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  • “हे मेरे मन, यहोवा को धन्य कह”

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  • “हे मेरे मन, यहोवा को धन्य कह”
  • प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1999
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प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1999
w99 5/15 पेज 21-24

“हे मेरे मन, यहोवा को धन्य कह”

नैनसीa कहती है, “पिछले कुछ महीनों से सेवकाई में मुझे बिलकुल मज़ा नहीं आ रहा।” वह करीब दस साल से पायनियर है, यानी सुसमाचार की पूर्ण-समय की उद्‌घोषक। वह आगे कहती है: “मुझे अच्छा नहीं लग रहा, मालूम नहीं मेरे साथ ऐसा क्यों हो रहा है। ऐसा लगता है कि राज्य संदेश सुनाने में मेरा जोश कम हो गया है। अब मैं यह काम दिल से नहीं कर पा रही। मैं क्या करूँ?”

कीथ के उदाहरण पर भी गौर कीजिए, वह यहोवा के साक्षियों की एक कलीसिया में प्राचीन है। उसे बहुत अजीब लगा जब उसकी पत्नी ने कहा: “जनाब आप किस दुनिया में खोए हुए हैं, अभी-अभी जो आपने प्रार्थना की थी उसमें आपने भोजन के लिए धन्यवाद दिया जबकि ये खाने का समय नहीं है!” कीथ कबूल करता है: “मुझे दिख रहा है कि मेरी प्रार्थनाएँ दिल से होने के बजाय रटी-रटाई सी बन गई हैं।”

बेशक आप यहोवा परमेश्‍वर की स्तुति बेमन और रटे-रटाए तरीके से करना नहीं चाहेंगे। इसके बजाय, आप चाहेंगे कि दिल से उसकी स्तुति करें और उसका एहसान मानें। लेकिन भावनाओं को कपड़ों की तरह पहना-उतारा नहीं जा सकता। ये तो इंसान के अंदर से ही आनी चाहिए। तो फिर कैसे एक व्यक्‍ति दिल से एहसानमंद हो सकता है? इसके बारे में भजन १०३ हमें गहरी समझ देता है।

इस १०३वें भजन को प्राचीन इस्राएल के राजा दाऊद ने लिखा था। उसने इन शब्दों से शुरूआत की: “हे मेरे मन, यहोवा को धन्य कह; और जो कुछ मुझ में है, वह उसके पवित्र नाम को धन्य कहे।” (भजन १०३:१) इसके बारे में एक किताब कहती है, “जिस तरह शब्द धन्य परमेश्‍वर के लिए इस्तेमाल किया गया है उसका मतलब है परमेश्‍वर की स्तुति करना और इसमें उसके लिए गहरे प्रेम और एहसानमंदी की भावना भी शामिल है।” दाऊद प्रेम और एहसानमंदी भरे दिल से यहोवा की महिमा करना चाहता है इसलिए वह प्रोत्साहित होकर “यहोवा को धन्य” कहता है। लेकिन दाऊद जिस परमेश्‍वर की उपासना करता है उसके प्रति प्रेम की भावना उसमें कैसे आई?

इसका जवाब दाऊद ही देता है: “उसके [यहोवा के] किसी उपकार को न भूलना।” (भजन १०३:२) साफ है कि यहोवा के प्रति एहसानमंद होने का संबंध, ‘उसके उपकारों’ का मूल्यांकन करने और उन पर मनन करने से है। दाऊद यहोवा के कौन-से उपकारों के बारे में सोच रहा था? यहोवा परमेश्‍वर की सृष्टि, जैसे चाँदनी रात में तारों-भरा आकाश देखकर किसी का भी दिल सचमुच सृष्टिकर्ता के प्रति एहसानमंदी से भर सकता है। तारों-भरे आकाश को देखकर दाऊद बहुत प्रभावित हुआ। (भजन ८:३, ४; १९:१) लेकिन १०३वें भजन में, दाऊद यहोवा के एक बिलकुल ही अलग काम को याद करता है।

