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  • अपने विश्‍वास की रक्षा करना

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  • अपने विश्‍वास की रक्षा करना
  • प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1998
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  • “तुम्हारी कोमलता सब मनुष्यों पर प्रगट हो”
  • कब चुप रहें, कब बोलें
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    प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1995
  • उनके विश्‍वास के कारण उनसे बैर किया गया
    प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1998
  • यहोवा के साक्षी उन पर लगे हर इलज़ाम को झूठा साबित क्यों नहीं करते?
    यहोवा के साक्षियों के बारे में अकसर पूछे जानेवाले सवाल
  • धार्मिकता के लिए सताए गए
    यहोवा के गवाह—विश्‍व भर में संयुक्‍त रूप से परमेश्‍वर की इच्छा पूरी करते हैं
और देखिए
प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1998
w98 12/1 पेज 13-18

अपने विश्‍वास की रक्षा करना

“मसीह को प्रभु जानकर अपने अपने मन में पवित्र समझो, और जो कोई तुम से तुम्हारी आशा के विषय में कुछ पूछे, तो उसे उत्तर देने के लिये सर्वदा तैयार रहो।”—१ पतरस ३:१५.

१, २. विरोध आने पर यहोवा के साक्षियों को हैरानी क्यों नहीं होती, पर वे क्या चाहते हैं?

आम तौर पर, दुनिया के ज़्यादातर देशों में यहोवा के साक्षी अपनी ईमानदारी और अच्छे चालचलन के लिए मशहूर हैं। अनेक लोग उन्हें ऐसे पड़ोसी समझते हैं जो कभी-भी किसी का नुकसान नहीं करते। फिर भी दुःख की बात है कि लोगों के साथ शांति से रहनेवाले इन मसीहियों पर बेवज़ह अत्याचार किया जाता है, चाहे युद्ध का वक्‍त हो या शांति का। मगर मसीही ऐसे विरोध आने पर हैरान नहीं होते। असल में उन्हें मालूम है कि ऐसा होगा। और फिर उन्हें तो पता ही है कि पहली सदी में लोग वफादार मसीहियों से ‘बैर करते’ थे। तो फिर आज जो मसीह के सच्चे चेले हैं वे यह उम्मीद क्यों न रखें कि उनसे बैर किया जाएगा? (मत्ती १०:२२) इसके अलावा, बाइबल यह भी तो कहती है: “जितने मसीह यीशु में भक्‍ति के साथ जीवन बिताना चाहते हैं वे सब सताए जाएंगे।”—२ तीमुथियुस ३:१२.

२ ऐसी बात नहीं है कि यहोवा के साक्षी जानबूझकर सताहट को बुलावा देना चाहते हैं। जुर्माना, कैद या बदसलूकी जैसी तकलीफें झेलने में उन्हें मज़ा नहीं आता। वे “चैन और शान्ति” के साथ जीवन जीना चाहते हैं ताकि वे बिना किसी रुकावट के परमेश्‍वर के राज्य के सुसमाचार का प्रचार कर सकें। (१ तीमुथियुस २:१, २, NHT) ज़्यादातर देशों में उपासना करने के लिए जो उन्हें आज़ादी मिली है उसकी वे कदर करते हैं। साथ ही वे पूरी ईमानदारी के साथ यह कोशिश करते हैं कि सभी देशों में राज चलानेवालों और “सब मनुष्यों के साथ मेल मिलाप” से रहें। (रोमियों १२:१८; १३:१-७) तो फिर, लोग उनसे “बैर” क्यों करते हैं?

३. यहोवा के साक्षियों से बेवज़ह नफरत किए जाने का एक कारण क्या है?

