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  • प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1999
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प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1999
w99 9/15 पेज 4-7

वाकई कोई परवाह करता है

दुनिया में ऐसे हज़ारों लोग हैं जिनके दिल में दूसरों के दुःख को देखकर दर्द ज़रूर होता है। वे ऐसा नहीं सोचते हैं कि दूसरों के दुःख-तकलीफों से उनको क्या लेना-देना। उनका दिल पत्थर का नहीं होता, ना ही वे सिर्फ अपने लिए जीते हैं। इसके बजाय, वे दूसरों के दुःख-तकलीफों को कम करने के लिए अपनी तरफ से पुरज़ोर कोशिश करते हैं, यहाँ तक कि कभी-कभी वे अपनी जान को भी जोखिम में डाल देते हैं। ऐसा करना आसान काम नहीं है क्योंकि इसमें कभी-कभी कुछ ऐसी बड़ी-बड़ी अड़चनें आ जाती हैं जिन पर उनका बस नहीं चलता और जिससे यह काम और मुश्‍किल हो जाता है।

एक सहायता एजॆंसी का कर्मचारी कहता है कि “भूखमरी को मिटाने के लिए सोच-समझकर और पक्के इरादों के साथ की गयी कोशिश को” लालच, राजनीति में होनेवाले घोटाले, जंग, और प्राकृतिक विपत्तियाँ नाकाम कर सकते हैं। दूसरों की परवाह करनेवाले लोगों के सामने सिर्फ भूखमरी हटाने की ही समस्या नहीं है बल्कि उन्हें बीमारी, गरीबी, अन्याय के साथ-साथ जंग की वज़ह से होनेवाली समस्याओं से भी लड़ना पड़ता है। लेकिन क्या इस लड़ाई में उनकी जीत हो रही है?

एक सहायता एजॆंसी के चीफ एक्सिक्यूटिव ने कहा कि भूखमरी और दुःख-दर्द को कम करने के लिए जो लोग ‘सोच-समझकर और पक्के इरादों के साथ काम’ करते हैं, वे यीशु मसीह के दृष्टांत में बताए गए दयालु सामरी की तरह हैं। (लूका १०:२९-३७) मगर ये लोग चाहे कितनी भी कोशिश क्यों न करें, मुसीबतें कम नहीं हो रही हैं बल्कि लोगों की तकलीफें और बढ़ती ही जा रही हैं। इस वज़ह से उसने पूछा: “अगर वह भला सामरी सालों से, हर दिन उसी रास्ते से जाता हो और उसे हर हफ्ते रास्ते के किनारे एक लुटा हुआ, अधमरा-सा पड़ा हुआ व्यक्‍ति मिले, तो वह क्या करेगा?”

‘मदद करनेवाला थककर बड़ी आसानी से पस्त’ हो सकता है और फिर निराश होकर हार मान सकता है। मगर जो लोग सचमुच दूसरों की परवाह करते हैं वे हार नहीं मानते और इसलिए वे तारीफ के काबिल हैं। (गलतियों ६:९, १०) उदाहरण के लिए, एक आदमी ने ब्रिटॆन के ज्यूइश टेलॆग्राफ नाम के अखबार को लिखकर यहोवा के साक्षियों की तारीफ की क्योंकि इन साक्षियों ने हिटलर की हुकूमत के समय पर “हज़ारों यहूदियों को ऑश्‍विट्‌स की भयंकर दुर्दशा को सहने और ज़िंदा रहने में मदद दी थी।” इस अखबार में लेखक ने कहा, “जब खाने के लाले पड़ जाते थे तो ये साक्षी हमारे [यहूदी] भाई-बहनों के साथ अपनी रोटी मिल-बाँट कर खाते!” साक्षियों के पास जो कुछ भी था, उसी से वे दूसरों की मदद करते रहे।

लेकिन हकीकत यह है कि चाहे लोग जितना भी मिल-बाँटकर क्यों न खाएँ, लेकिन उससे सभी इंसानों की दुःख-तकलीफ पूरी तरह से खत्म नहीं होनेवाली है। ऐसा कहने का हमारा मतलब यह नहीं है कि हम उन लोगों के काम की कदर नहीं कर रहे जो दूसरों को दया दिखाते हैं और उनकी मदद करते हैं। ऐसा हर उचित काम जिससे किसी का दुःख कम होता है वह ज़रूर एक भला काम है। उन साक्षियों के काम से उनके साथी कैदियों को थोड़ी-बहुत राहत ज़रूर मिली और आखिरकार हिटलर की हुकूमत भी पूरी तरह खत्म हुई। मगर, उसी तरह के ज़ुल्म ढानेवाली इस दुनिया की व्यवस्था और दूसरों की परवाह न करनेवाले पत्थरदिल लोग आज भी मौजूद हैं। वाकई, “एक पीढ़ी के लोग ऐसे हैं, जिनके दांत तलवार और उनकी दाढ़ें छुरियां हैं, जिन से वे दीन लोगों को पृथ्वी पर से, और दरिद्रों को मनुष्यों में से मिटा डा[लते]” हैं। (नीतिवचन ३०:१४) शायद आप सोच रहे होंगे कि ऐसा क्यों होता है।

गरीबी और ज़ुल्मो-सितम क्यों है?

