आपको अपने वादे क्यों निभाने चाहिए?
अमरीका के वाइट हाउस के एक दिवंगत सदस्य, बर्नार्ड बारुक ने कहा था: “वोट उस आदमी को दीजिए, जो सबसे कम वादे करता है क्योंकि वह सबसे कम निराश करता है।” आज के ज़माने में तो लगता है कि वादे बस तोड़ने के लिए ही किए जाते हैं। ये वादे चाहे शादी निभाने के हों, बिज़नॆस के समझौते पूरा करने के हों या बच्चों के साथ ज़्यादा वक्त बिताने के हों। पहले ज़माने में लोग अपने वादे के इतने पक्के हुआ करते थे कि वे कहते थे, “प्राण जाए पर वचन न जाए।” लेकिन आज किसी को भी अपने वादे निभाने की कोई परवाह नहीं।
जी हाँ, कई लोग बस यूँ ही वादा करते हैं जबकि उसे निभाने का उनका कोई इरादा ही नहीं होता। अकसर कुछ लोग बिना सोचे-समझे ऐसे वादे कर बैठते हैं जिन्हें वे पूरा नहीं कर पाते और कुछ लोगों को जब अपना वादा निभाना थोड़ा मुश्किल लगता है तो वे बस उससे मुकर जाते हैं क्योंकि ऐसा करना ही उन्हें आसान लगता है।
माना कि अगर अचानक कोई रुकावट आ जाए तो वादा निभाना मुश्किल हो जाता है। वज़ह चाहे जो भी हो, मगर क्या वादे तोड़ने पर वाकई कोई भारी नुकसान होता है? क्या हर हाल में वादा निभाना ज़रूरी है? इस बारे में अगर हम यहोवा परमेश्वर की मिसाल पर ज़रा गौर करें तो हम जान सकेंगे कि हमें इसे इतनी गंभीरता से क्यों लेना चाहिए।
यहोवा वादे का पक्का है
हम एक ऐसे परमेश्वर की उपासना करते हैं जिसके नाम का यह मतलब निकलता है कि वह अपने वादे का पक्का है। बाइबल में बताए गए ज़्यादातर लोगों के नाम से उनकी शख्सियत की पहचान होती है। यही बात यहोवा के बारे में भी सच है। यहोवा नाम का मतलब है, “वह बनने का कारण होता है।” (निर्गमन ३:१४) इसलिए परमेश्वर के नाम से ज़ाहिर होता है कि वह अपना हर वादा और अपना हर उद्देश्य पूरा करनेवाला परमेश्वर है।
यहोवा ने हमेशा अपने नाम के मुताबिक काम किया है। उसने पुराने ज़माने में इस्राएलियों से जो भी वादे किए थे उन्हें पूरा भी किया। इन वादों के बारे में राजा सुलैमान ने कहा: “धन्य है यहोवा, जिस ने ठीक अपने कथन के अनुसार अपनी प्रजा इस्राएल को विश्राम दिया है, जितनी भलाई की बातें उसने अपने दास मूसा के द्वारा कही थीं, उन में से एक भी बिना पूरी हुए नहीं रही।”—१ राजा ८:५५, ५६.
यहोवा कितना भरोसेमंद है यह दिखाने के लिए प्रेरित पौलुस ने कहा: “परमेश्वर ने इब्राहीम को प्रतिज्ञा देते समय जब कि शपथ खाने के लिये किसी को अपने से बड़ा न पाया, तो अपनी ही शपथ खाकर कहा।” (इब्रानियों ६:१३) जी हाँ, यहोवा के नाम और उसकी शख्सियत से हमें गारंटी मिलती है कि वह अपने वादों को हर हाल में पूरा करेगा, फिर चाहे उसे कितनी ही भारी कीमत क्यों न चुकानी पड़े। (रोमियों ८:३२) इसलिए यहोवा परमेश्वर से हमें ऐसी आशा मिलती है जो हमारी ज़िंदगी के लिए स्थिर और दृढ़ लंगर जैसी है।—इब्रानियों ६:१९.
