हम नाश होने के लिए कभी पीछे न हटें!
“हम उन में से नहीं जो नाश होने के लिए पीछे हटते हैं।”—इब्रानियों १०:३९, NHT.
१. किस वजह से प्रेरित पतरस डर गया था और जो नहीं करना चाहता था वही कर बैठा?
अपने प्रभु की बात सुनकर चेलों का दिल बैठ गया। वे अपने प्रभु, यीशु से बहुत प्यार करते थे। मगर खुद यीशु ने ही यह कहा था कि जल्द ही वे सब उसका साथ छोड़ देंगे। लेकिन, चेले ऐसा क्यों करते और वह भी ऐसी नाज़ुक घड़ी में जब उनका प्रभु बहुत बड़ी मुसीबत से गुज़रनेवाला था? पतरस ने दावे से कहा कि ऐसा हरगिज़ नहीं होगा: “यदि सब ठोकर खाएं तो खाएं, पर मैं ठोकर नहीं खाऊंगा।” पतरस बहादुर और दिलेर था, मगर जब यीशु को धोखे से पकड़वाकर गिरफ्तार करवाया गया तो बाकी चेलों के साथ-साथ पतरस भी अपने प्रभु को अकेला छोड़कर भाग गया। बाद में, जब महायाजक कैफा के घर में यीशु पर मुकद्दमा चलाया जा रहा था तो यह जानने के लिए कि यीशु का क्या होगा, पतरस वहीं आँगन में मौजूद रहना चाहता था। मगर रात की कड़कती ठंड में जैसे-जैसे वक्त गुज़रता जा रहा था वैसे-वैसे पतरस की बेचैनी और चिंता धीरे-धीरे घबराहट और डर में बदलती जा रही थी। उसे ऐसा एहसास होने लगा कि न सिर्फ यीशु मसीह को बल्कि उसका साथ देनेवाले हर आदमी को जान से मरवा दिया जाएगा। तभी अचानक आँगन में पतरस के आसपास खड़े लोगों में से कुछ एक ने उसे पहचान लिया, और कहा ‘यह भी यीशु का साथी है, यह भी यीशु का साथी है।’ अब तो दहशत के मारे पतरस का खून सूख गया। उसने कसम खाकर और धिक्कार-धिक्कारकर तीन बार कहा कि यीशु से मेरा कोई ताल्लुक नहीं। इतना ही नहीं पतरस ने यहाँ तक कहा कि मैं तो इस आदमी को जानता तक नहीं!—मरकुस १४:२७-३१, ६६-७२.
२. (क) यीशु की गिरफ्तारी की रात पतरस ने जो किया, उसके बावजूद यह क्यों कहा जा सकता है कि पतरस ‘उन में से नहीं था जो नाश होने के लिए पीछे हटते हैं’? (ख) हमें जी-जान से क्या कोशिश करनी चाहिए?
२ पतरस की ज़िंदगी की वह सबसे दर्दनाक घड़ी थी। बेशक, उस रात पतरस ने जो भी किया उसके लिए वह सारी ज़िंदगी पछताता रहा होगा। लेकिन, क्या पतरस के इस काम की वजह से उसे बुज़दिल और डरपोक कहा जाएगा? क्या इससे पतरस को भी उन लोगों में से एक कहा जाएगा जिनके बारे में पौलुस ने कहा कि “हम उन में से नहीं जो नाश होने के लिए पीछे हटते हैं”? (इब्रानियों १०:३९, NHT) बेशक, हममें से ज़्यादातर लोग यही कहेंगे कि पतरस ऐसा नहीं था। क्यों? क्योंकि भले ही पतरस कुछ पल के लिए डरकर गलती कर बैठा, लेकिन उसकी बाकी की ज़िंदगी हिम्मत और विश्वास की एक बेहतरीन मिसाल थी। उसी तरह, आज हममें से कई लोगों की बीती ज़िंदगी में कुछ ऐसा हुआ है जिसे याद करके हमारा सिर शर्म से झुक जाता है। वे शायद ऐसी घड़ियाँ थीं जब हम इतना डर गए थे कि सबके सामने सीना ठोककर सच्चाई के लिए नहीं बोल सके। और सबकुछ इतना अचानक हो गया कि हमें कुछ पता ही नहीं चला। (रोमियों ७:२१-२३ से तुलना कीजिए।) लेकिन उन भूलों की वजह से हम उन लोगों की तरह नहीं बन जाते जो नाश होने के लिए पीछे हटते हैं। जी नहीं, ऐसा बिलकुल भी नहीं है। फिर भी, हमें जी-जान से कोशिश करनी चाहिए कि आखिर में कहीं हम भी पीछे हटनेवालों की गिनती में न आ जाएँ। इन लोगों में शामिल न होने के लिए हमें क्या करना चाहिए? और क्यों?