यहोवा “तेरे सब अधर्म को क्षमा करता” है

इस भजन में दाऊद परमेश्‍वर की दया के कामों के बारे में बताता है। इनमें सबसे पहले और बड़े काम के बारे बताते हुए वह गाता है: ‘यहोवा तेरे सब अधर्म को क्षमा करता है।’ (भजन १०३:३) दाऊद अपनी पापमय अवस्था के बारे में अच्छी तरह जानता था। बतशेबा के साथ व्यभिचारिक संबंध का जब भविष्यवक्‍ता नातान ने खुलासा किया, तब दाऊद ने बेझिझक स्वीकार किया: “मैं अधर्म के साथ उत्पन्‍न हुआ, और पाप के साथ अपनी माता के गर्भ में पड़ा।” (भजन ५१:५) टूटे दिल से उसने बिनती की: “हे परमेश्‍वर, अपनी करुणा के अनुसार मुझ पर अनुग्रह कर; अपनी बड़ी दया के अनुसार मेरे अपराधों को मिटा दे। मुझे भली भांति धोकर मेरा अधर्म दूर कर, और मेरा पाप छुड़ाकर मुझे शुद्ध कर!” (भजन ५१:१, २) क्षमा मिल जाने पर दाऊद ने कितना एहसानमंद महसूस किया होगा! असिद्ध इंसान होने की वज़ह से उसने अपने जीवन में दूसरे पाप भी किए, लेकिन उसने हमेशा पश्‍चाताप किया, ताड़ना स्वीकार की, और अपने मार्गों को सुधारा। यहोवा ने दाऊद पर जो दया की थी उसके बारे में सोचकर दाऊद परमेश्‍वर के इस बेहतरीन काम के लिए उसका धन्यवाद देने को प्रोत्साहित हुआ।

क्या हम भी पापी नहीं हैं? (रोमियों ५:१२) यहाँ तक कि प्रेरित पौलुस ने भी दुःखी होकर कहा: “मैं भीतरी मनुष्यत्व से तो परमेश्‍वर की व्यवस्था से बहुत प्रसन्‍न रहता हूं। परन्तु मुझे अपने अंगों में दूसरे प्रकार की व्यवस्था दिखाई पड़ती है, जो मेरी बुद्धि की व्यवस्था से लड़ती है, और मुझे पाप की व्यवस्था की बन्धन में डालती है जो मेरे अंगों में है। मैं कैसा अभागा मनुष्य हूं! मुझे इस मृत्यु की देह से कौन छुड़ाएगा?” (रोमियों ७:२२-२४) हम कितने एहसानमंद हो सकते हैं कि यहोवा हमारे पापों का हिसाब नहीं रखता! जब हम पश्‍चाताप करते और क्षमा माँगते हैं तब वह खुशी से हमारे पापों को क्षमा कर देता है।

दाऊद खुद को दिलासा देता है: “[यहोवा] तेरे सब रोगों को चंगा करता है।” (भजन १०३:३) क्योंकि चंगा करना दुरुस्त करना है, इसमें पापों को क्षमा करने से ज़्यादा शामिल है। इसमें यह भी शामिल है कि “रोगों”—हमारी गलतियों के बुरे परिणामों—को दूर कर दिया जाए। नई दुनिया में बेशक यहोवा पाप के शारीरिक परिणामों, जैसे बीमारी और मौत को समाप्त कर देगा। (यशायाह २५:८; प्रकाशितवाक्य २१:१-४) लेकिन आज भी परमेश्‍वर आध्यात्मिक रोगों से हमें चंगा कर रहा है। कुछ लोगों का रोग यह है कि उनका विवेक बुरा बन गया है और परमेश्‍वर के साथ उनका रिश्‍ता टूट गया है। इस संबंध में यहोवा ने व्यक्‍तिगत रूप से हममें से हरेक के लिए जो कुछ किया है उनमें से ‘उसके किसी उपकार को न भूलें।’

वह ‘तेरे प्राण को बचा लेता है’

दाऊद गाता है: “[यहोवा] तेरे प्राण को गड्ढे से उबारता है।” (भजन १०३:४, NHT) ‘गड्ढा’, मनुष्यजाति की साधारण कब्र—शिओल या हेडीस को दर्शाता है। इस्राएल का राजा बनने से पहले भी, दाऊद की जान खतरे में थी। उदाहरण के लिए, इस्राएल के राजा शाऊल ने नफरत की आग में जलकर, दाऊद का कत्ल करने की कई बार कोशिश की। (१ शमूएल १८:९-२९; १९:१०; २३:६-२९) पलिश्‍ती भी दाऊद की हत्या करना चाहते थे। (१ शमूएल २१:१०-१५) मगर हर बार यहोवा ने उसके प्राण को “गड्ढे” में गिरने से बचा लिया। यहोवा के इन उपकारों को याद करते वक्‍त दाऊद कितना एहसानमंद होता होगा!

