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◼ ज्ञान पुस्तक से एक व्यक्‍ति के साथ कितने समय तक एक औपचारिक बाइबल अध्ययन संचालित करना चाहिए?

यहोवा आज अपने संगठन पर आशिष दे रहा है। हम इसका प्रमाण हर साल देखते हैं जैसे-जैसे हज़ारों नए लोग सच्चाई के लिए स्थिति लेते हैं। ज्ञान पुस्तक इसे पूरा करने में एक प्रभावकारी साधन साबित हो रही है। प्रहरीदुर्ग के जनवरी १५, १९९६ अंक ने बताया कि यह पुस्तक एक बाइबल विद्यार्थी को कुछ-कुछ तेज़ आध्यात्मिक प्रगति करने में मदद करने के लिए रची गयी है, शायद बपतिस्मे की हद तक केवल कुछ महीनों के भीतर ही।

इस कारण, उसी प्रहरीदुर्ग, पृष्ठ १७, ने सलाह दी: “जब एक व्यक्‍ति ज्ञान पुस्तक से अपने बाइबल अध्ययन को पूरा कर चुका है और बपतिस्मा प्राप्त कर चुका है, तो उसके साथ दूसरी पुस्तक . . . से एक औपचारिक अध्ययन संचालित करने की शायद ज़रूरत न हो।”

उस व्यक्‍ति के बारे में क्या जो ज्ञान पुस्तक समाप्त करने के बाद बपतिस्मा प्राप्त नहीं करता? जून १९९६ की हमारी राज्य सेवकाई ने पृष्ठ ६, अनुच्छेद २३ पर हमें उस मुद्दे की याद दिलायी जो प्रहरीदुर्ग में ज्ञान पुस्तक समाप्त करने पर उसी विद्यार्थी के साथ अतिरिक्‍त पुस्तकों का अध्ययन न करने के बारे में बताया था। क्या इसका मतलब यह है कि हम इस स्थिति के आगे किसी बाइबल विद्यार्थी की मदद करने में दिलचस्पी नहीं लेते? जी नहीं। हम चाहते हैं कि लोग सच्चाई का मूलभूत ज्ञान हासिल करें। लेकिन, यह अपेक्षा की जाती है कि तुलनात्मक रूप से कम समयावधि में, एक प्रभावकारी शिक्षक एक सच्चे साधारण विद्यार्थी को यहोवा की सेवा करने का एक बुद्धिमत्तापूर्ण निर्णय करने के लिए पर्याप्त ज्ञान पाने में उसकी मदद करने में समर्थ होगा। हो सकता है कि उनकी व्यक्‍तिगत परिस्थितियों के कारण, कुछ बाइबल विद्यार्थी सप्ताह में एक से ज़्यादा बार अध्ययन करने की भी इच्छा करें।

माना कि कुछ विद्यार्थी दूसरों के मुक़ाबले अधिक धीरे प्रगति करेंगे। परन्तु अगर ज्ञान पुस्तक का अध्ययन करने के बाद, जिसने शायद उतना ज़्यादा समय लिया हो जितना साधारणतया न लगे, उस व्यक्‍ति ने तय नहीं किया है कि वह कलीसिया के साथ संगति करना चाहता है, तो यह अच्छा होगा कि प्रकाशक इस स्थिति की चर्चा कलीसिया सेवा समिति के एक प्राचीन से करे। यदि विशेष अथवा असाधारण हालात शामिल हैं, तो कुछ अतिरिक्‍त मदद की ज़रूरत हो सकती है। यह जनवरी १५, १९९६, प्रहरीदुर्ग के पृष्ठ १७ पर अनुच्छेद ११ और १२ में जो दिया गया है उसके सिद्धान्त के सामंजस्य में है।

सच्चाई का केवल मूलभूत ज्ञान लेने के मूल्यांकन से विद्यार्थी को मसीही सभाओं में उपस्थित होने के लिए प्रेरित होना चाहिए। यह विद्यार्थी को यहोवा की सेवा करने की उसकी इच्छा के कुछ स्पष्ट प्रमाण देने की ओर ले जा सकता है। यदि ज्ञान पुस्तक से लम्बे अरसे तक अध्ययन संचालित करने के बाद ऐसा आध्यात्मिक मूल्यांकन प्रकट नहीं होता, तो शायद अध्ययन बन्द कर देना ही उचित हो।

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