३ दरअसल, जिन कारणों से पहली सदी के मसीहियों पर अत्याचार किए गए थे, उन्हीं कारणों से आज यहोवा के साक्षियों से बेवज़ह नफरत की जा रही है। इनमें पहला कारण है, यहोवा के साक्षियों का अपने धर्म की शिक्षाओं पर अमल करने का तरीका, जिसे कई लोग पसंद नहीं करते। मिसाल के तौर पर, वे परमेश्‍वर के राज्य के सुसमाचार का प्रचार बड़े जोश से करते हैं। मगर लोग उनके इस जोश का गलत मतलब निकालकर उसे “ज़बरदस्ती धर्मपरिवर्तन” का नाम देते हैं। (प्रेरितों ४:१९, २० से तुलना कीजिए।) वे राष्ट्रों की राजनीति और युद्धों में किसी का भी पक्ष नहीं लेते। मगर कभी-कभी इसका गलत मतलब निकाला गया है कि वे गद्दार हैं और देश को किसी तरह का सहयोग नहीं देते।—मीका ४:३, ४.

४, ५. (क) यहोवा के साक्षियों पर किस तरह झूठे इलज़ाम लगाए गए हैं? (ख) यहोवा के सेवकों के खिलाफ सताहट भड़काने में अकसर सबसे ज़्यादा किन लोगों का हाथ रहा है?

४ दूसरा कारण यह है कि यहोवा के साक्षियों पर सरासर गलत इलज़ाम लगाए गए हैं। उनके खिलाफ सफेद झूठ बोले जाते हैं और उनके विश्‍वासों को तोड़-मरोड़कर बताया जाता है। इसका नतीजा यह हुआ है कि कुछ देशों में उन्हें एक खतरनाक पंथ करार दिया गया है। इसके अलावा, वे अपनी मर्ज़ी से बाइबल की इस आज्ञा पर चलना चाहते हैं कि ‘लोहू से परे रहना।’ इसलिए वे इलाज कराते वक्‍त खून नहीं लेते, जिसकी वज़ह से उन्हें गलत समझकर उन पर “बच्चों के हत्यारे” और “सुइसाइड कल्ट” (आत्महत्या पर उतारू पंथ) होने का इलज़ाम लगाया गया है। (प्रेरितों १५:२९) मगर सच तो यह है कि यहोवा के साक्षी जीवन को बहुत ही कीमती समझते हैं। वे अपना और अपने बच्चों का अच्छे-से-अच्छा इलाज कराने की पूरी-पूरी कोशिश करते हैं। यह इलज़ाम एकदम बेबुनियाद है कि हर साल यहोवा के साक्षियों के अनेक बच्चे इसलिए मर जाते हैं क्योंकि वे खून चढ़वाने से इंकार कर देते हैं। क्योंकि बाइबल की सच्चाई का परिवार के सभी सदस्यों पर एक-सा असर नहीं होता, इसलिए साक्षियों पर परिवारों में फूट डालने का इलज़ाम लगाया जाता है। मगर, जो लोग यहोवा के साक्षियों को अच्छी तरह जानते हैं उन्हें पता है कि साक्षी, पारिवार को बहुत ज़्यादा अहमियत देते हैं और बाइबल की इन आज्ञाओं को मानने की कोशिश करते हैं कि पति-पत्नी एक दूसरे से प्रेम करें और एक दूसरे का आदर करें, साथ ही बच्चे अपने माता-पिता की आज्ञा मानें, चाहे वे विश्‍वासी हों या नहीं।—इफिसियों ५:२१–६:३.

५ कई मामलों में, यहोवा के सेवकों के खिलाफ सताहट भड़काने में सबसे ज़्यादा धर्म के ठेकेदारों का हाथ रहा है। साक्षियों के काम को जड़ से उखाड़ने के लिए उन्होंने नेताओं से अपनी जान-पहचान का और समाचार-माध्यमों का इस्तेमाल किया है। हमें, यानी यहोवा के साक्षियों को ऐसे विरोध का जवाब कैसे देना चाहिए—चाहे इस विरोध की वज़ह हमारे विश्‍वास और उन पर हमारा अमल करना हो, या हम पर लगाए गए झूठे इलज़ाम हो?

“तुम्हारी कोमलता सब मनुष्यों पर प्रगट हो”

६. बाहरवालों के बारे में सही नज़रिया रखना क्यों ज़रूरी है?