नाश होने के लिए पीछे हटने का क्या मतलब है
३. एलिय्याह और योना जैसे भविष्यवक्ता भी कैसे पल भर के लिए डर का शिकार हो गए थे?
३ बेशक प्रेरित पौलुस, पतरस के अलावा परमेश्वर के ऐसे कई सेवकों के बारे में भी जानता था जो पल भर के लिए डर का शिकार हो गए थे। इसलिए जब उसने ‘पीछे हटनेवालों’ के बारे में लिखा, तो वह परमेश्वर के उन सेवकों की बात नहीं कर रहा था जो कुछ पल के डर के मारे गलती कर बैठते हैं। मिसाल के तौर पर, यहोवा के भविष्यवक्ता एलिय्याह को लीजिए। वह बहुत साहसी था और निडर होकर सच्चाई का ऐलान करता था। लेकिन, एक बार वह भी डर के मारे अपनी जान बचाने के लिए भाग खड़ा हुआ। क्यों? क्योंकि दुष्ट रानी ईज़ेबेल ने उसे जान से मरवा डालने की धमकी दी थी। (१ राजा १९:१-४) भविष्यवक्ता योना का तो डर के मारे इससे भी बुरा हाल हो गया था क्योंकि यहोवा उसे एक खूनी और वहशी नगर, नीनवे भेजना चाहता था। नीनवे जाने के बजाय योना वहाँ से एकदम उल्टी दिशा में तर्शीश को भाग निकला जो करीब ३,५०० किलोमीटर की दूरी पर था। (योना १:१-३) चाहे जो हो, एलिय्याह और योना जैसे वफादार भविष्यवक्ताओं को और प्रेरित पतरस को ऐसे लोग नहीं कहा जा सकता जो नाश होने के लिए पीछे हटते हैं। क्यों नहीं?
४, ५. (क) इब्रानियों १०:३९ में पौलुस किस “नाश” की बात कर रहा था, यह हमें इससे पहले की आयतों से कैसे पता चलता है? (ख) पौलुस का क्या मतलब था जब उसने कहा, “हम उन में से नहीं जो नाश होने के लिए पीछे हटते हैं”?
४ ध्यान दीजिए कि पौलुस ने आगे क्या लिखा: “हम उन में से नहीं जो नाश होने के लिए पीछे हटते हैं।” (तिरछे टाइप हमारे।) पौलुस किस “नाश” की बात कर रहा था? पौलुस ने ‘नाश’ के लिए जिस यूनानी शब्द का इस्तेमाल किया है अकसर उसका मतलब होता है हमेशा-हमेशा का नाश। और पौलुस ने इस आयत से पहले जो कहा, उसके मुताबिक इस शब्द का यही मतलब निकलता है। पौलुस ने कुछ ही आयत पहले यह चेतावनी दी थी: “सच्चाई की पहिचान प्राप्त करने के बाद यदि हम जान बूझकर पाप करते रहें, तो पापों के लिये फिर कोई बलिदान बाकी नहीं। हां, दण्ड का एक भयानक बाट जोहना और आग का ज्वलन बाकी है जो विरोधियों को भस्म कर देगा।”—इब्रानियों १०:२६, २७.
५ इसलिए जब पौलुस ने अपने मसीही भाई-बहनों से कहा कि “हम उन में से नहीं जो नाश होने के लिए पीछे हटते हैं,” तो दरअसल वह कह रहा था कि न तो वह और न ही उसके वफादार भाई-बहन किसी भी हाल में यहोवा से मुँह मोड़ेंगे या उसकी सेवा करना छोड़ेंगे। अगर वे यहोवा को छोड़ देते यानी पीछे हटते तो वे सदा के लिए नाश हो जाते। यहोवा को छोड़कर पीछे हटनेवालों में से एक था यहूदा इस्करियोती। उसके अलावा सच्चाई से बैर रखनेवाले और भी कई लोग थे, जिन्होंने सोच-समझकर और जान-बूझकर यहोवा की पवित्र शक्ति के खिलाफ काम किया। (यूहन्ना १७:१२; २ थिस्सलुनीकियों २:३) बाइबल ऐसे लोगों को ‘डरपोक’ कहती है और उन्हें आग की झील में डाला जाता है, जिसका मतलब है अनंतकाल का विनाश। (प्रकाशितवाक्य २१:८) हम इन लोगों में हरगिज़ नहीं होना चाहेंगे!