यीशु मसीह ने एक बार कहा: “कंगाल तुम्हारे साथ सदा रहते हैं: और तुम जब चाहो तब उन से भलाई कर सकते हो।” (मरकुस १४:७) क्या यीशु के कहने का मतलब था कि गरीबी और ज़ुल्म कभी खत्म ही नहीं होंगे? कुछ लोगों की तरह क्या यीशु भी यही मानता था कि ज़िंदगी में दुःख-तकलीफें होना परमेश्‍वर की योजना का हिस्सा था जिससे दीन-दयालु लोगों को यह दिखाने का मौका मिले कि वे दूसरों की कितनी परवाह करते हैं? हरगिज़ नहीं! यीशु ऐसा नहीं मानता था। वह तो बस यही कह रहा था कि ज़िंदगी में गरीबी तब तक रहेगी जब तक इस दुनिया की व्यवस्था रहेगी। यीशु को यह भी मालूम था कि स्वर्ग में रहनेवाले उसके पिता का यह मकसद नहीं था कि दुनिया में इस तरह की बुराई हो।

यहोवा परमेश्‍वर ने तो पृथ्वी को एक सुंदर बगीचे की तरह होने के लिए बनाया था, कोई ऐसी जगह नहीं जहाँ गरीबी, अन्याय और ज़ुल्मो-सितम भरा हुआ होता। ज़िंदगी को और भी ज़्यादा खुशहाल बनाने के लिए सारे अच्छे प्रबंध करने के द्वारा उसने दिखाया कि वह इंसानों से कितना प्यार करता है, उनकी कितनी परवाह करता है। ज़रा उस बगीचे के नाम पर ही गौर कीजिए जिसे हमारे पहले माता-पिता आदम और हव्वा को रहने के लिए दिया गया था! उसका नाम अदन था जिसका मतलब है “सुखविलास।” (उत्पत्ति २:८, ९) यहोवा ने उन्हें किसी नीरस जगह में रहने के लिए नहीं छोड़ा था जहाँ सिर्फ ज़ुल्म ही ज़ुल्म होते, ना ही उसने उन्हें किसी तरह अपना गुज़ारा चलाने के लिए सिर्फ थोड़ा-सा भोजन-पानी दिया। पूरी सृष्टि कर लेने के बाद यहोवा ने अपनी बनायी हुई चीज़ों को देखकर कहा कि वह “बहुत ही अच्छा” है।—उत्पत्ति १:३१.

तो फिर आज दुनिया में चारों तरफ गरीबी, ज़ुल्मो-सितम और दुःख-तकलीफ क्यों फैली हुई है? आज इस दुनिया के दुष्ट माहौल की वज़ह है हमारे प्रथम माता-पिता जिन्होंने यहोवा के खिलाफ बगावत की। (उत्पत्ति ३:१-५) और इसीलिए यह सवाल उठा कि क्या परमेश्‍वर का यह उम्मीद करना सही था कि उसके बनाए हुए प्राणी उसकी आज्ञा मानें। इसका जवाब देने के लिए यहोवा ने आदम की संतानों को उससे आज़ाद ज़िंदगी जीने के लिए कुछ मोहलत दी। इसके बावजूद, दुनिया में मनुष्यों पर जो भी गुज़रती थी, परमेश्‍वर को उसकी फिक्र ज़रूर रहती थी। उसने एक ऐसा प्रबंध किया जिससे शुरूआती बगावत के अंजाम से होनेवाले नुकसान खत्म हो जाएँ। और जल्द ही, यहोवा गरीबी और ज़ुल्मो-सितम, यहाँ तक कि हर दुःख-तकलीफ का नामो-निशान मिटा देगा।—इफिसियों १:८-१०.

क्या इंसान इसे हल कर सकता है?