६ सबसे पहले, हमें उन लोगों के बारे में सही नज़रिया रखना चाहिए जो हमारे धार्मिक विश्‍वासों को नहीं मानते; ऐसा नज़रिया जैसा यहोवा उनके बारे में रखता है। वरना हम बेकार ही दूसरों से दुश्‍मनी या बदनामी मोल लेंगे। प्रेरित पौलुस ने लिखा: “तुम्हारी कोमलता सब मनुष्यों पर प्रगट हो।” (फिलिप्पियों ४:५) इसलिए, बाइबल हमें सलाह देती है कि बाहरवालों के बारे में सही नज़रिया रखें।

७. अपने आपको इस ‘संसार से निष्कलंक रखने’ के लिए क्या-क्या करने की ज़रूरत है?

७ एक तरफ, बाइबल हमें साफ-साफ सलाह देती है कि हम “अपने आप को संसार से निष्कलंक रखें।” (याकूब १:२७; ४:४) यहाँ दिया गया शब्द “संसार,” सच्चे मसीहियों को छोड़ बाकी लोगों के समाज को सूचित करता है। इस अर्थ में शब्द “संसार” को बाइबल में कई और जगह भी इस्तेमाल किया गया है। हम लोगों के इस समाज के बीच रहते हैं; नौकरी करते वक्‍त, स्कूल में और पड़ोस में इन्हीं लोगों से हमारा मिलना-जुलना होता है। (यूहन्‍ना १७:११, १५; १ कुरिन्थियों ५:९, १०) फिर भी, ऐसे रवैये, बोली और व्यवहार से दूर रहकर, जो परमेश्‍वर के धर्मी मार्गों के विरुद्ध हैं, हम अपने आपको इस संसार से निष्कलंक रखते हैं। यह भी बहुत ज़रूरी है कि हम इस संसार के बहुत करीब आने के खतरे को समझें, खासकर ऐसे लोगों के करीब आने के खतरे को जिनकी नज़रों में यहोवा के स्तरों की बिलकुल भी अहमियत नहीं है।—नीतिवचन १३:२०.

८. संसार से निष्कलंक रहने की सलाह हमें क्यों दूसरों को नीच समझने की कोई वज़ह नहीं देती?

८ लेकिन दूसरी तरफ, संसार से निष्कलंक रहने की सलाह हमें उन लोगों को नीच समझने की कोई वज़ह नहीं देती जो यहोवा के साक्षी नहीं हैं। (नीतिवचन ८:१३) याद है, हमने पिछले लेख में यहूदी धर्मगुरुओं के उदाहरण देखे थे? अपने धर्म को उन्होंने जिस तरह का रूप दिया था, इससे उन्हें न तो यहोवा से आशीष मिली, न ही इससे गैर-यहूदियों के साथ उनके रिश्‍तों में सुधार आया। (मत्ती २१:४३, ४५) ये कट्टरपंथी लोग अपने आपको बहुत ऊँचा और धर्मी समझते थे और अन्यजाति के लोगों को नीच जाति का समझते थे। हम ऐसा संकीर्ण और ओछा नज़रिया नहीं रखेंगे और जो साक्षी नहीं हैं उन्हें नीचा नहीं समझेंगे। प्रेरित पौलुस की तरह, हमारी यह कामना है कि ऐसे सभी लोगों पर परमेश्‍वर की आशीष हो जो बाइबल की सच्चाई का संदेश सुनते हैं।—प्रेरितों २६:२९; १ तीमुथियुस २:३, ४.

९. जब हम गैर-साक्षियों का ज़िक्र करते हैं, तब बाइबल के सही नज़रिये का हमारे मन पर क्या असर होना चाहिए?

९ जब हम गैर-साक्षियों के बारे में ज़िक्र करते हैं, तब हमें बाइबल के सही नज़रिये को मन में रखना चाहिए। पौलुस ने तीतुस को क्रेते द्वीप के मसीहियों को यह याद दिलाने के लिए कहा कि “किसी को बदनाम न करें; झगड़ालू न हों: पर कोमल स्वभाव के हों, और सब मनुष्यों के साथ बड़ी नम्रता के साथ रहें।” (तीतुस ३:२) ध्यान दीजिए कि मसीहियों को “किसी को” भी बदनाम नहीं करना था—क्रेते के उन गैर-मसीहियों को भी नहीं जो झूठ बोलने, पेटूपन और आलसी होने के लिए बदनाम थे। (तीतुस १:१२) इसलिए हमसे अलग विश्‍वास रखनेवाले लोगों का ज़िक्र करने के लिए अगर हम घटिया शब्दों का इस्तेमाल करते हैं तो यह बाइबल की शिक्षा के खिलाफ होगा। अगर हम खुद को दूसरों से ऊँचा समझेंगे, तो इसे देखकर लोग यहोवा की उपासना की तरफ नहीं खींचेंगे। इसके बजाय, अगर हम दूसरों को यहोवा के वचन की शिक्षाओं की नज़र से देखें और उनसे वैसा ही अच्छा व्यवहार करें, तो हम परमेश्‍वर के “उपदेश को शोभा” दे रहे होंगे।—तीतुस २:१०.