६. शैतान हमसे क्या करवाना चाहता है?
६ शैतान यानी इब्लीस चाहता है कि हम नाश होने के लिए पीछे हटते जाएँ। वह ‘[धूर्त] युक्तियां’ करने में बड़ा ही माहिर है और अच्छी तरह से जानता है कि वह हमें धीरे-धीरे विनाश के रास्ते पर ले जा सकता है। (इफिसियों ६:११) जब वह ज़ुल्म और अत्याचार से मसीहियों का विश्वास कमज़ोर नहीं कर पाता तो फिर वह ऐसे धूर्त तरीके इस्तेमाल करता है जिन्हें समझना आसान नहीं। वह बस यही चाहता है कि किसी तरह यहोवा के निडर और जोशीले साक्षी हमेशा-हमेशा के लिए ठंडे पड़ जाएँ। आइए देखें कि उन इब्रानी मसीहियों के खिलाफ शैतान ने कौन-सी चालें चलीं, जिन्हें पौलुस ने इब्रानियों की पत्री लिखी थी।
पीछे हटने के लिए मसीहियों पर कैसे दबाव आए
७. (क) यरूशलेम की कलीसिया किन मुसीबतों का सामना कर चुकी थी? (ख) आध्यात्मिक मायनों में इब्रानी कलीसिया के कुछ मसीहियों का क्या हाल था?
७ इस बात के सबूत हैं कि पौलुस ने यरूशलेम के मसीहियों को इब्रानियों की पत्री सा.यु. ६१ के आसपास लिखी थी। यरूशलेम की इस कलीसिया ने बहुत बड़ी-बड़ी मुसीबतों का सामना किया था। खासकर यीशु की मौत के बाद, इस नगर में मसीहियों पर ज़ुल्म और अत्याचार की आँधी चलने लगी। इसलिए कई मसीहियों को मजबूर होकर अलग-अलग इलाकों में तित्तर-बित्तर होना पड़ा। लेकिन, कुछ वक्त बाद सताहट थम जाने की वजह से मसीहियों को काफी राहत मिली और उनकी गिनती भी बढ़ने लगी। (प्रेरितों ८:४; ९:३१) साल बीतते गए और इस दौरान भी मसीहियों पर कई किस्म की सताहटें और मुसीबतें आयीं और चली गईं। ऐसा लगता है कि जिस वक्त पौलुस ने इब्रानियों को यह पत्री लिखी, उस वक्त शांति का माहौल था और कलीसिया फल-फूल रही थी। फिर भी, मसीहियों पर कई दबाव आ रहे थे जो उनके लिए फँदा बन सकते थे। मिसाल के तौर पर, यीशु ने भविष्यवाणी की थी कि यरूशलेम का उजड़ जाना निकट है, लेकिन यह भविष्यवाणी किए हुए करीब तीस साल बीत चुके थे और कुछ भी नहीं हुआ था। इसलिए कलीसिया में शायद कुछ लोग यह सोचने लगे थे कि यीशु की भविष्यवाणी अब तक पूरी हो जानी चाहिए थी और अंत आ जाना चाहिए था। उनका मानना था कि अगर अब तक अंत नहीं आया तो शायद हमारी ज़िंदगी में आएगा ही नहीं। दूसरी तरफ कलीसिया में कुछ लोग ऐसे भी थे जो नए थे और अभी तक उनके विश्वास की परीक्षा नहीं हुई थी। उन्होंने अपने विश्वास की खातिर सताहट का सामना नहीं किया था, इसलिए वे नहीं जानते थे कि परीक्षा में धीरज धरना क्या होता है। (इब्रानियों १२:४) शैतान ऐसे माहौल का फायदा क्यों न उठाता। तो फिर, इन मसीहियों को बहकाने के लिए उसने कौन-सी ‘धूर्त युक्तियों’ का इस्तेमाल किया?
८. कई यहूदी, नए मसीही धर्म को किस नज़र से देखते थे?
