किस तरह की शिक्षा आपको ज़िंदगी में कामयाब बना सकती है?
क्या कभी आपको ऐसा लगा है कि आप मुसीबतों के भँवर में फँसते चले जा रहे हैं? ऐसे में अगर आप एक या एक से ज़्यादा समस्याओं को सुलझाने में कोई गलती कर बैठते हैं, तो ज़रा सोचिए आपको कितनी तकलीफ उठानी पड़ सकती है! किसी भी इंसान में यह पैदाइशी खूबी नहीं होती कि वह अपनी सारी समस्याओं को सुलझाने में कामयाब हो और फैसला करने में कोई गलती न करे। इसके लिए तालीम पाना ज़रूरी है। मगर सवाल यह है कि आपको ऐसी तालीम कहाँ से मिल सकती है, जो आपको ज़िंदगी की समस्याओं का सामना करने के लिए तैयार कर सके?
कई जवानों और बुज़ुर्गों का मानना है कि स्कूल-कॉलेज की शिक्षा हासिल करना बेहद ज़रूरी है। कुछ विशेषज्ञ यहाँ तक भी कहते हैं कि उन्हें “पूरा यकीन है कि आप कॉलेज की डिग्री के बगैर एक [ढंग की] नौकरी कभी हासिल नहीं कर सकते।” लेकिन, इंसान की कुछ ज़रूरतें ऐसी हैं जिन्हें कॉलेज की डिग्रियाँ पूरी नहीं कर सकतीं। उदाहरण के लिए, क्या बड़ी-बड़ी डिग्रियाँ आपको एक अच्छा दोस्त, जीवन-साथी या एक अच्छे माँ-बाप बना सकती हैं? दरअसल, जिन लोगों की दिमागी काबिलीयत की तारीफ की जाती है, उनमें अकसर कई बुराइयाँ पैदा हो जाती हैं, वे अपने पारिवारिक जीवन में कामयाब नहीं हो पाते, यहाँ तक कि ज़िंदगी से परेशान होकर खुदकुशी कर लेते हैं।
कुछ लोग मार्गदर्शन के लिए धर्म का सहारा लेते हैं। उन्हें लगता है कि धर्म उन्हें ज़िंदगी की मुश्किलों का सामना करना सिखा सकता है। मगर जब उन्हें अपनी मुश्किलों के लिए व्यावहारिक तरीके से कोई मदद नहीं मिलती तो वे निराश हो जाते हैं। मेक्सिको की ऐमीलयाa की मिसाल इस बात को सच साबित करती है। वह कहती है: “पंद्रह साल पहले मुझे लगा कि मैं अब अपने पति के साथ और नहीं रह सकती। हम हर समय लड़ते-झगड़ते थे। उन्हें शराब पीने की बुरी आदत थी और चाहते हुए भी मैं उनकी लत छुड़ा न सकी। कई बार ऐसा हुआ कि हमारे नन्हे बच्चों को अकेला छोड़कर, मुझे उनकी तलाश में जाना पड़ता था। मैं अंदर-ही-अंदर टूट चुकी थी। मैं बहुत बार इस उम्मीद से चर्च गयी कि शायद मुझे अपनी समस्या का कोई-न-कोई हल मिल जाएगा। हालाँकि चर्च में कभी-कभी बाइबल का इस्तेमाल किया जाता, मगर मैंने कभी ऐसी कोई सलाह नहीं सुनी जो मेरे हालात में मेरी मदद कर सके। ना ही किसी ने आकर कभी मुझे बताया कि मुझे क्या करना चाहिए। चर्च में कुछ देर बैठे रहने और एक-दो प्रार्थनाएँ दोहराने से मुझे कोई तसल्ली नहीं मिली।” ऐसे भी लोग हैं जो यह देखकर निराश हो जाते हैं कि उनके धर्म के अगुवे खुद एक आदर्श ज़िंदगी नहीं जी रहे हैं। नतीजतन, धर्म पर से कइयों का भरोसा उठ जाता है और उन्हें नहीं लगता कि धर्म उन्हें ज़िंदगी में कामयाब होने की शिक्षा या तालीम दे सकता है।
इसलिए आप शायद खुद से यह पूछें: ‘ज़िंदगी में कामयाबी पाने के लिए मुझे किस तरह की शिक्षा हासिल करनी चाहिए?’ क्या सच्ची मसीहियत के पास इस अहम सवाल का जवाब है? अगले लेख में इसकी चर्चा की जाएगी।
[फुटनोट]
a नाम बदल दिया गया है।