कब चुप रहें, कब बोलें

१०, ११. यीशु ने कैसे दिखाया कि वह जानता था कि (क) कब “चुप रहने का समय” है? (ख) कब ‘बोलने का समय है’?

१० सभोपदेशक ३:७ कहता है, “चुप रहने का समय, और बोलने का भी समय [होता] है।” यहीं सबसे बड़ी मुश्‍किल आ खड़ी होती है: यह तय कर पाना कि कब विरोधियों को नज़रअंदाज़ करें और कब अपने विश्‍वास की रक्षा करने के लिए बोलें। हम एक ऐसे आदमी की मिसाल से बहुत कुछ सीख सकते हैं जिसके समझ-बूझ और बुद्धी से किए गए फैसले हमेशा सही और सिद्ध थे। वह आदमी था यीशु। (१ पतरस २:२१) वह जानता था कि कौन-सा “चुप रहने का समय” है। मिसाल के तौर पर, जब महायाजकों और पुरनियों ने पीलातुस के सामने उस पर झूठा इलज़ाम लगाया, तब यीशु ने “कुछ उत्तर नहीं दिया।” (मत्ती २७:११-१४) वह ऐसा कुछ भी नहीं कहना चाहता था जिससे उसके लिए ठहरायी गयी परमेश्‍वर की इच्छा पूरी करने में कोई रुकावट आए। इसके बजाय, उसने अपने कामों के द्वारा गवाही दी। वह जानता था कि उनके अहंकारी मन और कठोर हृदय को सच्चाई भी नहीं बदल सकती थी। इसीलिए उसने उनके इलज़ाम का कोई जवाब नहीं दिया और सब कुछ जानते और समझते हुए भी खामोश रहा।—यशायाह ५३:७.

११ लेकिन, यीशु यह भी जानता था कि कब ‘बोलने का समय है।’ कभी-कभी, वह अपने विरोधियों से खुलकर और बेधड़क होकर सवाल-जवाब करता था और उनके झूठे इलज़ामों को गलत साबित करता था। मिसाल के तौर पर, जब शास्त्रियों और फरीसियों ने भीड़ के सामने उस पर इलज़ाम लगाया कि वह शैतान की मदद से दुष्टात्माओं को निकालता है, तो यीशु ने तय किया कि वह इन इलज़ामों को झूठा साबित करेगा। ज़बरदस्त दलीलों और दमदार उदाहरण देकर उसने झूठ की धज्जियाँ उड़ा दीं। (मरकुस ३:२०-३०. मत्ती १५:१-११; २२:१७-२१; यूहन्‍ना १८:३७ भी देखिए।) उसी तरह, जब यीशु को पकड़वाए जाने और गिरफ्तार किए जाने के बाद घसीटकर महासभा के सामने लाया गया, तब महायाजक कैफा ने चालाकी और धूर्तता से उससे कहा: “मैं तुझे जीवते परमेश्‍वर की शपथ देता हूं, कि यदि तू परमेश्‍वर का पुत्र मसीह है, तो हम से कह दे।” यह ‘बोलने का समय’ था, क्योंकि खामोश रहने का यह मतलब निकाला जा सकता था कि वह मसीह होने से इंकार कर रहा है। इसलिए यीशु ने जवाब दिया: “हां मैं हूं।”—मत्ती २६:६३, ६४; मरकुस १४:६१, ६२.

१२. इकुनियुम में पौलुस और बरनबास को किन हालात की वज़ह से लगा कि यह निर्भयता से बात करने का समय है?