भविष्य के लिए यहोवा के वादे
हमारी आशा, हमारा विश्वास और हमारी पूरी की पूरी ज़िंदगी यहोवा के वादों के पूरा होने पर टिकी है। हमारी आशा क्या है? “[परमेश्वर] की प्रतिज्ञा के अनुसार हम एक नए आकाश और नई पृथ्वी की आस देखते हैं जिन में धार्मिकता बास करेगी।” (२ पतरस ३:१३) और हमारा विश्वास है कि उस नई दुनिया में “धर्मी और अधर्मी दोनों का जी उठना होगा।” (प्रेरितों २४:१५) ज़िंदगी के बारे में हमें यकीन है कि हमें इससे भी अच्छी ज़िंदगी मिलेगी। प्रेरित यूहन्ना ने कहा कि यहोवा हमें “अनन्त जीवन” देने की “प्रतिज्ञा” करता है। (१ यूहन्ना २:२५) लेकिन बाइबल में बताए गए यहोवा के सभी वादे सिर्फ भविष्य से ही मतलब नहीं रखते बल्कि आज भी हमारे लिए मायने रखते हैं।
भजनहार ने गीत में कहा: ‘जितने यहोवा को पुकारते हैं, उन सभों के वह निकट रहता है और वह उनकी दोहाई सुनता है।’ (भजन १४५:१८, १९) खुद यहोवा ने भी हमें दिलासा दिया कि “वह थके हुए को बल देता है और शक्तिहीन को बहुत सामर्थ देता है।” (यशायाह ४०:२९) यहोवा ने हमें यह तसल्ली भी दी है कि वह हमें “सामर्थ से बाहर परीक्षा में न पड़ने देगा, बरन परीक्षा के साथ निकास भी करेगा”! (१ कुरिन्थियों १०:१३) अगर आप पर कभी मुसीबत का पहाड़ टूट पड़ा था और ऐसे में आपने महसूस किया कि यहोवा ने आपको सँभाला और उस दुख को सहने की शक्ति दी है, तो आप अच्छी तरह जानते हैं कि यहोवा पर कितना भरोसा किया जा सकता है। इस तरह जब हम देखते हैं कि यहोवा अपना हर वादा पूरा करता है जिससे हमारी भलाई होती है तो फिर यहोवा से हमने जो वादे किए हैं उनके बारे में हमारा क्या नज़रिया होना चाहिए?
परमेश्वर से किया गया अपना वादा निभाना
जब हम यहोवा को अपनी ज़िंदगी समर्पित करके उससे वादा करते हैं कि हम हमेशा-हमेशा के लिए उसकी सेवा करेंगे तो यह बेशक हमारी ज़िंदगी का सबसे बड़ा वादा होता है। उसकी आज्ञाएँ मानना कठिन नहीं हैं। लेकिन हाँ, इस दुष्ट संसार में कभी-कभी हमारे लिए उसके नियमों पर चलना मुश्किल हो सकता है। (२ तीमुथियुस ३:१२; १ यूहन्ना ५:३) फिर भी, जब हमने एक बार “अपना हाथ हल पर रख” दिया है यानी यहोवा को समर्पण करके उसके पुत्र यीशु मसीह के चेले बन गए हैं तो हमें दुनिया की ओर पीछे मुड़कर कभी नहीं देखना चाहिए।—लूका ९:६२.
शायद हम यहोवा से प्रार्थना में वादा करें कि हम अपनी किसी कमज़ोरी पर काबू पाने के लिए संघर्ष करेंगे, कोई मसीही गुण पैदा करेंगे या परमेश्वर की सेवा में और भी तरक्की करेंगे। लेकिन इन वादों को पूरा करने में कौन-सी बात हमारी मदद करेगी?—सभोपदेशक ५:२-५ से तुलना कीजिए।
जो वादा दिल से और सोच-समझकर किया जाता है वही सच्चा वादा होता है। अगर हमारे वादे सच्चे हैं, तो हम दिल खोलकर यहोवा से प्रार्थना करेंगे यानी उसे बताएँगे कि हम अपने वादों को पूरा करना चाहते हैं और ऐसा करने में अड़चन पैदा करनेवाली हमारी कमज़ोरियाँ क्या-क्या हैं। अगर हम ऐसा करेंगे तो वादा निभाने का हमारा इरादा भी पक्का होगा। जब हम यहोवा से कोई वादा करते हैं तो यह ऐसा है मानो हमने यहोवा से कोई कर्ज लिया हो। जब कर्ज बहुत बड़ा होता है तो उसे चुकाने में समय लगता है। उसी तरह यहोवा से किए गए हमारे कुछ वादों को पूरा करने में भी समय लग सकता है। लेकिन जब हम लगातार और जी-जान से अपने वादों को पूरा करने की कोशिश करते हैं तो हम दिखाते हैं कि हमने सच्चे दिल से वादा किया है। और यहोवा वादा पूरा करने में हमारी मदद करेगा।
हमें अपने वादों के बारे में हमेशा या हर रोज़ प्रार्थना करनी चाहिए। अगर हम ऐसा करेंगे तो यह साबित होगा कि हम सचमुच अपना वादा पूरा करना चाहते हैं। इससे हम अपने स्वर्गीय पिता यहोवा को यह दिखाएँगे कि हमने सच्चे दिल से वादा किया है। हर रोज़ प्रार्थना करने से हमें याद भी रहेगा कि हमें अपना वादा पूरा करना है। इस बारे में दाऊद ने अच्छी मिसाल रखी। उसने एक गीत में यहोवा से बिनती की: “हे परमेश्वर, मेरा चिल्लाना सुन, मेरी प्रार्थना की ओर ध्यान दे। . . . मैं सर्वदा तेरे नाम का भजन गा गाकर अपनी मन्नतें हर दिन पूरी किया करूंगा।”—भजन ६१:१, ८.
