वॉचटावर ऑनलाइन लाइब्रेरी
वॉचटावर
ऑनलाइन लाइब्रेरी
हिंदी
  • बाइबल
  • प्रकाशन
  • सभाएँ
  • km 7/99 पेज 2
  • प्रश्‍न बक्स

इस भाग के लिए कोई वीडियो नहीं है।

माफ कीजिए, वीडियो डाउनलोड नहीं हो पा रहा है।

  • प्रश्‍न बक्स
  • हमारी राज-सेवा—1999
  • मिलते-जुलते लेख
  • लोगों को परमेश्‍वर की माँगें सीखने में मदद देने के लिए एक नया औज़ार
    प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1997
  • “जब तक कोई मुझे न समझाए तो मैं क्योंकर समझूं?”
    हमारी राज-सेवा—2000
  • अध्ययन शुरू करने में क्या आप माँग ब्रोशर का इस्तेमाल कर रहे हैं?
    हमारी राज-सेवा—2002
  • परमेश्‍वर की तरफ से खुशखबरी! — इस ब्रोशर का इस्तेमाल कैसे करें?
    हमारी राज-सेवा—2013
और देखिए
हमारी राज-सेवा—1999
km 7/99 पेज 2

प्रश्‍न बक्स

◼ हमें नए लोगों के साथ उनके बपतिस्मे से पहले किन किताबों की स्टडी करनी चाहिए?

अगर एक व्यक्‍ति यहोवा को अपना जीवन समर्पित करके बपतिस्मा लेना चाहता है, तो पहले उसे सही ज्ञान लेना बहुत ही ज़रूरी है। (यूह. १७:३) यह ज्ञान लेने के लिए उसे ब्रोशर, परमेश्‍वर हमसे क्या माँग करता है? और किताब ज्ञान जो अनन्त जीवन की ओर ले जाता है, इन दोनों से स्टडी करनी होगी। जहाँ तक हो सके, पहले माँग ब्रोशर की स्टडी की जानी चाहिए। लेकिन अगर किसी के साथ ज्ञान किताब से स्टडी शुरू हो चुकी है तो उसे पूरा करने के बाद माँग ब्रोशर से भी स्टडी करनी चाहिए। ऐसा करना क्यों ज़रूरी है?

माँग ब्रोशर में बाइबल की बुनियादी शिक्षाओं की एक झलक दी गई है। अगर पहले इसकी स्टडी की जाए तो विद्यार्थी यह समझ सकेगा कि यहोवा को खुश करने के लिए कौन-सी खास बातें ज़रूरी हैं। अगर ज्ञान किताब के बाद इस ब्रोशर की स्टडी की जाए, तो इससे ज्ञान किताब से सीखीं बातों को दोहराने में बहुत मदद मिलेगी। चाहे स्टडी पहले ब्रोशर से हो या किताब से, विद्यार्थी को यह ज़रूर बताइए कि वह उनमें दी गयी आयतों को बाइबल से पढ़े और उन पर सोचे। उनमें दी गयी तस्वीरों पर ज़ोर देना मत भूलिए, क्योंकि तस्वीरें बहुत कुछ बोलती हैं।—जनवरी १५, १९९७ की प्रहरीदुर्ग के पेज १६-१७ देखिए।

दोनों किताबों से स्टडी करने के बाद बाइबल विद्यार्थी बपतिस्मे की तैयारी में प्राचीनों द्वारा पूछे जानेवाले सभी सवालों का जवाब अच्छी तरह दे पाएगा। अगर उसने सारे सवालों का जवाब अच्छी तरह दिया है, तो उसके साथ आगे किसी और किताब से स्टडी करने की ज़रूरत नहीं होगी। लेकिन जो अध्ययन चलाता है उसे अपने विद्यार्थी की आध्यात्मिक तरक्की में दिलचस्पी लेते रहना चाहिए।—जनवरी १५, १९९६ की प्रहरीदुर्ग, पेज १४, १७ देखिए।

    हिंदी साहित्य (1972-2025)
    लॉग-आउट
    लॉग-इन
    • हिंदी
    • दूसरों को भेजें
    • पसंदीदा सेटिंग्स
    • Copyright © 2025 Watch Tower Bible and Tract Society of Pennsylvania
    • इस्तेमाल की शर्तें
    • गोपनीयता नीति
    • गोपनीयता सेटिंग्स
    • JW.ORG
    • लॉग-इन
    दूसरों को भेजें