धीरज के साथ फल उत्पन्न करते रहिये
यीशु मसीह के मृत्यु और पुनरुत्थान के ३० से कम वर्षों के बाद कुलुस्से की कलीसिया को लिखते समय प्रेरित पौलुस बोल सके कि सुसमाचार का सत्य फल उत्पन्न कर रहा था और सारे संसार में बढ़ता जा रहा था। (कुलु. १:५, ६) आज उससे बहुत अधिक विशाल पैमाने पर यहोवा के गवाहों अक्षरशः राज्य के सुसमाचार के साथ “पृथ्वी के सर्वाधिक दूर भाग” तक पहुंच गये हैं। (प्रेरितों के काम १:८; यूहन्ना १४:१२) १९८९ के सेवा वर्ष के दौरान, संसार-भर में राज्य प्रकाशकों की औसत संख्या में ५.६ प्रतिशत की वृद्धि हुई, और २१२ देशों में हम ३७,८७,१८८ प्रकाशकों के नये शिखर तक पहुंचे।
२ जिन देशों में परमेश्वर के राज्य के बारे में प्रचार करने पर निषेध हैं और रिपोर्टों अपूर्ण हैं, उससे भी बड़ी, ७.६ प्रतिशत की वृद्धि रिपोर्ट की गई! उन देशों में जितने सारे समस्याएँ हैं उनके बावजूद, प्रकाशकों “धीरज से फल उत्पन्न करते” रहते हैं। (लूका ८:१५) कुछ स्थानों में दबावों कम हुए हैं, पर अन्य देशों में कठिन परिस्थितियाँ बिना परिवर्तन के जारी हैं।
३ राज्य-प्रचार कार्यों में भाग लेने के लिये जिन देशों में अधिक स्वतंत्रता है, वहाँ हम अन्य समस्याओं का सामना करते हैं। बहुत निरुत्साह और उपेक्षा का सामना होता है, विशेषकर वहाँ जहाँ भौतिक सत्पत्ति हैं। यहोवा के सेवकों को चौकस रहना हैं कि वे ऐसे मनोभावों को न अपनाएँ। हम नहीं चाहते कि भौतिक रूचियां, सुखविलासों, मनोरंजन और अन्य विकषर्णों हमारे इश्वरशासित कार्यों पर अतिक्रमण करें। नहीं तो हम निरुत्साही बन सकते हैं और धीरज के साथ फल उत्पन्न करते रहने की आवश्यकता का मूल्यांकन करने से चूक सकते हैं।—लूका २१:३४-३६.
धीरज और प्रयत्न आवश्यक
४ धीरज एक जरूरत हैं, चाहे हम सुसमाचार की ओर विरोद्ध का सामना करते हैं या मसीही उत्तरदायित्वों को पूर्ण करने के लिये हमारे पास दूसरों की तूलना में अधिक स्वतंत्रता हो। कुछ देशों में, हमारे भाइयों दशाब्दियों से कठिन परिस्थितियों के आधीन काम कर रहे हैं। ऐसी कठिनाइयों के आधीन उनके धीरज ने अनुमोदन की दशा उत्पन्न की हैं और वे अब महान आशीर्वादों प्राप्त कर रहे हैं। (रोमि. ५:३-५; गल. ६:९) हम चाहते हैं कि हम धीरज दिखाते रहे, चाहे हम कोई भी कठिनाइयों का सामना करें। राज्य गवाही देना आवश्यक हैं, और हम सब को अपनी वफादारी प्रदर्शित करते रहना चाहिये। हमारे तरफ से धीरज दिखाने से, हम अपने प्राण या जीवन को पा सकेंगे।—मरकुस १३:१०; लूका २१:१९.
