतीं। अकसर दूसरे लोग उन पर ज़ुल्म नहीं करते। यहोवा के लोग दुनिया भर में अपने अच्छे चाल-चलन के लिए मशहूर हैं, और उन्होंने इतना अच्छा नाम कमाया है कि किसी के पास भी उन्हें तकलीफ देने की कोई जायज़ वज़ह नहीं है। (१ पतरस २:११, १२) वे किसी के खिलाफ साज़िश नहीं करते, ना ही वे कुछ ऐसा करते हैं जिससे दूसरों को नुकसान पहुँचे। (१ पतरस ४:१५) इसके बजाय, वे बाइबल की इस सलाह के मुताबिक जीने की कोशिश करते हैं कि पहले परमेश्वर के अधीन हों और फिर देश की सरकारों के। वे कानून की माँग के मुताबिक टैक्स देते हैं और ‘सब मनुष्यों के साथ मेल मिलाप रखने’ की पूरी-पूरी कोशिश करते हैं। (रोमियों १२:१८; १३:६, ७; १ पतरस २:१३-१७) बाइबल की शिक्षा देने के अपने कार्यक्रम में वे लोगों को सिखाते हैं कि कानून का और परिवार की मान-मर्यादा का आदर करें और अच्छा चाल-चलन बनाए रखें। अनेक सरकारों ने उनकी तारीफ की है कि वे ऐसे नागरिक हैं जो कानून का पालन करते हैं। (रोमियों १३:३) फिर भी, जैसे पहले पैराग्राफ में बताया गया है, कई बार वे अन्याय का शिकार हुए हैं और कुछ देशों की सरकारों ने तो उनके काम पर पाबंदी भी लगायी है। क्या यह सब देखकर हमें ताज्जुब होना चाहिए?
चेला बनने की “कीमत”
४. जैसा यीशु ने बताया था, उसका चेला बनने पर एक व्यक्ति किस बात की उम्मीद कर सकता है?
४ यीशु मसीह ने साफ-साफ बताया कि उसका चेला बनने का क्या मतलब है। उसने अपने चेलों से कहा: “दास अपने स्वामी से बड़ा नहीं होता।” और “यदि उन्हों ने मुझे सताया, तो तुम्हें भी सताएंगे।” यीशु से “अकारण” ही बैर रखा गया। (यूहन्ना १५:१८-२०, २५; भजन ६९:४; लूका २३:२२) उसी तरह, उसके चेले भी ऐसे विरोध की उम्मीद कर सकते थे जिसकी कोई जायज़ वज़ह न हो। कई बार यीशु ने उन्हें खबरदार किया: “लोग तुम से बैर करेंगे।”—मत्ती १०:२२; २४:९.
५, ६. (क) किस वज़ह से यीशु ने चेले बननेवालों को ‘कीमत आँकने’ के लिए कहा था? (ख) तो जब हमारा विरोध किया जाता है तब क्यों हमें घबराना नहीं चाहिए और ना ही उलझन में पड़ना चाहिए?
५ इसीलिए, यीशु ने उन लोगों से ‘कीमत आँकने’ के लिए कहा जो उसके चेले बनना चाहते थे। (लूका १४:२८, रिवाइज़्ड स्टैंडर्ड वर्शन) क्यों? इसलिए नहीं कि वे फिर से सोचने लगें कि यीशु के चेले बनें या नहीं, बल्कि इसलिए कि वे आनेवाली ज़िम्मेदारी को पूरा करने का पक्का इरादा कर लें। चेले बनने के इस वरदान के साथ आनेवाली किसी भी परीक्षा या तकलीफ को झेलने के लिए हमें तैयार होना चाहिए। (लूका १४:२७) कोई भी हमें मजबूर नहीं करता कि मसीह का चेला बनकर यहोवा की सेवा करें। यह फैसला हम अपनी मरज़ी से करते हैं और सबकुछ जानकर करते हैं। हम परमेश्वर को अपना जीवन समर्पित करते हैं और इसलिए उसके साथ हमारा एक खास रिश्ता बन जाता है। और हम पहले से ही जानते हैं कि इस रिश्ते से हमें बड़ी आशीषें मिलेंगी, मगर साथ ही लोग हमसे ‘बैर भी करेंगे।’ जब हमारा विरोध किया जाता है तब न तो हम घबराते हैं ना ही उलझन में पड़ जाते हैं, क्योंकि हमने चेले बनने की ‘कीमत आँक’ ली है और इसे चुकाने के लिए पूरी तरह तैयार हैं।—१ पतरस ४:१२-१४.