इंसान को बनाए आज सदियाँ गुज़र गयी हैं, और तब से इंसान यहोवा के स्तरों से और भी दूर हटता चला गया है। (व्यवस्थाविवरण ३२:४, ५) इंसानों ने हमेशा से परमेश्‍वर के नियमों और सिद्धांतों को ठुकराया है और वे एक दूसरे से लड़ते आएँ हैं और “एक मनुष्य दूसरे मनुष्य पर अधिकारी होकर अपने ऊपर हानि” लाया है। (सभोपदेशक ८:९) इंसान सचमुच में एक ऐसा समाज नहीं ला पाया है जहाँ दुःख-तकलीफ नहीं होगी, जहाँ किसी पर ज़ुल्म नहीं ढाया जाएगा। इस तरह का न्यायी समाज लाने की उनकी हर कोशिश पर उन स्वार्थी लोगों ने पानी फेर दिया है, जो परमेश्‍वर के मार्गदर्शन के मुताबिक नहीं बल्कि अपनी मरज़ी के मुताबिक काम करना चाहते हैं।

एक और समस्या भी है जिसे शायद कई लोग अंधविश्‍वास या बकवास कहकर नज़रअंदाज़ कर दें। जिस प्राणी ने शुरूआत में परमेश्‍वर के खिलाफ बगावत करने के लिए इंसानों को उकसाया था, वही आज भी लोगों को बुरे और अपने स्वार्थ के काम करने के लिए उकसाता है। यह प्राणी शैतान है और यीशु मसीह ने उसे “इस जगत का सरदार” कहा था। (यूहन्‍ना १२:३१; १४:३०; २ कुरिन्थियों ४:४; १ यूहन्‍ना ५:१९) प्रेरित यूहन्‍ना को दिए गए दर्शन में, शैतान को हर ‘हाय’ की जड़ कहा गया है। वही “सारे संसार का भरमानेवाला है” और वही सारे दुःख-तकलीफों की फसाद की जड़ है।—प्रकाशितवाक्य १२:९-१२.

चाहे कुछ लोग दूसरे इंसानों की परवाह करने की लाख कोशिश करें, मगर वे शैतान को हटाने में या दुःख-तकलीफ बढ़ानेवाली इस व्यवस्था को बदलने में कभी-भी कामयाब नहीं हो सकेंगे। तो फिर, इंसानों की समस्याओं का हल क्या है? इसका हल कोई ऐसा व्यक्‍ति नहीं है जो सिर्फ परवाह करता है, बल्कि इसके लिए किसी ऐसे व्यक्‍ति की ज़रूरत है जिसके पास शैतान और उसकी पूरी अन्यायी व्यवस्था का नामो-निशान मिटा देने की इच्छा हो, साथ ही ऐसा करने की ताकत भी हो।

‘तेरी इच्छा . . . पृथ्वी पर भी पूरी हो’

परमेश्‍वर ने ज़ुबान दी है कि वह इस दुनिया की व्यवस्था का नाश करेगा। ऐसा करने की उसके पास ताकत है और वह ऐसा करना भी चाहता है। (भजन १४७:५, ६; यशायाह ४०:२५-३१) भविष्यवाणियों की दानिय्येल की पुस्तक में यह पूर्वबताया गया है: “स्वर्ग का परमेश्‍वर, एक ऐसा राज्य उदय करेगा जो अनन्तकाल तक न टूटेगा, और न वह किसी दूसरी जाति के हाथ में किया जाएगा। वरन वह उन सब राज्यों को चूर चूर करेगा, और उनका अन्त कर डालेगा; और वह सदा स्थिर रहेगा”—जी हाँ, हमेशा-हमेशा के लिए स्थिर रहेगा। (दानिय्येल २:४४) जब यीशु मसीह ने अपने शिष्यों को परमेश्‍वर से यह प्रार्थना करना सिखाया कि “तेरा राज्य आए; तेरी इच्छा जैसी स्वर्ग में पूरी होती है, वैसे पृथ्वी पर भी हो,” तब उसके मन में यही स्थायी और हमेशा-हमेशा के लिए लाभ पहुँचानेवाला स्वर्गीय राज्य था।—मत्ती ६:९, १०.