८ यरूशलेम और यहूदिया प्रांत में रहनेवाले यहूदी, सच्चे मसीहियों की उभरती नयी कलीसिया से घृणा करते थे। जब हम इब्रानियों को लिखी पौलुस की पत्री पढ़ते हैं तो हमें मालूम पड़ता है कि सच्चे मसीहियों को शायद कैसे-कैसे ताने सुनने पड़े होंगे। न सिर्फ घमंडी यहूदी धर्मगुरु बल्कि उनके अनुयायी भी इन मसीहियों की खिल्ली उड़ाते होंगे। वे शायद ये डींगें मारते होंगे: ‘हमारा यरूशलेम का मंदिर तो सदियों पुराना है! हमारे महायाजक की शान देखी है? उसके साथ याजकों का दल भी है जो दिन-रात सेवा करता है। हर दिन सैकड़ों बलिदान चढ़ाए जाते हैं। हमें परमेश्वर के दास मूसा ने कानून-व्यवस्था दी है, जो खुद स्वर्गदूतों ने उसके हाथों में सौंपी थी और जब यह व्यवस्था लागू की गयी तो सीनै पर्वत पर कैसे बड़े-बड़े चमत्कार और अद्भुत घटनाएँ घटी थीं। अपने पुरखों के धर्म से गद्दारी करनेवाले इन मसीहियों को तो देखो, इन्होंने अपना यहूदी धर्म छोड़कर यह नया पंथ शुरू कर लिया है। हमारे यहूदी धर्म के सामने इसकी क्या औकात!’ ऐसी ज़हरीली बातों का मसीहियों पर क्या असर हुआ? पौलुस की बातों से साफ ज़ाहिर होता है कि कुछ मसीहियों पर वाकई ऐसे तानों का बहुत बुरा असर हुआ था। पौलुस की इस पत्री ने ऐन वक्त पर उनकी मदद की।
क्यों पीछे हटकर नाश न हों
९. (क) पौलुस ने इब्रानियों को लिखी अपनी पत्री में खासकर किस बात पर ज़ोर दिया? (ख) मसीही जिस आत्मिक मंदिर में सेवा कर रहे थे, वह यरूशलेम के मंदिर से कैसे श्रेष्ठ था?
९ पौलुस यहूदिया के इन मसीही भाई-बहनों की मदद करना चाहता था। इसलिए उसने इन मसीहियों को दो ठोस वजह बतायीं कि क्यों उन्हें यहूदियों के दबाव में आकर पीछे नहीं हटना चाहिए। आइए हम भी पौलुस की इस बात पर गौर करें। पौलुस ने उन्हें समझाया कि कैसे सच्चे मसीहियों की उपासना का तरीका यहूदियों की धर्म-व्यवस्था से कहीं ज़्यादा श्रेष्ठ और पवित्र है। और इसी बात पर इब्रानियों की लगभग पूरी पत्री में उसने ज़ोर दिया है। यरूशलेम में जो मंदिर था वह तो स्वर्ग के मंदिर का सिर्फ नमूना भर था। असली महान मंदिर किसी के ‘हाथ का बनाया हुआ नहीं’ बल्कि स्वर्ग में यहोवा का आत्मिक मंदिर है। (इब्रानियों ९:११) इब्रानी मसीहियों को यहोवा के ठहराए हुए इसी आत्मिक मंदिर में, उसकी शुद्ध उपासना करने का सम्मान मिला था। इन मसीहियों के साथ उस व्यवस्था-वाचा से कहीं उत्तम वाचा बाँधी गयी थी जो मूसा ने यहूदियों को सौंपी थी। यहोवा ने ही यह उत्तम और नयी वाचा बाँधने की प्रतिज्ञा की थी और इस वाचा का मध्यस्थ मूसा जैसा कोई असिद्ध इंसान नहीं बल्कि खुद परमेश्वर का पुत्र यीशु मसीह था।—यिर्मयाह ३१:३१-३४.
१०, ११. (क) हारून के वंश का न होने पर भी, यीशु आत्मिक मंदिर में महायाजक बनने के लायक कैसे था? (ख) यरूशलेम के मंदिर में सेवा करनेवाले महायाजक से किस तरह यीशु श्रेष्ठ महायाजक साबित हुआ?