६ कुछ लोग और सरकारें सच्चे मसीहियों का विरोध क्यों करती हैं? जवाब के लिए, अच्छा होगा कि हम पहली सदी के दो धर्मों पर ध्यान दें। दोनों धर्म के लोगों से बैर किया गया, मगर दोनों के मामले में इस बैर की वज़ह बिलकुल अलग थी।
बैर करनेवालों से बैर किया गया
७, ८. किन शिक्षाओं में अन्यजाति के लोगों के लिए नफरत नज़र आती थी और इसकी वज़ह से यहूदियों ने कैसा रवैया अपना लिया?
७ पहली सदी तक सारा इस्राएल रोमी शासन के अधीन आ गया था और यहूदी धर्म व्यवस्था ज़्यादातर ज़ुल्मी फरीसियों और शास्त्रियों के कब्ज़े में थी। (मत्ती २३:२-४) मूसा की व्यवस्था में अन्यजाति के लोगों से अलग रहने के बारे में नियम दिए गए थे। मगर धर्म के अंधे इन गुरुओं ने इन कानूनों को तोड़-मरोड़कर ऐसा रूप दे दिया जिसके हिसाब से गैर-यहूदियों से नफरत की जानी थी। इस तरह उन्होंने ऐसा धर्म बनाया जिसने अन्यजातियों के लिए बैर पैदा किया, और बदले में अन्यजातियों के लोग भी उनसे बैर करने लगे।
८ यहूदी धर्मगुरुओं के लिए अन्यजाति के लोगों के खिलाफ नफरत की भावना फैलाना कोई बड़ी बात नहीं थी, क्योंकि उस वक्त यहूदी लोग अन्यजाति के लोगों को नीच प्राणी समझते थे। धर्मगुरुओं ने शिक्षा दी कि एक यहूदी स्त्री को कभी-भी अन्यजाति के लोगों के बीच अकेले नहीं होना चाहिए, क्योंकि उन पर “लुचपन का इलज़ाम है।” एक यहूदी पुरुष को “उनके साथ अकेला [नहीं] रहना चाहिए क्योंकि उन पर हत्यारे होने का इलज़ाम है।” अन्यजाति के किसी व्यक्ति के हाथों से दुहा गया दूध तब तक इस्तेमाल नहीं किया जा सकता था जब तक कि कोई यहूदी वहाँ खड़े होकर अपने सामने दूध न कढ़वाए। अपने धर्म गुरुओं के प्रभाव में आकर यहूदी अन्यजाति के लोगों से कोई वास्ता नहीं रखते थे और इसलिए वे उनसे पूरी तरह दूर रहने लगे और उनके साथ मिलना-जुलना अपनी शान के खिलाफ समझते थे।—यूहन्ना ४:९ से तुलना कीजिए।
९. गैर-यहूदियों के बारे में यहूदी धर्म गुरुओं की शिक्षाओं का क्या नतीजा हुआ?