आपके बारे में क्या? हताशा या दुःख के समय क्या यहोवा ने आपको सँभाला है? या क्या आप आज के ऐसे किस्से जानते हैं जिनमें उसने अपने वफादार साक्षियों को मौत के मुँह से बचाया है? रक्षा के उसके कामों के बारे में शायद आपको इसी पत्रिका के पन्‍नों से कुछ ऐसा पढ़ने को मिला हो। क्यों न कुछ समय निकालकर हम सच्चे परमेश्‍वर के इन कामों पर मनन करें और इनकी कदर करें? और हाँ, हम सब के पास पुनरुत्थान की आशा होने के कारण भी हम यहोवा के प्रति एहसानमंद हो सकते हैं।—यूहन्‍ना ५:२८, २९; प्रेरितों २४:१५.

यहोवा ने हमें ज़िंदगी दी है और उसका मज़ा लेने और उसे बेहतर बनाने के लिए ज़रूरी चीज़ें भी दी हैं। भजनहार बताता है कि परमेश्‍वर “तेरे सिर पर करुणा और दया का मुकुट बान्धता है।” (भजन १०३:४) मुसीबत की घड़ी में, यहोवा हमें छोड़ नहीं देता बल्कि अपने संगठन के द्वारा, और कलीसिया में नियुक्‍त प्राचीनों या चरवाहों के द्वारा हमारी मदद करता है। इस मदद से हम अपना आत्म-सम्मान और गौरव खोए बिना बुरी परिस्थिति का सामना कर पाते हैं। मसीही चरवाहे भेड़ों की बहुत देखभाल करते हैं। वे बीमारों और हताशों को प्रोत्साहित करते हैं और जो गिर गई हैं उन्हें उठाने के लिए अपनी तरफ से भरसक कोशिश करते हैं। (यशायाह ३२:१, २; १ पतरस ५:२, ३; यहूदा २२, २३) यहोवा की आत्मा इन चरवाहों को उकसाती है कि वे झुंड के साथ दया और प्रेम से व्यवहार करें। परमेश्‍वर की “करुणा और दया” बेशक उस मुकुट के समान है जो हमारी शोभा बढ़ाता और गरिमा प्रदान करता है! यहोवा के उपकारों को हमेशा याद रखते हुए आइए हम उसे और उसके पवित्र नाम को धन्य कहें।

खुद को समझाते हुए, भजनहार दाऊद आगे कहता है: “[यहोवा] तेरी लालसा को उत्तम पदार्थों से तृप्त करता है, जिस से तेरी जवानी उकाब की नाईं नई हो जाती है।” (भजन १०३:५) यहोवा जो जीवन देता है वह संतुष्टि और आनंद का होता है। सत्य का ज्ञान पाना ही एक अनमोल खज़ाने के बराबर है और इससे बहुत आनंद मिलता है! और गौर कीजिए कि यहोवा ने प्रचार करने और चेला बनाने का जो काम हमें दिया है उसे करने से भी हमें कितनी संतुष्टि मिलती है। जब हम किसी ऐसे व्यक्‍ति से मिलते हैं जो सच्चे परमेश्‍वर के बारे में सीखना चाहता है और वह इतना सीख जाता है कि वह भी यहोवा को धन्य कहने लगता है तब हमें कितनी खुशी मिलती है! लेकिन चाहे हमारे क्षेत्र में कोई सुने या न सुने, इस महान काम में हिस्सा लेना ही एक बड़ी आशीष है क्योंकि इस काम में यहोवा के नाम का पवित्रीकरण और उसकी सर्वसत्ता का दोषनिवारण शामिल है।

क्या कोई ऐसा है जो परमेश्‍वर के राज्य का प्रचार लगन से करते वक्‍त कभी न थके या हिम्मत न हारे? मगर यहोवा अपने सेवकों को नई शक्‍ति देता रहता है और उन्हें ताकतवर पंखोंवाले और बहुत ऊँचाई तक उड़नेवाले ‘उकाबों की तरह’ बना देता है। हम अपने प्रेममय स्वर्गीय पिता के बेहद एहसानमंद हो सकते हैं जो हमें “बहुत सामर्थ” देता है ताकि हम वफादारी से हर रोज़ अपनी सेवकाई को पूरा कर सकें!—यशायाह ४०:२९-३१.