१० इन मसीहियों का महायाजक महिमावान यीशु मसीह था। यहूदी महायाजक सिर्फ इसलिए याजक का पद हासिल करते थे कि वे हारून के वंश के थे, लेकिन यीशु मसीह इन असिद्ध याजकों के वंश का नहीं था। इसलिए वह इन असिद्ध महायाजकों की रीति पर याजक नहीं ठहरा बल्कि वह “मेल्कीसेदेक की रीति पर” महायाजक बना। (भजन ११०:४) मेल्कीसेदेक के वंश के बारे में बाइबल कुछ नहीं बताती और कहती है कि वह न सिर्फ प्राचीन नगर शालेम का राजा था बल्कि महायाजक भी था। ठीक इसी तरह, यीशु मसीह को असिद्ध इंसानों से नहीं बल्कि स्वर्ग के स्वामी यहोवा परमेश्वर से महायाजक का पद मिला। जी हाँ, यीशु मसीह को महायाजक और राजा ठहराने की खुद यहोवा परमेश्वर ने शपथ खायी थी। मेल्कीसेदेक की तरह, यीशु न सिर्फ महायाजक है बल्कि युगानुयुग का राजा भी है।—इब्रानियों ७:११-२१.
११ इतना ही नहीं, यरूशलेम के मंदिर में महायाजक को बार-बार हर साल पापों की क्षमा के लिए जानवरों का बलिदान चढ़ाना पड़ता था। और-तो-और मंदिर में ये जो बलिदान चढ़ाए जाते थे वे यही दिखाते थे कि एक सिद्ध बलिदान चढ़ाए जाने की ज़रूरत है। यीशु मसीह ही वह सिद्ध बलिदान था। उसने एक ही बार में हमेशा-हमेशा के लिए अपने सिद्ध जीवन का बलिदान चढ़ा दिया। (इब्रानियों ७:२७) उसके बलिदान पर विश्वास करनेवालों को उनके पापों से पूरी-पूरी और सही मायनों में क्षमा मिल सकती थी। पौलुस इन मसीहियों से कहता है कि ध्यान दें कि उनका यह महायाजक वही नम्र, दीन, दूसरों पर तरस खानेवाला यीशु है जिसके बारे में यरूशलेम के मसीही अच्छी तरह जानते थे। पौलुस की इस बात ने वाकई इन मसीहियों का दिल छू लिया होगा कि यीशु बदला नहीं है और वह “ऐसा महायाजक [है] जो हमारी निर्बलताओं में हमसे सहानुभूति” रख सकता है। (इब्रानियों ४:१५, NHT; १३:८) इसी यीशु मसीह के साथ स्वर्ग में याजक बनकर परमेश्वर की सेवा करने की इन मसीहियों को शानदार आशा मिली थी! वे भ्रष्ट यहूदी-धर्म की “निर्बल और निकम्मी” बातों पर ध्यान लगाकर पीछे हटने के बारे में सोच भी कैसे सकते थे?—गलतियों ४:९.
१२, १३. (क) पौलुस ने इब्रानी मसीहियों को पीछे नहीं हटने की कौन-सी एक और ठोस वजह बतायी? (ख) धीरज धरते रहने की खुद अपनी मिसाल से ही इब्रानी मसीहियों को किस तरह हौसला मिला कि निराश होकर पीछे न हटें?
१२ मानो इतने सारे सबूत काफी न थे कि पौलुस इब्रानी मसीहियों को एक और ठोस वजह बताता है कि क्यों उन्हें पीछे नहीं हटना चाहिए। यह ठोस वजह थी, परीक्षाओं में धीरज धरने की उन मसीहियों की खुद अपनी मिसाल। इसके बारे में याद दिलाते हुए पौलुस लिखता है: “उन दिनों का स्मरण करो, जब तुम ज्योति प्राप्त करने के पश्चात् घोर कष्टों के संघर्ष में स्थिर रहे थे।” पौलुस उन्हें याद दिला रहा था कि कैसे सच्चाई की खातिर उन्होंने ज़ुल्म और बदनामी को सहा और सबके सामने “तमाशा बने।” जब कइयों को कैदखानों में डाल दिया गया था, तब दूसरे भाई-बहन भी उनके दुःख में दुःखी हुए और उनकी मदद भी की। इन सब परीक्षाओं में, उन्होंने ऐसा विश्वास और धीरज दिखाया जो वाकई एक बेहतरीन मिसाल था। (इब्रानियों १०:३२-३४, NHT) मगर, पौलुस इन मसीहियों को वे सारी तकलीफें और दर्दनाक वारदातें ‘स्मरण करने’ के लिए क्यों कहता है? क्या ऐसी तकलीफों को याद करके मसीही निराश न हो जाते?