१२ पौलुस और बरनबास की मिसाल पर भी गौर कीजिए। प्रेरितों १४:१, २ कहता है: “इकुनियुम में ऐसा हुआ कि वे यहूदियों की आराधनालय में साथ साथ गए, और ऐसी बातें कीं, कि यहूदियों और यूनानियों दोनों में से बहुतों ने विश्‍वास किया। परन्तु न माननेवाले यहूदियों ने अन्यजातियों के मन भाइयों के विरोध में उसकाए, और बिगाड़ कर दिए।” न्यू इंग्लिश बाइबल कहती है: “मगर जो यहूदी परिवर्तित नहीं हुए उन्होंने अन्यजातियों को उकसाया और मसीहियों के खिलाफ उनके मन में ज़हर भर दिया।” यहूदी विरोधियों ने खुद तो संदेश को ठुकराया ही, मगर इतने पर भी उनका जी नहीं भरा। वे मसीहियों के खिलाफ अन्यजातियों को भड़काने के लिए गंदी साज़िश करने लगे।a वे मसीहियत से कितनी बुरी तरह नफरत करते थे! (प्रेरितों १०:२८ से तुलना कीजिए।) पौलुस और बरनबास को लगा कि यह ‘बोलने का समय है।’ अगर वे नहीं बोलते तो लोगों के सामने हो रही बदनामी से नए चेलों का दिल टूट जाता। “इसलिए वे वहां बहुत दिनों तक रहे और प्रभु [यहोवा] पर भरोसा रखते हुए निर्भयता से प्रचार करते रहे।” और यहोवा ने उन्हें चमत्कार करने की शक्‍ति देकर यह दिखाया कि वह उनसे खुश है। इसकी वज़ह से कुछ लोग “यहूदियों के पक्ष में और कुछ प्रेरितों के पक्ष में हो गए।”—प्रेरितों १४:३, ४, NHT.

१३. बदनामी का सामना करते वक्‍त, “चुप रहने का समय” खासकर कब होता है?

१३ तो फिर, जब हमें बदनाम किया जाता है तब हमें क्या करना चाहिए? यह सब हालात पर निर्भर करता है। कुछ ऐसे हालात हो सकते हैं जो हमसे इस उसूल पर चलने की माँग करें कि यह “चुप रहने का समय” है; खासकर तब जब कट्टर विरोधी हमें बेकार की बहस में उलझाना चाहते हैं। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि कुछ लोगों को सच्चाई में रत्ती भर भी दिलचस्पी नहीं होती। (२ थिस्सलुनीकियों २:९-१२) ऐसे लोगों को समझाने का कोई फायदा नहीं जो मन के घमंडी हैं और विश्‍वास करना ही नहीं चाहते। इसके अलावा, अगर हम झूठे इलज़ाम लगानेवाले हर आदमी के साथ बहस में उलझे रहें, तो हम एक बहुत ही ज़रूरी और फायदेमंद काम नहीं कर पाएँगे, और वह है ऐसे सच्चे दिल के लोगों की मदद करना जो सचमुच बाइबल की सच्चाई जानना चाहते हैं। इसलिए जब हमारा सामना ऐसे विरोधियों से होता है जो हमारे बारे में झूठी अफवाहें फैलाने पर तुले हुए हैं, तो परमेश्‍वर की सलाह यह है कि “उन से दूर रहो।”—रोमियों १६:१७, १८; मत्ती ७:६.

१४. किन तरीकों से हम दूसरों के सामने अपने विश्‍वास की रक्षा कर सकते हैं?