५ यहोवा की सेवा में अत्युत्साह से प्रयत्न करने, प्रचार कार्य में थक न जाने के द्वारा, हम प्रदिर्शित कर सकते हैं कि हम आत्मिक बातों को हल्के नज़र से नहीं देखते। कुछ देशों में जहाँ परिवहन अधिक कठिन हैं, जहाँ भौतिक आवश्यकताओं की कमी हैं, और जहाँ आर्थिक समस्याएं हैं, सुसमाचार के प्रचार में कोई रुकावट नहीं हैं। कुछ ऐसे देशों में, कलीसियाई प्रकाशकों नियमित रीति से हर महीने क्षेत्र सेवा में १४ से १७ घंटों का औसत बनाये रखते हैं। और उनके पायनियरों की संख्या भी बढ़ती जा रही हैं। इसके कारण, हम में से बहुत जिनके पास अनेक भौतिक सुविधाएं हैं, रुककर विचार करते हैं। क्या हम राज्य-प्रचार और चेले बनाने के अति महत्त्वपूर्ण कार्य में हमारे नियमित हिस्सा को बढ़ा सकते हैं?
क्या हम अधिक कर सकते हैं?
६ क्षेत्र सेवा में अधिक समय व्यय करने के लिये शायद हमारी तालिकाओं में थोड़ासा परिवर्तन करना आवश्यक होगा। यदि हम रविवार को क्षेत्र सेवकाई में एक घंटा व्यय करते रहे हैं, तो पुनःभेंटों में जाने से या एक बाइबल अध्ययन चलाने में एक और घंटे व्यय करने से क्या हम उस अवधि को बढ़ा सकते हैं? अथवा यदि हम एक बाइबल अध्ययन चला रहे हैं, तो क्या हम अध्ययन से पहले एक घंटे के घर-घर की सेवा या कुछ पुनःभेंटों को शामिल कर सकते हैं? शनिवार को पत्रिका कार्य में दो घंटे व्यय करने के बाद, शायद हमारे विकासित किये हुए पत्रिका मार्ग पर हम पत्रिकाओं दे सकते हैं या कुछ पुनःभेंट करने के प्रयत्न कर सकते हैं। जो शहरी इलाकों में रहते हैं वे शायद सड़क गवाही में कुछ समय व्यय करने को उपयुक्त पायेंगे। इन अथवा अन्य रीतियों से शायद हम शेत्र सेवा में अपने हिस्सेदारी को बढ़ा सकते हैं। अच्छे परिणामों को भी इसके बराबर बढ़ने चाहिये।
७ क्षेत्र सेवा में पुनःभेंटों करते हुए अधिक समय निःसन्देह अधिक बाइबल अध्ययनों के संचालन में परिणामित होगा। समय के आने पर इसका अर्थ होगा कि अधिक लोग सच्चाई में आयेंगे और राज्य प्रचार कार्य को सम्पन्न करने में हमारी सहायता करेंगे।—मत्ति २८:१९, २०.
प्रार्थना अत्यावश्यक
८ यदि हमें धीरज के साथ फल उत्पन्न करते रहना हैं, तो हमें यहोवा के आशीर्वाद ढूंढने चाहिये और उनकी आत्मा के मार्गदार्शन के अधीन रहने चाहिये। हमें अपनी सेवा को यहोवा से प्रार्थना करते समय, हमें याद दिलाया जाता है कि हम उनके सहकर्मियों हैं। (१ कुरि. ३:९) यहोवा की सहायता के साथ, जब हम तुरन्त परिणाम नहीं देखते तब भी हम अपनी सेवकाई में धीरज दिखा सकते हैं। कुछ इलाकों में राज्य प्रचारकों द्वारा कई वर्षों तक विश्वायोग्य रीति से धीरज दिखाने के बाद ही बढ़त हुई हैं। जैसे हम भविष्य की ओर देखते हैं, यह हमेशा आवश्यक हैं कि हम परमेश्वरीय मार्गदर्शन और सहायता ढूंढे ताकि हम उसे छोड़ न दें पर हमारे सेवकाई को पूर्ण रीति से सम्पन्न करें। (२ तीमु. ४:५) राज्य-प्रचार और चेले बनाने के काम में अब भी बहुत फल उत्पन्न किया जा रहा हैं।