१३ नहीं ऐसा नहीं था, बल्कि पौलुस चाहता था कि “उन दिनों का स्मरण” करके इन इब्रानी मसीहियों को यह याद आए कि कैसे इन सभी परीक्षाओं में यहोवा उन्हें संभाले रहा। उसी की मदद से वे शैतान के कई हमलों का सामना करने में कामयाब रहे थे। पौलुस ने आगे लिखा: “परमेश्वर अन्यायी नहीं, कि तुम्हारे काम, और उस प्रेम को भूल जाए, जो तुम ने उसके नाम के लिये . . . दिखाया।” (इब्रानियों ६:१०) जी हाँ, यहोवा को उनके वे सभी काम याद थे जो इन वफादार मसीहियों ने उसकी सेवा में किए थे। उनके ये काम, एक खज़ाने की तरह यहोवा की याद्दाश्त के अथाह भंडार में महफूज़ थे। याद कीजिए, यीशु ने हमें स्वर्ग में धन इकट्ठा करने की सलाह दी थी। यहोवा की सेवा में किया गया काम ऐसा धन है जिसे कोई चुरा नहीं सकता, ना ही इसे कीड़ा लग सकता है और ना ही ज़ंग लग सकता है। (मत्ती ६:१९-२१) सिर्फ एक ही वजह से यह धन नाश हो सकता है, वह है यहोवा को छोड़ देना और पीछे हट जाना। अगर एक मसीही ऐसा करता है तो मानो वह स्वर्ग में जमा किया हुआ अपना धन लुटा देता है। यहोवा की नज़रों में फिर उसके कामों की कोई कीमत नहीं रहती और इसका अंजाम सिर्फ विनाश ही होता है। पौलुस ने इब्रानी मसीहियों को पीछे न हटने की कितनी ज़बरदस्त और ठोस वजह बताईं! बरसों तक वफादारी से की गयी सेवा को भला क्यों बरबाद होने दें? उनके लिए इससे कहीं बेहतर और सही रास्ता यह होता कि हिम्मत न हारें बल्कि धीरज धरते हुए परमेश्वर की सेवा में लगे रहें।
क्यों हमें नाश होने के लिए पीछे नहीं हटना चाहिए
१४. आज हम भी पहली सदी के मसीहियों की तरह किन मुश्किलों का सामना करते हैं?
१४ आज सच्चे मसीहियों को भी नाश होने के लिए पीछे नहीं हटना चाहिए। पहली सदी के मसीहियों की तरह हमारे पास भी इसके बहुत ज़बरदस्त कारण हैं। हम यह कभी न भूलें कि शुद्ध और सही तरीके से उपासना करने की आशीष हमें यहोवा की तरफ से ही मिली है। माना कि पहली सदी के मसीहियों की तरह, हमारे वक्त में भी बड़े-बड़े धर्मों के माननेवाले हमसे घृणा करते हैं और हमें खरी-खोटी सुनाते हैं। वे अपने पूजा के बड़े-बड़े भवनों और तीर्थस्थानों पर बड़ा घमंड करते हैं। वे कहते हैं कि उनका धर्म ही सबसे पुराना है और उनके रीति-रिवाज़ सदियों से चले आ रहे हैं। लेकिन यहोवा हमें यकीन दिलाता है कि जिस तरीके से हम उसकी उपासना करते हैं सिर्फ वही सही तरीका है और यहोवा सिर्फ उसी को स्वीकार करता है। सच पूछिए तो आज हमें इतनी बड़ी आशीषें मिली हैं जो पहली सदी के हमारे मसीही भाई-बहनों को नहीं मिली थीं। आप शायद कहें कि ‘ऐसा कैसे हो सकता है?’ वो तो खुद उन दिनों मौजूद थे जब सा.यु. २९ में यीशु के बपतिस्मे के साथ परमेश्वर के महान आत्मिक मंदिर की सेवाएँ शुरू हुईं और यीशु उसका महायाजक बना। उनमें से कइयों ने तो खुद यीशु को और उसके चमत्कारों को अपनी आँखों से देखा था। और यीशु की मौत के बाद इन मसीहियों ने वह वक्त भी देखा जो चमत्कारों से भरा हुआ था। लेकिन, आजकल तो ऐसा नहीं होता। क्योंकि जैसा बाइबल में बताया गया था, कुछ समय बाद ये वरदान मिट गए।—१ कुरिन्थियों १३:८.