१४ इसका मतलब यह हरगिज़ नहीं है कि हम अपने विश्‍वास की रक्षा नहीं करते। और फिर, “बोलने का भी [तो] समय है।” इसलिए हम उन नेकदिल लोगों को ज़रूर समझाना चाहते हैं जिन पर हमें बदनाम करनेवाली अफवाहों का असर हुआ है। हम इन लोगों को अपने पक्के विश्‍वास के बारे में न सिर्फ साफ-साफ समझाना चाहते हैं, बल्कि ऐसा करने में हमें खुशी भी होती है। पतरस ने लिखा: “मसीह को प्रभु जानकर अपने अपने मन में पवित्र समझो, और जो कोई तुम से तुम्हारी आशा के विषय में कुछ पूछे, तो उसे उत्तर देने के लिये सर्वदा तैयार रहो, पर नम्रता और भय के साथ।” (१ पतरस ३:१५) जब सच्ची दिलचस्पी दिखानेवाले लोग हमारे अनमोल विश्‍वास का सबूत माँगते हैं, और विरोधियों द्वारा लगाए गए झूठे इलज़ामों के बारे में पूछताछ करते हैं, तब यह हमारा फर्ज़ बनता है कि बाइबल से सही-सही जवाब देकर अपने विश्‍वास की रक्षा करें। इसके अलावा, हमारा अच्छा चालचलन भी हमारे बारे में बहुत बड़ी गवाही दे सकता है। जब समझदार और खुला दिमाग रखनेवाले लोग देखते हैं कि हम सचमुच परमेश्‍वर के धर्मी मार्गों के मुताबिक जीने की कोशिश कर रहे हैं, तो उन्हें यह समझते देर नहीं लगती कि हमारे खिलाफ लगाए गए इलज़ाम झूठे हैं।—१ पतरस २:१२-१५.

बदनाम करनेवाली खबरों के बारे में क्या?

१५. एक मिसाल दीजिए कि कैसे समाचार माध्यमों में यहोवा के साक्षियों के बारे में गलत जानकारी फैलायी गयी है।

१५ कभी-कभी, यहोवा के साक्षियों के बारे में समाचार-माध्यमों में गलत जानकारी फैलायी जाती है। मिसाल के तौर पर, अगस्त १, १९९७ को रूस के एक अखबार में यहोवा के साक्षियों को बदनाम करनेवाला एक लेख छपा था। इस लेख में कई गलत इलज़ामों के अलावा यह दावा किया गया था कि साक्षी अपने सदस्यों से ज़बरन माँग करते हैं कि ‘अगर उनके पति, पत्नी या माता-पिता उनके विश्‍वास को नहीं समझते और उसे नहीं अपनाते, तो उन्हें छोड़ दें।’ ऐसे किसी भी आदमी को, जो यहोवा के साक्षियों को अच्छी तरह जानता है, यह मालूम है कि यह इलज़ाम सरासर गलत है। बाइबल बताती है कि मसीहियों को परिवार के अविश्‍वासी सदस्यों के साथ प्यार और आदर से व्यवहार करना है और साक्षी इस सलाह को अमल में लाने की पूरी-पूरी कोशिश करते हैं। (१ कुरिन्थियों ७:१२-१६; १ पतरस ३:१-४) फिर भी यह लेख छापा गया और पढ़नेवालों को गलत जानकारी मिली। जब हम पर झूठे इलज़ाम लगाए जाते हैं तब हम अपने विश्‍वास की रक्षा कैसे कर सकते हैं?

१६, १७, और पेज १६ का बक्स. (क) मीडिया के ज़रिये फैलायी जा रही गलत जानकारी का जवाब देने के बारे में एक बार प्रहरीदुर्ग ने क्या कहा? (ख) किन हालात में यहोवा के साक्षी मीडिया द्वारा दी गयी गलत रिपोर्ट का जवाब दे सकते हैं?

१६ फिर वही बात आती है कि “चुप रहने का समय, और बोलने का भी समय [होता] है।” प्रहरीदुर्ग में एक बार यूँ कहा गया था: ‘यह परिस्थितियों पर, आलोचना के उकसानेवाले पर, और उसके उद्देश्‍य पर निर्भर करता है कि क्या हम मीडिया की गलत जानकारी को नज़रअंदाज़ करेंगे या सही तरीके से सच्चाई की रक्षा करेंगे।’ कुछ मामलों में गलत रिपोर्ट को नज़रअंदाज़ करना सबसे अच्छा होता है, जिससे इस गलत जानकारी का और ज़्यादा ढिंढोरा नहीं पीटता।