वादे निभाकर हम भरोसा जीतते हैं
जिस तरह हम परमेश्वर से किए गए वादों को गंभीरता से लेते हैं उसी तरह हमें अपने भाई-बहनों से किए गए वादों को भी गंभीरता से लेना चाहिए। क्या यह ठीक होगा कि हम यहोवा से किए गए अपने वादों को तो पूरा करें लेकिन भाई-बहनों से किए गए वादों को नज़रअंदाज़ कर दें? (१ यूहन्ना ४:२० से तुलना कीजिए।) अपने पहाड़ी उपदेश में यीशु ने कहा: “तुम्हारी बात हां की हां, या नहीं की नहीं हो।” (तिरछे टाइप हमारे।) (मत्ती ५:३७) हमसे कहा गया है कि हम ‘विशेष करके विश्वासी भाइयों के साथ भलाई करें।’ ऐसा करने का एक तरीका है, उनसे कही गई अपनी बात को हाँ की हाँ साबित करना। (गलतियों ६:१०) जब हम अपना वादा पूरा करते हैं तो इससे भाई-बहनों का हम पर भरोसा और भी बढ़ता है।
अगर कोई अपनी बात से मुकर जाए तो नुकसान होता है और पैसे के मामले में नुकसान अकसर बहुत भारी होता है। चाहे यह बात कर्ज चुकाने के बारे में हो, किसी मजदूरी को लेकर हो या बिज़नॆस एग्रीमेंट का मामला हो, एक मसीही को हमेशा अपनी ज़बान का पक्का होना चाहिए। इससे यहोवा को खुशी होगी और भाई-बहनों का एक-दूसरे पर भरोसा भी बढ़ेगा जो उनके “आपस में मिले” रहने के लिए बहुत ज़रूरी है।—भजन १३३:१.
बिज़नॆस में किए गए किसी समझौते से मुकरने पर न सिर्फ बिज़नॆस में शामिल भाइयों को बल्कि पूरी कलीसिया को नुकसान पहुँचता है। एक सफरी ओवरसियर कहता है: “बिज़नॆस के झगड़े अकसर पूरी कलीसिया में फूट पैदा कर देते हैं। बिज़नॆस में शामिल एक भाई को लगता है कि दूसरे भाई ने उसे धोखा दिया है और यह बात सभी भाई-बहनों में फैल जाती है। इस तरह पूरे किंगडम हॉल में वातावरण तनावपूर्ण हो जाता है।” इसलिए यह कितना ज़रूरी है कि हम कोई भी समझौता सोच-समझ करें और इसे लिखित रूप में करें!a
जब हम कोई कीमती चीज़ बेचते हैं या दूसरों को किसी स्कीम में पैसा लगाने की सलाह देते हैं तो हमें सावधान रहना चाहिए, खासकर अगर इस लेन-देन में खुद हमें फायदा होता हो। उसी तरह किसी सामान या स्वास्थ्य संबंधी कोई वस्तु या किसी स्कीम से मिलनेवाले फायदों के बारे में हमें बहुत बढ़ा-चढ़ाकर नहीं बताना चाहिए। अगर हमें भाइयों से प्यार है तो हम उन्हें यह भी बताएँगे कि लेने-देन में कौन-से नुकसान भी हो सकते हैं। (रोमियों १२:१०) आम-तौर पर हमारे भाइयों को बिज़नॆस के बारे में ज़्यादा जानकारी नहीं होती और वे हमारी हर बात पर यकीन कर लेते हैं, बस इसलिए कि हम उनके भाई हैं। ऐसे में अगर हम उनका भरोसा तोड़ दें, तो यह कितने दुःख की बात होगी!