९ यीशु ने हमें हमेशा प्रार्थना करने की आवश्यकता पर ज़ोर दिया। (लूका १८:१) पौलुस ने सलाह दी: “निरन्तर प्रार्थना में लगे रहो। (१ थिस्स. ५:१९) हमारे अब प्रार्थना में लगे रहने के लिये अत्यावश्यक कारणें हैं। वर्ष पर वर्ष बढ़ती हुई झुण्ड का देखभाल करने में कई उतरदायित्वों शामिल हैं। धीरज के साथ फल उत्पन्न करने के लिये हम दूसरों की सहायता करना चाहते हैं। व्यक्तिगत प्रकाशकों के और पूरी संस्था की विविध आवश्यकताओं पर ध्यान दिया जाना चाहिये। कार्य को समर्थन देने के लिये और बाइबल पर आधारित साहित्य का निरन्तर प्रकाशन को सम्भव बनाने के लिये चन्दाओं की आवश्यकता को देखते हुए, हम प्राथना करना चाहते हैं कि यहोवा परमेश्वर के भय माननेवाले लोगों को प्रेरणा देते रहेंगे कि वे इस मामले में उदार रहे।—२ कुरि. ९:८-११.
१० जैसे संसारव्यापी क्षेत्र के भागों पहले से कही अधिक हद तक इश्वरशासित विकास के लिये खुल जाते हैं, कुलुस्सियों ४:२ की शास्त्रीय सलाह अधिक अर्थपूर्ण बनती हैं: “प्रार्थना में लगे रहो, धन्यवाद के साथ उस में जागृत रहते हुए।” हमारे प्रार्थनाओं को सर्वदा हमारे भाइयों के पक्ष में होने चाहिये कि वे फल उत्पन्न करते रहे, जहाँ पूर्वकाल में गवाही देना अधिक कठिन रहा हैं ऐसे क्षेत्रों में पाये गये भड़े-समान लोगों की सहायता करते हुए।
कृतज्ञता प्रकट कीजिये
११ जिनका हम आनन्द उठाते हैं उन आत्मिक प्रबन्धों के लिये हम कितने आभारी हैं! इनके लिये हम यहोवा को धन्यवाद देन चाहते हैं, और हम विश्वासयोग्य दास और उसके शासकीय झुण्ड के कार्य पर उनके जारी आशीर्वाद के लिये भी प्रार्थना करते हैं। हमारे पक्ष में और संसार-भर में भेड़-समान लोगों के पक्ष में उनके विनम्र और बेथकान प्रार्थना का बहुत ही मुल्यांकन किया जाता है।
१२ राज्य बीज बोते समय बहुत बड़ी मात्रा में साहित्य प्रदान हुआ है। (मत्ती १३:३-८, १८-२३) परन्तु क्षेत्र में बाइबलों और बाइबल साहित्य के लिये माँग जारी हैं। संसार की रिपोर्ट बताती हैं कि पुनःभेटों और बाइबल अध्ययनों के रूप में बहुतम खेती और सिंचाई की गई हैं। हमारे सेवकाई के इन महत्त्वपूर्ण पहलुओं में जैसे हम अपना भाग निभाते रहते हैं, हम यहोवा को उनके जारी आशीवाद के लिये धन्यवाद देते हैं, जो बढ़त लाता हैं। वस्तुतः हम उस आशीर्वाद के लिये प्रार्थना करते हैं।—१ कुरि. ३:६, ७.