९ गैर-यहूदियों के बारे में ऐसी गलत शिक्षाओं की वज़ह से यहूदियों और अन्यजाति के लोगों के बीच संबंध और भी बिगड़ गए। इसलिए अन्यजाति के लोग समझने लगे थे कि यहूदी पूरी दुनिया से ही बैर रखते हैं। (लगभग सा.यु. ५६ में जन्मे) रोमी इतिहासकार टैसिटस ने यहूदियों के बारे में कहा कि “वे पूरी दुनिया के साथ दुश्मनों जैसा बैर रखते थे।” उसने यह भी कहा कि यहूदी धर्म अपनानेवाले अन्यजाति के लोगों को सिखाया जाता था कि अपने देश को पूरी तरह से नकार दें और अपने परिवारवालों और दोस्तों को तुच्छ समझें। रोमी आम तौर पर यहूदियों की ज़्यादतियाँ इसलिए बरदाश्त करते थे क्योंकि यहूदी गिनती में बहुत ज़्यादा थे और इसकी वज़ह से उनको वश में करना आसान नहीं था। मगर जब सा.यु. ६६ में यहूदियों ने विद्रोह किया तो रोमियों ने इसका मुँह तोड़ जवाब दिया और सा.यु. ७० में यरूशलेम को पूरी तरह नाश कर दिया।
१०, ११. (क) मूसा की व्यवस्था के अनुसार विदेशियों से कैसा व्यवहार किया जाना था? (ख) यहूदी धर्म व्यवस्था का जो हश्र हुआ उससे हम कौन-सा सबक सीखते हैं?
१० अन्यजातियों के बारे में यहूदियों का ऐसा नज़रिया, मूसा की व्यवस्था में बताए गए उपासना के तरीके से कैसे अलग था? बेशक मूसा की व्यवस्था में अन्यजातियों से अलग रहने की बात कही गयी थी, मगर यह इस्राएलियों को और खासकर शुद्ध उपासना को अशुद्ध होने से बचाने के लिए थी। (यहोशू २३:६-८) फिर भी, व्यवस्था इस्राएलियों से यह माँग करती थी कि विदेशियों के साथ न्याय और भलाई से व्यवहार करें और उनका स्वागत-सत्कार करें, मगर शर्त यह थी कि ये विदेशी लोग इस्राएल जाति के नियमों को तोड़ने का संगीन जुर्म न करें। (लैव्यव्यवस्था २४:२२) यीशु के समय के यहूदी धर्मगुरुओं ने विदेशियों के लिए दया की वह उदार भावना नहीं दिखाई जिसके बारे में मूसा की व्यवस्था में साफ-साफ बताया था। इसके बजाय उन्होंने उपासना को ऐसा रूप दिया जिससे विदेशियों के लिए नफरत पैदा हुई और खुद विदेशी भी उनसे नफरत करने लगे। आखिरकार, पहली सदी की यहूदी जाति पर से यहोवा की कृपादृष्टि उठ गयी।—मत्ती २३:३८.
११ क्या हम इससे कुछ सबक सीख सकते हैं? जी हाँ, ज़रूर! यहोवा नहीं चाहता कि उसकी उपासना करनेवाला इंसान खुद को दूसरों से ज़्यादा धर्मी और अच्छा समझे और जिन लोगों के धार्मिक विश्वास उससे अलग हैं उन्हें वह नीच समझे। यह यहोवा की शुद्ध उपासना का तरीका नहीं है और ना ही वह इससे खुश होता है। पहली सदी के वफादार मसीहियों के बारे में सोचिए। वे उन लोगों से बैर नहीं करते थे जो मसीही नहीं थे, ना ही उन्होंने रोम के खिलाफ कोई विद्रोह किया। पर फिर भी, ‘लोग उनसे बैर करते थे।’ क्यों? कौन लोग थे जो उनसे बैर करते थे?
कौन लोग पहली सदी के मसीहियों से बैर करते थे?
१२. यीशु चाहता था कि उसके चेले गैर-मसीहियों के बारे में सही नज़रिया रखें यह बाइबल से कैसे साफ ज़ाहिर होता है?