यह उदाहरण देखिए: क्लॆरा पूरा दिन नौकरी करती है मगर फिर भी वह हर महीने ६० घंटे क्षेत्र-सेवकाई में बिताती है। वह कहती है: “कभी-कभी मैं बहुत थक जाती हूँ, और क्षेत्र-सेवा में जाने के लिए मुझे अपने साथ ज़बरदस्ती करनी पड़ती है, सिर्फ इसलिए कि मैंने किसी को पहले से ही कह रखा होता है कि हम मिलकर प्रचार करेंगे। मगर जब एक बार मैं घर से बाहर निकल जाती हूँ, तो फिर से मुझ में ताकत आ जाती है।” आपने भी शायद ऐसा महसूस किया हो कि जब आप मसीही-सेवकाई में जाते हैं तो परमेश्‍वर की सामर्थ आपकी मदद करती है। शायद आप भी दाऊद की तरह कहना चाहें जैसा उसने इस भजन के शुरूआती शब्दों में कहा: “हे मेरे मन, यहोवा को धन्य कह; और जो कुछ मुझ में है, वह उसके पवित्र नाम को धन्य कहे।”

यहोवा अपने लोगों को बचाता है

भजनहार यह भी गाता है: “यहोवा सब पिसे हुओं के लिये धर्म और न्याय के काम करता है। उस ने मूसा को अपनी गति, और इस्राएलियों पर अपने काम प्रगट किए।” (भजन १०३:६, ७) ऐसा गाते वक्‍त दाऊद शायद मूसा के दिनों में मिस्रियों के अत्याचार के बारे में सोच रहा था जिसमें इस्राएली ‘पिस’ रहे थे। यहोवा ने मूसा को जिस तरह छुटकारे के तरीके के बारे में बताया उस पर मनन करने से दाऊद के दिल में एहसानमंदी की भावना उत्पन्‍न हुई होगी।

इस्राएलियों के साथ परमेश्‍वर के व्यवहार पर मनन करने से हमारे अंदर भी एहसानमंदी पैदा हो सकती है। और हम किताब यहोवा के साक्षी—परमेश्‍वर के राज्य के उद्‌घोषक (अंग्रेज़ी) में अध्याय २९ और ३० में दिए गए इस सदी के यहोवा के सेवकों के अनुभवों पर भी विचार करना न भूलें। इस किताब के साथ-साथ वॉच टावर सोसाइटी के अन्य प्रकाशनों में दिए गए दूसरे अनुभव हमें यह देखने में मदद देते हैं कि कैसे यहोवा ने हमारे समय में अपने लोगों की मदद की है जिससे वे कैद, भीड़ का आक्रोश, पाबंदी, यातना कैम्प, और दास-मज़दूरी कैम्प में अपनी खराई बनाए रख सके। बुरूण्डी, भूतपूर्व यूगोस्लाविया, रूवाण्डा और लाइबीरिया जैसे युद्ध-ग्रस्त क्षेत्रों में सताहटें आई हैं। लेकिन जब कभी सताहट आई है, तब यहोवा के हाथों ने हमेशा अपने वफादार सेवकों को सम्भाला है। हमारे महान परमेश्‍वर यहोवा के इन उपकारों पर ध्यान देने से हम पर भी वैसा ही असर हो सकता है जैसा मिस्र से छुटकारा पाने के वर्णन पर विचार करने से दाऊद पर हुआ।