१७ लेकिन दूसरे मामलों में ‘बोलने का समय’ हो सकता है। एक भरोसेमंद और सच्चे पत्रकार या रिपोर्टर को यहोवा के साक्षियों के बारे में शायद गलत जानकारी मिली हो, और वह शायद हमारे बारे में सच्चाई जानकर खुश हो। (“गलतफहमी को दूर करना” बक्स देखिए।) अगर मीडिया की गलत रिपोर्ट हमारे बारे में ऐसी गलत धारणा पैदा करती है जो हमारे प्रचार काम में रुकावट डालती है, तो वॉच टावर सोसाइटी के ब्रांच ऑफिस के ज़िम्मेदार भाई किसी उचित माध्यम का इस्तेमाल करके सच्चाई की रक्षा करने के लिए कदम उठा सकते हैं।b मिसाल के तौर पर, अगर हमें टीवी कार्यक्रमों में बुलाया जाता है, तो अनुभवी और आध्यात्मिक प्राचीनों को खुलासा करके सच्चाई बताने की ज़िम्मेदारी दी जा सकती है। और ऐसा करना ज़रूरी है क्योंकि इसमें भाग न लेने का यह मतलब निकाला जा सकता है कि यहोवा के साक्षियों के पास इन झूठे इलज़ामों का कोई जवाब नहीं है। हर साक्षी इन मामलों में वॉच टावर सोसाइटी और उनके ज़िम्मेदार भाइयों के निर्देशों के मुताबिक चलकर समझदारी दिखाता है।—इब्रानियों १३:१७.

कानून के ज़रिये सुसमाचार की रक्षा करना

१८. (क) हमें प्रचार करने के लिए दुनिया की सरकारों की इजाज़त क्यों नहीं चाहिए? (ख) जब हमें प्रचार करने के लिए मना किया जाता है तो हम कौन-सा रास्ता अपनाते हैं?

१८ परमेश्‍वर के राज्य का सुसमाचार सुनाने का अधिकार हमें स्वर्ग से मिला है। यीशु ने हमें यह काम करने की ज़िम्मेदारी सौंपी है, जिसे “स्वर्ग और पृथ्वी का सारा अधिकार . . . दिया गया है।” (मत्ती २८:१८-२०; फिलिप्पियों २:९-११) इसलिए, हमें प्रचार करने के लिए दुनिया की सरकारों की इजाज़त नहीं चाहिए। फिर भी, हमें एहसास है कि अगर हमारे देश में धर्म की आज़ादी है, तो इससे राज्य संदेश का प्रचार करना और भी आसान हो जाता है। जिन देशों में हमें धर्म की आज़ादी है वहाँ हम इस आज़ादी की रक्षा करने के लिए कानून का इस्तेमाल करेंगे। और जिन देशों में हमसे ऐसी आज़ादी छीन ली गयी है, वहाँ हम उसी देश के कानून के दायरे में रहकर इस आज़ादी को पाने की कोशिश करेंगे। हमारा मकसद सामाजिक क्रांति लाना नहीं, बल्कि ‘सुसमाचार की रक्षा और उसका पुष्टिकरण’ करना है।c—फिलिप्पियों १:७, NHT.

१९. (क) ‘जो परमेश्‍वर का है, वह परमेश्‍वर को देने’ का क्या नतीजा हो सकता है? (ख) हम क्या करने से कभी नहीं रुकेंगे?

१९ यहोवा के साक्षी होने के नाते, हम यह मानते हैं कि यहोवा पूरी दुनिया का महाराजाधिराज और मालिक है। उसका कानून ही सबसे बड़ा कानून है। फिर भी, हम वफादारी से दुनिया की सरकारों की आज्ञा मानते हैं, और इस तरह ‘जो कैसर का है, वह कैसर को देते हैं।’ मगर हमारी इससे कहीं ज़्यादा बड़ी एक ज़िम्मेदारी है जिसे पूरा करने में हम किसी भी चीज़ को आड़े नहीं आने देंगे। और वह ज़िम्मेदारी है ‘जो परमेश्‍वर का है, वह परमेश्‍वर को देना।’ (मत्ती २२:२१) हम अच्छी तरह जानते हैं कि ऐसा करने का नतीजा यह होगा कि जाति-जाति के लोग हमसे “बैर” करेंगे, मगर हम इस बैर को चेले होने की कीमत समझकर स्वीकार करते हैं। इस २०वीं सदी में यहोवा के साक्षियों का कानूनी रिकार्ड इस बात की गवाही देता है कि हम अपने विश्‍वास की रक्षा करने के लिए अटल हैं। यहोवा के सहारे और मदद से, हम ‘उपदेश करने और सुसमाचार सुनाने से कभी नहीं रुकेंगे।’—प्रेरितों ५:४२.