१२ यीशु की शिक्षाओं से यह साफ ज़ाहिर होता है कि उसकी इच्छा यह थी कि उसके चेले गैर-मसीहियों के बारे में सही नज़रिया रखें। एक तरफ उसने कहा कि उसके चेले संसार से अलग होंगे, यानी जो सोच-विचार और व्यवहार यहोवा के धर्मी मार्गों से मेल नहीं खाते उनसे वे पूरी तरह दूर रहेंगे। वे युद्ध और राजनीति के मामले में भी किसी का पक्ष नहीं लेंगे। (यूहन्ना १७:१४, १६) दूसरी तरफ, गैर-मसीहियों के लिए नफरत की भावना फैलाना तो दूर रहा, यीशु ने अपने चेलों से कहा कि “अपने बैरियों से प्रेम रखो।” (मत्ती ५:४४) प्रेरित पौलुस मसीहियों से कहता है: “यदि तेरा बैरी भूखा हो, तो उसे खाना खिला; यदि प्यासा हो, तो उसे पानी पिला।” (रोमियों १२:२०) उसने मसीहियों से यह भी कहा कि “सब के साथ भलाई करें।”—गलतियों ६:१०.
१३. यहूदी धर्मगुरु मसीह के चेलों का इतना विरोध क्यों करते थे?
१३ इसके बावजूद, मसीह के चेलों को तीन तरफ से “बैर” का सामना करना पड़ा। इसमें पहले थे, यहूदी धर्मगुरु। कोई ताज्जुब नहीं कि जल्द ही मसीही उनकी आँखों में खटकने लगे! उनका चालचलन बहुत ही खरा और धर्मी था और वे अपने विश्वास में पक्के थे। आग जैसे जोश के साथ वे लोगों को आशा देनेवाला संदेश सुनाते थे। हज़ारों लोगों ने यहूदी धर्म को छोड़कर मसीहियत को अपना लिया। (प्रेरितों २:४१; ४:४; ६:७) यहूदी धर्मगुरुओं की नज़रों में यीशु के यहूदी चेले धर्म-द्रोही थे! (प्रेरितों १३:४५ से तुलना कीजिए।) ये धर्म-गुरू गुस्से से भड़क उठे, और उन्हें लगता था कि मसीहियत ने उनकी परंपराओं को मिट्टी में मिला दिया है। यहाँ तक कि उन्होंने अन्यजातियों के बारे में फरीसियों के नज़रिए को भी झुठला दिया था! मसीहियत में अन्यजाति के लोग और यहूदियों में कोई भी फर्क नहीं रहा क्योंकि सा.यु. ३६ से अन्यजाति के लोग भी मसीही बन सकते थे और उनका एक ही विश्वास होता और वे भी यहूदी मसीहियों के बराबर विशेषाधिकार मिलते।—प्रेरितों १०:३४, ३५.
१४, १५. (क) झूठे देवी-देवताओं को पूजनेवाले क्यों मसीहियों से बैर रखते थे? एक उदाहरण दीजिए। (ख) पहली सदी के मसीहियों से ‘बैर करनेवाले’ तीसरे लोग कौन थे?
१४ मसीहियों से बैर करनेवाले दूसरे थे झूठे देवी-देवताओं को पूजनेवाले। मिसाल के तौर पर, प्राचीन इफिसुस में अरतिमिस देवी के लिए चाँदी के मंदिर बनाने के धंधे में बहुत कमायी होती थी। मगर जब पौलुस ने वहाँ प्रचार किया, तो इफिसुस के कई लोगों ने विश्वास दिखाया और अरतिमिस की पूजा करना छोड़ दिया। अब चाँदी के मंदिर बनानेवाले सुनारों का धंधा खतरे में पड़ गया, इसलिए उन्होंने कोलाहल मचा दिया। (प्रेरितों १९:२४-४१) जब मसीहियत बिथुनिया (जो अब उत्तर-पश्चिमी टर्की है) में फैली तब ऐसी ही एक घटना हुई। मसीही यूनानी शास्त्र के लिखकर पूरा होने के कुछ ही समय बाद, बिथुनिया के गवर्नर, प्लिनी द यंगर ने रिपोर्ट दी कि अन्यजातियों के मंदिर खाली हो गए हैं और बलि के जानवरों को खिलाए जानेवाले चारे की बिक्री भी बहुत ही कम हो गयी है। इसका दोष मसीहियों के सिर मढ़ा गया क्योंकि उनकी उपासना में जानवरों की बलियाँ नहीं चढ़ायी जाती थीं, न ही इसमें मूर्तियों की कोई जगह थी। इसलिए उन्हें सताया गया। (इब्रानियों १०:१-९; १ यूहन्ना ५:२१) जैसे-जैसे मसीहियत फैलती गयी, इसका मूर्तिपूजा से जुड़े धंधे पर बहुत बुरा असर हुआ। जिन लोगों का धंधा ठप्प पड़ गया था और कमाई बंद हो गयी थी वे मसीहियत से बैर करने लगे।
१५ तीसरे थे, देशभक्त कट्टर रोमी, जो मसीहियों से ‘बैर करते’ थे। पहले तो रोमी समझते थे कि मसीहियत कोई छोटा-मोटा, कट्टरपंथी धर्म है। मगर कुछ समय बाद, सिर्फ इतना कहना कि मैं मसीही हूँ, ऐसा अपराध बन गया जिसकी सज़ा मौत थी। क्या वज़ह थी कि मसीहियत की राह पर चलनेवाले ईमानदार नागरिकों को सताहट और मौत की सज़ा के लायक समझा जाने लगा?
