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  • प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—2004
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प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—2004
w04 8/1 पेज 3-4

एक अच्छी सरकार की तलाश

“आज सभी देश पहले से कहीं ज़्यादा एक-दूसरे पर निर्भर हो रहे हैं, इस वजह से एक-के-बाद-एक ऐसी समस्याएँ खड़ी हो गयी हैं जिन्हें कोई भी देश अकेले हल नहीं कर सकता। इन बढ़ते खतरों और मुश्‍किलों का हम तभी सामना कर पाएँगे जब दुनिया के सभी देश एक-जुट होकर कोशिश करेंगे।”—गुलाम ऊमार, पाकिस्तान के राजनीति विशेषज्ञ।

आज दुनिया में ऐसी कई बातें हैं जो बिलकुल अजीब-सी लगती हैं। एक तरफ जहाँ कुछ लोग ऐशो-आराम से जी रहे हैं, तो वहीं बहुतों को दो वक्‍त की रोटी का जुगाड़ करने के लिए एड़ियाँ रगड़नी पड़ती हैं। इस कंप्यूटर युग में अब पहले से कहीं ज़्यादा पढ़े-लिखे और जानकार लोग हैं, मगर अफसोस कि कइयों को पक्की नौकरी के लिए दर-दर भटकना पड़ता है। देखने में लगता है कि इंसान के पास पहले से ज़्यादा आज़ादी है, मगर लाखों लोगों को आनेवाले कल को लेकर डर और चिंता से छुटकारा नहीं मिला है। ज़िंदगी में कुछ करने के लिए बहुत-से बढ़िया मौके तो नज़र आते हैं मगर समाज में छोटे से लेकर बड़े पदवालों में भ्रष्टाचार और अधर्म इस कदर फैल चुका है कि ज़्यादातर लोगों को निराशा ही हाथ लगती है।

दुनिया की समस्याएँ इतनी बढ़ गयी हैं कि इन्हें सुलझाना किसी एक देश के बस की बात नहीं। यहाँ तक कि कुछ देश मिलकर भी इनका मुकाबला नहीं कर सकेंगे। इसलिए कई विशेषज्ञ इस नतीजे पर पहुँचे हैं कि दुनिया में शांति और सुरक्षा का सपना तभी साकार होगा, जब सभी देश एक होंगे और उनकी एक ही सरकार होगी। मसलन, एल्बर्ट आइंस्टाइन ने बहुत पहले इस तरह की धारणा को बढ़ावा दिया था। सन्‌ 1946 में उसने दावे के साथ कहा: “मुझे पूरा यकीन है कि दुनिया के ज़्यादातर लोग शांति और सुरक्षा के माहौल में जीना चाहेंगे . . . उनकी यह ख्वाहिश तभी पूरी हो सकेगी जब सारी दुनिया पर हुकूमत करने के लिए एक ही सरकार बनायी जाएगी।”

आइंस्टाइन को ऐसा कहे पचास से भी ज़्यादा साल बीत गए हैं, मगर आज तक हमारी यह अहम ज़रूरत पूरी नहीं हुई है। पैरिस, फ्रांस के अखबार, ला मॉन्ड के एक लेख में इक्कीसवीं सदी की एक-एक समस्या का ज़िक्र करने के बाद यह कहा गया: “एक ऐसी अंतर्राष्ट्रीय सरकार बनाने की ज़रूरत है, जो कानून बनाए, उनको लागू करवाए और कानून तोड़नेवालों को सज़ा दे, और दुनिया के किसी भी कोने में जातीय जनसंहार को रोकने के लिए फौरन कदम उठा सके। इस धारणा को भी कबूल करना ज़रूरी है कि अब से सारी धरती एक देश है।” ऐसी सरकार कौन ला सकता है जो सारी दुनिया को एक खुशहाल भविष्य दे सके?

क्या संयुक्‍त राष्ट्र वह सरकार है?

कइयों को उम्मीद है कि संयुक्‍त राष्ट्र संगठन विश्‍व-शांति लाएगा। क्या संयुक्‍त राष्ट्र ही वह सरकार है जो दुनिया को सच्ची शांति और सुरक्षा दे सकेगी? इसमें कोई शक नहीं कि संयुक्‍त राष्ट्र ने शांति लाने की बड़ी-बड़ी बातें की हैं, जिन्हें सुनने पर लगता है कि वह ज़रूर कामयाब होगा। मसलन, संयुक्‍त राष्ट्र महासभा ने सन्‌ 2000 की “नयी सदी की घोषणा” में अपना यह पक्का इरादा बताया: “बीते दस सालों के दौरान युद्धों ने 50 लाख से ज़्यादा लोगों की जानें ली हैं। यह हमारा वादा है कि हम जनता को युद्ध की मार से बचाने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे, फिर चाहे देश-देश के बीच का युद्ध हो या किसी देश की अंदरूनी लड़ाई हो।” ऐसी घोषणाओं की वजह से लोगों और अलग-अलग संगठनों ने संयुक्‍त राष्ट्र की खूब वाह-वाही की है। उसे सन्‌ 2001 का नोबेल शांति पुरस्कार भी दिया गया। नॉरवे की नोबेल कमेटी ने संयुक्‍त राष्ट्र को इस पुरस्कार से सम्मानित करते हुए कहा कि “सिर्फ संयुक्‍त राष्ट्र के ज़रिए ही विश्‍व-शांति और सहयोग मुमकिन है।”

इन सबके बावजूद, क्या सन्‌ 1945 में स्थापित किया गया यह संगठन साबित कर पाया है कि वह हमेशा तक कायम रहनेवाली सच्ची शांति ला सकेगा? नहीं। इसकी कई कोशिशें नाकाम रही हैं क्योंकि इसके सदस्य देश हमेशा अपने फायदे की सोचते हैं और एक-दूसरे से आगे निकलना चाहते हैं। एक अखबार के संपादक ने कहा कि जनता की नज़र में संयुक्‍त राष्ट्र बस “एक ऐसा यंत्र है जिससे दुनिया के सभी लोगों की राय का पता चलता है” और “इसके अजेंडा में समस्याओं की लंबी सूची है जिन पर बरसों से बहस चल रही है मगर उन्हें सुलझाने के लिए कुछ खास कदम नहीं उठाए जा रहे हैं।” तो अब सवाल उठता है कि क्या कभी ऐसा वक्‍त आएगा जब दुनिया के सारे देश एक हो जाएँगे?

बाइबल बताती है कि बहुत जल्द ऐसी एकता मुमकिन होगी। यह कैसे होगा? और कौन-सी सरकार ऐसी एकता लाएगी? जानने के लिए अगला लेख पढ़कर देखिए।

[पेज 3 पर तसवीर]

आइंस्टाइन ने इस धारणा को बढ़ावा दिया कि सारी दुनिया पर एक ही सरकार की हुकूमत होनी चाहिए

[चित्र का श्रेय]

आइंस्टाइन: U.S. National Archives photo

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