मसीही होने के नाते हम बिज़नॆस में बेइमानी नहीं कर सकते और ना ही हम दूसरों का नुकसान कर सकते हैं। (इफिसियों २:२, ३; इब्रानियों १३:१८) अगर हम चाहते हैं कि यहोवा के “तम्बू में” हमेशा मेहमान बनकर रहें और वह हमसे खुश हो, तो हमें भरोसेमंद होना चाहिए। ‘अगर हम शपथ खाएँ तो हमें बदलना नहीं चाहिए, चाहे हमें हानि ही क्यों न उठाना पड़े।’—भजन १५:१, ४.
एक बार इस्राएलियों के एक न्यायी यिप्तह ने परमेश्वर से मन्नत मानी। उसने यहोवा से कहा कि अगर वह अम्मोनियों पर उसे जीत दिलाएगा तो युद्ध से लौटते समय जो व्यक्ति उससे सबसे पहले मिलने आएगा उसी को वह होमबलि करके यहोवा को अर्पित करेगा। जब यिप्तह युद्ध से लौटा तो उससे मिलने के लिए सबसे पहले उसकी एकलौती बेटी आई। फिर भी यिप्तह ने अपने मुँह से निकली बात वापस नहीं ली। उसकी बेटी भी उसकी मन्नत पूरी करने के लिए तैयार थी। उसने अपने वचन के अनुसार अपनी बेटी को परमेश्वर के मंदिर में हमेशा-हमेशा सेवा करने के लिए दे दिया। ऐसा करके यिप्तह ने वाकई बहुत बड़ा त्याग किया, उसे अपने दिल पर पत्थर रखना पड़ा।—न्यायियों ११:३०-४०.
खासकर कलीसिया के ओवरसियरों को समझौते करने पर अपनी बात का बहुत पक्का होना चाहिए। १ तीमुथियुस ३:२ के मुताबिक एक ओवरसियर को “निर्दोष” होना चाहिए। “निर्दोष” के लिए इस्तेमाल किए गए यूनानी शब्द का मतलब है “जिस पर किसी तरह की बदनामी न हो, कोई इलज़ाम न हो और जो बिलकुल बेदाग हो।” इसका “मतलब बस यह नहीं कि वह व्यक्ति इज़्ज़तदार है बल्कि वह सचमुच निर्दोष कहलाने के लायक है।” (अ लिगंविस्टिक की टु द ग्रीक न्यू टॆस्टमॆंट) इसलिए एक ओवरसियर को निर्दोष कहलाने के लिए हमेशा अपनी बात का पक्का होना चाहिए।
वादे निभाने के और भी मौके
अगर हम बाहरवालों से कोई वादा करते हैं तब हमारा क्या नज़रिया होना चाहिए? यीशु ने कहा: “तुम्हारा उजियाला मनुष्यों के साम्हने चमके कि वे तुम्हारे भले कामों को देखकर तुम्हारे पिता की, जो स्वर्ग में है, बड़ाई करें।” (मत्ती ५:१६) अगर हम बाहरवालों से किए गए वादे निभाते हैं तो वे शायद बाइबल की सच्चाई में दिलचस्पी लेने लगें। आज के ज़माने में भले ही वादे तोड़ना एक आम बात हो गई है, फिर भी जो अपनी बात के पक्के होते हैं उनकी बड़ी इज़्ज़त की जाती है। अपने वादे निभाकर हम यह ज़ाहिर करते हैं कि हमें परमेश्वर से और अपने पड़ोसियों से प्रेम है और इससे हम नेकदिल इंसानों को सच्चाई की ओर खींच सकते हैं।—मत्ती २२:३६-३९; रोमियों १५:२.
सन् १९९८ के सेवा वर्ष के दौरान, यहोवा के साक्षियों ने परमेश्वर के राज्य का सुसमाचार सुनाने में एक अरब से भी ज़्यादा घंटे बिताए। (मत्ती २४:१४) अगर हमने बिज़नॆस या किसी और मामले में धोखाधड़ी की है, तो कई लोगों ने इस संदेश को ठुकरा दिया होगा। हम सच्चे परमेश्वर के सेवक हैं इसलिए लोगों का हमसे यह उम्मीद करना वाजिब है कि हम हमेशा ईमानदार होंगे। अगर हम भरोसेमंद और ईमानदार होंगे तो “सब बातों में हमारे उद्धारकर्त्ता परमेश्वर के उपदेश को शोभा” मिलेगी।—तीतुस २:१०.