रोमी समाज पहली सदी के मसीहियों से बैर क्यों करता था?
१६. किन तरीकों से मसीही संसार का भाग नहीं बने और इसकी वज़ह से वे रोमी लोगों को क्यों नापसंद थे?
१६ रोमी लोग मसीहियों से खासकर इसलिए बैर करते थे क्योंकि मसीही अपने धर्म की शिक्षाओं पर चलते थे, जैसे कि संसार का भाग न बनना। (यूहन्ना १५:१९) इसलिए वे किसी सरकारी पद पर काम नहीं करते थे और फौज में काम करने से भी इनकार करते थे। इतिहासकार ऑगस्टस नेआन्डर कहता है कि उन्हें इसी वज़ह से “बैरागी और दुनिया के लिए बेकार बताया जाता था।” संसार का भाग न बनने के लिए मसीही भ्रष्ट रोमी संसार के बुरे और गंदे तौर-तरीकों से भी दूर रहते थे। इतिहासकार विल डूरॆन्ट बताता है, “ऐयाश और अधर्मी दुनिया के बीच में मसीहियों के छोटे-छोटे समुदायों ने अपनी शुद्धता और शराफत बरकरार रखी। इसकी वज़ह से ये मसीही उनकी आँखों में काँटे की तरह चुभते थे।” (१ पतरस ४:३, ४) शायद रोमियों ने अपने ज़मीर की उस आवाज़ को दबाने के लिए जो उन्हें परेशान कर रही थी, मसीहियों को सताने और मार डालने का रास्ता चुना।
१७. क्या बात दिखाती है कि पहली सदी के मसीहियों का प्रचार का काम बहुत असरदार था?
१७ पहली सदी के मसीही हमेशा बड़े जोश के साथ परमेश्वर के राज्य का सुसमाचार प्रचार करते थे। (मत्ती २४:१४) लगभग सा.यु. ६० तक, पौलुस कह सका कि सुसमाचार का “प्रचार आकाश के नीचे की सारी सृष्टि में किया गया” है। (कुलुस्सियों १:२३) पहली सदी के खत्म होने तक, यीशु के चेलों ने पूरे रोमी साम्राज्य में, यानी एशिया, यूरोप और अफ्रीका में शिष्य बना लिए थे! “कैसर के घराने” के कुछ लोग भी मसीही बन गए थे।a (फिलिप्पियों ४:२२) इस जोशीले प्रचार की वज़ह से कई लोग मसीहियों से नफरत भी करने लगे। नेआन्डर आगे कहता है: “मसीहियत हर तबके के लोगों में बढ़ती और फलती-फूलती जा रही थी, यहाँ तक कि इससे उस देश के मुख्य धर्म के मिटने का खतरा भी होने लगा था।”
१८. यहोवा को छोड़ किसी और की उपासना न करने की वज़ह से मसीही रोम की सरकार के दुश्मन कैसे बन गए?