अन्य आवश्यकताएँ
१३ उसके कोई भाग न होते हुए भी संसार में होने के कारण, मसीहियों परीक्षणों और कसौटियों का सामना करते रहेंगे और इन अन्तिम दिनों में ये तीव्र होते जायेंगे। कुछेक अभी सताहट या अन्य कठिनाइयों का सामना कर रहे हैं। दूसरों को ऐसे देशों में अपने मसीह कार्य को जारी रखना पड़ता है जहाँ युद्ध चल रहा है। हमारे भाइयों ने भूकम्पों, आँधियों और बवंडरों जैसी विपत्तियों का सामना किया हैं। जब ऐसा होता हैं, हमें ऐसे इलाकों में हमारे भाइयों के लिये प्रार्थना करना चाहिये। (प्रेरितों के काम १२:५; २ कुरि. १:११ की तुलना करें) कभी-कभी यह आवश्यक पड़ता हैं कि हमारे कार्य पर प्रतिबन्दों, हमारे भाइयों का सताहट या राज्य के हितों को असर करनेवाले अन्य बातों के सम्बन्ध में ऊंचे पदों के अधिकारियों के पास जाने पड़ता हैं या उन से लिखना होता है। ऐसी परिस्थितियों में, जो हम व्यक्तिगत रीति से कर सकते हैं वह हम करते हैं, और हम इस व्यक्तियों के सम्बन्ध में प्रार्थना करते हैं कि वे हमारे सह-सेवकों पर कृपादृष्टि से देखें।—१ तीमु. २:१, २.
१४ शैतान के दुष्ट संसार में जी रहे परिवारों पर कई दबावों लाये जाते हैं। (२ कुरि. ४:४) विवाहित दम्पतियों शायद गम्भीर समस्याओं का सामना करें। उन्हें परमेश्वरीय मार्गदर्शन के लिये प्रार्थना करने की उत्साह दी जानी चाहिये, और हम भी उनके लिये प्रार्थना कर सकते हैं। (१ कुरि. ७:५; १ पतरस ३:७) परिवार के सिरों को मूल्याँकन करने चाहिये कि अपने घराने का अच्छा संचालन करने हेतु मार्गदर्शन के लिये उनके निष्कपट प्रार्थनाओं को यहोवा सुनेंगे। (न्यायियों १३:८; फिलि. ४:६, ७) युवा एवं वृद्ध परीक्षणों का सामना करते हैं। यह स्कूल में, संसारी नौकरी पर, यात्रा करते समय या अन्य परिस्थितियों में हो सकता हैं। इस दुष्ट संसार की आत्मा का विरोध करने, और जो परमेश्वर की दृष्टि में प्रसन्नता लाये ऐसे काम करते रहने के साथ फल उत्पन्न करने के लिये प्रार्थना हमारी सहायता करती हैं।—मत्ती ६:१३; इफि. ६:१३-१८; १ यूहन्ना ३:२२.
१५ यहोवा प्रार्थना के महान सुननेवाले हैं। (भजन संहिता ६५:२) हर समय हमें अपनी चिन्ताओं को उन पर डाल देने चाहिये। (भजन संहिता ५५:२२) प्रार्थना के द्वारा हमें अवसरों मिलते हैं कि सारे राज्य हितों के लिये और सर्वया हमारे भाइयों के कल्यान के लिये हम अपनी चिन्ता प्रदर्शित करें। कलीसिया में अगुवाही लेनेवालो और संसार-भर में बढ़त का संचालन करनेवालों के कार्य के बारे में विचार करते समय, जो आत्मिक रीति से बिमार हैं उनके साथ व्यवहार करते समय, या अन्य छोटे-बड़े समस्याओं का देखभाल करते समय, हम सब को इन बातों को प्रार्थना द्वारा यहोवा के साम्हने रखने चाहिये। (१ थिस्सलु. ५:२५; याकूब ५:१४-१६) हाँ, इस पूर्ण भरोसा के साथ हमारी चिन्ताओं को यहोवा पर डाल दिया जाना चाहिये, कि उनके इच्छा के अनुसार चाहे हम जो भी माँगे, वे हमारी सुनेंगे। (१ पतरस ५:७; १ यूहन्ना ५:१४) तो ऐसा हो कि हम राज्य सेवा में उत्साही रहे और निरन्तर यहोवा की ओर देखें कि धीरज के साथ फल उत्पन्न करते रहने के लिये वे हमारी सहायता करें।