१५. आज सच्चे मसीही किस भविष्यवाणी की पूर्ति के समय में जी रहे हैं और इससे हमारे लिए क्या हुआ है?
१५ लेकिन आज हम उस समय में जी रहे हैं जब यहेजकेल ४०-४८ अध्याय में दी गयी, यहोवा के महान आत्मिक मंदिर की ब्यौरेवार भविष्यवाणी बड़े पैमाने पर पूरी हो रही है।a जी हाँ, हमारे ज़माने में ही शुद्ध उपासना के लिए यहोवा के इंतज़ाम को हमने फिर से शुरू होते हुए देखा है। इस आत्मिक मंदिर को झूठी उपासना से जुड़े हर घृणित काम और हर तरह की मूर्तिपूजा से शुद्ध कर दिया गया। (यहेजकेल ४३:९; मलाकी ३:१-५) इस आध्यात्मिक शुद्धिकरण की वजह से मिले फायदों पर ज़रा गौर कीजिए।
१६. पहली सदी के मसीहियों को क्या कुछ देखकर दुःख हुआ होगा?
१६ पहली सदी में जब मसीही कलीसिया नयी-नयी स्थापित हुई थी तो अच्छी तरह संगठित थी, लेकिन आसार अच्छे नज़र नहीं आ रहे थे। यीशु ने भविष्यवाणी की थी कि इस नयी मसीही कलीसिया की हालत गेहूं के ऐसे खेत की सी हो जाएगी जिसमें जंगली दाने गेहूं के पौधों को पूरी तरह ढक लेंगे और यह पहचानना मुश्किल हो जाएगा कि कौन-सा जंगली दाना है कौन-सा गेहूं। (मत्ती १३:२४-३०) और ऐसा ही हुआ। पहली सदी के खत्म होते होते, जब तक आखिरी प्रेरित यूहन्ना ज़िंदा था तब तक उसने मसीही कलीसिया को झूठी शिक्षाओं से भ्रष्ट होने से बचाए रखा। लेकिन उस वक्त से ही धर्मत्याग फलना-फूलना शुरू हो गया। (२ थिस्सलुनीकियों २:६; १ यूहन्ना २:१८) प्रेरितों की मौत के कुछ ही साल बाद, कलीसिया में ऐसे अगुवों का वर्ग उभरकर सामने आया जिन्होंने भेड़ियों की तरह, कलीसिया की भेड़ों पर ज़ुल्म करना शुरू कर दिया। यह पादरी वर्ग था। दूसरों से अलग नज़र आने के लिए ये लोग अलग पोशाक पहनने लगे। यह धर्मत्याग कोढ़ की बीमारी की तरह फैलने लगा। सच्चे और वफादार मसीहियों ने जब यह देखा कि शुद्ध उपासना का जो इंतज़ाम अभी-अभी शुरू हुआ था, उसे झूठी शिक्षाओं ने किस कदर अशुद्ध और भ्रष्ट कर दिया है तो उन्हें कितना दुःख हुआ होगा। मसीह ने जब इस कलीसिया की नींव डाली थी, तब से पूरे सौ साल भी नहीं बीते थे और यह सब होने लगा था।
१७. पहली सदी की कलीसिया से आज की मसीही कलीसिया, कैसे ज़्यादा समय से बरकरार है?
१७ लेकिन हमारे ज़माने में देखिए। जब सन् १८७९ में इस पत्रिका का पहला अंक छपा था, तब से यहोवा हमें लगातार आशीषें देता आ रहा है और शुद्ध उपासना के बारे में हमारा ज्ञान बढ़ता चला गया है। पहली सदी में शुद्ध उपासना प्रेरितों की मौत तक जितने समय तक बरकरार रही थी, उससे कहीं ज़्यादा साल से शुद्ध उपासना आज हमारे ज़माने में बरकरार रही है। इतना ही नहीं सन् १९१८ में यहोवा और यीशु मसीह ने आत्मिक मंदिर को शुद्ध किया। (मलाकी ३:१-५) और उसके बाद सन् १९१९ से, यहोवा परमेश्वर की उपासना करने का इंतज़ाम दिन-ब-दिन और ज़्यादा शुद्ध होता जा रहा है। तब से बाइबल की भविष्यवाणियों की और उसमें दिए गए उसूलों के बारे में हमारी समझ और भी ज़्यादा बढ़ती चली जा रही है। (नीतिवचन ४:१८) लेकिन, यह सब किसने किया है? यह किसी इंसान के बस की बात नहीं। सिर्फ यहोवा परमेश्वर ही इतने लंबे समय तक ऐसी भ्रष्ट और अशुद्ध दुनिया में अपने लोगों को भ्रष्ट होने से बचाए रख सकता है। उसके साथ उसका बेटा यीशु मसीह भी है जिसे उसने मसीही कलीसिया का सिर ठहराया है। तो आइए, इसके लिए हम यहोवा का एहसान मानें और सदा उसका धन्यवाद करते रहें कि उसने हमें भी उसकी शुद्ध उपासना करने का मौका दिया है। इसलिए आइए हम यह संकल्प करें कि हम कभी-भी नाश होने के लिए पीछे नहीं हटेंगे!