१८ यीशु के चेले यहोवा को पूरी-पूरी भक्ति दिखाते थे, और उसे छोड़ किसी और की उपासना नहीं करते थे। (मत्ती ४:८-१०) शायद उनकी उपासना की यही वह सबसे बड़ी बात थी जिसकी वज़ह से रोमी समाज उनको पसंद नहीं करता था। रोमी समाज सिर्फ उन धर्मों को बर्दाश्त करता था जो उनके सम्राट की भी उपासना करते थे। पहली सदी के मसीही ऐसी उपासना हरगिज़ नहीं कर सकते थे। उन्हें यह एहसास था कि उन्हें रोमी सरकार से कहीं बड़े अधिकारी, यानी यहोवा परमेश्वर को लेखा देना है। (प्रेरितों ५:२९) इसलिए, चाहे एक मसीही दूसरी सभी बातों में कितना ही अच्छा नागरिक क्यों न था, फिर भी उसे सरकार का दुश्मन माना जाता था।
१९, २०. (क) वफादार मसीहियों के खिलाफ झूठी और घिनौनी अफवाहें फैलाने के लिए ज़्यादातर कौन लोग ज़िम्मेदार थे? (ख) मसीहियों पर कौन-से झूठे इलज़ाम लगाए गए थे?
१९ रोमी समाज में वफादार मसीहियों से ‘बैर किए जाने’ की एक और वज़ह यह थी कि उनके बारे में फैलायी गयी झूठी और घिनौनी अफवाहों पर बड़ी जल्दी विश्वास कर लिया जाता था और ऐसे झूठे इलज़ाम लगानेवालों में यहूदी धर्मगुरु सबसे आगे थे। (प्रेरितों १७:५-८) लगभग सा.यु. ६० या ६१ में, जब पौलुस सम्राट नीरो के सामने अपने मुकदमे की सुनवाई का इंतज़ार कर रहा था, तब उस वक्त के नामी-गिरामी यहूदियों ने मसीहियों के बारे में कहा: “हमें इस पंथ के सम्बन्ध में यह मालूम है कि सब जगह लोग इसके विरोध में बातें करते हैं।” (प्रेरितों २८:२२, NHT) नीरो ऐसी अफवाहों के बारे में ज़रूर जानता होगा। सामान्य युग ६४ में जब नीरो को उस बड़ी आग के लिए ज़िम्मेदार ठहराया गया जिसने रोम को तबाह कर दिया था, तो कहा जाता है कि नीरो ने इसके लिए पहले से ही बदनाम मसीहियों को बलि का बकरा बनाया। यही शायद ज़ुल्म और सितम के उस दौर की वज़ह थी जिसमें मसीहियों का नामो-निशान मिटा देने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी गई।
२० मसीहियों पर लगाए गए इलज़ाम सरासर गलत हुआ करते थे और उनके विश्वासों के बारे में झूठ बताया जाता था। क्योंकि वे एकमात्र परमेश्वर को छोड़ दूसरे देवी-देवताओं को नहीं मानते थे, और सम्राट की उपासना नहीं करते थे, इसलिए उन पर नास्तिक होने का इलज़ाम लगाया गया। मसीही बननेवालों के परिवार के बाकी सदस्य उनका विरोध करते थे, इसीलिए मसीहियों पर परिवारों में फूट डालने का इलज़ाम लगाया गया। (मत्ती १०:२१) उन पर इंसानों का माँस खाने का इलज़ाम लगाया गया। और जैसा कुछ हवालों से पता चलता है, प्रभु के संध्या भोज में यीशु ने जो बातें कही थीं, उसके गलत मतलब को यह इलज़ाम लगाने में बुनियाद की तरह इस्तेमाल किया गया।—मत्ती २६:२६-२८.
२१. किन दो कारणों से लोग मसीहियों से ‘बैर करते’ थे?