[फुटनोट]

a मैथ्यू हॆन्रीज़ कमेंट्री आन द होल बाइबल कहती है कि यहूदी विरोधियों का “यह काम ही बन गया था कि किसी भी पहचानवाले [अन्यजाति के व्यक्‍ति] के पास जानबूझकर जाएँ और मनगढंत और झूठी बातें बोलकर मसीहियत की जी भरके बुराई करें और इसके बारे में उनके मन में ऐसे गंदे विचार पैदा करें, जिससे वे लोग मसीहियत को न सिर्फ घटिया समझें, बल्कि उससे पूरी तरह नफरत भी करने लगें।”

b रूसी अखबार में (जिसके बारे में पैराग्राफ १५ में बताया गया है) उस बदनाम करनेवाले लेख के छपने के बाद, यहोवा के साक्षियों ने ‘रूसी राज्यसंघ के मीडिया-संबंधी विवादों के लिए राष्ट्रपति न्याय-मंडल’ को अपील की और उनसे दरख्वास्त की कि लेख में लगाए गए झूठे इलज़ामों पर गौर किया जाए। हाल ही में उस अदालत ने ऐसा फैसला सुनाया जिसमें उस लेख को छापने के लिए उस अखबार के संपादक को इसका खामियाज़ा भरने के लिए कहा गया।—दिसंबर ८, १९९८ की सजग होइए! के पेज २६-७ देखिए।

c पेज १९-२२ पर लेख “कानूनी तौर पर सुसमाचार की रक्षा करना” देखिए।

क्या आपको याद है

◻ लोग यहोवा के साक्षियों से क्यों “बैर” करते हैं?

◻ हमें गैर-साक्षियों के बारे में कैसा नज़रिया रखना चाहिए?

◻ विरोधियों से व्यवहार करते वक्‍त, यीशु ने कौन-सी अच्छी मिसाल कायम की?

◻ जब हमें बदनाम किया जाता है, तब हम कैसे इस उसूल को लागू कर सकते हैं कि “चुप रहने का समय, और बोलने का भी समय है”?

[पेज 16 पर बक्स]

गलतफहमी को दूर करना

“याक्वीबा, बोलिविया के एक ईसाई समूह ने एक टीवी केंद्र से ऐसी फिल्म दिखाने का इंतज़ाम किया जो साफ तौर पर हमारे धर्मद्रोहियों ने बनायी थी। इस कार्यक्रम के बुरे असर को देखते हुए, प्राचीनों ने दो टीवी केंद्रों पर जाने का फैसला किया और लोगों को दो वीडियो कैसॆट दिखाने के लिए उन केंद्रों को पैसे देने की पेशकश की। ये वीडियो थे यहोवा के साक्षी—इस नाम से जुड़ा हुआ संगठन और बाइबल—सच्चाई और भविष्यवाणियों की किताब। सोसाइटी के वीडियो देखने के बाद, एक रेडियो स्टेशन का मालिक, धर्मद्रोहियों के कार्यक्रम में बतायी गयी गलत जानकारी से बहुत गुस्सा हुआ और उसने यहोवा के साक्षियों के आनेवाले अधिवेशन के लिए मुफ्त में घोषणा कराने की पेशकश की। इस अधिवेशन के लिए बहुत बड़ी तादाद में लोग आए और जब साक्षी उनसे घर-घर की सेवकाई में मिले तो कई नेकदिल लोगों ने खुलासा करने के लिए उनसे सवाल पूछे।”—१९९७ यहोवा के साक्षियों का इयरबुक, पेज ६१-२.

[पेज 17 पर तसवीर]

कभी-कभी यीशु ने अपने विरोधियों द्वारा लगाए गए झूठे इलज़ामों को खुलकर गलत साबित किया

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