यहोवा ऐसी प्रार्थनाओं का जवाब देगा क्योंकि वह सच में इंसानों की परवाह करता है। भजन ७२ में जो भविष्यवाणी दी गयी थी, उसके मुताबिक परमेश्‍वर अपने बेटे यीशु मसीह को अधिकार देगा कि वह उसके शासन को कबूल करनेवाले दरिद्रों, दीन लोगों और सताए गए लोगों को हमेशा-हमेशा के लिए राहत पहुँचाए। इसलिए, ईश्‍वर से प्रेरित होकर भजनहार ने गाया: “वह [परमेश्‍वर का मसीहाई राजा] प्रजा के दीन लोगों का न्याय करेगा, और दरिद्र लोगों को बचाएगा; और अन्धेर करनेवालों को चूर करेगा। . . . वह दोहाई देनेवाले दरिद्र को, और दुःखी और असहाय मनुष्य का उद्धार करेगा। वह कंगाल और दरिद्र पर तरस खाएगा, और दरिद्रों के प्राणों को बचाएगा। वह उनके प्राणों को अन्धेर और उपद्रव से छुड़ा लेगा; और उनका लोहू उसकी दृष्टि में अनमोल ठहरेगा।”—भजन ७२:४, १२-१४.

हमारे समय के बारे में दिए गए एक दर्शन में प्रेरित यूहन्‍ना ने “नये आकाश और नयी पृथ्वी” को देखा और यह परमेश्‍वर द्वारा स्थापित की गयी एकदम नयी व्यवस्था है। दुःख-तकलीफों से परेशान मानवजाति के लिए कितनी बड़ी आशीष! भविष्य में यहोवा जो करनेवाला है, इसके बारे में यूहन्‍ना ने लिखा: “देख, परमेश्‍वर का डेरा मनुष्यों के बीच में है; वह उन के साथ डेरा करेगा, और वे उसके लोग होंगे, और परमेश्‍वर आप उन के साथ रहेगा; और उन का परमेश्‍वर होगा। और वह उन की आंखों से सब आंसू पोंछ डालेगा; और इस के बाद मृत्यु न रहेगी, और न शोक, न विलाप, न पीड़ा रहेगी; पहिली बातें जाती रहीं। और जो सिंहासन पर बैठा था, उस ने कहा, कि देख, मैं सब कुछ नया कर देता हूं: फिर उस ने कहा, कि लिख ले, क्योंकि ये वचन विश्‍वास के योग्य और सत्य हैं।”—प्रकाशितवाक्य २१:१-५.

जी हाँ, हम इन बातों पर पूरा यकीन कर सकते हैं क्योंकि ये विश्‍वास के योग्य और सत्य हैं। जल्द ही यहोवा इस पृथ्वी पर से गरीबी, भूखमरी, ज़ुल्म, बीमारी, और हर तरह के अन्याय का नामो-निशान मिटा देगा। इस प्रहरीदुर्ग पत्रिका ने अकसर बाइबल से काफी सबूत दिए हैं कि हम उस समय में जी रहे हैं जब परमेश्‍वर के ये सभी वादे पूरे होंगे। परमेश्‍वर की वादा की हुई नयी दुनिया एकदम पास है! (२ पतरस ३:१३) जल्द ही, यहोवा “मृत्यु को सदा के लिये नाश करेगा,” और वह “सभों के मुख पर से आंसू पोंछ डालेगा।”—यशायाह २५:८.

जब तक ये सब वादे पूरे नहीं हो जाते तब तक हमें इस बात से खुशी मिलती है कि आज भी ऐसे लोग हैं जो दिल से दूसरों की परवाह करते हैं। इससे भी बड़ी खुशी की बात तो यह है कि खुद यहोवा परमेश्‍वर वास्तव में हमारी परवाह करता है। और वह जल्द ही सभी ज़ुल्मो-सितम और दुःख-तकलीफों को खत्म कर देगा।

आप यहोवा के वादों पर पूरा-पूरा यकीन कर सकते हैं। उसके सेवक यहोशू को भी यहोवा के वादों पर पूरा-पूरा यकीन था। उसने बिना किसी हिचकिचाहट के परमेश्‍वर के उस ज़माने के लोगों से कहा: “तुम सब अपने अपने हृदय और मन में जानते हो, कि जितनी भलाई की बातें हमारे परमेश्‍वर यहोवा ने हमारे विषय में कहीं उन में से एक भी बिना पूरी हुए नहीं रही; वे सब की सब तुम पर घट गई हैं, उन में से एक भी बिना पूरी हुए नहीं रही।” (यहोशू २३:१४) सो जब तक यह दुनिया और इसकी व्यवस्था है तब तक आप बिना हार माने परीक्षाओं से जूझते रहिए और अपनी सभी चिंताओं को यहोवा पर डाल दीजिए क्योंकि उसे आप की सच में परवाह है।—१ पतरस ५:७.

[पेज 7 पर तसवीरें]

परमेश्‍वर की वादा की हुई नयी दुनिया में, पृथ्वी पर किसी भी तरह की गरीबी, ज़ुल्मो-सितम, बीमारी व अन्याय नहीं रहेगा

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