२१ इसलिए, रोमी लोगों के वफादार मसीहियों से ‘बैर करने’ के कुल मिलाकर दो खास कारण थे: (१) बाइबल पर आधारित उनके विश्वास और उन पर अमल करना, और (२) उन पर लगाए गए झूठे इलज़ाम। कारण चाहे जो भी हो, विरोधियों का बस एक ही मकसद था—मसीहियत को जड़ से उखाड़ देना। मसीहियों के खिलाफ सताहट भड़कानेवाले असल में सिर्फ इंसान ही नहीं थे, मगर उनके पीछे नज़र न आनेवाली दुष्टात्माओं के दल भी थे।—इफिसियों ६:१२.
२२. कौन-सी बातें दिखाती हैं कि यहोवा के साक्षी ‘सब के साथ भलाई करने’ की पूरी-पूरी कोशिश करते हैं? (पेज ११ का बक्स देखिए।) (ख) अगले लेख में किन सवालों के जवाब दिए जाएँगे?
२२ पहली सदी के मसीहियों की तरह ही आज कई देशों में लोग यहोवा के साक्षियों से ‘बैर करते हैं।’ मगर साक्षियों ने कभी उन लोगों से बैर नहीं किया है जो उनके विश्वास को नहीं अपनाते; न ही उन्होंने कभी किसी सरकार के खिलाफ बगावत भड़काई है। इसके बजाय, वे ऐसा सच्चा प्यार दिखाने के लिए दुनिया भर में मशहूर हैं, जो रंग, जाति, या भाषा का भेद, कुछ भी नहीं जानता। तो फिर उन्हें क्यों सताया जाता है? और ऐसे विरोध के वक्त वे क्या करते हैं? इन सवालों का जवाब अगले लेख में दिया जाएगा।
[फुटनोट]
a ज़रूरी नहीं कि शब्द “कैसर के घराने” का इस्तेमाल उस समय राज करनेवाले नीरो के अपने परिवार के लिए किया गया हो। इसके बजाय, यह शायद घरेलू नौकर-चाकरों और छोटे-मोटे कर्मचारियों का ज़िक्र करता है जो शाही घराने और उनके कर्मचारियों के लिए खाना पकाने और साफ-सफाई का काम करते थे।
आप क्या जवाब देंगे?
◻ किस वज़ह से यीशु ने चेले बननेवालों को ‘कीमत आँकने’ के लिए कहा था?
◻ गैर-यहूदियों के बारे में उस समय के आम रवैये का यहूदी धर्म पर क्या असर हुआ और इससे हम क्या सबक सीखते हैं?
◻ पहली सदी के वफादार मसीहियों को किन तीन समुदायों से विरोध का सामना करना पड़ा?
◻ किन कारणों से रोमी लोग पहली सदी के मसीहियों से ‘बैर करते’ थे?
[पेज 11 पर बक्स]
“सब के साथ भलाई करें”
यहोवा के साक्षी बाइबल कि इस सलाह को मानने की पूरी-पूरी कोशिश करते हैं कि “सब के साथ भलाई करें।” (गलतियों ६:१०) दूसरों के लिए उनके दिल में जो प्यार है, उसकी वज़ह से वे ज़रूरत के वक्त उन लोगों की मदद करते हैं जो उनके धर्म को नहीं मानते। मिसाल के तौर पर, १९९४ में जब रुवांडा तबाही और विनाश के दौर से गुज़र रहा था, तब यूरोप के साक्षियों ने आगे बढ़कर अफ्रीका के अपने भाइयों की मदद की। जल्द-से-जल्द मदद करने के लिए, फौरन ऐसे कैंप लगाए गए जिनमें हर तरह के इंतज़ाम थे, और जगह-जगह दवाखाने बनाए गए। हवाई-जहाज़ों से बहुत बड़ी तादाद में खाना, कपड़े और कंबल लाए गए। जिन शरणार्थियों को इस मदद से फायदा हुआ उनकी गिनती, रुवांडा के साक्षियों से तीन गुना से भी ज़्यादा थी।
[पेज 9 पर तसवीर]
पहली सदी के मसीही हमेशा बड़े जोश के साथ सुसमाचार का प्रचार करते थे