१८. नाश होने के लिए पीछे न हटने की दूसरी वजह क्या है?
१८ हमें बुज़दिलों की तरह पीछे नहीं हटना चाहिए। उन इब्रानी मसीहियों की तरह हमारे पास पीछे न हटने का एक और कारण है, और वह है धीरज धरने की हमारी अपनी मिसाल। चाहे हम सच्चाई में नये हों या हमें बरसों बीत चुके हों, परमेश्वर की सेवा करने का हम सभी का अपना-अपना एक रिकॉर्ड है। हममें से कई भाई-बहनों ने सताहट झेली है, शायद हम अपने विश्वास की खातिर कैद किए गए, हमारे काम पर पाबंदी लगायी गयी, हम पर बड़ी बेरहमी से ज़ुल्म ढाए गए या शायद हमसे हमारी धन-संपत्ति छीन ली गयी। कई ऐसे भी हैं जिनके अपने घर के लोगों ने ही उनका विरोध किया, उनकी खिल्ली उड़ायी गयी, उन्होंने बेइज़्ज़ती सही और लोगों की बेरुखी को बरदाश्त किया। हम सभी ने वफादारी से यहोवा की सेवा करने के लिए मुसीबतों और परीक्षाओं का सामना करते हुए भी धीरज धरा है। ऐसा करके हमने यहोवा की सेवा में लगे रहने की ऐसी मिसाल कायम की है जिसे यहोवा कभी नहीं भूलेगा। और यही स्वर्ग में जमा किया गया हमारा धन है। अब इसे भला क्यों बरबाद होने दें? इसलिए, अब यह वक्त पीछे हटकर इस गंदी और भ्रष्ट दुनिया में जाने का नहीं है! उसे तो हम बहुत पीछे छोड़ चुके हैं। आज तक हमने जो इतनी मेहनत की है उसे ज़ाया क्यों होने दें? और आज, इस घड़ी में परमेश्वर के काम में लगे रहना तो और भी ज़रूरी है, क्योंकि अंत आने में “बहुत ही थोड़ा समय रह गया है।”—इब्रानियों १०:३७.
१९. हमारे अगले लेख में किस बात पर चर्चा की जाएगी?
१९ जी हाँ, आइए हम संकल्प करें कि ‘हम उनमें से नहीं होंगे जो नाश होने के लिए पीछे हटते हैं’! इसके बजाय हम ऐसे बनें जिन्हें “विश्वास करनेवाले” कहा गया है। (इब्रानियों १०:३९) तो हम उन लोगों में कैसे शामिल हो सकते हैं जिन्हें विश्वास करनेवाले कहा गया है, और हम अपने संगी मसीही भाई-बहनों की मदद कैसे कर सकते हैं कि वे भी विश्वास करनेवाले बनें? इस मामले पर हमारा अगला लेख चर्चा करेगा।
[फुटनोट]
a प्रहरीदुर्ग मार्च १, १९९९ के पेज ८-२३ देखिए।
क्या आपको याद है?
◻ नाश होने के लिए पीछे हटने का क्या मतलब है?
◻ पौलुस ने जब इब्रानियों को पत्री लिखी तो उन मसीहियों पर कैसे दबाव आ रहे थे?
◻ पौलुस ने, नाश होने के लिए पीछे न हटने के इब्रानियों को कौन-से कारण दिए?
◻ यह संकल्प करने के लिए हमारे पास कौन-सी ठोस वजह हैं कि हम नाश होने के लिए कभी-भी पीछे नहीं हटेंगे?
[पेज 15 पर तसवीरें]
पतरस डर के मारे गलती कर बैठा, लेकिन इससे वह उन लोगों में शामिल नहीं हो गया जो ‘नाश होने के लिए पीछे हटते हैं’