गृह बाइबल अध्ययनों के लिए तैयारी करना और उन्हें संचालित करना
यीशु ने अपने अनुयायियों को सुसमाचार प्रचार करने और “चेला बनाने” का आदेश दिया। (मत्ती २४:१४; २८:१९, २०) गृह बाइबल अध्ययन संचालित करना शिष्य बनाने का एक बहुत ही प्रभावकारी ज़रिया है। चूँकि यह अहम काम हमारी उपासना का एक हिस्सा है, हमें अच्छे से अच्छे रीति से गृह बाइबल अध्ययनों के लिए तैयारी करने और उन्हें संचालित करने में प्रयास करना चाहिए।
२ अध्ययन के लिए तैयारी करना: किसी गृह बाइबल अध्ययन को संचालित करने की तैयारी करने में पाठ को मात्र पढ़ने और ज़िक्र किए गए शास्त्रपदों को खोलकर देखने के अलावा कुछ ज़्यादा सम्मिलित करता है। विद्यार्थी के हृदय तक पहुँचने के लिए, हमें विषय को इस तरह प्रस्तुत करना चाहिए कि यह उसे प्रेरित करेगा।
३ पहले तो खुद हमें ही इस विषय को स्पष्ट रूप से समझना चाहिए। हमें यह जानना ज़रूरी है कि सारे शास्त्रपद इन परिच्छेदों से क्या सम्बन्ध रखते हैं और ये विद्यार्थी पर किस तरह लागू होते हैं। मुख्य शब्दों या वाक्यांशों को रेखांकित करने से हमें याद रखने की मदद मिलती है। हमें पाठ के मुख्य विचारों को अलग करना चाहिए और यह सोचना चाहिए कि उन्हें विद्यार्थी तक किस तरह पहुँचाया जाए। इसके अलावा, विद्यार्थी के धर्मशास्त्रीय ज्ञान का स्तर, ऐसे क्षेत्र जिन में उसे कुछेक मामलों को स्वीकार करने में कठिनाई हो रही है, और जहाँ उसे अपने व्यक्तित्व को सुधारने की ज़रूरत है, इत्यादि, पर ग़ौर किया जाना चाहिए। हम पूछ सकते हैं: ‘पाठ में दिए गए विषय और शास्त्रपदों को उसे प्रगति करने की मदद करने में किस तरह इस्तेमाल किया जा सकता है?’ कभी-कभी अतिरिक्त खोज ज़रूरी होगी। अगर विद्यार्थी को सचमुच ही फ़ायदा पहुँचाना हो तो ध्यानपूर्वक तैयारी करने की ज़रूरत है।
४ यहोवा से प्रार्थना करना बाइबल अध्ययन की तैयारी करने में एक अहम हिस्सा है। उस व्यक्ति और उसकी ज़रूरतों के बारे में प्रार्थना करने में सुस्पष्ट रहें। यहोवा से माँगें कि वह आपको उसके हृदय तक पहुँचने की मदद करें।—१ कुरि. ३:६.
५ अध्ययन संचालित करना: किसी व्यक्ति को सच्चाई अपना लेने की सहायता करने में हमारी तरफ़ से प्रयत्न आवश्यक है। अध्ययन विषय को मात्र शैक्षिक रूप से निपटने से शायद व्यक्ति को ज्ञान हासिल करने में मदद होगी, पर क्या वह उन बातों में विश्वास करता है जो वह सीख रहा है? विद्यार्थी को यह देखने की मदद करें कि अध्ययन-विषय उसे निजी तौर से किस तरह प्रभावित करता है और सीखी हुई बातों का उसे क्या करना चाहिए।—कुलु. ३:१०.
६ विचार-विमर्श को ऐसे विषयों में बहकने देने के फ़न्दे में न पड़ें, जो प्रस्तुत अध्ययन-विषय से सीधे रूप से सम्बन्धित नहीं। अध्ययन के बाद में या किसी दूसरे वक़्त पर इन विषयों से निपटा जा सकता है। विद्यार्थी को सिर्फ़ किताब में से पढ़ने के बजाय खुद अपने शब्दों में जवाब देने को सिखाना भी अहम है। इस से आपको यह निश्चित करने की मदद होगी कि क्या अध्ययन-विषय उसकी समझ में आ गया है या नहीं।
७ एक अच्छा शिक्षक मुख्य बातों पर ज़ोर देता है, ताकि विद्यार्थी उसे समझ लेना न चूके। यीशु ने कुछ विचार-प्रेरक सवाल पूछकर ऐसा किया, जिनसे बातों की तह तक पहुँचा जा सकता था। (मत्ती १६:१३-१६; १७:२४-२७) सवालों से आपको न सिर्फ़ यह निश्चित कर लेने में मदद होगी, कि क्या विद्यार्थी को समझ में आया या नहीं, लेकिन इन से उसके हृदय में जो है, यह भी प्रकट हो जाता है। यीशु ने अपने श्रोताओं को उसकी बातों पर सोचने की मदद करने के लिए सरल और साधारण दृष्टान्तों का प्रयोग किया।—मत्ती १३:३१-३३; २४:३२, ३३.
८ अध्ययन के अन्त में मुख्य शास्त्रपदों को अपने पुनर्विचार में शामिल करना न भूलना। ऐसे सवालों का प्रयोग करें जिन से आप देख सकते हैं कि विद्यार्थी उन बातों के बारे में क्या महसूस करता है, जो वह अभी-अभी सीख चुका है और जो इस बात पर उसका ध्यान केंद्रित करते हैं कि वह सीखी हुई बातों को किस तरह अमल में ला सकता है। आपके अगले अध्ययन की शुरुआत में, जैसे ज़रूरी लगे वैसे मुख्य बातों पर फिर से पुनर्विचार करें।
९ हम लोगों को यहोवा के सेवक बनने का प्रशिक्षण दे रहे हैं। यह एक ख़ास अनुग्रह और एक ज़िम्मेदारी, दोनों है। क्या आप गृह बाइबल अध्ययनों में आपके सिखाने के स्तर को सुधार सकते हैं? गृह बाइबल अध्ययनों के लिए तैयारी करने और उन्हें संचालित करने में हमें भरसक कोशिश करनी चाहिए।—१ तीमु. ४:१५, १६.