इस पर भी गौर कीजिए कि यहोवा कितनी कोमलता से हमें पाप के बोझ से छुड़ाता है। उसने हमारी खातिर “मसीह का लोहू” दिया है ताकि हमारे ‘विवेक को मरे हुए कामों से शुद्ध करे।’ (इब्रानियों ९:१४) जब हम मसीह के बहाए गए लोहू के आधार पर अपने पापों से पश्‍चाताप करते हैं और क्षमा माँगते हैं, तब परमेश्‍वर हमारे पापों को हम से उतना दूर कर देता है जितना ‘उदयाचल अस्ताचल से दूर है’ और फिर से हम पर अनुग्रह करने लगता है। यहोवा के इन प्रबंधों पर मनन कीजिए जैसे मसीही सभाएँ, प्रोत्साहक संगति, कलीसिया में चरवाहे, और बाइबल आधारित प्रकाशन जो हम “विश्‍वासयोग्य और बुद्धिमान दास” से पाते हैं। (मत्ती २४:४५) यहोवा ने हमारे लिए इतना सब कुछ किया है तो क्या इससे उसके साथ हमारा रिश्‍ता और भी मज़बूत नहीं बनता? दाऊद घोषणा करता है: “यहोवा दयालु और अनुग्रहकारी, विलम्ब से कोप करनेवाला और अति करुणामय है। . . . उस ने हमारे पापों के अनुसार हम से व्यवहार नहीं किया, और न हमारे अधर्म के कामों के अनुसार हम को बदला दिया है।” (भजन १०३:८-१४) यहोवा द्वारा प्रेम से दी गई मदद पर मनन करने से हम निश्‍चित ही उसकी महिमा करने और उसके पवित्र नाम की स्तुति करने के लिए प्रोत्साहित हो सकते हैं।

‘हे सारी सृष्टि यहोवा को धन्य कह’

‘अनन्तकाल के परमेश्‍वर’ यहोवा की अमरता की तुलना में “मनुष्य की आयु” सचमुच बहुत कम यानी “घास के समान” है। लेकिन दाऊद एहसानमंदी दिखाते हुए बताता है: “यहोवा की करुणा उसके डरवैयों पर युग युग, और उसका धर्म उनके नाती-पोतों पर भी प्रगट होता रहता है, अर्थात्‌ उन पर जो उसकी वाचा का पालन करते और उसके उपदेशों को स्मरण करके उन पर चलते हैं।” (उत्पत्ति २१:३३, NHT; भजन १०३:१५-१८) यहोवा उनको कभी नहीं भूलता जो उसका भय मानते हैं। समय आने पर वह उन्हें अनन्त जीवन देगा।—यूहन्‍ना ३:१६; १७:३.

यहोवा की राजसत्ता के प्रति एहसानमंदी दिखाते हुए दाऊद कहता है: “यहोवा ने तो अपना सिंहासन स्वर्ग में स्थिर किया है, और उसका राज्य पूरी सृष्टि पर है।” (भजन १०३:१९) हाँलाकि यहोवा की राज्यसत्ता इस्राएल राज्य के माध्यम से कुछ समय तक देखी जा सकी, लेकिन उसका सिंहासन स्वर्ग में ही है। सृष्टिकर्ता होने के नाते, यहोवा इस विश्‍व-मंडल का सर्वसत्ताधारी शासक है और अपने उद्देश्‍यों के अनुसार स्वर्ग और पृथ्वी पर अपनी इच्छा को पूरा करता है।

दाऊद स्वर्गदूतों को भी प्रोत्साहन देता है। वह गाता है: “हे यहोवा के दूतो, तुम जो बड़े वीर हो, और उसके वचन के मानने से उसको पूरा करते हो उसको धन्य कहो! हे यहोवा की सारी सेनाओ, हे उसके टहलुओ, तुम जो उसकी इच्छा पूरी करते हो, उसको धन्य कहो! हे यहोवा की सारी सृष्टि, उसके राज्य के सब स्थानो में उसको धन्य कहो। हे मेरे मन, तू यहोवा को धन्य कह!” (भजन १०३:२०-२२) हमारे प्रति किए गए यहोवा की दया के कामों पर मनन करने से क्या हम भी उसे धन्य कहने के लिए प्रोत्साहित नहीं होते? ज़रूर होते हैं! साथ-ही हम निश्‍चित हो सकते हैं कि परमेश्‍वर की स्तुति के लिए उठी हमारी आवाज़, उसका गुणगान करनेवालों की भीड़ में जिनमें धर्मी स्वर्गदूत भी शामिल हैं, गुम नहीं होगी। आइए हम पूरे दिल से अपने स्वर्गीय पिता की स्तुति करें, हमेशा उसकी बढ़ाई करें। आइए हम दाऊद के शब्दों को अपने दिलों में बसा लें, “हे मेरे मन, यहोवा को धन्य कह।”

[फुटनोट]

a कुछ नामों को बदल दिया गया है।

[पेज 23 पर तसवीर]

दाऊद ने यहोवा की दया के कामों पर मनन किया। क्या आप भी करते हैं?

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