सेवकाई में भी हमें अपने वादे पूरे करने के मौके मिलते हैं। जब कोई हमारे राज्य संदेश में दिलचस्पी दिखाता है और हम उससे दोबारा मिलने का वादा करते हैं तो हमें उनसे ज़रूर मिलना चाहिए। ऐसा करके हम दिखाते हैं कि ‘जिनका भला करना चाहिये उनका भला करने से हम नहीं रुकते।’ (नीतिवचन ३:२७) एक बहन ने इस बारे में कहा: “प्रचार काम में कई बार लोगों ने मुझे बताया कि साक्षियों ने उनसे दोबारा मिलने का वादा तो किया मगर वे कभी मिलने नहीं आए। हाँ, कभी-कभी हो सकता है कि जब हमारे भाई-बहन उनसे मिलने गए तो वे घर पर न मिले हों या फिर कुछ मजबूरियों की वज़ह से भाई-बहन उनके पास वापस न जा पाए हों। मगर जहाँ तक मेरा सवाल है, मैं नहीं चाहती कि कोई मेरे बारे में ऐसा कहे। इसलिए मैं जिससे वादा करती हूँ उससे किसी भी तरह दोबारा मिलने की पूरी-पूरी कोशिश करती हूँ। मुझे लगता है कि अगर मैंने किसी को निराश किया तो मैं यहोवा और अपने भाइयों को बदनाम कर रही हूँ।”
कभी-कभी हम कुछ लोगों के पास इसलिए दोबारा नहीं जाते क्योंकि हम यह सोच बैठते हैं कि उन्हें असल में कोई दिलचस्पी नहीं है। वही बहन कहती है: “मैं यह नहीं देखती कि लोगों को कितनी दिलचस्पी है क्योंकि मैंने देखा है कि पहली मुलाकात में हम लोगों के बारे में जो राय कायम करते हैं वह अकसर सच नहीं होता। इसलिए मैं हमेशा इस उम्मीद के साथ उनके पास वापस जाती हूँ कि वे एक न एक दिन ज़रूर हमारे भाई या बहन बनेंगे।”
सेवकाई में और बाकी मामलों में हमें दिखाना है कि हम ऐसे लोग हैं जो हमेशा अपने वादे पूरे करते हैं। और यह सच है कि कुछ बातें कहना तो आसान होता है लेकिन उन्हें पूरा करना मुश्किल होता है। एक बुद्धिमान पुरुष ने कहा: “बहुत से मनुष्य अपनी कृपा का प्रचार करते हैं; परन्तु सच्चा पुरुष कौन पा सकता है?” (नीतिवचन २०:६) लेकिन अगर हमारा इरादा अटल हो तो हम अपना वादा ज़रूर पूरा कर सकेंगे।
परमेश्वर की आशीषों का खज़ाना
बिना सोचे-समझे यूँ ही किसी से वादा करना मानो झूठ बोलना है। यह ऐसा है मानो बैंक में हमारा कोई खाता नहीं और हमने चैक लिखकर दे दिया। लेकिन, अगर हम अपने वादे निभाएँगे तो हमें कितनी आशीषें मिलेंगी! एक आशीष तो यह है कि हमारा अंतःकरण बिलकुल साफ होगा। (प्रेरितों २४:१६ से तुलना कीजिए।) हमारा दिल हमें नहीं कोसेगा कि हमने वादा नहीं निभाया, हम खुश रहेंगे और शांति से जीएँगे। साथ ही, जब हम अपना वचन निभाते हैं तो हम एक-दूसरे का भरोसा जीतते हैं और इससे कलीसिया में एकता बढ़ती है। अगर हमारे वचन “सत्य के वचन” होंगे तो हम सच्चाई के परमेश्वर के सेवक कहलाने के लायक होंगे।—२ कुरिन्थियों ६:३, ४, ७.
यहोवा हमेशा अपना वचन पूरा करता है और इसलिए उसे “झूठ बोलनेवाली जीभ” से सख्त नफरत है। (नीतिवचन ६:१६, १७) अगर हम अपने स्वर्गीय पिता की तरह अपने वादे पूरे करेंगे तो हम उसके पक्के दोस्त बन सकते हैं। तो फिर हमारे लिए वादा पूरा करना कितना ज़रूरी है।
[फुटनोट]
a फरवरी ८, १९८३ के सजग होइए! (अँग्रेज़ी), पेज १३-१५ में दिया गया लेख, “इसे लिखकर रखिए!” देखिए।
[पेज 10 पर तसवीरें]
यिप्तह ने अपना वादा निभाया हालाँकि ऐसा करने के लिए उसे अपने दिल पर पत्थर रखना पड़ा
[पेज 11 पर तसवीरें]
अगर आपने प्रचार काम में किसी से दोबारा मिलने का वादा किया है तो उससे मिलने की ज़रूर कोशिश कीजिए